वीर सतसई में कुल कितने दोहे हैं? - veer satasee mein kul kitane dohe hain?

Q. 'बिहारी सतसई' में कितने दोहे संग्रहित है?
Answer: [C] 713
Notes: 'बिहारी सतसई' में 713 दोहे संग्रहित है| 'बिहारी सतसई' दोहों के रचियता कवि बिहारीलाल है| बिहारी सतसई श्रृंगार रस की सुप्रसिद्ध और अनुपम रचना है। इसका हर एक दोहा हिन्दी साहित्य का अनमोल रत्न माना जाता है।

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1 - लाऊं पै सिर लाज हूँ ,सदा कहाऊं दास /

गणवई गाऊं तुझ गुण,पाऊं वीर प्रकास// / सरलार्थ -गणवई=गणेश

,पै=पैर

2-आणी उर जाणी अतुल ,गाणी करण अगूढ़ /

वाणी जगराणी वले, मैं चीताणी मूढ़ // सरलार्थ - आणी =आना ,उर =ह्रदय ,चींतानी=चिन्तित,मूढ़ = मूर्ख ,वाणी =सरस्वती

3-वेण सगाई वालियां ,पेखीजे रस पोस /

वीर हुतासन बोल मे ,दीसे हेक न दोस// सरलार्थ -वेण सगाई =एक राजस्थानी अलंकार ,वालियां =लेन पर ,पेखीजे =देखना ,हेक =एक भी

4-बीकम बरसा बीतियो ,गण चौ चंद गुणीस/

विसहर तिथि गुरु जेठ वदी ,समय पलट्टी सीस //सरलार्थ - बीकम बरसा =विक्रम संवत ,गण चौ चंद गुणीस =उन्नीस सौ चौदह गिनो ,विसहर तिथि =नागपंचमी, गुरु=गुरुवारअर्थातविक्रम संवत १९१४ में से 57वर्ष घटा देने पर १८५७ निकल कर आता है

5- इकडंडी गिण एकरी ,भूले कुल साभाव /

सुरां आल ऐस में,अकज गुमाई आव // सरलार्थ -एक डंडी =एकक्षत्र शासन ,साभाव =स्वाभाव ,सूरां =योध्या ,गुमाई =गंवा दी , अकज =बिना कार्य के .

6- इण वेला रजपूत वे ,राजस गुण रंजाट /

सुमरण लग्गा बीर सब,बीरा रौ कुलबाट//सरलार्थ -वेला =समय,रंजाट =रंग गए ,कुलबाट =कुल की परम्परा /

7 - सत्त्सई दोहमयी ,मीसण सूरजमाल /

जपैं भडखानी जठे,सुनै कायरा साल //सरलार्थ =सतसई -सात सौ छंदों की रचना ,जपै=रचना करना ,मीसण=मिश्रण चारण जाति

8- नथी रजोगुण ज्यां नरां,वा पूरौ न उफान/

वे भी सुणता ऊफानै ,पूरा वीर प्रमाण//सरलार्थ -नथी = नहीं ,रजोगुण =वीरत्व ,

9- जे दोही पख ऊजला ,जूझण पूरा जोध /

सुण ता वे भड सौ गुना ,बीर प्रगासन बोध // सरलार्थ-जे =जो ,भड=योद्धा ,जूझण=युद्ध में पख =माता -पिता दोनों पक्ष ,

10- दमगल बिण अपचौ दियण,बीर धणी रौ धान /

जीवण धण बाल्हा जिकां ,छोडो जहर सामान // सरलार्थ-दमंगल =युद्ध ,अपचौ=अजीर्ण,धनी=स्वामी ,धण=स्त्री ,बाल्हा =प्रिय, जिकां = जिनको

11- नहं डांकी अरि खावणौ ,आयाँ केवल बार /

बधाबधी निज खावणौ ,सो डाकी सरदार // सरलार्थ -डाकी =वीर,योद्धा ,बधा बधी =प्रतिस्पर्धा /

12 -डाकी डाकर रौ रिजक ,ताखां रौ विष एक /

गहल मूवां ही ऊतरै ,सुणिया सूर अनेक // सरलार्थ -रिजक =रोटी अन्न ,ताखां=तक्षक सर्प ,गहल =जहर ,नशा ,मूवां =मरने पर /

13 -डाकी डाकर सहण कर ,डाकण दीठ चलाय /

मायण खाय दिखाय थण ,धण पण वलय बताय //

14 - सहणी सबरी हूँ सखी ,दो उर उलटी दाह /

दूध लजाणों पूत सम ,बलय लाजणों नाह //

15 - जे खल भग्गा तो सखी ,मोताहल सज थाल /

निज भग्गा तो नाह रौ ,साथ न सूनो टाल //

Jin Van bhol ne javta gand gavye gidraj tin can jambok takhda udham Mande h aaj ....es question m jambok ka mean kya h...?

वीर सतसई में कुल कितने दोहे हैं? - veer satasee mein kul kitane dohe hain?

Krishna Talks to Radha's Maidservant, Folio from a Satsai (Seven Hundred Verses) of Bihari Lal LACMA AC1999.127.5

सतसई, मुक्तक काव्य की एक विशिष्ट विधा है। इसके अंतर्गत कविगण 700 या 700 से अधिक दोहे लिखकर एक ग्रंथ के रूप में संकलित करते रहे हैं। "सतसई" शब्द "सत" और "सई" से बना है, "सत" का अर्थ सात और सई का अर्थ "सौ" है। इस प्रकार सतसई काव्य वह काव्य है जिसमें सात सौ छंद होते हैं। बिहारी सतसई में एक मात्र ‘रोला’ छंद का प्रयोग किया गया है।

परिचय[संपादित करें]

सतसई काव्य ने एक विशिष्ट परंपरा के रूप में प्रतिष्ठित होकर अपनी निजी विशेषताएँ विकसित की हैं। सतसई रचना की परंपरा "हाल" की गाथासप्तशती से आरंभ हुई। यह प्राकृत का ग्रंथ है तथा इसमें रस से सिक्त और लोकजीवन का सजीव चित्र प्रस्तुत करनेवाली गाथाएँ हैं। इसके बाद गोवर्धनाचार्य की "आर्यासप्तशती" संस्कृत में लिखी गई। अमरु कवि के "अमरुशतक" में भी शृंगाररस के मनोहारी श्लोक हैं। संख्यापरक इन ग्रंथों के प्रभाव से हिंदी साहित्य में सतसई रचना का चाव बढ़ा परंतु हिंदी साहित्य के प्रांगण में सतसई रचना का सतत विकास अपने निजी ढंग पर हुआ; वह अपने पूर्ववर्ती सतसई साहित्य से प्रभावित है परंतु उसका निर्जीव अनुकरण नहीं है।

हिंदी साहित्य में रीतिकाल के प्रमुख कवि बिहारीलाल की लिखी "बिहारी सतसई" ने बड़ी प्रसिद्धि पाई। हिंदी साहित्य में इस ग्रंथ का अत्यंत प्रचार हुआ तथा सतसईरचना के लिए इसने अनेक कवियों को प्रेरित किया। "बिहारी सतसई" की बढ़ती हुई लोकप्रियता देखकर अनेक मूर्धन्य कवियों के दोहों को भी बाद में "सतसई" का रूप दे दिया गया, जैसे "तुलसीसतसई"। मुक्तक काव्य का यह रूप इतना जनप्रिय हुआ कि हिंदी में सतसइयों का एक विशाल भंडार हमें उपलब्ध है। इनमें रहीम सतसई, तुलसी सतसई, बिहारी सतसई, रसनिधि सतसई, मतिराम सतसई, वृंद सतसई, भूपति सतसई, चंदन सतसई, विक्रम सतसई, राम सतसई के नाम प्रमुख हैं और ये सतसइयाँ मध्य युग में लिखी गई। आधुनिक काल में भी अनेक सतसइयाँ मध्य युग में लिखी गईं। आधुनिक काल में भी सतसइयाँ लिखी गईं जैसे हरिऔध कृत हरिऔध सतसई, वियोगी हरि की वीर सतसई भी बड़ी प्रसिद्ध और सामयिक रचनाएँ हैं।

प्रमुख विशेषताएँ[संपादित करें]

(1) सतसइयों में 700 या 700 से कुछ अधिक छंद होते हैं।

(2) सतसइयों में प्रमुख रूप से "दोहा" छंद का प्रयोग होता है; "दोहा" के साथ "सोरठा" और "बरवै" छंद का प्रयोग भी सतसईकार बीच बीच में कर देते हैं।

(3) सतसइयों, में प्रमुख रूप से शृंगाररस की प्रधानता है। शृंगार के अतिरिक्त नीति तथा भक्ति, वैराग्य को भी सतसईकारों ने लिया है। बिहारी सतसई शृंगारप्रधान रचना है, बृंद सतसई नीतिपरक काव्य है तथा तुलसी सतसई में भक्ति, ज्ञान, कर्म और वैराग्य के दोहे हैं। सतसईकारों ने अपनी सतसईयों में प्राय: इन सभी विषयों के दोहे कहे हैं। शृंगारप्रधान सतसईयों में शृंगार के साथ नीति तथा भक्ति और वैराग्य के दोहे भी मिलते हैं, जैसे बिहारी सतसई और मतिराम सतसई में। बृंद सतसई पूर्णत: नीतिसतसई है तथा तुलसी सतसई में भक्ति तया वैराग्य के दोहों के साथ नीति के दोहों की भी प्रधानता है। मुख्य रूप से शृंगार और नीति इन दोनों की प्रधानता सतसइयों में देखने को मिलती है।

(4) शृंगारकाल में भी आधुनिक सतसइयाँ लिखी गई जिनमें यदि एक ओर शृंगार और नीति की प्रधानता है तो दूसरी ओर "वीररस तथा करुणरस के नए विषयों को भी सतसईकारों ने लिखा है। सूर्यमल्ल मिश्रण की "वीर सतसई" तथा वियोगी हरि की वीर सतसई में राष्ट्रीयता को जगाने के लिए वीरोचित उक्तियाँ कही गई हैं और देश की दुर्दशा पर उन्होंने करुणा से युक्त दोहे कहे हैं। सतसई वस्तुत: मुक्तक काव्य की एक विशिष्ट परंपरा है।

वीर सतसई में कितने दोहे हैं?

इसके अंतर्गत कविगण 700 या 700 से अधिक दोहे लिखकर एक ग्रंथ के रूप में संकलित करते रहे हैं। "सतसई" शब्द "सत" और "सई" से बना है, "सत" का अर्थ सात और सई का अर्थ "सौ" है। इस प्रकार सतसई काव्य वह काव्य है जिसमें सात सौ छंद होते हैं

सतसई में कितने दोहे संग्रहित हैं 730 715 735 710?

Notes: 'बिहारी सतसई' में 713 दोहे संग्रहित है| 'बिहारी सतसई' दोहों के रचियता कवि बिहारीलाल है| बिहारी सतसई श्रृंगार रस की सुप्रसिद्ध और अनुपम रचना है

बिहारी सतसई में कितने छंद है?

इसके अंतर्गत कविगण 700 या 700 से अधिक दोहे लिखकर एक ग्रंथ के रूप में संकलित करते रहे हैं। "सतसई" शब्द "सत" और "सई" से बना है, "सत" का अर्थ सात और सई का अर्थ "सौ" है। इस प्रकार सतसई काव्य वह काव्य है जिसमें सात सौ छंद होते हैं। .

सतसैया के दोहरे का कथन किसका है?

ये दोहा कबीर जी का है।