मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण[संपादित करें]मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञों की व्यवस्थानुसार, सुदृढ़ (sound) मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण इस प्रकार हैं : Show
मनुष्य के गुण-दोष उसके स्वभाव, आचरण तथा मान्यताओं से जाने जाते हैं। माता, पिता तथा अन्य व्यक्तियों के संपर्क से बालक में व्यक्तित्व का विकस होता है और उसकी धारणाएँ दृढ़ हो जाती हैं। मानसिक स्वस्थ्यता की दशा में-
की धाराणएँ स्वभावत: पुष्ट होने लगती हैं। अस्वस्थ दशा में इनका अभाव सा होता है। शिक्षा और अभ्यास द्वारा इन स्वस्थ भावों को अपनाना चाहिए। स्वस्थ मनोविकास के लिए अभ्यास और प्रक्रिया[संपादित करें]स्वस्थ मनोविकास के लिए जो अभ्यास और प्रक्रिया फलीभूत सिद्ध हुई है, इस प्रकार है : (1) आवेगों को वश में रखने का अभ्यास करना और उन्हें किसी सुकार्य की ओर प्रेरित करना, (2) छोटी मोटी घटनाओं से अपने को व्यथित न होने देना, (3) व्यर्थ की चिंताओं से छुटकारा पाने के लिए भय पर विजय पाना, (4) वास्तविकता का आवश्यक दृढ़ता से सामना करना, (5) जीवन के प्रति रुचि और आस्था का भाव उत्पन्न करना, (6) अपनी सामथ्र्य पर विश्वास रख स्वावलंबी बनना, (7) दूसरे के विचारों का आदर करना, (8) अपने विचारों का व्यवस्थित रूप से नियमन तथा नियंत्रण करने का अभ्यास करना और उनको किसी कल्याणकारी लक्ष्य की ओर प्रेरित करना, (9) जीवन के प्रति वास्तविकतापूर्ण दार्शनिक दृष्टिकोण अपनाकर सुख दुख में समत्व बुद्धि द्वारा अपने जीवन को सुखी और संतुष्ट बनाना, (10) विनोदशील प्रवृत्ति द्वारा जीवन की कठोरता और व्यग्रकारी समस्याओं को दूर करना तथा (11) चित्त को एकाग्र कर अपने कार्य में रुचि, उत्साह और तल्लीनता उत्पन्न करना। अल्पबुद्धिता और मानसिक विकार में भेद[संपादित करें]अल्पबुद्धिता (Mental defficiency) और मानसिक विकार (Mental disorder) में भेद है। अठारह वर्ष की आयु तक होनेवाले मानसिक विकास में कुछ बाधा पड़ जाने के कारण अल्पबुद्धिता होती है और मानसिक विकार, विकसित मन में दोषोत्पत्ति के कारण। अल्बुद्धिवाले जड़मूर्ख, मूढ़ (embecile) अथवा बालिश (moron) होते हैं। अल्पबुद्धिता वंशानुगत दोष तो होता ही है परंतु बधिरता, अंधता, अपंगता तथा अन्य शारीरिक दोष के कारण बालक पढ़ने लिखने में पिछड़ जाते हैं और उनकी बुद्धि का स्तर उन्नत नहीं हो पाता। इन शारीरिक दोषों को दूर करने से विद्यार्थियों की मानसिक शक्ति में सुधार किया जा सकता है। मद्यपान तथा अन्य मादक वस्तुओं का सेवन, जीवन की जटिलता, समाज से संघर्ष तथा शारीरिक रोगों के कारण चिंता, व्यग्रता, अनिद्रा, भीति, अस्थिरता, बुद्धिविपर्यय और विभ्रम आदि उत्पन्न होते हैं जिससे आक्रमकता, ध्वंसकारिता, मिथ्याचरण, तस्करता, हठवादिता, अनुशासनहीनता आदि आचरण दोष (behaviour disorder) बढ़ने लगते हैं। इन दोषों से समाज की बड़ी हानि होती है। किशोरावस्था की दुष्चरित्रता समाज का सबसे अधिक हानिकर रोग है। इन दोषों के रहते समाज का व्यवस्थित संगठन संभव नहीं है। स्वस्थ मानसिक संतुलन के उपाय[संपादित करें]स्वस्थ मानसिक संतुलन तथा समत्व बुद्धि के लिए जो उपाय करने चाहिए वे मुख्यत: इस प्रकार हैं - (1) वंशानुगत विकारों को दूर करने के लिए विवाह तथा संतानोत्पत्ति संबंधी संततिशास्त्रानुमोदित योजना का प्रसार करना जिससे अनुपयुक्त मनुष्यों द्वारा संतानोत्पत्ति रोकी जा सके और केवल पूर्णत: स्वस्थ स्त्री पुरुषों द्वारा ही स्वस्थ बालकों की उत्पत्ति हो, (2) शारीरिक स्वास्थ्य के सुधार द्वारा तथा आवश्यक विश्राम द्वारा मानसिक दुरावस्था, क्लांति (Strain) और शारीरिक विकारों को दूर करना, (3) अत्यधिक प्रश्रय (Indulgence), कठोरतापूर्ण अनुशसित और आग्रहपूर्ण हठवादिता का परित्याग करना, (4) बालकों के प्रति सद्भाव, ममत्व, सहानुभूति, प्रोत्साहन और विश्वास का भाव प्रदर्शित करना, (5) व्यक्तित्व के विकास में बाधा न डालना, (6) क्षमता से अधिक कार्यभार बालक पर न डालना, (7) बालक की हीनता के निवारण में सहायता करना, (8) उन्नयन (Sublimation) की सभी संभाव्य रीतियों का अनुसंधान कर अवांछनीय दोष को किसी समाजानुमोदित सुरुचिपूर्ण कार्य के साथ जोड़ने का प्रयास करना (9) योनि संबंधी परंपरागत विचारों को त्याग कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हुए सुशिक्षा का प्रसार करना, तथा (10) बाल निर्देशनशाला स्थापित कर मनोदौर्बल्य दूर करना और बालक के मन में व्यष्टि तथा समष्टि के कल्याण की भावना जाग्रत करना। बालक संरक्षण चाहता है और ममत्व का भूखा होता है। उसकी ममत्वपूर्ण देखरेख कर उसे आश्वस्त करना चाहिए। खेल कूद, व्यायाम, विश्राम, मनोरंजन द्वारा मानसिक विकलता दूर करनी चाहिए। जीवन की कठिनाइयाँ, साधनों का अभाव और आपदाओं से विचलित न होना चाहिए परंतु इनसे उच्चतर जीवन की प्रेरणा लेनी चाहिए। अभाव की चिंता करने की अपेक्षा जो कुछ भी प्राप्त है उससे संतोषसुख प्राप्त करना श्रेष्ठतर है। अपने को हतभाग्य समझकर हाय हाय करना कापुरुषत्व है। प्रसन्नचित्त रहने का सतत प्रयत्न करते रहने से मनोदौर्बल्य दूर किया जा सकता है और यह प्रसन्नता और संतोष द्वारा प्राप्य है। बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
मानसिक स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं स्वस्थ मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण बताइये?मानसिक स्वास्थ्य के लक्षण
वह व्यक्ति संतोषी और प्रसन्नचित्त रहता है और भय, क्रोध, प्रेम द्वेष, निराशा, अपराध, दुश्चिन्ता आदि आवेगों से व्यथित नहीं होता। वह अपनी योग्यता और क्षमता को न तो अत्यधिक उत्कृष्ट और न हीन समझता है। वह ममत्वशील होता है और दूसरों की भावनाओं का ध्यान रखता है।
मानसिक स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं?विश्व स्वास्थ्य संगठन, मानसिक स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए कहता है कि यह "सलामती की एक स्थिति है जिसमें किसी व्यक्ति को अपनी क्षमताओं का एहसास रहता है, वह जीवन के सामान्य तनावों का सामना कर सकता है, लाभकारी और उपयोगी रूप से काम कर सकता है और अपने समाज के प्रति योगदान करने में सक्षम होता है।
मानसिक स्वास्थ्य से आप क्या समझते हैं मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारकों की व्याख्या करें?मानसिक स्वास्थ्य का आशय भावनात्मक मानसिक तथा सामाजिक संपन्नता से लिया जाता है। यह मनुष्य के सोचने, समझने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता को प्रभावित करता है। मानसिक विकार में अवसाद दुनिया भर में सबसे बड़ी समस्या है। यह कई सामाजिक समस्याओं जैसे- बेरोज़गारी, गरीबी और नशाखोरी आदि को जन्म देती है।
मानसिक स्वास्थ्य के उपाय क्या है?नया सीखते रहें दिमाग को स्वस्थ रखने के लिए कोशिश करनी चाहिए कि कुछ नया सीखते रहना चाहिए। ... . शरीर का ध्यान रखें ऐसा माना जाता है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग रहता है। ... . सकारात्मक लोगों के साथ समय बिताएं ... . दूसरों की सहायता करें ... . तनाव को दूर रखें ... . शांत रहें ... . लक्ष्य तय करें ... . जरूरत पड़ने पर मदद लें. |