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रहीम और कबीर के दोहे हामरे जीवन में शिक्षा का एक अच्छा साधन रहे हैं. हमने अपने पिछले ब्लॉग में भी रहीम के दोहे दिए थे और इस बार रहीम (Rahim ke Dohe) और कबीर (Kabir ke Dohe) दोनों के दोहे आपके लिए लेकर आएं है. किसी ने सच ही कहा है कि अगर हम अपने जीवन में इन दोहे को वास्तविक रुप से कार्य में लाएं तो जीवन एक आदर्श और सफल जीवन बन सकता है. जीवन की डगर और भी सुहानी हो सकती है. Rahim Ke Dohe : रहीम के दोहे प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।। जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं। प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।। जिन ढूँढा तिन पाइयॉं, गहरे पानी पैठ। मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।। बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो मन खोजा अपना, मुझ-सा बुरा न कोय।। सॉंच बराबर तप नहीं, झूठ बराबर पाप। जाके हिरदै सॉंच है, ताके हिरदै आप।। बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि। हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।। अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप।। काल्ह करै सो आज कर, आज करै सो अब्ब। पल में परलै होयगी, बहुरि करैगो कब्ब। निंदक नियरे राखिए, ऑंगन कुटी छवाय। बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।। दोस पराए देखि करि, चला हसंत हसंत। अपने या न आवई, जिनका आदि न अंत।। जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ग्यान। मोल करो तलवार के, पड़ा रहन दो म्यान।। सोना, सज्जन, साधुजन, टूटि जुरै सौ बार। दुर्जन कुंभ-कुम्हार के, एकै धका दरार।। पाहन पुजे तो हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहाड़। ताते या चाकी भली, पीस खाए संसार।। कॉंकर पाथर जोरि कै, मस्जिद लई बनाय। ता चढ़ मुल्ला बॉंग दे, बहिरा हुआ खुदाए।। Niti Ke Dohe Kabir Das Rahim In Hindi: कबीर दास रहीम एवं तुलसीदास जी ने हिंदी साहित्य में नीति के दोहे की कई रचनाओं को लिखा हैं. नीति के दोहे में वही बाते कही गई हैं जो हमारे जीवन की सच्चाई हैं, अपने के अंह भाव में हम निष्पक्ष रूप से किसी वस्तु को नही देख पाते है जो हमारे इन महान कवियों एवं समाज सुधारकों ने देखा हैं. यहाँ कबीर रहीम के कुछ नीति के दोहे हिंदी भाषा में अर्थ के साथ प्रदर्शित किए जा रहे हैं.
Telegram Group Join NowKabir Das Ke Niti Ke Dohe In Hindiबुरा जों देखन मैं चल्या, बुरा ना मिलिया कौय Rahim Ke Niti Ke Dohe In Hindiरहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो छिटकाय नीति के दोहे- niti ke dohe with meaning
भावार्थ- जिस प्रकार एक कुशल कारीगर जो अपनी कला की कुशलता से एक भव्य मन्दिर का निर्माण कर देता है , भगवान की बहुत ही मनोहारी मूर्तियां रच देता है फिर भी ये आवश्यक नहीं कि वो शिल्पकार भगवान का बड़ा भक्त भी हो , हाँ उसका कौशल प्रणम्य है पर ये जरूरी नहीं कि वह एक भक्त ही हो । कक्का का कहना है कि उसी तरह नीति , धर्म , भक्ति और ज्ञान आदि विषयों के शास्त्रीय कथनों को अपने शिल्प से पद्यात्मक (दोहे आदि) रूप दे देने से मैं खुद जागृत चेतना वाला कोई नीति धर्म आदि विषयों का ज्ञाता या पालन कर्ता भी या हूँ ये आवश्यक नहीं हो जाता । अतः शास्त्रीय वचनों के संदेश हमारे और आप सभी के लिए समान शिक्षाप्रद हैं , जिसमें जितनी ग्राह्यता हो ग्रहण करने का प्रयास करना चाहिए । niti ke dohe in hindi with meaning
भावार्थ- जिसके प्रति जिसका जैसा अगाध प्रेम होता है उससे बिछुड़ने में उतना ही अधिक दुःख होता है अर्थात (सांसारिक) प्रेम संबंध व्यक्ति को बंधन में बाँध लेते हैं , लेकिन यह (सांसारिक) बंधन ही दुःख की मूल वजह हैं इसी कारण इस तथ्य को भलीभांति जानते हुए संत जन प्रेम की इस रस्सी से स्वयं को नहीं बंधने देते अतः वह किसी एक स्थान पर नहीं ठहरते और हमेशा विचरण करते रहते हैं ।। niti ke dohe in hindi of rahim
भावार्थ- ब्राह्मण द्वारा यज्ञ हेतु निर्मित वेदी के मध्य से , दो ब्राह्मण यदि आपस में विमर्श कर रहे हों उनके मध्य से , दम्पत्ति (पति-पत्नी) के मध्य से , स्वामी और सेवक बात कर रहे हों तो उनके मध्य से तथा खेत जोत रहे बैलों और हल के मध्य से रास्ता चीर कर नीति का पालन करने वाले कभी नहीं निकलते । अर्थात नीतिवान व्यक्ति को उपरोक्त स्थितियों का ध्यान रखते हुए उसकी मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए ।। niti ke dohe tulsidas
भावार्थ- मेरे तमाम मित्रगण अपनी सत्कर्म युक्त प्रवृत्ति के कारण श्री गुरु चरण रज को माथे से लगाकर सहज ही अपने सुकृत का फल प्राप्त कर रहे हैं अर्थात पाप रहित होकर गुरु कृपा से कृतकृत्य हैं वे , वहीं मेरी क्या स्थिति है .. ? मैं अपनी करनी को क्या कहूँ वह तो पाप युक्त भी नहीं बल्कि पापों की जड़ है मेरा कृतित्व , जिसके फल स्वरुप मेरी सभी साधना को इस एक व्याधि ने दबा रखा है । अर्थात मैं अगर स्थूल रूप से साधन करते हुए दीखता भी हूँ तो वह कोरा दंभ मात्र है क्योंकि मेरी वास्तविक अंतर् स्थिति पापमय होने से समस्त साधन फलहीन हो गए हैं तथा मित्रों की भाँति ही सुकृत फल पाने की इच्छा पापमय वृत्ति में दब कर रह गयी है ।। रहीम के दोहे कक्षा 12
भावार्थ- सभी धर्म शास्त्रों और पुराणों ने सुर सरिता अर्थात श्री गंगा जी के यश का गान करते हुए उनके जल को सब तरह से मंगलकारी कहा है , गंगाजी में न केवल स्नान करना अपितु उनका दर्शन व स्पर्श भी पापों से तारने व शुभ फल प्रदान करने के लिए समर्थ है । जी हाँ ये अब तक भले केवल आस्था का विषय रहा हो पर वर्तमान में हुए तमाम वैज्ञानिक शोध इसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि युगों से (हमारे अति धन्य ऋषियों की खोज से प्रकट) चली आ रही यह धारणा मात्र कोरी आस्था नहीं बल्कि श्री गंगा जी के जल में पाए जाने वाले विस्मय कारी तत्व संसार के किसी और जल में हैं ही नहीं प्रायोगिक धरातल पर निरंतर सेवन के फल से बहुतों ने कैंसर जैसी दुस्साध्य बिमारियों से छुटकारा पाया है वास्तव में वह जीवन रक्षक है , वहीं एक बिडंबना भी है कि हम अपने तुच्छ और सीमित स्वार्थो के लिए अमृत तुल्य देश के लिए बरदान और गौरव मयी इस प्रवाह को बाधित और विषैला करने से नहीं चूक रहे हैं ।। रहीम के दोहे कक्षा 8
भावार्थ- सांसारिक सुख और दुःख के चिंतन पर श्री गुरुदेव कहते हैं कि अक्सर पीड़ा देने वाला भूत और भविष्य ही है वर्तमान को जीने वाले प्रायः सुखी रहते हैं , इसीलिए सलाह देते हुए वे कहते हैं कि धैर्य और विवेक को अपना अच्छा मित्र बनाओ , अपने सारे उद्यम अपने सद्कृत्यों और सुंदर नीति पर छोड़ दो फिर भूत और भविष्य की तमाम फ़िक्र छोड़कर केवल अपने वर्तमान में जिओ , यही सभी सुखों का हेतु है ।। रहीम के दोहे अर्थ सहित
भावार्थ- दक्षिणा लेने के बाद ब्राह्मण (आचार्य) यजमान का घर छोड़ देता है , शिक्षा प्राप्त कर लेने पर शिष्य गुरुकुल को छोड़ देता है तथा जंगल यदि आग की चपेट में आ जाए तो वहाँ रहने वाले जानवर निःसंदेह वह स्थान छोड़कर दूर चले जाते हैं । अर्थात प्रयोजन सिद्ध होने या स्थिति असामान्य होने पर स्थान का मोह त्याग आगे बढ़ जाना चाहिए , जीवन से मृत्यु तक यह सिद्धांत समान रूप से लागू है इसे हमें ध्यान में रखना चाहिए और आखिरी साँस तक शरीर का समुचित उपयोग करने के बाद मृत्यु से डर नहीं बल्कि उसका भी मुस्कराते हुए स्वागत कर उसे मंगलमय बनाना चाहिए ।। रहीम के दोहे अर्थ सहित कक्षा 7
भावार्थ- पद प्रतिष्ठा , जवानी , धन और वैभव तथा अविवेक , दिशा हीनता की स्थिति में इन चारों में से एक ही व्यक्ति का विनाश करने में सक्षम है किंतु कदाचित इन चारों का दुर्योग एक साथ हो किसी पर तब तो सर्वनाश से कोई भी नहीं बचा सकता । रहीम के दोहे कक्षा 7
भावार्थ- भगवान बहुत कृपालु हैं उनकी कृपा का ही फल है कि उनकी समूची सृष्टि में जहाँ करोड़ों ऐसे प्राणी हैं जो गुण और ज्ञान से हीन है मात्र इतनी ही चेतना है उनमें कि पेट भर लें अपना और संतति बढ़ाएं , वहीं मनुष्य जो ज्ञान और गुणों से युक्त उनकी सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ प्राणी है और जिसका न सिर्फ सृष्टि के समस्त प्राणियों पर नियंत्रण है बल्कि उसका जीवन स्वयं में मुक्ति का एकमात्र साधन है , करुणा पूर्वक ऐसा उत्कृष्ट शरीर देते हुए जरूर भगवान की हमसे कुछ विशिष्ट आचरणों की अपेक्षा रही होगी । हमारा दायित्व है कि उनकी इस अपेक्षा पर हम खरे हों , जानवरों की भाँति खाने-पीने और संतान उतपत्ति तक सीमित होकर ऊँची दुकान के फीके पकवान साबित न हों ।। रहीम के दोहे कक्षा 9
भावार्थ- पहले शिशुपना फिर बालपना उसके बाद युवा और फिर बुढ़ापा और इन सभी स्थितियों के बाद एक अटल सत्य है मृत्यु , इन सभी को संसार में कोई आज तक जीत नहीं सका है चाहे कोई कितना अमीर हो या गरीब , कुलीन हो या कुलहीन लेकिन संसार की तमाम विषमताओं को वह जरूर जीत लेता है जिसका जीवन भक्तिमय हो गया अर्थात जिसका समर्पण भगवान के प्रति हो गया फिर चाहे वह कुलीन हो या कुलहीन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ।। रहीम के दोहे class 7
भवार्थ- स्वजनों का अपमान , स्त्री विरह , अयोग्य (बुरे) शासक की सेवा , सदैव ऋण युक्त जीवन तथा दरिद्रता ये ऐसे दुःख हैं जो व्यक्ति को भीतर ही भीतर जलाते हैं , व्यक्ति टूटता जाता है और धीरे-धीरे शरीर मात्र हड्डियों का एक ढांचा रह जाता है । अतः विवेक और दृढ़ मानसिक स्तर से प्रथम तो इन उपरोक्त विषम स्थितियों से बचने का प्रयास (उद्यम) करना चाहिए लेकिन अगर फिर भी बचाव संभव न हो तो कमजोर पड़े बिना दृढ़ता पूर्वक स्थिति का सामना करना चाहिए ।। रहीम के दोहे कक्षा 4
भावार्थ- हे प्रभो , निश्चित ही हम सब आपकी माया के वश में हैं जिसे आपने बनाया ही शायद इसी परीक्षण के लिए है कि किसका समर्पण आपके अर्थात मायापति के प्रति है और किसका माया (धन-संपदा) के प्रति । किंतु जिनका समर्पण आपके श्री चरणों में हो जाता है उनके लिए सभी धन-संपदा धूल के बराबर है , क्योंकि यह तय है कि कितनी भी संपदा जोड़ ली जाए वह सभी दुःखों को समाप्त करने का जरिया नहीं हो सकता पर जिसने सभी आशाएं और भरोसा संसार से हटाकर केवल और केवल आपके प्रति निर्भरता रखी है ऐसे निर्मल हृदय वाले व्यक्ति के लिए आपकी भक्ति सभी संतापों को हरने तथा सभी सुख प्रदान करने वाली है ।। नीति के दोहे हिंदी में अर्थ के साथ | Dohe In Hindiहिंदी की दोहा विधा बेहद प्रचलित हैं| dohe in hindi with meaning में ज्ञान मित्रता, प्रेम समय की महत्ता और परोपकार पर आधारित कबीरदास, रहीम, सूरदास के दोहे बड़े पसंद किये जाते हैं| कबीर के दोहे निति और सामाजिक जीवन में सच्ची राह दिखाते हैं| चंद पक्तियों और शब्दों से बड़ी बात कह जाना दोहों की विशेषता हैं| जिन्हें अर्थ सहित व्याख्या से अर्थ समजने में मदद मिलती हैं| Kabir Das Ke dohe in hindi के इस लेख में कुछ सौरठे और दो पक्तियों के दोहे का सग्रह किया गया हैं| उम्मीद करते हैं ये लेख आपकों पसंद आएगा| यदि आपके पास भी किसी हिंदी कवि के दोहों का संग्रह हो तो कमेंट में हमारे साथ शेयर करे जिसे हम अपनी अगली रचना में सम्मलित करेगे| गुण अवगुण जिण गाँव, सुने न कोई सभले| कारज सरे न कोय बल पराक्रम हिम्मत बिना| मिले सिंह वन माह,किण मिरगा मर्गपत कीयो| आछा जुध अणपार, धार खगा सन्मुख घसे| इणही सु अवदात कहनी सोच विचार कर| पहली किया उपाव,दव दुसमन आमय डटै| हिमत कीमत होय, बिन हिमत कीमत नही| उपजावे अनुराग ,कोयल मन हरकत करे| दूध नीर मिल दोय, हेक जीसी आकित हुवे| मालयागिर मंझार हर को तर चनण हुवे| पाटा पिड न उपाव तन लागा तरवारिया| खल गुल अण खुताय, एक भाव कर आदरै| घण-घण साबल धाय, नह फूटे पाहड निवड़| पय मीठा कर पाक, जो इमरत सीचीजिए| नीति के दोहे अर्थ सहित | niti ke dohe Including the meaning Hindiनीति के दोहे (niti ke dohe) में प्रस्तुत हिंदी दोहे बावजी चतुर सिंह जी की रचना चतुर चिंतामणी से लिए गये हैं. जो इन राजस्थानी कवि की मेवाड़ी हिंदी और ब्रज भाषा के समिश्रण का उत्क्रष्ट उदाहरन हैं. सामान्य लोक व्यवहार से जुड़े इन दोहों में मनुष्य, ईश्वर और संसार के मध्य के सम्बन्ध को समझने में मदद मिलेगी. धरम धरम सब एक हैं, पण वरताव अनेक | अर्थ-इस संसार में अनेक धर्म हैं, उन सबका व्यवहार भी अलग-अलग हैं. लेकिन प्रत्येक धर्म का मूल उद्देश्य ईश्वर की प्राप्ति हैं. ईश्वर को जानने का मुख्य मार्ग ज्ञान हैं. व्यक्ति सच्चे ज्ञान के द्वारा ईश्वर को जान सकता हैं प्राप्त कर सकता हैं. नीति के दोहे ( niti ke dohe) पर घर पग नी मैल्यो, वना मान मनवार | अर्थ जिस घर में मान-सम्मान नही मिले उस घर में कभी कदम नही रखना चाहिए. व्याहारिक जीवन में देखा जाता हैं,कि रेलवे स्टेशन पर सिग्नल दिखाई नही देता हैं तो इंजन स्टेशन पर नही आता हैं. रेल आने से पूर्व स्टेशन मास्टर सिंग्नल लगाता हैं,जिसे देखकर इंजन प्रवेश करता हैं. जिस प्रकार सिग्नल इंजन का सम्मान हैं तब ही स्टेशन पर आता हैं. नीति के दोहे ( niti ke dohe) रेठ फरै चरक्यो फरै, पण फरवा में फेर अर्थ कुए से पानी निकालने के लिए रहट वैली का उपयोग किया जाता हैं, यह यंत्र उपर से जल की सतह तक जाता हैं. फिर पानी छोटी-छोटी बाल्टियो में भरकर स्वय उपर आता हैं. इसी जल से सिंचाई की जाती हैं, जिससे खेत हरे भरे हो जाते हैं. यह रहट उपर निचे फिरता रहता हैं. इसी प्रकार गन्ना पेरने की चरखी गन्नो के बिच दबकर फिरती हैं. गन्ने का रस निकालकर पात्र में रख देती हैं. तथा छिलकों को निकालकर एक तरफ ढेर निकाल देती हैं, कहने का मतलब यह हैं ,कि रहट और चरखी दोनों उपकरण फिरते हैं परन्तु दोनों के फिरने की क्रिया में अंतर हैं. नीति के दोहे ( niti ke dohe)कारट तो केतो फरै, हरकीनै हकनाक | अर्थ एक स्थान से दुसरे स्थान पर पत्र भेजने के लिए पोस्टकार्ड और लिफाफे बेहद लोकप्रिय थे. और आज भी हैं. परन्तु व्यवहारिक द्रष्टि से पोस्टकार्ड द्वारा भेजा गया संदेश कोई भी पढ़ सकता हैं. इस कारण इससे संदेश की गोपनीयता नही रहती हैं. क्युकि जिसे हम संदेश देना चाहते हैं. वही पढ़ सकता हैं. नीति के दोहे ( niti ke dohe) वी भटका भोगै नही,
ठीक समझले ठौर | अर्थ जीवन में कुछ प्राप्त करने के लिए समझदारी के साथ-साथ सोच समझकर कार्य करना चाहिए. बिना कुछ कार्य के इधर-उधर भटकने से कुछ भी प्राप्त नही होता हैं. इसलिए हमे स्थान के बारे में पहले से ही अच्छी तरह समझ लेना चाहिए. जैसे किसी राह में चलने से पूर्व रास्ते की जानकारी पता कर लेनी चाहिए. इससे मार्ग की कठिनाइयो का पता चल जाता हैं. नीति के दोहे ( niti ke dohe) क्यूं किसू बोलू कठे, कुण कई की
वार | नीति के दोहे अर्थ सहित –इस संसार में व्यवहार करने के लिए हमे बातचीत एक दुसरे से करनी पड़ती हैं, परन्तु बोली एक अमूल्य वस्तु हैं किकिससे कब और कहा क्या बोलना हैं. किसको कब किनती आदि बातों को अपने ह्रदय में पहले से ही तोल लेनी चाहिए. इन बातों के सार को ही कहना चाहिए. निर्थक बाते करने से कोई फायदा नही हैं. नीति के दोहे ( niti ke dohe)ओछो भी आछो नही, वतो करै कार | नीति के दोहे अर्थ सहित=जीवन में किसी वस्तु की सार्थकता या आवश्यकता पर्याप्तता होने पर ही होती हैं. यदि आवश्यकता से कम हैं या अधिक हैं तो उसका विशेष महत्व नही होता हैं. आग को जलती रखने के लिए उसमे आवश्यकता के अनुसार इंधन डालते रहना चाहिए. यदि आवश्यकता से कम ईंधन डालेगे तो आग बुझ जाएगी. आवश्यकता से अधिक डालेगे तो भी वह बुझ जाएगी. नीति के दोहे ( niti ke dohe)अपणी आण अजाणता, कईक कोरा जाय | नीति के दोहे अर्थ सहित-इस संसार में बहुत से लोग हैं जो अपनी इज्जत मान-मर्यादा और योग्यता के सम्बन्ध में अनजान रहते हैं. ऐसे बहुत से व्यक्ति व्यर्थ में अपनी जिन्दगी बिताते हैं. समझदार व्यक्ति बहुत जल्दी संकेत के रूप में सारी बात समझ जाते हैं. कि कौन कैसे उसका सम्मान और अपमान करता हैं. नीति के दोहे ( niti ke dohe)क्षमा क्षमा सब ही करे, क्षमा न राखे कौय | अर्थ- इस संसार में सभी व्यक्ति क्षमा के बारे में कहते हैं. अर्थात मनुष्य को क्षमा करने की भावना व क्षमा शीलता का गुण रखना चाहिए. पर व्यवहार में कोई भी व्यक्ति क्षमा या धैर्य नही रखता हैं. क्षमा करने की भावना कठिन धैर्य रखने की क्षमता हैं. अर्थ यह हैं कि धेर्य रखना क्षमा करने से अधिक महत्वपूर्ण हैं. अर्थात क्षमा के पात्र व्यक्ति के गुण दोषों के बारे में चिन्तन आवश्यक हैं. नीति के दोहे ( niti ke dohe) विद्या विद्या वेळ जुग, जीवन तरु लिपटात | नीति के दोहे अर्थ सहित-विद्या और युग रूपी बेल जीवन रूपी वृक्ष के चारों और लिपटे रहते हैं. लगातार पढने यानि ज्ञान रूपी जल से जीवन रूपी वृक्ष की सीचना चाहिए. जीवन रूपी वृक्ष को सिचने से ही सुख दुःख रूपी फल और पत्ते प्राप्त किए जा सकते हैं. नीति के दोहे ( niti ke dohe) रेल दौड़ती ज्यू घणा, रुंख दोड़ता पेख | नीति के दोहे अर्थ सहित-जब रेलगाड़ी दौड़ती हैं तो हम वृक्षों को दोड़ता हुआ देखते हैं. उसी प्रकार जीवन में समय और दिन जाते हुए देखते हैं. हम समझते हैं, दिन जा रहा हैं वर्ष जा रहा हैं. परन्तु हमे यह सोचना चाहिए, कि दिन व वर्ष नही जा रहे हैं. बल्कि हमारा नश्वर शरीर धीरे-धीरे नष्ट हो रहा हैं. नीति के दोहे ( niti ke dohe)गाता रोता निकलया, लड़ता करता प्यार | नीति के दोहे अर्थ सहित-हमने इस संसार में गोते रोते हुए जन्म लिया और एक दुसरे से लड़ते झगड़ते प्यार से जीवन जिया. इसी प्रकार संसार रूपी सड़क पर अनगिनत मनुष्य जीवन जीते हैं, नीति के दोहे ( niti ke dohe) गोख्दिया खड़िया रया, कड़ियाँ झांकणहार | नीति के दोहे अर्थ सहित-उचे-ऊँचे भवन के गोख्ड़े झरोखे तथा सड़क पर चलने वाले तांगे आदि सभी पड़े रह जाते हैं. किन्तु तांगा चलाने वाला चला जाता हैं. उसी प्रकार शरीर से आत्मा तो चली जाती हैं, लेकिन शरीर यही रह जाता हैं. नीति के दोहे ( niti ke dohe)गेला नै जातो कहै, जावै आप अजाण | नीति के दोहे अर्थ सहित-इस संसार में कुछ व्यक्ति स्वय अज्ञानी हैं. तथा दुसरो को भी मुर्ख बनाते हैं. एक मुर्ख जाते हुए एक व्यक्ति से कहता हैं. कि वह मुर्ख हैं क्युकि वह सही मार्ग पर नही जा रहा हैं. जबकि आप स्वय जानकार होते हुए भी गलत मार्ग पर जा रहे हैं. वह व्यक्ति गलत मार्ग पर इसलिए जा रहा हैं, क्युकि उन्हें सही राह की पहचान नही हैं. परन्तु खेद तो यह हैं अपने आप को ज्ञान वाँ मानकर गलत राह पर जा रहे हैं. नीति के दोहे ( niti ke dohe) धन दारा रै मायने, मती जमारो खोय | नीति के दोहे अर्थ सहित-कवि सांसारिक मनुष्यों को चेतावनी देते हुए कह रहा हैं, कि इस समय संसार में धन-सम्पति पत्नी के बिच रहकर अपना जीवन मत खोवो. कुछ समय भगवान् का भी स्मरण करो. क्युकि कठिन समय में कोई भी व्यक्ति किसी का साथ नही देता हैं. यह भी पढ़े
कबीर दास, रहीम, रैदास, तुलसीदासजी, मीरा बाई, वृन्द, रसखान आदि मुख्य हिंदी में नीति के दोहे अर्थ एवं चित्र सहित यहाँ प्रस्तुत किए गये हैं. समय, मित्रता, जीवन, प्रेम पर आधारित इस हिंदी दोहा संग्रह को कक्षा 1, 2, 3, 4 ,5, 6, 7, 8, 9, 10, 11, 12 सभी कक्षाओं के छात्रों के द्रष्टिकोण तथा स्तर के अनुसार संग्रहित किया हैं. नीति के दोहे इन हिंदी कबीर रहीम | Niti Ke Dohe Kabir Das Rahim In Hindi ये आर्टिकल आपकों पसंद आया हो तो अपने दोस्तों के साथ इसे जरुर शेयर करे. कबीर रहीम और तुलसी के दोहे?मुखिया मुख सौं चाहिए, खान-पान को एक । आवत ही हर्ष नहीं, नैनन नहीं सनेह । तुलसी तहाँ न जाइए, कंचन बरसे मेह । तुलसी मीठे बचन ते, सुख उपजत चहुँ ओर ।
कबीर और रहीम के 10 दोहे?Rahim Das Ke Dohe With Meaning in Hindi. –1– बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय. रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय. ... . –2– रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय. टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय. ... . –3– रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि. ... . –4– जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग. ... . –5– रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार.. कबीर के 5 दोहे लिख के याद करे?दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय ... . बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय ... . बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर ... . काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ... . साईं इतनी दीजिए, जा में कुटुंब समाए ... . जैसे तिल में तेल है, ज्यों चकमक में आग ... . माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर. कबीर या रहीम के दो दोहे?संत रहीम दास के दोहे (Rahim Ke Dohe): रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार.. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून। ... . रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर। ... . रहिमन देख बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि. ... . रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार. ... . बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय.. |