AP State Board Syllabus AP SSC 10th Class Hindi Textbook Solutions Chapter 2 ईदगाह Textbook Questions and Answers. Show
AP State Syllabus SSC 10th Class Hindi Solutions Chapter 2 ईदगाह10th Class Hindi Chapter 2 ईदगाह Textbook Questions and AnswersInText Questions (Textbook Page No. 5) प्रश्न .1 प्रश्न .2 प्रश्न .3 InText Questions (Textbook Page No. 6) प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. अर्थग्राह्यता-प्रतिक्रिया : अ) प्रश्नों के उत्तर दीजिए। प्रश्न 2. आ) हाँ या नहीं में उत्तर दीजिए। 2. अमीना हामिद की मौसी थी । 3. मोहसिन भिश्ती खरीदता है। 4. हामिद खिलौने खरीदता है। इ) रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए। 2. क़ीमत सुनकर हामिद का दिल ……….. गया। 3. हामिद ………… लाया । 4. महमूद के पास ………………. पैसे थे। ई) अनुच्छेद पढ़कर प्रश्नों के उत्तर दीजिए। बहुत समय पहले की बात है। श्रवण कुमार नामक एक बालक रहता था। उसके माता – पिता देख नहीं सकते थे। किंतु उन्हें इस बात का दुख नहीं था। उनका पुत्र सदैव उनकी सेवा में तत्पर रहता था। एक दिन माता – पिता ने अपने पुत्र से चारधाम यात्रा की इच्छा व्यक्त की। पुत्र काँवर में बिठाकर अपने माता – पिता को चारधाम की यात्रा पर ले गया। रास्ते में माता – पिता को प्यास लगी। उनके लिए पानी लाने के लिए श्रवण कुमार तालाब के पास पहुंचा। उसी समय राजा दशरथ तालाब के पास वाले जंगल में शिकार कर रहे थे। श्रवण द्वारा तालाब में लोटा डुबाने की ध्वनि सुनकर वे हाथी समझ बैठे। शब्दभेदी बाण चला दिया। इस बाण से श्रवण परलोक सिधार गया। माता – पिता की सेवा में आजीवन आगे रहने वाला श्रवण, इतिहास में सदैव अमर रहेगा। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. अभिव्यक्ति – सृजनात्मकता अ) इन प्रश्नों के उत्तर तीन – चार पंक्तियों में लिखिए। प्रश्न 2. आ) ‘ईदगाह’ कहानी का सारांश अपने शब्दों में लिखिए। सारांश : हामिद चार – पाँच साल का दुबला – पतला, भोला – भाला लडका है। उसके माँ – बाप चल बसे हैं, वह अपनी बूढी दादी अमीना की परिवरिश में रहता है। उससे कहा गया है कि उसके माँ – बाप उसके लिए बहुत अच्छी चीजें लायेंगे। हामिद एकदम अच्छा और आशावान लडका है। उसके पैरों में जूते तक नहीं है। आज ईद का दिन है। सारी प्रकृति सुखदायी और मनोहर है। हामिद के महमूद, मोहसिन, नूरे, सम्मी दोस्त हैं। सब बच्चे अपने पिता के साथ ईदगाह जानेवाले हैं। आमीना डर रही है कि अकेले हामिद को कैसे भेजे? हामिद के धीरज बँधाने पर वह हामिद को भेजने राजी होती है। जाते वक्त हामिद को तीन पैसे देती है। सब तीन कोस की दूरी परी स्थित ईदगाह पैदल जाते हैं। वहाँ नमाज़ के समाप्त होते ही सब बच्चे अपने मनपसंद खिलौने और मिठाइयाँ खरीदकर खुश रहते हैं। हामिद तो खिलौनों को ललचायी आँखों से देखता है, पर चुप रहता है। बाद लोहे की दुकान में अनेक चीजों के साथ चिमटे भी रखे हुए हैं, चिमटे को देखकर हामिद को ख्याल आता है कि बूढी दादी अमीना के पास चिमटा नहीं है। इसलिए तवे से रोटियाँ उतारते उसके हाथ जल जाते हैं। चिमटा ले जाकर दादी को देगा तो वह बहुत प्रसन्न होगी और उसकी उंगलियाँ भी नहीं जलेंगी। ऐसा सोचकर दुकानदार को तीन पैसे देकर वह चिमटा खरीदता है। सब दोस्त उसका मज़ाक उडाते हैं। हामिद तो इसकी परवाह नहीं करता। घर लौटकर दादी को चिमटा देते हैं तो पहले वह नाराज़ होती है। मगर हामिद के तुम्हारी उंगलियाँ तवे से जल जाती थीं। इसलिए मैं इसे लिवा लाया कहने पर उसका क्रोध तुरंत स्नेह में बदल जाता है। हामिद के दिल के त्याग, सद्भाव और विवेक गुण से उसका मन गद्गद् हो जाता है। हामिद को अनेक दुआएँ देती है और खुशी के आँसू बहाने लगती है। नीति : ईदगाह कहानी में दादी और पोते का मार्मिक प्रेम दर्शाया गया है। इ) हामिद और उसके मित्रों के बीच हुई बातचीत की किसी एक घटना को संवाद के रूप में लिखिए। महमूद : मेरे ये सिपाही और नूरे वकील को देखो। ये कितने अच्छे हैं और खूबसूरत हैं? सम्मी . : हाँ! हाँ! मेरे इस धोबिन को देखिए। यह कैसा है ? हामिद : (उन्हें ललचाई आँखों से देखते हुए) ये सब मिट्टी के तो हैं, गिरे तो चकनाचूर हो जायेंगे। मोहसिन : (रेवडी खरीदता है) “अरे! हामिद यह रेवडी ले ले कितनी खुशबूदार है।” हामिद : “रखे रहो।, क्या मेरे पास पैसे नहीं हैं ?” सम्मी : अरे, उसके पास तो तीन ही पैसे हैं, तीन पैसे से क्या – क्या लेगा? दोस्तों ने एक साथ सब ई) बड़े-बुजुर्गों के प्रति आदर, श्रद्धा और स्नेह भावनाओं का महत्व अपने शब्दों में बताइए। हमारे मानव जीवन में बडे – बुजुर्गों के प्रति आदर, श्रद्धा और स्नेह भावनाओं का बड़ा महत्व है। बडे – बुज़ुर्ग लोग हमारे जीवनदाता और हमारे सुखमय जीवन के मूल स्तंभ हैं। खासकर हमारी आमूल्य भारतीय संस्कृति हमें सुसंस्कार सिखाती है। बडे – बुज़ुर्ग लोग अनेक कष्ट – सुख झेलकर हमें सुख जीवन बिताने के योग्य बनाते हैं। वे बड़े अनुभवी और कर्तव्य परायण होते हैं। ऐसे महत्वपूर्ण बडे बुजुर्गों का ख्याल रखना, आदर देते उनकी सेवा करना हमारा धर्म और कर्तव्य है। वे हमारे जीवन के मार्गदर्शक हैं। वे बूढे होकर काम नहीं कर सकते हैं। ऐसी हालत में हमें आदर के साथ उनकी सहायता करनी चाहिए। उनकी हर आवश्यकता की पूर्ति अपना भाग्य और कर्तव्य समझना है। वे संतुष्ट होकर जो आशीश हमें देते हैं। वे बहुत महत्वपूर्ण और प्रभावशाली होते हैं। उनके बताये अनुभव हमारे सुखमय जीवन के सोपान हैं। हमारे आदर और श्रद्धापूर्ण कार्यों से उनको नयी शक्ति मिलती है। वे कष्टदायी बुढापे को भी हँसते बिता सकते हैं। बड़ों का आदर करना हमारा कर्तव्य है। आज के बालक कल के नागरिक बनते हैं। उनमें भी बडे – बुज़ुर्गों के प्रति आदर – श्रद्धा ,स्नेह भावनाएँ जगानी चाहिए। भाषा की बात अ) कोष्ठक में दी गयी सूचना पढ़िए और उसके अनुसार कीजिए। पर्याय शब्द प्रश्न 2. वाक्य प्रयोग अपराधी : अपराधी को ही दंड देना चाहिए। निरपराधी को दंड देना दंडनीति नहीं है। प्रश्न 3. वाक्य प्रयोग आ) सूचना पढ़िए और उसके अनुसार कीजिए। प्रश्न 2. प्रश्न 3. इ) इन्हें समझिए और अभ्यास कीजिए। प्रश्न 2. ई) 1. नीचे दिया गया उदाहरण समझिए। उसके आधार पर दिये गये वाक्य बदलिए। 2. पाठ में आये मुहावरे पहचानिए और अर्थ लिखकर वाक्य प्रयोग कीजिए। 2. सिर झुकाना = नतमस्तक हो जाना। 3. गले मिलना = प्यार से गले लिपटना/आलिंगन करना 4. मज़ाक करना = उपहास करना, परिहास करना 5. धावा बोलना = आक्रमण करना 6. मन ललचाना = इच्छा करना 7. दिल कचोटना = दिल में वेदना होना/दुःखित होना 8. गदगद हो जाना = प्रसन्नता से फूले न समाना 9. दिल बैठ जाना निराश होना 10. भेंट होजाना = मर जाना 11. छाले पड़ना . = धिक्कत होना (चलते समय) 12. माथे पर हाथ रखना = शोक करना 13. पीली पडना – = बीमार पड़ना 14. परलोक सिधारना मरजाना परियोजना कार्य: वरिष्ठ नागरिकों (वयोवृद्धों) के प्रति आदर – सम्मान की भावना से जुड़ी कोई कहानी ढूँढकर लाइए। कक्षा में प्रस्तुत कीजिए। सुबह उठकर श्रवण माता – पिता के लिए नदी से पानी भरकर लाता। जंगल से लकड़ियाँ लाता। चूल्हा जलाकर खाना बनाता। माँ उसे मना करतीं। “बेटा श्रवण, तू हमारे लिए इतनी मेहनत क्यों करता है? भोजन तो मैं बना सकती हूँ। इतना काम करके तू थक जाएगा।” “नहीं माँ, तुम्हारे और पिताजी का काम करने में मुझे जरा भी थकान नहीं होती। मुझे आनंद मिलता है। तुम देख नहीं सकतीं।रोटी बनाते हुए, तुम्हारे हाथ जल जाएँगे।” “हे भगवान! हमारे श्रवण जैसा बेटा हर माँ – बाप को मिले। उसे हमारा कितना खयाल है।” माता – पिता श्रवण को आशीर्वाद देते न थकते। श्रवण के माता – पिता रोज भगवान की पूजा करते। श्रवण उनकी पूजा के लिए फूल लाता, बैठने के लिए आसन बिछाता। माता – पिता के साथ श्रवण भी पूजा करता। माता – पिता की सेवा करता श्रवण बड़ा होता गया। घर के काम पूरे कर, श्रवण बाहर काम करने जाता। अब उसके माता – पिता को काम नहीं करना होता। एक दिन श्रवण के माता – पिता ने कहा – “कौन – सी इच्छा माँ? क्या चाहते हैं पिताजी? आप आज्ञा दीजिए। प्राण रहते आपकी इच्छा पूरी करूँगा।” “हमारी उमर हो गई अब हम भगवान के भजन के लिए तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते हैं बेटा। शायद भगवान के चरणों में हमें शांति मिले।” “श्रवण सोच में पड़ गया। उन दिनों आज की तरह बस या रेलगाड़ियाँ नहीं थी। वे लोग ज्यादा चल भी नहीं सकते थे। माता-पिता की इच्छा कैसे पूरी करूँ, यह बात सोचते-सोचते श्रवण को एक उपाय सूझ गया। श्रवण ने दो बड़ी – बड़ी टोकरियाँ लीं। उन्हें एक मज़बूत लाठी के दोनों सिरों पर रस्सी से बाँधकर लटका दिया। इस तरह एक बड़ा काँवर बन गया। फिर उसने माता – पिता को गोद में उठाकर एक – एक टोकरी में बिठा दिया। लाठी कंधे पर टाँगकर श्रवण माता-पिता को तीर्थ यात्रा कराने चल पड़ा। श्रवण एक – एक कर उन्हें कई तीर्थ स्थानों पर ले जाता है। वे लोग गया, काशी, प्रयाग सब जगह गए। माता – पिता देख नहीं सकते थे इसलिए श्रवण उन्हें तीर्थ के बारे में सारी बातें सुनाता। माता – पिता बहुत प्रसन्न थे। एक दिन माँ ने कहा -“बेटा श्रवण, हम अंधों के लिए तुम आँखें बन गए हो। तुम्हारे मुँह से तीर्थ के बारे में सुनकर हमें लगता है, हमने अपनी आँखों से भगवान को देख लिया है।” “हाँ बेटा, तुम्हारे जैसा बेटा पाकर, हमारा जीवन धन्य हुआ। हमारा बोझ उठाते तुम थक जाते हो, पर कभी उफ़ नहीं करते।” पिता ने भी श्रवण को आशीर्वाद दिया। “ऐसा न कहें पिताजी, माता – पिता बच्चों पर कभी बोझ नहीं होते। यह तो मेरा कर्तव्य है। आप मेरी चिंता न करें।” एक दोपहर श्रवण और उसके माता – पिता अयोध्या के पास एक जंगल में विश्राम कर रहे थे। माँ. को प्यास लगी। उन्होंने श्रवण से कहा – बेटा, क्या यहाँ आसपास पानी मिलेगा? धूप के कारण प्यास लग रही है। “हाँ, माँ। पास ही नदी बह रही है। मैं जल लेकर आता हूँ।” श्रवण कमंडल लेकर पानी लाने चला गया। राजा जब शिकार को लेने पहुंचे तो उन्हें अपनी भूल मालूम हुई। अनजाने में उनसे इतना बड़ा अपराध हो गया। उन्होंने श्रवण से क्षमा माँगी। “मुझे क्षमा करना ए भाई। अनजाने में अपराध कर बैठा। बताइए मैं आपके लिए क्या कर सकता हूँ?” “राजन, जंगल में मेरे माता – पिता प्यासे बैठे हैं। आप जल ले जाकर उनकी प्यास बुझा दीजिए। मेरे विषय में उन्हें कुछ न बताइएगा। यही मेरी विनती है।” इतना कहते – कहते श्रवण ने प्राण त्याग दिए। दुखी हृदय से राजा दशरथ, जल लेकर श्रवण के माता – पिता के पास पहुँचे। श्रवण के माता – पिता अपने पुत्र के पैरों की आहट अच्छी तरह पहचानते थे। राजा के पैरों की आहट सुन वे चौंक गए। “कौन है? हमारा बेटा श्रवण कहाँ है?” बिना उत्तर दिए राजा ने जल से भरा कमंडल आगे कर, उन्हें पानी पिलाना चाहा, पर श्रवण की माँ चीख पड़ी- “तुम बोलते क्यों नहीं, बताओ हमारा बेटा कहाँ है?” “हाँ श्रवण, हाय मेरा बेटा” माँ चीत्कार कर उठी। बेटे का नाम रो – रोकर लेते हुए, दोनों ने प्राण त्याग दिए। पानी को उन्होंने हाथ भी नहीं लगाया। प्यासे ही उन्होंने इस संसार से विदा ले ली। सचमुच श्रवण कुमार की माता – पिता के प्रति भक्ति अनुपम थी। जो पुत्र माता-पिता की सच्चे मन से सेवा करते हैं, उन्हें श्रवण कुमार कहकर पुकारा जाता है। सच है, माता – पिता की सेवा सबसे बड़ा धर्म है। कहा जाता है कि राजा दशरथ ने बूढे माँ-बाप से उनके बेटे को छीना था। इसीलिए राजा दशरथ को भी पुत्र वियोग सहना पड़ा रामचंद्र जी चौदह साल के लिए वनवास को गए। राजा दशरथ यह वियोग नहीं सह पाए। इसीलिए उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए। ईदगाह Summary in EnglishIt was the day of ‘Eid festival, after the completion of Ramzan month. That day was pleasant and wonderful with enchanting nature. In that village the arrangements to go to Idgah were being made with much enthusiasm and fervour. The atmosphere of the village is luminous with religious righteousness. The children were happier than others. They wanted to enjoy the celebration themselves. Of them, Mahmood had got 12 paise with him and Mohasin had got 15 paise with him. The children wanted to buy toys, eatables etc., with the money they had. A boy named Haamid seemed very happy on that day. He was a poor and innocent boy. He was a thin, five – year old boy. His father died of cholera whereas his mother died while absconding for some reason. Haamid was living with his grandmother Ameena. He would think that his father had gone for earning money and his mother had gone to bring some good things from Allahmiya. So he was very happy. He had no sandals for his feet. He wore an old and dirty cap. Yet, he was happy. On that day, his grandmother Ameena who was left destitute sat in her small room and was weeping. There were no food grains to cook. She felt sorry for her grandson Haamid. Every child in the village was taking part in the celebrations along with his father. She too wanted to take Haamid to see the celebrations but she stayed at home thinking who would cook Semiya if she didn’t stay at home. The procession started from the village towards the idgah. Haamid convinced his grandmother and went along with other children. The crowds, clad in new clothes, reached the place where the ‘Eid’ celebration was to be held. No sooner did they finish Namaz, than they ran towards toyshops. Mohasin, Mahamood, Noore and Sammee bought toys they liked. But Haamid was observing the toys with desirous looks. He had got only 3 paise with him. Later, the children bought eatables for them. They asked Haamid if he had got any money with him and made fun of him. Haamid kept quiet. Passing by the utensil shops, Haamid wanted to buy a spatula for his grandmother with the intention that her fingers wouldn’t burn while taking rotis from the pan. He asked the shopkeeper what its price was. The shopkeeper said that its price was 6 paise, Haamid got disappointed. Yes, he bargained with the shopkeeper over the price of it and bought it with 3 paise that he had got with him. He felt proud of buying the spatula and came to his friends keeping it on his shoulders like a gun. On seeing this his friends laughed at him. When Haamid reached home, Ameena fondled him with affection. She was startled on seeing a spatula in this hand. She asked him why he had bought it without drinking or eating with the money he had. He said that he had bought it for her sake because she was burning her fingers while taking rotis from the pan. Her anger disappeared and she felt very happy that her grandson showed a great concern for her safety. She shed tears for the sacrifice he had done even at a tender age. ईदगाह Summary in Teluguరంజాన్ పూర్తి నెల రోజుల తర్వాత ఈ రోజే ఈద్ పండుగ వచ్చింది. ఎంత మనోహరం, ఎంత ఆహ్లాదకరమైన ప్రభాతం (ఉదయం). చెట్లపై అద్భుతమైన పచ్చదనం ఉన్నది. పంట పొలాలలో అద్భుతమైన కాంతి ఉన్నది. ఆకాశంలో అద్భుతమైన ఎర్రదనం ఉంది. ఈ రోజు సూర్యుణ్ణి చూడండి, ఎంత అందంగా, ఎంత చల్లగా ఉన్నాడో. ప్రపంచానికి ఈద్ శుభాకాంక్షలు తెలియజేయుచున్నట్లున్నాడు. ఈద్ గాహ్ కు వెళ్ళడానికి ఏర్పాట్లు జరుగుచున్నవి. పిల్లలు అందరికంటే సంతోషంగా ఉన్నారు. మాటమాటకి జేబుల్లోని ఖజానా తీసి లెక్కలేసుకుంటున్నారు. మహమూద్ లెక్క వేసుకుంటున్నాడు – ఒకటి – రెండు – పది – పన్నెండు. అతని వద్ద 12 పైసలు కలవు. మొహసిన్ వద్ద 15 పైసలు కలవు. దీంతో లెక్కలేనన్ని వస్తువులు తెస్తా – బొమ్మలు, మిఠాయిలు, ఈలలు, బంతి మరియు లెక్కలేనన్ని. వీరందరికంటే హామిద్ చాలా సంతోషంగా ఉన్నాడు. అతడు అమాయక ముఖం కల 4 – 5 సం||ల బక్కపలుచని బాలుడు. తన తండ్రి గత సం||రం కలరా వల్ల చనిపోయెను. తల్లి కారణం తెలియకుండా ఎందుకో పాలిపోతూ ఒక రోజు చనిపోయింది. చివరికి ఇలా ఎందుకు జరిగిందో ఎవరికీ తెలియదు. ఆమె కూడా పరలోక ప్రాప్తి చెందినది. ఇప్పుడు హామిద్ తన పేద అమీనా నానమ్మ ఒళ్ళో నిద్రపోతూ అంతే సంతోషంగా ఉన్నాడు. తన అబ్బాజాన్ డబ్బు సంపాదించడానికి వెళ్ళాడు. అమ్మీజాన్ అల్లామియా ఇంటి నుండి అతనికి చాలా మంచి మంచి వస్తువులను తేవడానికి వెళ్ళింది. అందుకే హామిద్ చాలా సంతోషంగా ఉన్నాడు. హామిద్ కాళ్ళకు చెప్పులు లేవు. తలపై ఒకపాత టోపి ఉంది. అది కూడా నల్లగా మాసిపోయి ఉంది. అయినప్పటికీ అతడు సంతోషంగా ఉన్నాడు. అభాగ్యురాలైన (నిర్భాగ్యురాలు) అమీనా తన చిన్న గదిలో కూర్చుని ఏడుస్తూ ఉంది. ఈ రోజే ఈద్ పండుగ రోజు. తన ఇంటిలో తిండి గింజలు కూడా లేవు. కానీ హామిద్ ! అతని లోపల ప్రకాశం ఉంది. బయట ఆశాకిరణం ఉంది. హామిద్ లోపలికి వెళ్ళి నానమ్మతో ఈ విధంగా అంటున్నాడు నీవేమి భయపడవద్దమ్మా ! నేను అందరి కంటే ముందలే వస్తా. ఏమీ భయపడవద్దు”. అమీనా హృదయం చివుక్కుమంటోంది. గ్రామంలోని పిల్లలు తమ తండ్రులతో వెళ్ళుతున్నారు. హామిద్ కి అమీనా తప్ప ఎవరున్నారు ? గుంపులో నుండి పిల్లవాడు ఎక్కడన్నా తప్పిపోతే ఏమవుతుంది? మూడు కోసుల దూరం ఎలా నడుస్తాడు ? పాదాలకు బొబ్బలెక్కుతాయి. చెప్పులు (బూట్లు) కూడా లేవాయె. పోనీ నేను కొంచెం దూరం వెళ్ళి, కొంచెం దూరం ఎత్తుకుని నడిస్తే బాగానే ఉంటుంది. కానీ ఇక్కడ సేమియా వండేది ఎవరు ? డబ్బులుంటే తిరిగి వచ్చేటప్పుడు అన్ని సరుకులు తీసుకువచ్చి, తయారుచేయవచ్చు. గ్రామం నుండి తిరునాల (ఉత్సవం, ఊరేగింపు) బయలుదేరింది. పిల్లలతో హామిద్ వెళ్ళుచున్నాడు. పట్టణానికి చెందిన పర్వత శిఖర దిగువభాగం వచ్చింది. రోడ్డుకిరువైపులా ధనవంతుల తోటలున్నాయి. పెద్ద – పెద్ద ఇళ్ళు (కట్టడాలు), కోర్టులు, కాలేజీ, క్లబ్బు, ఇళ్ళు మొదలగునవన్నీ కనబడుతున్నవి. ఈ గాహ్ కు వెళ్ళే గుంపులు కన్పిస్తున్నాయి. ఒకరిని మించి మరొకరు విలువైన (ఖరీదైన) వస్త్రాలను ధరించియున్నారు. ఒక్కసారిగా ఈద్ గాప్ కన్పించింది. అక్కడే ఈద్ తిరునాల (ఉత్సవం) కన్పించింది. నమాజు పూర్తి కాగానే పిల్లలందరూ మిఠాయిలు ఆటబొమ్మల దుకాణాలపై విరుచుకుపడ్డారు. హామిద్ దూరంగా నిలబడి ఉన్నాడు. అతని వద్ద కేవలం మూడు పైసలు మాత్రమే ఉన్నాయి. మొహసిన్ నీళ్ళు మోసే అమ్మాయి బొమ్మ కొంటాడు, మహమూద్ సిపాయి బొమ్మ కొంటాడు, నూరే లాయర్ బొమ్మను, సమ్మీ “చాకలి” (బట్టలు ఉతికే మనిషి) బొమ్మను కొంటారు. హామిద్ ఆశాపూర్వక దృష్టితో ఆ బొమ్మలను చూస్తాడు. అతడు తన్ను తానే ఈ విధంగా నచ్చచెప్పుకుంటున్నాడు. “అవన్నీ మట్టి బొమ్మలేగా. క్రిందపడితే పగిలిపోతవి” తర్వాత మిఠాయి దుకాణాలు వస్తాయి. ఒకరు మిఠాయి ఒకరు సోహన్ హల్వా, ఒకరు గులాబ్ జామున్, మరొకరు నువ్వుల జీడి కొన్నారు. మొహసిన్ ఒరే హామిద్ నువ్వుల జీడీలు తీసుకోరా ఎంత సువాసనగా ఉన్నాయో అని అన్నాడు. అప్పుడు హామిద్ ఉంటే ఉండనీయి. నా దగ్గర డబ్బులు లేవా ఏంటి ? అని అన్నాడు. అప్పుడు సమ్మీ ‘అబ్బో నీ దగ్గర మూడు పైసలేగా ఉన్నాయి. “మూడు పైసలతో ఏమేమి కొంటావ్?” అని ప్రశ్నించాడు. హామిద్ మౌనంగా ఉండిపోయాడు. మిఠాయిల తర్వాత లోహపు పాత్రలు అమ్మే దుకాణాలు వస్తాయి. అక్కడ ఎన్నో అట్లకాడలు ఉన్నాయి. వాటిని చూడగానే “నానమ్మ దగ్గర అట్లకాడ లేదు. రొట్టెలు కాల్చేటప్పుడు చేతివేళ్ళు కాలుతున్నాయి. అనే విషయం హామిదకు గుర్తుకు వస్తుంది. ఒకవేళ అట్లకాడ కొని తీసుకువెళ్ళి నానమ్మకు ఇస్తే ఎంత సంతోషిస్తుంది ? మరల తన వేళ్ళు ఎప్పటికీ కాలవు కదా! నానమ్మ ఈ అట్లకాడ చూడగానే పరుగున వచ్చి నా దగ్గర నుండి లాక్కుని “నా కొడుకు నా కోసం అట్లకాడ తెచ్చాడు అని అంటుంది. దాన్ని ఇరుగు – పొరుగు ఆడవాళ్ళకు చూపుతుంది. వేలకొలది దీవెనలిస్తుంది. గ్రామం అంతా ఈ విషయం పై చర్చ జరుగుతుంది. హామిద్ అట్లకాడ తెచ్చాడు. ఎంత మంచి పిల్లవాడు. పెద్దల దీవెనలు సరిగ్గా అల్లా కోర్టుకి చేరతాయి. వెంటనే దేవుడు వింటాడు.’ అని అనుకుంటాడు. హామిద్ దుకాణదారుణ్ణి అట్లకాడ వెల ఎంత అని అడుగుతాడు దాని ధర “6” (ఆరు) పైసలు అని విన్న హామిదకు గుండె జారిపోతుంది. గుండె ధైర్యం తెచ్చుకుని హామిద్ “3” పైసలకిస్తావా? అని అడుగుతాడు. దుకాణదారుడు అలానే ఇస్తాడు. హామిద్ దానిని తుపాకీలా భుజంపై పెట్టుకుని గర్వంతో తన స్నేహితుల దగ్గరకు వస్తాడు. అప్పుడు స్నేహితులంతా ఎగతాళిగా “ఈ అట్లకాడ ఎందుకు తెచ్చేవురా, పిచ్చివాడా, దీన్ని ఏం చేసుకుంటావ్?” అని అంటారు, ఎగతాళి (హేళన) చేస్తారు. अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता 2 Marks Questions and Answers निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दो या तीन वाक्यों में लिखिए। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता 4 Marks Questions and Answers निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर छह पंक्तियों में लिखिए। प्रश्न 1.
प्रश्न 2.
प्रश्न 3.
प्रश्न 4.
प्रश्न 5.
अभिव्यक्ति-सृजनात्मकता 8 Marks Questions and Answers निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 8-10 पंक्तियों में लिखिए। प्रश्न 1.
प्रश्न 2. हामिद चार – पाँच साल का दुबला – पतला – भोला भाला लडका है। उसके माँ – बाप चल बसे हैं। अपनी बूढी दादी अमीना की देखभाल वह करने लगा है। हामिद एकदम अच्छा और आशावान लडका है। उसके पैरों में जूते तक नहीं है। आज ईद का दिन है। सारा वातावरण सुंदर और सुखदायी है। महमूद, मोहसिन ,नूरे, सम्मी हामिद के दोस्त हैं। सब बच्चे अपने पिता के साथ ईदगाह जानेवाले हैं। हामिद भी ईद की खुशियाँ मना रहा है। हामिद भी ईदगाह जाना चाहता है तो अमीना उसे अकेले भेजने डरने लगती है। इस पर हामिद उसे जल्दी आने की बात कहकर उसे धीरज बँधाता है। तब अमीना उसे तीन पैसे देकर ईदगाह भेजने राजी होती है। सब लडके तीन कोस की दूरी पर स्थित ईदगाह पैदल जाते हैं। वहाँ नमाज़ के समाप्त होते ही सब बच्चे अपने मनपसंद खिलौने और मिठाइयाँ खरीदकर खुश रहते हैं। हामिद तो मिठाइयों को ललचाई आँखों से देखता है, मगर चुप रह जाता है। बाद लोहे की दूकान में अनेक चीजों के साथ चिमटे भी रखे हुए हैं। चिमटे को देखकर हामिद को अपनी दादी का ख्याल आता है। क्योंकि दादी के पास चिमटा नहीं है इसलिए रोज़ तवे से रोटियाँ उतारते उसके हाथ जल जाते हैं। वह सोचता है कि चिमटा ले जाकर दादी को देगा तो वह बहुत प्रसन्न होगी और उसके हाथ भी नहीं जलेंगे। ऐसा सोचकर वह दुकानदार को तीन पैसे देकर चिमटा खरीदता है। सब दोस्त उसका मजाक उडाते हैं। इसकी परवाह न करके वह गर्व के साथ घर आकर दादी को चिमटा देता है तो पहले दादी नाराज़ होती है मगर हामिद के तुम्हारी उंगलियाँ जलती थी न इसलिए मैं इसे लिया लाया कहने पर उसका क्रोध प्रेम में बदल जाता है। हामिद के दिल के त्याग, सद्भाव और वियेकगुण से उसका मन गदगद होता है। खुशी के आँसू बहाती हामिद को दुआएँ देती हैं। इस तरह ईदगाह के मेले की इस घटना दृष्टि में रखकर हम कह सकते हैं कि हामिद छोटा है फिर भी विवेक में, प्रेम में अपने साथियों से अलग स्वभाव का लडका है। प्रश्न 3. त्यौहार मानव जीवन में खुशी और सजगता लाते हैं। खुशियाँ बाँटने में धनी और निर्धन का भेद – भाव नहीं। लेकिन अपने – अपने स्थाई के अनुसार वे त्यौहार मनाते हैं। ईद का मूलमंत्र यह है कि ईद केवल खुशी मनाने का नहीं बल्कि खुशियाँ बाँटने और लोगों को खुशी में शामिल करने का दिन है। खुशी में पूरे समाज विशेष रूप से उन लोगों को शामिल किया जाना ” चाहिए। जो इसे खुशी के रूप में मनाने में असमर्थ होते हैं। इसलिए ईदगाह कहानी में हामिद निर्धन होने पर भी अधिक प्रसन्न था। ईद का त्यौहार माने नये कपडे पहनकर खुशबू लगाकर ईदगाह के लिए घर से निकलना, नमाज़ के बाद एक-दूसरे से गले मिलना, ईद की मुबारक बात देना, अपने परिवार और मित्रों के साथ सैर – सपाटे पर निकल जाना ईद के दिन की यह परंपरा वर्षा से नहीं। सदियों से चला आ रहा है। कहानी में भी हामिद नमाज़ के बाद अपने मित्रों से गले मिलकर, सैर – सपाटे पर निकले तो उसके मित्र तरह – तरह के खिलौने खरीदते हैं। यह त्यौहार भाईचारे का प्रतीक है। सभी इस दिन गले मिलते हैं। शतृता भूलकर मित्र बन जाते हैं। इस दिन न कोई छोटा होता है न बडा, न कोई धनी होता है। और न निर्धन। इस दिन बच्चे अपने निर्धनता पर ख्याल नहीं रखते । लेकिन हामिद जैसे कुछ बच्चे अपने निर्धनता को ख्याल में रखकर खेल – तमाशों तथा झूले का आनंद लेना, खिलौने खरीदना और भांति – भांति की मिठाइयों का आनंद लेते हैं। नये वस्त्र सिलवाते हैं। ईद भ्रातृभाव का त्यौहार है। ईद-उल-फ़ितर के दौरान नमाज़ पढ़ने के बाद मीठी सेवाइयाँ खाई जाती हैं। इसलिए हामिद की दादी घर में कुछ पकाने का सामान न होने से सेवाइयाँ लाने के बारे में सोचती है। ईद के दिन हर मुसलमान ईदगाह जाने के पहले “फ़ित्रा “के रूप में एक निश्चित राशी अल्लाह के राह में खर्च करता है ताकि निर्धन व असहाय लोग भी ईद के खुशियों में शामिल हो सकें। प्रश्न 4. प्रश्न 5. हामिद अपनी बूढी दादी अमीना के लालन – पोषण में रहता है । ईद का दिन होने के नाते हामिद आज बहुत प्रसन्न है । आज वह मेले के साथ ईदगाह जाना चाहता है । उसके पैरों में जूते तक नहीं । तीन कोस पैदल ही चलना पडता है । इसलिए दादी अमीना को बडा दुख हुआ । हामिद कैसा ठहर सकता है । वह ईदगाह की ओर चल पडा । उसके जेब में केवल तीन पैसे हैं । नमाज़ खत्म हो गयी । लोग आपस में गले मिल रहे हैं। सब मिठाई और खिलौनों के दूकानों पर धावा करने लगे। हामिद के दोस्त मिठाइयाँ और खिलौने खरीदते उसे ललचाने पर भी वह चुप रह गया । उसके पास केवल तीन ही पैसे हैं । वह लोहे की चीज़ों के दुकान के पास ठहर जाता है । उसे ख्याल आता है कि दादी के पास चिमटा नहीं है । तवे से रोटियाँ उतारती है तो हाथ जल जाते हैं | अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे-तो वह कितनी प्रसन्न होगी ? यह सोचकर हामिद तीन पैसों से चिमटा खरीदकर दादी को देने तैयार होता है । हामिद के दोस्तों ने उसका मज़ाक किया । अमीना चिमटा देखकर हामिद के त्याग, सद्भाव और विवेक पर मुग्ध हो जाती है । वह प्रेम से गदगद हो जाती है । वह हामिद को दुआएँ देती है। प्रश्न 6. हामिद अपनी बूढी दादी अमीना के लालन – पोषण में रहता है । ईद का दिन होने के नाते हामिद आज बहुत प्रसन्न है । आज वह मेले के साथ ईदगाह जाना चाहता है । उसके पैरों में जूते तक नहीं । तीन कोस पैदल ही चलना पडता है । इसलिए दादी अमीना को बडा दुख हुआ । हामिद कैसा ठहर सकता है । वह ईदगाह की ओर चल पडा | उसके जेब में केवल तीन पैसे हैं । नमाज़ खत्म हो गयी । लोग आपस में गले मिल रहे हैं । सब मिठाई और खिलौनों के दूकानों पर धावा करने लगे। हामिद के दोस्त मिठाइयाँ और खिलौने खरीदते उसे ललचाने पर भी वह चुप रह गया । उसके पास केवल तीन ही पैसे हैं । वह लोहे की चीज़ों के दुकान के पास ठहर जाता है । उसे ख्याल आता है कि दादी के पास चिमटा नहीं है | तवे से रोटियाँ उतारती है तो हाथ जल जाते हैं । अगर वह चिमटा ले जाकर दादी को दे दे-तो वह कितनी प्रसन्न होगी ? यह सोचकर हामिद तीन पैसों से चिमटा खरीदकर दादी को देने तैयार होता है । हामिद के दोस्तों ने उसका मज़ाक किया । अमीना चिमटा देखकर हामिद के त्याग, सद्भाव और विवेक पर मुग्ध हो जाती है। वह प्रेम से गदगद हो जाती है । वह हामिद को दुआएँ देती है। प्रश्न 7. दादी के प्रति निस्वार्थ, त्याग, सद्भावना, प्रेम, विवेक, आदर, श्रद्धा, संवेदनशील, कर्तव्य परायण आदि भावनाएँ हामिद में हैं। हामिद मेले से क्या लेकर आया है?हामिद ने ईद के मेले से क्या खरीदा और क्यों? उत्तर: हामिद ने ईद के मेले से तीन पैसों में लोहे का चिमटा खरीदा, क्योंकि उसकी दादी के पास चिमटा नहीं था। जब वे तवे पर से रोटियाँ उतारतीं तो उनके हाथ की उँगलियाँ जल जाती थीं, इसलिए हामिद ने दादी के लिए चिमटा खरीदा।
हामिद मेले से क्या खरीदता है *?Answer. Answer: हामिद ने अपनी दादी के लिए मेले में एक चिमटा खरीदा। कहानी जब वह हामिद द्वारा किए गए बलिदान के निस्वार्थ कार्य को देखती है।
महमूद ने मेले में से क्या खरीदा?Expert-Verified Answer. सम्मी ने मेले से खंजरी खरीदी थी । हामिद ईद के अवसर पर अपने सभी मित्रों के साथ मेले गया था। उसके घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी , तो वह मेले में अधिक पैसे नहीं ले जा सका।
हामिद ने चिमटे को कौन सी उपमा दी?हामिद ने चिमटे को इसतरह कंधे पर रखा मानो बंदूक हो ।
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