एक Show नीलांबर परिधान हरित पट पर सुंदर है, दो मृतक-समान अशक्त विविश आँखों को मीचे; तीन जिसकी रज में लोट-लोट कर बड़े हुए हैं, चार पालन-पोषण और जन्म का कारण तू ही, पाँच हमें जीवनधार अन्न तू ही देती है, छह पाकर तुझको सभी सुखों को हमने भोगा, सात जिन मित्रों का मिलन मलिनता को है खोता, आठ निर्मल तेरा नीर अमृत के सम उत्तम है, नौ सुरभित, सुंदर, सुखद सुमन तुझ पर लिखते हैं, दस दीख रही है कहीं दूर तक शैल-श्रेणी, ग्यारह क्षमामयी, तू दयामयी है, क्षेममयी है, बारह आते ही उपकार याद हे माता! तेरा, तेरह कारण-वश जब शोक-दाह से हम दहते हैं, चौदह कोई व्यक्ति विशेष नहीं तेरा अपना है, पंद्रह जिस पृथिवी में मिले हमारे पूर्वज प्यारे, मातृभूमि कविता का आशय क्या है?मातृभूमि गुप्त जी की एक प्रसिद्ध कविता है, जिसमें अपने जन्मभूमि का गुणगान करके उसकेलिए अपने जान भी देना का आह्वान करते हैं। मातृभूमि के हरियाली केलिए नीलाकाश एक सुंदर वस्त्र की तरह शोभित है। सूरज और चाँद इसकी मुकुट है, सागर इसकी करधनी है। यहाँ बहनेवाली नदियाँ प्रेम का प्रवाह है।
मातृभूमि कविता द्वारा कवि क्या संदेश देना चाहता है?बंदी जन खग-वृंद शेष फन सिंहासन हैं! है मातृभूमि! तू सत्य ही सगुण मूर्ति सर्वेश की॥ गिरता हुआ विलोक गर्भ से हम को नीचे।
मातृभूमि कविता का मूल भाव क्या है?समीक्षा : मातृभूमि कविता में मैथिलीशरण गुप्त जी कहते हैं कि मातृभूमि के धूल से धूल भरे हीरे कहलाये | मातृभूमि के पालन पोषण से हम उभरे हैं | मातृभूमि की सहायता से हम आगे बढ़े हैं और प्रासाद, महल बनाये हैं | मातृभूमि के बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं है | मातृभूमि का तत्व हर जगह व्याप्त है।
कवि ने मातृभूमि का वर्णन कैसे किया है?➲ 'मातृभूमि' कविता में कवि ने मातृभूमि को सगुण साकार मूर्ति का रूप देते हुए वर्णन किया है। कवि के अनुसार मातृभूमि को भारत माता संबोधित करते हुए सिंहासन पर आरूढ़ एक देवी के रूप में चित्रित किया है। कवि के अनुसार मातृभूमि से केवल एक भूमि का टुकड़ा ही नहीं बल्कि साक्षात साकार देवी स्वरूपा मूर्ति है।
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