मशरूमउत्पादक किसानों के लिए अच्छी खबर है। अब वे धान के छिलके की राख से केसिंग कर मशरूम पैदा कर सकेंगे। वैज्ञानिकों ने इस पर शोध किया है और अब तक अच्छे नतीजे मिले हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि किसान छिलके की राख पर केसिंग कर मशरूम उगाएंगे तो काफी लाभ मिलेगा। खाद, दवाई आदि डालने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। धान के छिलके की राख से तापमान मेनटेन रहता है जबकि उत्पादन किसी तरह से कम नहीं होगा। कुल मिलाकर किसान कम लागत में खुंभ का उत्पादन कर बाजार में अच्छे दाम ले सकते हैं। काबिले गौर है कि प्रदेश के कुछ किसान मशरूम का बड़े स्तर पर उत्पादन करते हैं। हरियाणा से उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, राजस्थान, उड़ीसा आदि राज्यों में मशरूम की सप्लाई होती है। यदि यह तकनीक किसानों के पैमाने पर खरी उतरती है तो इससे किसानों को काफी लाभ मिल सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि किसान इसे आसानी से अपना सकते हैं और किसानों को इससे लाभ होगा। क्योंकि गोबर आदि से केसिंग करने में काफी समय खर्च होता है। प्रदेश में करीब 10 हजार टन मशरूम उत्पादन होता है। सोनीपत कुरुक्षेत्र में किसान काफी संख्या में मशरूम उगाने लगे हैं। कानपुर, दिल्ली भुवनेश्वर के अलावा उत्तराखंड में काफी मात्रा में हरियाणा से मशरूम की सप्लाई की जाती है। कई किसान अब ट्रेन या जहाज से सीधे दूसरे प्रदेशों में मशरूम सप्लाई करने लगे हैं। देश में सालाना 1.2 मिलियन टन मशरूम उत्पादन होेता है। पहले करीब एक माह तक तूड़ी कंपोस्ट में बिजाई की जाती है। जब 20 दिन हो जाएं तो जाला फैल जाता है। ऐसे में डेढ़ इंच धान के छिलके की राख की परत बनाई जाती है। पहले दो साल पुरानी गोबर की खाद की जरूरत होती थी। इस खाद में दवाई आदि मिलाई जाती थी, लेकिन अब इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। वैज्ञानिकों का कहना है कि किसान सफेद बटन मशरूम के उत्पादन में यदि धान के छिलके का इस्तेमाल करें तो काफी खर्च बच सकता है। यही नहीं धान के छिलके की राख आसानी से किसान को उपलब्ध हो सकती है। प्रदेश में करीब 12.50 लाख हेक्टेयर में धान की खेती होती है और प्रदेश में चावल मिलों में ही अधिकांश धान से चावल निकाले जाते हैं। ऐसे में राख किसानों को मिल जाती है। वैज्ञानिकों की सलाह अनुसार किसानों को ढींगरी मशरूम उगाना चाहिए। क्योंकि इसकी मेडिसन और न्यूट्रिएंट वेल्यू ज्यादा है। यह बाजार में 100 रुपए प्रति किलो तक बिकती है, जबकि अन्य मशरूम 20 से 30 रुपए किलो तक किसानों से लिया जाता है। ऐसे में किसान को इससे अधिक लाभ मिल सकता है। इससे अचार या पाउडर भी ले सकते हैं। दक्षिण भारत में इसकी काफी मांग है। हरियाणा में किसान इसका कम उत्पादन करते हैं, लेकिन इसमें किसान अधिक मुनाफा ले सकता है। ^किसान गेहूं, धान अन्य फसलों के अलावा अपने खेत में ही मशरूम की यूनिट लगा सकते हैं। अतिरिक्त आय भी मिलेगी। यदि कोई अन्य व्यक्ति भी मशरूम उगाना चाहता है तो धान के छिलके की राख पर मशरूम उगा सकता है। इससे उत्पादन में कमी नहीं रहती, किसान के खर्च में कमी आती है। -डॉ.सुरजीत सिंह, प्रिंसीपल साइंटिस्ट, पौध रोग विभाग, एचएयू, हिसार। इस तेल का उत्पादन चावल के छिलके से किया जाता है जो धान की भूसी और सफेद चावल के बीच एक तेल की परम के रूप में होती है। साल्वेंट एक्सट्रेक्टर्स एसोसिएशन :एसईए: के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता ने बैंकॉक में पेश किये गये एक परिपत्र में कहा, भारत में चावल छिलका तेल की पूरी संभावनाओं का पूर्ण दोहन नहीं किया गया है। मौजूदा समय में चावल छिलका तेल का उत्पादन करीब 9,80,000 टन प्रतिवर्ष का है तथा प्रतिवर्ष करीब 40 हजार से 50 हजार टन की दर से बढ़ रहा है। भारत दुनिया में चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है और यह भारत में लोगों का महत्वपूर्ण नियमित आहार है। देश के धान उत्पादन के आधार पर चावल छिलका के उत्पादन की संभावना करीब 98 लाखस टन की है। हालांकि भारत केवल 50 लाख टन का प्रसंस्करण करता है और शेष की खपत सीधे पशुओं के चारे के बतौर होता है। मेहता ने कहा, चावल छिलका की संभावना के आधार पर भारत में चावल छिलका तेल के उत्पादन की संभावना करीब 16.2 लाख टन प्रतिवर्ष की है। उन्होंने कहा कि दोहन नहीं किये जा रही तेल उत्पादन की संभावना 6,50,000 टन की है। भारत में करीब 4.4 करोड़ हेक्टेयर रकबे में धान का उत्पादन होता है और औसत उुपज करीब 2,400 किग्रा प्रति हेक्टेयर की है। फसल वर्ष 2016..17 :जुलाई से जून: में धन का उत्पादन 11 करोड़ टन का हुआ था। देश में पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेशस, उार प्रदेश और पंजाब प्रमुख धान उत्पादन राज्य हैं। भाषा राजेश मनोहर चावल की भूसी का तेल, चांवल के जर्म (अंकुराणु) एवं अन्दर की भूसी से निकाला जाता है। इसका धूम्र बिन्दु बहुत अधिक है (254 °C) जिसके कारण इसका प्रयोग उच्च-ताप पर भोजन बनाने के लिये किया जाता है। बहुत से एशियाई देशों में इसका प्रयोग पाचक-तेल (कुकिंग आयल) जैसे किया जाता है। चांवल की भूसी में अनेक प्रकार की वसायें (फैट) पाये जाते हैं जिसमें से ४७% मोनोसचुरेटेड, ३३% पॉलीसैचुरेटेड, तथा २०% सैचुरेटेड होते हैं। चांवल की भूसी में वसीय अम्लों की उपस्थिति निम्न सारणी में दी गयी है- चावल की भूसी के तेल में मूंगफली के तेल के समान संरचना होती है, जिसमें 38% मोनोअनसैचुरेटेड, 37% पॉलीअनसेचुरेटेड और 25% संतृप्त फैटी एसिड होते हैं। चावल की भूसी के तेल का एक घटक -oryzanol है, जो कच्चे तेल की मात्रा का लगभग 2% है। शुरू में पृथक होने पर एक एकल यौगिक माना जाता था, γ-oryzanol अब स्टेरिल और फेरुलिक एसिड के अन्य ट्राइटरपेनिल एस्टर के मिश्रण के रूप में जाना जाता है।[1] इसके अलावा टोकोफेरोल और टोकोट्रियनोल (दो प्रकार के विटामिन ई) और फाइटोस्टेरॉल भी मौजूद हैं।
कच्चे और परिष्कृत चावल की भूसी के तेल के भौतिक गुण चावल की भूसी का तेल एक खाद्य तेल है जिसका उपयोग भोजन तैयार करने के विभिन्न रूपों में किया जाता है। यह कुछ वनस्पति घी का आधार भी है। राइस ब्रान वैक्स, राइस ब्रान ऑइल और पल्पनीज एक्सट्रेक्ट से प्राप्त होता है, कॉस्मेटिक्स, कन्फेक्शनरी, शू क्रीम और पॉलिशिंग कंपाउंड्स में कारनौबा वैक्स के विकल्प के रूप में उपयोग किया जाता है। चावल की भूसी के तेल से पृथक -oryzanol चीन में एक ओवर-द-काउंटर दवा के रूप में उपलब्ध है,और अन्य देशों में आहार पूरक के रूप में उपलब्ध है। धान के छिलके से क्या बनता है?धान का छिलका या तो जानवरों का चारा बन जाता है या फिर खेती के अन्य कचरे के साथ फेंक दिया जाता है। अमेरिका में हुए एक शोध में पता चला है कि चावल के छिलके में इतने पौष्टिक तत्व होते हैं कि इसे सुपरफूड... धान का छिलका या तो जानवरों का चारा बन जाता है या फिर खेती के अन्य कचरे के साथ फेंक दिया जाता है।
चावल के छिलके में कितना प्रोटीन होता है?पोषक तत्त्व. |