चिट्ठियों की अनोखी दुनिया पाठ के लेखक कौन है? - chitthiyon kee anokhee duniya paath ke lekhak kaun hai?

चिट्ठियों की अनोखी दुनिया पाठ के लेखक कौन है? - chitthiyon kee anokhee duniya paath ke lekhak kaun hai?

‘चिट्ठियों की अनूठी दुनिया’ Summary, Explanation, Question and Answers and Difficult word meaning

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया CBSE class 8 Hindi Lesson summary with detailed explanation of the lesson Chitthiyon Ki Anoothi Duniya along with meanings of difficult words. Given here is the complete explanation of the lesson, along with summary. All the exercises and Question and Answers given at the back of the lesson कक्षा – आठ पाठ 5 – चिट्ठियों की अनूठी दुनिया.

कक्षा – 8 पाठ – 5

 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

  • चिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ प्रवेश
  • चिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ-की- व्याख्या
  • चिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ सार
  • चिट्ठियों की अनूठी दुनिया प्रश्न-अभ्यास

Author Introduction

लेखक – अरविंद कुमार सिंह
जन्म – 7 अप्रैल 1965
स्थान – गोंडा कुंवर, जिला बस्ती (उत्तर प्रदेश)

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ प्रवेश

अरविंद कुमार जी अपने इस लेख के द्वारा चिट्ठियों की अनूठी दुनिया के बारे में बताना चाहते हैं कि किस तरह से चिट्ठियों और पत्रों की दुनिया अनूठी है, अनोखी है। आजकल का जमाना वाट्सअप, एसएमएस, मोबइल का जमाना है कोरियर का जमाना है। चिट्ठियाँ कहीं पीछे खो गई है लेकिन एक जमाना था जब चिट्ठियों की बहुत एहमियत थी। लोग डाकिया का इंतजार करते थे और चिट्ठियों को सहेज कर रखते थे। अपने प्रियों जानों कि चिट्ठियों को सहेज कर रखना और पुरानी यादों को फिर ताजा करना बहुत ही सरल था। लेखक ने चिट्ठियों की महत्वता के बारे में बताया है कि पहले किस तरह की चिट्ठियां होती थीं।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ सार

लेखक ‘पत्र’ की महत्ता बताते हैं की आज का युग वैज्ञानिक युग है। मनुष्य के पास अनेक संचार के साधन हैं फिर भी मनुष्य पत्रों का सहारा जरूर लेता है। वे कहते हैं इनके नाम भी भाषा के अनुसार अलग-अलग हैं। तेलगू में उत्तरम, कन्नड़ में कागद, संस्कृत में पत्र, उर्दू में खत, तमिल में कडिद कहा जाता है। आज भी कई लोग अपने पुरखों के पत्र सहेजकर रखें हैं। हमारे सैनिक अपने घर वालों के पत्रों का इंतजार बड़ी बेसब्री से करते हैं।
उन्होंने यह बताते हुए कहा है कि आज भी सिर्फ भारत में प्रतिदिन साढ़े चार करोड़ पत्र डाक में डाले जाते हैं। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी पत्र के महत्त्व को माना है। लेखक कहते हैं कि २०वीं शताब्दी में पत्र केवल संचार का साधन ही नहीं अपितु एक कला मानी गई है। इसे पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया तथा कई पत्र लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित की गई। लेखक का मानना है इस संसार में कोई ऐसा मनुष्य नहीं होगा जिसने कभी किसी को पत्र न लिखा हो।
पत्र सिर्फ एक संचार माध्यम ही नहीं हैं, ये मार्गदर्शक की भूमिका भी निभाते हैं। मोबाइल से प्राप्त एसमएस तो लोग मिटा देते हैं परन्तु पत्र हमेशा सहेज कर रखते हैं। आज भी संग्रहालय में महान हस्तियों के पत्र शोभा बने हुए हैं। महात्मा गांधी के पास पूरे विश्व से पत्र आते थे और वे उनका जवाब तुरंत लिख देते थे। ‘रवीन्द्रनाथ टैगोर’ और ‘महात्मा गांधी’ के पत्र व्यवहार को “महात्मा और कवि” के शीर्षक से प्रकाशित किया गया है।
भारत में पत्र व्यवहार की परम्परा बहुत पुरानी है। सरकारी की अपेक्षा घरेलु पत्र मुख्य भूमिका निभाते हैं क्योकि ये आम लोगो को जोड़ने का काम करते हैं। चाहे गरीब हो या अमीर सभी को अपने प्रियजनों से प्राप्त पत्र का इन्तजार रहता है। गरीब बस्ती में तो मनीऑर्डर लेकर आने वाले डाकिए को लोग देवता समझते हैं। अंत में वे कहते हैं कि अत्यधिक संचार साधनों के होने के बावजूद  भी पत्रों की अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका है।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ की व्याख्या

पत्रों की दुनिया भी अजीबो-गरीब है और उसकी उपयोगिता हमेशा से बनी रही है। पत्र जो काम कर सकते हैं, वह संचार का आधुनिकतम साधन नहीं कर सकता है। पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश कहाँ दे सकता है।

आधुनिकतम: नये ज़माने के

पत्रों की दुनिया है तो बहुत अजीब-गरीब – पहले जमाने में कबूतर, घोड़े अन्य चीजों का साधान के रूप में प्रयोग किया जाता था। व्यक्तिगत या सरकारी बातें पहुँचाने का माध्यम या तो कबूतर या फिर घोड़े, हाथी थे। पर एक जमाना आया जब डाकिये होने लगे, चिट्ठियाँ लिखी जाने लगी और एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाई जाने लगी। इनकी उपयोगिता हमेशा बनी रहेगी क्योंकि हम चिट्ठियों के द्वारा पुराने समय के बारे में जान सकते है। पत्र जो काम कर सकते है, वह संचार के नये साधान नहीं कर सकते। वाट्सअप, मैसेजस् और मोबइल फोन का इस्तेमाल बढ़ गया है लेकिन फिर भी चिट्ठियाँ अपनी जगह है। पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश कहाँ दे सकता है। यह बात बहुत ही सही कही है लेखक ने।

पत्र एक नया सिलसिला शुरू करते हैं और राजनीति, साहित्य तथा कला के क्षेत्रों में तमाम विवाद और नयी घटनाओं की जड़ भी पत्र ही होते हैं। दुनिया का तमाम साहित्य पत्रों पर केंद्रित है और मानव सभ्यता के विकास में इन पत्रों ने अनूठी भूमिका निभाई है।

सिलसिला: चलन
विवाद: झगड़ा
दुनिया: संसार
तमाम: बहुत
केंद्रित: आधारित
अनूठी: अलग

पत्र एक नया चलन शुरू करते हैं और राजनीति, साहित्य तथा कला के क्षेत्रों में तमाम झगड़े और नयी घटनाओं की जड़ भी पत्र ही होते है। हम देखते है कि राजनीति में क्या उथल-पुथल हुई उस पर भी पत्र लिखे गए। हमारे साहित्य में किस तरह की उतार-चढ़ाव आए, कला के क्षेत्रों में क्या-क्या बदलाव आए यह भी सब हम चिट्ठियों के द्वारा जान सकते है। तमाम तरह के विवाद, झगड़े और नयी-नयी घटनाओं की जड़ पत्र ही होते है। पत्रों के द्वारा ही हमें इन सब के बारे में जानकारी मिलती है। संसार का बहुत साहित्य पत्रों पर आधारित है। दुनिया का बहुत सारा इतिहास पत्रों पर आधारित है और मानव सभ्यता के विकास में इन पत्रों ने अलग भूमिका निभाई है। मानव सभ्यता किस तरह से विकास में आई इसके बारे में भी इन पत्रों से जानकारी  मिलती है ।

पत्रों का भाव सब जगह एक-सा है, भले ही उसका नाम अलग-अलग है। पत्र को उर्दू में खत, सस्ंकृत में पत्र, कन्नड़ में कागद, तेलुगु में उत्तरम्, जाबू और लेख तथा तमिल में कडिद कहा जाता है।

चाहे वह कोई भी देश हो पत्र अपना महत्व रखते है। हमारे ही देश में अलग-अलग इलाकों में अगल-अलग भाषाऐं बोली जाती है और उनमें पत्र को अलग-अलग नाम से पुकारा गया है। जैस उर्दू में खत, कन्नड में कागद, और तमिल में कडिद कहा जाता है।

पत्र यादों को सहेजकर रखते हैं, इसमें किसी को कोई संदेह नहीं है। हर एक की अपनी पत्र लेखन कला है और हर एक के पत्रों का अपना दायरा। दुनिया भर में रोज करेड़ों पत्र एक दूसरे को तलाशते तमाम ठिकानों तक पहुँचते हैं।

सहेजकर: संभालकर
संदेह: शक
दायरा: सीमा
तलाशते: ढूंढते
ठिकानों: जगह

पत्र यादों को संभालकर रखते हैं। पत्र में जो बात लिखी जाती है वो एक स्थाई रूप में हमारे सामने उपलब्ध होती है। उसे कोई मिटा नहीं सकता, उसे कोई बदल नहीं सकता और उन्हें हम सहेजकर रख सकते है और हम उस सयम की याद को ताजा कर सकते है। इस बात से सभी सहमत होगें। सबका पत्र लिखने का अपना अपना तरीका है और हर एक पत्र का अपना दायरा है। कुछ लोग खुलकर बात कहते है तो कुछ लोग अपनी बातों को छुपा जाते हैं । दुनिया भर में हजारों करोड़ों पत्र हर रोज लिखे जाते है अभी भी यह चलन है लेकिन थोड़ा सा कम जरूर हुआ है। लेकिन जब पत्र लिखे जाते है उनको सही व्यक्ति तक पहुँचाने के लिए उसके सही पते पर पहुँचाने के लिए अभी भी लोगों को उनकी तलाश रहती है और उनका इंतजार रहता है।

भारत में ही रोज साढ़े चार करोड़ चिट्ठियाँ डाक में डाली जाती हैं जो साबित करती हैं कि पत्र कितनी अहमियत रखते हैं।

साबित: सिद्ध
अहमियत: महत्त्व

भारत में ही रोज साढ़े चार करोड़ चिट्ठियाँ डाक में डाली जाती है जो सिद्ध करती है कि पत्र कितनी अहमियत रखते है। पत्र आज की दुनिया में भी उतना ही महत्त्व रखते है जितना की पहले लेकिन आज उसके लेखन में थोड़ी सी कमी जरूर आई है। अब लोग पत्र लिखना पसंद नहीं करते क्योंकि उनके पास अब ऐसे साधान आ गए हैं – मोबाईल फोन और अन्य साधान जिनके द्वारा बहुत आसानी से इंटरनेट के द्वारा बहुत ही सुविधापूर्वक मैसेज पहुँचाकर अपनी बात दूसरे से कही जा सकती है ।

चिट्ठियों की अनोखी दुनिया पाठ के लेखक कौन है? - chitthiyon kee anokhee duniya paath ke lekhak kaun hai?

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने सन् 1953 में सही ही कहा था कि- ‘‘हजारों सालों तक संचार का साधन केवल हरकारे या फिर तेज घोडे़ रहे हैं। उसके बाद पहिए आए। पर रेलवे और तार से भारी बदलाव आया। तार ने रेलों से भी तेज गति से संवाद पहुँचाने का सिलसिला शुरू किया। अब टेलीफोन, वायरलैस और आगे रेडार-दुनिया बदल रहा है।’’

हरकारे: दूत

पंडित जवारहलाल नेहरू ने सन् 1953 में कहा था कि पहले जमाने में एक जगह से दूसरे जगह राजा अपने दूत के ही द्वारा मैसेज अर्थात् संदेश पहुंचाते थे । या फिर पुराने समय में तेज दौड़ने वाले घोड़े थे – उनका इस्तेमाल संदेश पहुँचाने के लिए किया जाता था। उसके बाद पहिए आए अर्थात् यातायात के साधानों में वृद्धि हुई और एक जगह से दूसरी जगह संदेश पहुँचाना आसान हो गया। पर बस, रेलवे और तार से भारी बदलाव आया। जब हिन्दुस्तान में रेलवे का विकास हुआ और तार से एक जगह से दूसरे जगह संदेश भेजना आसान हो गया। पहले, बहुत ही संक्षेप में तार के द्वारा लोग मैसेंज पहुँचाते थे ।  अभी भी इन सब संचार के साधानों में विकास हो रहा है प्रगति हो रही है। हर रोज नय-नए साधान उपलब्ध हो रहे हैं । संदेश पहुँचाने का सिलसिला बहुत ही तेज गति से बदल रहा है।

पिछली शताब्दी में पत्र लेखन ने एक कला का रूप ले लिया। डाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्रों को सही दिशा देने के लिए विशेष प्रयास किए गए। पत्र संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन का विषय भी शामिल किया गया।

शताब्दी: सौ वर्ष 
प्रयास: कोशिश
संस्कृति: परम्परा
विकसित: बढ़ावा
पाठ्यक्रमों: सिलेबस

पिछले सौ वर्षों में पत्र लेखन ने एक कला का रूप ले लिया है। आज कल पत्र लेखन की कला सीखी भी जाती है।  पत्र लेखन की कला को सुधारने के लिए कुछ खास तरह के प्रयास तथा कोशिश की जा रही है। पत्र लिखने की परम्परा को बढ़ावा देने के लिए स्कूली सिलेबस में शामिल किया गया है ताकि बच्चे भी इस कला से अवगात हो सके और पत्र लेखन की कला में निपुण हो जाए।

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भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में ये प्रयास चले और विश्व डाक संघ ने अपनी ओर से भी काफी प्रयास किए। विश्व डाक संघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयुवर्ग के बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित करने का सिलसिला सन् 1972 से शुरू किया गया।

सिलसिला: क्रम

भारत में नहीं दुनिया के कई देशों  में पत्र लेखन के मुकाबले होते हैं । जो बहतेरीन करते  है उन्हें पुरस्कार दिए जाते हैं ।विश्व डाक संघ ने भी अपनी ओर से काफी प्रयास किए है। जो पूरी दुनिया की डाक संस्था है वो भी इस बात पर ध्यान देती है कि पत्रलेखन के विकास में ज्यादातार प्रयास किए जाएँ । विश्व डाक संघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयुवर्ग के बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती है। ऐसा आयोजित करने का सिलसिला सन् 1972 से शुरू किया गया था। सर्वप्रथम शुरूआत 1972 में हुई थी उसके बाद से लेकर आज तक यह हर वर्ष होता है।।

यह सही है कि खास तौर पर बड़े शहरों और महानगरों में संचार साधनों के तेज विकास तथा अन्य कारणों से पत्रों की आवाजाही प्रभावित हुई है पर देहाती दुनिया आज भी चिट्ठियों से ही चल रही है। फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ने चिट्ठियों की तेजी को रोका है पर व्यापारिक डाक की संख्या लगातार बढ़ रही है।

आवा-जाही : आना-जाना
देहाती: गाँव

आज भी गाँव में चिट्ठियों का आना-जाना लगा रहता है क्योंकि गाँव के लोग कुछ ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं होते है उनके पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है तो वह आज कल भी चिट्ठियों का ही चलन जारी रखे हुए है।आज कल हम देखते है फैक्स आ गए है जोकि तुरंत एक जगह से दुसरे जगह डॉक्युमेंट, प्रमाण पत्र तुरंत भेज देता है । ई-मेल के द्वारा हम पूरी दुनिया में संदेश भेज सकते है, टेलीफोन एक बहुत ही अच्छा साधान है जो आज कल सबके पास उपलब्द है। इन सबने चिट्ठियों की तेजी को रोक दिया है । पर व्यापारिक डाक की संख्या लगातार बढ़ रही है क्योंकि लोगों का बिजेनस बढ़ रहा है और उसके लेन-देन में चिट्ठियों का इस्तेमाल किया जाता है।

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जहाँ तक पत्रों का सवाल है अगर आप बारीकी से उसकी तह में जाएँ तो आपको ऐसा कोई नहीं मिलेगा जिसने कभी किसी को पत्र न लिखा या न लिखाया हो या पत्रों का बेसब्री से जिसने इंतजार न किया हो।

तह: गहराई 
बारीकी: सूक्ष्मता 
बेसब्री: अधीरता

आपको ऐसा कोई नहीं मिलेगा जिसने अपनी जिन्दगी में कभी किसी को पत्र न लिखा हो या न लिखाया हो। ऐसा भी कोई व्यक्ति ढूँढे़ नहीं मिलेगा जिसने अपनी जिन्दगी में किसी को पत्र न लिखा हो या फिर पत्र का इंतजार न किया हो । पत्रों का इंतजार बहुत ही बैचेनी से जारी रहा है।

हमारे सैनिक तो पत्रों का जिस उत्सकुता से इतंजार करते हैं उसकी कोई मिसाल ही नहीं। एक दौर था जब लोग पत्रों का महीनों इंतजार करते थे पर अब वह बात नहीं। परिवहन साधनों के विकास ने दूरी बहुत घटा दी है।

उत्सकुता: अधीरता 
इतंजार: प्रतीक्षा 
मिसाल: उदहारण 
परिवहन: यातायात

सैनिक इतने सालों तक हमारे देश की सीमा पर मौजूद रहते है और अपने घर से पत्रों के आने का इंतजार करते है।  यह एक बहुत ही सुंदर उदहारण और मिसाल है कि उन्हें कितनी बैचेनी से रिस्तेदारों, घरवालों के पत्रों का इंतजार रहता है। एक समय था जब लोग पत्रों का महीनों इंतजार करते थे क्योंकि पत्रों को पहुँचने में ही इतना समय लग जाता था कि उन्हें महीनों इंतजार करना पड़ता था पर अब वह बात नहीं है। अब तो यह तेज़ गति से होने लगा है। यातायात के साधनों के विकास ने दूरी घटा दी है। यातायात के साधनों के वजह से अब पत्र एक जगह से दूसरी जगह आसानी से पहुँचने लगे है।

पहले लोगों के लिए संचार का इकलौता साधन चिट्ठी ही थी पर आज और भी साधन विकसित हो चुके हैं। आज देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने पुरखों की चिट्ठियों को सहेज और सँजोकर विरासत के रूप में रखे हुए हों या फिर बड़े-बड़े लेखक, पत्रकारों, उद्यमी, कवि, प्रशासक, संन्यासी या किसान, इनकी पत्र रचनाएँ अपने आप में अनुसंधान का विषय हैं।

इकलौता: अकेला
विकसित: बढ़े
पुरखों: पूर्वजों
सँजोकर: संभालकर
विरासत: धरोहर
उद्यमी: व्यापारी
अनुसंधान: खोज

पहले लोगों के लिए संचार का एक मात्र साधन चिट्ठी ही थी। आज अनेक तरह के साधन हमारे पास उपलब्ध है – मोबाइल, टेलिफोन, फैक्स, इंटरनेट, कप्युटर- इनके द्वारा हम अपने संदेश एक जगह से दूसरी जगह बहुत ही आसानी से पहुँचा सकते है। लेकिन एक समय था जब चिट्ठी ही एक मात्र साधान था। आज ऐसे लोग नहीं मिलेंगे जो अपने पूर्वजों की चिट्ठियों को संभालकर, धरोहर के रूप में रखे हुए हों या फिर बड़े-बड़े लेखक, पत्रकार, व्यापारी, कवि, प्रशासक, संन्यासी,किसान – इन सबकी पत्र रचनाएँ अपने आप में एक खोज का विशय है। इन सब में से किसी एक के द्वारा लिखे गए पत्र को पढ़ेंगे तो हम जान पाऐंगे कि वह जमाना कैसा था और उस समय में किस तरह के कार्य हुआ करते थे।

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अगर आज जैसे संचार साधन होते तो पंडित नेहरू अपनी पुत्री इंदिरा गांधी को फोन करते, पर तब पिता के पत्र पुत्री के नाम नहीं लिखे जाते जो देश के करोड़ों लोगों को प्रेरणा देते हैं।

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अगर उस समय में ऐसा जमाना होता, इतने सारे साधन उपलब्ध होते तो शायद पंड़ित नेहरू भी अपनी पुत्री को पत्र न लिख कर फोन करते। पंड़ित नेहरू के द्वारा अपनी पुत्री इंदिरा गांधी को लिखे पत्र पुस्तक के रूप में सहेज कर रखे गए है जिन्हें आज भी पाठक पढ़कर एक प्रेरणा पाते हैं । उस समय के युवा लोग किस तरह से देश की आजादी के लिए लड़ रहे थे – आज भी ये पत्र उनके लिए प्रेरणा स्त्रोत है।

पत्रों को तो आप सहजेकर रख लेते हैं पर एसएमएस संदेशों को आप जल्दी ही भूल जाते हैं। कितने संदेशों को आप सहेजकर रख सकते हैं? तमाम महान हस्तियों की तो सबसे बड़ी यादगार या धरोहर उनके द्वारा लिखे गए पत्र ही हैं।

सहेजकर: संभालकर 
तमाम: सभी 
हस्तियों: नामी लोग

इतनी स्पीड़ से मैसेजस् हमारे पास आते हैं, उनमें से कितनों को सहेजकर रखना अब मुमकिन नहीं है । सभी प्रसिद्द लोगों की तो सबसे बड़ी यादगार उनके द्वारा लिखे गए पत्र ही है।

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भारत में इस श्रेणी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को सबसे आगे रखा जा सकता है। दुनिया के तमाम संग्रहालय जानी मानी हस्तियों के पत्रों का अनूठा संकलन भी हैं। तमाम पत्र देश, काल और समाज को जानने-समझने का असली पैमाना हैं।

पैमाना: मापदंड

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की चिट्ठियों को आज भी युवाजन पढ़ना चाहते है। जब हम पत्रों को पढ़ते है तो उस समय हमारे देष में हालात कैसे थे, कैसा समय था और कैसा चलन था समाज किस दशा में था यह सब जानने और समझने का मौका मिलता है और यही एक मात्र मापदंड है।

भारत में आजादी के पहले महासंग्राम के दिनों में जो कुछ अंग्रेज अफ्सरों ने अपने परिवार जनों को पत्र में लिखा वे आगे चलकर बहुत महत्त्व की पुस्तक तक बन गए। इन पत्रों ने साबित किया कि यह संग्राम कितनी जमीनी मजबूती लिए हुए था।

साबित: सिद्ध
जमीनी: वास्तविक

इन पत्रों ने साबित कर दिया कि यह युद्व हुआ था दो सौ सालों तक – अंग्रजों ने हमारे देश पर राज किया था और उसके खिलाफ हमारें भारतीय सैनिकों ने और भारतीय नेताओं ने जो युद्ध छेड़ा था उसकी कितनी जमीनी मजबूती थी। इन पत्रों ने यह साबित कर दिया है – इन पत्रों के द्वारा सही जान पाए है कि उस समय में जो संग्राम छिड़ा था जो युद्ध छिड़ा था, उसकी  वास्तविक भूमिका क्या थी।

महात्मा गांधी के पास दुनिया भर से तमाम पत्र केवल महात्मा गांधी-इंडिया लिखे आते थे और वे जहाँ भी रहते थे वहाँ तक पहुँच जाते थे। आजादी के आंदोलन की कई अन्य दिग्गज हस्तियों के साथ भी ऐसा ही था।

केवल: सिर्फ
दिग्गज: महान

किसी भी पत्र पर सिर्फ महात्मा गाँधी -इंडिया लिख जाता तो वह पत्र महात्मा गाँधी के पास अपने आप पहुँच जाता। आजादी के आंदोलन की कई अन्य महान हस्तियाँ उनके साथ भी ऐसा ही था। महात्मा गाँधी जी के अलावा उनके साथ जुड़े हुए आजादी के आंदोलन में बहुत सारे महान हस्तियों ने हिस्सा लिया था। उनके साथ भी कुछ ऐसा ही था उनके नाम पत्र के ऊपर  लिखे  जाते थेऔर वह पत्र सीधे उनके पास पहुँच जाया करते थे।

गांधीजी के पास देश-दुनिया से बड़ी संख्या में पत्र पहुँचते थे पर पत्रों का जवाब देने के मामले में उनका कोई जोड़ नहीं था। कहा जाता है कि जैसे ही उन्हें पत्र मिलता था, उसी समय वे उसका जवाब भी लिख देते थे।

जोड़: बराबरी 
जवाब: उत्तर 

लोग उन्हें देश विदेश से पत्र लिखते थे पर पत्रों का जवाब देने के मामले में उनकी  बराबरी नहीं था, वह हर किसी पत्र का जवाब अवष्य देते थे।

अपने हाथों से ही ज्यादातर पत्रों का जवाब देते थे। जब लिखते-लिखते उनका दाहिना हाथ दर्द करने लगता था तो वे बाएँ हाथ से लिखने में जुट जाते थे। महात्मा गांधी ही नहीं आंदोलन के तमाम नायकों के पत्र गाँव-गाँव में मिल जाते हैं।

जब लिखते समय में उनका दाहिना हाथ थक जाता तो वह बाएँ हाथ से लिखना शुरू कर देते थे। महात्मा गांधी ही नहीं आंदोलन के तमाम नायकों के पत्र गाँव-गाँव में मिल जाते है। आजकल भी जो पुराने लोग बचे हुए है, हमें उनके द्वारा लिखे गए पत्र उनके पास  गाँव-गाँव में मिल जाते हैं।

पत्र भेजनेवाले लोग उन पत्रों को किसी प्रशस्तिपत्र से कम नहीं मानते हैं और कई लोगों ने तो उन पत्रों को फ्रेम कराकर रख लिया है। यह है पत्रों का जादू। यही नहीं, पत्रों के आधार पर ही कई भाषाओं में जाने कितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं।

प्रशस्तिपत्र: प्रशंसा पत्र

पत्र भेजनेवाले लोग उन पत्रों को प्रशंसा के योग्य पत्र से कम नहीं मानते हैं और कई लोगों ने तो उन पत्रों को फ्रेम कराकर भी रख लिया है। डॉईंग-रूम में इन पत्रों को एक फोटो फ्रेम में फ्रेम-कराकर बहुत अच्छे तरीके से सहेज कर रखा गया है। पत्र पाठक के मनोभाव पर एक जादूगार की तरह असर छोड़ते हैं, उनपर एक गहरा प्रभाव छोड़ते हैं। ऐसी बहुत सारी कहानियाँ है और बहुत सारी फिल्में है जो पत्रों पर ही आधारित कहानी पर लिखी गई है।

वास्तव में पत्र किसी दस्तावेज से कम नहीं हैं। पंत के दो सौ पत्र बच्चन के नाम और निराला के पत्र हमको लिख्यौ है कहा तथा पत्रों के आईने में दयानंद सरस्वती समेत कई पुस्तकें आपको मिल जाएँगी।

दस्तावेज: प्रमाण पत्र

महान लोगों के द्वारा लिखे गए पत्र,  जिन्हें सहेज कर रखा गया है, किसी प्रमाण पत्र से कम नहीं है। सुमित्रा नंदन पंत जी के द्वारा लिखे गए दो-सौ पत्र जो हरिवंश राय बच्चन जी के नाम लिखे गए और सूर्यकांत तिपाठी निराला के पत्र – इन दोनों के पत्रों को एकत्र करके “हमको लिख्यौ है” कहानी में संकलित किया गया है। तथा पत्रों के आईने में दयानंद सरस्वती समेत कई अन्य महान लोगों के द्वारा लिखी गई पुस्तके भी आपको मिल जाएँगी जिन्हें पढ़कर आप उस समय के पत्रों के बारे में जान सकते है।

कहा जाता है कि प्रेमचंद खास तौर पर नए लेखकों को बहुत प्रेरक जवाब देते थे तथा पत्रों के जवाब में वे बहुत मुस्तैद रहते थे। इसी प्रकार नेहरू और गांधी के लिखे गए रवींद्रनाथ टैगोर के पत्र भी बहुत प्रेरक हैं।

प्रेरक: प्रेरणा देने वाले
मुस्तैद: तत्पर

कहा जाता है कि प्रेमचंद जोकि साहित्यकार के बहुत जाने माने लेखक रहे है इनके द्वारा लिखी गई रचनाएँ अनोखी है। उनहोंने आने वाले नए लेखकों को भी प्रेरणा दी है । जब भी उनके पास पत्र पहुँचता था तो उसका जवाब देने के लिए हमेषा तैयार रहते थे।

चिट्ठियों की अनोखी दुनिया पाठ के लेखक कौन है? - chitthiyon kee anokhee duniya paath ke lekhak kaun hai?

‘महात्मा और कवि’ के नाम से महात्मा गांधी अैर रवीद्रंनाथ टैगोर के बीच सन् 1915 से 1941 के बीच के पत्राचार का संग्रह प्रकाशित हुआ है जिसमें बहुत से नए तथ्यों और उनकी मनोदशा का लेखा-जोखा मिलता है।

संग्रह: जमा करना 
प्रकाशित: छापना 
तथ्यों: हकीकत 
मनोदशा: मन की दशा 
लेखा-जोखा: हिसाब-किताब

महात्मा गांधी और रवींद्रनाथ टैगोर के द्वारा 1915 से लेकर 1941 के बीच लिखे गए पत्रों को छापा गया जिसमें बहुत सी हकीकत को जागरूक किया गया और उनकी मन की दषा का हिसाब-किताब भी मिलता है। जब भी हम इन पत्रों को पढ़ते हैं तो उस समय की हकीकत को जान पाते हैं।

पत्र व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। पर इसका असली विकास आजादी के बाद ही हुआ है। तमाम सरकारी विभागों की तुलना में सबसे ज्यादा गुडविल डाक विभाग की ही है।

गुडविल डाक विभाग: वे पत्र जो अनौपचारिक होते हैं उनका विभाग

भारत में पत्रों की लिखे जाने की और उनके एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाने की परम्परा बहुत पहले ही षुरू हो चुकी थी पर इसका असली विकास आजादी के समय के बाद ही हुआ। तमाम सरकारी विभागों की तुलना में सबसे ज्यादा विकास किया वो किया ‘गुडविल डाक विभाग ने’ जिसका अर्थ है वे पत्र जो अनौपचारिक होते हैं उनका विभाग अर्थात् एक दूसरे को लिखे गए अनौपचारिक पत्र ।

इसकी एक खास वजह यह भी है कि यह लोगों को जोड़ने का काम करता है। घर-घर तक इसकी पहुँच है। संचार के तमाम उन्नत साधनों के बाद भी चिट्ठी-पत्री की हैसियत बरकरार है।

उन्नत: बढ़ते

पत्र लेखन का कला और पत्र एक दूसरे को भेजना लोगों को जोड़ता है । आज के समय में भी चिट्ठी पत्रों ने अपनी महत्वता को खोया नहीं है, अपनी हैसियत को बरकरार रखा है । आज भी लोगों को चिट्ठियों, पत्रों का इंतजार रहता है।

शहरी इलाकों में आलीशान हवेलियाँ हो या फिर झोपड़ियों में रह रहे लोग, दुर्गम जंगलों से घिरे गाँव हों या फिर बर्फबारी के बीच जी रहे पहाड़ों के लोग, समुद्र तट पर रह रहे मछुआरे हों या फिर रेगिस्तान की ढाँणियो में रह रहे लोग, आज भी खेतों का ही सबसे अधिक बेसब्री से इंतजार होता है।

आलीशान: शानदार 
दुर्गम: कठिन रास्ते 
ढाँणियों: कच्चे मकानों की बस्ती 
बेसब्री: अधीरता

आज भी अलग-अलग स्थान के लोग – कठिन रास्ते में रहने वाले लोग, पहाड़ों पर, रेगिस्तान में, बर्फ में और जंगलो में – चिट्ठियों और पत्रों का इंतजार बहुत ही बैचेनी से करते है। चाहे शहरी इलाकों में शानदार हवेलियाँ हो या फिर झोपड़ियों में रहने वाले लोग या फिर गाँव हो या फिर बर्फबारी के बीच जी रहे पहाड़ों के लोग आज भी खतों का ही सबसे अधिक इंतजार करते है।

एक दो नहीं, करोड़ों लोग खतों और अन्य सेवाओं के लिए रोज भारतीय डाकघरों के दरवाजों तक पहुँचते हैं और इसकी बहु आयामी भूमिका नजर आ रही है।

आयामी: हर तरफ

किसी को खत पहुँचाना होता है तो किसी को मॉनीआर्डर के द्वारा पैसे पहुँचाना होते है इन सब सुविधाओं के लिए लोग डाकघर ही पहुँचते हैं। आप जहाँ देखे- हर मोहल्ले में, हर गाँव में, गाली में, शहरों में आप डाक-खाना अवश्य ही पाँऐंगे।

चिट्ठियों की अनोखी दुनिया पाठ के लेखक कौन है? - chitthiyon kee anokhee duniya paath ke lekhak kaun hai?

दूर देहात में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीआर्डर अथर्व्यवस्था से ही जलते हैं। गाँवों या गरीब बस्तियों में चिट्ठी या मनीआडर्र लेकर पहुँचनेवाला डाकिया देवदूत के रूप में देखा जाता है।

अथर्व्यवस्था: घर चलाने का जरिया

गाँव में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीआर्डर द्वारा आए पैसों से चलते हैं। घर में कामाने वाले लोग दूर शहरों में काम करते है और वह मनीआर्डर के द्वारा पैसे घर-परिवार के गुजारे के लिए भेजते हैं। गाँवों या गरीब बस्तियों में चिट्ठी या मनीआर्डर लेकर पहुँचनेवाला डाकिया देवदूत के रूप में देखा जाता है। उसकी पूजा की जाती है,जैसे वह दरवाजे पर आ गया मानों ईश्वर ही आ गये हों।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया प्रश्न अभ्यास (महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर )

प्र॰1 पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश क्यों नहीं दे सकता?

उत्तर – पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश नही दे सकता क्योंकि पत्र जो काम कर सकते हैं, वह नये जमाने के संचार के साधन नहीं कर सकते। पत्र एक नया सिलसिला शुरू करते हैं और राजनीति, साहित्य तथा कला के क्षेत्रों में तमाम विवाद और नयी घटनाओं की जड़ भी पत्र ही होते हैं। दुनिया का तमाम साहित्य पत्रों पर केंद्रित है और मानव सभ्यता के विकास में इन पत्रों ने अनूठी भूमिका निभाई है।

प्र॰2 पत्र को खत, कागद, उत्तरम्, जाबू, लेख, कडिद, पाती, चिट्ठी इत्यादि कहा जाता है। इन शब्दों से संबंधित भाषाओं के नाम बताइए।

उत्तर – पत्र को उर्दू में खत और चिट्ठी, सस्ंकृत में पत्र, कन्नड़ में कागद, तेलुगु में उत्तरम्, जाबू और लेख, हिंदी में पाती तथा तमिल में कडिद कहा जाता है।

प्र॰3 पत्र लेखन की कला के विकास के लिए क्या-क्या प्रयास हुए? लिखिए।

उत्तर – पत्र लेखन की कला के विकास के लिए निम्न प्रयास हुए। डाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्रों को सही दिशा देने के लिए विशेष प्रयास किए गए। पत्र संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों  में पत्र लेखन का विषय भी शामिल किया गया। विश्व डाक संघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयवुर्ग के बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित करने का सिलसिला सन् 1972 से शुरू किया गया।

प्र॰4- पत्र धरोहर हो सकते हैं लेकिन एसएमएस क्यों नहीं? तर्क सहित अपना विचार लिखिए।

उत्तर – आज देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने पुरखों की चिट्ठियों को सहेज और सँजोकर विरासत के रूप में रखे हुए हों, पत्रों को तो आप सहजेकर रख लेते हैं पर एसएमएस सदेंषां को आप जल्दी ही भूल जाते हैं। कितने संदेशों को आप सहेजकर रख सकते हैं? तमाम महान हस्तियों की तो सबसे बड़ी धरोहर उनके द्वारा लिखे गए पत्र ही हैं। भारत में इस श्रेणी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को सबसे आगे रखा जा सकता है। दुनिया के तमाम संग्रहालय में जानी मानी हस्तियों के पत्रों का अनूठा संकलन भी हैं। इसलिए कहा जाता है कि पत्र धरोहर हो सकते हैं लेकिन एसएमएस नहीं।

प्र॰5 क्या चिट्ठियों की जगह कभी फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ले सकते हैं?

उत्तर – चिट्ठियों की जगह कभी फैक्सए ई-मेलए टेलीफ़ोन तथा मोबाइल नहीं ले सकते है क्योंकि यह सब वैज्ञानिक युग के हैंए जो मानव के लिए बहुत महत्त्व रखते है परन्तु ये कभी भी पत्रों का स्थान नहीं ले सकते।
जितना प्रेम और अपनापन हमे पत्रों में लिखित एक-एक शब्द द्वारा मिलता है वह इन विकसित संचार साधनो द्वारा नहीं। इसलिए ये कभी भी चिट्ठियों का स्थान नहीं ले सकते।

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चिट्ठियों की दुनिया पाठ के लेखक कौन है?

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ का सार (सारांश) 'चिट्ठियों की अनूठी दुनिया' नामक निबंध के लेखक अरविंद कुमार सिंह हैं। इस निबंध में लेखक ने पत्रों के महत्त्व, उनकी उपयोगिता, तथा पत्रों से होने वाले लाभ का वर्णन बहुत ही सरल शैली में किया है।

चिट्ठियों की दुनिया अनूठी है कैसे?

चिट्ठियों की दुनिया अनूठी अर्थात् निराली है। वर्तमान में भी संदेश भेजने का सर्वोत्तम साधन पत्रों को ही माना जाता है। भले ही फोन, एस. एम.एस., फैक्स, ई-मेल आदि ने संचार के साधनों में अपना विशेष स्थान बनाया है लेकिन पत्र के महत्त्व को कम नहीं कर सके।

चिट्ठियों को और क्या कह सकते हैं?

2. पत्र को खत, कागद, उत्तरम्, जाबू, लेख, कडिद, पाती, चिट्ठी इत्यादि कहा जाता है।

पत्र ऐसा क्या काम कर सकता है जो संचार का आधुनिकतम साधन भी नहीं कर सकता?

(क) पत्र ऐसा क्या काम कर सकता है, जो संचार का आधुनिकतम साधन भी नहीं कर सकता ? उत्तर : पत्र मानसिक रूप से एक व्यक्ति को संतोष दे सकते है। पत्र हमेशा नया सिलसिला शुरू कर सकते है―राजनीति, साहित्य, कला के क्षेत्र में नई नई घटनाओं को भी पत्र के माध्यम से ही दे सकते है। जो आधुनिक साधनों ने नहीं दे सकते भी है ।