Thermodynamics In Hindi : प्रिय मित्रों आज हम आपको ऊष्मागतिकी के बारे में विस्तार से बताएंगे। आज हमने इस लेख में ऊष्मागतिकी क्या है, निकाय, ऊष्मा गतिकी के नियम, ऊष्मागतिकी प्रक्रम इत्यादी के बारे आपके लिए विस्तार से जानकारी दी है। हमारा यह लेख पढ़ने के बाद आपको Ushmagatiki Ke Niyam की पूर्ण जानकारी के बारे में पता लग जाएगा। Show हमारा यह लेख कक्षा 9, 10, 11, 12 के विद्यार्थियों के लिए बहुत अधिक उपयोगी है। इसलिए विद्यार्तियो की सहायता के लिए हमने Thermodynamics In Hindi लिखा है।
ऊष्मागतिकी :- रसायन विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत ऊष्मा के परिवर्तन का अध्ययन किया जाता है। अर्थात रासायनिक अभिक्रिया होने के समय उष्मा के परिवर्तन का अध्ययन किया जाता है। ऊष्मा गतिकी कहलाती है। ऊष्मा परिवर्तन करने पर होने वाले रासायनिक परिवर्तन को ऊष्मागतिकी कहते हैं। रासायनिक ऊष्मागतिकी में प्रयुक्त होने वाले निम्न परिभाषाएं :- तंत्र या निकाय (System) :- ऊष्मा गतिकी अध्ययन के लिए जिस वस्तु या भाग का चुनाव किया जाता है। वह तंत्र या निकाय कहलाता है। इस तंत्र पर ताप दाब या अन्य कारकों के प्रभाव का ऊष्मागतिकी अध्ययन किया जाए तो वह भाग तंत्र या निकाय कहलाता है। परिवेश :- ऊष्मागतिकी अध्ययन में प्रयुक्त होने वाले भाग को छोड़कर शेष बचा हुआ संपूर्ण भाग परिवेश कहलाता है। तंत्र के प्रकार :- तंत्र तीन प्रकार के होते हैं।
खुला तंत्र :- ऐसा तंत्र जिसमें निकाय तथा परिवेश के बीच पदार्थ तथा ऊष्मा का आदान-प्रदान हो सकता है खुला तंत्र कहलाता है। जैसे – खुले बिकर में जल का उबालना। बंद तंत्र :- ऐसा तंत्र जिसमें निकाय तथा परिवेश के बीच ऊष्मा का तो आदान-प्रदान हो सके लेकिन पदार्थ का आदान-प्रदान नहीं होता है। बंद तंत्र कहलाता है। जैसे- किसी बंद बीकर में अभिक्रिया का होना। विलगित तंत्र :- ऐसा तंत्र जिसमें निकाय तथा परिवेश के बीच ऊष्मा तथा पदार्थ दोनों का ही आदान-प्रदान न हो सके विलगित तंत्र कहलाता है। जैसे – ऊष्मा धारिता, आंतरिक ऊर्जा आदि। तंत्र के आकार :- तंत्र के निम्न दो आकार हैं। सूक्ष्म तंत्र :- ऐसा तंत्र जिनमें केवल एक ही अणु या परमाणु हो उसे सूक्ष्म तंत्र कहते हैं। इस प्रकार के तंत्र का ऊष्मागतिकी अध्ययन संभव नहीं है। स्थूल तंत्र :- ऐसा तंत्र जिनमें बहुत सारे अणु तथा परमाणु उपस्थित होते हैं उसे सूक्ष्म अणु कहते है। इसका ऊष्मा गतिकी अध्ययन संभव है। तंत्र के गुण :- तंत्र के निम्न दो गुण है। विस्तीर्न गुण :- तंत्र के वे गुण जो उसमें उपस्थित पदार्थ की मात्रा तथा उसके परिणाम पर निर्भर करती है। विस्तीर्न कहलाता है। जैसे – आयतन द्रव्यमान इत्यादि पर निर्भर करता है। गहन गुण :- तन्त्र के वे गुण जो उसमें उपस्थित पदार्थ की मात्रा पर निर्भर नहीं करते हैं बल्कि पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करते हैं। जैसे – दाब, ताप इत्यादि। विस्तीर्न गुण भी गहन गुण बन जाते हैं यदि पदार्थ की इकाई मात्रा में उपस्थित होते हैं। Thermodynamic System In Hindiऊष्मागतिकी प्रक्रम :- ऊष्मा गतिकी वह क्रियाविधि जिसमें एक तंत्र की अवस्था दूसरी अवस्था में बदल जाते हैं। ऊष्मा गतिकी प्रक्रम कहलाते है। ऊष्मा गतिकी प्रक्रम के प्रकार :- ऊष्मागतिकी प्रक्रम के निम्न प्रकार हैं। समतापी प्रक्रम :- किसी ऊष्मा गतिकी निकाय में ऐसा परिवर्तन जिसमें निकाय के दाब व आयतन परिवर्तित होते हैं। जब तक ताप स्थिर रहता है। इसे समतापी प्रक्रम कहते हैं। समतापी प्रक्रम संपन्न होने के लिए आवश्यक है कि परिवेश व निकाय के बीच ऊष्मा स्थानांतरण हो अर्थात निकाय की दीवारें चालक होनी चाहिए। समदाबीय प्रक्रम :- ऊष्मागतिकी निकाय के भौतिकी प्रक्रम में ताप व आयतन परिवर्तित हो तथा दाब नियत हो तो इस प्रक्रम को समदाबीय प्रक्रम कहते हैं। किसी पदार्थ की अवस्था परिवर्तन के दौरान दाब नियत रहता है। जैसे – पानी का जमना। रुद्धोष्म प्रक्रम :- ऐसा प्रक्रम जिसमें ताप दाब का आयतन तीनों परिवर्तित होते हैं। मगर परिवेश तथा निकाय के बीच ऊष्मा का आदान-प्रदान नहीं होता है। रुद्धोष्म प्रक्रम कहलाता है। इस प्रक्रम के संपन्न होने के लिए निकाय पूर्णता कुचालक पदार्थ की दीवारों से बने एक गैस पात्र में गैस का प्रसार करते हैं। जिसमें गैस की आंतरिक ऊर्जा में कमी होती है। क्योंकि परिवेश से किसी प्रकार की उसमें प्रवेश नहीं करती है। और गैस का ताप कम हो जाता है। यदि गैस को पिस्टन की सहायता से संपीड़ित किया जाता है तो गैस पर कार्य किया जाता है। जिससे उसके आंतरिक उर्जा में वृद्धि होती है और ताप बढ़ जाता है। रुद्धोष्म प्रक्रम संपन्न होने के लिए आवश्यक शर्तें :-
कार्य तथा ऊर्जा :- ऊष्मा गतिकी में कार्य व ऊष्मा की धारणा महत्वपूर्ण है।
आंतरिक उर्जा :- किसी ऊष्मा गतिकी निकाय में उपस्थित अणुओं की गतिज ऊर्जा स्थितिज ऊर्जा की योग को आंतरिक उर्जा कहते हैं। जिसे U से प्रदर्शित किया जाता है। किसी ऊष्मा गतिकी निकाय की आंतरिक उर्जा तीनों चर P, V व T पर निर्भर करती है। आंतरिक उर्जा निकाय कि वह ऊर्जा जो इसके अणु की संरचना गति के कारण उत्पन्न होती है। Note :- निकाय की आंतरिक ऊर्जा = अणु कि कुल गतिज ऊर्जा + अणुओं के बीच आकर्षण बल से उत्पन्न स्थिति उर्जा आदर्श गैस के अणुओं और परमाणुओं के बीच को आकर्षण बल नहीं होता है अतः आंतरिक उर्जा शुन्य होती है। ताप बढ़ने के साथ आंतरिक उर्जा में वृद्धि होती है। आंतरिक ऊर्जा से संबंधित कुछ तथ्य :- आंतरिक ऊर्जा से संबंधित निम्न तथ्य है।
Thermodynamics Laws In Hindiऊष्मागतिकी का शुन्यांकी के नियम :- इस नियम अनुसार यदि दो ऊष्मागतिकी के निकाय किसी तीसरे ऊष्मा गतिकी निकाय के साथ साथ अलग-अलग उसमें साम्यअवस्था में हो तो वह आपस में उस्मिए साम्यअवस्था में होंगे। इसी को ऊष्मा गतिकी का शुन्यांकी नियम करते हैं। ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम :- ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के निम्नलिखित दो कथन है। ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के पहले कथन के अनुसार यांत्रिक ऊर्जा तथा ऊष्मा की तुल्यता को प्रदर्शित करता है। जब उसमें प्राप्त करने के लिए यांत्रिक ऊर्जा की जाती तब यांत्रिक ऊर्जा का एक भाग ऊष्मा की एक निश्चित मात्रा के रूप में उत्पन्न होती है। यह नियम तभी सत्य होता है जब संपूर्ण कार्य ऊष्मा में या संपूर्ण ऊष्मा कार्य में परिवर्तित होती है। प्रथम नियम के दूसरे कथन के अनुसार प्रथम नियम ऊर्जा संरक्षण पर आधारित है। यदि किसी निकाय को dQ मात्रा में ऊष्मा प्रदान की जाती है। तब ऊष्मा का कुछ भाग ताप बढ़ाने में व्यय हो जाता है। जिससे अणु की आंतरिक गतिज ऊर्जा में वृद्धि होती है। कुछ भाग अंतराआण्विक आकर्षण बलों के विरुद्ध कार्य में व्यय होता है। अर्थात किसी निकाय की दी गई ऊष्मा किए गए बाह्य कार्य तथा आंतरिक उर्जा में वृद्धि के योग के बराबर होता है। यदि एक सिलेंडर में भरी गैस को dQ ऊष्मा प्रदान की जाती है तब उसकी आंतरिक उर्जा में वृद्धि तथा ऊष्मा का एक भाग गैस को प्रसारित करने में खर्च होता है। Second Law Of Thermodynamics In Hindiऊष्मागतिकी का दूसरा नियम :- इस नियम के अनुसार निम्न कथन है।
चक्रीय प्रक्रम :- ऊष्मा गतिकी में वह प्रक्रम जिसमें निकाय विभिन्न परिवर्तनों से गुजरता हुआ पुनः अपनी प्रारंभिक अवस्था में लौट आता है। चक्रीय प्रक्रम कहलाता है। चक्रीय प्रक्रम में निकाय की आंतरिक ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। अर्थात् dU = 0 ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम से dQ = dU+PdV dQ = PdV = dW अतः चक्रीय प्रक्रम में अवशोषित संपूर्ण ऊष्मा निकाय के द्वारा किए गए कार्य के बराबर होती है। यह भी पढ़ें – संयोजकता कोश इलेक्ट्रॉन युग्म प्रतिकर्षण सिद्धांत | VSEPR Theory In Hindi | Valence Shell Electron Pair Repulsion Theory विलयन क्या है | विलयन के प्रकार | हेनरी का नियम | Viliyan Kya Hai रासायनिक अभिक्रिया किसे कहते है | Rasayanik Abhikriya Kise Kahate Hain अधिशोषण क्या है | परिभाषा | प्रकार एवं अनुप्रयोग | Adsorption In Hindi हम आशा करते है कि हमारे द्वारा लिखागया Thermodynamics In Hindi आपको पसंद आयी होगा। अगर यह लेख आपको पसंद आया है तो अपने दोस्तों और परिवार वालों के साथ शेयर करना ना भूले। इसके बारे में अगर आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो हमें कमेंट करके जरूर बताएं। ऊष्मागतिकी तंत्र क्या है?ऊष्मा परिवर्तन करने पर होने वाले रासायनिक परिवर्तन को ऊष्मागतिकी कहते हैं। तंत्र या निकाय (System) :- ऊष्मा गतिकी अध्ययन के लिए जिस वस्तु या भाग का चुनाव किया जाता है। वह तंत्र या निकाय कहलाता है। इस तंत्र पर ताप दाब या अन्य कारकों के प्रभाव का ऊष्मागतिकी अध्ययन किया जाए तो वह भाग तंत्र या निकाय कहलाता है।
ऊष्मागतिकी तंत्र कितने प्रकार के होते हैं?खुला निकाय (Open System) एक खुले निकाय में ऊर्जा एवं द्रव्य - दोनों का निकाय एवं परिवेश के मध्य विनिमय (Exchange) हो सकता है।
ऊष्मागतिकी का प्रथम नियम क्या है ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के गणितीय रूप को समझाइए?और (dU) एक यथार्थ अवकल (परफ़ेक्ट डिफ़रेन्शियल) है। इस समीकरण में Q उन्हीं एककों में नापा जाएगा जिसमें W, परंतु यदि हमने Q का एकक पहले ही निश्चित कर लिया है तो हम इस समीकरण द्वारा इन दोनों एककों का अनुपात ज्ञात कर सकते हैं।
ऊष्मागतिकी का दूसरा नियम क्या है समझाइए?यह ऊष्मागतिक निकायों में 'एण्ट्रोपी' (Entropy) नामक भौतिक राशि के अस्तित्व को इंगित करता है। ऐसे उषक इंजन का निर्माण करना संभव नहीं है जो पूरे चक्र में काम करते हुए केवल एक ही पिंड से उष्मा ग्रहण करे और काम करनेवाले निकाय में बिना परिवर्तन लाए उस संपूर्ण उष्मा को काम में बदल दे (प्लांक-केल्विन)।
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