मानव मस्तिष्क के कितने भाग होते हैं - maanav mastishk ke kitane bhaag hote hain

मानव मस्तिष्क के कितने भाग होते हैं - maanav mastishk ke kitane bhaag hote hain

मानव मस्तिष्क को प्रदर्शित करता चित्र

मानव मस्तिष्क के कितने भाग होते हैं - maanav mastishk ke kitane bhaag hote hain

मानव मस्तिष्क के एम.आर.आई.(चुम्बकीय अनुनाद प्रतिबिंब) प्रतिबिंब को प्रदर्शित करता चित्र

मानव मस्तिष्क शरीर का एक आवश्यक अंग होने के साथ-साथ प्रकृति की एक उत्कृष्ट रचना भी है। देखने में यह एक जैविक रचना से अधिक नहीं प्रतीत होता। परन्तु यह हमारी इच्छाओं, संवेगों, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, चेतना, ज्ञान, अनुभव, व्यक्तित्व इत्यादि का केन्द्र भी होता है। मानव मस्तिष्क कैसे काम करता है यह एक ज्वलंत प्रश्न रूप में जीवविज्ञान, भौतिक विज्ञान, गणित और दर्शनशास्त्र में स्थान रखता है। प्रस्तुत आलेख में मस्तिष्क के विभिन्न संरचनात्मक एवं क्रियात्मक पहलुओं पर चर्चा की गई है।

मस्तिष्क-एक परिचय[संपादित करें]

मानव मस्तिष्क का अध्ययन एक व्यापक क्षेत्र है। मुख्यतः इसका अध्ययन तंत्रिका विज्ञान में किया जाता है। परन्तु मनोविज्ञान, कम्प्यूटर विज्ञान, दर्शनशास्त्र, भाषाविज्ञान, मानव विज्ञान एवं आयुर्विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे शोधों ने इसके अध्ययन को एक नई दिशा प्रदान की है। तंत्रिका तंत्र के शीर्ष पर स्थित यह अंग शरीर की सभी क्रियाओं को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित करता है। यह संरचनात्मक रूप में जटिल और क्रियात्मक रूप में जटिलतम होता है। इसकी संरचना, कार्य एवं इसके पारस्परिक संबंधो का अध्ययन मुख्यतः तंत्रिकाजैविकी मनोविज्ञान एवं कम्प्यूटर विज्ञान में किया जाता है।

तंत्रिकाजैविकी-मस्तिष्क का जैविक आधार[संपादित करें]

मानव मस्तिष्क के कितने भाग होते हैं - maanav mastishk ke kitane bhaag hote hain

एक निरूपी तंत्रिका कोशा का चित्र

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न्यूरॉन की सूक्ष्मदर्शिकी संरंचना

मानव मस्तिष्क के कितने भाग होते हैं - maanav mastishk ke kitane bhaag hote hain

मस्तिष्क के कॉर्टेक्स में प्रतिचित्र के स्तर पर शरीर का संवेदी निरूपण

संपूर्ण ब्रह्मांड में जो भी है वह द्रव्य एवं ऊर्जा का संगम है। समस्त दृश्य एवं अदृश्य इन्ही दोनो के संयोग से घटित होता है। हम और हमारा मस्तिष्क इसके अपवाद नहीं हैं। सृष्टि के मूलभूत कणों के विभिन्न अनुपात में संयुक्त होने से परमाणु और क्रमशः अणुओं का निर्माण हुआ है। मस्तिष्क एवं इसके विभिन्न भाग, सूचनाओं के आदान-प्रदान एवं भंडारण के लिए इन्हीं अणुओं पर निर्भर रहते हैं। यह विशेष अणु न्यूरोकेमिकल कहलाते हैं। मस्तिष्क एक विशेष प्रकार की कोशिकाओं से मिल कर बना होता है जिन्हें तंत्रिका कोशा (न्यूरान) कहते हैं। ये मस्तिष्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई होतीं हैं। इनकी कुल संख्या 1 खरब से भी अधिक होती है। संरचनात्मक रूप से मस्तिष्क के तीन मुख्य भाग होते हैं। अग्र मस्तिष्क (Fore Brain), मध्य मस्तिष्क (Mid Brain) एवं पश्च मस्तिष्क (Hind Brain)। प्रमस्तिष्क (Cerebram) एवं डाइएनसीफेलॉन (Diencephalon) अग्र मस्तिष्क के भाग होते हैं। मेडुला, पोन्स एवं अनुमस्तिष्क (Cerebellum) पश्च मस्तिष्क के भाग होते हैं। मध्य मस्तिष्क एवं पश्च मस्तिष्क मिल कर मस्तिष्क स्तंभ (Brain Stem) का निर्माण करते हैं। मस्तिष्क स्तंभ मुख्यतः शरीर की जैविक क्रियाओं एवं चैतन्यता (Awareness) का नियंत्रण करता है। प्रमस्तिष्क गोलार्ध (Cerebral Hemisphere) प्रमस्तिष्क के दो सममितीय भाग होते हैं और आपस में मध्य में कॉर्पस कैलोसम (Corpus Callosum) द्वारा जुड़े होते हैं। इनकी सतह का भाग प्रमस्तिष्क वल्कुट (Cerebral Cortex) कहलाता है। मस्तिष्क के इन विभिन्न भागों की क्रियात्मक समरूपता वाली कोशिकाएं तंत्रिका संजाल का निर्माण करती हैं। विभिन्न संजाल मिल कर प्रतिचित्र (Topographical Map) का निर्माण करते हैं।

मस्तिष्क में प्रतिचित्र के स्तर पर शरीर के सभी अंगो का संरचनात्मक निरूपण होता है। प्रमस्तिष्क वल्कुट का भाग समस्त संरचनात्मक निरूपण के लिए उत्तरदाई होता है। यह निरूपण प्रतिपार्श्विक (Contraleteral) अर्थात् शरीर सममिति के दाहिने अक्ष का निरूपण बाएं प्रमस्तिष्क गोलार्ध एवं बाएं अक्ष का निरूपण दाहिनी ओर होता है। चित्र में शरीर की विरूपता इसके विभिन्न भागों एवं अंगो के मस्तिष्क में निरूपित भाग को प्रदर्शित करती है। मस्तिष्क में इस निरूपण के चिकित्सकीय प्रमाण भी मिलते हैं। जब मस्तिष्क का कोई भाग चोट या किसी अन्य कारण से प्रभावित हो जाता है तो उससे संबंधित अंग या अंग तंत्र भी स्पष्टतः प्रभावित होता है। यह घटना प्रायः पक्षाघात (Paralysis) के रूप में देखने को मिलती है।

मस्तिष्क में सूचना का संवहन[संपादित करें]

तंत्रिका कोशा ही सूचना संवहन की इकाई होती है। मुख्य रूप से तंत्रिका कोशा कला के बाहर और अंदर की घटनाएं ही इसके लिए उत्तरदाई होतीं हैं। कोशा कला के अंदर और बाहर सोडियम आयन्स (Na+) और (K+) घुलनशील अवस्था में विद्यमान होते हैं। उद्दीपन की स्थिति में इन आयनों का संवहन सामान्य से विचलित हो जाता है और यह सतत् विचलन एक संवेग में परिवर्तित हो जाता है। विभिन्न उद्दीपकों की उपस्थिति में उनका समाकलन एवं योग भी होता है और यह उद्दीपन को कोड करने का कार्य करता है। यह संवेग कोशिका के एक सिरे से दूसरे सिरे पर संवहित होता है। दो तंत्रिका कोशाओं में संवेग संचरण न्यूरोकेमिकल्स के माध्यम से होता है। दो कोशाओं के सिरे आपस में साइनेप्स का निर्माण करते हैं। एक वाहक कोशिका से स्रावित न्यूरोकेमिकल दूसरी कोशा को आयनिक विचलन द्वारा उत्तेजित कर देता है। इस प्रकार संवेग का संचरण पूर्ण होता है। अब प्रश्न उठता है कि मस्तिष्क में इन सभी संचरणों के फलस्वरूप क्या होता है?

मस्तिष्क में विभिन्न स्तरों पर इन सूचनाओं का संकलन एवं परिमार्जन किया जाता है। उदाहरण के लिए हम दृश्य परिघटना को ले सकते हैं। किसी भी दृश्य का दिखाई देना उस पर पड़ रही प्रकाश की किरणों के प्रत्यावर्तन के कारण होता है। इस प्रत्यावर्तित प्रकाश की किरणें जब हमारी रेटिना पर पड़ती हैं तो उस दृश्य का एक उल्टा एवं द्विवीमीय प्रतिबिंब बनता है (क्योंकि रेटिना एक द्विवीमीय फोटोग्राफिक प्लेट की तरह कार्य करती है। परंतु जब मस्तिष्क के दृश्य क्षेत्र में रेटिना द्वारा प्राप्त संकेतो की व्याख्या होती है तो हम एक वास्तविक त्रिविमीय दृश्य का अनुभव करते हैं। ऐसा मस्तिष्क में विभिन्न स्तरों पर संयोजन, परिमार्जन एवं प्रक्रमण के कारण होता है।

मनोविज्ञान-मस्तिष्क का क्रियात्मक निरूपण[संपादित करें]

मानसिक संक्रियाएँ व्यवहार के रूप में परिलक्षित होतीं हैं और व्यवहार मन से उत्पन्न होता है। मनोविज्ञान में मानसिक संक्रियाओं और व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। मन का अध्ययन सदैव एक अबूझ पहेली रहा है। सबसे कठिनतम तो इसे परिभाषित करना ही है। सामान्यतः मन को मस्तिष्क का क्रियात्मक निरूपण मान लेते हैं। मन की तीन मुख्य क्रियाएँ होतीं हैं सोचना, अनुभव करना एवं चाहना। संज्ञानात्मक क्रियाएँ जैसे कि स्मृति, अधिगम, मेधा, ध्यान, दृष्टि, श्रवण, स्वाद, गंध, स्पर्श इत्यादि मन के विभिन्न प्रभाग होते हैं।

उद्दीपन-संसाधन-अनुक्रिया तंत्र[संपादित करें]

वातावरण एक उद्दीपक का कार्य करता है एवं हम इसे अपनी ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा ग्रहण करते हैं। ज्ञानेन्द्रियाँ जिन सूचनाओं को मस्तिष्क तक पहुँचाती है वे परिवर्तन पर आधारित होतीं हैं। उदाहरण के लिए कोई नई घटना जैसे अचानक उत्पन्न आवाज, तापमान में परिवर्तन, किसी वस्तु का अचानक दिखना इत्यादि। लेकिन इसके बीच की घटनाएं हमें प्रभावित नहीं करती। उदाहरण के लिए कमरे में रेडियो चालू होते समय हम इसकी आवाज को महसूस करते हैं। फिर हम इसकी आवाज से अनुकूलित हो जाते हैं। पुनः रेडियो बंद होते समय हमारा ध्यान उधर जाता है क्योंकि ध्वनि का अभाव हो जाता है। इस प्रकार मध्य में अनुक्रिया अभाव को ऐंद्रिक अनुकूलन कहते हैं। हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ बाहर के भौतिक और आंतरिक मनोवैज्ञानिक वातावरण को परस्पर जोड़ने का कार्य करती हैं। इन अंतरसंबधों का अध्ययन मनोभौतिकी के अंतर्गत किया जाता है। भौतिकी की क्रिया-पद्धति और विधि को अपना प्रतिरूप मानते हुए प्रारम्भ में यह निर्धारित किया गया कि भौतिक उद्दीपन की कम से कम कितनी मात्रा हमारे ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करती है। और इसे विभिन्न ज्ञानेन्द्रियों के लिए उद्दीपन की प्रभावसीमा कहा गया। यह देखा गया है कि प्रभावसीमा से कम तीव्रता का उद्दीपन ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित नहीं कर पाता। इस प्रकार हम देखते हैं कि ज्ञानेन्द्रियों द्वारा लाई गई सूचना और उसके अनुरूप एक व्यवहार प्रदर्शित करने में एक सुन्दर लयबद्धता दिखाई पड़ती है।

मस्तिष्क का संज्ञानात्मक निरूपण[संपादित करें]

संज्ञानात्मक निरूपण के लिए मस्तिष्क के विभिन्न भाग अलग-अलग और एक साथ उत्तरदाई होते हैं। उदाहरण के लिए देखने के लिए दृश्य क्षेत्र, सुनने के लिए श्रव्य क्षेत्र, गति के लिए अनुमस्तिष्क का क्षेत्र उत्तरदाई होता है। कभी-कभी किसी विशेष ध्वनि के साथ किसी दृश्य की संकल्पना भी सामने आती है। ऐसा मस्तिष्क के विभिन्न भागों के आपसी सह संबधों के पूर्ण विकसित क्रियात्मक संजाल के कारण होता है। मस्तिष्क के शोधों में विशेष रूप से एफ.एम.आर.आई. यन्त्र तुलनात्मक रूप से नया है और बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ है। यह यंत्र मस्तिष्क के क्रियात्मक एवं संरचनात्मक दोनो तरह के निरूपण के लिए उपयुक्त होता है। किसी विशेष संज्ञानात्मक कार्य के लिए (उदाहरण के लिए दृश्य परिकल्पना) मस्तिष्क के किसी एक विशेष संबंधित भाग की क्रियाशीलता बढ़ जाती है और उसके साथ ही उस भाग में ग्लूकोज एवं आक्सीजन की खपत भी बढ़ जाती है। इसके फलस्वरूप उस भाग में आक्सीहीमोग्लोबिन और कार्बाक्सीहीमोग्लोबिन का संतुलन तुलनात्मक रूप से बदल जाता है। इन दोनो अणुओं के चुंबकीय गुण अलग होते हैं। चुंबकीय अनुनाद पर आधारित यह यंत्र इस परिवर्तन के आधार पर मस्तिष्क का एक स्पष्ट एवं त्रिविमीय प्रतिबिंब निरूपित करता है जिसमे मस्तिष्क के क्रियाशील भाग स्पष्ट दिखाई पड़ते हैं।

मन-मस्तिष्क एवं स्वास्थ्य[संपादित करें]

एक पुरानी कहावत है कि एक स्वस्थ शरीर में एक स्वस्थ मन का वास होता है। वर्तमान समय में यह कहावत बिलकुल सही सिद्ध हुई है एवं इसका दूसरा पक्ष भी उतना ही सही है। हमारा शारीरिक स्वास्थ्य बहुत सीमा तक हमारी मानसिक स्थितियों पर निर्भर करता है। तनाव, स्वास्थ्य/स्वस्थ पर विपरीत प्रभाव डालते हैं और स्वस्थ मानसिक स्थिति शारीरिक स्वास्थ्य के अनुकूल होती है। मनोतंत्रिका प्रतिरक्षाविज्ञान (Psychoneuroimmunology) की समग्रतात्मक संकल्पना पूर्णतः इसी पर आधारित है। इसके अनुसार हमारे स्वास्थ्य के लिए हमारी मानसिक स्थितियां, मस्तिष्क, अन्तःस्रावी तंत्र एवं प्रतिरक्षा तंत्र सामूहिक रूप से कार्य करते हैं और ये सब आपस में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से जुड़ कर समस्थापन का कार्य करते हैं। इनकी अन्तःक्रिया हमारे स्वास्थ्य के रूप में परिलक्षित होती है। स्वास्थ्य की यह संकल्पना कोई बहुत नई नहीं है। हमारे पारंपरिक चिकित्साविज्ञान (आयुर्वेद) में शारीरिक स्वास्थ्य के लिए मानसिक शुचिता पर बल दिया गया है। योगविज्ञान में बताए गए प्राणायाम तथा आसन, मन एवं शरीर को स्वस्थ रखने के साधन कहे गए हैं। वर्तमान शोध भी इस बात की ओर संकेत करते हैं कि यौगिक आसन एवं प्राणायाम यदि सही विधि एवं नियमित रूप से किये जाएं तो उनसे बहुत लाभ मिल सकता है।

कम्प्यूटर विज्ञान-एक नई दिशा[संपादित करें]

पिछले अर्धशतक में कम्प्यूटर के क्षेत्र में हुए विकास ने इसे शोधकार्य का आवश्यक अंग बना दिया है। लेकिन मस्तिष्क के शोध में इसका योगदान थोड़ा अलग है। हमारे मस्तिष्क की तुलना कम्प्यूटर से की जाती है। यह ज्ञात है कि कम्प्यूटर के दो भाग हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर होते हैं। हार्डवेयर यन्त्रात्मक एवं दृश्य भाग होता है एवं सॉफ्टवेयर यंत्रेत्तर भाग है और इसकी क्रियाविधि का निरूपण है। ठीक उसी प्रकार जैसे मस्तिष्क एक जैविक संरचना है और मन इसका क्रियात्मक निरूपण है। कम्प्यूटर को मुख्यतः सूचना संसाधन का पर्याय माना जाता है। ऐसा देखा गया है कि हमारे संज्ञानात्मक तंत्र की क्रियाविधि बहुत हद तक गणितीय होती है। पूर्ववर्णित उद्दीपन-अनुक्रिया तंत्र की क्रियाविधि कम्प्यूटर विज्ञान से प्ररित है। मस्तिष्क के इस नये दर्शन का आरंभ १९५६ दशक में एम॰आइ॰टी॰ में हुआ था। बाद के वर्षों में रूमेलहार्ट (Rumelhart) एवं मैकक्लीलैंड (McClellend) ने इस विचारधारा का पोषण किया और मानव संज्ञान की नई कृत्रिम संयोजी नेटवर्क (Connectionist Network or Artificial Neural Network) की संकल्पना प्रस्तुत की। यह अवधारणा मस्तिष्क की सूक्ष्म शारीरिकी से प्रेरित थी। इसके अनुसार यह नेटवर्क कई छोटी इकाइयों से मिल कर बना होता है। ये इकाइयाँ जैविक न्यूरान की तरह एक दूसरे से जुड़ी होतीं हैं। इन इकाइयों के एक या अधिक स्तर हो सकते हैं। विभिन्न उद्दीपनों की उपस्थिति में उनका संकलन एवं योग भी होता है। क्रियाशीलता की स्थिति में उद्दीपन निवेशी इकाइयों (Input Units) द्वारा ग्रहण किया जाता है एवं कोड किया जाता है। वहाँ से यह सक्रियता प्रतिरूप (Activation Pattern) के रूप में नेटवर्क के अंदर के स्तरों की इकाइयों में समान्तर रूप से वितरित हो जाता है। यह इकाइयाँ स्वतंत्र रूप में एक गणना का कार्य करती हैं एवं सामूहिक रूप में सूचना संसाधन का कार्य करती हैं। अन्त में निर्गत इकाइयां (Output Units) निर्गत प्रतिरूप के रूप में व्यवहार प्रकट करती हैं। इस प्रकार हम देखते हैं कि रूमेलहार्ट द्वारा प्रदर्शित संयोजी नेटवर्क, उद्दीपन व्यवहार तंत्र की उचित व्याख्या प्रस्तुत करता है। पिछले दशकों में इस दिशा में कई अनुप्रयोगात्मक शोध हुए हैं। सेजनोवस्की एवं रोसेनबर्ग ने १९८७ में नेटटाक (NETTalk) नामक यंत्र बनाया था जोकि संयाजी नेटवर्क पर आधारित था। यह अंग्रेजी के निवेशी शब्दों को संभाषण में निरूपित कर सकता था।

कृत्रिम बुद्धि एवं इसके अनुप्रयोग[संपादित करें]

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विशेष तौर पर तंत्रिकाविज्ञान और कम्प्यूटर विज्ञान के क्षेत्र में हो रहे शोधों ने कृत्रिम बुद्धि की नई अवधारणा को जन्म दिया। कृत्रिम बुद्धि से हमारा तात्पर्य मानव द्वारा विकसित एक ऐसी रचना से है जो बुद्धि में मानव की बराबरी कर सके। यह एक गहन चिन्तन का विषय है कि क्या कम्प्यूटर मानसिक क्षमताओं में मानव की बराबरी कर सकता है। यह सत्य है कि कम्प्यूटर कुछ मामलों में मानव से ज्यादा समुन्नत है। स्मृति भंडारण क्षमता, यथार्थता एवं प्रतिक्रिया समय के मामले में यह बहुत आगे हैं। बुद्धि की परिभाषा चिन्तन, मनन एवं सृजनात्मकता को ध्यान में रख कर दी जाती है। वर्तमान में कम्प्यूटर द्वारा एक सीमा तक उपर्युक्त कार्य किए गए हैं। परन्तु यह कहना उचित नहीं होगा कि कृत्रिम बुद्धि अपनी सीमा तक विकसित है। रोबोट विज्ञान में कृत्रिम बुद्धि का सबसे अधिक अनुप्रयोग होता है। डीप-ब्ल्यू नामक एक ऐसे ही कम्प्यूटर ने गैरी कास्परोव को शतरंज में पराजित किया था। कृत्रिम बुद्धि के अन्य अनुप्रयोग चिकित्सा विज्ञान एवं खगोल शास्त्र में हैं।

मस्तिष्क[1] में व्याप्त संभावनाएं[संपादित करें]

मस्तिष्क का अध्ययन इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि क्योंकि यह प्रकृति की एकमात्र रचना है जिसमें प्रकृति को प्रभावित करने की क्षमता होती है। वास्तव में प्रकृति के साथ इसका संबंध द्विदिशात्मक होता है। अर्थात् यह अंग प्रकृति से प्रभावित होने के साथ-साथ प्रकृति को प्रभावित भी करता है। मस्तिष्क का अध्ययन अंतर्विषयक है। विभिन्न विषयों के वैज्ञानिकों ने अलग-अलग कार्य करते हुए देखा कि कहीं वे एक हीं प्रश्न का उत्तर खोज रहे हैं। उदाहरण के लिए भाषाविज्ञान में भाषा की उत्पत्ति स्थान और भाषा एवं विचार में संबंध, मनोविज्ञान में मन का भौतिक निरूपण, कम्प्यूटर विज्ञान में सूचना संसाधन की उचित व्याख्या एवं दर्शन शास्त्र में भौतिक एवं मानसिक जगत से संबंधित प्रश्न एक मुख्य प्रश्न कि “मस्तिष्क कैसे कार्य करता है” पर आधारित है। चेतना के केन्द्र के रूप में भी मस्तिष्क ने वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया है। भौतिकी का सबसे मूलभूत प्रश्न है कि चेतना के गुण कहाँ से उत्पन्न होता है। मस्तिष्क के संदर्भ में चेतना से अभिप्राय चैतन्यता या अनुभव से हो सकता है। हम किसी भी चीज का अनुभव कैसे करते हैं। इश प्रश्न का उत्तर कोई सामान्य विद्यार्थी दे सकता है कि वातावरणीय उद्दीपन के फलस्वरूप होने वाली मस्तिष्क संक्रियाएँ (जोकि वैद्युतरासायनिक परिवर्तन एवं न्यूरोकेमिकल परिवर्तन पर आधारित होतीं हैं) हमारे सारे अनुभवों के लिए उत्तरदाई हैं। बात सही भी है। परन्तु यदि हम अपने सारे अनुभवों और चेतना को आणविक संक्रिया के रूप में प्रकट करे तो भी यह प्रश्न शेष रह जाता है कि इन अचेतन एवं निर्जीव अणुओं की अन्तःक्रिया एक सजीव रूप कैसे धारण कर लेती है। एक संभावित उत्तर हो सकता है कि बहुत सारे अणुओं के विकासात्मक एवं सामूहिक गुण चेतना के रूप में परिलक्षित होते हैं। लेकिन यदि ऐसा है तो एक अकेले अणु में भी प्रारम्भिक स्तर की चेतना होनी चाहिए। अन्ततः यह प्रश्न अभी भी अनुत्तरित है। यह प्रश्न एकल विषयक न होकर विशुद्ध विज्ञान का है। अब देखना है कि भविष्य में विज्ञान इस पर कितना प्रकाश ड़ाल पाता है। क्या क्या लिखा है

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • बच्चों के लिए तंत्रिका विज्ञान सब ओके है
  • मस्तिष्क पर ऑनलाइन सामग्री
  • मानव मस्तिष्क कब परिपक्व होता है? Archived 2020-08-08 at the Wayback Machine
  1. भारत माता जय

मनुष्य मस्तिष्क के कितने भाग होते हैं?

संरचनात्मक रूप से मस्तिष्क के तीन मुख्य भाग होते हैं। अग्र मस्तिष्क (Fore Brain), मध्य मस्तिष्क (Mid Brain) एवं पश्च मस्तिष्क (Hind Brain)। प्रमस्तिष्क (Cerebram) एवं डाइएनसीफेलॉन (Diencephalon) अग्र मस्तिष्क के भाग होते हैं। मेडुला, पोन्स एवं अनुमस्तिष्क (Cerebellum) पश्च मस्तिष्क के भाग होते हैं

मस्तिष्क के कितने भाग होते हैं और उनके कार्य?

अग्र मस्तिष्क- मस्तिष्क का 80-85 भाग ज्ञान,चेतना,सोचने विचारने का कार्य लम्बा गहरा विदर प्रमस्तिष्क को 1गोलाद्र्धो में विभाजित करता हैं ... .
मध्य मस्तिष्क- चार पिण्डो में बटा भाग हाइपोथेलेमस व मध्य मस्तिष्क के मध्य स्थित ... .
3 पश्चमस्तिष्क- मस्तिष्क का दूसरा बडा भाग ऐच्छिक पेषियो को नियंत्रण करना,.

मस्तिष्क के 4 भाग क्या हैं और उनके कार्य क्या हैं?

मस्तिष्क के द्वारा शरीर के विभिन्न अंगो के कार्यों का नियंत्रण एवं नियमन होता है। अतः मस्तिष्क को शरीर का मालिक अंग कहते हैं। इसका मुख्य कार्य ज्ञान, बुद्धि, तर्कशक्ति, स्मरण, विचार निर्णय, व्यक्तित्व आदि का नियंत्रण एवं नियमन करना है। तंत्रिका विज्ञान का क्षेत्र पूरे विश्व में बहुत तेजी से विकसित हो रहा है।

मस्तिष्क का सबसे छोटा भाग कौन सा है?

अनुमस्तिष्क पश्चमस्तिष्क का एक हिस्सा है। इसे छोटा मस्तिष्क भी कहा जाता है जो मस्तिष्क के पीछे स्थित होता है।