गलता लोहा ‘पाठ का लेखक कौन है - galata loha ‘paath ka lekhak kaun hai

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - पाठ 5 - गलता लोहा (Galta Loha) आरोह भाग - 1 NCERT Class 11th Hindi Notes

सारांश


'गलता लोहा' शेखर जोशी की कहानी-कला का एक प्रतिनिधि नमूना है| समाज के जातिगत विभाजन पर कई कारणों से टिप्पणी करने वाली यह कहानी इस बात का उदाहरण है कि शेखर जोशी के लेखन में अर्थ की गहराई का दिखावा और बड़बोलापन जितना ही कम है, वास्तविक अर्थ-गंभीर्य उतना ही अधिक| लेखक की किसी मुखर टिप्पणी के बगैर ही पूरे पाठ से गुजरते हुए हम यह देख पाते हैं कि एक मेघावी, किंतु निर्धन ब्राह्मण युवक मोहन किन परिस्थितियों के चलते उस मनोदशा तक पहुँचता है, जहाँ उसके लिए जातीय अभिमान बेमानी हो जाता है| मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे की प्रस्तवना करता प्रतीत होता है, मानों लोहा गलकर एक नया आकार ले रहा हो|


कहानी के शुरुआत में मोहन अपने खेतों के किनारे उग आई काँटेदार झाड़ियों को साफ करने के उद्देश्य से निकलता है| उसके पिता पंडित वंशीधर पुरोहिताई का काम कर परिवार का पेट भरते थे| लेकिन अब वो इतने वृद्ध हो चुके थे कि उनके बूते का कोई काम नहीं था| मोहन ने अपने पिता का भार हल्का करने के लिए खेती का काम सँभाल लिया| रास्ते में वह अपने हँसुवे की धार तेज कराने शिल्पकार टोले की तरफ मुड़ गया| वहीँ वह अपने बचपन के मित्र धनराम से उसके आफर में मिला| दोनों ने एक साथ पढ़ाई की थी| जहाँ मोहन पढ़ने में तेज था वहीँ धनराम थोड़ा मंदबुद्धि था| मास्टर त्रिलोक सिंह मोहन को बहुत पसंद करते थे क्योंकि वह एक मेघावी छात्र था| इसके विपरीत धनराम को पाठ याद न कर पाने के कारण हमेशा मार पड़ती थी| जाती का लोहार होने के कारण उसे मास्टर के व्यंग्यों का सामना करना पड़ता था| इन सब के बावजूद धनराम ने मोहन को कभी अपना प्रतिद्वंद्वी नहीं समझा| अपने पिता से उसने लोहारगिरी का काम सीखा था और उनके गुजरने के बाद यही व्यवसाय अपना लिया|

चूँकि मोहन पढ़ने में तेज था, इसलिए उसके पिता ने उसकी आगे की पढ़ाई के लिए शहर भेज दिया| वहाँ उसके साथ नौकरों जैसा व्यवहार किया जाता था| उसकी पढ़ाई बीच में ही रूक गई| काम की तलाश में उसने कई कार्यालयों तथा फैक्टरियों के चक्कर लगाए| लेकिन उसे सफलता नहीं मिली| उसके पिता पंडित वंशीधर को बहुत आशा थी कि शहर से वह बड़ा आदमी बनकर लौटेगा| लेकिन मोहन की किस्मत को कुछ और ही मंजूर था| गाँव वापस आने के बाद उसने खेती का काम सँभाल लिया| वहीं वो अपने मित्र धनराम के आफर में जब उसे लोहा मोड़ते हुए गौर देखा तो उसकी आँखों में एक चमक-सी थी| धनराम के ऐसा न कर पाने पर वह बड़ी ही फुर्ती और आत्मविश्वास के साथ लोहे को मोड़ने में सफल हो गया| इस प्रकार कहानी के अंत में मोहन जातिगत पारंपरिक व्यवसाय के सोच से मुक्त होकर अपने कारीगरी और कार्य-कौशल को सबके समक्ष प्रस्तुत करता है|

कथाकार-परिचय

शेखर जोशी

जन्म- इनका जन्म सन् 1932, अल्मोड़ा (उत्तरांचल) में हुआ|

प्रमुख रचनाएँ- इनकी प्रमुख रचनाएँ कोसी का घटवार, साथ के लोग, दाज्यू, हलवाहा, नौरंगी बीमार है (कहानी-संग्रह); एक पेड़ की याद (शब्दचित्र-संग्रह) हैं|

सम्मान- इन्हें ‘पहल सम्मान’ प्रदान किया गया है|

पिछली सदी का छठवाँ दशक हिंदी कहानी के लिए युगांतकारी समय था| एक साथ कई युवा कहानीकारों ने अब तक चली आती कहानियों के रंग-ढंग से अलग तरह की कहानियाँ लिखनी शुरू कीं और देखते-देखते कहानी की विधा-साहित्य-जगत के केंद्र में आ खड़ी हुई| उस पूरे उठान को नाम दिया गया ‘नई कहानी आंदोलन’| इस आंदोलन के बीच उभरी हुई प्रतिभाओं में शेखर जोशी का स्थान अन्यतम है| उनकी कहानियाँ नई कहानी आंदोलन के प्रगतिशील पक्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं| समाज का मेहनतकश और सुविधाहीन तबका उनकी कहानियों में जगह पाता है| निहायत साज एवं आडंबरहीन भाषा-शैली में वे सामाजिक यथार्थ के बारीक नुक्तों को पकड़ते और प्रस्तुत करते हैं| उनके रचना-संसार से गुज़रते हुए समकालीन जनजीवन की बहुविध विडंबनाओं को महसूस किया जा सकता है| ऐसा करने में उनकी प्रगतिशील जीवनदृष्टि और यथार्थ बोध का बडा योगदान रहा है| शेखर जी की कहानियाँ विभिन्न भारतीय भाषाओँ के अतिरिक्त अंग्रेजी, पोलिश और रूसी में भी अनूदित हो चुकी हैं|

कठिन शब्दों के अर्थ

• निहाई- एक विशेष प्रकार का लोहे का ठोस टुकड़ा, जिस पर लोहा आदि धातुओं को रखकर पीटते हैं|
• अनायास- बिना प्रयास के
• अनुगूँज- प्रतिध्वनि, रह-रहकर कानों में गूँजने वाली आवाज
• हँसुवे- घास काटने का औजार, दराँती
• पुरोहिताई- पुरोहित (धार्मिक कृत्य कराने बाला) का व्यवसाय, पुरोहित का भाव
• निष्ठा- श्रद्धा, विश्वास, एकाग्रता, दृढ़ता
• रूद्रीपाठ- शंकर की आराधना का एक प्रकार
• धौंकनी- लुहार या सुनारों की आग दहकाने वाली लोहे या बाँस की नली
• कुशाग्र बुद्धि- तीक्ष्ण बुद्धिवाला, पैनी वुद्धिवाला
• संटी- पतली डंडी या छड़ी
• प्रतिद्वंद्वी- मुकाबला करने वाला, विपक्षी, विरोधी, प्रतिपक्षी
• विद्याव्यसनी- पढ़ने में रुचि रखने वाला
• घसियारे- घास काटने का काम करने वाले
• सेक्रेटेरियट- सचिवालय
• त्रुटिहीन- जिसमें कोई कमी न हो


NCERT Solutions of पाठ 5 - गलता लोहा


इसे सुनेंरोकेंAnswer: मोहन का व्यक्तित्व जातिगत आधार पर निर्मित झूठे भाईचारे की जगह मेहनतकशों के सच्चे भाईचारे की प्रस्तावना करता प्रतीत होता है, मानो लोहा गलकर एक नया आकार ले रहा हो।

गलता लोहा पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

इसे सुनेंरोकेंAnswer: गलता लोहा पाठ से हमें शिक्षा मिलती है कि, किस तरह पुरोहित (ब्राह्मण) समाज का एक युवक मोहन अपने जीवन में ऐसी परिस्थितियों का सामना कर चुका होता है कि एक समय में उसे जातीय अभिमान बेईमानी लगने लगती है और उसे जातीय आधार पर निर्मित भाईचारे की असली हकीकत मालूम होती है। उसे कोई भी काम छोटा प्रतीत नहीं होता।

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गलता लोहा कहानी का उद्देश्य क्या है *?

इसे सुनेंरोकेंगलता लोहा” शेखर जोशी द्वारा लिखित एक ऐसी कहानी है जिसमें आधुनिक जीवन के यथार्थ का मार्मिक चित्रण है। यहाँ लेखक ने जातीय अभियान को पिघलते और उसे रचनात्मक कार्य में ढलते दिखाया है। यहाँ कहानी के सारांश के साथ-साथ परीक्षा के लिए उपयोगी प्रश्न के उत्तर दिए गए हैं।

मास्टर त्रिलोक सिंह तो अब गुजर गए होंगे यह कथन किसका है?

इसे सुनेंरोकेंअपने इस कथन से उन्होंने धनराम के कोमल दिल में ऐसी चोट की कि वह बात उसके दिल में घर कर गई। यह ज़बान की चाबुक से पड़ी ऐसी मार थी, जिसके निशान शरीर पर नहीं धनराम के दिल पर लगे थे। एक बच्चे के मन ने इस बात को मान लिया कि वह पढ़ने के लायक नहीं है। यही कारण है मास्टर त्रिलोक सिंह के कथन को लेखक ने ज़बान के चाबुक कहा है।

गलता लोहा पाठ में स्कूल के बच्चे कौन सी प्रार्थना करते थे?

इसे सुनेंरोकेंगुस्से में उन्होंने आदेश दिया, ‘जा! नाले से एक अच्छी मज़बूत संटी तोड़कर ला, फिर तुझे तेरह का पहाड़ा याद कराता हूँ। ‘ 2021-22 Page 6 गलता लोहा/59 त्रिलोक सिंह मास्टर का यह सामान्य नियम था।

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गलता लोहा पाठ की विधा क्या है?

इसे सुनेंरोकेंगलता लोहा कहानी में समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी की गई है। यह कहानी लेखक के लेखन में अर्थ की गहराई को दर्शाती है। इस पूरी कहानी में लेखक की कोई मुखर टिप्पणी नहीं है।

गलता लोहा कहानी का अंत एक खास तरीके से होता है क्या इस कहानी का कोई अन्य अंत हो सकता है बताएं?

इसे सुनेंरोकें’गलता लोहा’ कहानी का अंत धनराम के आश्चर्य और मोहन के आत्म-संतोष की भावना से होता है। यह अंत प्रभावशाली बन पड़ा है। इस कहानी का अंत यह भी हो सकता कि गाँव के पडित आकर मोहन को बुरा– भला कह रहे हैं और मोहन उनका प्रतिवाद कर रहा है। बिरादरी का यही सहारा होता है।

गलता लोहा नामक कहानी के मास्टर का क्या नाम था?

इसे सुनेंरोकेंफ़र्क इतना ही था कि जहाँ मास्टर त्रिलोक सिंह उसे अपनी पसंद का बेंत चुनने की छूट दे देते थे वहाँ गंगाराम इसका चुनाव स्वयं करते थे और ज़रा-सी गलती होने पर छड़, बेंत, हत्था जो भी हाथ लग जाता उसी से अपना प्रसाद दे देते।

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गलता लोहा पाठ के लेखक का नाम क्या है?

गलता लोहा” शेखर जोशी द्वारा लिखित एक ऐसी कहानी है जिसमें आधुनिक जीवन के यथार्थ का मार्मिक चित्रण है। यहाँ लेखक ने जातीय अभियान को पिघलते और उसे रचनात्मक कार्य में ढलते दिखाया है।

गलता लोहा कहानी का उद्देश्य क्या है?

'गलता लोहा' कहानी का उद्देश्य बताइए। उत्तर: गलता लोहा शेखर जोशी की कहानी-कला को एक प्रतिनिधि नमूना है। समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी करने वाली यह कहानी इस बात का उदाहरण है कि शेखर जोशी के लेखन में अर्थ की गहराई का दिखावा और बड़बोलापन जितना ही कम है, वास्तविक अर्थ-गांभीर्य उतना ही अधिक।

गलता लोहा कहानी में कौन से लोहे की चर्चा हुई है?

गलता लोहा कहानी में समाज के जातिगत विभाजन पर कई कोणों से टिप्पणी की गई है। यह कहानी लेखक के लेखन में अर्थ की गहराई को दर्शाती है। इस पूरी कहानी में लेखक की कोई मुखर टिप्पणी नहीं है।