-विवेक नंदवाना, कोटा Show …............... भूजल पुनर्भरण तकनीक अपनाएं वर्षा जल का संचयन करके भी पुनर्भरण किया जा सकता है। किसानों द्वारा ऐसी फसलें उगाई जानी चाहिए जिनमें पानी का कम से कम उपयोग हो। -शिवपाल सिंह, मेड़ता सिटी, नागौर …............... अनावश्यक दोहन न करें भूजल स्तर को बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका वर्षाजल को संरक्षित करने का है। समय रहते नदियों व तालाबों की सफाई भी कराई जानी चाहिए। …............... आज सबसे बड़ी चिंता भूजल का स्तर गिरना आज सबसे बड़ी चिंता है। इसकी बर्बादी रोकने के लिए कठोर नीति के साथ-साथ वर्षा जल को सहेजना, परम्परागत जल स्रोतों को बचाने की प्रमुख नीति में शामिल किया जाना चाहिए। -हरिप्रसाद चौरसिया, देवास, मध्यप्रदेश …............... करने होंगे कई उपाय भूजल का स्तर बढ़ाने के लिए हमें धरती पर हरियाली बढ़ानी पड़ेगी जिससे मिट्टी का कटाव रुकेगा। पेड़-पौधों व जंगलों को संभालकर रखना होगा। धरती का रखरखाव करके हम भूजल के स्तर को बढ़ा सकते हैं। - संजय दास महंत, रायगढ़, छत्तीसगढ़ …............... परम्परागत जल स्रोत संरक्षित करें भूजल का स्तर दो ही तरीकों से बढ़ाया जा सकता है। पहला वर्षा का जल संरक्षित कर और दूसरा परम्परागत जल स्रोतों का संरक्षण कर। वाटर हार्वेस्टिंग सहित जल संरक्षण के लिए सामुदायिक तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। -अमित दीवान, भोपाल …............... जल ही जीवन है बिना जल के पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए चाहे भूमिगत जल हो या नदी-तालाब, इनका संरक्षण करना चाहिए। मनुष्य, जीव-जंतु, पेड़-पौधे सभी जल का उपभोग करते हैं। भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए 'जल बचाओ, जल बढ़ाओ' की नीति को लागू किया जाए। -रजनी वर्मा, श्रीगंगानगर, राजस्थान …............... भू-जल स्तर बढ़ाने पर ध्यान दें भू-जल का लगातार गिरता स्तर चिंता का विषय बनता जा रहा है। हर साल गर्मी में देश के कई इलाके पानी के संकट से जूझते हैं। हम पानी का उपयोग तो कर लेते हैं, लेकिन उसे वापस पृथ्वी को नहीं देते। नदी, तालाब, कुएं, बावड़ी सूख रहे हैं। जल संकट से निपटने का सबसे अच्छा तरीका वर्षा जल संचयन है। इसलिए परंपरागत जल स्रोतों का जीर्णोद्धार का कार्य कर जल का संग्रह किया जाए। -मोहित त्रिपाठी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश …............... 'सरकार और नागरिकों के साझा प्रयास ' सरकार व्यापक पैमाने पर और नागरिक व्यक्तिगत तौर पर भूजल पुनर्भरण कर सकते हैं। वर्षा जल संचयन और सतही जल अप्रवाह का प्रयोग करके भूजल का स्तर बढ़ाया जाना चाहिए। इससे हम धरती मां का ऋण भी चुका पाएंगे। -राबिया शमीम …............... भूजल पुनर्भरण तकनीक अपनाएं किसानों द्वारा ऐसी फसलें उगाई जाएं जिनमें पानी की खपत कम-से-कम हो। सिंचाई के लिए ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई प्रणालियों को लोकप्रिय बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए। इसके अलावा, भूजल पुनर्भरण तकनीकों को अपनाया जाना भी आवश्यक है। वर्षाजल संचयन (रेनवॉटर हार्वेस्टिंग) इस दिशा में एक कारगर उपाय हो सकता है। रूफटॉप वर्षाजल तथा सतही अप्रवाह जल दोनों के संचयन से ही यह काम हो सकता है। -डॉ. अजिता शर्मा, उदयपुर …............... भूजल प्रदूषण रोकना होगा परंपरागत प्रबंधन जैसे तालाब, कुएं, बावड़ी, आदि को सहेज कर, हरियाली बढ़ाकर, वर्षाजल को एकत्रित करके और लोगों को भूजल के प्रति जागरूक करके हम भूजल स्तर बढ़ाने में कामयाब हो सकते हैं। हमें भूजल प्रदूषण को भी रोकना होगा। उद्योगों का दूषित जल सीधा ही धरती में जा रहा है जिसके लिए सरकार को सख्त कदम उठाने चाहिए और लोगो को जागरूक करना चाहिए। -माया डारा, मकराना (राजस्थान) …............... अति दोहन से बचें भूगर्भ के जल स्तर को बचाए रखने के लिए हमें पानी के अतिदोहन से बचना चाहिए। वर्षा के पानी को इकट्ठा करके पीने के काम में लेना चाहिए। -कैलाश चन्द्र मोदी, सादुलपुर (चूरू) …............... वॉटर हार्वेस्टिंग ही समाधान बारिश का पानी यदि बचा लिया जाए तो पूरे वर्ष की जल की किल्लत दूर हो सकती है। जल का संचय और भूजल का स्तर ऊपर आना अत्यधिक आवश्यक है। इसके लिए सब से बड़ा समाधान रेनवॉटर हार्वेस्टिंग ही है। -भगवत सिंह राजावत, निहालपुरा दौसा …............... जल संचयन करें वर्षाजल संचयन (रेनवॉटर हार्वेस्टिंग) इस दिशा में एक कारगर उपाय हो सकता है। छत पर प्राप्त भारी रूफटॉप वर्षाजल तथा सतही अप्रवाह जल दोनों के संचयन से ही यह काम हो सकता है। इस प्रकार वर्षा के दौरान व्यर्थ बह रहे जल को रोककर भूजल की गुणवत्ता में सुधार होगा तथा उसकी पुनर्भरण क्षमता भी बढ़ेगी। -राधे सुथार भादसोड़ा, चित्तौड़गढ़ …............... भूजल स्तर बढ़ाने की अचूक विधि छोटे-छोटे उपायों से भूमिगत जल के स्तर को बढ़ाया जा सकता है। वर्षा जल संचयन अधिक से अधिक किया जाना चाहिए। जल के प्रवाह की धोराबन्दी कर, संचयित कर, संवर्धन एंव संरक्षण कर जल स्तर को बढ़ाया जा सकता है। रेनवाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम जल संरक्षण के साथ ही भूजल स्तर को बढ़ाने की अचूक विधि है। -खुशवन्त कुमार हिण्डोनिया, चित्तौड़गढ़ …............... जनअभियान अनिवार्य घर-घर शौचालय की तर्ज पर घर-घर वर्षाजल संग्रह जरूरी किया जाना चाहिए। एक वर्ष में ही गिरते भूजल समस्या का निदान हो जाएगा। इस अभियान को राशन और गैस आपूर्ति के लिए अनिवार्यता से भी जोड़ा जा सकता है। -मुकेश भटनागर, वैशालीनगर, भिलाई …............... वृक्षारोपण और वर्षा जल संचयन जरूरी आंकड़ों के अनुसार पृथ्वी का लगभग 97.2 प्रतिशत जल सागरों, महासागरों में समाया है। 2.15 प्रतिशत बर्फ के रूप में ग्लेशियरों में मौजूद है, 0.6 प्रतिशत भूमिगत जल के रूप में तथा 0.01 प्रतिशत नदियों और झीलों में एवं 0.001 प्रतिशत वायुमण्डल में मौजूद है। देखा जाए तो पृथ्वी पर भूमिगत जल की बहुत कमी है। चूंकि अधिकांश लोग पीने और खाना बनाने के लिए भूमिगत जल का उपयोग ही करते हैं इसलिए हमें भूजल स्तर को बढ़ाने के लिए विशेष रूप से प्रयास करना चाहिए। -छाया जायसवाल …............... वृक्ष लगाए जाएं बूंद-बूंद से घड़ा भरता है और बूंद-बूंद से ही वह खाली भी हो जाता है। अतः हमें अपने पृथ्वी के जल स्रोतों का सजगता, सावधानी से प्रयोग करना चाहिए। भूजल में सुधार करने हेतु हमें अधिक से अधिक वृक्ष लगाने होंगे। साथ ही जल का सतत व संधारणीय उपयोग करना होगा। इसके लिए 'रीसाइकिल, रीयूज, रिड्यूस' को अमल में लाना चाहिए। -सिद्धार्थ शर्मा, गरियाबंद, छत्तीसगढ़ …............... भूजल पुनर्भरण पर दें ध्यान भूजल का अत्यधिक दोहन नहीं होना चाहिए। भूजल पुनर्भरण पर पूरा ध्यान देना चाहिए। भूजल का प्रदूषण रोकना पड़ेगा। परंपरागत जल प्रबंधन के साधनों को सहेजना होगा। जल प्रबंधन के नए वैज्ञानिक साधन खोजने पड़ेंगे। पानी को व्यर्थ बहने से रोककर तथा पानी की बर्बादी को रोककर भी भूमिगत जल स्तर बढ़ाया जा सकता है। -डॉक्टर माधव सिंह, श्रीमाधोपुर, सीकर …............... इनकी ओर भी दें ध्यान वर्षा जल का संचयन कर, नदी-नालों पर बांध बनाकर बहते हुए जल को रोका जा सकता है। कृषि के लिए भूमिगत जल को न अपना कर दूसरा रास्ता अपनाया जा सकता है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता औद्योगिकीकरण, शहरीकरण के विस्तार के अलावा, ग्लोबल वार्मिंग, जलवायु परिवर्तन भी इसके कारण हैं। इनकी ओर भी हमें ध्यान देना चाहिए। -सरिता प्रसाद, पटना, बिहार …............... जीवन की परिकल्पना कठिन जल के बिना, जीवन की परिकल्पना कठिन है। 'जल है तो कल है' वाली सोच सभी लोगों में जागृत रहनी चाहिए। इस कड़ी में भूजल स्तर बढ़ाने के लिए जल संचयन करना कामयाब तरीका है। कृत्रिम रीचार्ज द्वारा देश के हर क्षेत्र में ढलान, नदियों तथा नालों के माध्यम से व्यर्थ जा रहे जल को बचाकर भूजल स्तर बढ़ाने की कोशिशें मददगार साबित हो सकती हैं। -नरेश कानूनगो, देवास, म.प्र. …............... न जीवन है और न ही जीविका जल के बिना न जीवन है और न जीविका है, न हमारे जीवन में आनंद और गौरव है। इसलिए हम जल बचाएंगे तो हमारा जीवन भी बचेगा। भारत का जो परंपरागत प्रबंधन था, तालाब ,बावड़ी, कुएं आज खत्म होते जा रहे हैं। उनको हमें दुबारा से ठीक करना है। हमें यह देखना होगा कि धरती पर हरियाली बढ़ेगी, मिट्टी का कटाव रुकेगा, धरती की सेहत ठीक होगी। -मुकेश जैन चेलावत, पिड़ावा, झालावाड़ भूमिगत जल स्तर बढ़ाने के लिए आप क्या क्या करेंगे?भूजल का स्तर दो ही तरीकों से बढ़ाया जा सकता है। पहला वर्षा का जल संरक्षित कर और दूसरा परम्परागत जल स्रोतों का संरक्षण कर। वाटर हार्वेस्टिंग सहित जल संरक्षण के लिए सामुदायिक तंत्र विकसित किया जाना चाहिए। बिना जल के पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
प्राचीन भारत में जल को संरक्षित करने के कौन कौन तरीके अपनाए गये थे व्याख्या कीजिये?उस काल के लोग बाढ़ नियंत्रण के कार्य से भी अच्छी तरह परिचित थे। उन्होंने ईसा के जन्म से एक शताब्दी पूर्व इलाहाबाद के पास गंगा की बाढ़ से बचने के लिये नहरों और तालाबों की एक दूसरे से जुड़ी संरचनाएँ बनाई थीं। इन संरचनाओं के कारण गंगा की बाढ़ का अतिरिक्त पानी कुछ समय के लिये इन नहरों और तालाबों में एकत्रित हो जाता था।
पानी की समस्या से निपटने के लिए आप क्या प्रयास कर सकते हैं?रेन वाटर हार्वेस्टिंग द्वारा जल का संचयन किया जाना चाहिए। वर्षा जल को सतह पर संग्रहित करने के लिए टैंकों, तालाबों और चेक डैम आदि की व्यवस्था किया जाना चाहिए। झीलों, नदियों और समुद्र जैसे प्राकृतिक जल स्रोतों का संरक्षण करके जल संकट की समस्या से निपटा जा सकता है।
प्राचीन काल में पानी कैसे निकाला जाता था?बैलों के प्रयोग से रहट तकनीक से ही निकाला जाता था सिंचाई के लिए पानी। आज कृषि में सिंचाई के कामों के लिए आधुनिकता का बोल-बाला है, डीजल इंजन से लेकल सोलर पंप तक तमाम आधुनिक तकनीकों का इस्तेमाल हो रहा है। ऐसे में आइए आप को बताते हैं पुराने ज़माने की एक सिंचाई तकनीक के बारे में जिसे 'रहट' कहते थे।
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