ऋग्वेद के 10 मंडल में क्या है? - rgved ke 10 mandal mein kya hai?

ऋग्वेद से ही अन्य तीन वेदों की रचना हुई है। ऋग, यजु, साम और अथर्व ये चार वेद हैं। ऋग्वेद पद्यात्मक है, यजुर्वेद गद्यमय है और सामवेद गीतात्मक है। ऋग्वेद दुनिया का प्रथम ग्रंथ और धर्मग्रंथ है। यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की लगभग 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है। ऋग्वेद की रचना सम्भवतः सप्त-सैंधव प्रदेश में हुई थी।


ऋग्वेद के मन्त्रों या ऋचाओं की रचना किसी एक ऋषि ने एक निश्चित अवधि में नहीं की, अपितु विभिन्न काल में विभिन्न ऋषियों द्वारा ये रची और संकलित की गयीं। इसमें आर्यों की राजनीतिक प्रणाली एवं इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। इसमें भौगोलिक स्थिति और देवताओं के आवाहन के मंत्रों के साथ बहुत कुछ है। ऋग्वेद की ऋचाओं में देवताओं की प्रार्थना, स्तुतियां और देवलोक में उनकी स्थिति का वर्णन है। इसमें जल चिकित्सा, वायु चिकित्सा, सौर चिकित्सा, मानस चिकित्सा और हवन द्वारा चिकित्सा का आदि की भी जानकारी मिलती है। ऋग्वेद में च्यवनऋषि को पुनः युवा करने की कथा भी मिलती है। ऋग्वेद में यातुधानों को यज्ञों में बाधा डालने वाला तथा पवित्रात्माओं को कष्ट पहुंचाने वाला कहा गया है।

ऋग्वेद की परिभाषा : ऋक अर्थात् स्थिति और ज्ञान ऋग्वेद सबसे पहला वेद है जो पद्यात्मक है। इसमें सबकुछ है। यह अपने आप में एक संपूर्ण वेद है। ऋग्वेद अर्थात् ऐसा ज्ञान, जो ऋचाओं में बद्ध हो।

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ऋग्वेद का परिचय : इसके 10 मंडल (अध्याय) में 1028 सूक्त है जिसमें 11 हजार मंत्र (10580) हैं। प्रथम और अंतिम मंडल समान रूप से बड़े हैं। उनमें सूक्तों की संख्या भी 191 है। दूसरे से सातवें मंडल तक का अंश ऋग्वेद का श्रेष्ठ भाग है। आठवें और प्रथम मंडल के प्रारम्भिक 50 सूक्तों में समानता है।

इसका नवां मंडल सोम संबंधी आठों मंडलों के सूक्तों का संग्रह है। इसमें नवीन सूक्तों की रचना नहीं है। दसवें मंडल में प्रथम मंडल की सूक्त संख्याओं को ही बनाए रखा गया है लेकिन इस मंडल सभी परिवर्तीकरण की रचनाएं हैं। दसवें मंडल में औषधि सूक्त यानी दवाओं का जिक्र मिलता है। इसमें औषधियों की संख्या 125 के लगभग बताई गई है, जो कि 107 स्थानों पर पाई जाती है। औषधि में सोम का विशेष वर्णन है। ऋग्वेद में कई ऋषियों द्वारा रचित विभिन्न छंदों में लगभग 400 स्तुतियां या ऋचाएं हैं। ये स्तुतियां अग्नि, वायु, वरुण, इन्द्र, विश्वदेव, मरुत, प्रजापति, सूर्य, उषा, पूषा, रुद्र, सविता आदि देवताओं को समर्पित हैं।

ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के रचयिता अनेक ऋषि हैं जबकि द्वितीय के गृत्समय, तृतीय के विश्वासमित्र, चतुर्थ के वामदेव, पंचम के अत्रि, षष्ठम् के भारद्वाज, सप्तम के वसिष्ठ, अष्ठम के कण्व व अंगिरा, नवम् और दशम मंडल के अनेक ऋषि हुए हैं।

ऋग्वेद में दो प्रकार के विभाग मिलते हैं- 1.अष्टक क्रम और 2.मण्डलक्रम। अष्टक क्रम में समस्त ग्रंथ आठ अष्टकों तथा प्रत्येक अष्टक आठ अध्यायों में विभाजित है। प्रत्येक अध्याय वर्गो में विभक्त है। समस्त वर्गो की संख्या 2006 है। इसी प्रकार मण्डलक्रम में समस्त ग्रन्थ 10 मण्डलों में विभाजित है। मण्डल अनुवाक, अनुवाक सूक्त तथा सूक्त मंत्र या ॠचाओं में विभाजित है। दशों मण्डलों में 85 अनुवाक, 1028 सूक्त हैं। इनके अतिरिक्त 11 बालखिल्य सूक्त हैं। ऋग्वेद के समस्य सूक्तों के ऋचाओं (मंत्रों) की संख्या 10600 है।

इस वेद की 5 प्रमुख शाखाएं हैं:- शाकल्प, वास्कल, अश्वलायन, शांखायन, मंडूकायन। वैसे इसकी 21 शाखाएं हैं।

ऋग्वेद के उपवेद:- ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद है। आयुर्वेद के कर्ता धन्वंतरि देव हैं।

ऋग्वेद के उपनिषद:- वर्तमान में ऋग्वेद के 10 उपनिषद पाए जाते हैं। संभवत: इनके नाम ये हैं- ऐतरेय, आत्मबोध, कौषीतकि, मूद्गल, निर्वाण, नादबिंदू, अक्षमाया, त्रिपुरा, बह्वरुका और सौभाग्यलक्ष्मी।

ऋग्वेद के ब्रह्मण ग्रंथ : ब्राह्मण ग्रंथों की संख्या 13 है, जिसमें ऋग्वेद के 2 ब्रह्मण ग्रंथ हैं। 1. ऐतरेयब्राह्मण-(शैशिरीयशाकलशाखा) और 2. कौषीतकि- (या शांखायन) ब्राह्मण (बाष्कल शाखा)। वेद के मंत्र विभाग को 'संहिता' भी कहते हैं। संहितापरक विवेचन को 'आरण्यक' एवं संहितापरक भाष्य को 'ब्राह्मण ग्रंथ' कहते हैं।

अरण्यक ग्रंथ : ऐतरेय और सांख्य।

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-ऋग्वेद के मंडल-

मंडल- रचियता

प्रथम- मधुुछंदा


दितीय- गृत्समद

तृतीय- विश्वामित्र (गायत्री मंत्र का वर्णन)

चतुर्थ- वामदेव ( कृषि का वर्णन)

पंचम्- अत्रि

षष्ठ- भारद्वाज

सप्तम्- वशिष्ठ (दसराग युद्ध का वर्णन) अष्ठम् -कर्ण अगींरस

नवम्-  पवमान, अंगीरा ( सोमरस का वर्णन)

दसम् - छूद्र सुक्तीय, महासूक्तीय ( वर्ण ब्यवस्था का वर्णन)

ऋग्वेद का 10 वा मंडल में क्या है?

ऋग्वेद के सूक्तों के पुरुष रचियताओं में गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, अत्रि, भारद्वाज, वशिष्ठ आदि प्रमुख हैं। सूक्तों के स्त्री रचयिताओं में लोपामुद्रा, घोषा, शची, कांक्षावृत्ति, पौलोमी आदि प्रमुख हैं। ऋग्वेद के १० वें मंडल के ९५ सूक्त में पुरुरवा, ऐल और उर्वशी का संवाद है।

ऋग्वेद के पहले मंडल में क्या है?

मंडल 1 में अग्नि के देवता भगवान अग्नि को संबोधित करने वाले 191 ऋचाएं शामिल हैं और इस भगवान का नाम ऋग्वेद का पहला शब्द है। शेष भजन मुख्य रूप से इंद्र और अग्नि के साथ-साथ भगवान वरुण, मरुत, रुद्र, मित्र, अश्विन, विष्णु, सूर्य, उसस, ऋभ, वायु, बृहस्पति, स्वर्ग और पृथ्वी और अन्य देवताओं के लिए हैं।

ऋग्वेद के तीसरे मंडल में क्या है?

Notes: गायत्री मंत्र ऋग्वेद के तीसरे मंडल में है। इस में कुल 62 सूक्त हैं जो इंद्रदेव और अग्निदेव को समर्पित हैं। इसकी रचना महर्षि विश्वामित्र ने की।

ऋग्वेद में नौवें मंडल में क्या है?

ऋग्वेद के नौवां मण्डल में सोम सम्बन्धी सूक्तों का संग्रह है। इसमें 114 सूक्त हैं, जो सोमपवमान 'सोम को शुद्ध करना' को समर्पित है जो वैदिक धर्म की पवित्र औषधि है। ऋग्वेद में 1028 सूक्त हैं, जैसे कि पुरुष सूक्त, हिरण्य-गर्भ सूक्त, आदि।