गीता के अनुसार भक्त कितने प्रकार के होते हैं? - geeta ke anusaar bhakt kitane prakaar ke hote hain?

विषयसूची

  • 1 भक्त कितने प्रकार के हैं?
  • 2 असली भक्ति क्या है?
  • 3 सबसे अच्छी भक्ति कौन सी है?
  • 4 भागवत धर्म में कितने प्रकार की भक्ति को माना गया है?
  • 5 भक्ति के लक्षण क्या है?
  • 6 अविरल भक्ति क्या है?

भक्त कितने प्रकार के हैं?

इसे सुनेंरोकेंआर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी- ये चार प्रकार के भक्त मेरा भजन किया करते हैं। इनमें से सबसे निम्न श्रेणी का भक्त अर्थार्थी है। उससे श्रेष्ठ आर्त, आर्त से श्रेष्ठ जिज्ञासु, और जिज्ञासु से भी श्रेष्ठ ज्ञानी है।

असली भक्ति क्या है?

इसे सुनेंरोकेंभक्ति का मतलब है पूर्ण समर्पण। सरल शब्दों में हम कहते हैं कि हमारी आत्मा परमात्मा की डोर से बंध गई। ईश्वर के प्रति निष्ठापूर्वक समर्पित होने वाला स’चा साधक ही भक्त है।

सबसे अच्छी भक्ति कौन सी है?

इसे सुनेंरोकेंश्रवणं कीर्तन विष्णो: स्मरणं पादसेवनम् । नारद भक्तिसूत्र संख्या ८२ में भक्ति के जो ग्यारह भेद हैं, उनमें गुण माहात्म्य के अन्दर नवधा भक्ति के श्रवण और कीर्तन, पूजा के अंदर अर्चन, पादसेवन तथा वंदन और स्मरण-दास्य-सख्य-आत्मनिवेदन में इन्हीं नामोंवाली भक्ति अंतभुर्क्त हो जाती है।

भक्ति के कितने अंग होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंभक्ति के चार प्रकार माने गये है- सात्विकी, राजसी, तामसी और निर्गुण। भागवत के सप्तम् स्कन्ध में प्रहलाद जी ने विष्णु भगवान की भक्ति के नौ प्रकार बतलाये है- भगवान् की भक्ति के नौ भेद हैं। भगवान के गुण, लीला, नामादि का श्रवण, उन्हीं का कीर्तन, स्मरण, उन्हीं के चरणों की सेवा, अर्चाबन्दन, दास्य-सख्य, आत्मनिवेदन।

श्रीमद्भगवद्गीता में भक्तों के कितने प्रकार हैं?

भागवत धर्म में कितने प्रकार की भक्ति को माना गया है?

इसे सुनेंरोकेंश्रवणं, कीर्तनं, विष्णोः स्मरणं, पादसेवनं।

भक्ति के लक्षण क्या है?

इसे सुनेंरोकेंभक्त वह है, जो द्वेषरहित हो, दयालु हो, सुख-दुख में अविचलित रहे, बाहर-भीतर से शुद्ध, सर्वारंभ परित्यागी हो, चिंता व शोक से मुक्त हो, कामनारहित हो, शत्रु-मित्र, मान-अपमान तथा स्तुति-निंदा और सफलता-असफलता में समभाव रखने वाला हो, मननशील हो और हर परिस्थिति में खुश रहने का स्वभाव बनाए रखे।

अविरल भक्ति क्या है?

इसे सुनेंरोकेंअबिरल भगति बिसुद्ध तव श्रुति पुरान जो गाव। आपकी जिस अविरल (प्रगाढ़) एवं विशुद्ध (अनन्य निष्काम) भक्ति को श्रुति और पुराण गाते हैं, जिसे योगीश्वर मुनि खोजते हैं और प्रभु की कृपा से कोई विरला ही जिसे पाता है॥

भगवत गीता में कौन से चार भक्तों का वर्णन किया गया है?

इसे सुनेंरोकेंआर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी- ये चार प्रकार के भक्त मेरा भजन किया करते हैं।

कीर्तन कितने प्रकार के होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंश्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ श्रवण (परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन) और आत्मनिवेदन (बलि राजा) – इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं।

गीता के अनुसार भक्ति कितने प्रकार की होती है?

भक्ति के चार प्रकार माने गये है- सात्विकी, राजसी, तामसी और निर्गुण। भागवत के सप्तम् स्कन्ध में प्रहलाद जी ने विष्णु भगवान की भक्ति के नौ प्रकार बतलाये है- भगवान् की भक्ति के नौ भेद हैं। भगवान के गुण, लीला, नामादि का श्रवण, उन्हीं का कीर्तन, स्मरण, उन्हीं के चरणों की सेवा, अर्चाबन्दन, दास्य-सख्य, आत्मनिवेदन।

भक्ति के कितने प्रकार माने गए हैं?

पूजा तथा साधना में अंतर पूजा अर्थात् भक्ति का अर्थ है जिस परमेश्वर को हम प्राप्त करना चाहते हैं उस के गुणों का ज्ञान होने के बाद उसकी प्राप्ति के लिए तड़फ, समर्पण,आस्था तथा अटूट श्रद्धा पूजा कहलाती है।

सबसे श्रेष्ठ भक्ति कौन सी है?

आत्मनिवेदन: अपने आपको भगवान के चरणों में सदा के लिए समर्पण कर देना और कुछ भी अपनी स्वतंत्र सत्ता न रखना। यह भक्ति की सबसे उत्तम अवस्था मानी गई हैं।

गीता के अनुसार किसकी भक्ति करनी चाहिए?

- गीता १८.६२ तू सब प्रकार से उस परमेश्वर की ही शरण* में जा। उस परमात्मा की कृपा से ही तू परम शांति को तथा सनातन परमधाम को प्राप्त होगा। अस्तु, तो श्री कृष्ण की गोवर्धन लीला और वेद पुराणों अनुसार भक्ति सूत्र और गीता से यह सिद्ध होता है कि भक्ति केवल भगवान की करनी चाहिए, देवताओं की नहीं।