नहिं परागु नहिं मधुर मधु Show
नहिं परागु नहिं मधुर मधु, नहिं बिकासु इहिं काल। अली कली ही सौं बंध्यौ, आगैं कौन हवाल॥ नायिका में आसक्त नायक को शिक्षा देते हुए कवि कहता है कि न तो अभी इस कली में पराग ही आया है, न मधुर मकरंद ही तथा न अभी इसके विकास का क्षण ही आया है। अरे भौरे! अभी तो यह एक कली मात्र है। तुम अभी से इसके मोह में अंधे बन रहे हो। जब यह कली फूल बनकर पराग तथा मकरंद से युक्त होगी, उस समय तुम्हारी क्या दशा होगी? अर्थात् जब नायिका यौवन संपन्न सरसता से प्रफुल्लित हो जाएगी, तब नायक की क्या दशा होगी? स्रोत :
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नहिं पराग नहिं मधुर मधु किसकी रचना है A घनानंद B बिहारी C रसखान D रसलीन?(D) तुलसीदास TBC: AKG-APCC-HINDI-A 42.
नहीं पराग नहीं मधुर मधु कौन सा अलंकार?'नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नही विकास इहि काल। अली कली ही सौं बिध्यों, आगे कौन हवाल।। प्रस्तुत पंक्तियों में अन्योक्ति अलंकार है। जहां प्रस्तुति उक्ति से कोई अप्रस्तुत अर्थ भी निकले और प्रस्तुत की अपेक्षा वह अप्रस्तुत अर्थ प्रधान हो वहां अन्योक्ति अलंकार होगा।
आज रानी काव्या है ना यह पंक्ति कौन कहता है?रानी विधवा हुई हाय!
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