ईश्वर को हम क्यों नहीं देख पाते * I अज्ञानता के कारण II अन्धविश्वास के कारण III अहंकारी होने के कारण IV ये सभी? - eeshvar ko ham kyon nahin dekh paate * i agyaanata ke kaaran ii andhavishvaas ke kaaran iii ahankaaree hone ke kaaran iv ye sabhee?

अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने क्या उपाय सुझाया है?


मनुष्य को परिष्कार और आत्मोन्नति के प्रयास निरंतर करते रहना चाहिए। निंदा करनेवाले के जरिये ही हमें अपने परिष्कार का अवसर मिलता है। अपने स्वभाव को निर्मल रखने के लिए कबीर ने बताया है कि हमें अपने आसपास निंदक रखने चाहिए ताकि वे हमारी त्रुटियों को बता सके। वास्तव में निंदक हमारे सबसे अच्छे हितेषी होते हैं। उनके द्वारा बताए गए त्रुटियों को दूर करके हम अपने स्वभाव को निर्मल बना सकते हैं।

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संसार में सुखी व्यक्ति कौन है और दुखी कौन? यहाँ ‘सोना’ और ‘जागना’ किसके प्रतीक हैं? इसका प्रयोग यहाँ क्यों किया गया है? स्पष्ट कीजिए।


कवि के अनुसार संसार में वो लोग सुखी हैं, जो संसार में व्याप्त सुख-सुविधाओं का भोग करते हैं और दुखी वे हैं, जिन्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है। 'सोना' अज्ञानता का प्रतीक है और 'जागना' ज्ञान का प्रतीक है। जो लोग सांसारिक सुखों में खोए रहते हैं, जीवन के भौतिक सुखों में लिप्त रहते हैं वे सोए हुए हैं और जो सांसारिक सुखों को व्यर्थ समझते हैं, अपने को ईश्वर के प्रति समर्पित करते हैं वे ही जागते हैं। वे संसार की दुर्दशा को दूर करने के लिए चिंतित रहते हैं।

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मीठी वाणी बोलने से औरों को सुख और अपने तन को शीतलता कैसे प्राप्त होती है?


मीठी वाणी बोलने से सुनने वाले के मन से क्रोध और घृणा की भावना सम्पात हो जाती हैं। इसके साथ ही हमारा अंतःकरण प्रसन्न होने लगता हैं प्रभावस्वरूप औरों को सुख और तन को शीतलता प्राप्त होती है।

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दीपक दिखाई देने पर अँधियारा कैसे मिट जाता है? साखी के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।


यहाँ दीपक का मतलब 'भक्तिरूपी ज्ञान' तथा अन्धकार का मतलब 'अज्ञानता' से है। जिस प्रकार दीपक के जलने पर अन्धकार नष्ट हो जाता है ठीक उसी प्रकार जब ज्ञान का प्रकाश हृदय में प्रज्ज्वलित होता है तब मन के सारे विकार अर्थात भ्रम, संशय का नाश हो जाता है।

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ईश्वर कण-कण में व्याप्त है, पर हम उसे क्यों नहीं देख पाते?


इसमें कोई संदेह नही कि ईश्वर हर प्राणी के भीतर ही नही, बल्कि हर कण में है। किन्तु हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं, इत्यादि में लिप्त है। हम उसे मंदिर, मस्जिदों, गिरजाघरों में ढूंढ़ते हैं जबकि वह सर्वव्यापी है। इस कारण हम ईश्वर को नहीं देख पाते हैं।

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हम ईश्वर को क्यों नहीं देख पाते?

ईश्वर सब ओर व्याप्त है। वह निराकार है। हमारा मन अज्ञानता, अहंकार, विलासिताओं में डूबा है। इसलिए हम उसे नहीं देख पाते हैं

अंधविश्वास का प्रमुख कारण क्या है?

अंधविश्वासों का वर्गीकरण अंधविश्वासों का सर्वसम्मत वर्गीकरण संभव नहीं है। इनका नामकरण भी कठिन है। पृथ्वी शेषनाग पर स्थित है, वर्षा, गर्जन और बिजली इंद्र की क्रियाएँ हैं, भूकंप की अधिष्ठात्री एक देवी है, रोगों के कारण प्रेत और पिशाच हैं, इस प्रकार के अंधविश्वासों को प्राग्वैज्ञानिक या धार्मिक अंधविश्वास कहा जा सकता है।

अंधविश्वास से क्या क्या नुकसान होते है?

अनुक्रम.
2.1 सूर्य डूबने के बाद सफाई.
2.2 साँप मिथकों.
2.3 कांच का टूट्ना.
2.4 १३.
2.5 छींकना तथा टोकना.
2.6 नाखून काटना.
2.7 सूर्यग्रहण.
2.8 पीपल पेड़ की छाया.

अंधविश्वास कितने प्रकार के होते हैं?

विश्वास-अंधविश्वास विश्वास और अंधविश्वास के बीच के अंतर के बारे में पूछने पर तर्कवादी बाबू गोगीनेनी कहते हैं, ''अगर कोई रिवाज उसके पीछे के तर्क को लेकर सवाल उठाए बिना माना जाता है तो उसे अंधविश्वास कहते हैं. अगर कोई व्यक्ति रिवाज के पीछे के तर्क को नहीं परख नहीं पाता तो यह खतरनाक हो सकता है.''