Students can access the CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi with Solutions and marking scheme Course B Set 1 will help students in understanding the difficulty level of the exam. CBSE Sample Papers for Class 10 Hindi Course B Set 1 with Solutionsनिर्धारित समय : 3 घंटे सामान्य निर्देश: खंड ‘अ’- वस्तुपरक प्रश्न (अंक 40) अपठित गद्यांश (अंक 10) प्रश्न 1. आज उसका क्षेत्र देश के कोने-कोने तक विस्तीर्ण हो गया है। इसी कारण प्रभात होते ही मनुष्य अपने इस विस्तृत समाज का ज्ञान प्राप्त करने के लिए बेचैन रहता है। इसकी जानकारी प्राप्त करने का सरल, सुलभ और सस्ता साधन है- समाचार-पत्र। समाचार-पत्रों के इतिहास से यही स्पष्ट होता है कि इसका जन्म सातवीं शताब्दी में चीन में हुआ था, पर इसका प्रारंभिक रूप इतना विकसित नहीं था। मुद्रण कला के आविष्कार के बाद सन 1609 में जर्मनी से सर्वप्रथम समाचार-पत्र प्रकाशित हुए। 1662 में ब्रिटेन ने भी इस ओर ध्यान दिया और समाचार-पत्रों का प्रकाशन आरंभ किया। भारत में इसका जन्म ब्रिटिश काल में हुआ। सन 1835 में यहाँ से सर्वप्रथम ‘इंडिया गजट’ प्रकाशित हुआ। तत्पश्चात इनकी संख्या बढ़ती गई। हिंदी का प्रथम समाचार-पत्र ‘उदंत मार्तंड’ नाम से प्रकाशित हुआ। समय एवं परिस्थितियों के साथ-साथ इनकी संख्या बढ़ती गई जिससे संख्या में वृद्धि हुई।। (i) ब्रिटेन में समाचार-पत्रों का प्रकाशन कब प्रारंभ हुआ? (ii) सबसे पहला समाचार-पत्र किस देश से प्रकाशित हुआ? (iii) हिंदी का प्रथम समाचार–पत्र किस नाम से प्रकाशित हुआ? (iv) अपने समाज की जानकारी प्राप्त करने के लिए किस साधन का प्रयोग किया जाता है? (v) समाचार-पत्रों का जन्म किस शताब्दी में हुआ? अथवा यह एक सर्वविदित तथ्य है कि मानवीय गुणों का अधिकाधिक विकास विपरीत परिस्थितियों में ही होता है। जीवन में सर्वत्र इस सत्य के उदाहरण भरे हुए हैं। कष्ट और पीड़ा आंतरिक वृत्तियों के परिशोधन के साथ ही एक ऐसी आंतरिक दृढ़ता को जन्म देते हैं जो मनुष्य को तप्त स्वर्ण की भाँति खरा बनाता है। विपत्तियों के पहाड़ से टकराकर उसका बल बढ़ता है। हृदय में ऐसी अद्भुत वृत्ति का जन्म होता है कि एक बार कष्टों से जूझकर वह फिर उनको खेल समझने लगता है। उसके हृदय में विपत्तियों को ठोकर मारकर अपना मार्ग बना लेने की वीरता उत्पन्न हो जाती है। मन की भाँति ही शरीर की दृढ़ता शारीरिक श्रम के द्वारा आती है। शारीरिक परिश्रम उसके शरीर को बलिष्ठ बनाता है। विपत्तियों में तप कर दृढ़ हुए शरीर की भाँति परिश्रम की अग्नि में तपकर शरीर का लोहा इस्पात बन (क) मा जाता है। एक शायर ने खूब कहा है कि ‘मुश्किलें इतनी पड़ी मुझ पर कि मंज़िल आसान हो गई’। सत्य से परिचित कराने के लिए जो कार्य कष्टों का आधिक्य करता है, शारीरिक दृढ़ता के लिए वही कार्य श्रम करता है। दोनों ही ऐसे हथौड़े हैं जो पीट-पीटकर शरीर और मन में इस्पाती दृढ़ता को जन्म देते हैं। (i) विपरीत परिस्थितियाँ कारण हैं (ii) मनुष्य को सोने जैसा शुद्ध बनाने में सहायक है (iii) विपत्तियों के बीच अपना मार्ग बना लेने की क्षमता कब उत्पन्न होती है? (iv) ‘लोहा इस्पात बन जाता है’ कथन का आशय है (v) गद्यांश का उचित शीर्षक होगा प्रश्न 2. यदि रोटी को बिना तवे की सहायता से सेंका जाए तो रोटी सिंक नहीं पाएगी बल्कि जल जाएगी। जिस प्रकार मनुष्य को रोटी बनाने के लिए तवे की ज़रूरत पड़ती है ठीक उसी प्रकार से ताकत का इस्तेमाल करने के लिए संयम की आवश्यकता होती है। जिस प्रकार तवा रोटी को जलने से बचाता है, रोटी को पकने में मदद करता है उसी प्रकार संयम ताकत का सही दिशा में प्रयोग करना सिखाता है। सृजन करने में मदद करता है। ताकत का आप जिस दिशा में प्रयोग करेंगे वह उसी दिशा मे रंग दिखाएगी किंतु इतना समझ लीजिए कि जिस प्रकार अग्नि को विनाशक बनाना आसान है, सृजनकर्ता बनाना कठिन है, उसी प्रकार ताकत के प्रयोग से विनाश करना आसान है लेकिन निर्माण करना अत्यंत मुश्किल। (i) समाज का सर्वाधिक शक्तिशाली वर्ग है (ii) अग्नि के दो रूपों से तात्पर्य है (iii) ताकत का सही इस्तेमाल करने के लिए आवश्यकता होती है (iv) ताकत के प्रयोग से आसान हो जाता है (v) गद्यांश का उचित शीर्षक होगा अथवा अपने इतिहास के अधिकांश कालों में भारत एक सांस्कृतिक इकाई होते हुए भी पारस्परिक यद्धों से जर्जर होता रहा। यहाँ के अनेक शासक अपने शासन-कौशल में धूर्त एवं असावधान थे। समय-समय पर यहाँ दुर्भिक्ष, बाढ़ तथा प्लेग के प्रकोप होते रहे जिससे हज़ारों व्यक्तियों की मृत्यु हुई। जन्मजात असमानता धर्मसंगत मानी गई। जिसके फलस्वरूप तथाकथित दबे-कुचले व्यक्तियों का जीवन अभिशाप बन गया। इन सबके होते हुए भी हमारा विचार है कि पुरातन संसार के किसी भी भाग में मनुष्य के मनुष्य से तथा मनुष्य के राज्य से ऐसे सुंदर एवं मानवीय संबंध नहीं रहे थे। किसी भी अन्य प्राचीन सभ्यता में गुलामों की संख्या इतनी कम नहीं रही, जितनी भारत में और न ही अर्थशास्त्र के समान किसी प्राचीन न्याय ग्रंथ ने मानवीय अधिकारों की इतनी सुरक्षा की। मनु के समान किसी अन्य प्राचीन स्मृतिकार ने युद्ध में न्याय के ऐसे उच्च आदर्शों की घोषणा भी नहीं की। प्राचीन भारत के युद्धों के इतिहास में कोई भी ऐसी कहानी नहीं हैं जिसमें नगर के नगर तलवार के घाट उतारे गए हों अथवा शांतिप्रिय नागरिकों का सामूहिक वध किया गया हो। असीरिया के बादशाहों की भयंकर क्रूरता जिसमें वे अपने बंदियों की खालें तक खिंचवा लेते थे। प्राचीन काल में पूर्णतः अप्राप्य है निसंदेह कहीं-कहीं क्रूरता एवं कठोरतापूर्वक व्यवहार था परंतु अन्य प्रारंभिक मानवीयता है। (i) एक सांस्कृतिक इकाई होते हुए भी भारत के इतिहास की क्या विशेषता रही है? (ii) जन्मजात असमानता को धर्मसंगत मानने से नीचे कुल के व्यक्तियों का जीवन कैसा हो गया? (iii) अर्थशास्त्र क्या है? (iv) प्राचीन भारत में क्या अप्राप्य है? (v) हमारी प्राचीन सभ्यता की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता है व्यावहारिक व्याकरण (अंक 16) प्रश्न 3. (i) ‘प्यास का मारा कौआ घड़े पर बैठ गया।’ वाक्य में रेखांकित पदबंध है (ii) निम्नलिखित में से कौन–सा रेखांकित पदबंध संज्ञा पदबंध है? (iii) दिए गए विकल्पों में से सर्वनाम पदबंध कौन-सा है? (iv) ‘हमारा बगीचा इस सड़क से उस सड़क तक फैला है।’ वाक्य में रेखांकित पदबंध है (v) ‘सत्य की राह पर चलने वाले व्यक्ति देश का गौरव होते हैं।’ वाक्य में रेखांकित पदबंध है प्रश्न 4. (i) ‘जैसा करोगे वैसा भरोगे’- रचना के आधार पर वाक्य भेद है (ii) निम्नलिखित वाक्यों में संयुक्त वाक्य है (iii) ‘वह आया था परंतु मैं न मिल सका।’- रचना के आधार पर वाक्य भेद है (iv) निम्नलिखित वाक्यों में सरल वाक्य है (v) निम्नलिखित वाक्यों में मिश्र वाक्य है प्रश्न 5. (ii) निम्नलिखित में से कौन-सा समस्तपद द्वंद्व समास है? (iii) किस समस्तपद में अव्ययीभाव समास है? (iv) ‘हवनसामग्री’ किस समस्तपद का विग्रह है? (v) कर्मधारय समास है प्रश्न 6. (i) उससे सावधान रहना है वह तो ……… है। उपयुक्त मुहावरे से वाक्य पूरा करें। (ii) ‘आँखें फोड़ना’ मुहावरे का अर्थ है( (iii) रीमा परीक्षा में इतने अंक पाकर ………..”। उपयुक्त मुहावरे से रिक्त स्थान पूर्ण करें। (iv) ‘बाट जोहना’ मुहावरे का अर्थ है पाठ्यपुस्तक (अंक 14) प्रश्न 7. उसी उदार की कथा सरस्वती बखानती, तथा उसी उदार को समस्त सृष्टि पूजती। (i) धरा कैसे व्यक्तियों को पाकर स्वयं को धन्य मानती (ii) अखंड आत्मभाव का अर्थ है (iii) कवि ने सच्चा मनुष्य किसे कहा है? (iv) ‘कृतार्थ’ का संधि-विच्छेद है प्रश्न 8. संसार में अनेक राष्ट्र अंग्रेज़ों का आधिपत्य स्वीकार नहीं करते, बिलकुल स्वाधीन हैं। रावण चक्रवर्ती राजा था, संसार के सभी महीप उसे कर देते थे। बड़े-बड़े देवता उसकी गुलामी करते थे। आग और पानी के देवता भी उसके दास थे, मगर उसका अंत क्या हुआ? घमंड ने उसका नामो-निशान तक मिटा दिया, कोई उसे एक चुल्लू भर पानी देने वाला भी ना बचा। आदमी और जो कुकर्म चाहे करे पर अभिमान ना करे, इतराए नहीं। अभिमान किया और दीन दुनिया दोनों से गया। (i) भूमंडल का स्वामी कौन था? (ii) लेखक के भाई ने असल चीज़ किसे बताया? (iii) अंग्रेज़ चक्रवर्ती क्यों नहीं बन पाए? (iv) मनुष्य को भूल कर भी क्या नहीं करना चाहिए? (v) रावण के विनाश का कारण क्या था? प्रश्न 9. वक्त मुसीबत में उसे स्मरण करते और वह भागा-भागा वहाँ पहुँच जाता। दूसरे गाँवों में भी पर्व-त्योहारों के समय उसे विशेष रूप से आमंत्रित किया जाता। उसका व्यक्तित्व तो आकर्षक था ही, साथ ही आत्मीय स्वभाव की वजह से लोग उसके करीब रहना चाहते। पारंपरिक पोशाक के साथ वह अपनी कमर में सदैव एक लकड़ी की तलवार बाँधे रहता। लोगों का मत था, बावजूद लकड़ी की होने पर तलवार में अद्भुत दैवीय शक्ति थी। तताँरा अपनी तलवार को कभी अलग न होने देता। उसका दूसरों के सामने उपयोग भी न करता। किंतु उसके चर्चित साहसिक कारनामों के कारण लोग-बाग तलवार में अद्भुत शक्ति का होना मानते थे। तताँरा की तलवार एक विलक्षण रहस्य थी। (i) निकोबारी तताँरा को प्यार क्यों करते थे? (ii) तताँरा के विषय में सही है (iii) तताँरा की तलवार किसकी थी? (iv) लोगों के अनुसार किसमें अद्भुत दैवीय शक्ति थी? (v) लोग-बाग तताँरा की तलवार में अद्भुत शक्ति का होना क्यों मानते थे? खंड ‘ब’- वर्णनात्मक प्रश्न (अंक 40) मार पाठ्यपुस्तक एवं पूरक पाठ्यपुस्तक (अंक 14) प्रश्न 10. (क) बड़े भाई साहब के अनुसार जीवन की समझ कैसे आती है? (ख) गाँव में पशु पर्व का आयोजन होता था। इसमें हृष्ट-पुष्ट पशुओं का प्रदर्शन तो होता ही था। साथ-साथ पशुओं से युवकों की शक्ति-परीक्षा की प्रतियोगिता भी होती थी। इसके अतिरिक्त, नृत्य-संगीत और भोजन का भी आयोजन होता था। (ग) मीरा ने कृष्ण से अपनी सहायता करने का आग्रह इसलिए किया क्योंकि वे मानती हैं कि उनके आराध्य श्रीकृष्ण भक्त-वत्सल हैं। वे भक्तों की एक पुकार पर उनका उद्धार करने के लिए दौड़े चले आते हैं। भक्तों के प्रति इसी असीम प्रेम के कारण उन्होंने द्रौपदी, प्रह्लाद और गजराज के कष्टों को दूर किया। उसी प्रकार मीरा मानती हैं कि वह उनकी अनन्य दासी है इस नाते प्रभु उसके भी कष्टों को दूर करें। प्रश्न 11. प्रश्न 12. (ख) पी०टी० अध्यापक बहुत सख्त व अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे। विद्यालय में वे जरा-सी गलती होने पर विद्यार्थियों की चमड़ी उधेड़ देते थे। विद्यालय की प्रार्थना सभा में वे बच्चों को पंक्तिबद्ध खड़ा करते थे और यदि कोई बच्चा थोड़ी-सी भी शरारत करता, तो उसकी खाल खींच लेते थे। स्काउट परेड के आयोजन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती थी। बच्चों को अपने मार्गदर्शन में कुशलतापूर्वक परेड करवाते थे और परेड के समय बच्चों को ‘शाबाशी’ भी देते थे इसलिए बच्चों को उनकी यही शाबाशी फौज के तमगों-सी लगती थी और कुछ समय केलिए उनके मन में पी०टी० साहब के प्रति आदर का भाव जाग जाता था। (ग) हरिहर काका के मामले में गाँव के लोगों के दो वर्ग बन गए थे। दोनों ही पक्ष के लोगों की अपनी-अपनी राय थी। आधे लोग परिवार वालों के पक्ष में थे। उनका कहना था कि काका की ज़मीन पर हक़ तो उनके परिवार वालों का बनता है। काका को अपनी ज़मीन-जायदाद अपने भाइयों के नाम लिख देनी चाहिए, ऐसा न करना अन्याय होगा। दूसरे पक्ष के लोगों का मानना था कि महंत हरिहर की ज़मीन उनको मोक्ष दिलाने के लिए लेना चाहता है। काका को अपनी ज़मीन ठाकुर जी के नाम लिख देनी चाहिए। इससे उनका नाम और यश भी फैलेगा और उन्हें सीधे बैकुंठ की प्राप्ति होगी। इस प्रकार जितने मुँह थे उतनी बातें होने लगीं। प्रत्येक का अपना मत था। इन सबका एक कारण था कि हरिहर काका विधुर थे और उनकी अपनी कोई संतान न थी जो उनका उत्तराधिकारी बनता। पंद्रह बीघे ज़मीन के कारण इन सबका लालच स्वाभाविक था। लेखन (अंक 26) प्रश्न 13.
(ख) साक्षरता अभियान
(ग) अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते कदम
उत्तर इसे सामाजिक संतुलन के लिए खतरा मानते हुए लिंग अनुपात में सुधार करना अति आवश्यक हो गया। केंद्रीय सरकार के महिला एवं बाल विकास, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण तथा मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पहल पर देश के सभी 640 जिलों में से निम्न लिंगानुपात वाले 100 जिलों का चयन कर प्रधानमंत्री ने 22.01.2015 को हरियाणा के पानीपत से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरुआत की। बाद में 100 जिलों को 161 जिलों तक बढ़ाया गया ताकि भ्रूण-हत्या पर रोकथाम, बालिकाओं की सुरक्षा व समृद्धि तथा उनकी शिक्षा में भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। इसके लिए वर्ष 2014 में ‘सुकन्या समृद्धि योजना’ की भी शुरुआत की गई। यह योजना मूलत: 10 वर्ष तक की बालिकाओं के लिए है। इसके अंतर्गत बालिका के खाते में एक वित्तीय वर्ष में कम से कम एक हज़ार और अधिक से अधिक डेढ़ लाख रुपये या इसके बीच की कितनी भी रकम जमा कर सकते हैं। यह पैसा खाता खुलने के 14 साल तक जमा करना पड़ता है। परंतु खाता बेटी के 21 वर्ष के होने पर ही मैच्योर होता है। हालाँकि बेटी के 18 साल के होने पर आधा पैसा निकलवा सकते हैं। इस योजना के अंतर्गत मूलधन पर प्रतिवर्ष 9.1 फीसदी ब्याज मिलता रहेगा। इसी प्रकार की योजनाओं के माध्यम से भ्रूण-हत्या पर लगाम लगाकर, बालिकाओं की सुरक्षा व समृद्धि पर ध्यान देकर तथा लड़कियों की शिक्षा पर ध्यान देकर हम देश की नारी का सम्मान करते हुए नए भारत का निर्माण कर सकते हैं। योजना लाग करने के अच्छे परिणाम मिल रहे हैं। जहाँ एक ओर कन्याओं को आर्थिक लाभ मिलने से बेहतरी हुई है वहीं दूसरी ओर बालिकाओं के लिंग अनुपात में भी (ख) साक्षरता अभियान यह विश्व की कुल साक्षर आबादी की 85 प्रतिशत दर से बहुत कम है। भारत में केरल राज्य 94 प्रतिशत पढ़ी-लिखी जनता के साथ सबसे ऊपर तथा बिहार 64 प्रतिशत साक्षरता दर के साथ सबसे नीचे है। यूनेस्को के अनुसार भारत पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा अनपढ़ों का देश है। इस निरक्षरता का मुख्य कारण निर्धनता है। निर्धन व अशिक्षित माँ-बाप जो जीवन-यापन की मूलभूत आवश्यकताओं से भी वंचित हैं, अपने बच्चों को या तो विद्यालय में प्रवेश नहीं दिलवाते या फिर बच्चे बीच में ही विद्यालय छोड़ जाते हैं। जागरूकता न होने के कारण कमजोर वर्ग सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को अपना नहीं पाता और शिक्षा पर खर्च होने वाली अपार धनराशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती है। हालाँकि जब से भारत सरकार ने शिक्षा का अधिकार लागू किया तब से भारत की साक्षरता दर में काफी सकारात्मक परिणाम देखने को मिले हैं। सन 1978 में प्रौढ़ शिक्षा अभियान के तहत 15 वर्ष से 35 वर्ष के नागरिकों को शिक्षित करने की योजना थी तथा इसके बाद भी कई सरकारी योजनाएँ बनीं। समाजसेवी संस्थाओं ने भी इस क्षेत्र में काफी काम किया, परंतु पाठ्यक्रमों का अरुचिकर होने या किसी अन्य त्रुटियों की वजह से ये योजनाएँ फलीभूत नहीं हो पाईं। भ्रष्ट प्रशासन की वजह से यह समस्या और बढ़ गई। निष्कर्षतः हम कह सकते हैं किप्रशासन व समाज दोनों के योगदान से ही इस समस्या से निपटा जा सकता है। (ग) अंतरिक्ष में भारत के बढ़ते कदम अंतरिक्ष की खोज में अमेरिका, रूस तथा चीन ने काफी सफलताएँ प्राप्त की हैं। 1970 के दशक में भारत ने भी अपने कदम इस ओर बढ़ाए तथा सर्वप्रथम 19 अप्रैल 1974 को प्रथम भारतीय उपग्रह ‘आर्यभट्ट’ को सोवियत रूस की भूमि से अंतरिक्ष में छोड़ा गया। हालाँकि कुछ दिनों बाद ‘आर्यभट्ट’ ने अपना काम करना बंद कर दिया था, फिर भी यह किसी बड़ी उपलब्धि से कम न था। इसके बाद दूसरा उपग्रह ‘भास्कर’ अंतरिक्ष में छोड़ा गया। फिर 1980 में प्रथम स्वदेशी प्रक्षेपण यान एस.एल.वी. 3 ने ‘रोहिणी’ नामक उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया। इसके बाद ‘रोहिणी-2’ को अंतरिक्ष में भेजा तथा दो अन्य प्रक्षेपण यान (रॉकेट) विकसित किए, जिससे भारत उपग्रह प्रक्षेपण तकनीक वाले देशों की सूची अर्थात अंतरिक्ष क्लब में शामिल हो गया। भारत ने कई दिशाओं में कदम बढ़ाते हुए ठोस ईंधन वाले एस.एल.वी. यानों के साथ-साथ तरल ईंधन वाले यानों का निर्माण किया। वहीं दूसरी ओर स्कवाड्रन लीडर राकेश शर्मा सोवियत रूस की मदद से पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री बने। कई उपग्रह अंतरिक्ष में इसी प्रकार भेजने के बाद बड़ी सफलता तब मिली जब 22.10.2008 को चंद्रयान को अंतरिक्ष में भेजा गया। फिर 24.09.2014 को मंगलयान पहले ही प्रयास में मंगल ग्रह की यात्रा करने में सफल रहा। इसके बाद भारत ने नया इतिहास रचते हुए 15.02.2017 के रिकार्ड 104 (भारत के 03 तथा विदेशों के 101) उपग्रह हमारे देश के श्रीहरिकोटा से पी.एस.एल.वी-सी 37 प्रक्षेपण यान से अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक भेजे गए। अभी हाल ही में 22.07.2019 को चंद्रयान-2 अंतरिक्ष में भेजा गया, जिसे 06.09.2019 को चंद्रमा पर उतरकर वहाँ की सतह तथा वायुमंडल संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी को पृथ्वी पर भेजना था किंतु अफ़सोस कि यह अभियान असफल रहा। चंद्रयान पर उतरने के बाद कंट्रोल रूम से संपर्क टूट गया। फिर भी हमारा देश इस समय इस क्षेत्र में अग्रणी राष्ट्रों की सूची में शामिल है। एक समय था जब अपना देश 1975 में आर्यभट्ट उपग्रह का 5 करोड़ रुपये का खर्च सहन नहीं कर पा रहा था। अतः इसे अन्य देश से प्रक्षेपित किया था किंतु आज दूसरे देशों के उपग्रह अंतरिक्ष में सफलतापूर्वक प्रक्षेपित कर करोड़ों डालर की मूल्यवान विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहा है। प्रश्न 14. अथवा परीक्षा भवन प्रश्न 15. अथवा बालभवन, आई०टी०ओ०, नई दिल्ली दिनांक : 4 मई, 20xx कार्यशाला आयोजन – 1 जून से 15 जून प्रश्न 16. प्रश्न 17. अब मूर्तिकार जल्दी ही अपने औज़ार लेकर पत्थर को काटने में जुट गया। जैसे ही मूर्तिकार ने पहला वार किया, उसे एहसास हुआ कि पत्थर बहुत ही कठोर है। मूर्तिकार ने एक बार फिर से पूरे जोश के साथ प्रहार किया लेकिन पत्थर टस से मस भी नहीं हुआ। अब तो मूर्तिकार का पसीना छूट गया। वो लगातार हथौड़े से प्रहार करता रहा लेकिन पत्थर नहीं टूटा। उसने कई प्रयास किए लेकिन पत्थर तोड़ने में नाकाम रहा। अगले दिन जब पुजारी आए तो मूर्तिकार ने भगवान की मूर्ति बनाने से मना कर दिया और सारी बात बताई। पुजारी जी ने दुखी मन से पत्थर वापस उठाए और गाँव के ही एक छोटे मूर्तिकार को वो पत्थर मूर्ति बनाने के लिए दे दिया। अब मूर्तिकार ने अपने औज़ार उठाया और पत्थर काटने में जुट गया, जैसे ही उसने पहला हथौड़ा मारा पत्थर टूट गया क्योंकि पत्थर पहले मूर्तिकार की चोटों से काफ़ी कमज़ोर हो गया था। पुजारी यह देखकर बहुत खुश हुआ और देखते ही देखते मूर्तिकार ने भगवान शिव की बहुत सुंदर मूर्ति बना डाली। पुजारी जी मन ही मन पहले मूर्तिकार की दशा सोचकर मुस्कुराए कि उस मूर्तिकार ने कई प्रहार किए और थक गया, काश उसने एक आखिरी प्रहार भी किया होता तो वो सफल हो गया होता। अथवा एक नगर में एक बहुत ही अमीर आदमी रहता था, उस आदमी ने अपना सारा जीवन पैसे कमाने में लगा दिया। उसके पास इतना धन था कि वह उस नगर को भी खरीद सकता था, लेकिन उसने अपने संपूर्ण जीवन में कभी किसी की मदद तक नहीं की। इतना धन होने के बावजूद, उसने अपने लिए भी उस धन का उपयोग नहीं किया, न कभी अपनी पसंद के कपड़े, भोजन एवं अन्य इच्छा कि पूर्ति तक की। वह अपने जीवन में केवल पैसे कमाने में व्यस्त रहा। वह पैसा कमाने में इतना व्यस्त एवं मस्त हो गया कि उसे उसके बुढ़ापे का भी पता नहीं चला, और वह जीवन के आखिरी पड़ाव पर पहुँच गया। इस तरह उसके जीवन का अंतिम दिन भी नज़दीक आ गया और यमराज उसके प्राण लेने धरती पर आए, जिसे देखकर वह आदमी डर गया। यमराज ने कहा, “अब तेरे जीवन का अंतिम समय आ गया है, और मैं तुझे अपने साथ ले जाने आया हूँ।” सुनकर वह आदमी बोला- “प्रभु अभी तक तो मैंने अपना जीवन जिया भी नहीं, मैं तो अभी तक अपने काम में व्यस्त था अतः मुझे अपनी कमाई हुई धन-दौलत का उपयोग करने के लिए समय चाहिए।” यमराज ने उत्तर दिया, “मैं तुम्हें और समय नहीं दे सकता, तुम्हारे जीवन के दिन समाप्त हो गए हैं, और अब दिनों को और नहीं बढ़ाया जा सकता। समय किसी के लिए नहीं रुकता। |