राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन क्यों किया गया? - raashtreey maanav adhikaar aayog ka gathan kyon kiya gaya?

राष्ट्रीय मानवाधिकार विशेषज्ञो ने त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए आपराधिक न्याय प्रणाली में सुधारो की धीमी गति पर चिंता व्यक्त की है।

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन क्यों किया गया? - raashtreey maanav adhikaar aayog ka gathan kyon kiya gaya?

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोगः

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एक सांविधिक निकाय है इसका गठन मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत किया गया था। मानवाधिकारो के प्रहरी के रूप में NHRC कार्य करता है। यह आयोग एक बहुसदस्यीय संस्था है जिसमें एक अध्यक्ष व सात अन्य सदस्य होते है। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री के नेतृत्व में गठित छह सदस्यीय समिति की सिफारिश पर होती है समिति में प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा के उपसभापति संसद के दोनों विपक्ष नेता व केन्द्रीय गृहमंत्री होते है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के कार्य निम्नलिखित है-

  • मानवाधिकार के उल्लंघन के संबंध में याचिका प्राप्त करने के उपरांत या स्वतः संज्ञान के आधार पर अन्वेषण करना।
  • मानवाधिकारो के उल्लंघन संबंधित किसी भी आरोप की न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप कर सकता हे।
  • मानवाधिकार की रक्षा हेतु बनाए गए कानून व संवैधानिक उपबंधो की समीक्षा करना।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को दीवानी न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्त है और यह अंतरिम राहत प्रदान कर सकता है।

पेरिस सिद्धांतः

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु पेरिस सिद्धांतो को 1993 में अपनाया। पैरिस सिद्धांत विश्वसनीयता, स्वतंत्रता और NHRI की प्रभावशीलता का आकलन करने के अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मानको का एक समुच्चय है जो दुनिया के सभी देशों को राष्ट्रीय मानवाधिकार संस्थाएँ स्थापित करने के लिये निर्देश देता है।

पेरिस सिद्धांतो के अनुसार मानवाधिकार आयोग एक स्वायत्त एवं स्वतंत्र संस्था होगी। यह मीडिया, प्रकाशन प्रशिक्षण आदि माध्यमों से मानव अधिकारो को भी बढ़ावा देता है।

मानवाधिकार की परिभाषाः

मानवाधिकार वे अधिकार है जो जाति, लिंग भाषा, धर्म, राष्ट्रीयता किसी की परवाह किए बिना सभी मनुष्यों के लिए निहित अधिकार है। मानवाधिकारों में जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, अभिव्यक्ति का अधिकार अंतनिहित है। मानवाधिकार हर जगह सभी लोगों के लिए समान है यही मानव अधिकारो को सार्वभौम बनाता है। मानवाधिकार समानता और निष्पक्षता से संबंधित सिद्धांतो का एक समूह है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग संबंधित मुद्देः

भारत में विभिन्न कारणा से मानवाधिकार के उल्लंघन की समस्या उत्पन्न होती है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग देश भर के अधिकांश मुद्दों को उठाता है जैसे-

  • मनमानी गिरफ्रतारी और नजरबंदी का मुद्दा
  • हिरासता में यातना संबंधित मुद्दा
  • यौन हिंसा और दुर्व्यवहार का मुद्दा
  • महिलाओ और बच्चों के खिलाफ हिंसा और भेदभाव का मुद्दा आदि।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को सशक्त करने हेतु उठाये गये कदम-

NHRC के संबंध में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 में संशोधन मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 2019 को अधिनियमित किया गया है। जिसके तहत सुधार निम्नलिखित है-

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष के रूप वही नियुक्त हो सकता है जो भारत का मुख्य न्यायाधीश या उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश रहा है।

यह संशोधन करता है कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग व राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्षो और दिव्यांगजनो के लिए मुख्य आयुक्त को NHRC के सदस्य के रूप शामिल करने का प्रावधान करता है।

मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 2019 के हत पदावधि को कम करते हुए तीन वर्ष या सत्तर वर्ष आयु तक जो पहले हो, कर दिया गया है। इसके तहत पुनर्नियुक्ति के लिए पांच वर्ष की सीमा को हटा दिया गया है।

NHRC की सीमाएं- NHRC द्वारा की गई सिफारिशे बाध्यकारी नहीं है।

  • निजी पार्टियो द्वारा मानवाधिकारो के उल्लंघन को NHRC क्षेत्राधिकार के तहत नहीं माना जाता है।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सफलता की कहानी-

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की सफलता की यात्रा बहुत लम्बी है। राष्ट्रीय मानवाधिकार ने मैनुअल स्कैवेंजिंग जैसी प्रथा के कारण होने वाले मानवाधिकार उल्लंघन की समस्या को नियंत्रित किया है। कश्मीर में मानवाधिकारो के उल्लंघन के खिलाफ ठोस कदम उठाये है। NHRC मानवाधिकारो के रक्षक, सलाहकार निगरानी और शिक्षक की भूमिकाएँ निभाता है। सशस्त्र बलो के द्वारा मानवाधिकारो के उल्लंघन मामलों में NHRC ने स्वयं संज्ञान लिया है। मानवाधिकार प्रकृति द्वारा प्राप्त अधिकार है इनका संरक्षण अत्यंत आवश्यक है।

आगे की राहः

एनएचआरसी, मानवाधिकारो का मार्गदर्शक है। मानवाधिकार, सैद्धांतिक रूप से सार्वभौमिक है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का महत्त्व समान है। प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में साध्य है परंतु व्यावहारिक प्रयोग करते समय सामाजिक व सांस्कृतिक विशिष्टता का ध्यान रखना होगा। 21वीं शताब्दी मानवाधिकार व लोकतंत्र का युग है तथा मानवाधिकारो का बढ़ता विश्वव्यापी प्रभाव मानवीय समाज के प्रभावी विकास का घोतक है।

भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission (NHRC)) एक स्वायत्त विधिक संस्था है। इसकी स्थापना 12 अक्टूबर 1993 को हुई थी।इसकी स्थापना मानवाधिकार सरक्षण अधिनियम 1993 के तहत की गई। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप है जिन्हें अक्तूबर, 1991 में पेरिस में मानव अधिकार संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए राष्ट्रीय संस्थानों पर आयोजित पहली अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में अंगीकृत किया गया था तथा 20 दिसम्बर, 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा संकल्प 48/134 के रूप में समर्थित किया गया था।

यह आयोग, मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्द्धन के प्रति भारत की चिंता का प्रतीक अथवा संवाहक है।

मानव अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 12 (1)(घ) में मानव अधिकारों को संविधान द्वारा गारंटीकृत अथवा अंतरराष्ट्रीय प्रसंविदाओं में समाविष्ट तथा भारत में न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय व्यक्ति के अधिकारों के रूप में परिभाषित किया गया है। यह आयोग देश में मानवाधिकारों का प्रहरी है,यह सविंधान द्वारा अभिनिश्चित तथा अंतरराष्ट्रीय संधियों में निर्मित व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षक है। यह एक बहु सदस्यीय निकाय है। इसके प्रथम अध्यक्ष न्यायमूर्ति रंगनाथ मिश्र थे। वर्तमान में (2018) न्यायमूर्ति एच एल दत्तू इसके वर्तमान अध्यक्ष के पद पर आसीन है।राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन पेरिस सिद्धांतों के अनुरूप है जिन्हें अक्तूबर, 1991 में पेरिस में मानव अधिकार संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए राष्ट्रीय संस्थानों पर आयोजित पहली अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में अंगीकृत किया गया था तथा 20 दिसम्बर, 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा संकल्प 48/134 के रूप में समर्थित किया गया था।

मुख्यालय:- नई दिल्ली।

संरचना:- अध्यक्ष- सर्वोच्च न्यायालय का कोई सेवानिवर्त न्यायाधीश होता है /सर्वोच न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश (मानवाधिकार संरक्षण दुरुस्ती विधेयक 2019) 1सदस्य- सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश है या रह चुका हो। 1सदस्य-उच्च न्यायालय में न्यायाधीश है या रह चुका हो। 3सदस्य- मानव अधिकारों के जानकार हो। जिसमें एक महिला हो अन्य सदस्य – राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय महिला आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष, राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग के अध्यक्ष, दिव्यांग जन संबंधी अयुक्त।

नियक्ति:- राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंन्त्री की अध्यक्षता में गठित 7 सदस्यीय समिति की सिफारिशों के आधार पर।

समिति के सदस्य:-

प्रधानमंत्री, लोक सभा अध्यक्ष, लोकसभा के उपाध्यक्ष, राज्य सभा का उप सभापति, गृह मंत्री, लोक सभा में विपक्ष का नेता, राज्य सभा में विपक्ष का नेता।

कार्यकाल:-अध्यक्ष तथा सदस्य का कार्यकाल 3 वर्ष (पहले 5 वर्ष था) या 70 उम्र, जो भी पहले हो। पूर्णनियुक्ती के लिय पात्र । राष्ट्रपत्ति द्वारा इन्हें पद से हटाया जा सकता है।

आयोग का विधि अनुभाग प्रत्येक वर्ष लगभग एक लाख मामलों के पंजीकरण एवं निपटान का कार्य करता है, जो मानव अधिकारों के उल्लंघन की शिकायतें या तो पीड़ित या पीड़ित की ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा की गई शिकायतों पर दर्ज किए जाते हैं अथवा संबद्ध प्राधिकारियों से हिरासत में मौत, हिरासत में बलात्कार, पुलिस कार्रवाई में मौत की सूचना प्राप्त होने पर अथवा आयोग द्वारा स्वतः संज्ञान लेने पर अथवा किसी न्यायालय के आदेश या निर्देश पर पंजीकृत किए जाते हैं। अनुभाग को पुलिस/न्यायिक हिरासत में मौत, रक्षा/अर्द्ध सैन्य बलों की हिरासत में मौत तथा हिरासत में बलात्कार से संबंधित सूचनाएं भी प्राप्त होती हैं। अनुभाग द्वारा उन गंभीर मामलों पर भी कार्य किया जाता है जिनमें आयोग द्वारा स्वतः संज्ञान लिया गया हो। आयोग में वर्ष 2017-18 के दौरान 77589 शिकायतें प्राप्त हुई थीं। आयोग में प्राप्त सभी शिकायतों को एक डायरी नम्बर दिया जाता है तथा इसके पश्चात उसकी संवीक्षा कर शिकायत निपटान एवं सूचना प्रणाली, जो इस कार्य के लिए विशेष रूप से लगाया गया सॉफ्टवेयर है, का इस्तेमाल कर प्रक्रिया में लाया जाता है। शिकायतों का पंजीकरण करने के बाद उन्हें आयोग के समक्ष निर्देशों हेतु प्रस्तुत किया जाता है तथा तदनुसार इन मामलों को उनके अन्तिम रूप से निपटान होने तक अनुभाग द्वारा अनुवर्ती कार्रवाई की जाती है। महत्त्वपूर्ण प्रकृति के मामलों को पूर्ण आयोग द्वारा तथा पुलिस हिरासत अथवा पुलिस कार्रवाई में हुई मौतों से संबंधित मामलों पर खण्डपीठों द्वारा विचार किया जाता है। कुछ महत्त्वपूर्ण मामलों पर खुले न्यायालयों में आयोग की बैठकों में भी विचार किया जाता है। अनुभाग विभिन्न राज्यों की राजधानियों में शिविर बैठकों का आयोजन भी करता है जिनका उद्देश्य लम्बित शिकायतों का त्वरित निपटान तथा मानव अधिकारों के मुद्दों पर राज्य पदाधिकारियों को संवेदनशील करना भी होता है। आयोग देश में अनुसूचित जातियों पर अत्याचारों से संबंधित जन-सुनवाइयां भी आयोजित करता है जिसमें अनुसूचित जातियों से संबंधित पीड़ित व्यक्तियों के साथ सीधी बातचीत की जा सके। अनुभाग इसके अलावा मानव अधिकारों के बेहतर संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु विभिन्न विधेयकों/मसौदा कानूनों पर राय/मशवरा भी देता है। विधि अनुभाग द्वारा कुछ महत्त्वपूर्ण प्रकाशन भी प्रकाशित किए गए हैं जैसे “एनएचआरसी एण्ड एचआरडीः ग्रोइंग सैनर्जी”, आदि। मानव अधिकार समर्थकों हेतु एक फोकल प्वाइंट भी है जो उनके लिए 24 घण्टे (1) मोबाइल नं. 9810298900 (2) फैक्स नं. 24651334 (3) ई-मेल [email protected] के माध्यम से सुलभ हैं।

इस प्रभाग के प्रमुख रजिस्ट्रार (विधि) होते हैं जिनकी सहायता करने के लिए प्रजेंटिंग अधिकारी, एक संयुक्त रजिस्ट्रार, कई उप रजिस्ट्रार, सहायक रजिस्ट्रार, अनुभाग अधिकारी एवं अन्य सचिवालय कर्मचारी होते है।

अन्वेषण अनुभाग

अन्वेषण अनुभाग का प्रमुख पुलिस महानिदेशक स्तर का एक अधिकारी होता है। उनकी सहायता करने के लिए एक पुलिस उप-महानिरीक्षक तथा तीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक होते हैं। प्रत्येक वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जांच अधिकारियों (जिसमें पुलिस उप अधीक्षक एवं पुलिस निरीक्षक होते हैं)। अन्वेषण अनुभाग के कार्य बहुआयामी होते हैं जिनका विवरण निम्नलिखित हैः-

घटना स्थल जांचः अन्वेषण अनुभाग मानव अधिकारों के उल्लंघन को उजागर करने वाले मामलों में घटनास्थल जांच करता है तथा उचित संस्तुतियां देता है। अन्वेषण अनुभाग द्वारा की गई घटनास्थल जांचों से न केवल आयोग के समक्ष सच प्रकट होता है बल्कि सभी संबंधितों-शिकायतकत्र्ताओं, लोक सेवकों आदि को भी संदेश जाता है। आयोग, विभिन्न लोक प्राधिकारियों को विभिन्न प्रकार के मामलों जैसे पुलिस द्वारा अवैध नज़रबंदी, असाधारण हत्या आदि से लेकर अस्पतालों में सुविधाओं की कमी के कारण होने वाली मौतों तक के लिए घटनास्थल जांच का आदेश देता है। घटनास्थल जांच से आम जनता का विश्वास बढ़ता है तथा मानव अधिकारों के संरक्षण में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की भूमिका में उनका विश्वास बना रहता है। अन्वेषण अनुभाग मामलों की मॉनीटरिंग, जब भी उसे रैफर किया जाए, के अलावा मामलों में राय/विश्लेषण में अपनी टिप्पणियां/अवलोकन, जब कभी मांगे जाते हैं, देता है।

हिरासतीय मौतः राज्य प्राधिकारियों को आयोग द्वारा जारी दिशानिर्देशों के अनुसार, उनसे हिरासत में किसी भी मौत (चाहे पुलिस अथवा न्यायिक हिरासत में हो) होने के 24 घण्टे के भीतर आयोग को सूचित करने की अपेक्षा की जाती है। अन्वेषण अनुभाग इस प्रकार की सूचनाएं मिलने पर मानव अधिकारों के उल्लंघन होने की संभावना की दृष्टि से रिपोर्टों का विश्लेषण करता है। विश्लेषण को अधिक व्यवसायिक एवं सटीक बनाने की दिशा में अन्वेषण अनुभाग राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के पैनल के फॉरेन्सिक विशेषज्ञों से सहायता लेता है।

तथ्य अन्वेषण मामलेः अन्वेषण अनुभाग आयोग द्वारा निर्देश किए गए “तथ्य अन्वेषण” के मामलों में विभिन्न प्राधिकारियों से रिपोर्ट मांगता है। अन्वेषण अनुभाग इन रिपोर्टों का इस दृष्टि से बारीकी से विश्लेषण करता है ताकि आयोग यह निर्णय ले सके कि इनमें मानव अधिकारों का उल्लंघन हुआ है अथवा नहीं। ऐसे मामले जिनमें प्राप्त रिपोर्टें भ्रामक अथवा तथ्यात्मक नहीं होती, आयोग उनमें घटनास्थल जांच का भी आदेश देता है।

प्रशिक्षणः अन्वेषण अनुभाग के अधिकारी प्रशिक्षण संस्थानों में तथा अन्य फोरम में लैक्चर देते हैं, जहां भी उन्हें मानव अधिकार साक्षरता का प्रसार करने तथा मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु उपलब्ध सुरक्षापायों की जागरुकता का संवर्द्धन करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

रैपिड एक्शन सैलः अन्वेषण अनुभाग ने वर्ष 2007 से आयोग में एक क्रियाशील रैपिड एक्शन सैल तैयार करने के लिए पहल की है। आर.ए.सी. मामलों के तहत अन्वेषण अनुभाग ऐसे मामलों पर कार्रवाई करता है जो अतितत्काल प्रकृति के होते हैं जैसे अगले ही दिन बाल विवाह होने से संबंधित आरोप हो सकते हैं; शिकायतकर्ता को डर होता है कि उसका रिश्तेदार अथवा दोस्त पुलिस द्वारा उठा लिया जाएगा; और हो सकता है फर्जी मुठभेड़ में उसकी हत्या कर दी जाए; आदि। इस प्रकार के सभी मामलों में अन्वेषण अनुभाग तत्काल अनुवर्ती कार्रवाई करता है। इसमें तथ्यों की पुष्टि करने के लिए प्राधिकारियों/शिकायतकर्ताओं से व्यक्तिगत रूप से टेलीफोन पर बात करना, संदर्भ हेतु विभिन्न प्राधिकारियों को शिकायत फैक्स करना तथा त्वरित रूप से उनके जवाब भेजने के लिए उन्हें कहना, शामिल हो सकता है। 01.04.2017 से 31.03.2018 की अवधि के दौरान अन्वेषण अनुभाग ने रैपिड एक्शन के ऐसे 515 मामलों पर कार्य किया जिनमें मानव अधिकारों के उल्लंघन से न केवल बचाव किया गया बल्कि कई मामलों में मनुष्य की जीवन एवं स्वतंत्रता के जोख़िम से भी निपटने के लिए आयोग को तत्काल हस्तक्षेप करने के लिए सक्षम किया।

केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कार्मिकों हेतु वाद-विवाद प्रतियोगिताः मानव अधिकारों के प्रति जागरुकता एवं केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बलों के कार्मिकों के बीच संवेदीकरण का प्रसार करने के लिए अन्वेषण अनुभाग वर्ष 1996 से प्रति वर्ष नियमित रूप से इस प्रकार के मुद्दों पर वाद-विवाद प्रतियोगिता आयोजित करता आ रहा है। इसके अलावा, वर्ष 2004 से, जैसा कि माननीय अध्यक्ष द्वारा निर्देश दिया गया था, देशभर से सी.ए.पी.एफ. की बड़ी संख्या में भागीदारी हेतु फाइनल प्रतियोगिता के रूप में क्षेत्रवाद वाद-विवाद प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जा रहा है। क्षेत्रवार प्रतियोगिताओं के दौरान चयनित सेमीफाइनल एवं फाइनल राउण्ड का आयोजन राजधानी में किया जाता है। प्रतिवर्ष इस समारोह में उत्साहपूर्ण भागीदारी एवं वाद-विवाद का सर्वोत्कृष्ट स्तर दिखाई देता है।

राज्य पुलिस बलों के कार्मिकों हेतु वाद-विवाद प्रतियोगिताः आज के समय में पुलिस अपने कत्तव्यों का निर्वाह करने में मानव अधिकारों के सिद्धान्तों का पालन करते हुए कत्र्तव्यबद्ध है। पुलिस बलों में निचले एवं मध्य स्तर के कार्मिक मानव अधिकारों के दृष्टिकोण से बेहद महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि वे अपने कत्र्तव्यों का निर्वाह करते समय आम जनता से सीधे संपर्क में आते हैं। वर्ष 2004 से राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अन्वेषण अनुभाग द्वारा राज्य पुलिस बल कार्मिकों के लिए वाद-विवाद प्रतियोगिताएं आयोजित करने हेतु राज्य/राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के पुलिस बलों के लिए आवश्यक वित्तीय सहायता मुहैया करवाके पुलिस कार्मिकों के बीच मानव अधिकारों की जागरुकता के स्तर को बढ़ाया जा रहा है। वर्तमान में आयोग राज्यों/राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वाद-विवाद प्रतियोगिताएं आयोजित कराने के लिए ₹15,000/- की राशि मुहैया कराता है।

नज़रबंदी के स्थानों का दौराः आयोग को जेलों एवं अन्य संस्थानों जहां पर लोगों को उपचार, सुधार अथवा संरक्षण हेतु नज़रबंद अथवा बंद रखा जाता है में जीवन की दशाओं से संबंधित बड़ी संख्या में शिकायतें प्राप्त होती हैं। अन्वेषण अनुभाग के जांच अधिकारी विभिन्न राज्यों में जेलों एवं अन्य संस्थानों का दौरा करते हैं, जब कभी उन्हें आयोग द्वारा निदेशित किया जाता है तथा विशेष आरोपों के संबंध में तथ्य प्रस्तुत करने अथवा कैदियों की सामान्य दशाओं अथवा उनके मानव अधिकारों पर आधारित दशाओं जिनमें आयोग द्वारा अनुवर्ती कार्रवाई की आवश्यकता होती है के विषय में आयोग के समक्ष रिपोर्ट प्रस्तुत करते हैं।

नीति अनुसंधान, प्रोजेक्ट एवं कार्यक्रम अनुभाग

नीति अनुसंधान, प्रोजेक्ट एवं कार्यक्रम अनुभाग (पीआरपी एण्ड पी अनुभाग) मानव अधिकारों पर अनुसंधान को प्रोत्साहित करने के लिए महत्त्वपूर्ण मानव अधिकार मुद्दों पर सम्मेलन, संगोष्ठियां एवं कार्यशालाएं आयोजित करता है। जब कभी आयोग अपनी सुनवाइयों, चर्चाओं अथवा अन्य किसी प्रकार से इन निष्कर्ष पर पहुंचता है कि कोइ विशेष विषय महत्त्वपूर्ण है तो आयोग अपने पीआरपी एण्ड पी अनुभाग द्वारा इन विषयों को प्रोजेक्ट/कार्यक्रम में तब्दील करता है। इसके अलावा, यह मानव अधिकारों के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु लागू नीतियों, कानूनों, संधियों एवं अन्य अंतरराष्ट्रीय दस्तावेजों की समीक्षा करता है। यह केन्द्र, राज्य एवं संघ शासित क्षेत्रों के प्राधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की संस्तुतियों के कार्यान्वयन की मॉनिटरिंग भी करता है। इसके अलावा, यह प्रशिक्षण अनुभाग को मानव अधिकार साक्षरता का प्रसार करने तथा मानव अधिकारों के संरक्षण हेतु उपलब्ध सुरक्षापायों के विषय में जागरुकता का संवर्द्धन करने में सहायता करता है। अनुभाग का कार्य संयुक्त सचिव (प्रशि. एवं अनु.) की निगरानी में तथा संयुक्त सचिव (का. एवं प्रशा.), संयुक्त निदेशक (अनुसंधान), अनुभाग अधिकारी, सहायक, अनुसंधान परामर्शदाता, शोध सहयोगी, शोध सहायक एवं अन्य सचिवालयी कर्मचारियों द्वारा किया जाता है।

प्रशिक्षण अनुभाग

प्रशिक्षण अनुभाग का दायित्व समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानव अधिकार साक्षरता का प्रसार करना है। इसके लिए यह मानव अधिकारों के विभिन्न मुद्दों पर सरकारी अधिकारियों तथा राज्य एवं इसके अभिकरणों के कर्मचारियों, गैर-सरकारी संगठनों के कर्मचारियों, नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधियों एवं छात्रों को प्रशिक्षण देता है तथा संवेदीकरण करता है। इस उद्देश्य के लिए यह प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थानों/पुलिस प्रशिक्षण संस्थानों तथा विश्वविद्यालय/महाविद्यालयों के साथ सहयोग करता है। इसके अलावा, यह महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों के छात्रों के लिए अंतःशिक्षुता कार्यक्रमों का भी आयोजन करता है। इस अनुभाग का प्रमुख संयुक्त सचिव (प्रशि. एवं अनु.) होता है। उनकी सहायता करने के लिए एक वरिष्ठ अनुसंधान अधिकारी (प्रशि.), एक सहायक तथा अन्य सचिवालयी स्टाफ होते हैं। प्रशिक्षण अनुभाग के तहत समन्वय अनुभाग है जो अन्तरराष्ट्रीय संधियों एवं प्रसंविदाओं सहित सभी अंतरराष्ट्रीय मामलों को देखता है। इसके अलावा, यह विभिन्न राज्यों/संघ शासित क्षेत्रों में आयोग की शिविर बैठकों/जनसुनवाइयों का आयोजन करता है। साथ ही, आयोग के वार्षिक समारोहों जैसे स्थापना दिवस एवं मानव अधिकार दिवस का भी आयोजन करता है। इसके अलावा, यह प्रोटोकॉल ड्यूटी देखने के साथ-साथ आयोग के अध्यक्ष/सदस्यों/वरिष्ठ अधिकारियों के राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर के दौरों का भी आयोजन करता है। समन्वय अनुभाग में एक अवर सचिव, एक अनुभाग अधिकारी, सहायक, अनुसंधान परामर्शदाता तथा अन्य सचिवालयी स्टाफ हैं।

प्रशासन अनुभाग

प्रशासन अनुभाग आयोग के स्थापना, प्रशासन एवं अध्यक्ष एवं सदस्यों की आवश्यकताओं से संबंधित मामलों को देखता है। यह आयोग के कार्मिक, लेखा, लाइब्रेरी एवं अधिकारियों एवं कर्मचारियों की अन्य आवश्यकताओं को भी देखता है। अनुभाग का प्रमुख संयुक्त सचिव (का. एवं प्रशा.) हैं जिनकी सहायता के लिए एक निदेशक, अवर सचिव, अनुभाग अधिकारी, सहायक एवं अन्य सचिवालयी स्टाफ है।

प्रशासन अनुभाग के तहत मीडिया एवं संचार यूनिट है जो प्रिंट एवं इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के माध्यम से राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग की गतिविधियों से संबंधित सूचना का प्रसार करता है यह द्विभाषीय मासिक न्यूज लैटर ’ह्यूमन राइट्स’ का प्रकाशन करता है। प्रकाशन यूनिट, जो आयोग के सभी प्रकाशनों को प्रकाशित करने के लिए उत्तरदायी है, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का एक महत्त्वपूर्ण यूनिट है। इस यूनिट द्वारा वार्षिक रिपोर्ट, राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग के अंग्रेजी एवं हिंदी जर्नल, “अपने अधिकार जानें” श्रंखला आदि कुछ महत्त्वपूर्ण प्रकाशन प्रकाशित किए गए हैं। इसके अलावा, यह सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के तहत प्राप्त आवेदनों एवं अपीलों को भी देखता है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की स्थापना क्यों हुई?

राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग का गठन पेरिस सिद्धान्तों के अनुरूप है जिन्हें अक्तूबर, 1991 में पेरिस में मानव अधिकार संरक्षण एवं संवर्द्धन के लिए राष्ट्रीय संस्थानों पर आयोजित पहली अन्तरराष्ट्रीय कार्यशाला में अंगीकृत किया गया था तथा 20 दिसम्बर, 1993 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा संकल्प 48/134 के रूप में समर्थित किया ...

मानवाधिकार के उद्देश्य क्या है?

सही उत्तर शांति और सुरक्षा स्थापित करना है। मानवाधिकारों का मुख्य उद्देश्य शांति और सुरक्षा स्थापित करना है।

मानव अधिकार आयोग का गठन कब किया गया?

भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission (NHRC)) एक स्वायत्त विधिक संस्था है। इसकी स्थापना 12 अक्टूबर 1993 को हुई थी। इसकी स्थापना मानवाधिकार सरक्षण अधिनियम 1993 के तहत की गई।

भारत में मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष कौन है?

पूर्व अध्यक्ष और सदस्य.