विषयसूची कवि स्वयं को क्या कहना पसंद करता है और क्यों?इसे सुनेंरोकें(क) कवि कहता है कि जब वह विरह की पीड़ा के कारण रोने लगता है तो संसार उसे गाना समझता है। अत्यधिक वेदना जब शब्दों के माध्यम से फूट पड़ती है तो उसे छंद बनाना समझा जाता है। (ख) कवि स्वयं को कवि की बजाय दीवाना कहलवाना पसंद करता है क्योंकि वह अपनी असलियत जानता है। उसकी कविताओं में दीवानगी है। पथिक के मन में क्या आशंका है?इसे सुनेंरोकेंप्रश्न : (ख) पथिक के मन में क्या आशंका हैं? उत्तर : (ख) पथिक के मन में यह आषंका है कि पथ में ही कहीं रात न हो जाये। अर्थात् लक्ष्य की प्राप्ति से पहले ही कहीं जीवन का अंत न हो जाये। मैं और और जग और कहाँ का नाता मैं बना बना कितने जग रोज मिटाता पंक्तियां कौन सी भाषा में हैं? इसे सुनेंरोकेंवह तो एक कल्पनाशील कवि होने के कारण नित्य ही नए-नए संसार रचा करता और मिटाया करता है। (iii) काव्यांश में कवि ने सांसारिक विषयों में अपनी अरुचि का और आध्यात्मिक चिंतन के प्रति आकर्षण का संकेत किया है। (iv) सरल भाषा में गहन-गम्भीर भावों को व्यक्त किया है। (v) ‘और’ तथा ‘और’ के अर्थ भिन्न होने के कारण यमक अलंकार है। कवि को उद्गार और उपहार क्यों प्रिय हैं?इसे सुनेंरोकेंAnswer. ➲ कवि को अपने हृदय के भाव यानि अपने हृदय के उद्गार और विचार तथा और उपहार अत्यन्त प्रिय हैं, क्योंकि कवि ने अपने ह्रदय में अनेक भावों को उपहार के रूप में संजोकर रखा है। कवि अपने उन्हीं उद्गारों रूपी हृदय के भावों के स्वप्निल संसार में ही डूबे रहना चाहता है। इसी कारण कवि को अपने हृदय के उद्गार और उपहार प्रिय हैं। 0 निज उर के उद्गार से कवि का क्या तात्पर्य है?`?इसे सुनेंरोकेंवह प्रेम की वियोगावस्था में होने के कारण व्यथित है 1 (ख) ‘निज उर के उद्गार’ का अर्थ यह है कि कवि अपने हृदय की भावनाओं को व्यक्त कर रहा है। ‘निज उर के उपहार’ से तात्पर्य कवि की खुशियों से है जिसे वह संसार में बाँटना चाहता है। आत्म परिचय कविता में कवि संसार को क्या संदेश देता है? इसे सुनेंरोकेंउत्तर – ‘आत्मपरिचय’ कविता में कवि कहता है कि यद्यपि वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है, फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है। वह अपनी आशाओं और निराशाओं से संतुष्ट है। वह संसार से मिले प्रेम व स्नेह की परवाह नहीं करता, क्योंकि संसार उन्हीं लोगों की जयकार करता है जो उसकी इच्छानुसार व्यवहार करते हैं। पथिक जल्दी जल्दी क्यों जलता है?इसे सुनेंरोकेंउत्तर: पथिक जल्दी-जल्दी इसलिए चलता है क्योंकि उसे यह भय रहता है कि कहीं पथ में ही रात न हो जाए। उसकी मंज़िल उससे छूट न जाए। प्रश्न 12. In this article, we will share MP Board Class 8th Hindi Solutions Chapter 16 पथिक से Pdf, These solutions are solved subject experts from the latest edition books. पथिक से बोध प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. (ख) नीचे दो खण्डों में कविता की आंशिक पंक्तियाँ दी गई हैं। खण्ड ‘अ’ और
खण्ड ‘ब’ से एक सही पंक्ति लेकर पूरी कीजिए उत्तर (अ) → (3), (आ) → (4), (इ) + (1), (ई)→(2) (ग) स्वतन्त्रता की ज्वाला में माँ आहुति की मांग कर रही है। ‘माँ’ शब्द के प्रयोग द्वारा यहाँ किस माँ की ओर संकेत किया गया है? प्रश्न 3.
(ख) किस स्थिति में कदम-कदम पर मनुष्य अपने आपको घोर निराशा में देखता है? (ग) सुन्दरता की मृगतृष्णा का क्या तात्पर्य है ? (घ) कवि के अनुसार पथिक के सामने कब असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो सकती है? . . (ङ) कवि ने इस कविता में प्रकृति के कौन-कौन से अंगों-उपांगों का चित्रण किया है जो पथिक को उसके मार्ग में मिलते हैं? पथिक से भाषा-अध्ययन प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3.
प्रश्न 4.
प्रश्न 5. प्रश्न 6. पथिक से सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या 1. पथ भूल न जाना पथिक कहीं शब्दार्थ-पथ = मार्ग, राह; पथिक = राहगीर; काँटे = कंटकी रूपी बाधाएँ: दूर्वादल = दूब घास के कोमल पत्ते; सरिता = नदियाँ; सर = तालाब; गिरि = पर्वत; वन = जंगल; वापी = बावड़ियाँ निर्झर = झरने; मृगतृष्णा = (एक प्रकार का भ्रम), रेगिस्तान में रेत पर सूर्य की किरणें पड़ने पर जल का भ्रम होता है। सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा-भारती’ के पाठ ‘पथिक से’ अवतरित है। इसके रचयिता डॉ. शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ हैं। प्रसंग-कवि बता देना चाहता है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के मार्ग में अनेक बाधाएँ आती हैं परन्तु उस मार्ग में बहुत से सुहावने दृश्य भी होते हैं जो हमें अपनी ओर आकर्षित करते हैं लेकिन हमें उनके सौन्दर्य के भुलावे में नहीं आना चाहिए। हमें तो केवल अपने कर्तव्य पथ पर आगे ही आगे बढ़ते जाना चाहिए। (2) जब कठिन कर्म पगडंडी पर तब अपनी प्रथम विफलता में, शब्दार्थ-कर्म पगडंडी पर = कर्म के कम चौड़े मार्ग पर; राही = राह पर चलने वाला उन्मन = उदास. खिन्न: सपने = कल्पनाएँ; मिट जाएंगे = समाप्त हो जाएँगे; कर्त्तव्य मार्ग = उत्तरदायित्व का निर्वाह करने वाला रास्ता; सम्मुख = समक्ष, सामने प्रथम = पहली; विफलता- असफलता। सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-कवि सलाह देता है कि कर्म के मार्ग पर चलते रहने से कल्पनाएँ अपने आप मिट जाती हैं। वे साकार होने लगती हैं। व्याख्या-अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होने में पथिक के मार्ग में अनेक बाधाएँ आती ही हैं, राही का मन कई बार इनमें घिरकर उदास हो उठता है। जब उसकी कल्पनाएँ मात्र कल्पनाएँ लगने लगती हैं। तब उसके सामने केवल कर्त्तव्य मार्ग ही होता है। यदि किसी कारण से पहली बार उसे असफलता मिलती है तो भी 3. अपने भी विमुख पराये बन, तब अपने एकाकीपन में, शब्दार्थ-विमुख = विरुद्ध पराये
= दूसरे, अन्य; सम्मुख = सामने; निराशा = नाउम्मीद; काले बादल = विपत्ति, कठिनाइयाँ; छा जाएँगे = घिर आएँगे; सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-कठिनाइयों के आ जाने पर भी अपने कर्त्तव्य मार्ग से पीछे नहीं हटना चाहिए, इस तरह की सलाह कवि देता है। व्याख्या-कठिनाइयों के काले बादल जब चारों ओर छा जाते हैं तब कदम-कदम पर भयंकर आशाहीनता आ जाती है। उस समय अपने सगे-सम्बन्धी भी अन्य से (पराये से) बन जाते हैं। वे अपरिचित से हो जाते हैं। उस अकेलेपन में भी, हे राहगीर ! तुम्हें अपने कर्त्तव्य मार्ग से नहीं भटक जाना चाहिए। 4. रणभेरी सुन-सुन विदा-विदा कर्तव्य प्रेम की उलझन में, शब्दार्थ-रणभेरी = युद्ध शुरू करने की ध्वनि पुलक रहे होंगे – प्रसन्न या पुलकायमान हो रहे होंगे; सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-कर्त्तव्य निर्वाह किया जाय अथवा प्रेम का निर्वाह इस उलझी हुई पहेली के सुलझाव के लिए अपने कर्तव्य के मार्ग को मत भूल जाना, ऐसी सलाह देकर कवि राहगीर को अपने कर्त्तव्य पथ पर आगे ही आगे बढ़ते रहने का सदुपदेश देता है। व्याख्या-युद्ध प्रारम्भ होने की ध्वनि सुनते-सुनते, सैनिक रोमांचित हो रहे होंगे। वे युद्ध क्षेत्र के लिए विदा होने की तैयारी कर रहे होंगे। युद्ध (कर्तव्य पथ पर बढ़ने के लिए) को जाते समय वह (प्रियतमा) कुमकुम से सजा हुआ थाल अपने हाथों में लिए हुए अपने नेत्रों से प्रेमाश्रु बहाती हुई हो सकती है। उन प्रेमाश्रुओं को देखकर तथा समक्ष ही कर्तव्य पूरा करने की घड़ी सामने होने पर पैदा हुई उलझन में, हे राहगीर तुम अपने कर्तव्य मार्ग से इधर-उधर भटक मत जाना। (5) कुछ मस्तक कम पड़ते होंगे, शब्दार्थ-मस्तक = माथा; आहुति = यज्ञ में डाली जाने वाली हवन सामग्री; असमंजस- दुविधा। सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-किसी भी प्रकार की दुविधा में पड़े बिना कर्तव्य | का निर्वाह करते रहना चाहिए। व्याख्या-युद्ध की देवी उन बहादुर वीरों की संख्या कम होने पर अन्य युद्धवीरों के आने की प्रतीक्षा कर रही होगी क्योंकि महाकाल की माला में आजादी की खातिर अपने मस्तक को काटकर चढ़ाने वाले युद्ध वीरों की संख्या कुछ कम पड़ सकती है। वह युद्ध की देवी, नौजवान युवकों की आहुति आजादी को प्राप्त करने की प्रज्ज्वलित आग में देने के लिए, सभी से माँग कर रही है। कर्त्तव्य पथ पर आगे बढ़ने के लिए, किसी भी असमंजस 1 में नहीं पड़ें। उन्हें तो अपने कर्तव्य मार्ग का ही ध्यान होना चाहिए। कर्त्तव्य मार्ग से हट जाने की भूल न हो जाये। पथिक के तेज चलने का क्या कारण है?(ग) पथिक तेज इसलिए चलता है क्योंकि शाम होने वाली है। उसे अपना लक्ष्य समीप नजर आता है। रात न हो जाए, इसलिए वह जल्दी चलकर अपनी मंजिल तक पहुँचना चाहता है।
आत्म परिचय कविता में कवि का संदेश क्या है?1 Answer. कवि ने 'आत्मपरिचय' कविता में संदेश दिया है कि मनुष्य को अपने सभी सांसारिक कर्तव्य निभाते हुए प्रेम और मस्ती से जीवन बिताना चाहिए।
आत्म परिचय कविता का मूल भाव क्या है?'आत्म-परिचय' शीर्षक कविता में कवि अपना परिचय देता है। उसका कहना है कि वह समाज (जग) का अंग होते हुए भी उससे अलग व्यक्तित्व का स्वामी है। स्वयं को जानना इस संसार को जानने से भी अधिक कठिन है। समाज से व्यक्ति का नाता खट्टा--मीठा तो होता ही है, पर जगजीवन से पूरी तरह निरपेक्ष रहना संभव नहीं है।
कवि के मन में शिथिलता आने का क्या कारण है?उत्तर:- कवि अकेला है। उसका इंतजार करने वाला कोई नहीं है। इस कारण कवि के मन में भी उत्साह नहीं है। इसलिए उसके कदम शिथिल हो जाते हैं।
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