हिम्मत और जिंदगी के लेखक कौन है? - himmat aur jindagee ke lekhak kaun hai?

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हिम्मत और ज़िन्दगी

ज़िन्दगी के असली मज़े उनके लिए नही हैं जो फूलों की छाँव में सोते हैं. बल्कि फूलों की छाँव के नीचे अगर

हिम्मत और जिंदगी के लेखक कौन है? - himmat aur jindagee ke lekhak kaun hai?

जीवन का कोई स्वाद छिपा है तो वह भी उन्ही के लिए है जो दूर रेगिस्तान से आ रहे हैं जिनका कंठ सूखा हुआ, होंठ फटे हुए और सारा बदन पसीने से तर है. पानी में जो अमृत वाला तत्व है, उसे वह जानता है जो धूप में खूब सूख चूका है, वह नही जो रेगिस्तान में कभी पड़ा ही नहीं है.


सुख देने वाली चीज़ें पहले भी थीं और अब भी हैं. फर्क यह है कि जो सुखों का मूल्य पहले चुकाते हैं और उनके मज़े बाद में लेते हैं उन्हें स्वाद अधिक मिलता है. जिन्हें आराम आसानी से मिल जाता है, उनके लिए आराम ही मौत है.

जो लोग पाँव भीगने के खौफ से पानी से बचते रहते हैं, समुन्द्र में डूब जाने का ख़तरा उन्ही के लिए है. लहरों में तैरने का जिन्हे अभ्यास है वो मोती ले कर बाहर आयेँगे.

चाँदनी की ताज़गी और शीतलता का आनंद वह मनुष्य लेता है जो दिनभर धूप में थक कर लौटा है, जिसके शरीर को अब तरलाई की ज़रुरत महसूस होती है और जिसका मन यह जानकार संतुष्ट है कि दिन भर का समय उसने किसी अच्छे काम में लगाया है.

इसके विपरीत वह आदमी भी है जो दिन भर खिड़कियाँ बंद करके पंखों के नीचे छिपा हुआ था और अब रात में उसकी सेज बाहर चाँदनी में लगायी गयी है. भ्रम तो शायद उसे भी होता होगा कि वह चाँदनी के मज़े ले रहा है, लेकिन सच पूछिये तो वह खुशबूदार फूलों के रस में रात दिन सड़ रहा है.


उपवास और संयम ये आत्महत्या के साधन नही हैं. भोजन का असली स्वाद उसी को मिलता है जो कुछ दिन बिना खाए भी रह सकता है. 'त्यक्तेन भुंजीथाः', जीवन का भोग त्याग से करो, ये केवल परमार्थ का उपदेश नही है, क्योंकि सयम से भोग करने पर जीवन से जो आनद प्राप्त होता है, वह नीरा भोगी बनकर भोगने से नही मिल पाता।


बड़ी चीज़ें बड़े संकटों में विकास पाती हैं, बड़ी हस्तियां बड़ी मुसीबतों में पलकर दुनिया पर कब्ज़ा करती हैं.

हिम्मत और जिंदगी के लेखक कौन है? - himmat aur jindagee ke lekhak kaun hai?

अकबर ने तेरह साल की उम्र में अपने बाप के दुश्मन को परास्त कर दिया था जिसका एक मात्र कारण यह था कि अकबर का जन्म रेगिस्तान में हुआ था, और वह भी उस समय, जब उसके बाप के पास एक कस्तूरी को छोड़ के और कोई दौलत नही थी .

महाभारत में देश के प्रायः अधिकाँश वीर कौरवों के पक्ष में थे. मगर फिर भी जीत पांडवों की हुई; क्योंकि उन्होंने लाक्षागृह की मुसीबत झेली थी, क्योंकि उन्होंने वनवास के जोखिम को पार किया था.


श्री विंस्टन चर्चिल ने कहा है कि ज़िन्दगी कि सबसे बड़ी सिफ़्फ़त हिम्मत है. आदमी के और सारे गुण उसके हिम्मती होने से ही पैदा होते हैं.

ज़िन्दगी की दो सूरते हैं. एक तो यह की आदमी बड़े से बड़े मकसद के लिए कोशिश करे, जगमगाती हुई जीतपर पंजा डालने के लिए हाथ बढ़ाये, और अगर असफलताएं कदम - कदम पर जोश की रौशनी के साथ अंधियाली का जाल बुन रही हों, तब भी वह पीछे को पाँव न हटाये।

दूसरी सूरत यह है कि उन गरीब आत्माओं का हमजोली बन जाए जो न तो बहुत अधिक सुख पाती हैं और न ही जिन्हे बहुत अधिक दुःख पाने का ही संयोग है, क्योंकि वे आत्माएं ऐसी गोधूलि में बसती हैं जहां न तो जीत हंसती है और न ही कभी हार के रोने की आवाज़ सुनाई पड़ती है. इस गोधूलि वाली दुनिया के लोग बंधे हुए घाट का पानी पीते हैं, वे ज़िन्दगी के साथ जुआ नही खेल सकते। और कौन कहता है कि पूरी ज़िन्दगी को दांव पे लगा देने में कोई आनंद नही है?

अगर रास्ता आगे ही आगे निकल रहा है तो फिर असली मज़ा तो पाँव बढ़ाते जाने में ही है.

साहस की ज़िन्दगी सबसे बड़ी ज़िन्दगी होती है. ऐसी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी पहचान यह है कि यह बिलकुल निडर, बिलकुल बेख़ौफ़ होती है. साहसी मनुष्य की पहली पहचान यह है कि वह इस बात की चिंता नही करता कि तमाशा देखने वाले लोग उसके बारे में क्या सोच रहे हैं. जनमत की उपेक्षा करके जीने वाला आदमी दुनिया की असली ताकत होता है और मनुष्यता को प्रकाश भी उसी आदमी से मिलता है. अड़ोस - पड़ोस को देख कर चलना, यह साधारण जीव का काम है. क्रान्ति करने वाले लोग अपने उद्देश्य की तुलना न तो पडोसी के उद्देश्य से करते हैं और न ही अपनी चाल को ही पडोसी की चाल देखकर मद्धिम बनाते हैं.


 साहसी मनुष्य उन सपनोँ मेँ भी रस लेता है, जिन सपनो का कोई व्यावहारिक अर्थ नहीँ है.

 साहसी मनुष्य सपने उधार नहीँ लेता, वह अपने विचारोँ में रमा हुआ अपनी ही किताब पढ़ता है.

 झुण्ड मेँ चलना और झुण्ड मेँ चरना, यह भैंस और भेड़ का काम है. सिंह तो बिल्कुल अकेला होने पर भी मगन रहता है.

 अर्नाल्ड बेनेट ने एक जगह लिखा है की जो आदमी यह महसूस करता है कि किसी महान निश्चय के समय वह साहस से काम नहीं ले सका, ज़िन्दगी की चुनौती को कबूल नहीं कर सका, वह सुखी नही हो सकता। बड़े मौके पर साहस नहीं दिखाने वाला आदमी बराबर अपनी आत्मा के भीतर एक आवाज़ सुनता रहता है, एक ऐसी आवाज़ जिसे वही सुन सकता है और जिसे वह रोक भी नही सकता। यह आवाज़ उसे बराबर कचोटती रहती है, "तुम साहस नही दिखा सके, तुम कायर की तरह भाग खड़े हुए."

 सांसारिक अर्थ में जिसे हम सुख कहते हैं, उसका न मिलना, फिर भी, इससे कहीं श्रेष्ठ है कि मरने के समय हम अपनी आत्मा से यह धिक्कार सुनें कि तुम में हिम्मत की कमी थी, कि तुम में साहस का अभाव था, कि तुम ठीक वक्त पर ज़िन्दगी से भाग खड़े हुए.

 ज़िन्दगी को ठीक से जीना हमेशा ही जोखिम झेलना है और जो आदमी सकुशल जीने के लिए जोखिम का हर जगह पर एक घेरा डालता है, वह अंततः अपने ही घेरों के बीच कैद हो जाता है और ज़िन्दगी का कोई मज़ा उसे नहीं मिल पाता, क्योंकि जोखिम से बचने की कोशिश में, असल में, उसने ज़िन्दगी को ही आने में रोक रखा है.

 ज़िन्दगी से, अंत में, हम उतना ही पाते हैं जितनी कि उसमें पूंजी लगाते हैं. यह पूंजी लगाना ज़िन्दगी के संकटों का सामना करना है, उसके उस पन्ने को उलट कर पढ़ना है जिसके सभी अक्षर फूलों से ही नहीं, कुछ अंगारों से भी लिखे गए हैं.

 ज़िन्दगी का भेद कुछ उसे ही मालुम है जो यह जानकार चलता है कि ज़िन्दगी कभी भी ख़त्म न होने वाली चीज़ है.

अरे! ओ जीवन के साधकों! अगर किनारे की मरी हुई सीपियों से ही तुम्हे संतोष हो जाये तो समुन्द्र के अंतराल में छिपे हुए मौक्तिक कोष को कौन बाहर लाएगा?

दुनिया में जितने भी मज़े बिखेरे गए हैं उनमें तुम्हारा भी हिस्सा है. वह चीज़ भी तुम्हारी हो सकती है जिसे तुम अपनी पहुँच के पार मान कर लौटे जा रहे हो.

कामना का आँचल छोटा मत करो, ज़िन्दगी के फल को दोनों हाथों से दबाकर निचोड़ो, रस की निर्झरी तुम्हारे बहाये भी बह सकती है.

हिम्मत और जिंदगी पाठ के लेखक कौन हैं?

उत्तर : लेखक रामधारी सिंह दिनकर जीने जीवन की साधकों को यह चुनौती दी है कि अगर किनारे की मरी हुई सीपियों से संतोष मिलता तो समुद्र अंतराल में छिपे हुए मौक्तिक कोष को कौन बाहर लाएगा ?

हिम्मत और जिंदगी पाठ से हमें क्या सीख मिलती है?

उत्तर: लेखक ने जिंदगी की दो सूरते बताई है एक तो यह है कि आदमी बड़े-से-बड़े मकसद के लिए कोशिश करता है और जगमगाती जीत को वह हासिल करना चाहते हैं। दूसरी सूरत यह है कि उन गरीब आत्माओं का हमजोली बन जाए जो न तो बहुत अधिक सुख पाते है और न उन्हें बहुत अधिक दुख पाने का संयोग है।

हिम्मत और जिंदगी क्या है?

आदमी के और सारे गुण उसके हिम्मती होने से ही पैदा होते हैं। ज़िन्दगी की दो सूरतें हैं । एक तो यह कि आदमी बड़े-से-बड़े मकसद के लिए कोशिश करे, जगमगाती हुई जीत पर पंजा डालने के लिए हाथ बढ़ाये, और अगर असफलताएँ कदम-कदम पर जोश की रोशनी के साथ अंधियाली का जाल बुन रही हों, तब भी वह पीछे को पावँ न हटाये।

1 लेखक ने जिंदगी की कौन सी दो सूरतें बताई हैं और उनमें से किसे बेहतर माना है?

जीवन में सूख प्राप्त न होना और मौके पर हिम्मत न दिखा पाना –इन दोनों में से लेखक ने किसे श्रेष्ठ माना है ? उत्तर: जीवन में सूख प्राप्त न होना और मौके पर हिम्मत न दिखा पाना –इन दोनों में से लेखक ने जीवन में सूख प्राप्त न होने को श्रेष्ठ माना है।