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विटामिन रासायनिक रूप से कार्बनिक यौगिक होते हैं हमारे शरीर को विभिन्न प्रकार के विटामिन की आवश्यकता होती है जो हमें
फल, सब्जियां, दूध और अन्य खाद्य पदार्थों से मिलते हैं लेकिन क्या आप जानते हैं जल में घुलनशील विटामिन कौन से है? jal mein ghulansheel vitamin या जल में विलेय विटामिन कौन से है jal me viley vitamin विटामिन हमारे शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक हैं हमारे शरीर को नियमित रूप से विटामिन मिलना जरूरी है अपितु विटामिन की कमी से कई रोग भी हो जाते हैं जिनके बारे में आप अधिक यहाँ पढ़ सकते है – विटामिन और उनके रासायनिक
नाम, श्रोत और कमी से होने वाले रोग प्रमुख विटामिन निम्नलिखित हैं विटामिन दो प्रकार के होते हैं जल में घुलनशील विटामिन और वसा में घुलनशील विटामिन। जल में घुलनशील विटामिन B और विटामिन C है और बाकी विटामिन वसा
में घुलनशील होते हैं। क्या आप जानते हैं? वसा में घुलनशील विटामिन की खोज सबसे पहले हुई। वसा में घुलनशील विटामिन इस प्रकार है - विटामिन ए, विटामिन डी, विटामिन ई , विटामिन के। वसा में घुलनशील विटामिन के नाम और कार्यवसा में घुलनशील विटामिन और इसके कार्य, प्राप्ति के साधन, कमी से होने वाले रोग, वसा में घुलनशील विटामिन इस प्रकार है - 1. विटामिन एविटामिन ‘ए’ पीले रंग का रवे युक्त पदार्थ है। यह अम्ल, क्षार व ताप के लिए अपेक्षाकृत स्थिर है। इसकी प्राप्ति के साधन जंतु भोज्य पदार्थ ही है। कैरोटीन जो वनस्पति भोज्य पदार्थों में उपस्थित रहती है हमारे शरीर में जाकर विटामिन A में परिवर्तित हो जाती है। यह ही आक्सीकृत हो जाता है। तथा सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें इसे नष्ट कर देती है। विटामिन ए के कार्य
विटामिन ए प्राप्ति के साधन - विटामिन ए प्रमुख रूप से मछलियों के यकृत के तेल में उपस्थित रहता है। यकृत अण्डा, मक्खन, दूध तथा मछलियाँ विटामिन ए का साधन है। विटामिन ए के कमी से होने वाले रोग
2. विटामिन डीकॉड लीवर ऑयल के इस दूसरे वसा में घुलनशील तत्व को विटामिन डी अथवा रिकेट दूर करने वाला नाम दिया। यह तत्व रासायनिक रूप से कैल्सीफेरील कहलाता है। शुद्ध विटामिन डी सफेद गंध रहित वसा में घुलनशील परन्तु पानी में अघुलनशील तथा अम्ल, क्षार तथा हवा आदि के प्रति स्थिर होता है। प्रयोगों से ज्ञात हुआ है कि वसा के साथ उपस्थित स्टिरॉल पर सूर्य अल्ट्रावायलेट प्रकाश पड़ने से विटामिन डी का निर्माण होता है। विटामिन डी के कार्य 1. कैल्शियम चयापचय - यह लंबे समय से हड्डियों के निर्माण में सहायक तत्व है।
2. फॉस्फोरस चयापचय - हड्डियों का कैल्सीफिकेषन अधिकांशतः: फांस्फोरस की कमी के कारण रूक जाता है, बजाय फास्फोरस की। विटामिन डी फास्फोरस अवशोषण की दर को बढ़ाता है। विटामिन डी वृक्क नलिकाओं से अमीनो अम्ल अवशोषण बढ़ाता है। विटामिन डी प्राप्ति के साधन - विटामिन डी के प्रमुख साधन मछलियाँ के यकृत का तेल, मोटी वसा युक्त मछलियाँ, अण्डा, मक्खन, पनीर, वसा युक्त दूध आदि। दूध विटामिन डी का अच्छा साधन है क्योंकि इससे कैल्शियम व फॉस्फोरस भी प्राप्त हो जाता है। विटामिन डी कमी से होने वाले रोग - विटामिन डी की कमी से बच्चों को रिकेट्स रोग तथा प्रौढ़ों को ओस्टो मलेशिया रोग हो जाता है। 1. रिकेट्स - रिकेट्स अधिकतर बच्चों को प्रभावित करता है। बच्चे को बचपन में हुए रिकेट्स द्वारा उत्पन्न लक्षण युवावस्था तक पाए जाते हैं। लम्बे समय से यह माना जाता था कि यह 2 वर्ष से ऊपर के बच्चों में नहीं हो सकता, परन्तु अवधारणा बदल चुकी है। रिकेट्स दोषपूर्ण हड्डियों के निर्माण के कारण होता है तथा कई प्रकार से उभरता है। मुख्यत: यह कैल्शियम तथा फास्फोरस के हड्डी में अपर्याप्त मात्रा में होने से होता है।
2. ओस्टोमलेशिया - इस रोग को प्रौढ़ रिकेट भी कहते हैं। इस रोग में विटामिन डी अथवा कैल्शियम की कमी से अस्थियों में कैल्सीफिकेशन की क्रिया ठीक तरह नहीं हो पाती है। यह रोग विशेष रूप से गर्भवती तथा दुग्धपान कराने वाली स्त्रियों को हो जाता है जो मुख्यत: वनस्पति आहार लेती है तथा घर के अंदर में रहती है। आस्टोमलेशिया रोग में भी अस्थियाँ कोमल हो जाती है, विशेष रूप से रीढ़ की हड्डी झुक जाती है। टांगो तथा कमर की अस्थि में हमेशा दर्द रहता है। विटामिन ‘डी’ की कमी से दांत भी प्रभावित होते हैं। 3. विटामिन ई1922 में ‘‘ईवान्स तथा विशप’’ ने चूहों पर प्रयोग करके बताया कि वसा में घुलनशील एक विशेष तत्व चूहों को प्रजनन क्रिया के लिए आवश्यक है। इस तत्व को ‘विटामिन ई’ का नाम दिया गया जो संतानोत्पत्ति में विशेष रूप से सहायक होता है। विटामिन ई पर अम्ल व ताप का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। पर वायु व प्रकाश की उपस्थिति से ऑक्सीकृत हो जाता है। विटामिन ई के कार्य - यह ऊतकों में असंतृप्त वसीय उतकों को भी अस्वीकृत होने से रोकता है। विटामिन ई की कमी से असंतृप्त वसीय अम्लों का ऑक्सीकरण तेजी से होने के कारण चयापचय की गति बढ़ जाती है। यह लाल रक्त कणिकाओं को ऑक्सीकारक पदार्थों द्वारा टूटने-झूटने से बचाता है। इस तरह लाल रक्त कणिकाओं की जीवन अवधि को बढ़ाता है। विटामिन ई प्राप्ति के साधन - विभिन्न अनाजों के भ्रूण के तेल विटामिन ‘ई’ के प्रमुख साधन हैं। विटामिन ई की कमी से होने वाले रोग - विटामिन ई की हीनता से विभिन्न लक्षण प्रकट होते हैं। प्रमुख रूप में प्रजनन अंग ठीक तरह कार्य नहीं करते हैं। स्त्रियों के शरीर में भ्रूण गर्भावस्था में ही मर जाता है तथा पुरुषों में शुक्राणु उत्पन्न करने वाली कोशिकाओं के टूट-फूट होने के कारण शुक्राणु उत्पन्न नहीं हो पाते। विटामिन ई की हीनता से मांसपेशियों में टूट-फूट भी शीघ्रता से होती है। 4. विटामिन के (Vitamins K)विटामिन ‘के’ की उपस्थिति की खोज सबसे पहले डॉ0 डैम ने की। विटामिन ‘के’ को रक्त का थक्का जमाने वाले विटामिन या रक्तस्राव प्रतिरोधी विटामिन भी कहते हैं। यह वसा में घुलनशील है। क्षार तथा किरणीयन के द्वारा इसकी क्रियाशीलता नष्ट हो जाती है। यह अग्नि के प्रति स्थिर है। विटामिन के के कार्य - इसका मुख्य कार्य रक्त का थक्का जमाना है। रक्त के एक पदार्थ प्रोथ्रोम्बिन के निर्माण में सहायक होता है। प्रोथ्रोम्बिन थ्राबिन में परिवर्तित होकर फाइब्रिन में परिवर्तित हो जाता है जिसके कारण रक्त जम जाता है। सामान्य रूप से माना जाता है कि यह यकृत में प्रोथ्रोम्बिन का निर्माण करने वाली कोशिकाओं को सक्रिय बनाए रखता है। विटामिन के प्राप्ति के साधन - विटामिन के विभिन्न वनस्पति भोज्य पदार्थों में उपस्थित रहता है। हमारी आँतों में कुछ वैक्टीरिया भी विटामिन ‘के’ का निर्माण करते हैं। वनस्पति भोज्य पदार्थों में हरी पत्तियों वाला सब्जियां विशेष रूप से मुख्य साधन हैं। फूलगोभी, सोयाबीन, गेहूँ का छिलका, भ्रूण आदि में भी इसकी अच्छी मात्रा उपस्थिति रहती है। विटामिन के की कमी से होने वाले रोग - विटामिन ‘के’ की कमी से रक्त प्रोप्राम्बिन की मात्रा कम हो जाती है जिससे रक्त का थक्का जमाने का समय बढ़ जाता है। इस कारण से रक्त स्राव बहुत अधिक होने लगता है। विटामिन ‘के’ की हीनता
के कारण अपरिपक्व जन्में नवजात शिशुओं में विशेष रूप से होती है क्योंकि उनकी आंतों में विटामिन ‘के’ उत्पन्न करने वाले वैक्टीरिया वृद्धि नहीं कर पाते हैं। यकृत की सक्रियता कम होने पर विटामिन ‘के’ का अवशोषण कम हो पाता है तथा यकृत के अधिक प्रभावित होने पर प्रोथ्रोम्बिन का निर्माण नहीं हो पाता है तभी ‘हेमरेज’ के लक्षण प्रकट होते हैं। उपर्युक्त सभी वसा में घुलनशील विटामिन इस प्रकार है। वसा में घुलनशील विटामिन कौन कौन सी होती है?वसा में घुलनशील विटामिन्स की बात करें तो ये विटामिन्स ए, विटामिन डी, विटामिन ई और के हैं।
वसा में घुलनशील विटामिन कौन सी नहीं है?इसलिए, हम कह सकते हैं कि विटामिन बी वसा में घुलनशील विटामिन नहीं है।
वसा में घुलनशील क्या होते हैं?वसा में घुलनशील विटामिन हैं- विटामिन ए, डी, ई और के।
कौन सा अंग वसा में घुलनशील विटामिन का भंडारण करता है?Detailed Solution
अतिरिक्त वसा में घुलनशील विटामिन यकृत और वसा (वसा ऊतक) में जमा हो सकते हैं।
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