सांप्रदायिकता
यदि हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में सांप्रदायिकता पर दृष्टिपात करें तो यह आधुनिक राजनीति के उद्भव का ही परिणाम है। हालाँकि इससे पूर्व भी भारतीय इतिहास में हमें ऐसे कुछ उदाहरण मिलते हैं जो सांप्रदायिकता की भावना को बढ़ावा देते हैं लेकिन वे सब घटनाएँ अपवाद स्वरूप ही रही हैं। उनका प्रभाव समाज एवं राजनीति पर व्यापक स्तर पर नहीं दिखता। वर्तमान संदर्भ में सांप्रदायिकता का मुद्दा न केवल भारत में अपितु विश्व स्तर पर भी चिंता का विषय बना हुआ है। Show
सांप्रदायिकता की अवधारणा:
भारतीय संदर्भ में सांप्रदायिकता का विकास
सांप्रदायिकता के कारण:वर्तमान परिदृश्य में सांप्रदायिकता की उत्पत्ति के लिये किसी एक कारण को पूर्णत: ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता बल्कि यह विभिन्न कारणों का एक मिला-जुला रूप बन गया है। सांप्रदायिकता के लिये ज़िम्मेदार कुछ महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं- राजनीतिक कारण:
आर्थिक कारण:
प्रशासनिक कारण:पुलिस एवं अन्य प्रशासनिक इकाइयों के बीच समन्वय की कमी। कभी-कभी पुलिस कर्मियों को उचित प्रशिक्षण प्राप्त न होना, पुलिस ज़्यादती इत्यादि भी सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने वाले कारकों में शामिल होते हैं। मनोवैज्ञानिक कारण:
मीडिया संबंधी कारण:
देश में सांप्रदायिकता से संबंधित कुछ प्रमुख घटनाएँ:भारत में सांप्रदायिक हिंसा की स्थिति उत्पन्न करने और उसे प्रोत्साहित करने में विभिन्न सामाजिक, राजनीतिक,आर्थिक और प्रशासनिक कारण सामूहिक रूप से ज़िम्मेदार रहे हैं। इन सामूहिक कारणों की परिणति हमें सांप्रदायिक हिंसा के रूप में समय-समय पर देखने को मिलती है। देश में सांप्रदायिक हिंसा से संबंधित कुछ घटनाएँ इस प्रकार हैं-
सांप्रदायिक का परिणाम:
समाधान:
निष्कर्ष:वर्तमान समय में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ भारत के साथ-साथ विश्व स्तर पर भी देखी जा रही हैं। धर्म, राजनीति, क्षेत्रवाद, नस्लीयता या फिर किसी भी आधार पर होने वाली सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिये ज़रूरी है कि हम सब मिलकर सामूहिक प्रयास करें और अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन ईमानदारी एवं सच्ची निष्ठा के साथ करें। यदि हम ऐसा करने में सफल हो पाते हैं, तो निश्चित रूप से न केवल देश में बल्कि विश्व स्तर पर सद्भावना की स्थिति कायम होगी क्योकि सांप्रदायिकता का मुकाबला एकता एवं सद्भाव से ही किया जा सकता है। उपनिवेशवाद के क्या प्रभाव पड़े?उपनिवेशी कारकों ने भी कुछ संरचनात्मक एवं संस्थात्मक परिवर्तन किये। भारत में औद्योगीकरण की इस प्रक्रिया में कुछ प्रमुख उद्योगों का तेजी से विकास हुआ लेकिन कुछ अन्य क्षेत्र उपेक्षित रह गये। इसी प्रकार उद्योगों की स्थापना में भी देश के कुछ प्रमुख क्षेत्रों को ज्यादा महत्व दिया गया, जबकि अन्य क्षेत्रों की उपेक्षा की गयी।
भारत में उपनिवेशवाद का क्या प्रभाव पड़ा?उपनिवेश में उपनिवेशवादी आधुनिकता की भिन्न प्रकृति को समझ सकेंगे तथा यह भी समझ सकेंगे कि प्रगति आवश्यक रूप से इसका परिणाम नहीं थी। चरण (1757-1813) एक तरह की प्रत्यक्ष लूटपाट थी, जिसमें कि अतिरिक्त भारतीय राजस्व का प्रयोग इंग्लैण्ड निर्यात किये जाने के लिए भारतीय तैयार उत्पादों को खरीदने के लिए किया जाता था।
उपनिवेशवाद कितने प्रकार के होते है?उपनिवेशवाद आबादकार उपनिवेशवाद, शोषण उपनिवेशवाद, वृक्षारोपण उपनिवेशवाद, छद्म उपनिवेशवाद और आंतरिक उपनिवेशवाद पाँच प्रकार के होते हैं। उपनिवेशवाद और शोषण उपनिवेशवाद उपनिवेशवाद के दो मुख्य रूप हैं। बसने वाले उपनिवेशवाद में धार्मिक, आर्थिक या राजनीतिक कारणों से बड़े पैमाने पर आप्रवासन शामिल है।
उपनिवेशवाद क्या है भारत में इसके कारण एवं प्रभाव की विवेचना कीजिए?उपनिवेशवाद के प्रभाव के कारण भारत ने आधुनिक विचारों को जाना। यह एक विरोधाभासी स्थिति भी थी। इस दौर में भारत ने पाश्चात्य उदारवाद एवं स्वतंत्रता को आधुनिकता के रूप में जाना वहीं दूसरी ओर इन पश्चिमी विचारों के विपरीत भारत में ब्रितानी उपनिवेशवादी शासन के अंतर्गत स्वतंत्रता एवं उदारता का अभाव था।
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