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चश्मे को देखकर Question 2. Answer: (a) हालदार साहब जब भी इस कस्बे से गुजरते तो वे
नेताजी की मूर्ति वाले चौराहे पर रुककर पान खाते थे Question 3. Answer: (d)
उपर्युक्त सभी कथन सत्य हैं Question 4. Answer: (b) चश्मे वाले कैप्टन को पागल कहना। Question 5. Answer: (c) कैप्टन बूढ़ा, मरियल तथा लंगड़ा आदमी था Question 6. Answer: (a) वह फेरी लगाकर चश्मे बेचता था Question 7. Answer: (b) कैप्टन की मृत्यु का समाचार सुनकर। Question 8. Answer: (b) देश-भक्ति की भावना। Question 9. Answer: (a) सन् 1947 में इंदौर, मध्य प्रदेश में Question 10. Answer: (c) चिता के फूल Question 11. Answer: (d) सुभाष चंद्र बोस Question 12. Answer: (a) विलुप्त होती देश-भक्ति की भावना
को Question 13. Answer: (b) उनको अच्छे मूर्तिकार की जानकारी नहीं थी। Question 14. Answer: (b) कस्बे के हाईस्कूल के ड्राइंग मास्टर को। Question 15. Answer: (c) मैं नेताजी की मूर्ति एक माह में बना दूंगा। Question 16. Answer: (a) मूर्ति की आँखों पर संगमरमर का चश्मा न होना। गद्यांश पर आधारित बहुविकल्पीय प्रश्न (1) हालदार साहब को हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम के सिलसिले में उस कस्बे से गुज़रना पड़ता था। कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। जिसे पक्का मकान कहा जा सके वैसे कुछ ही मकान और जिसे बाज़ार कहा जा सके वैसा एक ही बाज़ार था। कस्बे में एक लड़कों का स्कूल, एक लड़कियों का स्कूल, एक सीमेंट का छोटा-सा कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक ठो नगर पालिका भी थी। नगर पालिका थी तो कुछ-न-कुछ करती भी रहती थी। कभी कोई सड़क पक्की करवा दी, कभी कुछ पेशाबघर बनवा दिए, कभी कबूतरों की छतरी बनवा दी तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिए। इसी नगर पलिका के किसी उत्साही बोर्ड या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार ‘शहर’ के मुख्य बाज़ार के मुख्य चौराहे पर नेताजी सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी। Question 1. Answer: (c) हालदार साहब Question 2. Answer: (d) बहुत बड़ा नहीं था Question 3. Answer: (a) एक अदद Question 4. Answer: (b) सुभाष चंद्र बोस Question 5. Answer: (d) सीमेंट कारखाना। (2) जैसा कि कहा जा चुका है, मूर्ति संगमरमर की थी। टोपी की नोक से कोट के दूसरे बटन तक कोई दो फुट ऊँची। जिसे कहते हैं बस्ट । और सुंदर थी। नेताजी सुंदर लग रहे थे। कुछ-कुछ मासूम और कमसिन । फौजी वर्दी में। मूर्ति को देखते ही ‘दिल्ली चलो’ और ‘तुम मुझे खून दो…..’ वगैरह याद आने लगते थे। इस दृष्टि से यह सफ़ल और सराहनीय प्रयास था। केवल एक चीज़ की कसर थी जो देखते ही खटकती थी। नेताजी की आँखों पर चश्मा नहीं। था। यानी चश्मा तो था, लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कस्बे से गुज़रे और चौराहे पर पान खाने रुके, तभी उन्होंने इसे लक्षित किया और उनके चेहरे पर एक कौतुकभरी मुसकान फैल गई। वाह भई! यह आइडिया भी ठीक है। मूर्ति पत्थर की, लेकिन चश्मा रियल! Question 1. Answer: (d) संगमरमर की। Question 2. Answer: (c) छाती तक मूर्ति को कहते हैं। Question 3. Answer: (c) फौजी वर्दी में। Question 4. Answer: (a) चौड़ा काला असली फ्रेम वाला। Question 5. Answer: (b) कौतुक-भरी। (3) हालदार साहब की आदत पड़ गई, हर बार कस्बे से गुजरते समय चौराहे पर रुकना, पान खाना और मूर्ति को ध्यान से देखना। एक बार जब कौतूहल दुर्दमनीय हो उठा तो पानवाले से ही पूछ लिया, क्यों भाई! क्या बात है ? यह तुम्हारे नेताजी का चश्मा हर बार बदल कैसे जाता है ? Question 1. Answer: (b) पान खाने की Question 2. Answer: (a) जिसे मुश्किल से दबाया जा सके। Question 3. Answer: (d) नेताजी का चश्मा हर बार कैसे बदल जाता है। Question 4. Answer: (b) काला मोटा और खुशमिज़ाज। Question 5. Answer: (b) लाल रंग के बत्तीस दाँत, जो पान खाने से लाल हो गए थे। (4) पानवाले के लिए यह एक मजेदार बात थी लेकिन हालदार साहब के लिए चकित और द्रवित करने वाली। यानी वह ठीक ही सोच रहे थे। मूर्ति के नीचे लिखा ‘मूर्तिकार मास्टर मोतीलाल’ वाकई कस्बे का अध्यापक था। बेचारे ने महीने भर में मूर्ति बनाकर पटक देने का वादा कर दिया होगा। बना भी ली होगी लेकिन पत्थर में पारदर्शी चश्मा कैसे बनाया जाए-काँचवाला यह तय नहीं कर पाया होगा। या कोशिश की होगी और असफल रहा होगा। या । बनाते-बनाते ‘कुछ और बारीकी’ के चक्कर में चश्मा टूट गया होगा। या पत्थर का चश्मा अलग से बनाकर फिट किया होगा और वह निकल गया होगा। उफ़…! Question 1. Answer:
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(5) हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह मज़ाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। मुड़कर देखा तो अवाक् रह गए। एक बेहद बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टंगे बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था और एक बंद दुकान के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। तो इस बेचारे की दुकान भी नहीं! फेरी लगाता है! हालदार साहब चक्कर में पड़ गए। पूछना चाहते थे, इसे कैप्टन क्यों कहते हैं? क्या यही इसका वास्तविक नाम है? लेकिन पान वाले ने साफ़ बता दिया था कि अब वह इस बारे में और बात करने को तैयार नहीं। ड्राइवर भी बैचेन हो रहा था। काम भी था। हालदार साहब जीप में बैठकर चले गए। Question 1. Answer:
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(6) बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर घर-गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देने वालों पर भी हँसती है और अपने लिए बिकने के मौके ढूँढ़ती है। दुखी हो गए। पंद्रह दिन बाद फिर उसी कस्बे से गुजरे। कस्बे में घुसने से पहले ही खयाल आया कि कस्बे की हृदयस्थली में सुभाष की प्रतिमा अवश्य ही प्रतिष्ठापित होगी, लेकिन सुभाष की आँखों पर चश्मा नहीं होगा।….क्योंकि मास्टर बनाना भूल गया।….और कैप्टन मर गया। सोचा, आज वहाँ रुकेंगे नहीं, पान भी नहीं खाएँगे, मूर्ति की तरफ देखेंगे भी नहीं, सीधे निकल जाएँगे। ड्राइवर से कह दिया, चौराहे पर रुकना नहीं, आज बहुत काम है, पान आगे कहीं खा लेंगे। Question 1. Answer:
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Question 3. Answer:
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Question 5. Answer:
बोधात्मक प्रश्न Question 1. Answer:
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Question 3. Answer:
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Question 5. Answer:
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हालदार साहब के चेहरे पर मुस्कान का क्या कारण था?चश्मा तो था लेकिन संगमरमर का नहीं था। एक सामान्य और सचमुच के चश्मे का चौड़ा काला फ्रेम मूर्ति को पहना दिया गया था। हालदार साहब जब पहली बार इस कसबे से गुजरे और चौराहे पर पान खाने रुके तभी उन्होंने इसे लक्षित किया और उनके चेहरे पर एक कौतुक भरी मुस्कान फ़ैल गई।
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