डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल (सन् 1904-1967 ई.) Show
डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल का जीवन-परिचय:डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल हिन्दी साहित्य में प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व के मर्मज्ञ विद्वान थे। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के मेरठ जनपद के खेड़ा नामक ग्राम के प्रतिष्ठित वैश्य परिवार में सन् 1904 ई. में हुआ था। इनके माता-पिता लखनऊ में रहते थे। अत: इनका बाल्यकाल लखनऊ में ही बीता। उन्होंने अपनी शिक्षा वहीं प्राप्त की। इन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से बी.ए. तथा लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसी विश्वविद्यालय में इन्होंने अपना शोध प्रबन्ध प्रस्तुत किया। इनकी रुचि वास्तव में अध्ययन ओर पुरातत्व में थी और उन्होंने इसी में एी-एच. डी. की उपाधि प्राप्त कर ली। बाद में इन्होंने डी.लिट्. भी लखनऊ विश्वविद्यालय से किया। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के ‘पुरातत्व एवं प्राचीन इतिहास विभाग’ के वे अध्यक्ष एवं आचार्य रहे।पालि, संस्कृत, अँग्रेजी, आदि भाषाओं तथा उनके साहित्य का उन्होंने गहन अध्ययन किया। उन्होंने लखनऊ तथा मथुरा के पुरातत्व संग्रहालयों में निरीक्षक के पद पर कार्य किया। वे केन्द्रीय सरकार के पुरातत्व विभाग के संचालक तथा दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय के अध्यक्ष भी रहे। वैदिक साहित्य, दश्रन, पुराण के अन्वेषक, हिन्दी साहित्य एवं पुरातत्व के ज्ञाता इस विद्वान ने सन् 1967 में इस नश्वर संसार का छोड़ दिया।उन्होंने अपने ज्ञान एवचं श्रम से हिन्दी साहित्य को समृद्धि प्रदान की। डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल का कृतियॉं:निबन्ध-लेखन के अतिरिक्त उन्होंने हिन्दी, पालि, प्राकृत और संस्कृत के कई ग्रन्थों का सम्पादन एवं पाठ-शोधन भी किया। डाॅ. अग्रवाल ने पुरातत्व को ही अपनप वर्ण्य विषय बनाया और निबन्धों के माध्यम से अपने इन ज्ञान को अभिव्यक्त किया। डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल की प्रमुख कृतियॉं है- वासुदेव शरण अग्रवाल के रचनाये व् कृतियां
ग्रन्थाधारित विवेचनात्मक अध्ययन:
स्वतंत्र विषयक ग्रन्थ:
विविध विषयक निबन्ध संग्रह:
संपादन एवं अनुवाद:
डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल का भाषा-शैली:डॉ. अग्रवाल की भाषा शुद्ध एवं परिष्कृत खड़ी बोली हिन्दी है। संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग होते हुए भी इसमें सरसता है। इनकी शेल्ी उनके अध्ययन और स्वभाव के अनुरूप गम्भीर है। इनके निबन्धों में हमें
डॉ. अग्रवाल मनीषी साहित्यकार ओर उच्च कोटि के निबन्धकार थे। उनकी सांस्कृतिक और पुरातात्विक रचनाऍं हिन्दी साहित्य का गौरव है। भारतीय संस्कृति और संस्कृत के अन्वेषी साहित्यकार के रूप में इनका नाम हिन्दी साहित्य में चिरस्मरणीय रहेगा। डॉ वासुदेवशरण अग्रवाल Wikipedia लिंक: Click Here Remark: दोस्तों अगर आपको इस Topic के समझने में कही भी कोई परेशांनी हो रही हो तो आप Comment करके हमे बता सकते है | इस टॉपिक के expert हमारे टीम मेंबर आपको जरूर solution प्रदान करेंगे| यदि आपको https://hindilearning.in वेबसाइट में दी गयी जानकारी से लाभ मिला हो तो आप अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कर सकते है | हम आपके उज्जवल भविष्य की कामना करते है। डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल की रचना क्या है?कृतियाँ निबंधों का संग्रह - पृथ्वी पुत्र , कल्पबृक्ष ,कल्पलता मातृ भूमि, भारत की एकता , वेद विद्या, कला और संस्कृति , वाग्बधारा, पूर्ण ज्योति इत्यादि। ऐतिहासिक व् पौराणिक निबंध - महापुरुष श्रीकृष्ण ,महर्षि वाल्मीकि, और मनु।
वासुदेव शरण अग्रवाल की भाषा शैली क्या है?अग्रवाल की भाषा शुद्ध और परिष्कृत खड़ीबोली है, जिसमें व्यावहारिकता, सुबोधता और स्पष्टता सर्वत्र विद्यमान है। इन्होंने अपनी भाषा में अनेक देशज शब्दों का प्रयोग किया है; जिससे भाषा में सरलता और सुबोधता तो उत्पन्न हुई ही है।
डॉ वासुदेव शरण का निबंध संग्रह कौन है?हिंदी साहित्य की सेवा करते हुए सन 1967 ई. में डॉ वासुदेव शरण अग्रवाल की मृत्युु हो गई। निबंध संग्रह :- उत्तम-ज्योति, पृथ्वीपुत्र, कल्पलता, कल्पवृक्ष, वेद-विद्या, कला और संस्कृति, मातृभूमि, वाग्धरा इत्यादि इनके निबंध संग्रह है।
ञ वासुदेव शरण अग्रवाल का कौन सा निबंध आपके पाठ्यक्रम में शामिल है?झुन्झुनू (राज.)
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