बूढ़े ब्राह्मण के वेश में इंद्र ने कर्ण से क्या भिक्षा मांगी? - boodhe braahman ke vesh mein indr ne karn se kya bhiksha maangee?

महाभारत के महान योद्धाओं में से एक अंगराज कर्ण शूरवीर होने के साथ परम दानी भी थे और उनकी यही दान धर्म उनकी मौत की सबसे बड़ी वजह बना। भगवान कृष्ण यह बात अच्छी तरह से समझते थे कि जब तक कर्ण के पास उसके पिता द्वारा दिए कवच और कुंडल हैं, तब तक उन्हें कोई नहीं मार सकता। ऐसे में उन्हें अपने प्रिय पार्थ यानी अर्जुन की जान का भय हर वक्त सताता था।

वहीं देवराज इंद्र भी अपने पुत्र अर्जुन को लेकर हमेशा चिंतित रहते थे। कृष्ण और इंद्र दोनों ही भली भांति जानते थे कि युद्ध भूमि में अर्जुन की सलामती के लिए कर्ण के कवच और कुंडल उनसे लेने ही होंगे। तब कृष्ण ने इंद्र को एक उपाय सुझाया और इंद्र एक भिक्षक का वेश धरकर कर्ण के द्वार पहुंच गए। सभी भिक्षकों के साथ इंद्र भी पंक्ति में खड़े हो गए ताकि कोई उन्हें पहचान न सके।

कर्ण दान स्वरूप सभी को कुछ न कुछ दे रहे थे। जैसे ही इंद्र की बारी आई तो उन्होंने कर्ण से कहा, हे राजन, मैं दूर से आया हूं, आपकी प्रसिद्धि सुनकर। मैंने सुना है कि इस धरा पर आपसे बड़ा कोई दानी दूसरा नहीं है। मगर फिर भी मैं चाहता हूं कि आप संकल्प लेकर मेरी शंका को दूर करें। इंद्र की इस बात को सुनते ही कर्ण ने ताव आकर अंजुलि में जल भरकर तुरंत संकल्प लिया और बोले, हम प्रण कर चुके हैं विप्रवर, आप तुरंत मांगिए। इंद्र ने बिना एक क्षण गंवाए कर्ण से उनके कवच और कुंडल दान में मांग लिए।

लगा कि उस पल के लिए धरती ठहर सी गई हो। फिर कर्ण ने हंसते-हंसते अपने कवच और कुंडल खंजर की सहायता से काटकर अपने शरीर से अलग किए और भिक्षक के रूप में आए इंद्र को दे दिए। इंद्र ने कवच कुंडल लेते ही तुरंत वहां से प्रस्थान कर दिया। उनको डर था कि कर्ण को सच्चाई पता चलने पर कहीं वह उनसे कवच और कुंडल वापस न मांग ले। जैसे ही इंद्र दूर खड़े अपने रथ पर सवार हुए, रथ भूमि में धंस गया। तभी आकाशवाणी हुई, देवराज इंद्र तुमने बड़ा पाप किया है। अपने पुत्र अर्जुन की जान बचाने के लिए तुमने कर्ण के साथ छल किया है। अब न तुम यहां से आगे जा सकते और न ही तुम्हारा रथ।

तब इंद्र ने आकाशवाणी से पूछा, अब मेरे लिए इससे बचने का उपाय क्या है। तब आकाशवाणी ने कहा, अब तुम्हें दान में ली गई वस्तु के बराबर कोई वस्तु का दान करना होगा। इंद्र को मजबूरन यह बात माननी पड़ी। अब वह अपने असली वेश में कर्ण के पास गए। कर्ण ने कहा कि देवराज आदेश कीजिए आपको और क्या चाहिए मुझसे। कर्ण को सारी बातें समझ आ गई थीं। इंद्र शरम से नीचे गर्दन झुकाए कर्ण के समक्ष खड़े रहे। उन्होंने कर्ण से कहा, हे दानवीर इस बार मैं याचक नहीं हूं बल्कि आपको कुछ देने आया हूं।

कर्ण ने कहा, आपसे मुझे कुछ नहीं चाहिए। कर्ण सिर्फ दान देना जानता है, दान लेना नहीं। तब इंद्र ने विनम्रतापूर्वक कहा, कर्ण आपको मुझसे कुछ तो लेना ही पड़ेगा, अन्यथा मैं और मेरा रथ यहां से प्रस्थान नहीं कर सकेंगे। इस पर कर्ण इंकार ही करते। अंत में हारकर इंद्र अपना वज्र कर्ण को देकर चले गए। साथ में यह वरदान भी दिया, तुम इस वज्र का प्रयोग एक बार ही कर पाओगे और जिसके ऊपर भी चलाओगे वो बच नहीं पाएगा। कर्ण को मजबूरन उनके वज्र को रखना पड़ा।

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Mahabharat Katha: कर्ण सूर्य पुत्र थे. शक्तिशाली थे. अच्छे योद्धा होने के साथ साथ वह दानवीर भी थे. इसके अलावा कर्ण में नैतिकता और संयमशीलता भी थी लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा भी नहीं था महाभारत के युद्ध में उनकी यही खूबियां विनाश का कारण बन जाएंगी.

इन्द्र के साथ कृष्ण ने बनाई ये योजना कर्ण की शक्ति से भगवान कृष्ण भलिभांत परिचित थे. वह जानते थे कि कर्ण के पास जब तक कवच और कुंडल है, तब तक कोई उसे मार नहीं सकता है. कृष्ण की चिंता वाजिब थी, क्योंकि कौरवों की सबसे शक्तिशाली योद्धाओं में कर्ण का नाम बहुत ऊपर था. ऐसे में उन्हें अर्जुन की चिंता सताने लगी. भगवान कृष्ण के साथ देवराज इन्द्र भी कर्ण की शक्ति को जानते थे. कर्ण की इस शक्ति को क्षीण करने के लिए कृष्ण ने एक योजना बनाई. कृष्ण ने इंद्र को ब्राह्मण के वेश कर्ण के पास जाने के लिए कहा. कृष्ण जानते थे कि कर्ण प्रतिदिन लोगों को दान किया करते थे. कृष्ण ने इंद्र से कहा कि तुम वेश बदलकर उस भीड़ में शामिल हो जाना जिन्हें कर्ण दान देगा. इंद्र ने ऐसा ही किया. कर्ण प्रतिदिन की तरह सभी को कुछ न कुछ दान दे रहे थे. जब बारी इंद्र की आई तो कर्ण ने उनसे पूछा आपको क्या वास्तु चाहिए. अपनी इच्छा प्रकट करो.

ब्राह्मण वेश में इंद्र ने कर्ण से मांगे कवच और कुंडल तब ब्राह्मण वेश में इंद्र ने कहा कि महाराज में आपकी ख्याति की चर्चा सुनकर आया हूं. आपकी दान वीरता की चर्चा पूरे लोक मे हैं. दान मांगने से पहले आपको वचन देना होगा तभी दान स्वीकार करुंगा. इस पर कर्ण ने हाथ में जल लेकर इंद्र को वचन दे दिया. तब इंद्र ने कर्ण से शरीर के कवच और कुंडल दान में मांग लिए. इंद्र की इस बात को सुनकर कर्ण बिना एक पल समय गंवाए स्वयं अपने हाथों से पीड़ा सहते हुए कवच और कुंडल शरीर से अलग कर इंद्र को सौंप दिए.

इन्द्र जब भगाने लगे, तभी हुई ये आकाशवाणी कर्ण के कवच और कुंडल लेकर इंद्र वहां से तुरंत अपने रथ पर सवार होकर भागने लगे क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि उनकी असलियत का कर्ण को पता चले. लेकिन जैसे ही वे कुछ दूर चले उनका रथ जमीन में धंस गया. रथ के रूकते ही आकाशवाणी हुई 'देवराज इन्द्र, तुमने बहुत बड़ा पाप किया है. अपने पुत्र अर्जुन को बचाने के लिए तुमने छल पूर्वक कर्ण के कवच और कुंडल प्राप्त किए हैं, कर्ण की जान को खतरे में डाला. अब यह रथ यहीं धंसा रहेगा और तुम भी यहीं धंस जाओगे'. आकाशवाणी सुनकर इंद्र कांप गए. विनती करने लगे कि प्रभु इस श्राप से कैसे बचा जा सकता है. तब फिर आकाशवाणी हुई अब तुम्हें दान दी गई वस्तु के बदले में बराबरी की कोई वस्तु देना होगी. इंद्र ने इस बात को स्वीकार कर लिया. तब इंद्र फिर से कर्ण के पास गए. लेकिन इस बार ब्राह्मण के वेश में नहीं. कर्ण ने उन्हें आता देखकर बड़ी विनम्रता से पूछा देवराज आदेश करिए और क्या चाहिए.

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इन्द्र को कर्ण के सामने होना पड़ा लज्जित इंद्र अपने आप को लज्जित महसूस करने लगे और बोले कि हे दानवीर अब मै लेने नहीं कुछ देने आया हूं. कवच-कुंडल को छोड़कर जो इच्छा हो मांग लीजिए. इस पर कर्ण ने कहा देवराज मैंने आज तक कभी किसी से कुछ नही मांगा और न ही मुझे कुछ चाहिए. कर्ण सिर्फ दान देना जानता है, लेना नहीं. तब इंद्र ने अपनी व्यथा कर्ण को बताई और कर्ण से कुछ भी मांगने का आग्रह किया. लेकिन कर्ण ने फिर वही उत्तर दिया. आखिरकार इंद्र को कर्ण के आगे लाचार होना पड़ा और इंद्र ने कहा कि वह बिना कुछ दिए तो वापिस नहीं जा सकते हैं इसलिए इंद्र ने वज्ररूपी शक्ति कर्ण को प्रदान की. इंद्र ने कहा कि कर्ण तुम इसको जिसके ऊपर भी चला दोगे, वो बच नहीं पाएगा. भले ही साक्षात काल के ऊपर ही चला देना, लेकिन इसका प्रयोग सिर्फ एक बार ही कर पाओगे. इतना कहकर इंद्र वहां से चले आए. कर्ण ने उन्हें बहुत रोकने की चेष्टा की लेकिन इंद्र नहीं रूके. कर्ण ने इंद्र की दी हुई शक्ति रख ली.

दुर्योधन को हुई चिंता कर्ण के कवच और कुंडल दान में देने की खबर दुर्योधन को हुई तो उसके पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. उसे अपनी पराजय दिखाई देने लगी. लेकिन जब उसने सुना कि इंद्र ने कवच और कुंडल के बादले वज्र शक्ति दे गए हैं तो उसे प्रसन्नता हुई. लेकिन इंद्र की दी हुई शक्ति भी कर्ण के काम न आ सकी.

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कर्ण ने इंद्र से क्या भिक्षा मांगी?

इस पर कर्ण ने हाथ में जल लेकर इंद्र को वचन दे दिया. तब इंद्र ने कर्ण से शरीर के कवच और कुंडल दान में मांग लिए. इंद्र की इस बात को सुनकर कर्ण बिना एक पल समय गंवाए स्वयं अपने हाथों से पीड़ा सहते हुए कवच और कुंडल शरीर से अलग कर इंद्र को सौंप दिए.

इंद्र ने बूढ़े ब्राह्मण के वेश में कर्ण से क्या भिक्षा मााँगी?

Answer. Answer: इंद्र को डर था कि भावी युद्ध में कर्ण की शक्ति से अर्जुन पर विपत्ति आ सकती है। इस कारण कर्णकी शक्ति कम करने की इच्छा से उन्होंने बूढ़े ब्राह्मण का वेश धारण करके अंग नरेश कर्ण से उनका जन्मजातकवच और कुंडल भिक्षा में माँग लिया।

इंद्र कर्ण के पास किस वेश में और क्यों गए?

भगवान कृष्ण और देवराज इन्द्र दोनों जानते थे कि जब तक कर्ण के पास पैदायशी कवच और कुंडल हैं, वह युद्ध में अजेय रहेगा। तब कृष्ण ने देवराज इन्द्र को एक उपाय बताया और फिर देवराज इन्द्र एक ब्राह्मण के वेश में पहुंच गए कर्ण के द्वार।

बूढ़े ब्राह्मण के वेश में कर्ण के पास कौन आया था?

इस घटना के काफ़ी समय बाद एक दिन इंद्र बूढ़े ब्राह्मण के वेश में कर्ण के पास गए और उनके जन्मजात कवच और कुंडलों की भिक्षा स्वरूप माँगकर अपने साथ ले गए। इंद्र को डर था कि भावी युद्ध में कर्ण की शक्ति से अर्जुन पर विपत्ति आ सकती है। अतः कर्ण की शक्ति को कम करने की इच्छा से उसने यह भिक्षा माँगी।