इमली का पेड़ कैसे होता है? - imalee ka ped kaise hota hai?

व्यंजनों का स्वाद बढ़ाने वाली खट्टी इमली का पेड़ बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन इससे जुड़े अंधविश्‍वास भी कई है। भारत में पिछले 15-20 वर्षों में इमली, आम, नींबू, करोंदे, जामुन, बेर, शहतूत, खिरनी, कबीट, बेल आदि कई के बारे में भ्रम फैलाकर इन्हें खत्म किए जाने का बाजारवादियों का षड़यंत्र मालूम होता है। आओ जानते हैं इमली के बारे में रोचक जानकारी।

1. ऐसा माना जाता है कि इमली के पेड़ पर बुरी आत्माओं का निवास होता है।

2. ऐसा कहते हैं कि इमली के आस-पास देर तक रहने से चक्कर आना, कमजोरी का एहसास होना और जी मिचलाना जैसे लक्षण नजर आते हैं संभवत: इसीलिए इसमें भूत के निवास की बात प्रचलित हुई होगी।

3. साइंटिस्ट कहते हैं कि इमली के पेड़ के आसपास के वातावरण में अम्लीयता बहुत अधिक होती है जो सेहत के लिए हानिकारक है।

4. इमली के पेड़ की लकड़ी काफी मजबूत होती है इसीलिए इससे कुल्हाड़ी का हत्‍था बनाया जाता है।

5. इमली के कई औषधीय गुण होते हैं। जैसे इसका उपयोग घाव भरने, सूजन, बुखार, नेत्र से जुड़ी बीमारी, मलेरिया, कब्ज, पेट से जुड़ी बीमारियों, पेचिश और कृमि, मधुमेह, गठिया आदि में होता है।

इमली की खेती खाने में स्वाद उत्पन्न करने वाले फल के रूप में की जाती है | इसका खेती विशेष फलो के लिए करते है, जिसे अधिकतर वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है | इमली अफ़्रीकी मूल का उष्णकटिबंधीय पौधा है, जिसे अब अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में उगाया जाने लगा है | यह एक बहुत ही लोकप्रिय वृक्ष हैं जो फल के साथ-साथ ईंधन उपयोगी लकड़ी भी देता है | भारत में इमली की खेती महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, कर्नाटक और उड़ीसा जैसे राज्यों में खासकर की जाती है | तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के क्षेत्र में इमली का इस्तेमाल स्वादिष्ट मसाले के लिए करते है |

इमली का पेड़ कैसे होता है? - imalee ka ped kaise hota hai?
इमली का पेड़ कैसे होता है? - imalee ka ped kaise hota hai?

इमली का पेड़ कैसे होता है? - imalee ka ped kaise hota hai?
इमली का पेड़ कैसे होता है? - imalee ka ped kaise hota hai?

इसके अलावा सांभर, रसम, वता कुज़ंबू और पुलियोगरे बनाते समय इमली का इस्तेमाल विशेष तौर पर करते है | भारतीय चटनी इमली के बिना अधूरी मानी जाती है, तथा इसके फूलो का इस्तेमाल भी स्वादिष्ट पकवान बनाने के लिए करते है | यदि आप भी इमली के फलो का उत्पादन करना चाहते है, तो इस लेख में आपको इमली की खेती कैसे करें (Tamarind Farming in Hindi) तथा इमली के फायदे और नुकसान के बारे में बता रहे है |

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इमली की खेती में जलवायु और भूमि (Climate and Soil in Tamarind Cultivation)

इमली की खेती के लिए किसी विशेष भूमि की जरूरत नहीं होती है | किन्तु नमी युक्त गहरी जलोढ़ व दोमट मिट्टी में इमली की अच्छी पैदावार मिल जाती है | इसके अलावा बलुई, दोमट और लवण युक्त मृदा मिट्टी में भी इसका पौधा वृद्धि कर लेता है |

इमली का पौधा उष्ण कटिबंधीय जलवायु का होता है | यह गर्मियों में गर्म हवाओ और लू को भी आसानी से सहन कर लेता है | किन्तु सर्दियों का पाला पौधो की वृद्धि पर बुरा प्रभाव डालता है |

इमली का पेड़ कैसे होता है? - imalee ka ped kaise hota hai?
इमली का पेड़ कैसे होता है? - imalee ka ped kaise hota hai?

इमली की उन्नत किस्में (Tamarind Improved Varieties)

  • पि के ऍम 1
  • उरगम
  • तेतेली
  • तेंतुल
  • आमली
  • पुली
  • डालिमा
  • तिंतिरी
  • आमली
  • पूली
  • चिंतपांडु

इमली के खेत की तैयारी (Tamarind Field Preparation)

इमली की फसल उगाने से पहले खेत की जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा कर लिया जाता है | इसके बाद उसमे पौधो को लगाने के लिए मेड़ तैयार कर ली जाती है | इन मेड़ पर ही पौधो को लगाना होता है | इमली के पौधे अच्छे से विकास कर सके | इसके लिए खेत तैयार करते समय उसमे गोबर की सड़ी खाद या वर्मी कंपोस्ट की मात्रा को पौध रोपण के दौरान मिट्टी में मिलाकर गड्डो में भरना होता है | इसके अलावा रासायनिक उवर्रक की मात्रा मिट्टी परीक्षण के आधार पर दी जाती है |

इमली के पौध की तैयारी (Tamarind Seedlings Preparation)

इमली के फसल की बुवाई पौध तैयार कर की जाती है | पौधो को तैयार करने के लिए सिंचित भूमि का चयन किया जाता है | मार्च के महीने में खेत की जुताई कर पौध रोपाई के लिए क्यारियों को तैयार कर लेते है | इसका अलावा क्यारियों की सिंचाई के लिए नालिया भी तैयार कर ली जाती है | इन क्यारियों को 1X5 मीटर लंबा और चौड़ा तैयार किया जाता है | इसके बाद बीजो को मार्च के दूसरे सप्ताह से लेकर अप्रैल के पहले सप्ताह तक लगाया जाता है | बीजो के अच्छे अंकुरण के लिए उन्हें 24 घंटो तक पानी में भिगोना चाहिए |

खेत में तैयार क्यारियों में इमली के बीजो को 6 से 7 CM की गहराई और 15 से 20 CM की दूरी पर कतारों में लगाया जाता है | जिसके एक सप्ताह बाद बीजो का अंकुरण होने लगता है, तथा एक माह बाद बीज पूर्ण रूप से अंकुरित हो जाता है | इस दौरान खेत में नमी बनाए रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई जरूर करे |

इमली के पौधो का रोपण (Tamarind Plant Planting)

नर्सरी में तैयार किए गए पौधो को लगाने के लिए एक घन फ़ीट आकार वाले खेत में गड्डे तैयार किए जाते है | इन गड्डो को 4X4 मीटर या 5X5 मीटर की दूरी पर तैयार किया जाता है | यदि आप पौधो को बाग़ के रूप में लगाना चाहते है, तो आधा घन मीटर वाले गड्डो को 10 से 12 मीटर की दूरी पर तैयार करे | नर्सरी में तैयार किए गए पौधो को भूमि से पिंडी सहित निकाले तथा खेत में लगाने के पश्चात उचित मात्रा में पानी दे |

इमली के बीज (Tamarind Seeds)

इमली के बीजो को प्राप्त करने के लिए पेड़ पर फलियों को पूरी तरह से पकने देते है | इसके बाद उनकी तुड़ाई कर ली जाती है, और उन्हें एकत्रित कर तेज धूप में 10 से 12 दिन तक अच्छे से सुखा लिया जाता है | सूखी हुई फलियों का छिलका ढीला पड़ जाता है, जिसे हाथ से आसानी से निकाल देते है | इमली की एक फली से 8 से 12 बीज मिल जाते है, जिन्हे पानी से धोकर और सुखाकर भंडारित कर लिया जाता है | एक किलोग्राम की मात्रा में तक़रीबन 900 से 1000 बीज होते है, तथा हल्के और छोटे बीजो की संख्या 1800 से 2000 तक हो सकती है |

इमली के पौधो की सिंचाई व खरपतवार नियंत्रण (Tamarind Plants Irrigation and Weed Control)

इमली के पौधो की सामान्य सिंचाई करनी चाहिए | गर्मियों के मौसम में इसके पौधो को खेत में नमी रहने के अनुसार पानी देना चाहिए, तथा सिंचाई करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखे की खेत में जलभराव न होने पाए | सर्दियों के मौसम में पौधो को 10 से 15 दिन के अंतराल मेंपानी दे, तथा बारिश के मौसम में जरूरत पड़ने पर सिंचाई की जाती है |

इमली की फसल में खरपतवार पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए | इसके लिए जरूरत के अनुसार खरपतवार निकालने के लिए प्राकृतिक विधि द्वारा निराई – गुड़ाई की जाती है |

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इमली की फसल के रोग व उपचार (Tamarind Crop Diseases and Treatment)

स्क्लेरोशियम रोल्फसाई किस्म का कवक रोग इमली के पौधो पर अंकुरण के समय या बाद में देखने को मिलता है | यह रोग पौधो में विगलन का कारण होता है | इस रोग से बचाव के लिए रोगग्रस्त पत्तियों, फलियों व टहनियों को काट कर हटा दे, तथा बीजो की बुवाई कवकनाशी दवा से उपचारित कर करना चाहिए | 

इसके अतिरिक्त इमली के पौधो पर कई तरह के कीट भी आक्रमण करते है | इसमें तना भेदक कीट मुख्य रूप से फलियों और पत्तियों पर आक्रमण करता है, तथा भंडारित किए हुए बीजो में भी यह कीट रोग देखने को मिल सकता है | इस रोग से बचाव के लिए फसल में कीटनाशक दवा का छिड़काव करे, तथा बीजो को भंडारित करने से पहले कीट रोधी दवा से उपचारित कर ले |

इमली की फसल की कटाई और पैदावार (Tamarind Crop Harvesting and Yield)

इमली के पौधो को तैयार होने में 7 से 8 वर्षा का समय लग जाता है, तथा ग्राफ्टिंग या कलम द्वारा तैयार पौधे 4 से 5 वर्ष बाद फसल देने लगते है | जनवरी से अप्रैल के महीने में फसल की कटाई की जाती है |

इमली के एक वृक्ष से औसतन 50 से 100 KG फलियों का उत्पादन मिल जाता है, तथा पूर्ण विकसित पेड़ वर्ष में तकरीबन 2 क्विंटल तक फलियों की पैदावार दे देता है |

इमली के पेड़ में किसका वास होता है?

पुरानी पीढ़ी के लोग तो सबूत देकर बताते हैं कि इमली के पेड़ पर भूतों का डेरा होता है। इसके आस-पास भी फटकने से भूत पकड़ लेता है और आप बीमार हो सकते हैं। बुजुर्गों की इन बात में सच्चाई भी है क्योंकि इमली के आस-पास लंबे समय तक रहने पर जी मिचलाना, चक्कर आना, कमजोरी का एहसास होना जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं।

इमली के पेड़ की पहचान कैसे करें?

इमली के पेड़ की पत्तियां हरे रंग की होती है। इमली के पेड़ की पत्तियां बहुत छोटे आकार की होती हैं। इमली के पेड़ कि एक टहनी में बहुत सारी पत्तियां रहती हैं। यह पत्तियां टहनी के दोनों तरफ लगी रहती हैं।

इमली के पेड़ के पत्ते कैसे होते हैं?

इसके पत्ते हरे रंग के होते हैं और आकार में बहुत छोटे होते हैं। यह पत्ता खाने में खट्टा होता है। इमली की तरह ही इमली का पत्ता भी औषधीय गुणों से भरपूर होता है। वहीं, पारंपरिक चिकित्सा के रूप में इसका इस्तेमाल भारत, अफ्रीका, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नाइजीरिया और कई अन्य देशों में किया जाता है (1)।

इमली के पेड़ की उम्र कितनी होती है?

पेड़ को तमिल भाषा और मलयालम भाषा दोनों में पुली नाम दिया गया है। इमली के पेड़ के फूल बहुत साधारण होते हैं और पेड़ का आकार वास्तव में बहुत बड़ा होता है और यह लगभग 200 वर्ष की आयु तक पहुँच सकता है।