जर्मनी में हिटलर के उदय के मुख्य कारण क्या थे? - jarmanee mein hitalar ke uday ke mukhy kaaran kya the?

नाजीवाद क्या है ? जर्मनी में नाजीवाद के उदय के कारण (Causes of rise of Nazism in Germany in hindi), जर्मनी में नाजीवाद के उत्थान के कारण आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ दिए गए हैं।

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नाजीवाद क्या है ?

नाजीवाद, जर्मनी के तानाशाह एडोल्फ हिटलर की एक विचारधारा थी तथा एडोल्फ हिटलर को नाजीवाद का संस्थापक कहा जाता है। नाजीवाद सरकार एवं आम जनता के मध्य एक नए रिश्ते के पक्ष में था जिसकी शुरुआत जर्मनी में हुई थी। कट्टर जर्मन राष्ट्रवाद, देशप्रेम, विदेशी विरोधी, आर्य एवं जर्मन हित नाजीवाद की विचारधारा के मूल अंग हैं। अर्थात नाजीवाद फासीवाद का एक उग्र रूप है जिसका उद्देश्य राष्ट्रवाद को सर्वोच्चता प्रदान करना है।

जर्मनी में नाजीवाद के उदय के कारण (Causes of rise of Nazism in Germany in hindi) –

बीसवीं शताब्दी के शुरुआती सालों में जर्मनी एक ताकतवर साम्राज्य हुआ करता था। जर्मनी ने ऑस्ट्रियाई साम्राज्य के साथ मिलकर मित्र रष्ट्रों के विरुद्ध पहला विश्वयुद्ध वर्ष 1914-1918 लड़ा था। विश्व के सभी राष्ट्र किसी न किसी उद्देश्य से इस युद्ध में कूद पड़े परन्तु वे इस बात से परिचित नहीं थे की यह युद्ध संपूर्ण यूरोप को आर्थिक रूप से निचोड़ देगा। प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद इस पार्टी की स्थापना हुई जिसका विचार था की जर्मनी ने वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर करके बहुत बड़ी गलती कर दी थी।

जर्मनी में नाजीवाद के उदय का मुख्य कारण जर्मनी की आर्थिक मंदी, वाइमर गणतंत्र की असफलता, साम्यवाद का डर, यहूदियों की विरोधी नीति, जर्मनी के संविधान की कमियां और हिटलर का व्यक्तित्व ये सभी कारण थे जिनसे जर्मनी में नाजीवाद का उदय हुआ।

जर्मनी द्वारा वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर किए गए। जर्मनी के लिए वर्साय की संधि वास्तव में अन्याय पूर्ण एवं द्वेष से भरी हुई थी। वर्ष 1919 में पेरिस शांति सम्मेलन हुआ जिसमें विभिन्न देशों के मध्य संधि पर हस्ताक्षर किए गए। इन सभी संधियों में वर्साय की संधि सबसे विवादास्पद संधि थी। वर्साय की संधि की शर्तें इतनी अन्यायपूर्ण या कठोर थी कि कई इतिहासकारों ने इसे आरोपित संधि की संज्ञा दी। वर्साय की संधि के माध्यम से जर्मनी पर अनेक मुश्किल से मुश्किल प्रतिबंध लगाए गए। जर्मनी में इस संधि के द्वारा इतना अधिक जुर्माना लगाया गया कि जर्मनी पूरी तरीके से कमजोर पड़ गया। जर्मनी की इस बुरी स्थिति के कारण ही यहाँ नाजीवाद का उदय हुआ।

जर्मनी में वर्साय की संधि के द्वारा लगाए गए प्रतिबंध निम्नलिखित है –

  • जर्मनी को सीमित सेना आदेश दिया गया।
  • जर्मनी की नौसेना पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • जर्मनी द्वारा जीते गए क्षेत्र वापस ले लिए गए।
  • जर्मनी के खुद के देश के कुछ क्षेत्रों को लीग ऑफ नेशंस के हवाले कर दिया गया।
  • जर्मनी से जुर्माने के रूप में 650 करोड़ पॉन्ड की भारी-भरकम राशि का जुर्माना लगाया गया था।

जर्मनी में नाजीवाद के उदय के लिए हिटलर के आकर्षक कार्यक्रम ने सबसे अधिक योगदान दिया था क्योंकि हिटलर ने अपने कार्यक्रमों में वर्साय की संधि के प्रतिबंधों दूर करना, जर्मनी के सभी राज्यों को मजबूती प्रदान करना तथा प्रथम विश्व युद्ध के बाद जर्मनी के सभी अधिकारों एवं सम्मान को वहां के नागरिकों को वापस लाने का विश्वास दिलाया। हिटलर के इन प्रयासों ने जर्मनी के नागरिकों के ह्रदय में इस नई उम्मीद जाग्रत की और नागरिकों ने हिटलर का समर्थन करते हुए उसके नाजीवाद के सभी कार्यक्रमों में उसका साथ दिया और इस तरह जर्मनी में नाजीवाद का उदय हुआ।

वर्ष 1933 में हिटलर सत्ता में आया और जर्मनी में तानाशाही की स्थापना हुई। तानाशाह बनने के बाद हिटलर ने आस-पास के सभी राष्ट्रों को धमकाना शुरू कर दिया और अपनी नीति से वह छोटे देशों को खरतरनाक बनाता रहा। हिटलर ने उन सभी कार्यों को करना आरम्भ किया जो वर्साय की संधि के खिलाफ थे उसने अपनी सेना को हमले के लिए तैयार किया और चेकोस्लोवाकिया से शुरुआत करने के बाद पोलैंड, नार्वे, डेनमार्क और फ़्रांस को जीत लिया। हिटलर ने लगभग सभी देशों को जीत लिया था परन्तु उसकी हार तब हुई जब उसने रूस पर हमला करने का निर्णय लिया। रूस से हारने के बाद हिटलर के तानाशाह और नाजीवाद का पतन हो गया।

22 जून 1941 को नाज़ी जर्मनी ने ऑपरेशन बारबरोसा शुरू किया था, जो सोवियत संघ के ख़िलाफ़ एक बड़ी आक्रामक कार्रवाई थी. उस समय सोवियत संघ की कमान स्टालिन के हाथों में थी.

ये इतिहास का सबसे बड़ा सैनिक आक्रमण था. ये एक जोख़िम भरा दाँव भी था, जो उस समय एडोल्फ़ हिटलर ने दूसरे विश्व युद्ध को निर्णायक रूप से अपने पक्ष में करने की कोशिश में खेला था.

लेकिन चीज़ें वैसी नहीं हुईं, जैसी जर्मनी के नेता हिटलर चाहते थे. इतिहासकार इस ऑपरेशन की नाकामी को दूसरे विश्व युद्ध का एक टर्निंग प्वाइंट और इसे जर्मन श्रेष्ठता के अंत की शुरुआत भी मानते हैं.

ऑपरेशन बारबरोसा ने दो अधिनायकवादी महाशक्तियों के बीच छह महीने तक चली भीषण जंग शुरू की. ये एक ऐसी प्रतियोगिता थी, जो दूसरे विश्व युद्ध का निर्णायक नतीजा लाने वाली थी.

ऑपरेशन बारबरोसा का नाम 12वीं शताब्दी के पवित्र रोमन सम्राट फ़्रेडरिक बारबरोसा के नाम पर शुरू किया गया था. सोवियत संघ पर जर्मनी के आक्रमण के साथ ही वर्ष 1939 में हुआ जर्मन-सोवियत समझौता भी टूट गया.

धुरी देशों की सेनाओं ने 30 लाख लोगों को तीन ग्रुपों में बाँट कर लेनिनग्राद, कीएफ़ और मॉस्को को निशाना बनाया.

सोवियत सेना इस औचक हमले से सन्न रह गई और पहली लड़ाई में उसे भारी नुक़सान हुआ. माना जाता है कि कई लाख लोगों की मौत हुई. कीएफ़, स्मोलेन्स्क और वियाज़मा जैसे शहरों को नाज़ियों ने फ़तह कर लिया.

हालाँकि इन्हें भी बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ी. धीरे-धीरे सोवियत रक्षा में सुधार और रूस की कड़ाके की ठंड के कारण दिसंबर में जर्मनी की पैदल सेना का आगे बढ़ना रुक गया.

हालाँकि जर्मन सेना उस समय मॉस्को तक पहुँच गई थी. इस बीच हिटलर ने ये फ़ैसला किया कि जर्मनी की सेना लेनिनग्राद में आक्रामक कार्रवाई नहीं बल्कि लंबी घेराबंदी करेगी.

हालाँकि सोवियत सेना शुरुआती हमलों से बच गई, लेकिन जर्मनी की सेना ने 1942 में नया हमला शुरू किया और सोवियत संघ के इलाक़े में अंदर तक घुस आईं. वर्ष 1942 और 1943 के बीच स्टालिनग्राद की लड़ाई ने स्थितियाँ बदल दीं और आख़िरकार जर्मन सेनाओं को पीछे हटना पड़ा.

जर्मन हमलों के साथ सोवियत संघ के नागरिकों को व्यापक स्तर पर प्रताड़ित किया गया. इनमें सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए यहूदी. 10 लाख से अधिक यहूदी मारे गए. हिटलर ने यहूदियों का संपूर्ण विनाश करने की योजना बनाई थी.

अब उस ऑपरेशन के क़रीब 80 साल बाद, सैनिक इतिहास और दूसरे विश्व युद्ध के विशेषज्ञ ब्रितानी इतिहासकार एंटनी बीवर ने बीबीसी हिस्ट्री के 10 सवालों के जवाब दिए हैं और हिटलर की बड़ी ग़लतियों को समझने की कोशिश की है.

1. क्या हिटलर के पास सोवियत संघ पर हमला करने की दीर्घकालिक योजना थी?

एडोल्फ़ हिटलर ने बड़े व्यवसायों के प्रति तेज़ी से अपना दृष्टिकोण बदला, लेकिन मुझे लगता है कि सोवियत संघ पर उनका आक्रमण कुछ ऐसा है, जो पहले विश्व युद्ध के अंत तक जाता है.

बोल्शेविज़्म को लेकर उनकी घृणा अंदर से बनी हुई थी. लेकिन ये वर्ष 1918 में यूक्रेन पर जर्मनी के क़ब्ज़े के कारण और इस धारणा से भी प्रभावित हुई कि भविष्य में बोल्शेविज़्म और पनप सकता है.

एक सोच ये भी थी कि इस क्षेत्र पर नियंत्रण करने से ब्रितानी नाकेबंदी को रोका जा सकता है, जिसके कारण प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी में सूखा पड़ गया था. इसलिए ये एक रणनीतिक फ़ैसला तो था ही स्वाभाविक भी था.

वास्तविकता ये थी कि दिसंबर 1940 तक योजना पूरी तरह तैयार नहीं हुई थी. रोचक बात ये भी है कि हिटलर ने अपने जनरलों से सामने सोवियत संघ पर हमले को जायज़ ठहराते हुए ये कहा था कि ब्रिटेन को इस युद्ध से हटाने का यही एकमात्र रास्ता है.

अगर सोवियत संघ हार जाता है, तो ब्रिटेन के पास आत्मसमर्पण के अलावा कोई और चारा नहीं रहा. जो उस समय की स्थितियों का एक ख़ास विश्लेषण था.

2. क्या जर्मन-सोवियत समझौता हिटलर के लिए एक अस्थायी समाधान से अधिक था?

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23 अगस्त, 1939 को समझौते पर हस्ताक्षर के दौरान जोआचिम वॉन रिबेंट्रोप (बाएँ), स्टालिन और वियाचेस्लाव मोलोटोव (दाएँ)

ये जानबूझ कर किया गया था. हिटलर समझ गए थे कि उन्हें पश्चिमी गठबंधन को पहले हराना है.

और ये उनके असाधारण आत्मविश्वास को दिखाता है, ख़ासकर अगर कोई ये सोचता है कि उस समय फ़्रांसीसी सेना को सबसे शक्तिशाली समझा जाता था.

नाज़ियों और सोवियत संघ के बीच रिबेनत्रोप-मोलोतोव की संधि के कारण आधे से ज़्यादा यूरोप को दशकों तक दुख झेलना पड़ा.

स्टालिन को इसकी काफ़ी उम्मीद थी कि पूँजीवाद राष्ट्र और नाज़ी आपस में ख़ून-ख़राबा करके ख़त्म हो जाएँगे.

स्टालिन के लिए भी जर्मन-सोवियत समझौता एक ज़रूरत थी, क्योंकि उन्होंने हाल ही में अपनी रेड आर्मी को ख़त्म किया था और उन्हें भी जर्मनी के साथ किसी भी संभावित टकराव को रोकना था.

3. अक्सर इसकी आलोचना होती है कि जर्मनी ने हमला शुरू करने के लिए बड़ा इंतज़ार किया. क्या आप इससे सहमत हैं?

निसंदेह, ये सच है कि ऑपरेशन बारबरोसा काफ़ी देर से शुरू हुआ और इस बात को लेकर काफ़ी चर्चा होती है कि इसमें इतनी देरी क्यों हुई.

एक पुरानी धारणा ये है कि अप्रैल 1941 में ग्रीस पर हुए हमले के कारण इसे रोकना पड़ा था, लेकिन उस समय तक ये पता चल चुका था कि मुख्य कारण समय था.

1940-1941 के ठंड के दौरान ख़ूब बारिश हुई और इसके कारण दो समस्याएँ खड़ी हो गईं. पहली समस्या ये हुई कि जर्मन मिलिटरी एविएशन लुफ़्टवाफ़े का फ़ॉरवर्ड एयरफ़ील्ड पानी से पूरी तरह भर गया था और जब तक ये एयरफ़ील्ड सूख नहीं जाता, यहाँ विमानों की आवाजाही नहीं हो सकती थी.

दूसरी समस्या ये थी कि ख़राब मौसम के कारण पूर्वी फ़्रंट पर ट्रांसपोर्ट वाहनों की तैनाती में देरी हुई. एक और रोचक तथ्य ये था कि जर्मनी के मोटर ट्रांसपोर्ट डिविज़न के 80 फ़ीसदी लोग हारी हुई फ़्रांसीसी सेना से आए थे.

यही वजह थी कि स्टालिन फ़्रांसीसियों से नफ़रत करते थे. उन्होंने 1943 के तेहरान कॉन्फ़्रेंस में ये दलील दी थी कि उन्हें गद्दार और सहयोगियों के रूप में व्यवहार करना चाहिए. तथ्य ये कि उन्होंने अपने वाहनों को नष्ट नहीं किया, जब उन्होंने आत्मसमर्पण किया. और यही स्टालिन के लिए यही बात उनके ख़िलाफ़ काफ़ी गंभीर थी.

4. ये सबको पता है कि स्टालिन एक उन्मादी शख़्सियत थे. वे जर्मनी के हमले के बारे में इतनी चेतावनियों को कैसे नज़रअंदाज़ कर सकते थे?

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यूक्रेन में जर्मन सेना

यह इतिहास के सबसे बड़े विरोधाभासों में से एक है. हर चीज़ पर संदेह करने वाले स्टालिन हिटलर से धोखा खा गए. इस वजह से कई तरह की बातें उड़ीं, इनमें से एक में कहा गया कि स्टालिन जर्मनी पर पहले हमला करने की योजना बना रहे थे.

हालाँकि इस बात में कोई दम नहीं दिखता. दरअसल ये बात सोवियत संघ के 11 मई 1941 के आपात दस्तावेज़ पर आधारित है. इस दस्तावेज़ में नाज़ी हमले की योजना से वाक़िफ़ जनरल ज़ुखोव और अन्य लोगों ने संभावित जवाबी हमले पर विचार विमर्श किया था.

जिन बातों पर उन्होंने विचार किया था, उनमें से एक था पहले ही हमला कर देना, लेकिन स्टालिन की रेड आर्मी उस समय ऐसा करने की स्थिति में बिल्कुल नहीं थी. इनमें से एक समस्या ये भी थी कि उनके तोपखाने जिन ट्रैक्टरों से ले जाए जाते थे, वे फसलों की कटाई के लिए इस्तेमाल हो रहे थे.

लेकिन ये काफ़ी रोचक है कि कैसे स्टालिन ने हर चेतावनियों को ख़ारिज कर दिया. ये चेतावनी उन्हें सिर्फ़ ब्रिटेन से नहीं मिली थी, बल्कि उनके अपने राजनयिकों और जासूसों ने भी उन्हें सतर्क किया था. शायद इसकी व्याख्या ये है कि स्पैनिश गृह युद्ध से ही वे इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि विदेश में रहने वाले हर व्यक्ति भ्रष्ट और सोवियत विरोधी है.

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जर्मन सैनिकों पर हमले के बाद सोवियत सैनिक उनसे मिले सामानो की पड़ताल करते हुए

इसलिए जब उन्हें बर्लिन से सूचना मिली, तो उन्होंने इसकी अनदेखी की. यहाँ तक कि जब उन्हें जर्मन सैनिकों की एक छोटी डिक्शनरी भेजी गई, जिसमें 'मुझे अपने सांप्रदायिक फ़ॉर्म में ले चलो' जैसे भाव दर्ज थे. लेकिन स्टालिन पूरी तरह आश्वस्त थे कि जर्मनी के साथ लड़ाई को मजबूर करने के लिए ये अंग्रेज़ों की ओर से उकसावा था.

फिर भी यह उल्लेखनीय है कि स्टालिन ने हिटलर के इस आश्वासन को भी स्वीकार कर लिया था कि कई सैनिकों को ब्रिटिश बॉम्बर्स की ज़द से दूर पूर्व की ओर ले जाया जा रहा था. हालाँकि उस समय वे इतने कमज़ोर थे कि वे विरोधी सेना में सेंध लगा पाने में असमर्थ थे.

5. जर्मनी का उद्देश्य क्या था? क्या जर्मनी वाक़ई सोवियत संघ पर पूर्ण फ़तह करना चाहता था?

योजना ये थी कि अर्खंगेल से अस्त्रखान तक एए लाइन की ओर बढ़ा जाए. अगर ऐसा हो जाता तो जर्मन सैनिकों को मॉस्को और वोल्गा से आगे बढ़ने में मदद मिलती.

इसलिए जब स्टालिनग्राद की लड़ाई सामने आई, तो कई जर्मन सैनिकों ने ये सोचा कि सिर्फ़ इस शहर पर क़ब्ज़ा करने और वोल्गा तक पहुँचने से ही वे जंग जीत जाएँगे.

विचार ये था कि सोवियत संघ के सैनिक, जो आक्रमण की शुरुआत में बड़ी लड़ाई में बच गए थे, वो अलग-थलग रहेंगे और उन्हें बमबारी करके एक जगह घेर दिया जाएगा.

इस बीच, रूस और यूक्रेन के जीते गए इलाक़ों को जर्मन उपनिवेश और बस्तियों के लिए खोल दिया जाएगा. जर्मन हंगर प्लान के मुताबिक़ कई प्रमुख शहरों के लोग भूख से मर जाएँगे. ये भी आकलन किया गया था कि मरने वालों की संख्या तीन करोड़ 50 लाख होगी.

लेकिन ये पूरी परियोजना इस बात पर निर्भर थी कि एए लाइन पर तेज़ी से बढ़ा जाए और सबसे बड़ी बात ये कि बड़ी घेराबंदी से रेड आर्मी का पूरा ख़ात्मा कर दिया जाए.

इनमें से कुछ चीज़ें हुई भी. उदाहरण के लिए कीएफ़ मानव इतिहास में पकड़े गए क़ैदियों के मामले में दुनिया के सबसे बड़े युद्धों में से एक साबित हुआ.

6. क्या जर्मनी के पास सफलता का कोई मौक़ा था?

1941 के आख़िर में, घबराहट के एक क्षण में स्टालिन ने बुल्गारिया के राजदूत से कहा था कि उन्होंने सोचा था कि शायद मॉस्को पर क़ब्ज़ा कर लिया जाएगा और सब कुछ बिखर जाएगा.

लेकिन राजदूत स्टैमेनोव ने जवाब दिया, "वो सनकी हैं और अगर वो पीछे हटते हुए यूराल्स की ओर चले जाएँगे, तो उनकी जीत होगी."

मेरे लिए, ये एक अहम बात की ओर इशारा करता है कि ऑपरेशन बारबरोसा क्यों विफल होने जा रहा था. देश के आकार को देखते हुए ये स्पष्ट था कि जर्मन सेना और उसके सहयोगी रोमानिया और हंगरी के पास इतने सैनिक नहीं थे कि वो इतने बड़े इलाक़े वाले देश को जीत सकें और उस पर क़ब्ज़ा कर सकें.

दूसरी बात ये कि हिटलर ने चीन पर जापानी कार्रवाई से कोई सबक नहीं सीखा था, जिसमें एक अत्यधिक मशीनी और तकनीकी रूप से बेहतर देश ने एक ऐसे देश पर हमला किया, जिसका आकार विशाल था.

इससे पता चला कि आप शुरू में शायद जीत सकते हैं, लेकिन हिटलर ने सोवियत संघ के ख़िलाफ़ जिस क्रूरता का इस्तेमाल किया था, उसके कारण होने वाले सदमा और आतंक उतना ही प्रतिरोध पैदा करता है, जितना आतंक और अराजकता करती है.

हिटलर ने कभी इस पर विचार नहीं किया. वो हमेशा इस मुहावरे का इस्तेमाल करते रहे कि- दरवाज़े पर लात मारिए तो पूरी संरचना गिर जाएगी. लेकिन उन्होंने सोवियत संघ के ज़्यादातर लोगों की देशभक्ति, उनकी उम्र और जंग जारी रखने की उनकी प्रतिबद्धता को कम करके आँका.

7. क्या ये कहना सही होगा कि स्टालिन सोवियत सुरक्षा की राह में रोड़ा थे?

ख़ासतौर से कीएफ़ की घेराबंदी से हटने की अनुमति न देने के कारण लाखों लोगों की जान गई. ये प्रतिरोध करने या मर जाने का आदेश था. इस आदेश में बदलाव की बहुत कम गुंज़ाइश थी.

मॉस्को की ओर पीछे हटने के अंतिम चरण में ही स्टालिन ने थोड़ी और छूट दी. यह ठीक भी था कि उन्होंने ऐसा किया, क्योंकि इसकी वजह से शहर को बचाने के लिए पर्याप्त सैनिकों को बचाया जा सका.

8. क्या हमले के शुरुआती चरणों में सोवियत शासन के पतन का कोई ख़तरा था?

सोवियत शासन के पतन के लिए किसी विद्रोह या ऐसा कुछ भी होने की कोई संभावना नहीं थी.

दरअसल सोवियत शासन की कोई ख़ास आलोचना भी नहीं थी, क्योंकि कोई ये नहीं जानता था कि वास्तव में हो क्या रहा है. उस समय लोगों का ग़ुस्सा जर्मनी और जर्मन-सोवियत समझौते को लेकर विश्वासघात पर था.

एक समय था जब कुछ सोवियत नेता उनसे मिलने आए थे, जब वे पूर्ण अवसाद में अपने कॉटेज में रह रहे थे.

स्टालिन ने जब सोवियत नेताओं को वहाँ आते देखा, तो उन्हें लगा कि वे उन्हें गिरफ़्तार करने आए हैं. लेकिन जल्द ही वे समझ गए कि वे उनकी ही तरह डरे हुए थे. उन्होंने स्टालिन को विश्वास दिलाया कि उन्हें आगे बढ़ना है.

9. मॉस्को की लड़ाई में रूस की सर्दी कितनी निर्णायक थी?

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रूस की सर्दी ने जर्मन सैनिकों को काफ़ी परेशान किया

इसमें कोई संदेह नहीं कि कड़कड़ाती सर्दी काफ़ी अहम थी.

उस समय ख़ास ठंड पड़ रही थी और कभी-कभी तो तापमान शून्य से 40 डिग्री तक नीचे चला जाता था. जर्मन इसके लिए तैयार नहीं थे और न ही उनके हथियार और कपड़े इस माहौल के माकूल थे.

उदाहरण के लिए जर्मन मशीनगन अक्सर जम जाते थे. सैनिकों को उस पर पेशाब करना पड़ता था ताकि उसे काम लायक बनाया जा सके.

पैंजर टैंक्स के ट्रैक काफ़ी संकीर्ण थे और इस कारण वे बर्फ़ में ठीक से नहीं चल पाते थे, जबकि सोवियत संघ के पास टी-34 टैंक थे और इस कारण उन्हें बढ़त मिल जाती थी.

रूस की कड़कड़ाती सर्दी ने जर्मनी की दुस्साहसी पैदल सेना के आगे बढ़ने की गति को धीमा कर दिया था. बारिश के कारण कीचड़ ने पहले ही जर्मनी के सैनिकों के आगे बढ़ने को धीमा कर दिया था, अब ठंड के कारण स्थितियाँ और बदतर हो गईं.

उन्हें विमानों के इंजन के नीचे रात भर आग लगाकर रखनी पड़ती थी, ताकि अगली सुबह जब वे वहाँ पहुँचे तो काम कर सकें.

10. क्या सोवियत संघ पर आक्रमण हिटलर की सबसे बड़ी भूल थी?

बिल्कुल थी. अगर फ़्रांस के हाथों मिली हार के बाद जर्मनी ने यथास्थिति बनाए रखी होती और उन देशों के संसाधनों से अपने देश की सेना को मज़बूत किया होता, जिन पर हिटलर ने पहले जीत हासिल की थी, तो जर्मनी की स्थिति काफ़ी मज़बूत होती.

इसलिए अगर स्टालिन ने 1942 और 1943 में पहले हमला किया होता, तो ये सोवियत संघ के लिए काफ़ी विनाशकारी होता.

इसमें कोई संदेह नहीं कि ये युद्ध का टर्निंग प्वाइंट था. जर्मन सेना को 80 फ़ीसदी नुक़सान पूर्वी मोर्चे पर हुआ. ये ऑपरेशन बारबरोसा ही था, जिसने जर्मन सेना की रीढ़ तोड़ दी.

जर्मनी में हिटलर के उदय के मुख्य कारण कौन से थे?

Solution : आर्थिक संकट: 1929 की महामंदी ने जर्मनी की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाया। बेरोज़गारी मूल्य वृद्धि, व्यापार व वाणिज्य का पतन हुआ। हिटलर का व्यक्तित्व: हिटलर का प्रभावशाली व्यक्तित्व, उसका बढ़िया वक्ता होना तथा बढ़िया संगठन कर्ता होना, हिटलर के उदय में सहायक बना।

जर्मनी में नाजीवाद उदय के क्या कारण थे?

जर्मनी में नाजीवाद के उदय का मुख्य कारण जर्मनी की आर्थिक मंदी, वाइमर गणतंत्र की असफलता, साम्यवाद का डर, यहूदियों की विरोधी नीति, जर्मनी के संविधान की कमियां और हिटलर का व्यक्तित्व ये सभी कारण थे जिनसे जर्मनी में नाजीवाद का उदय हुआ। जर्मनी द्वारा वर्साय की संधि पर हस्ताक्षर किए गए।

हिटलर की सबसे बड़ी गलती क्या थी?

अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा: हिटलर ने अमेरिका के खिलाफ युद्ध की घोषणा करके सबसे बड़ी गलती की। उसने जापान के साथ संधि के बाद ये कदम उठाया।

हिटलर का उदय क्या था?

हिटलर का जन्म 1889 में हुआ था और उसकी युवावस्था गरीबी में बीती थी। प्रथम विश्व युद्ध में उसने सेना की नौकरी पकड़ ली और तरक्की करता गया। युद्ध में जर्मनी की हार से वह दुखी था लेकिन वर्साय संधि द्वारा जर्मनी पर लगाई शर्तों के कारण उसका गुस्सा और बढ़ गया था