कबीर दास जी के काव्य की विशेषताएं बताइए? - kabeer daas jee ke kaavy kee visheshataen bataie?

कबीरदास भक्तिकाल के निर्गुण कवियों में अग्रगण्य हैं | यद्यपि वे पढ़े-लिखे नहीं थे जैसी की उनकी स्वीकरोती है —
‘ मासि कागद धुट्यों नहि कलम गह्यौ नहि हाथ ’

तथापि उन्होंने जो कहा वही कविता बन गई जिसके बल पर उन्हें जितनी ख्याति मिली उतनी विरले कवि को ही ख्याती प्राप्त होती है |

सर्वप्रथम कबीर ने रूढ़ियों, सामाजिक कुरितियों, तिर्थाटन, मूर्तिपूजा, नमाज, रोजादि का खुलकर विरोध किया | एक ओर उन्होंने हिन्दुओं को यह कहा है —

“ पाहन पूजै हरि मिलै तो मैं पूजूँ पहार |

ताते ये चक्की भली जो पीस खाय संसार || ”

तो दूसरी ओर मुसलमानों को कहा —

“ कंकड़ पत्थर जोरि कै मस्जिद दिया बनाय |

ता चढ़ मुल्लाबाग है क्या बहरा हुआ खुदाय || ”

इतना ही नहीं जो मुसलमान दिन भर रोजा रखता है और रात को गाय की हत्या करता है, उन्हें कबीर ने स्पष्ट कहा है —

“ दिन में रोजा रखत है रात हनत हैं गाय |

यह तो खून वो बन्दगी कैसे खुशी खुदाय || ”

उधर तीर्थाटन करने वाले को कहा है —

“ कस्तूरी कुण्डली बसै मृग ढढै बन माही | ”

कबीर को मान्यता है कि तीर्थ, व्रत, उपवासादि सब व्यर्थ है, क्योंकि इनके द्वारा ब्रह्म की प्राप्ती असंभव है |

उनके विचार से ब्रह्म का स्वरूप यह है —

“जाके मुँह माथा नहीं, नाहिं रूप कुरूप |

पुहुप बास थैं पातरा ऐसा तत्र अनूप ||”

यद्यपि ब्रह्म का वास फूल में सुगंध की भाँति है तथापि जीव अज्ञानान्धकार में भटकता है जबकि गीर ने स्पष्ट कहा है —

“तेरा साँई तुज्झ में क्यां पुहुपन में बास |

कस्तूरी की मिरग ज्यों फिर फिर ढूढैं बास ||”

वस्तुतः ईश्वर प्राप्ति कबीर के अनुसार आत्मज्ञान से ही संभव है तभी तो उन्होंने कहा कि —

“आत्मज्ञान बिना सब सूना ज्यों मथुरा क्या कासी |

घर में वसुंधरी नहि सृझै बाहर खोजन जासी ||”

कबीर ने ब्राह्य भेदों को व्यर्थ बताते हुए सबको एक ही परमात्मा की सन्तान बताया और सामान्य भावना का प्रतिपादन किया | तात्पर्यः कबीर ने प्रेम तत्व का समावेश ही नही किया वरन उसको अत्यधिक व्यापक बचा दिया | उनकी दृष्टी में भगवान के भक्ती का अधिकार सबको है —

“जात पाँति पूछे न कोई हरि को भजै सो हरि को होई |”

संसार जीवन की ज्ञानभंगुरता की ओर संकेत करते हुए कबीर ने कहा —

“रहना नहि देश विराना है,

यह संसार कागद की पुड़िया

बूँद पड़े गल जाना है |”

यह सही है कि कबीर की कविता का भावपक्ष जितना सबल है उतना कलापक्ष नहीं | कबीर की मान्यता ही है कि ‘ भाव अनूठो चाहिए भाषा कैसेहु होय ’ स्पष्ट है कि कबीर ने भाव के अनूठेपन पर ही जोर दिया है | उनकी भाषा का प्रश्न है तो यह मानना पड़ेगा कि अपनी पंचमेली भाषा से जो भी चाहा कहलवा दिया | सत्यः वे भाषा के डिक्टेटर थे जैसाकि आचार्य हजारी प्र• द्विवेदी ने कबीर को ‘ भाषा का जबर्दस्त डिक्टेटर ’ बतलाया है |

निश्चित रूप से हिन्दी साहित्य में कबीर का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है | वे निर्गुण भावधारा के प्रतिनिधि कवि थे |

कृपया इस 👉 YouTube Channel   को Subscribe करें | click here ➡️  YouTube channel 

कबीर दास जी के काव्य की विशेषताएं बताइए? - kabeer daas jee ke kaavy kee visheshataen bataie?
कबीर के काव्य की भाव पक्षीय एवं कला पक्षीय विशेषताएँ

    • कबीर के काव्य की भाव पक्षीय एवं कला पक्षीय विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  • भाव पक्षीय विशेषताएँ
  • कलापक्षीय विशेषतायें-

कबीर के काव्य की भाव पक्षीय एवं कला पक्षीय विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।

सन्त कबीर एक कवि एवं समाज सुधारक थे। उनकी भाषा सरल और कटु है। उनकी वाणी में कटुता लिए हुए सत्यता भी है, जिसमें तीखे व्यंग्य है। कबीर के काव्य की भाव पक्षीय एवं कला पक्षीय विशेषतायें इस प्रकार हैं-

भाव पक्षीय विशेषताएँ

1. निर्गुण ब्रह्म की उपासना- कबीर भक्ति के कवि हैं। भक्ति की दो धारायें थी— एक सगुण और दूसरी निर्गुण कबीर निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे। निर्गुण को कबीर आत्मा के नेत्रों से देखते थे कबीर के शब्दों में-

दशरथ सुत तिंहु लोक बखाना।

राम नाम का भरम है आना ॥

2. ज्ञान का उपदेश- कबरी निराकार ब्रह्म के साधक थे, इसका कारण उनका काव्य ज्ञानोपदेश पर आधारित था। उन्होंने ज्ञान का उपदेश देकर जनता को जागृत किया। कबीर ने ज्ञान के सम्बन्ध में कहा है-

संतो भाई आई गियान की आँधी ।

भ्रम की टाटी सबै उठानी, गाया रहें न बांधी।

3. नाम की महत्ता- कवीर ने ईश्वर के नाम स्मरण को सर्वाधिक महत्व दिया है, उसी ब्रह्म के स्मरण में वे अपनी जीवन लीला समाप्त कर देना चाहते हैं। वह मृत्यु के फन्दे के समान कष्टकारक है

चिन्ता तो हरि नांव की, और न चिन्ता दास।

कुछ चिंतवै राम बिनु, सोइ काल की पास ॥

4. गुरु का सम्मान – कबीर ज्ञानोपासक कवि थे, ज्ञान बिना गुरु का सम्मान नहीं। अतः कबीर ने अपने काव्य में गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया है क्योंकि गुरु के बताये मार्ग में ही जीव उस परमपिता परमात्मा को प्राप्त करता है। कबीर गुरु की वन्दना दिन में अनेक बार करने की बात कहते हैं-

बलिहारी गुरु आपण, घोहाड़ी के बार।

जिनि मानिष तै देवता, करत न लागी बार ॥

5. प्रेम की महत्ता- कवीर ने ज्ञान के माध्यम से जाने गये परमात्माके नाम स्मरण करने का आधार ईश्वर प्रेम ही माना है। ईश्वर के प्रति प्रेमानुरक्ति कबीर की भक्ति पद्धति का प्राण तत्व है, प्रेम की तीव्रता के स्थान पर दर्शन होता है।

6. भक्ति एवं नीति- कबीर के काव्य में ईश्वर की भक्ति के साथ-साथ नीतिगत तथ्यों का उद्घाटन भी हुआ है। कबीर ने सत्य और अहिंसा को जीवन का आधार तत्व हुए सत्य को सबसे बड़ा तप माना है—

साँच बराबर पत नहीं, झूठ बराबर पाप।

जाके हिरदय आप हैं, ताके हिरदय आप ॥

कलापक्षीय विशेषतायें-

1. भाषा- कबीर की भाषा सत्संग से आई टूटी-फूटी तथा संधुक्कड़ी थी। कहा जाता है कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे, सत्संग से उन्होंने सब कुछ सीखा था। इस कारण उनकी भाषा में साहित्यिक का अभाव प्रतीत होता है।

2. शैली — कबीर कवि से अधिक समाज सुधाकर उपदेशात्मक होने के साथ-साथ सरल, और सहेज है। थे। इसलिए उनके काव्य की शैली

3. अलंकार- कबीर के काव्य में अलंकार का प्रयोग प्रयत्न से नहीं हुआ है। उ काव्य में अलंकार अनायास ही आकर काव्य को चमत्कृत करते हैं। कबीर ने अपने काव्य में अलंकारों को थोपा नहीं, फिर भी उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, दृष्टांत, भ्रान्तिमान, अतिशयोक्ति, यमक, अनुप्रास, श्लेष, सन्देह विभावना, वक्रोक्ति, अनयोक्ति, दीपक, परिकरांकुर, पथासंख्य आदि अलंकार उनके काव्य में बहुतायत रूप में प्राप्त होते है।

4. प्रतीकात्मकता- कबीर ने अपने काव्य में प्रतीकों का सहारा अधिक लिया है। इनके साधनात्मक रहस्यवाद में तो प्रतीकों का प्रयोग हुआ है। सामान्यतया इन्होंने दीपक हृदय तथा शरीर ज्ञान का तेल को प्रभुभक्ति और अघटट बानी को सन्तों की संगत का प्रतीक माना है। इस प्रकार कबीर के काव्य में प्रतीकात्मकता अधिक है।

IMPORTANT LINK

  • कार्यालयी पत्राचार क्या हैं? कार्यालयी पत्राचार की प्रमुख विशेषताएँ
  • परिपत्र से आप क्या समझते हैं? उदाहरण द्वारा परिपत्र का प्रारूप
  • प्रशासनिक पत्र क्या हैं? प्रशासनिक पत्र के प्रकार
  • शासकीय पत्राचार से आप क्या समझते हैं? शासकीय पत्राचार की विशेषताऐं
  • शासनादेश किसे कहते हैं? सोदाहरण समझाइए।
  • प्रयोजनमूलक हिन्दी से क्या अभिप्राय है? प्रयोजनमूलक एवं साहित्य हिन्दी में अन्तर
  • राजभाषा से क्या आशय है? राजभाषा के रूप में हिन्दी की सांविधानिक स्थिति एंव राजभाषा और राष्ट्रभाषा में अन्तर
  • हिन्दी के विभिन्न रूप, सर्जनात्मक भाषा तथा संचार भाषा
  • प्रयोजन मूलक हिन्दी का अर्थ | प्रयोजन मूलक हिन्दी के अन्य नाम | हिन्दी के प्रमुख प्रयोजन रूप या क्षेत्र | प्रयोजन मूलक हिन्दी भाषा की विशेषताएँ
  • शैक्षिक तकनीकी का अर्थ और परिभाषा लिखते हुए उसकी विशेषतायें बताइये। 
  • शैक्षिक तकनीकी के प्रकार | Types of Educational Technology in Hindi
  • शैक्षिक तकनीकी के उपागम | approaches to educational technology in Hindi
  • अभिक्रमित अध्ययन (Programmed learning) का अर्थ एंव परिभाषा
  • अभिक्रमित अनुदेशन के प्रकार | Types of Programmed Instruction in Hindi
  • महिला समाख्या क्या है? महिला समाख्या योजना के उद्देश्य और कार्यक्रम
  • शैक्षिक नवाचार की शिक्षा में भूमिका | Role of Educational Innovation in Education in Hindi
  • उत्तर प्रदेश के विशेष सन्दर्भ में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009
  • शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009′ के प्रमुख प्रावधान एंव समस्या
  • नवोदय विद्यालय की प्रवेश प्रक्रिया एवं अध्ययन प्रक्रिया
  • पंडित मदन मोहन मालवीय के शैक्षिक विचार | Educational Thoughts of Malaviya in Hindi
  • टैगोर के शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्त | Tagore’s theory of education in Hindi
  • जन शिक्षा, ग्रामीण शिक्षा, स्त्री शिक्षा व धार्मिक शिक्षा पर टैगोर के विचार
  • शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त या तत्त्व उनके अनुसार शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्य
  • गाँधीजी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन | Evaluation of Gandhiji’s Philosophy of Education in Hindi
  • गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था के गुण-दोष
  • स्वामी विवेकानंद का शिक्षा में योगदान | स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन
  • गाँधीजी के शैक्षिक विचार | Gandhiji’s Educational Thoughts in Hindi
  • विवेकानन्द का शिक्षा के क्षेत्र में योगदान | Contribution of Vivekananda in the field of education in Hindi
  • संस्कृति का अर्थ | संस्कृति की विशेषताएँ | शिक्षा और संस्कृति में सम्बन्ध | सभ्यता और संस्कृति में अन्तर
  • पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi
  • पाठ्यक्रम निर्माण के सिद्धान्त | Principles of Curriculum Construction in Hindi

Disclaimer

Disclaimer: Target Notes does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us:

You may also like

About the author

इस वेब साईट में हम College Subjective Notes सामग्री को रोचक रूप में प्रकट करने की कोशिश कर रहे हैं | हमारा लक्ष्य उन छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की सभी किताबें उपलब्ध कराना है जो पैसे ना होने की वजह से इन पुस्तकों को खरीद नहीं पाते हैं और इस वजह से वे परीक्षा में असफल हो जाते हैं और अपने सपनों को पूरे नही कर पाते है, हम चाहते है कि वे सभी छात्र हमारे माध्यम से अपने सपनों को पूरा कर सकें। धन्यवाद..

कबीर के काव्य की प्रमुख विशेषताएं?

कबीरदास के काव्य की विशेषता गुरु-भक्ति, ईश्वर के प्रति अथाह प्रेम, वैराग्य सत्संग, साधु महिमा, आत्म-बोध तथा जगत-बोध की अभिव्यक्ति है। उन्होंने समाज में फैले हुए सभी प्रकार के भेदभाव को दूर करने का प्रयास किया।

काव्यगत विशेषताएँ क्या है?

काव्यगत विशेषताएँ क्या है? भक्ति-भावना – प्रेम तथा श्रद्धा द्वारा निराकार ब्रह्म की भक्ति। रहस्य भावना, धार्र्मिक भावना, समाज सुधार, दार्शनिक विचार। वर्ण्य विषय – वेदान्त, प्रेम-महिमा, गुरु महिमा, हिंसा का त्याग, आडम्बर का विरोध, जाति-पॉति का विरोध।

कबीर के काव्य में है?

कबीर की रचनाओं के अनेक रूप मिलते हैं, जैसे साखी, शबद, रमैनी, उलटभाषी तथा वसंत। साखी का मूल शब्द है, साक्षी अर्थात देखा हुआ। कबीर की रचनाओं में कई दोहे हैं जिनके विषय में कहा जाता है कि उनकी रचना उन्होंने तब की जब उन्होंने ऐसा कुछ देखा जिसने उनके मन-मस्तिष्क में अनेक विचार उत्पन्न किये।

कबीर की भक्ति की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए?

कबीर की भक्ति में एकाग्रता, साधना, मानसिक पूजा अर्चना, मानसिक जाप और सत्संगति का विशेष महत्व दिया गया है । कबीर की भक्ति में सभी मनुष्य के लिए समानता की भावना है । यह भक्ति ईश्वर के दरबार में सबकी समानता और एकता की पक्षधर है । इस प्रकार कबीर की भक्ति भावना बहुत ही अद्भुत है ।