वर्गीकरण के आधारों का वर्णन कीजिए - vargeekaran ke aadhaaron ka varnan keejie

वर्गीकरण के आधारों का वर्णन कीजिए - vargeekaran ke aadhaaron ka varnan keejie

वर्गीकरण के आधारों का वर्णन कीजिए - vargeekaran ke aadhaaron ka varnan keejie

वर्गिकी (Taxonomy) किसी वियुक्त बिन्दुओं के समूह को वर्गों में बाँटकर अयोजित करने को कहा जाता है। यह वियुक्त बिन्दु कोई भी चीज़ से सम्बन्धित हो सकते हैं, मसलन वनस्पतियों को पादप वर्गीकरण के द्वारा एक वर्गिकी में आयोजित करा जाता है। इसी तरह विश्व के देशों को गोलार्धों और महाद्वीपों में वर्गीकृत कर के वर्गिकी बनाई जा सकती है। वर्गिकिओं में आमतौर पर एक पदानुक्रम भी होता है, जिसमें अधिक आधारीय बिन्दु ऊपरी स्तरों (अर्थात जड़ों) में रखे जाते हैं।[1][2]

विवरण[संपादित करें]

मूलतः जीवों के वर्गीकरण को "वर्गिकी" (टैक्सोनॉमी) या "वर्गीकरण विज्ञान" कहते थे। किन्तु आजकल इसे व्यापक अर्थ में प्रयोग किया जाता है और जीव-जन्तुओं के वर्गीकरण सहित इसे ज्ञान के विविध क्षेत्रों में प्रयोग में लाया जाता है। अतः वस्तुओं व सिद्धान्तों (और लगभग किसी भी चीज) का भी वर्गीकरण किया जा सकता है। 'वर्गिकी' शब्द दो अर्थो में प्रयुक्त होता है:

  • वस्तुओं का वर्गीकरण के लिए।
  • वर्गीकरण के आधारभूत तत्त्वों के लिए।
  • Taxonomy शब्द की उत्पति ग्रीक भाषा से हुई है। यह ग्रीक भाषा के दो शब्दों Taxis और Nomos से मिलकर बना है। जोकि Taxis का मतलब या अर्थ = Arrangement (व्यवस्थितरूप से) होता है, और Nomos का अर्थ = Law (नियम) होता है।
  • जीवों का वर्गीकरण और नामकरण करने वाली प्रणाली को वर्गीकरण प्रणाली कहते है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • पदानुक्रम
  • जीवों का वर्गीकरण या जन्तुवर्गिकी
  • कार्ल लिनियस

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. Atran, S. (1993) Cognitive Foundations of Natural History: Towards an Anthropology of Science. Cambridge: Cambridge University Press. ISBN 978-0-521-43871-1
  2. Jackson, Joab. "Taxonomy's not just design, it's an art Archived 2020-02-05 at the Wayback Machine," Government Computer News (Washington, D.C.). September 2, 2004.

वर्गीकरण के आधारों का वर्णन कीजिए - vargeekaran ke aadhaaron ka varnan keejie

आधुनिक विचार के अनुसार जीवों की तीन प्रमुख श्रेणियां

जीव जगत के समुचित अध्ययन के लिये आवश्यक है कि विभिन्न गुणधर्म एवं विशेषताओं वाले जीव अलग-अलग श्रेणियों में रखे जाऐं। इस तरह से जन्तुओं एवं पादपों के वर्गीकरण को वर्गिकी या वर्गीकरण विज्ञान अंग्रेजी में वर्गिकी के लिये दो शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं - टैक्सोनॉमी (Taxonomy) तथा सिस्टेमैटिक्स (Systematics)। कार्ल लीनियस ने 1735 ई. में सिस्तेमा नातूरै (Systema Naturae) नामक पुस्तक सिस्टेमैटिक्स शब्द के आधार पर लिखी थी।[1] आधुनिक युग में ये दोनों शब्द पादप और जंतु वर्गीकरण के लिए प्रयुक्त होते हैं।

वर्गिकी का कार्य आकारिकी, आकृतिविज्ञान (morphology) क्रियाविज्ञान (physiology), परिस्थितिकी (ecology) और आनुवंशिकी (genetics) पर आधारित है। अन्य वैज्ञानिक अनुशासनों की तरह यह भी अनेक प्रकार के ज्ञान, मत और प्रणालियों का सश्लेषण है, जिसका प्रयोग वर्गीकरण के क्षेत्र में होता है। जीवविज्ञान संबंधी किसी प्रकार के विश्लेषण का प्रथम सोपान है सुव्यवस्थित ढंग से उसका वर्गीकरण; अत: पादप, या जंतु के अध्ययन का पहला कदम है उसका नामकरण, वर्गीकरण और तब वर्णन।

जन्तु वर्गिकी[संपादित करें]

वर्गिकी का मूल निर्माण आकारकी या आकृतिविज्ञान (morphology), क्रियाविज्ञान (physiology), परिस्थितिकी (ecology) और आनुवंशिकी ((genetics) पर आधारित है। अन्य वैज्ञानिक अनुशासनों की तरह यह भी अनेक प्रकार के ज्ञान, मत और प्रणालियों का संश्लेषण है, जिसका प्रयोग वर्गीकरण के क्षेत्र में होता है। जीवविज्ञान संबंधी किसी प्रकार के विश्लेषण का प्रथम सोपान है सुव्यवस्थित ढंग से उसका वर्गीकरण; अत: पादप, या जंतु के अध्ययन का पहला कदम है उसका नामकरण, वर्गीकरण और तब वर्णन।

आजकल पादप की चार लाख जातियों से अधिक जातियाँ ज्ञात हैं। ये लिनीअस के समय से साठगुनी अधिक हैं। प्रति वर्ष लगभग 4,750 नई जातियों का वर्णन होता है। समानार्थक (synonyms) और उपजातियों (subspecies) को मिलाकर केवल फ़ेनरोगैम्स (Phanerogams) और क्रिप्टौगैम्स (cryptogams) नामक पादप समूहों में 1763 से 1942 ई. तक दस लाख से भी अधिक नाम दिए जा चुके हैं।

वर्णित जंतुओं की जातियाँ गिनती में पादप जातियों से कहीं अधिक हैं। उपजातियों को मिलाकर 20 लाख से अधिक जंतुजातियों के नाम ज्ञात हैं और प्रति वर्ष लगभग 10,000 नई जातियों का वर्णन होता है।

जैविक वर्गीकरण का इतिहास[संपादित करें]

वर्गीकरण विज्ञान का इतिहास उतना ही पुराना है जितना मानव का इतिहास। समझ बूझ होते ही मनुष्य ने आस पास के जंतुओं और पौधों को पहचानना तथा उनको नाम देना प्रारंभ किया।

ग्रीस(ग्रीस) के अनेक प्राचीन विद्वान, विशेषत: हिपॉक्रेटीज (Hippocrates, 46-377 ई. पू.) ने और डिमॉक्रिटस (Democritus, 465-370 ई. पू.), ने अपने अध्ययन में जंतुओं को स्थान दिया है। स्पष्ट रूप से अरस्तू (Aristotle, 384-322 ई. पू.) ने अपने समय के ज्ञान का उपयुक्त संकलन किया है। ऐरिस्टॉटल के उल्लेख में वर्गीकरण का प्रारंभ दिखाई पड़ता है। इनका मत है कि जंतु अपने रहन सहन के ढंग, स्वभाव और शारीरिक आकार के आधार पर पृथक् किए जा सकते हैं। इन्होंने पक्षी, मछली, ह्वेल, कीट आदि जंतुसमूहों का उल्लेख किया है और छोटे समूहों के लिए कोलियॉप्टेरा (Coleoptera) और डिप्टेरा (Diptera) आदि शब्दों का भी प्रयोग किया है। इस समय के वनस्पतिविद् अरस्तू की विचारधारा से आगे थे। उन्होंने स्थानीय पौधों का सफल वर्गीकरण कर रखा था। ब्रनफेल्स (Brunfels, 1530 ई.) और बौहिन (Bauhim, 1623 ई.) पादप वर्गीकरण को सफल रास्ते पर लानेवाले वैज्ञानिक थे, परंतु जंतुओं का वर्गीकरण करनेवाले इस समय के विशेषज्ञ अब भी अरस्तू की विचारधारा के अंतर्गत कार्य कर रहे थे।

जन्विज्ञान विशेषज्ञों में जॉन रे (John Ray, 1627-1705 ई.) प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने जाति (species) और वंश (genus) में अंतर स्पष्ट किया और प्राचीन वैज्ञानिकों में ये प्रथम थे, जिन्होंने उच्चतर प्राकृतिक वर्गीकरण किया। इनका प्रभाव स्वीडन के रहनेवाले महान प्रकृतिवादी कार्ल लीनियस (1707-1778) पर पड़ा। लिनीअस ने इस दिशा में अद्वितीय कार्य किया। इसलिए इन्हें वर्गीकरण विज्ञान का जन्मदाता माना जाता है।

अठारहवीं शताब्दी में विकासवाद के विचारों का प्रभाव वर्गीकरण विज्ञान पर पड़ा। उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में यह प्रभाव अपने शिखर पर पहुंच गया। इसी समय दूरवर्ती स्थानों के जंतुओं में वर्गीकरण विशेषज्ञों की गंभीर रुचि हो गई थी। वे दूर देशों के जानवरों के विषय में जानकारी करना चाहते थे और परिचित जानवरों से उनका संबंध करना चाहते थे। इसलिए इस समय लंबी जलयात्राएँ हुई। दूर दूर के जानवरों का अध्ययन किया गया और उनके वंश तथा कुटुंब आदि का अध्ययन किया गया। एक ऐसी यात्रा बीग्ले नामक जहाज पर हुई थी जिसमें चार्ल्स डार्विन नामक प्रकृतिवादी भी सम्मिलित था। इस काल में वर्गीकरण विज्ञान में बड़ी प्रगति की गई और वर्गीकरण में अनेक नई जातियाँ, वंश और कुटुंब जोड़े गए।

बीसवीं शताब्दी में किया गया वर्गीकरण विज्ञान की विशेषता है। हक्सलि (Huxely, 1940 ई.) के विचारानुसार आधुनिक वर्गीकरण विज्ञान भूगोल, पारिस्थितिकी (ecology), कोशिकी (cytology) और आनुवंशिकी (genetics) आदि का संश्लेषण है। पहले समय में वर्गीकरण विज्ञान का आधार था "प्रकार" (type), जिसको आकृतिक लक्षणों की सहायता से उपस्थित करते थे। आधुनिक वर्गीकरण विज्ञान में जातियों का वर्णन पूर्णतया आकृतिक लक्षणों पर आधारित नहीं है, जैविक है, जिसकी वजह से भौगोलिक, पारिस्थितिक, जननीय तथा कुछ अन्य लक्षणों पर भी ध्यान दिया जाता है। प्ररूप संकल्पना (type concept) श्रेणियों की स्थिरता को विस्तृत रूप देती है, एक दूसरे के बीच अंतर को बढ़ाती है और परिवर्तनशीलता को कम करती है। इसके विपरीत है जनसंख्या संकल्पना (population concept), जिसके अनुसार स्पीशीज़ परिवर्तनशील जनसंख्या से बनी है और स्थिर नहीं है।

उत्क्रम से विशेष समूहों अथवा श्रेणियों की परिभाषा करना वर्गीकरण का निश्चित ढंग है। लिनीअस ने ऐसी पाँच श्रेणियाँ बनाई थीं :

क्लासिस (Classic) अथवा वर्ग, गण (Ordo), जीनस (Grnus) अथवा वंश, स्पीशीज़ (Species) अथवा जाति और वैराइटाज़ (Varietas) अथवा प्रजाति।

प्रत्येक श्रेणी में एक अथवा एक से अधिक नीचे स्तर के समूह सम्मिलित होते हैं और वे निम्न श्रेणी बनाते हैं। इसी तरह प्रत्येक क्रमिक श्रेणी एक अथवा एक से अधिक ऊँची श्रेणी से संबंधित होती है। ये श्रेणियाँ प्राकृतिक प्रभेद कम करके एक व्यापक प्रणाली बना देती हैं।

ज्ञान के विकास के साथ साथ इन श्रेणियों की संख्या बढ़ती गई। जगत् और वर्ग के बीच संघ और गण (Order) तथा वंश के बीच में कुटुंब नामक श्रेणियाँ जोड़ी गई। लिनीअस के विचारानुसार प्रजाति (Varietas) एक वैकल्पिक श्रेणी है, जिसके अंतर्गत भौगोलिक अथवा व्यक्तिगत विभिन्नता आती है। इस तरह अब निम्न सात श्रेणियाँ हो गई हैं :

जगत् (Kingdom), संघ (Phylum), वर्ग (Class), गण (Order), कुटुंब (Family) वंश (Genus) और जाति (Species)।

वर्गीकरण की और अधिक परिशुद्ध व्याख्या के लिए इन श्रेणियों को भी विभाजित कर अन्य श्रेणियाँ बनाई गई हैं। अधिकतर मूल नाम के पहले अधि (Super) अथवा उप (Sub) उपसर्गों (Prefixes) को जोड़कर इन श्रेणियों का नामकरण किया गया है। उदाहरणार्थ, अधिगण (super order) और उपगण (suborder) आदि। ऊँची श्रेणियों के लिए कई नाम प्रस्तावित किए गए, परंतु सामान्य प्रयोग में वे नहीं आते। केवल आदिम जाति (tribe) का कुटुंब और वंश के बीच प्रयोग किया जाता है। कुछ लेखकों ने, जैसे सिंपसन, (Sympson, 1945 ई.) ने गण और वर्ग के बीच सहगण (Cohort) नाम का प्रयोग किया है।

इस तरह साधारण तौर से काम लाई जानेवाली श्रेणियों की संख्या इस समय निम्नलिखित है :

जगत् (Kingdom), संघ (Phylum), उपसंघ (Subphylum), अधिवर्ग (Superclass), वर्ग (Class) उपवर्ग (Subclass), सहगण या कोहॉर्ट (Cohort), अधिगण (Superorder), गण (Order), उपगण (Suborder), अधिकुल (Superfamily), कुल (Family), उपकुल (Subfamily), आदिम जाति (Tribe), वंश (Genus), उपवंश (Subgenus), जाति (Species) तथा उपजाति (Subspecies)।

आधुनिक वर्गीकरण[संपादित करें]

Linnaeus
1735[2]
Haeckel
1866[3]
Chatton
1925[4]
Copeland
1938[5]
Whittaker
1969[6]
Woese et al.
1990[7]
Cavalier-Smith
1998[8]
2 kingdoms 3 kingdoms 2 empires 4 kingdoms 5 kingdoms 3 domains 6 kingdoms
(not treated) Protista Prokaryota Monera Monera Bacteria Bacteria
Archaea
Eukaryota Protoctista Protista Eucarya Protozoa
Chromista
Vegetabilia Plantae Plantae Plantae Plantae
Fungi Fungi
Animalia Animalia Animalia Animalia Animalia

वर्तमान समय में 'अन्तर्राष्ट्रीय नामकरण कोड' द्वारा जीवों के वर्गीकरण की सात श्रेणियाँ (Ranks) पारिभाषित की गयी हैं। ये श्रेणियाँ हैं- जगत (kingdom), संघ (phylum/division), वर्ग (class), गण (order), कुल (family), वंश (genus) तथा जाति (species). हाल के वर्षों में डोमेन (Domain) नामक एक और स्तर प्रचलन में आया है जो 'जगत' के रखा ऊपर है। किन्तु इसे अभी तक कोडों में स्वीकृत नहीं किया गया है। सात मुख्य श्रेणियों के बीच में भी श्रेणियाँ बनाई जा सकती हैं जिसके लिये 'अधि-' (super-), 'उप-' (sub-) या 'इन्फ्रा-' (infra-) उपसर्गों का प्रयोग करना चाहिये। इसके अलावा जन्तुविज्ञान तथा वनस्पति विज्ञान के वर्गीकरण की श्रेणियों में मामूली अन्तर भी है (जैसे - 'आदिम जाति' (ट्राइब))।

इस समय साधारण तौर से काम लाई जानेवाली श्रेणियाँ निम्नलिखित है :

  • जगत (Kingdom),
  • संघ (Phylum),
  • उपसंघ (Subphylum),
  • अधिवर्ग (Superclass),
  • वर्ग (Class)
  • उपवर्ग (Subclass),
  • सहगण या कोहऑर्ट (Cohort),
  • अधिगण (Superorder),
  • गण (order),
  • उपगण (Suborder),
  • अधिकुल (Superfamily),
  • कुल (Family),
  • उपकुल (Subfamily),
  • आदिम जाति (Tribe),
  • वंश (Genus),
  • उपवंश (Subgenus),
  • जाति (Species) तथा
  • उपजाति (Subspecies)

पारजैविक वर्गिकी[संपादित करें]

परजीवियों में वृहत भिन्नता, जीव वैज्ञानिकों के लिये उनका वर्णन करना तथा उन्हें नामावली बद्ध करना एक बड़ी चुनौती उपस्थित करती है। हाल ही में हुए विभिन्न जातियों को पृथक करने, पहचानने व विभिन्न टैक्सोनॉमी पैमानों पर उनके विभिन्न समूहों के बीच संबंध ढूंढने हेतु डी.एन.ए. प्रयोग पारजैवज्ञों के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण व सहायक रहे हैं।

आधुनिक वर्गीकरण[संपादित करें]

कुल 5 प्रकार से

जनक -R H रिहटेकर

1.मोनेरा 2.प्रॉटिस्टा 3.फंजाई 4.प्लांटी 5.एनिमिलिया

प्रॉटिस्टा को 5 भागो मे बांटा गया है

a.क्राइसोफाइटा b.dainFegilte c.युगलिना d.अपवंक कवक e.प्रोटोजोवा

प्रोटोजोवा को 4 भागो मे बांटा गया है

अमीबीय प्रोटोजोवा ;कसाभिय प्रोटोजोवा ;िफरोजोआ ;पक्षमीबीए प्रोटोजोव

  वा  

वर्गीकरण श्रेणियां
Magnorder
डोमेन / अधिजगत अधिसंघ / (Superdivision) अधिवर्ग अधिगण अधिकुल अधिजाति
जगत संघ / (Division) वर्ग लेगन (Legion) गण कुल आदिम जाति वंश जाति
उपजगत उपसंघ उपवर्ग कोहऑर्ट उपगण उपकुल उप आदिम जाति उपवंश उपजाति
निम्नजगत/शाखा इन्फ्राफाइलम इन्फ्राक्लास इन्फ्राआर्डर Alliance इन्फ्रास्पेसीज
माइक्रोफाइलम Parvclass Parvorder

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • प्राणियों का वर्गीकरण
  • पादप वर्गीकरण
  • आईयूपीएसी नामकरण - रसायनों के नाम की वैज्ञानिक पद्धति
  • द्विपद नामकरण
  • वानस्पतिक नाम
  • कार्ल लिनियस
  • वर्गिकी (सामान्य)

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • जन्तु-जगत् के वर्गीकरण का संक्षिप्त इतिहास
  • Tree of Life Web Project - explore complete phylogenetic tree interactively
  • Tree of Life illustration - A modern illustration of the complete tree of life.
  • Science Magazine Tree of Life - Sample tree of life from Science journal.
  • Science journal issue - Issue devoted to the tree of life.
  • [1]-Report on recent paper on "pruning" of the tree of life model.
  • The Tree of Life by Garrett Neske, The Wolfram Demonstrations Project: "presents an interactive tree of life that allows you to explore the relationships between many different kinds of organisms by allowing you to select an organism and visualize the clade to which it belongs."

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. The Evolution and Extinction of the Dinosaurs, David E. Fastovsky, David B. Weishampel, pp. 68, Cambridge University Press, 2005, ISBN 978-0-521-81172-9, ... Biological classification ... The categories that he established - now a memorized mantra - are (in order of decreasing size), kingdom, phylum, class, order family, genus, species ...
  2. Linnaeus, C. (1735). Systemae Naturae, sive regna tria naturae, systematics proposita per classes, ordines, genera & species.
  3. Haeckel, E. (1866). Generelle Morphologie der Organismen. Reimer, Berlin.
  4. Chatton, É. (1925). "Pansporella perplexa. Réflexions sur la biologie et la phylogénie des protozoaires". Annales des Sciences Naturelles - Zoologie et Biologie Animale. 10-VII: 1–84.
  5. Copeland, H. (1938). "The kingdoms of organisms". Quarterly Review of Biology. 13: 383–420. डीओआइ:10.1086/394568.
  6. Whittaker, R. H. (January 1969). "New concepts of kingdoms of organisms". Science. 163 (3863): 150–60. PMID 5762760. डीओआइ:10.1126/science.163.3863.150. बिबकोड:1969Sci...163..150W.
  7. Woese, C.; Kandler, O.; Wheelis, M. (1990). "Towards a natural system of organisms: proposal for the domains Archaea, Bacteria, and Eucarya". Proceedings of the National Academy of Sciences of the United States of America. 87 (12): 4576–9. PMC 54159. PMID 2112744. डीओआइ:10.1073/pnas.87.12.4576. बिबकोड:1990PNAS...87.4576W.
  8. Cavalier-Smith, T. (1998). "A revised six-kingdom system of life". Biological Reviews. 73 (03): 203–66. PMID 9809012. डीओआइ:10.1111/j.1469-185X.1998.tb00030.x.

वर्गीकरण क्या है वर्गीकरण के प्रमुख आधारों का वर्णन कीजिए?

वर्गीकरण वह प्रक्रिया है जिसमें एकत्रित समंको को उनकी विभिन्न विशेषताएंओं के आधार पर अलग-अलग समूहों, वर्गों या उपवर्गों में क्रमबद्ध किया जाता हैं। एकत्रित समंकों को विशेष समूहों अथवा वर्गो में इस तरह विभक्त किया जाता है कि इससे इकाईयों की विविधता के बीच में पाए जाने वाले गुणों की एकता व्यक्त होती है।

वर्गीकरण कितने प्रकार के होते हैं?

वर्गीकरण के प्रकार (vargikaran ke prakar).
गुणात्मक वर्गीकरण जब तथ्यों को 'वर्णन' 'गुणों' के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है तो उसे गुणात्मक वर्गीकरण कहते हैं। उदाहरणार्थ- साक्षरता, ईमानदारी, चरित्र आदि। गुणात्मक वर्गीकरण दो प्रकार का हो सकता है--- ... .
वर्गान्तरानुसार वर्गीकरण.

वर्गीकरण क्या है इसके उद्देश्यों का वर्णन करें?

1) वर्गीकरण का मुख्य उद्देश्य सांख्यिकी सामग्री को सरल व संक्षिप्त करना है। The main purpose of classification is to make the statistical material simple and concise. 2) वर्गीकरण की सहायता से तथ्यों की समानता-असमानता को स्पष्ट किया जाता है।

वर्गीकरण का क्या महत्व है?

<br> (iii) वर्गीकरण विभिन्न जीवों तथा जीवों के वर्गों के मध्य परस्पर संबंधों को समझने में सहायक है। <br> (iv) दूसरे जैविक-विज्ञानों के विकास के लिए भी वर्गीकरण एक आधार का काम करता है। उदाहरण—जीव-भूगोल-विज्ञान अर्थात् पौधों व प्राणियों का भौगोलिक वितरण पूर्णत: वर्गीकरण से उपलब्ध सूचनाओं पर आश्रित है।