हालदार साहब चक्कर में क्यों पड़ गए - haaladaar saahab chakkar mein kyon pad gae

 Jharkhand Board Class 10 Hindi Notes | नेताजी का चश्मा ― स्वयं प्रकाश  Solutions Chapter 10

                      10. नेताजी का चश्मा ― स्वयं प्रकाश



                 दिये गये गद्यांश पर अर्थ-ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर


गद्यांश-1. हालदार साहब को हर पंद्रहवें दिन कंपनी के काम के सिलसिले में

उस कस्बे से गुजरना पड़ता था। कस्बा बहुत बड़ा नहीं था। जिसे पक्का मकान

कहा जा सके वैसे कुछ ही मकान और जिसे बाजार कहा जा सके वैसा एक ही

बाजार था। कस्बे में एक लड़कों का स्कूल, एक लड़कियों का स्कूल, एक सीमेंट

का छोटा-सा कारखाना, दो ओपन एयर सिनेमाघर और एक ठो नगरपालिका भी

थी। नगरपालिका थी तो कुछ-न-कुछ करती भी रहती थी। कभी कोई सड़क

पक्की करवा दी, कभी कुछ पेशाबघर बनवा दिए, कभी कबूतरों की छतरी बनवा

दी तो कभी कवि सम्मेलन करवा दिया। इसी नगरपालिका के किसी उत्साही बोर्ड

या प्रशासनिक अधिकारी ने एक बार 'शहर' के मुख्य बाजार के मुख्य चौराहे पर

नेता सुभाषचंद्र बोस की एक संगमरमर की प्रतिमा लगवा दी। यह कहानी उसी

प्रतिमा के बारे में है, बल्कि उसके भी एक छोटे-से हिस्से के बारे में।


प्रश्न-(क) हालदार साहब को कहाँ से गुजरना पड़ता था?

(ख) कस्बे के बारे में क्या बताया गया है ?

(ग) नगरपालिका क्या-क्या काम करती रहती थी?

उत्तर―(क) हालदार साहब को हर पंद्रहवें दिन अपनी कंपनी के काम से इस

कस्बे से गुजरना पड़ता था।

(ख) इस गद्यांश में कस्बे के बारे में बताया गया है कि यह कस्बा छोटा

था। इसमें कुछ ही मकान पक्के थे। एक ही बाजार था। इस कस्बे में लड़कों

का एक स्कूल तथा लड़कियों का एक स्कूल था। इसके अतिरिक्त यहाँ एक सीमेंट

का छोटा-सा कारखाना, दो खुले सिनेमाघर तथा एक नगरपालिका थी।

(ग) नगरपालिका निम्नलिखित कार्य करती थी―

(i) सड़क बनवाना

(ii) पेशाबघर बनवाना

(iii) कबूतरों के लिए छतरी बनवाना 

(iv) कवि सम्मेलन करवाना ।


गद्यांश-2. पूरी बात तो अब पता नहीं, लेकिन लगता है कि देश के अच्छे

मूर्तिकारों की जानकारी नहीं होने और अच्छी मूर्ति की लागत अनुमान और उपलब्ध

बजट से कहीं बहुत ज्यादा होने के कारण काफी समय ऊहापोह और चिट्ठी-पत्री

में बरबाद हुआ होगा और बोर्ड की शासनावधि समाप्त होने की घड़ियों में किसी

स्थानीय कलाकार को ही अवसर देने का निर्णय किया होगा और अंत में कस्बे

के इकलौते ड्राइंग मास्टर-मान लीजिए मोतीलाल जी-को ही यह काम सौंप दिया

होगा, जो महीने भर में मूर्ति बनाकर 'पटक देने' का विश्वास दिला रहे थे।

                                                                            [JAC2015 (A)]


प्रश्न-छोटे कस्बों में सार्वजनिक निर्माणों में प्रायः कौन-सी कठिनाइयाँ

आती हैं?

उत्तर―छोटे कस्बों में सार्वजनिक निर्माणों में प्रायः साधन और शिल्पी की

समस्या उत्पन्न होती है। वहाँ योग्य शिल्पकारों या कलाकारों का अभाव रहता है।

अच्छे निर्माण के लिए धन की कमी होती है। शासकीय कार्यों में काफी कठिनाई

होती है और समय निकल जाता है। इसके अलावे कभी-कभी काम में गलतियों

की संभावना रहती है।


प्रश्न-स्थानीय कलाकार से मूर्ति बनवाने का क्या कारण रहा होगा?

उत्तर―धन और साधनों का अभाव स्थानीय कलाकार से मूर्ति-निर्माण का

कारण रहा होगा।


प्रश्न-स्थानीय कलाकार ने क्या वादा किया होगा? 'पटक देने' का क्या

भावार्थ रहा होगा?

उत्तर―स्थानीय कलाकार को मूर्ति बनाने की बात कही गयी होगी तो वह

जल्दबाजी में अपने निर्धारित एक महीने में ही जैसे भी हो मूर्ति पूरा करने का निश्चय

प्रकट किया होगा।

        पटक देने का भावार्थ यह रहा होगा कि जैसे भी हो 'निश्चित समय-सीमा

के अन्दर मूर्ति तैयार कर दे देना। मूर्ति में कोई कमी रहने की जिम्मेवारी

नगरपालिका की मानी जायेगी, मेरी नहीं।'


गद्यांश-3.अब हालदार साहब को बात कुछ-कुछ समझ में आई। एक

चश्मेवाला है जिसका नाम कैप्टन है। उसे नेताजी की बगैर चश्मेवाली मूर्ति बुरी लगती

है। बल्कि आहत करती है, मानो चश्मे के बगैर नेताजी को असुविधा हो रही हो।

इसलिए वह अपनी छोटी-सी दुकान में उपलब्ध गिने-चुने फ्रेमों में से एक नेताजी की

मूर्ति पर फिट कर देता है। लेकिन जब कोई ग्राहक आता है और उसे वैसे ही फ्रेम

की दरकार होती है जैसा मूर्ति पर लगा तो कैप्टन चश्मेवाला मूर्ति पर लगा

फ्रेम-संभवतः नेताजी से क्षमा माँगते हुए-लाकर ग्राहक को दे देता है और बाद में

नेताजी को दूसरा फ्रेम लौटा देता है। वाह! भई खूब! क्या आइडिया है।


प्रश्न-चश्मे वाला किस प्रकार अपना चश्मा बेचता है?

उत्तर―चश्मे वाला घूम-घूम कर चश्मा बेचता है। उसके हाथ में एक

संदूचकी रहती है और दूसरे हाथ में एक बाँस का डंडा जिस पर विभिन्न प्रकार

के चश्मे लटके रहते हैं। हालदार साहब भी चश्मे को देख कर ही उसकी

वास्तविकता की जानकारी कर सके।


प्रश्न-चश्मा वाला नेताजी की मूर्ति पर चश्मा क्यों लगाता है?

उत्तर―नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के प्रति मन में भक्ति-भावना रहने के कारण

ही वह नेताजी की मूर्ति पर चश्मा लगाता है। वह उनकी मूर्ति को बिना चश्मे के

देख नहीं सकता। अतः उनकी मूर्ति पर वह चश्मा लगाता है।


प्रश्न-चश्मे वाला मूर्ति पर चश्मा बदल क्यों देता है?

उत्तर―चश्मे वाला एक गरीब व्यक्ति है। वह फेरी लगा कर चश्मा बेचता है।

जब किसी ग्राहक को नेताजी के चश्मे का फ्रेम अच्छा लगता है, वह उसे उतारकर

उस ग्राहक को दे देता है। उसकी जगह पर वह कोई दूसरा फ्रेम लगा देता है।


प्रश्न-चश्मे वाला को लोग किस नाम से जानते हैं?

उत्तर―चश्मे वाले को लोग 'कैप्टन' नाम से जानते हैं।


प्रश्न-हालदार साहब का ज्ञान कितना प्रामाणिक है-स्पष्ट करें।

उत्तर―हालदार साहब का ज्ञान पूर्णत: अनुमान पर आधारित है। यह सही है

कि वे स्वयं भावुक और देशभक्त हैं। इसीलिए वह चश्मे वाले की भी देशभक्ति

की कल्पना करते हैं। एक 'संभवतः' शब्द से ही स्पष्ट होता है कि सारी बातें

कल्पना के आधार पर कही जा रही है।


गद्यांश-4. हालदार साहब को यह सब कुछ विचित्र और कौतुहल भरा लग

रहा था। इन्हीं ख्यालों में खोए-खोए पान के पैसे चुकाकर, चश्मेवाले की देशभक्ति

के समक्ष नतमस्तक होते हुए वह जीप की तरफ चले, फिर रूके, पीछे मुड़े और

पानवाले के पास जाकर पूछा, क्या कैप्टन चश्मेवाला नेताजी का साथी है? या

आजाद हिन्द फौज का भूतपूर्व सिपाही?

    पानवाला नया पान खा रहा था। पान पकड़े अपने हाथ को मुँह से डेढ़ इंच

दूर रोककर उसने हालदार साहब को ध्यान से देखा, फिर अपनी लाल-काली

बत्तीसी दिखाई और मुसकराकर बोला-नहीं साब! वो लँगड़ा क्या जाएगा फौज में।

पागल है पागल! वो देखो, वो आ रहा है। आप उसी से बात कर लो। फोटो-वोटो

छपवा दो उसका कहीं


प्रश्न-हालदार साहब को कौन-सी बात विचित्र और कौतूहल भरी लग

रही थी?

उत्तर―हालदार साहब ने जब पहली बार चौराहे पर नेताजी की मूर्ति लगी देखी

तो उन्हें वह बड़ी ही कौतूहल भरी चीज लगी। नेताजी के नाम पर संगमरमर के

चश्में की जगह पर मानवीय चश्मा देखकर और भी कौतूहल वाला लगा। चश्मे

को प्रायः बदलते देखकर भी उन्हें काफी कौतूहल हुआ।


प्रश्न-हालदार साहब ने पान वाले से क्या पूछा?

उत्तर―हालदार साहब ने चश्मे वाले के संबंध में पान वाले से यह जानना चाहा

कि वह आजाद हिन्द फौज का फौजी रहा है या उनका साथी। उन्होंने यह इसलिए

पूछा क्योंकि उन्हें उस विचित्र आदमी के बारे में जानने की उत्सुकता थी।


प्रश्न-हालदार चश्मे वाले को देशभक्त क्यों मान रहा था?

उत्तर―हालदार स्वयं देशभक्त था इसलिए चश्मे वाले की नेताजी के प्रति

भक्ति देखकर वह उसे देशभक्त मान रहा था। पान वाले ने उसे 'कैप्टन' नाम से

सम्बोधित किया इससे हालदार साहब को लगा कि वह आजाद हिन्द फौज का

फौजी रहा होगा।


प्रश्न-पानवाला किसलिए हँस पड़ा?

उत्तर―पान वाले को चश्मे वाले की वास्तविकता की जानकारी थी। वह एक

मरियल बूढ़ा आदमी था। हालदार साहब द्वारा उसे आजाद हिन्द फौज का फौजी

मानने पर वह व्यंग्य से हँस दिया।


प्रश्न-पान वाला चश्मे वाले को लैंगड़ा और पागल क्यों कहता है?

उत्तर―पान वाला उस चश्मे वाले को हालदार साहब के समान देशभक्त नहीं

मानता है। नेताजी को बार-बार चश्मा लगाने के कारण भी उसे पागल मानता है।

वह तो केवल उसका ऊपरी रूप देखकर उसे एक लँगड़ा इन्सान मानता है। उसके

मन में चश्मे वाले की आंतरिक देशभक्ति के प्रति कोई सम्मान का भाव नहीं था।


गद्यांश-5. हालदार साहब को पानवाले द्वारा एक देशभक्त का इस तरह

मजाक उड़ाया जाना अच्छा नहीं लगा। मुड़कर देखा तो अवाक् रह गए। एक बेहद

बूढ़ा मरियल-सा लँगड़ा आदमी सिर पर गाँधी टोपी और आँखों पर काला चश्मा

लगाए एक हाथ में एक छोटी-सी संदूकची और दूसरे हाथ में एक बाँस पर टंगे

बहुत-से चश्मे लिए अभी-अभी एक गली से निकला था और अब एक बंद दूकान

के सहारे अपना बाँस टिका रहा था। तो इस बेचारे की दुकान भी नहीं। फेरी लगाता

है। हालदार साहब चक्कर में पड़ गए। पूछना चाहते थे. इस कैप्टन क्यों कहते हैं?

क्या वह इस बारे में और बात करने को तैयार नहीं? लेकिन पानवाले ने साफ बता

दिया था कि अब वह इस बारे में और बात करने को तैयार नहीं। ड्राइवर भी बेचैन

हो रहा था। काम भी था। हालदार साहब जीप में बैठ कर चले गए।


प्रश्न-हालदार को कौन-सी बात बुरी लगी?

उत्तर―पानवाले के द्वारा उस देशभक्त चश्मे वाले का मजाक उड़ाना बुरा

लगा। पान वाले ने उसकी देशभक्ति और भावना का ख्याल न करके उसे पागल

और लँगड़ा कहा।


प्रश्न-हालदार साहब क्या देखकर हैरान रह गये?

उत्तर―हालदार साहब ने यह कल्पना नहीं की थी कि नेताजी की मूर्ति पर

चश्मा लगाने वाला व्यक्ति लँगड़ा और फेरी लगा कर चश्मा बेचने वाला व्यक्ति

होगा। उसका कैप्टन नाम सुनकर उन्हें ऐसा लगा होगा कि वह आजाद हिन्द का

फौजी या नेताजी का साथी होगा।


प्रश्न-चश्मे वाले को देख कर हालदार साहब चक्कर में क्यों पड़ गये?

उत्तर―हालदार साहब के दिमाग में यह बात थी कि चश्मा वाला अवश्य कोई

फौजी आदमी या नेताजी का साथी रहा होगा। लेकिन उस बूढ़े, मरियल और फेरी

वाले व्यक्ति को देख कर हालदार साहब चक्कर में पड़ गये। हालदार साहब यह

भी सोचने लगे कि उसका नाम 'कैप्टन' क्यों पड़ा।


प्रश्न-चश्मे वाले के व्यवसाय और उसकी दशा का वर्णन करें।

उत्तर―चश्मे वाला बहुत ही गरीब है। उसके पास अपनी कोई दुकान नहीं है।

अतः वह घूम-घूमकर चश्मा बेचता है। वह शरीर से भी बूढ़ा दुर्बल मरियल है।

वह पैर से भी लँगड़ा है।


प्रश्न-पान वाले ने चश्मे वाले के 'कैप्टन' नाम पर क्या प्रतिक्रिया की?

उत्तर―पान वाले ने चश्मे वाले के 'कैप्टन' नाम पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं

की। वह चुपचाप मौन रहा। उसकी ओर पान वाले की कोई रुचि नहीं थी।


                     पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर


प्रश्न 1. सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले के लोग कैप्टन क्यों कहते थे ?

                                  [JAC 2011 (A); 2014 (A); 2016 (A)]

उत्तर―चश्मेवाला कभी सेनानी नहीं रहा। वह तन से बहुत बूढ़ा और

मरियल-सा था। परन्तु उसके मन में देशभक्ति की भावना प्रबल थी। वह

सुभाषचंद्र का सम्मान करता था। वह सुभाष की बिना चश्मे वाली मूर्ति को देखकर

आहत था। इसलिए अपनी ओर से एक चश्मा नेताजी की मूर्ति पर अवश्य लगाता

था। उसकी इसी भावना को देखकर ही लोगों ने उसे सुभाषचंद्र बोस का साथी

या सेना का कैप्टन कहकर सम्मान दिया । चाहे उसका यह नाम व्यंग्य में रखा गया

हो, फिर भी वह ठीक नाम था। वह कस्बे का अगुआ था।


प्रश्न 2. हालदार साहब ने ड्राइवर को पहले चौराहे पर गाड़ी रोकने के

लिए मना किया था लेकिन बाद में तुरंत रोकने को कहा―

(क) हालदार साहब पहले मायूस क्यों हो गए थे?

उत्तर―हालदार साहब यह जानकर मायूस हो गए थे कि कैप्टन की मृत्यु हो

चुकी है। अतः अब उस कस्बे में सुभाष की बिना चश्मे वाली मूर्ति को चश्मा

पहनाने वाला कोई न रहा होगा। अब मूर्ति बिना चश्मे के ही खड़ी होगी।


(ख) मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा क्या उम्मीद जगाता है ?

उत्तर―मूर्ति पर लगा सरकंडे का चश्मा यह उम्मीद जगाता है कि यह धरती

देशभक्ति से शून्य नहीं हुई है। एक कैप्टन नहीं रहा, तो अन्य लोग उस दायित्व

को संभालने के लिए तैयार हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि सरकंडे का चश्मा किसी

गरीब बच्चे ने बनाया है। अतः उम्मीद है कि ये बच्चे गरीबी के बावजूद देश को

ऊपर उठाने का प्रयास करते रहेंगे।


(ग) हालदार साहब इतनी-सी बात पर भावुक क्यों हो उठे ?

उत्तर―हालदार साहब के लिए सुभाष की मूर्ति पर चश्मा लगाना 'इतनी-सी'

बात नहीं थी। यह उनके लिए बहुत बड़ी बात थी। यह बात उनके मन में आशा

जगाती थी कि कस्बे-कस्बे में देशभक्ति जीवित है। देश की पीढ़ी में देशप्रेम जीवित

है। इस खुशी और आशा से वे भी भावुक हो उठे।


प्रश्न 3. आशय स्पष्ट कीजिए―

"बार-बार सोचते, क्या होगा उस कौम का जो अपने देश की खातिर

घर-गृहस्थी-जवानी-जिंदगी सब कुछ होम देनेवालों पर भी हँसती है और अपने

लिए बिकने के मौके ढूँढती है।"

उत्तर―हालदार साहब ने चश्मेवाले कैप्टन की मृत्यु का समाचार सुना तो

उदास हो गए। उन्हें लगा कि कैप्टन जैसे लोग ही तो देश के लिए आशा की किरण

थे। शेष लोग तो देश के लिए मर-मिटने वालों पर हँसते हैं। नगर लका ने

क्रांतिकारी सुभाष की मूर्ति बनवाई तो अधूरी बनवाई। उन्हें याद नहीं रहा कि जिस

सुभाष की मूर्ति को वे चश्मा तक नहीं दे रहे हैं, उसने अपनी सारी जिंदगी देश

के लिए लगा दी। उस छोटे से कस्बे में यदि कैप्टन जैसा चश्मेवाला सुभाष की

मूर्ति पर चश्मा लगाता रहा तो लोग उस पर भी हँसते रहे। उसे पागल और सनकी

कहते रहे। जहाँ ऐसे स्वार्थी लोग रहते हों, उस देश का भविष्य कैसे संवरेगा?

जिस जाति में लोग स्वयं का प्रचार-प्रसार करने में रुचि लेते हैं, उस देश का भी

कोई भविष्य नहीं होता?


प्रश्न 4. पानवाले का एक रेखाचित्र प्रस्तुत कीजिए।         [JAC 2012 (C)]

उत्तर―पानवाला साक्षात् पान-भांडार था। उसकी दुकान पर ही नहीं, मुँह में

भी पान ठुँसा था। पान के कारण वह बात तक नहीं कर सकता था। यदि उससे

कोई कुछ पूछ ले तो पहले उसे पीछे मुड़कर थूकना पड़ता था। हाँ, स्वभाव से वह

बहुत ही रसिया, हँसौड़ और मजाकिया था। वह शरीर से मोटा था। उसकी तोंद

निकली रहती थी। अत: वह जब भी हँसता था तो उसकी तोंद थिरकने लगती थी।

हँसने पर उसके पानवाले लाल-काले दाँत खिल उठते थे। वह बातें बनाने में उस्ताद

था। उसकी बोली में हँसी और व्यंग्य का पुट बना रहता था।


प्रश्न 5. निम्नलिखित वाक्य पात्रों की कौन-सी विशेषता की ओर संकेत

करते हैं―

(क) हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुकते और नेताजी को निहारते।

उत्तर―यह वाक्य हालदार साहब की देशभक्ति को प्रकट करता है। उन्हें

सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति से इसलिए प्रेम था क्योंकि वे देशभक्त थे। उन्हें सुभाष

की मूर्ति में गहरी रुचि थी । मूर्ति में चश्मे का न होना, फिर बार-बार चश्मा लगाने

वाले के बारे में जानना-इन बातों से पता चलता है कि वे देशभक्त थे।


(ख) पानवाला उदास हो गया। उसने पीछे मुड़कर मुँह का पान नीचे

थूका और सिर झुकाकर अपनी धोती के सिरे से आँखें पोंछता हुआ

बोला-साहब ! कैप्टन मर गया।

उत्तर―पानवाला संवेदनशील व्यक्ति था। उसे चश्मेवाले कैप्टन के मरने पर

बेहद अफसोस था। यद्यपि उसके जीते-जी उसने उसका मजाक उड़ाया । उसे

लंगड़ा और पागल भी कहा । परन्तु मरने के बाद उसे उसकी कीमत का पता चला।

उसे लगा कि कस्बे में उस जैसा देशप्रेमी आर कोई नहीं है। अतः वह कैप्टन की

याद करके उदास हो गया। उसकी आँखों में आँसू आ गए।


(ग) कैप्टन बार-बार मूर्ति पर चश्मा लगा देता था।

उत्तर―कैप्टन देशभक्त नागरिक था। उसे यह सहन नहीं था कि उसके

नेताजी बिना चश्मे के रहें । इसलिए वह अपनी ओर से कोई-न-कोई चश्मा उनकी

आँखों पर लगा देता था। इससे उसकी देशभक्ति का परिचय मिलता है।


प्रश्न 6. जब तक हालदार साहब ने कैप्टन को साक्षात् देखा नहीं था तय

तक उनके मानस पटल पर उसका कौन-सा चित्र रहा होगा, अपनी कल्पना

से लिखिए।                                      [JAC Sample Paper 2009]

उत्तर―जब तक हालदार साहब ने अपनी आँखों से चश्मेवाले कैप्टन को देखा

नहीं था, तब तक उनके मन में कैप्टन की मूर्ति कुछ और थी। उन्होंने सोचा था

कि कैप्टन शरीर से हट्टा-कट्टा मजबूत होगा । वह जरूर सिर पर फौजी टोपी पहनता

होगा। वह रोबदार, अनुशासित और दबंग मनुष्य होगा। उसकी वाणी में भारीपन

होगा।


प्रश्न 7. कसबों, शहरों, महानगरों के चौराहों पर किसी न किसी क्षेत्र के

प्रसिद्ध व्यक्ति की मूर्ति लगाने का प्रचलन-सा हो गया है―

(क) इस तरह की मूर्ति लगाने के क्या उद्देश्य हो सकते हैं?

उत्तर―इस तरह की मूर्ति लगाने का उद्देश्य यही हो सकता है कि लोग उस

प्रसिद्ध व्यक्ति के बारे में जानें। उससे प्रेरणा प्राप्त करें। उसके गुणों को अपनाएँ।

उसे याद रखें, ताकि समाज में अच्छे कार्य होते रहें।


(ख) आप अपने इलाके के चौराहे पर किसी व्यक्ति की मूर्ति स्थापित

करवाना चाहेंगे और क्यों?

उत्तर―हम अपने इलाके के चौराहे पर राष्ट्रीय महापुरुषों, प्रसिद्ध संतों, ऋषियों,

साहित्यकारों और वैज्ञानिकों की मूर्ति स्थापित करवाना चाहेंगे।

   क्योंकि हम उनकी मूर्ति स्थापित करके उनके कामों को याद रखेंगे, उन्हें याद रखेंगे,

उनसे प्रेरणा प्राप्त करेंगे और आने वाली पीढ़ियों को भी उनके बारे में बताना चाहेंगे।


(ग) नेता मूर्ति के प्रति आपके एवं दूसरे लोगों के क्या उत्तरदायित्व होने

चाहिए?                                                            [JAC 2011 (C)]

उत्तर―ऐसी मूर्तियों के प्रति हमारा तथा समाज के सभी लोगों का यह दायित्व

बनता है कि वे उनकी देखभाल और साज-संवार करें। उन्हें समय-समय पर

सँवारते रहें।


प्रश्न 8. हालदार साहब हमेशा चौराहे पर रुककर नेताजी की मूर्ति को

क्यों निहारते थे?

उत्तर―हालदार साहब एक देशभक्त व्यक्ति थे। चौराहे पर नेताजी की मूर्ति

देख कर उन्हें प्रसन्नता हुई। लेकिन नेताजी की नाक पर संगमरमर के चश्मे की

जगह पर मानवीय चश्मा देखकर उन्हें बड़ा कौतूहल लगा। वे हमेशा चौराहे पर

रुककर नेताजी की मूर्ति को निहारते थे और उन्हें आश्चर्य होता था कि चश्मा रोज

बदल जाता था।


प्रश्न 9. सेनानी न होते हुए भी चश्मे वाले को लोग कैप्टन क्यों कहते

थे?

उत्तर―चश्मे वाला सेनानी न होते हुए भी परम देशभक्त था। वह बूढ़ा-सा

गरीब मरियल फेरी लगा कर चश्मा बेचने वाला था। वह नेताजी की मूर्ति को बिना

चश्मे के देखना नहीं चाहता था। वह अपनी ओर से नेताजी को कोई न कोई चश्मा

अवश्य लगाता रहता था। उसकी इसी भावना को देखकर उसे लोग नेताजी का

साथी समझते थे। लोग उसे आजाद हिन्द फौज का कैप्टन समझते थे। अत: लोग

उसे कैप्टन कहते थे।


प्रश्न 10. "वो लँगड़ा क्या जायेगा फौज में पागल है, पागल।" कैप्टन के

बारे में पान वाले की टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें।

उत्तर―पान वाला पूर्णत: पनेरी है। उसे देशभक्ति से कोई संबंध नहीं। उसका

संबंध केवल अपनी दुकानदारी से था। इसी से वह कैप्टन को पागल मानता है।

उसपर व्यंग्य करता है कि वह लँगड़ा फौज में क्या जायेगा। दूसरी ओर वह गरीब

चश्मे वाला चाहता था कि नेताजी की मूर्ति किसी प्रकार अधूरी नहीं रहे। कैप्टन

पर पान वाले की टिप्पणी मूर्खतापूर्ण है।


प्रश्न 11. 'नेताजी का चश्मा' पाठ का संदेश क्या है?

उत्तर―'नेताजी का चश्मा' का मुख्य संदेश यह है कि इस संसार में प्रायः

लोग उस पान दुकानदार जैसे हैं। वह देश भक्त चश्मे वाले को पागल मानता है।

स्वयं पान खाने और पान लगाने में डूबा हुआ है। हालदार के पूछने पर नेताजी के

बारे में कुछ बताना भी नहीं चाहता है। अज्ञात गरीब देश भक्त बच्चे भी अपने नेता

को बिना चश्मे का देखना नहीं चाहते थे।


प्रश्न 12. 'नेताजी का चश्मा' पाठ से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?

उत्तर―'नेताजी का चश्मा' पाठ से प्रेरणा मिलती है कि सभी के मन में देश

भक्ति की भावना होनी चाहिए। आदमी कितना भी कार्य व्यस्त क्यों नहीं हो भावना

हृदय की चीज है। एक बूढ़ा. गरीब और मरियल चश्मे वाले के मन में भी भक्ति

भावना थी। उन छोटे-छोटे साधन विहीन बच्चों के मन में भी देश भक्ति की भावना

थी।


प्रश्न 13. पान वाले का रेखा चित्र प्रस्तुत कीजिए।

अथवा, पान वाले का चरित्र-चित्रण करें।

उत्तर―पान वाला भारी भरकम तोंद वाला था। वह पान बेचता ही नहीं हमेशा

मुँह में भी पान भरे रहता था। किसी से भी बात करते समय बार-बार पीक फेंकता

था। उसकी मानसिकता पूर्णतः व्यावसायिक थी स्वभाव से हँसोड़ और मजाकिया

था। जब वह हँसता था तो उसकी तोंद थिरकने लगती थी और मुँह से पान-पीक

के छींटे निकलते थे। उसके लाल-काले दाँत खिल उठते थे। वह बड़ा बातूनी था।

कैप्टन जैसे देशभक्त पर भी व्यंग्य कर सकता था। उसका देशभक्ति से कोई संबंध

नहीं था।


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हालदार साहब के चकित होने का क्या कारण था?

उत्तरः पान वाले के लिए मजेदार बात यह थी कि मूर्तिकार मूर्ति पर चश्मा लगाना भूल गया था। प्रश्न (क)-पानवाले की बात सुनकर हालदार साहब चकित क्यों हो गए? उत्तर (क)- एक निर्धन, अशक्त और बूढ़े चश्मेवाले में देशभक्ति की ऐसी उत्कट भावना का होना हालदार साहब के चकित होने का कारण था

हालदार साहब क्या देखकर चक्कर में पड़ गये थे?

Answer: हालदार साहब के दिमाग में यह बात थी कि चश्मा वाला अवश्य कोई फौजी आदमी या नेताजी का साथी रहा होगा। लेकिन उस बूढ़े, मरियल और फेरी वाले व्यक्ति को देख कर हालदार साहब चक्कर में पड़ गये

हालदार साहब कस्बे में क्यों रुकते थे?

उत्तर- हालदार साहब का चौराहे पर रुकना और नेताजी की मूर्ति को निहारना दर्शाता है कि उनके दिल में भी देशप्रेम का जज्बा प्रबल था और वो अपने देश के स्वतंत्रता सेनानियों का दिल से सम्मान करते थे। उन्हें नेताजी की मूर्ति पर चश्मा देखना अच्छा लगता था। ...

हालदार साहब को चौराहे को देखकर आश्चर्य क्यों हुआ?

मूर्ति देखकर उन्हें आश्चर्य हुआ क्योंकि मूर्ति पर सरकंडे का चश्मा लगा हुआ था। सरकंडे का चश्मा देखकर हालदार साहब को यह उम्मीद हुई कि आज के बच्चे कल को देश के निर्माण में सहायक होंगे और अब उन्हें कभी भी चौराहे पर नेता जी की बिना चश्मे की मूर्ति नहीं देखनी पड़ेगी।