समानता का अधिकार कौन से अनुच्छेद? - samaanata ka adhikaar kaun se anuchchhed?

भारतीय संविधान का आर्टिकल 14 (Article 14) विधि के समक्ष समानता के अधिकार की बात करता है. यह समानता का अधिकार विदेशी और भारतीय सब पर लागू होता है.आइये इस लेख में जानते हैं कि यह अनुच्छेद किस तरह की समानता की बात करता है?

समानता का अधिकार कौन से अनुच्छेद? - samaanata ka adhikaar kaun se anuchchhed?

Article 14: Meaning and Provisions

वर्तमान में भारत में नागरिकता (संशोधन) कानून 2019 (CAA) को लागू कर दिया गया है. जिसके तहत कुछ धर्मों के विदेशी नागरिकों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है. चूंकि इन विदेशी लोगों को धर्म के आधार पर नागरिकता दी जा रही है और एक धर्म विशेष के लोगों को नागरिकता नहीं दी जा रही है इसलिए CAA का विरोध करने वालों का तर्क है की यह कानून भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 (Article 14) का उल्लंघन है. क्योंकि आर्टिकल 14 विधि के समक्ष समानता के अधिकार की बात करता है.

CAA-OPPOSE

आइये इस लेख में जानते हैं कि आखिर आर्टिकल 14 के अंतर्गत किस तरह के प्रावधान हैं? 

भारतीय संविधान का आर्टिकल 14 स्पष्ट रूप से कहता है कि, राज्य, भारत के राज्य में किसी भी व्यक्ति को विधि के समक्ष समता से या विधियों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा.

यहाँ पर ‘व्यक्ति’ से मतलब भारतीय नागरिक और विदेशी नागरिक के साथ-साथ संविधानिक निगम, पंजीकृत कम्पनियाँ, या किसी भी तरह का विधिक व्यक्ति सम्मिलित हो सकता है.

उपर दिए गये दो शब्दों ‘विधि के समक्ष समता’ और ‘विधियों के समान संरक्षण’ को जानना जरूरी है.

‘विधि के समक्ष समता’ (Equality before Law): इसके प्रावधान ब्रिटेन के संविधान से लिए गये हैं. इसमें शामिल है;

I. न्यायालय के समक्ष सभी व्यक्तियों के लिए समान व्यवहार. अर्थात कानून अंधा होगा,वह नहीं देखेगा कि उसके सामने कटघरे में कौन खड़ा है? अमीर या गरीब.

II. किसी व्यक्ति विशेष के लिए कोई विशेषाधिकार नहीं होगा. अर्थात सभी को समान अपराध के लिए समान सजा मिलेगी.

III. कोई भी व्यक्ति (चाहे वो अमीर/गरीब हो, गोरा हो काला हो, मंत्री हो) कानून से ऊपर नहीं होगा. अर्थात कानून, मंत्री और संत्री दोनों के लिए समान होगा.

LALU-IN-JAIL

(लालू यादव पूर्व मंत्री होते हुए भी जेल में हैं)

विधियों का समान संरक्षण (Equal protection of laws): इसके प्रावधान अमेरिका के संविधान से लिए गये हैं. इसमें निम्न प्रावधान दिए गये हैं.

I. समान विधि के अंतर्गत सभी के लिए समान नियम है. 

II. बिना भेदभाव के सभी के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए.

III. कानून द्वारा दिए गए विशेषाधिकारों और दायित्वों का समान परिस्तिथियों के अंतर्गत समान व्यवहार.
सर्वोच्च न्यायालय का मानना है की आर्टिकल 14 के अंतर्गत लिखित विधि का शासन ही संविधान का मूलभूत तत्व है. इसलिए इसे किसी भी तरह से यहाँ तक कि संविधान सशोधन के द्वारा भी समाप्त नहीं किया जा सकता है.

"आर्टिकल 15" क्या है और इसके क्या प्रावधान हैं?

समता नियम के अपवाद (What are the exceptions to right to equality):

ऐसा नहीं है की समता का नियम पूर्ण रूप से लागू होता है. इसके कुछ अपवाद भी हैं, अर्थात इन परिस्तिथियों और व्यक्तियों के मामले में यह लागू नहीं होता है. जैसे

I. राष्ट्रपति या राज्यपाल की पदावधि के दौरान किसी न्यायालय द्वारा उनकी गिरफ़्तारी या कारावास की प्रक्रिया प्रारंभ नहीं की जा सकती है.

II. विदेशी (संप्रभु शासक), राजदूत एवं कूटनीतिक व्यक्ति फौजदारी एवं दीवानी के मुकदमों से मुक्त होंगे.

III. संयुक्त राष्ट्र संघ एवं इसकी एजेंसियों को भी कूटनीतिक मुक्ति प्राप्त है.

IV.  संसद में या किसी संसदीय समिति के किसी सदस्य द्वारा कही गयी किसी बात के लिए उसके विरुद्ध किसी न्यायालय में कोई कार्यवाही नहीं की जाएगी.

आर्टिकल 14 और नागरिकता कानून (Article 14 and CAA)

चूंकि CAA में इस बात का प्रावधान है कि यह 3 देशों के नागरिकों को धर्म के आधार पर नागरिकता देता है और मुस्लिम धर्म के लोगों को इसमें शामिल नहीं करता है अर्थात धर्म के आधार पर भेद साफ तौर पर नजर आता है.

जबकि भारतीय संविधान के भाग-III में मौजूद समता के अधिकार में आर्टिकल 14 के साथ ही अनुच्छेद-15 जुड़ा है. इसमें कहा गया है, "राज्य, किसी नागरिक के खिलाफ सिर्फ जाति, लिंग,धर्म, जन्मस्थान, मूल, वंश, या इनमें से किसी के आधार पर किसी नागरिक के बीच  कोई भेद नहीं करेगा."

फ़िलहाल यह मामले सुप्रीम कोर्ट में पहुँच चुका है और अब कोर्ट ही तय करेगा कि नागरिकता संशोधन कानून, आर्टिकल 14 का उल्लंघन करता है या नहीं?

सामान्य भाषा में समानता का अर्थ किसी समाज की उस स्थिति से होता है, जिसमें उस समाज के सभी लोगों को समान अधिकार या प्रतिष्ठा प्राप्त होते हैं। सामाजिक समानता के लिए 'कानून के सामने समान अधिकार' एक न्यूनतम आवश्यकता होती है, जिसके अन्तर्गत सुरक्षा, मतदान का अधिकार, भाषण की स्वतंत्रता, किसी सार्वजानिक स्थान पर एकत्र होने की स्वतंत्रता, सम्पत्ति का अधिकार, सामाजिक वस्तुओं एवं सेवाओं पर समान अधिकार आदि आते हैं। सामाजिक समानता में स्वास्थ्य सेवाओं को प्राप्त करने की समानता, आर्थिक समानता, तथा अन्य सामाजिक सुरक्षा भी आती हैं। इसके अलावा समान अवसर तथा समान दायित्व भी समानता के अधिकार के अन्तर्गत आते है।

सामाजिक समानता किसी समाज की उस अवस्था को प्रदर्शित करती है, जिसके अन्तर्गत उस समाज के सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के सामाजिक आधार पर समान महत्व प्राप्त हो, चाहे वह किसी भी धर्म जाति या लिंग का हो। समानता की अवधारणा मानकीय राजनीतिक सिद्धांत के मर्म में निहित होती है। यह एक ऐसा विचार है, जिसके आधार पर करोड़ों लोग सदियों से निरंकुश शासकों, अन्यायपूर्ण समाज व्यवस्थाओं और अलोकतांत्रिक हुकूमतों या नीतियों के ख़िलाफ़ संघर्ष करते रहे हैं, और करते रहेंगे, हमारे देश का विशाल इतिहास भी कुछ ऐसा ही है, जिसमें न जाने कितने वीरों ने केवल अपनी स्वतंत्रता और सामान अवसर प्राप्त करने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन कभी भी अपना सिर दुश्मन के सामने नहीं झुकाया। इस हिसाब से समानता को स्थाई और सार्वभौम अवधारणाओं की श्रेणी में रखा जाता है।

दूसरे शब्दों में दो या दो से अधिक लोगों या समूहों के बीच संबंध की एक स्थिति ऐसी होती है, जिसे समानता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। लेकिन, एक विचार के रूप में समानता इतनी सहज और सरल नहीं है, क्योंकि उस संबंध को परिभाषित करने के लिए, उसके लक्ष्यों को निर्धारित करने और उसके एक पहलू को दूसरे पर प्राथमिकता देने के एक से अधिक तरीके हमेशा उपलब्ध रहते हैं। अलग - अलग तरीकों से समानता को प्रदर्शित करने पर समानता के विचार की भिन्न - भिन्न परिभाषाएँ उभर कर सामने आती हैं। प्राचीन यूनानी सभ्यता से लेकर बीसवीं सदी तक इस विचार की रूपरेखा में कई बार ज़बरदस्त परिवर्तन हो चुके हैं। बहुत से चिंतकों ने इसके विकास और इसमें हुई तब्दीलियों में योगदान किया है, जिनमें अरस्तू, हॉब्स, रूसो, मार्क्स और टॉकवील जैसे महान विचारक प्रमुख हैं।

भारत के संविधान में समानता के अधिकारों का स्थान

हमारे देश के संविधान में समानता के अधिकारों का स्थान बहुत ही प्रमुख है। भारतीय संविधान के भाग 3 में वर्णित मौलिक अधिकारों की सूचि में समानता के अधिकारों को भी स्थान दिया गया है, ये अधिकार अनुच्छेद 14 से लेकर अनुच्छेद 18 तक व्याप्त हैं, जिनमें देश के प्रत्येक नागरिक को सभी क्षेत्र में सामान अधिकार प्रदान कराने की बात की गयी है, तो आइये देखते हैं किस प्रकार संविधान में समानता के अधिकारों को रखा गया है:

  1. विधि के समक्ष समानता का अधिकार

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 में इस अधिकार का वर्णन किया गया है। विधि के समक्ष समता के अधिकार का यह भी अर्थ है, कि जन्म या विचार या संप्रदाय के आधार पर किसी भी व्यक्ति का कोई विशेषाधिकार नहीं होगा तथा देश का सामान्य कानून सभी वर्ग के लोगों पर समान रूप से लगाया जाएगा। कोई भी व्यक्ति देश के कानून से ऊपर नहीं है, और देश के सभी लोग देश के साधारण न्यायालयों की अधिकार सीमा में हैं। प्रत्येक व्यक्ति चाहे वह देश के प्रधानमंत्री हो या सामान्य जीवन स्तर में रहने वाला गरीब किसान हो या कोई विदेशी व्यक्ति हो यदि उसने देश के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी प्रचलित कानून का उल्लंघन किया है, तो वह व्यक्ति अपने उस कार्य के लिए समान रूप से जिम्मेदार होगा। इसी तरह आम नागरिक और पदाधिकारियों में भी भेद नहीं किया जाएगा।

केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल को इस अधिकार में कुछ छूट मिली है। राष्ट्रपति और राज्यपाल अपने पद के किसी कार्य के लिए न्यायालय में जिम्मेदार नहीं होंगे। इसी तरह इनकी पदावधि के दौरान इन पर किसी भी न्यायालय में कोई भी फौजदारी मामला दाखिल नहीं किया जा सकता है। राष्ट्रपति या राज्यपाल का पद ग्रहण करने से पहले इनके द्वारा व्यक्तिगत हैसियत से किए गए किसी कार्य के लिए किसी भी न्यायालय में कोई दीवानी मामला 60 दिनों से पहले की लिखित पूर्व सूचना के बाद ही चलाया जा सकता है, अन्यथा नहीं। लेकिन सरकार के किसी कार्य के खिलाफ न्यायालय में वाद लाया जा सकता है, चाहे वह कार्य राज्यपाल या राष्ट्रपति के नाम से ही क्यों न किया गया हो।

  1. धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15(1) के अनुसार राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई भेद नहीं करेगा। यहां केवल शब्द बहुत ही महत्वपूर्ण है, क्योंकि यदि विभेदकारी व्यवहार के लिए इस अनुच्छेद में गिनाए गए आधार के अलावा अन्य आधार पर किया गया वर्गीकरण या विभेद संविधान विरुद्ध नहीं माना जाएगा। किंतु यदि किसी नागरिक के साथ राज्य द्वारा केवल इसलिए भेदभाव किया जाता है, कि वह किसी विशेष धर्म, वंश, जाति का है, या क्षेत्र अथवा स्थान विशेष में पैदा हुआ है, तो वह न्यायालय के माध्यम से राज्य की कार्यवाही को शून्य घोषित करवा सकता है।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 15(2) कुछ इस प्रकार है- भारत देश के किसी भी नागरिक को केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश करने से नहीं रोका जा सकता। इसी तरह कुओं, तालाबों, स्नान घाटों, सड़कों और सार्वजनिक स्थानों के उपयोग से भी किसी नागरिक को वंचित या बाधित नहीं किया जा सकता यदि वे पूरी तरह या अंशत: सरकरी खर्चे से बने हुए हों या सरकारी खर्च से संचालित हों या फिर निजी होते हुए भी सार्वजनिक उपयोग के लिए समर्पित हों।

लेकिन अनुच्छेद 15 का खंड 3  राज्य को यह अधिकार देता है, कि वह स्त्रियों और बालकों के कल्याण के लिए विशेष उपाय कर सकता है। इसी तरह खंड 4 के अनुसार राज्य सामाजिक या शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए या अनुसूचित जाति या जनजातियों के लिए विशेष उपाय कर सकता है। ठीक इसी तरह अनुच्छेद 15(1) में जाति के आधार पर भेदभाव का निषेध होते हुए भी अनुच्छेद 15 के खंड (5) के अनुसार राज्य उक्त वर्गों के लिए शिक्षण संस्थानों में प्रवेश हेतु आरक्षण तथा फीस में छूट आदि विशेष उपाय भी कर सकता है।

  1. लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता का अधिकार

अनुच्छेद 16 के अनुसार देश के समस्त नागरिकों को शासकीय सेवाओं में सामान अवसर प्रदान किये जाएंगे। इसी अनुच्छेद के अनुच्छेद 16(3) के अनुसार संसद कोई ऐसा कानून बना सकती है, जिसमें किसी विशेष क्षेत्र में नौकरी के लिए किसी विशेष क्षेत्र के निवासी होने की शर्त रख सकती है। अनुच्छेद 16(4) के अनुसार देश के पिछड़े नागरिकों को उचित प्रतिनिधित्व के अभाव में आरक्षण की व्यवस्था की जा सकती है।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 के अनुसार अस्पृश्यता का अन्त किया गया है । इसको समाप्त करने के लिए संसद ने अस्पृश्यता अपराध अधिनियम 1955 के तहत अस्पृश्यता को दण्डनीय बना दिया है । बाद में 1976 में इसको संशोधित करके सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1976 बनाया गया।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 18 के अनुसार शिक्षा और सैनिक क्षेत्र को छोड़कर राज्य द्वारा सभी उपाधियों का अन्त कर दिया गया है, अनुच्छेद 18(2) के अनुसार भारत का कोई भी नागरिक किसी भी विदेशी पुरस्कार को राष्ट्रपति की अनुमति के बिना ग्रहण नहीं कर सकता।

समानता का अधिकार कौन सा अधिकार है?

समानता का अधिकार जिसमें कानून के समक्ष समानता, धर्म, वंश, जाति लिंग या जन्‍म स्‍थान के आधार पर भेदभाव का निषेध शामिल है, और रोजगार के संबंध में समान अवसर शामिल है।

आर्टिकल 18 में क्या है?

अनुच्छेद 18: उपाधियों का अंत (Abolishment of Titles) 1. राज्य, सेना या विद्या संबंधी सम्मान के सिवाय और कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा। 2. भारत का कोई नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।