मेंडल का अनुवांशिकता का प्रथम नियम क्या है? - mendal ka anuvaanshikata ka pratham niyam kya hai?

उत्तर- मेण्डलवाद (Mendelism)- मेण्डल द्वारा उद्यान मटर के पौधों पर किये गये प्रयोगों के परिणामों के आधार पर आनुवांशिकता के नियम बनाये गये जो कि मेण्डलवाद के नाम से जाने जाते हैं। मेण्डल के महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त लगभग 35 वर्ष तक उपेक्षित रहे तत्पश्चात् सन् 1900 में हॉलैण्ड के ह्यूगो डिग्रीस, जर्मनी के कार्ल कोरेन्म तथा ऑस्ट्रिया के इरिक वॉन शेरमेक नामक वैज्ञानिकों ने पृथक-पृथक प्रयोगों द्वारा मेण्डल के कार्यों की पुनर्खाज (Rediscovery) की थी।

मेंडल ने आनुवांशिकता के प्रयोग मीठी मटर पर किए। भटर में सात विपर्यासी लक्षणों को लेकर एक संवकर तथा द्विसंकर क्रॉस किए और इन क्रॉस के परिणामों के आधार पर आनुवांशिकता के नियम दिए जिन्हें मेण्डल के वंशागति के नियम कहते हैं।

एक संकर क्रॉस- एक जोड़ी विपर्यासी लक्षणों की वंशागति के अध्ययन के लिए किया गया संकरण, एक संकर क्रॉस होता है।

मेण्डल ने एक संकर क्रॉस में शुद्ध लम्बे (TT) तथा शुद्ध बौने (tt) पौधों के मध्य क्रॉस कराया। मटर में लम्बेपन का लक्षण बौनेपन पर प्रभावी होता है। लम्बे व बौने जनक पौधों के क्रॉस से F1 पीढ़ी में सभी लम्बे पौधे प्राप्त होते हैं। F1 पीढ़ी के पौधों में स्वपरागण से प्राप्त F2 पीढ़ी में लम्बे व बौने दोनों पौधे प्राप्त होते हैं। लम्बे व बौने पौधों में समलक्षणी अनुपात 3: 1 होता है।

मेंडल का अनुवांशिकता का प्रथम नियम क्या है? - mendal ka anuvaanshikata ka pratham niyam kya hai?

इन परिणामों के आधार पर मेण्डल ने निम्न दो नियम दिएः

(1) प्रभाविता का नियम (2) पृथक्करण या विसंयोजन का नियम

(1) प्रभाविता का नियम- जब शुद्ध लम्बे शुद्ध बौने पौधों में क्रॉस करवाया गया तो F1 पीढ़ी में केवल लम्बेपन का लक्षण प्रकट होता है तथा बौनेपन का लक्षण दिखाई नहीं देता है। इसी आधार पर मेण्डल ने वंशागति का प्रथम नियम "प्रभाविता का नियम" दिया।

इसके अनुसार “जब एक या एक से अधिक वैकल्पिक लक्षणों के मध्य क्रॉस कराते हैं तो जो लक्षण F1 पीढ़ी में प्रकट होता है वह प्रभावी लक्षण कहलाता है तथा जो लक्षण F1 पीढ़ी में अपना प्रभाव नहीं दिखा पाता वह अप्रभावी लक्षण कहलाता है।

F1 पीढ़ी में किसी लक्षण के लिए दोनों कारक जैसे T व t उपस्थित होते हैं लेकिन केवल प्रभावी कारक ही अपना प्रभाव दर्शाता है। अतः नियमानुसार विषमयुग्मजी अवस्था (Tt) में मात्र प्रभावी कारक ही अभिव्यक्त होगा अप्रभावी नहीं।

प्रभाविता के नियम का महत्त्व- प्रभाविता की घटना जीवों के लिए अत्यन्त लाभदायक है। मनुष्यों में पाए जाने वाले कई हानिकारक रोगों जैसे मधुमेह, वर्णान्धता, मन्दबुद्धिता के जीन अप्रभावी होते हैं और संकर जीवों में ये प्रभावी जीन द्वारा छिपा लिए जाते हैं। अतः अभिव्यक्त नहीं हो पाते इस प्रकार संकर व्यक्ति रोगी जीन के उपस्थित होने के बावजूद होने के बावजूद सामान्य होते हैं।

1. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)
2. विसंयोजन का नियम (Law of Segregation) अथवा पृथक्करण का नियम अथवा युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of Purity of Gametes)
3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम ( Law of Independent Assortment)

मेंडल का एकल संकरण प्रयोग-  जब पौधों में एक जोड़ी विपर्यासी लक्षण को ध्यान में रखकर उनके मध्य क्रॉस करवाया जाता है तो उसे एकल संकरण प्रयोग कहते है । प्रथम द द्वितीय नियम एकल संकरण क्रॉस पर आधारित है ।

उदा. शुद्ध लंबा व बौने पौधे के मध्य संकरण

मेंडल का अनुवांशिकता का प्रथम नियम क्या है? - mendal ka anuvaanshikata ka pratham niyam kya hai?

प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों के मध्य संकरण करवाने पर द्वितीय पीढ़ी प्राप्त होती है ।

मेंडल का अनुवांशिकता का प्रथम नियम क्या है? - mendal ka anuvaanshikata ka pratham niyam kya hai?

मेंडल ने जब मटर के शुद्ध लंबे (TT) व शुद्ध बौने (tt) पौधों के मध्य संकरण कराया तो प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे लंबे प्राप्त हुए । और जब मेंडल ने प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों में स्वपरागण होने दिया तो प्राप्त द्वितीय पीढ़ी में 75% पौधे लंबे व 25% पौधे बौने प्राप्त हुए । इससे उसे पता चला कि लक्षण प्रभावी व अप्रभावी होते है । प्रभावी कारक T , अप्रभावी कारक t को प्रकट नहीं होने देता ।

  1. प्रभाविता का नियम-  कारक युग्म में पाए जाते है । यदि कारक के दोनों सदस्य असमान हो तो इनमें से एक कारक दूसरे कारक पर प्रभावी हो जाता है । प्रभावी कारक अप्रभावी कारक के गुण को दबा देता है अर्थात् उसे प्रकट नहीं होने देता है और प्रभावी कारक स्वयं के गुण को प्रदर्शित करता है ।प्रभावी कारक T , अप्रभावी कारक t को प्रकट नहीं होने देता । Tt कारक युग्म  होने पर पौधा लंबा प्राप्त होता है ।
  2. विसंयोजन का नियम अथवा युग्मकों की शुद्धता का नियम अथवा पृथक्करण का नियम- युग्मक बनने के समय कारकों के जोड़े अथवा एलील के सदस्य विसंयोजित अथवा पृथक्कृत हो जाते है । और प्रत्येक युग्मक को दो में से एक कारक प्राप्त होता है , इसे ही विसंयोजन का नियम अथवा पृथक्करण का नियमकहते है ।
    प्रत्येक युग्मक में पहुँचने वाला कारक अपनी शुद्धतम अवस्था में होता है । अतः इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम भी कहते है ।
  3. मेंडल का द्विसंकरण प्रयोग-(3. में डल का स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम )
    मेंडल ने दो जोड़ी विपर्यासी लक्षणों वाले भिन्न पौधों के मध्य संकरण कराया , इसे ही द्विसंकरण प्रयोग कहते है ।
    उदा. गोल व पीले बीज(RRYY) और झुर्रीदार व हरे(rryy) बीज वाले पौधे के मध्य संकरण
    मेंडल का अनुवांशिकता का प्रथम नियम क्या है? - mendal ka anuvaanshikata ka pratham niyam kya hai?

प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों के मध्य संकरण

मेंडल का अनुवांशिकता का प्रथम नियम क्या है? - mendal ka anuvaanshikata ka pratham niyam kya hai?
मेंडल ने जब गोल व पीले बीज (RRYY) और झुर्रीदार व हरे बीज (rryy) वाले पौधों के मध्य संकरण कराया तो प्रथम पीढ़ी में सभी पौधे गोल व पीले बीज (RrYy) वाले प्राप्त हुए । जब प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों के मध्य स्वपरागण होने दिया तो प्राप्त द्वितीय पीढ़ी में चार प्रकार के संयोजन प्राप्त हुए जिसमें फीनोटाइपिक अनुपात निम्न है –

मेंडल का अनुवांशिकता का प्रथम नियम क्या है? - mendal ka anuvaanshikata ka pratham niyam kya hai?

अतः इससे निष्कर्ष निकला कि द्वितीय पीढ़ी में लक्षणों का स्वतंत्र रूप से पृथक्करण होने के कारण प्रत्येक जोड़ी के विपर्यासी लक्षण दूसरी जोड़ी के विपर्यासी लक्षणों से स्वतंत्र व्यवहार करते है । इस कारण इसे स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम भी कहते है । इससे पता चला कि विभिन्न लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते है ।

मेंडल के आनुवंशिकता का प्रथम नियम क्या है?

मेंडल का एकल संकरण प्रयोग- जब पौधों में एक जोड़ी विपर्यासी लक्षण को ध्यान में रखकर उनके मध्य क्रॉस करवाया जाता है तो उसे एकल संकरण प्रयोग कहते है । प्रथम द द्वितीय नियम एकल संकरण क्रॉस पर आधारित है । प्रथम पीढ़ी से प्राप्त पौधों के मध्य संकरण करवाने पर द्वितीय पीढ़ी प्राप्त होती है ।

मेंडल के तीनो नियम क्या है?

मेंडल के तीन नियम : ये कारक जोड़े में पाए जाते हैं और एलील कहलाते हैं। यदि वे एक ही जोड़े में होते हैं तो उन्हें समयुग्मजी कहा जाता है, वे या तो प्रमुख या पुनरावर्ती हो सकते हैं और यदि एलील एक अलग जोड़ी में होते हैं तो इसे विषमयुग्मजी कहा जाता है, यह हमेशा प्रमुख रहेगा।

मेंडल ने अनुवांशिकता के कितने नियम दिए?

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मेंडल के द्वितीय नियम को क्या कहते हैं?

पृथक्करण या विसंयोजन या युग्मकों की शुद्धता का नियम :- इसे मेंडल का द्वितीय सिद्धांत भी कहते हैं । यह एक संकर संकरण प्रयोगों के परिणामों पर आधारित है । इस नियम के अनुसार "संकर संतति विषमयुग्मजी होती है। विषमयुग्मजी युग्मविकल्पी के दोनों कारक जिनमें से एक प्रभावी एवं दूसरा अप्रभावी होता है ।