नाटक का अर्थ , नाटक के तत्व अर्थ व्याख्या Show
नाटक क्या है ?नाटक अत्यंत प्राचीन विधा है, इसलिए हम सर्वप्रथम इस पर विचार करेंगे ।
क्या नाटक दृश्य-काव्य है
नाटक में इन सात बातों का होना आवश्यक हैदृश्य-काव्य होने के कारण नाटक की वास्तविक सफलता मंच पर खेले जाने में है। किसी नाटक को मंच पर देखकर या पढ़कर आप पाते हैं कि- 1) उस नाटक में किसी घटना का चित्रण है। 2) यह घटना कुछ व्यक्तियों के जीवन में घटित हुई है 3) यह घटना किस काल अर्थात् समय में घटित हुई है । 4) जिन व्यक्तियों की कथा नाटक में है, वे आपस में या स्वयं से वार्तालाप करते हैं और वार्तालाप का आधार है भाषा 5) नाटक के लिखने का कोई स्थान या देश है। 6) नाटक लिखने का कोई न कोई कारण है। 7) लिखा हुआ नाटक रंगमंच पर खेला जाता है जिसे 'अभिनय' कहते हैं । किसी भी नाटक में इन सात बातों का होना आवश्यक है। इन्हें हम नाटक के तत्व कहते हैं। इनके निम्नलिखित नाम हैं : नाटक के तत्व1) कथावस्तु 2) पात्र या चरित्र चित्रण 3) देशकाल या परिवेश 4) संवाद और भाषा 5) शैली 6) अभिनेता 7) उद्देश्य नाटक के इन तत्वों के आधार पर अब हम नाट्य विधा का विवेचन करेंगे, किन्तु अंतर यह है कि संवाद, भाषा और शैली को हमने एक ही नाम दिया है "संरचना शिल्प" । साथ ही, उद्देश्य के लिए हमने प्रतिपाद्य शब्द का प्रयोग अधिक उपयुक्त समझा है इस पाठ में हम नाटक के तत्वों को निम्नलिखित नाम से विवेचित कर रहे हैं नाटक के तत्व और उनके अर्थ1) कथावस्तु 2) चरित्र चित्रण 3) परिवेश 4) संरचना शिल्प 5) अभिनेयता और 6) प्रतिपाद्य नाटक के तत्वों के विषय में विस्तृत जानकारीकथावस्तु का अर्थ एवं व्याख्या
नाटक की कथावस्तु के विकास की दृष्टि से डॉ० गोविन्द चातक ने इसके पाँच भाग स्वीकार किये हैं वे है :1) प्रारंभ 2) नाटकीय स्थल 3) बन्द्र 4) चरम सीमा 5) परिणति 1) प्रारंभः
2) नाटकीय स्थल
3) द्वंद
4) चरम सीमा
5) परिणति
नाटक में चरित्र चित्रण
नाटक में परिवेश
नाटक में संरचना - शिल्पइसमें हम नाटक की शैली, भाषा और संवाद की चर्चा करेंगे । शैलीरंगमंच की दृष्टि से नाट्य की कई शैलियाँ हैं जैसे भारतीय शास्त्रीय नाट्य शैली, पाश्चात्य नाट्य शैली। इसके अतिरिक्त विभिन्न लोक-नाट्य शैलियौं भी हैं जैसे स्वांग, जात्रा, रामलीला, रासलीला आदि ।
नाटक में संवाद
उदाहरण आरंभ के दृश्य
नाटक में भाषा
नाटक में अभिनेता
नाटक में प्रतिपाद्यसफल नाटककार अपने नाटक के द्वारा गंभीर प्रतिपाद्य या उद्देश्य को हमारे सामने रखता है । नाटक की कथावस्तु पात्र परिवेश, शिल्प आदि तत्वों से महत्वपूर्ण है उसका प्रतिपाद्य । अनेक नाटककारों ने स्वयं अपने नाटकों के प्रतिपाद्य अथवा दृश्य की चर्चा की है। उदाहरण के लिए प्रसाद जी ने "चंद्रगुप्त", "विशाख" आदि ऐतिहासिक नाटकों के लिखने के उद्देश्य पर प्रकाश डाला. है। उन्होंने "विशाख" (प्रथम संस्करण) की भूमिका में कहा है :
अंत को ध्यान में रखकर नाटक को दो कोटियों में विभाजित किया जाता है 1) सुखांत वे नाटक जिनका अन्त सुख में होता है । 2) दुखांत नाटक जिनका अंत दुःख में होता है । Also Read.... नाटक में पात्र की संख्या कितनी होनी चाहिए?Answer: नाटक में यों तो पात्रों की संख्या अधिक होती है, किंतु सामान्यतः एक-दो पात्र ही प्रमुख होते हैं । किसी नाटक के प्रधान पुरुष पात्र को नायक और प्रधान अथवा मुख्य स्त्री-पात्र को नायिका कहते हैं।
1 नाटक में पात्रों का क्या महत्व होता है?पात्र नाटक में नाटक का अपने विचारों , भावों आदि का प्रतिपादन पात्रों के माध्यम से ही करना होता है। अतः नाटक में पात्रों का विशेष स्थान होता है। प्रमुख पात्र अथवा नायक कला का अधिकारी होता है तथा समाज को उचित दशा तक ले जाने वाला होता है।
नाटक में कितने अंक होते हैं?इसलिए समय का ध्यान रखना भी ज़रूरी हो जाता है। नाटक में तीन अंक होते हैं इसलिए उसे भी समय को ध्यान में रखकर बाँटने की ज़रूरत होती है ।
नाटक में पात्रों के संवादों का क्या महत्व है लिखिए?संवाद के द्वारा नाटक में नाटककार पात्रों के माध्यम से अपनी भावनाएं व्यक्त करते है। संवादों द्वारा पात्र की मन स्थिति का पता लगाया जा सकता है। शब्दों के माध्यम से नाटक कार किसी स्थिति, वातावरण का वर्णन कर सकते हैं इसलिए संवादों को नेरेटिव विधा कहा जाता है।
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