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नमकीन हो या व्रत का फलाहार, या फिर ड्राई फ्रूट्स के लड्डू, मखाना के बिना इनकी कल्पना नहीं की जा सकती. क्या आप जानते हैं कि दुनिया में सबसे ज्यादा मखाना कहां पैदा होता है? नहीं जानते तो कोई बात नहीं, हम बता देते हैं. ये जगह है उत्तर बिहार. यहां के मधुबनी, दरभंगा तथा आस-पास के अन्य जिलों में दुनिया की कुल खपत का सबसे बड़ा हिस्सा पैदा होता है. दुनिया की कुल खपत का 90 प्रतिशत मखाना भारत में पैदा होता है जिसमें से 80 प्रतिशत की भागीदारी उत्तर बिहार के इन्हीं जिलों से है.
दी लल्लनटॉप की टीम चुनाव यात्रा में पहुंची दरभंगा जिला जो मखाना उत्पादन का प्रमुख केंद्र है. यहां स्थापित है दुनिया का एकमात्र मखाना रिसर्च सेंटर. यहां मुलाकात हुई कृषि वैज्ञानिक डॉ. मनोज कुमार से. उन्होंने बताया कि 2002 में स्थापित इस रिसर्च सेंटर में लगातार मखाने की हाईब्रिड प्रजाति के साथ, कम लागत में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन तथा मखाना में पोषक तत्वों से जुड़े रिसर्च चलते हैं. इस सेंटर में किसानों और इसकी खेती से जुड़े कामगारों को ट्रेनिंग भी दी जाती है. मखाने की पहली हाईब्रिड प्रजाति स्वर्ण वैदेही की खोज इसी सेंटर में हुई है.
इस सेंटर ने मखाना की खेती को तालाबों से खेतों तक पहुंचा दिया है. डॉ मनोज कुमार कहते हैं कि खेतों में अब मखाना उगाना शुरू हो चुका है. इसमें लागत कम है और वैज्ञानिक तरीके से काम किया जाए तो साल में दो पैदावार ली जा सकती हैं.
उन्होंने रिसर्च सेंटर में खेतों में ली जा रही पैदावार को भी दिखाया. बताया कि ये काफी मुनाफे का काम है. अब वैज्ञानिक पद्धति के समावेश से मुनाफा बढ़ रहा है. नये-नये किसान इससे जुड़ रहे हैं और पहली पैदावार से ही प्रॉफिट कमा रहे हैं.
डॉ मनोज कुमार ने बताया कि मखाना जो बाजार में मिलता है, उसे उस रूप तक पहुंचने में दो चरण से गुजरना होता है. पहला मखाने का बीज तैयार करना जिस स्थानीय भाषा में गुणी कहते हैं. ये बिलकुल कमलगट्टा ही है. जबकि गुणी को एक खास कौशल के साथ रोस्टिंग करते हुए उसमें से मखाने को निकालना फाइनल प्रॉसेसिंग है. यदि कोई अपने यहां मखाने के बीज यानि गुणी पैदा करता है तो एक औसत में वह प्रति हेक्टेयर 1 लाख रुपये प्रॉफिट कमा सकता है जो लागत की तुलना में डबल कमाई होती है.
उन्होंने ये भी बताया कि यदि कोई किसान गुणी पैदा कर अपने यहां की उसे प्रॉसेस कराकर मखाना निकाले तो वह अपनी कमाई 60 गुना तक बढ़ा सकता है. क्योंकि मखाने का बाजार मूल्य साइज और क्वॉलिटी के अनुसार कई गुना बढ़ जाता है. ये 400 रुपये प्रति किलो से 800 रुपये प्रति किलो तक बिकता है.
इसकी मेन फसल मार्च-अप्रैल में लगाई जाती है और अगस्त-सितंबर में पैदावार देती है. जबकि किसान चाहे तो सितंबर से मार्च के बीच एक और पैदावार ले सकता है लेकिन इसमें पैदावार अपेक्षाकृत कम होती है.
इलेक्शन डेस्क. बिहार इलेक्शन के पांचवें फेज में 5 नंवबर को जिन सीमांचल और मिथिलांचल में वोट डाले जाने हैं, ये क्षेत्र एक खासियत के लिए दुनिया भर में जाने जाते हैं। और वह खासियत है यहां का वर्ल्ड फेमस मखाना। आपको जानकार हैरत होगी कि देश ही नहीं, बल्कि, दुनिया के 100 में से 90 देशों के लोग उत्तर-पूर्वी बिहार में पैदा होने वाले माखनों को बड़े चाव से खाते हैं। दुनिया के मखाना उत्पादन में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी 85 से 90 फीसदी है। पर, एक सच यह भी है कि यहां का मखाना उद्योग उतना आर्गनाइज नहीं है, जितना उसे होना चाहिए था। हर बार की तरह इस बार के चुनाव में भी नेताओं ने इस उद्योग के विकास सिफ वादे किए हैं। कहां-कहां होती है इनकी खेती बिहार में मखाना के उत्पादन के लिए दरभंगा, मधुबनी, सुपौल और समस्तीपुर जिले जाने जाते हैं। मधुबनी जिले में ही 25,000 से ज्यादा तालाब हैं, जहां मखाने की खेती होती है। 90 फीसदी मखाना की खेती सिर्फ बिहार में देश में लगभग 15 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में मखाने की खेती होती है, जिसमें 80 से 90 फीसदी उत्पादन अकेले बिहार में होता है। इसके उत्पादन में 70 फीसदी हिस्सा सिर्फ मिथिलांचल का है।लगभग 120,000 टन बीज मखाने का उत्पादन होता है, जिससे 40,000 टन मखाने का लावा प्राप्त होता है। देश में मखाने का कुल कारोबार 550 करोड़ रुपए का है। कई फायदे हैं मखाने खाने के: प्रति 100 ग्राम भुने मखाने में 9.7 फीसदी प्रोटीन, 75 फीसदी कार्बोहाइड्रेट, आयरन और वसा के अलावा 382 किलो कैलोरी मिलती है। इसमें दूध और अंडे के मुकाबले ज्यादा प्रोटीन पाया जाता है। अगर इसे नियमित खाया जाए तो यह काफी हेल्दी है। किसने क्या किया वादा : मोदी सरकार: बिहार इलेक्शन को देखते हुए कुछ महीने पहले केंद्रीय लघु, मध्यम और सूक्ष्म उद्योग मंत्री कलराज मिश्र ने मिथिलांचल में मखाना से संबंधित कौशल विकास केंद्र खोलने और मखाना उद्योग लगाने का एलान किया था। नीतीश कुमार: सीएम ने कहा कि बिहार में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग की काफी संभावनाएं हैं। यहां मखाना के क्षेत्र में नए-नए उद्योग लगे हैं। हमारी सरकार मखाना इंडस्ट्री को बढ़ावा देने के लिए हर संभव प्रयास करेगी। सरकार ने मखाना को बढ़ावा देने के लिए नेशनल रिसर्च सेंटर की स्थापना की है। आगे की स्लाइड्स में जानिए... मखाने की खेती कैसे होती है और इसे खाने लायक कैसे बनाया जाता है?... मखाना का दूसरा नाम क्या है?मखाना (अंग्रेज़ी: Fox Nut, वानस्पतिक नाम: यूरेल फ़रोक्स Euryale ferox) को प्रिकली लिली याने कांटे युक्त लिली कहते हैं क्योंकि इसमें पत्ती के डंठल एवं फलों तक पर छोटे-छोटे कांटे लगे होते हैं। यह कमल कुल का एक बहुवर्षीय पौधा हैं। वनस्पति शास्त्र में इसे यूरेल फ़रोक्स कहते हैं।
मखाना कहाँ पैदा होता है?उत्तर-पूर्वी बिहार को मखाने के लिए ही दुनिया भर में जाना जाता है. मखाने की सबसे ज्यादा पैदावार यहीं होती है. बिहार में 80 से 90 प्रतिशत मखाना उत्पादन होता है. मखाना के उत्पादन में 70 प्रतिशत हिस्सा मधुबनी और दरभंगा का है.
मखाना कितने रुपए किलो मिलता है?क्योंकि मखाने का बाजार मूल्य साइज और क्वॉलिटी के अनुसार कई गुना बढ़ जाता है. ये 400 रुपये प्रति किलो से 800 रुपये प्रति किलो तक बिकता है. इसकी मेन फसल मार्च-अप्रैल में लगाई जाती है और अगस्त-सितंबर में पैदावार देती है.
बिहार मखाना क्या है?क्या है मिथिला मखाना? मिथिला मखाना स्थानीय रूप से मिथिला में माखन के रूप में जाना जाता है। इसका वानस्पतिक नाम यूरीले फेरोक्स सालिस्ब है। एक्वाटिक फॉक्स नट की इस विशेष किस्म की खेती बिहार के मिथिला क्षेत्र और नेपाल के आसपास के क्षेत्रों में की जाती है।
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