आत्मविश्वास सफलता का मुख्य रहस्य है यह कथन किसका है - aatmavishvaas saphalata ka mukhy rahasy hai yah kathan kisaka hai

सफलता के

अचूक मंत्र

डॉ . रमेश पोखरियाल ' निशंक '

डायमंड बुक्स

ISBN: 978-81-288-2864-5

प्रकाशक : डायमंड पॉकेट बुक्स प्रा. लि.

X-30, ओखला इंडस्ट्रियल एरिया,

फेज-2, नई दिल्ली-110020

फोन : 011-41611861

फैक्स : 011-41611866

E-maill :

Website : www.dbp.in

संस्करण : 2010

मुद्रकः आदर्श प्रिंटर्स, शाहदरा, दिल्ली-32

SAFALTA KE ACHOOK MANTRA

By: Dr. Ramesh Pokhriyal 'Nishank'

भूमिका

ऊंची सोच , बड़ी सफलता !

अपने विषयों की अच्छी जानकारी, कार्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और भरपूर उत्साह से संपन्न होते हुए भी ऐसा देखा जाता है कि कुछ लोग अपने जीवन में वह सफलता अर्जित नहीं कर पाते हैं जो अनेक प्रकार से उनसे पीछे रह गये लोग अचानक प्राप्त कर लेते हैं। ऐसी स्थिति में व्यावसायिक योग्यता और दक्षता के बावजूद विफल लोगों के पास कुंठित होकर कुढ़ते रहने के अलावा कोई और चारा नहीं बचता। कुछ लोग ऐसी स्थितियों में अपनी विफलता के कारणों की तलाश करते हैं तो कुछ भाग्य या व्यवस्था की त्रासदी मानकर हताश हो जाते हैं।

प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि तथा देश के पूर्व प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी जी की कविता की इन दो पंक्तियों में जीवन का मर्म छिपा है:

छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता

टूटे दिल से कोई खड़ा नहीं होता

अर्थात् यदि जीवन में कुछ बड़ा करना है, औरों से अधिक सफलता प्राप्त करनी है, तो आपको अपनी सोच अधिक व्यापक रखनी होगी तथा औरों के प्रति उदारता के भाव को जीवन में उतारना होगा। दूसरों को छोटा समझने वाला तो बडा हो ही नहीं सकता, साथ ही मन में खिन्नता, आक्रोश, क्रोध, अवसाद तथा निजी दु:ख लेकर आप कभी आत्मनिर्भर हो ही नहीं सकते। सफलता एक बहुत व्यापक दृष्टिकोण है और यह उन्हीं को मिलती है, जिन्हे सभी से सहज स्नेह होता है, जो दूसरों को नीचा दिखाने में रुचि नहीं लेते और जिनके निजी सुख-दु:ख उनके लक्ष्य तक की यात्रा में महत्त्व नहीं रखते।

प्रसिद्ध विचारक नेपोलियन हिल ने सही कहा है- 'सफलता और समृद्धि का जन्म विचार से होता है। जब हम वास्तव में सफलता को पाने के लिए तैयार हो जाते हैं तब हमें वह हकीकत में दिखाई देने लगती है। एक प्रभावी विचार हमें सफलता की मंजिल तक पहुंचा सकता है। इसके बाद जब हमारे पास समृद्धि आती है तो इतनी तीव्रता से आती है और इतनी ज्यादा मात्रा में आती है कि हमें अचरज होने लगता है... इतने दिनों तक समृद्धि कहां छिपी हुई थी!'

कई लोगों पर असफलता का डर इतना हावी हो जाता है कि वे किसी भी महत्त्वपूर्ण काम में हाथ डालने से हिचकिचाते हैं, उनकी जुबान पर बस एक ही वाक्य रहता है- 'बहुत मुश्किल है, मैं नहीं कर पाऊंगा इसे।' ऐसे लोगों के मन में जिंदगी-भर इस बात का दुःख रहता है कि एक बार प्रयास करके देख लेते तो शायद बात बन जाती।

सफलता और असफलता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। जब भी कोई व्यक्ति कुछ काम करता है तो उसका इन दो पहलुओं में से किसी एक से सामना होता ही है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि सफलता एवं असफलता का पता काम पूरा होने के बाद ही चल पाता है। अगर काम शुरू करने से पहले ही असफलता का डर दिल में पाल लिया जाए तो असफल होने की पूरी-पूरी संभावना बन जाती है।

मैंने अपना जीवन एक विद्यालय के शिक्षक के रूप में आरंभ किया था। मुझे कभी भी यह चिंता नहीं थी कि मैं भविष्य में क्या बनूंगा? कैसे बनूंगा? बनूंगा भी या नहीं? मैंने केवल एक कार्य किया, वह यह कि ईश्वर ने मुझे जो भी अवसर दिया, अपनी पूरी शक्ति और बुद्धि लगाकर मैंने उसका प्रयोग किया। जिससे भी मिला, उसे उपेक्षित करने के बजाय अपना बनाने का प्रयास किया। विरोधों का सामना दृढ़ता और आत्मविश्वास से किया। समय का कभी भी दुरुपयोग नहीं किया। अपने बड़ों से जो भी सीख मिली उसे प्रसाद समझकर ग्रहण किया। आलोचकों को अपना मित्र मानकर अपनी कमियों को सुधारा।

इस पुस्तक में मैंने अब तक जो भी जीवन से सीखा है, उसे सहजता और सरलता से आपके सामने प्रस्तुत करने की चेष्टा की है। हो सकता है कि इस पुस्तक में दिये गये सफलता के मंत्रों से आपको भी लाभ हो और आप अपनी जीवनधारा को एक नयी दिशा दे सकें।

आपके विचारों और पत्रों की मैं उत्सुकता से प्रतीक्षा करूंगा।

- डॉ . रमेश पोखरियाल ' निशंक '

विषय - सूची

भूमिका-

1. सफलता की परिभाषा

2. सफलता के आधार

3. सफलता और परिश्रम

4. सफलता के लिए सुनिए

5. सकारात्मक सोच और सफलता

6. सफलता के लिए संघर्ष

7. लक्ष्यों की प्राप्ति कैसे करें

8. सफलता को टिकाऊ कैसे बनाएं

9. भाग्य को कोसना छोड़ें

10. बदलें अपनी सोच

11. करिए कुछ अलग भी

12. सीखें आलोचना प्रबंधन

13. आलोचना का सामना कैसे करें

14. आत्मानुशासन का महत्त्व

15. आत्ममुग्धता से बचें

16. आत्ममूल्यांकन से सफलता

18. प्रसन्न रहना सीखें

19. हमेशा प्रसन्न रहने के सात तरीके

20. प्रसन्नता के सूत्र

21. तनाव मुक्त रहिए

22. कार्य स्थल के तनाव से कैसे निकलें

23. कार्य संतुष्टि और सफलता

24. तनाव प्रबन्धन और सफलता

25. अनिद्रा से बचाव

26. थकान से कैसे निपटें

27. हिम्मत से बांधों समय की डोर

28. समय के साथ बदलें

29. समय प्रबन्धन

30. समय प्रबन्धन से सफलता

31. साहस का विकास करें

32. नई शुरुआत से घबराएं नहीं

33. रिश्तों को संवारें

34. औरों के लिए जीना

35. जीवन में भरें रंग

36. कृतज्ञता व्यक्त करें

37. सीख लें असफलताओं से

38. भूलने की आदत

39. विश्वास के महत्व को समझें

40. सज्जनता से सफलता

41. व्यक्तित्व से सफलता

42. कैसे करें सर्वोत्तम प्रदर्शन

43. श्रेष्ठता के सिद्धांत

44. ढूंढ़ लीजिए खुद में खूबियां

45. जरूरी हैं भविष्य दृष्टि

46. कुछ व्यक्तित्व : जिन्होंने सफलता की गाथा लिखी

अंत में

1

सफलता की परिभाषा

' दूसरे व्यक्ति आप पर जितना विश्वास करते हैं , आप

उतना ही सफल होते हैं। ' - स्वेट मार्टन

सफल कौन है? वह सामाजिक कार्यकर्ता जो गांव के बच्चों को शिक्षा देने का लक्ष्य पा लेता है या वह व्यक्ति जो लाखों-करोड़ों का बिजनेस और ऐशो-आराम की जिंदगी जी रहा हो, वह क्लर्क जो अपने लिए घर बनाकर और बच्चों की शादियां कर सारे कामों से निवृत्त हो चुका है या वह विद्यार्थी जिसने आईएएस की परीक्षा पास की है या फिर वह खिलाड़ी या बिजनेसमैन जो एक सफलता के बाद भी दूसरी सफलता के लिए बेचैन रहता है। इस प्रश्न का उत्तर आपको अलग-अलग ही मिलेगा जैसे कि कोई, कार्यकर्ता को, तो कोई बिजनेसमैन, तो कोई क्लर्क या विद्यार्थी को सफल मानेगा। किसी के लिए एक ही सफलता काफी है, तो दूसरे के लिए एक सफलता के बाद दूसरी सफलता और फिर तीसरी, चौथी....। हर व्यक्ति के लिए सफलता के मायने अलग-अलग होते हैं।

तो फिर पूर्ण सफलता क्या है? इस शब्द को मनोवैज्ञानिक, व्यवहार वैज्ञानिक, दार्शनिक, धर्म, समाज वैज्ञानिक, मानवशास्त्री, प्रेरक गरु सभी अपने-अपने तरीके से परिभाषित करते हैं। समाज विज्ञान इसे सिर्फ बोध की स्थिति बताता है। समाज वैज्ञानिकों के अनुसार सफलता एक सोच है, एक अवधारणा। जो उसे महसूस करने वाले पर निर्भर करती है। सफलता वह स्थिति है जहां व्यक्ति स्वयं को देखना चाहता है। किसी के लिए नई बढ़िया कार, विदेश में छुट्टियां मनाना, नया घर, नई नौकरी सफलता के दायरे में आती है। अगर उसके पास ये सारी चीजें नहीं होती तो वह उन्हें पाने के लिए संसाधनों और अवसरों की तलाश में जुट जाता है। कुछ लोगों को बहुत ज्यादा पैसे, कमाई, स्वतंत्रता, ऐश्वर्य जैसी चीजों की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे लोग जीवन में मिली छोटी-छोटी चीजों से सफलता. का अनुभव करते हैं। मनोवैज्ञानिक डॉ. निक एरिजा कहते हैं, " किसी चीज को पाना आंतरिक स्थिति है न कि बाहरी। यह सच है कि बाहरी चीजें आंतरिक स्थिति को प्रेरणा देती हैं , लेकिन अंततः जो सफलता अन्तर्मन में महसूस होती है , वही सबसे महत्त्वपूर्ण है। " कुछ लोग सफलता और धन को एक मान लेते हैं। अर्थशास्त्री जॉन मार्क्स रुपयों के बल पर हर ख्वाहिश पूरी कर लेने की ताकत रखने वाले को सफल मानते हैं। चाणक्य ने अर्थशास्त्र में कहा है कि सामान्य के बीच अपनी योग्यता को साबित करना ही सफलता है। वहीं दुनिया भर के साधु-महात्माओं ने उन व्यक्तियों को सफल माना है जो सांसारिक चीजों से ऊपर उठकर सोचते हैं। भारतीय विद्वानों के अनुसार सफल वही है, जिसने अपनी इच्छाओं पर काबू पा लिया है। समाज विज्ञानी इसे तुलनात्मक स्थिति मानते हैं। समाज वैज्ञानिक केविन मैक्कैली का कहना है कि सफलता एक अमूर्त विषय है। इसे मापने के लिए कोई तराजू उपलब्ध नहीं है। फिर भी लोग इसे नापते हैं। सफलता को नापने का मीटर उनकी संस्कृति व आर्थिक स्थिति होती है। इन्हीं तत्त्वों को आधार मानकर वे अपनी तुलना दूसरे व्यक्ति से करते हैं और अपनी सफलता या असफलता का निर्धारण करते हैं।

व्यवहार विज्ञानी गेरी रेयान सफलता का अर्थ समझने के लिए सबसे पहले मनुष्य की प्रकृति को समझने की बात करते हैं। उनके अनुसार हर मनुष्य के सोचने, समझने, समीक्षा व प्रतिक्रिया करने का तरीका अलग-अलग होता है। इसमें शरीर के तीनों भाग- शरीर, आत्मा व प्रवृत्ति काम करते हैं। यही उन्हें सफलता का आभास भी दिलाते हैं।

सफलता का रहस्य मनुष्य की सोच और सफलता को देखने की क्षमता में छिपा है। अमेरिकी मनोविज्ञान के पिता विलियम जेम्स कहते हैं- "हम जो सोचते हैं, उसे हासिल कर सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के अंदर भावनाओं की ऐसी अंतहीन शक्ति है, जो उसे किसी भी समस्या से लड़ने में मदद करती है। वह अपनी सारी कमजोरियों से बाहर आ सकता है। आर्थिक निर्भरता प्राप्त कर सकता है। आध्यात्मिक रूप से जाग्रत हो सकता है। हर चीज जिसका संबंध सफलता से है वह हासिल कर सकता है। यह सफलता का स्रोत हर व्यक्ति में उपलब्ध है, जिसे वे सफलता कंपास से समझाते हैं।" जेम्स के मुताबिक यह कंपास प्राकृतिक रूप से आपके अंदर उपलब्ध होता है, और हमेशा सही दिशा दिखाने का काम करता है। यह कंपास भौगोलिक दिशा दिखाने की जगह सफलता का मार्ग. बताता है। कोई भी व्यक्ति इसके जरिए यह जान सकता है कि उसके पास सफल होने के लिए कितनी क्षमता है। एक तरह से यह सफलता की आधारशिला भी तैयार करता है। सफलता का मार्ग दिखाने में इसका उपयोग सबसे अधिक तब किया जा सकता है जब आप सफलता और असफलता की धुंध में खो जाएं। यह दिमाग को विकल्प खोजने में मदद करता है। अब्राहम लिंकन ने एक बार कहा था- ' सफल लोगों का प्रतिशत तब बढ़ सकता है जब वे अपने दिमाग को उस काम के लिए तैयार कर लें। '

आस्ट्रेलिया के मनोवैज्ञानिक एलन रिचर्डसन द्वारा बास्केटबॉल खिलाड़ियों पर किया गया प्रयोग भी इस बात का समर्थन करता है, जिसमें उन्होंने खिलाडियों को तीन समूहों अ, ब, स में बांट दिया। समूह 'अ' को उन्होंने प्रतिदिन 20 मिनट तक फ्री थ्रो का अभ्यास करने का अवसर दिया। समूह 'ब' को उन्होंने अभ्यास न करने की सलाह दी और 'स' को रोज 20 मिनट तक मानसिक रूप से अभ्यास करने को कहा। शोध के अंत में पाया गया कि 'अ' समूह के खिलाड़ियों की फ्री थ्रो क्षमता में 25 प्रतिशत तक का सुधार आया। आशा के अनुरूप समूह 'ब' के लोगों में कोई सुधार नहीं था। लेकिन समूह 'स' के लोगों में 24 प्रतिशत तक का सुधार पाया गया जो 'अ' समूह के बराबर था। जबकि वे बास्केटबाल कोर्ट में गए ही नहीं। यह प्रयोग साबित करता है कि हमारा दिमाग कठिन से कठिन लक्ष्य को भी पूरा कर सकता है। बस आप हर दम तैयार रहें।

लेखक फिल कोविंगटन इस बात को और पुख्ता करते हैं। उनके अनुसार हमारे अंदर सफलता की दो अवस्थाएं होती हैं, पहली यह हमारे निर्णय पर आधारित होती है, जिसमें हम यह सोचते हैं कि सफलता हमारे लिए क्या है? और दूसरा वह बोध जिसमें हम जानते हैं कि इसके लिए हम क्या अच्छा कर सकते हैं? इसका मतलब यह हुआ कि वास्तविक सफलता का साधन आंतरिक व मानसिक स्थिति है। लेकिन तंत्रिका विज्ञान और व्यवहार विज्ञान इसे मानसिक स्थिति न कहकर भावनात्मक स्थिति कहता है। सफलता के गुर बताने वाले ज्यादातर परामर्शदाता इस बात पर जोर देते हैं कि 'भावनात्मक समझ' सफलता व जीवन में खुशियों की बेहतर भविष्यवक्ता होती है। यह तार्किक समझ से ज्यादा सटीक होती है। विज्ञान इस बात की पुष्टि करता है कि आकर्षण ही सफलता हासिल करने के लिए प्रेरित करता है, जिसकी वजह से आपको बाह्य चीजों पर बहुत अधिक निर्भर नहीं रहना पड़ता।

तंत्रिका विज्ञान और व्यवहार विज्ञान ने बहुत स्पष्ट रूप से समझाया है कि जब हम किसी चीज से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं- तब अपने दिमाग के तंत्रिका तंत्र को शारीरिक रूप से उस चीज के प्रति समर्पित होने के लिए प्रेरित कर देते हैं। इस न्यूरोबायोलॉजिकल खोज को पारलौकिक लेखक सदियों से ' आकर्षण का कानून' कहते रहे हैं। इस प्राचीन कानून को यदि आधुनिक विज्ञान की भाषा में कहें तो इसका मतलब हुआ हम उसी चीज के प्रति आकर्षित होते हैं, जिस पर हम भावनाओं को जानबूझकर केंद्रित करते हैं। ऐसा करते समय हम उस चीज पर सीधे ध्यान केंद्रित करने के लिए दिमाग के तंत्रिका तंत्र को मजबूती प्रदान करते हैं। इस तरह दिमाग सपनों को पूरा करने की मशीन बन जाता है। ऐसे कई लोग हैं जो कॉलेज या स्कूल की पढाई के दौरान बहुत मेधावी छात्र रहे। लेकिन वे जीवन में सफल नहीं कहलाए। ऐसे व्यक्ति जीवन स्तर को उठाने वाली चीजों से भावनात्मक रूप से जुड़ नहीं पाते। उनमें किसी चीज को पाने की भावनात्मक वचनबद्धता की कमी रहती है। वहीं कमजोर या सामान्य बुद्धि के छात्र बड़े पदों पर पहुंच जाते हैं, या बड़े व्यापारी बन जाते हैं। सफल और खुशहाल जीवन जीने के लिए उन्हें जोश की भावना कुछ पाने के लिए सीधे प्रेरित करती है। हम इसे कुछ इस तरह भी समझ सकते हैं कि गरीबी से दूर भागने या आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए व्यक्ति छोटे से छोटा या बड़े से बड़ा काम कर सकता है। अरस्तू के शब्दों में कहें तो आवेग से प्रेरित लोग कहीं ज्यादा साहसी, उत्साह और आशा से भरे हुए होते हैं। शुरुआत में आवेग उन्हें डरने से रोकता है, जबकि बाद में उन्हें आत्मविश्वास के साथ प्रेरित करता है।

मनोवैज्ञानिक जॉन गार्टनर इसका संबंध आनुवांशिक गुण से बताते हैं। उनका कहना हैं कि सफलता प्राप्त करने का गुण आनुवांशिक होता है। व्यक्ति में पहले से सफलता प्राप्त करने का गुण मौजूद रहता है, जो इसे माता-पिता से मिलता है। लैलॉग स्कूल ऑफ मैनेजमेंट के संस्थापक शेफस्काई इस विचार को सिरे से खारिज करते हैं। वे कहते हैं, "सफल व्यक्तियों का इतिहास इस बात का गवाह है कि सफलता वंशानुगत नहीं होती व जीन, आयु, रंग इत्यादि पर निर्भर न करके व्यक्तिगत प्रयासों पर निर्भर करती है।" अनगिनत अध्ययनों में यह बात साबित हुई है कि लोगों का उत्तराधिकार, अचानक लॉटरी या और किसी तरह से मिलने वाला पैसा कुछ सालों में खत्म हो जाता है और उन्हें अपनी शुरुआत शून्य से करनी होती है।

शेफस्काई की बात वजनदार लगती है। अब्राहम लिंकन , महात्मा गांधी और धीरूभाई अंबानी जैसी अनगिनत हस्तियां हैं, जहां इस वंशानुगत गुण का उनकी सफलता से कोई वास्ता नहीं है।

समाजविज्ञानी भी वंशानुगत सफलता की बात को नकारते हैं। इनके अनुसार सफलता व्यक्तिगत होती है, जो अपनी बुद्धि, प्रयास और संरचनात्मकता पर निर्भर करती है। छात्र से लेकर शोधकर्ता, क्लर्क से लेकर किसी कंपनी के सीईओ तक को आगे बढ़ने के लिए बुद्धि या मस्तिष्क की शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। अगर तंत्रिका तंत्र शोधकर्ताओं की बात मानें तो दिमाग मांसपेशी की तरह है, जिसकी क्षमता को जितना चाहें उतना बढाया जा सकता है। यह जितना इस्तेमाल होगा, उतना शक्तिशाली बनेगा।

कदम-कदम पर मिली सफलता जहां एक ओर लोकप्रिय बनाती है, वहीं दूसरी तत्त्व यह भी है कि यह सफल व्यक्ति के अंदर अपनी लतं भी डाल देती है। सफलता के आदी बन चुके लोगों के लिए सफलता की लत शब्द का प्रयोग करना गलत नहीं होगा। स्टील किंगलक्ष्मी निवास मित्तल कहते हैं कि 'एक के बाद दूसरी सफलता के पीछे दौड़ने का मतलब है , आप किसी अवसर को छोड़ना नहीं चाहते। मैं भी किसी अवसर को छोड़ना नहीं चाहता हूं। ' शोधकर्ता कहते हैं कि आपके अगले कदम के आगे आपकी पिछली सफलता चलती है जिसके कारण कई काम वैसे ही आसान हो जाते हैं।

असफलता का डर मनोवैज्ञानिक डर है। जो व्यक्ति को पहले ही हार मानने के लिए उकसाता है। खेल मनोविज्ञान के अनुसार, सफलता की तरह असफलता भी आंतरिक धारणा है। यह प्रत्येक व्यक्ति की मानसिक स्थिति का भाग है। आप अपने अंदर विजय भावना लेकर चलते हैं। खेल मनोवैज्ञानिक पीटर जेनसन बेनरीड ने ओलंपिक खिलाड़ियों पर किए अध्ययन में पाया कि खेल में जीत से मात्र एक पल पहले खिलाड़ी पर किए गए अध्ययन में पाया कि खेल में जीत से मात्र एक पल पहले खिलाड़ी इस बात को स्वीकार कर लेता है कि वह हारेगा या जीतेगा।

अंततः परिणाम भी उसी के अनुसार आता है। यह बात आम लोगों की जिन्दगी पर भी लागू होती है। एक छोटा-सा पल जो जीत से एक कदम दूर होता है, इस पल में जो भी निर्णय हम लेते हैं वह या तो असफलता का कलंक लगा जाता है या विजयमाला पहनाता है।

प्रसिद्ध लेखक गेरी सिम्पसन सफलता के गणित के आधार पर इस बात को प्रमाणित करते हैं। यदि आप सफलता के लिए मानसिक रूप से मात्र 95 प्रतिशत तैयार हैं यानी उस सफलता के लिए पूरी तरह से तैयार नहीं है तो यह स्थिति सफलता के प्रतिशत को शून्य कर देती है। गेरी के गणितीय सिद्धांत के अनुसार समझें तो शून्य का 95 प्रतिशत शून्य होता है।

अधिकतर लोग सफल होने से रह जाते हैं और उनका प्रयास शून्य पर आकर खत्म हो जाता है। हाथ आती है तो सिर्फ असफलता। असफलता की तरह सफलता भी एक गतिशील स्थिति है। आज अगर आप सफल हैं तो कल असफल भी हो सकते हैं। सफल व्यक्तियों ने अपनी सफलता के मूलमंत्र के रूप में एक बात ज़रूरी कही है 'सफलता पाना जितना कठिन है उतना ही कठिन उसे बनाए रखना भी है। ' इस डर से कि आप हार जाएंगे, सफलता के लिए कोशिश न करना सबसे बड़ी हार होगी।

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सफलता के आधार

' संकल्प कीजिए और उस पर पूर्ण निष्ठा से निरंतर

आचरण कीजिए , आप पायेंगे कि सब कुछ संभव है। '

- मोराबी

जागरूकता

आप और दुनिया एक हैं, यह जान लेना ही जागरूकता है। आप जो चाहते हैं वही दुनिया भी चाहती है। यह तभी सत्य हो सकता है, जब आप इसमें विश्वास करें। अगर आप जागरूकता के सही तरीकों का पालन करेंगे तो यह दुनिया भी आपकी योजनाओं को पूरा करने में मदद करेगी। भगवान हमें सपने देता है, किंतु यह आपका उत्तरदायित्व है कि आप इन्हें देखें और साकार करें। यह तय कर लें कि आपका सपना बड़ा है। यहां एक वास्तविक जिंदगी का उदाहरण दिया जा रहा है। ए और बी दोनों समुद्र में जाते हैं। एक अपने साथ एक खाली गिलास ले जाता है और दूसरा एक बाल्टी। आप समझ सकते हैं किसे क्या चाहिए?

विश्वास

विश्वास का संबंध आपके नजरिए से होता है। जैसा कि प्रसिद्ध अमरीकी उद्योगपति हेनरी फोर्ड ने कहा था कि यदि आप विश्वास कर सकते हैं तो भी आप सही हैं या विश्वास नहीं कर सकते ह तो भी आप सही हैं। यह सब आप पर निर्भर करता है।

इसे हम इस कहानी से समझ सकते हैं। एक लड़के ने एक संत को पराजित करने का मन बनाया। इसके लिए उसने एक बेवकूफी-भरी योजना बनाई। उसने सोचा कि मैं संत के पास हाथों में एक पक्षी को लेकर जाऊंगा। चूंकि संत सभी कुछ जानते हैं, इसलिए मैं उनसे पूछंगा कि जो चिड़िया मेरे हाथ में है वह जिंदा है या नहीं। यदि वे जवाब देते हैं कि जिंदा है, तो मैं उसकी गर्दन दबा दूंगा। यदि वे कहते हैं कि वह मर गई है, तो वे गलत साबित हो जाएंगे। उसने अपनी योजना के अनुसार वैसा ही किया। लेकिन संत उसकी चतुराई को समझ गए। उन्होंने कहा कि इस पक्षी की दशा वैसी ही जैसा तुम चाहोगे। ऐसा ही हमारी जिंदगी में होता है। जैसा हम चाहते हैं, वैसा ही हमारा नजरिया बनता है और हम भी वैसे ही बनते हैं।

अनिर्णय

पसंद का संबंध हमारे कर्म से है। आप कभी भी जीत नहीं सकते, यदि आप कोई शुरुआत न करें। एक बहुत ही आलसी इंसान की कहानी है। वह बिना मेहनत किए हुए धनवान बनना चाहता था। उसने भगवान से निरंतर प्रार्थना की कि कृपया मेरी लॉटरी जीतने में मदद करो। भगवान अवतरित हुए और उसकी इच्छा को पूरा करने का आश्वासन किया। वह धैर्यपूर्वक इंतजार करने लगा लेकिन उसकी इच्छा पूरी नहीं हुई। उसने भगवान से फिर प्रार्थना की और कहा कि भगवान! आपने अपना वादा पूरा नहीं किया। भगवान ने कहा कि वत्स! तुम्हें कम से कम लॉटरी के टिकट खरीदने की मेहनत तो करनी ही होगी। तभी तो मैं तुम्हारे बंपर प्राइज जीतने की व्यवस्था कर पाऊंगा।

गीता में श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं किअच्छा या बुरा निर्णय सभी सही होते हैं, किंतु अनिर्णय आत्मघाती होगा। इतिहास गवाह है कि अनिर्णय और बिना कर्म के कई महान सपने हमेशा के लिए खत्म हो गए। सफल होने के लिए जरूरी है कि आप सबसे पहले आरामदायक स्थिति से बाहर आ जाएं। घर, रिश्ते, नौकरी और आदतें सभी कुछ आरामदायक होती हैं, किंतु अंत में सभी कुछ आपको मानों आगे बढ़ने से रोकते हैं।

प्रयास

त्याग का मतलब है सभी कुछ समर्पित कर देना। एक बालक एक पत्थर को हटाने का प्रयास कर रहा था। बार-बार की कोशिशों के बाद भी वह सफल नहीं हो सका। थके-हारे बेटे को देख रहे पिता ने पछा 'क्या तुमने सारे प्रयास किए?' बेटे ने कहा- 'हाँ!' पिता ने कहा- 'मुझे लगता तो नहीं है, क्योंकि तुमने मदद के लिए मुझसे नहीं कहा' इस उदाहरण को पढ़कर आप भी सोचिए, कि आप ईश्वर से मदद मांग सकते हैं, क्योंकि उसी ने हमें बनाया हैं। फिर उससे मदद मांगने में संकोच कैसा? अपने सभी प्रयासों में आपको उसे भी अपना भागीदार बनाना चाहिए।

आनंद

संपूर्ण आनंद जरूरी है। सामान्यतया हम कर्म करते हैं, और उसके बाद यदि परिणाम उम्मीद के अनुसार नहीं मिले तो शिकायत करते हैं। जबकि यदि आप थोड़ा भी हासिल करते हैं, तो उसका रोमांच कम नहीं होता है। विद्वानों ने कहा है कि ऐसी स्थिति में हमें अगले कार्य में जुट जाना चाहिए।

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सफलता और परिश्रम

' परिश्रमी कभी दरिद्र नहीं रहता , आत्मचिंतक कभी

पापी नहीं हो सकता , मौन रहने से कभी झगड़ा नहीं

होता और सावधान व्यक्ति को भय नहीं सता सकता। '

- चाणक्य

आधुनिक उद्योगपतियों का स्वभाव यूं तो इंसानी फितरत का रंग-बिरंगा नजारा है। कोई बेहद मिलनसार है तो कोई घोर एकांतप्रिय, कोई शाहखर्च है तो कोई पक्का मक्खीचूस, कोई मनमोह लेता है तो कोई महाबोर है। मगर इन सबमें बहुत-सी बातें समान भी होती हैं, जो सफलता की ओर बढ़ने में सहायक होती हैं। जो महत्वाकांक्षा की अनिवार्य योग्यता हैं। यह जानी-मानी बातें हैं कि व्यापार को शिखर तक पहुंचाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। रोजाना बारह घंटे का दफ्तर, दिन के भोजन के समय भी कारोबारी मुलाकातें, रातों में और छुट्टी के दिन भी काम- यह उद्योगपतियों की आम दिनचर्या होती है। परिश्रम ही सफलता का पहला सूत्र है। जिसके लिए काम का नशा चढ़ना जरूरी है।

काम की धुन

विश्वविख्यात भारतीय उद्योगपति जे. आर. डी. टाटा को काम करने का नशा था। वह प्रत्येक कार्य में उत्कृष्टता हासिल करने का प्रयास करते थे और उनकी कार्यशैली में एक विशिष्ट नैतिकता होती थी, जिसने टाटाओं को उद्योग की दुनिया में ऊँचाईयों पर पहुँचाया।

कितने ही उद्योगपति कबूल करते हैं कि उन्हें काम का नशा है। अटलांटा के नौजवान उद्योगपति राबर्ट एडवर्ड टर्नर तृतीय ने एक साक्षात्कार में कहा था, 'मैं घरवालों की सारी आवश्यकताएं पूरी कर चुका हूं, फिर भी कमाए जा रहा हूं। क्यों? क्योंकि यह एक ऐसी मस्ती है, जो छोड़ते नहीं बनती।' यूनाइटेड टेक्नोलॉजीज के चेयरमैन हैरी ग्रे को भयंकर दुर्घटना के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ गया। इस पर उन्होंने फाइलें लेकर अपने सेक्रेटरी को भी वहां बुलवा लिया, और महीनों पीठ के बल लेटे-लेटे काम निपटाते रहे।

रिलायंस उद्योग समूह के संस्थापक धीरूभाई अंबानी ने बहुत थोड़ी संपदा से कार्य आरंभ किया। कम संसाधनों से अधिक उत्पादन तथा हर कार्य में गुणवत्ता को सर्वोपरि रखकर उन्होंने रिलांयस उद्योग को समृद्ध बनाया। इसी तरह मोदी उद्योग के संस्थापक राय बहादुर गूजरमल मोदी और उनके पुत्र भी आगे बढ़े। आधुनिक भारतीय उद्योगपति भी अपनी कार्यशैली से ही दुनिया में कामयाब हुए हैं।

उसकी छुट्टी न हुई जिसको सबक याद हुआ

ये उद्योगपति इस कदर कार्यनिष्ठ होते हैं कि छुट्टी-वुट्टी उनके लिए एक बेहूदगी है। अमेरिकन स्टैंडर्ड इन्कॉर्पोरेटेड के अध्यक्ष विलियम मार्वाड लंबी छुट्टियों के बजाय लंबे वीक एंड्स को पसंद करते हैं। वह कहते हैं, 'चौथा दिन बीतते-बीतते मुझे अकुलाहट होने लगती है।' अटलांटा के फूक्वा इंडस्ट्रीज के संस्थापक जॉन लुक्स फूक्वा एक बार दो सप्ताह की छुट्टी मनाने स्विट्जरलैंड गए, मगर तीन दिन बाद ही दफ्तर लौट आए। बोले, 'महल सारे एक-से होते हैं। एक देखा तो समझो, सभी देख लिए।' विलक्षण कार्यानुरक्ति के लिए उद्योगपतियों को असाधारण ऊर्जा चाहिए। बहुत से होनहार, युवा उद्यमी केवल इसलिए. सफल नहीं हुए कि उनके कस-बल जुदा किस्म के थे। जेरॉक्स के पीटर मैककोलो कहते हैं, 'जल्दी ही यह पता चल जाता है कि कौन दौड़ में पिछड़ जाएगा।' यही बात लिटन इंडस्ट्रीज के टैक्स थार्नटन ने कही है, 'दौड़ने वाले घोड़ों का पालन-पोषण दौड़ के लिए ही किया जाता है। यही बात मनुष्यों पर भी लागू होती है, क्योंकि उद्यम संस्कारों में होता है।'

प्रेरक है सत्ता

सफल उद्यमियों को कड़ी मेहनत की प्रेरणा कहाँ से मिलती है? धन की कामना आदमी को व्यवसाय की ओर उन्मुख करती है, परंतु ऊंचाइयां छूने का प्रेरक धन नहीं होता। यह प्रेरक है सत्ता की लालसा। मानसिटो कंपनी के प्रधान अधिकारी जॉन वेलर हैनली को अब तक याद है कि किशोरावस्था से ही वे दूसरों से मनचाहा काम करा लेने की फिराक में रहते थे। शुरू-शुरू में जब वे सोडा वाटर की दुकान पर काम करते थे, तब भी वे ग्राहकों से माल्टमिश्रित मिल्क शेक में अंडा डालकर पीने का आग्रह करते रहते थे। डोनाल्ड वेल्सन फ्राई अपने परिश्रम के बल पर 44 वर्ष की आयु में फोर्ड मोटर्स के ग्रुप- वाइस प्रेजीडेंट बन गए, पर उन्हें तसल्ली नहीं हुई। वे कहते थे, 'मुझे एक पूरा कारोबार खुद चलाना है।' अंततः फोर्ड को छोड़कर वे बेल एंड हाबेल के प्रधान अधिकारी बन बैठे। यह कंपनी फोर्ड के मुकाबले बित्ते-भर की थी, मगर पूरी की पूरी उनके अधीन थी।

जबर्दस्त जिज्ञासु

उद्योगपति जबर्दस्त जिज्ञासु होते हैं। होनहारों का गुण उनके करियर के प्रारंभ में ही स्पष्ट हो जाता है- वह कभी भी अपनी जगह पर नहीं बैठते। वह दूसरे विभागों में घूमता, लोगों से सवाल-जवाब करता, उन्हें परामर्श देता, तंग करता रहता है। एटी एंड टी के पूर्व प्रधान अधिकारी जॉन डिवट्स कई बार मेंटनेंस विभाग के कर्मचारियों के साथ टेलीफोन लगाने या तारों की मरम्मत में उनका हाथ बंटाते रहते। 'फायूँन' में प्रकाशित उनके एक उपाध्यक्ष का संस्मरण है: "बॉस और मैं एक कमरे के सामने से गुजरे। मैंने पूछा, जॉन साहब, पता नहीं ये सब क्या हो रहा है! इस पर वे जरा तेज आवाज में बोले, 'पर मैं जानता हूं वे क्या कर रहे हैं।'

उद्योगपतियों की कुछ और विशेषताएं भी होती हैं। मौका न चूकने के मामले में वे लाजवाब होते हैं। निहायत चौकस- एकदम घात में। निजी फायदे का कोई भी मौका उनके हाथ से नहीं निकल सकता। इस सबके अलावा, ये लोग सच्चे अर्थों में आस्थापात्र होते हैं। अपने काम में, अपने माल में, अपनी कंपनी में और निरंकुश उद्योग प्रणाली में उन्हें गहरी आस्था होती है। और क्यों न हो, इसमें उन्हें सफलता जो मिली है!

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सफलता के लिए सुनिए

' यदि आप सिर्फ बोलना जानते हैं , तो कभी सफल नहीं हो सकते। '

- विंस्टन चर्चिल

सुनना एक कला है, जिसे अपने भीतर विकसित किया जाए तो इससे जीवन में सफलता की सीढ़ियां चढ़ना आसान हो सकता है। जिस व्यक्ति में सुनने की कला या 'लिसनिंग स्किल' होती है। वह दूसरों के साथ बेहतर संवाद स्थापित करने में हमेशा सफल होता है।

सुनना एक जटिल संवाद प्रक्रिया है, जो ध्वनि तरंगों को सुन लेने मात्र से अधिक है। इस दौरान वक्ता और श्रोता की शारीरिक व मानसिक उपलब्धि, वक्ता द्वारा श्रोता तक संदेश का सही प्रतिपादन, श्रोता द्वारा संदेश को याद रखे जाने और उस पर श्रोता की प्रतिक्रिया आदि कुछ बातें अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।

शोधों से पता चला है कि एक सामान्य व्यक्ति दिन-भर में बोलने से दो गुना व लिखने या पढ़ने से पांच गुना अधिक बातें सुनता है। दिनभर के कार्य में औसतन हम 80 प्रतिशत समय संवाद में व्यतीत कर देते हैं। इसमें से भी 45 प्रतिशत समय मात्र सुनने में ही व्यतीत होता है।

अच्छे श्रोता होने के महत्त्व को जानने से पहले यह समझना जरूरी हैं कि हम दूसरों से बातें क्यों करते हैं। आइए जानते हैं मौखिक संवाद के चार मूल उद्देश्यों को -

1. अपना परिचय देने के लिए अथवा नया संबंध स्थापित करने के लिए।

2. अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए।

3. किसी को जानकारी प्रदान करने के लिए।

4. अपनी बात मनवाने के लिए।

आइए, अब देखते हैं कि अच्छे श्रोता में क्या गुण होने चाहिए।

· अच्छे श्रोता हमेशा वक्ता की बातों से अपने काम की बात ग्रहण कर लेते हैं।

· अच्छे श्रोता वक्ता की रीति या शैली की जगह उसकी बातों में निहित संदेश और उसके अर्थ पर ध्यान देते हैं. जबकि सामान्यत: लोग वक्ता के बात करने के तरीके पर ध्यान देते हैं।

· अच्छे श्रोता वक्ता की बात पूर्ण होने तक उसे सुनते हैं जबकि सामान्य व्यक्ति बीच में ही अपनी बात करने लगते हैं।

· अच्छे श्रोता अपनी पुरानी जानकारी से वक्ता के संदेश को जोड़ने का प्रयास करते हैं जबकि सामान्य व्यक्ति सिर्फ सुनते-भर हैं।

· एक अच्छा श्रोता न केवल बातें सुनता है बल्कि वक्ता के हाव-भाव और आवाज की तीव्रता पर भी ध्यान देता है।

· एक अच्छा श्रोता बात पूर्ण हो जाने के बाद उस पर विचार करता है और अपने काम की बातें याद रख लेता है।

इस तरह हमें सफल जीवन के लिए स्वयं के भीतर एक अच्छे श्रोता के गुण विकसित करने चाहिए। याद रखें, वक्ता भी एक अच्छे श्रोता से प्रभावित होता है और अपने मन में उसके प्रति सम्मान रखता है।

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सकारात्मक सोच

और सफलता

' सद्गुणियों के सान्निध्य से व्यक्ति में गुणों का विकास होता है।

दुष्टों की संगति से विनाश निश्चित है। '

- गोस्वामी तुलसीदास

सकारात्मक सोच, आपको जीवन के हर मोड़ पर कुछ-न-कुछ सकारात्मक देती है तो सकारात्मक सोच अकारण और निराधार नहीं होती, इस सोच को योजनाबद्ध रूप से विकसित किया जा सकता है। आइए देखें कि इसके लिए कौन-से तत्व आवश्यक है?

धैर्य रखें

धैर्य सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है। अगर आपमें धैर्य की भावना है, तो स्वाभाविक है कि आपके मन में कभी नकारात्मक विचार नहीं आ सकते। अक्सर हम- 'मुझे यह अवसर नहीं मिला', 'काश! मेरा बच्चा पढ़ाई में तेज होता।' 'अमुक की नौकरी चली गई, अब क्या होगा?' -ऐसी बातों के लिए हम दुख व्यक्त करते हैं। ऐसा रोना रोने से कुछ हासिल नहीं होता। अगर आप ऐसे मोड़ पर धैर्य बरतेंगे और परिस्थिति से निबटने का रास्ता खोजें, तभी उस चिंता को दूर कर सकेंगे।

आशावादी बनें

आशाएं ही सफलता की सीढ़ी तक आपको पहुँचाती हैं, निराशा सिर्फ कुंठाओं से भर देती है। 'मैं क्यों नहीं कर सकता', 'इस बार अवसर मुझे ही मिलेगा' आप ऐसी सोच से ही आगे बढ़ सकते हैं। यह न सोचें कि मेरी किस्मत ही अच्छी नहीं, सारी दुनिया को मुझसे समस्या है। आशावादी बनकर तो देखें। आपकी सारी समस्याएं खुद-ब-खुद दूर हो जाएंगी।

संतोष रखें

जिस घड़ी आप अपने भीतर संतोष का भाव पैदा कर लेंगे, उसी पल से आप सकारात्मक सोचने लगेंगे और अनावश्यक तनाव से बचेंगे। जो मिला है, जितना मिला है- उसमें संतोष बरतें। कहते हैं कि संतोष में ही परम सुख है, संतोष से बढ़कर कुछ भी नहीं। अवसाद की स्थिति से बचने के लिए संतोष एकमात्र उपचार है।

प्रेरणा की शक्ति को पहचानें

हर कोई अपने जीवन में किसी न किसी से प्रेरित होता है। ऐसे लोगों से प्रेरणा लीजिए जो जीवन को जिंदा-दिली और खुशहाली से जीना जानते हैं। हर व्यक्ति के भीतर कुछ न कुछ अच्छाईयां जरूर होती हैं। कोई व्यक्ति व्यवस्थित होता है तो कोई धैर्यवान, कोई सकारात्मक सोच रखता है तो कोई जागरूक होता है, आप उन गुणों व अच्छाइयों से प्रेरित होकर अपने भीतर भी सकारात्मक भाव पैदा करें।

लक्ष्य निर्धारित करें

अगर आपका लक्ष्य निर्धारित हो तो आपको निराशा या विफलता का मुँह देखना नहीं पड़ता। आपको क्या काम करना है, कैसा घर बनाना है? यह निर्धारित करना आवश्यक है। साथ ही उसका विकल्प भी तैयार रखना जरूरी होता है। लक्ष्य स्पष्ट हो तो उसे पाना आसान हो जाता है। अस्पष्ट लक्ष्य रखने वाले ऐसा ही सोचते हैं कि मैं इंजीनियर नहीं बना तो डॉक्टर बनूंगा वरना संगीतज्ञ बन जाऊंगा और वह भी न बना तो दुकान खोल लूंगा। इससे वे किसी भी लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते।

आदर्श बनें

अपने व्यक्तित्व को ऐसा बनाएं कि दूसरे आपको अपना आदर्श मानें। जब आप कठिन परिस्थितियों में भी अपना मानसिक संतुलन बनाए रखेंगे, हर हाल में प्रसन्न रहेंगे, दूसरों के सुख-दुःख में उनकी मदद करने को हमेशा तत्पर रहेंगे तो आप किसी आदर्श व्यक्ति से कम नहीं होंगे। सोचिए, आखिर आप अपने माता या पिता या गुरु को अपना आदर्श क्यों मानते हैं? उनमें जरूर ऐसे गुण होंगे जो हर किसी को प्रभावित करते होंगे। तो क्यों न आप भी दूसरों के लिए आदर्श बनें।

विजेता बनें

विजेता बनने के लिए आप अपना सुनिश्चित लक्ष्य सामने रखें, लेकिन अगर सफलता हासिल न हो तो निराश न हों। दोबारा दोगुने उत्साह के साथ उसके लिए जुट जाएं। विजय और पराजय जीवन में लगी ही रहती है। असफलता मिलने पर निराश होकर न बैठ जाएं। खुद को समझाएं, बार-बार कहें कि हम होंगे कामयाब एक दिन।

सहज बनें

जो लोग सहज जीवन जीते हैं, उन्हें कभी भी नकारात्मक विचार नहीं घेरते। बनावटी जीवन जीने से बेहतर होगा कि वास्तविकता में जिएं। इससे कभी भी आपको समस्याओं का सामना कम करना पड़ेगा। घर-परिवार से लेकर व्यावसायिक जीवन तक सहजता जरूरी है। असहजता न सिर्फ आपकी सफलता के मार्ग में बाधक होती है बल्कि आपके इस व्यवहार से दूसरे भी परेशान होकर किनारा कर लेते हैं।

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सफलता के लिए संघर्ष

' संघर्षों से समस्याओं का समाधान नहीं होता , परंतु व्यक्तिगत असफलता के लिए विपरीत परिस्थितियों से संघर्ष अवश्य करना चाहिए। '

- अटल बिहारी वाजपेयी

जैसे आप अपने धन का सदुपयोग करते हैं, वैसे ही समय का भी करें। क्या आप जानते हैं कि सत्तर वर्ष का जीवन कैसे बिताया जाता है? औसतन, पच्चीस वर्ष सोने में, आठ वर्ष पढ़ाई-लिखाई में, छह वर्ष आराम और बीमारी में, सात वर्ष छुट्टियों और मौज-मस्ती में, पांच वर्ष दैनिक यात्रा में, चार वर्ष खाने में और तीन वर्ष अस्थाई कामों में, यानी इन सबकी तैयारी में इसके बाद प्रभावी कार्य के लिए केवल बारह वर्ष बचते हैं।

एक अमेरिकी करोडपति चार्ल्स स्कवैब ने 1936 में अपने एक सलाहकार को 25 हजार डॉलर दिए और उससे कोई अनमोल सलाह मागी। सलाहकार ने कहा, ' अपने दिन की शरुआत उन कार्यों की सूची से कर जो आवश्यक हैं और बहुत - से मामूली कामों में से कुछ अत्यंत महत्त्वपूर्ण कामों को वरीयता दें। ' उस सलाहकार ने चार्ल्स स्कवैब को जो सूची दी उसके महत्वपूर्ण बिंदु यहां आपको ये बिंदु पंसद आते हैं? क्या आपने इन्ह अपने जीवन में अपना रखा है?

  • निर्णय न ले पाना महंगा है, बहुत ही महंगा।
  • विफलताओं से सीखिए, लेकिन उनसे व्याकुल मत होइए।
  • खाली बोरी कभी भी सीधी खड़ी नहीं हो सकती।
  • जो झिझकता है, वह हारता है।

· एक समझदार आदमी तब बोलता है। जब दूसरे अपनी बात पूर्ण कर चुके होते हैं।

· एक खुले बटुए की अपेक्षा एक खुला दिमाग ज्यादा धन-दौलत इकट्ठा करता है।

· आपको साधारण काम करते समय अधिक चौकन्ना रहने की जरूरत है।

· छोटी-छोटी नगण्य बातों से बड़े और प्रभावशाली निष्कर्ष निकालना ही जीवन की कला है।

· अगर आप एक बार में सफल न हों, तो एक बार फिर प्रयास करें, उसके बाद कुछ और कोशिशें करें।

  • कोई भी जन्म से बुद्धिमान नहीं होता, लेकिन सीखने से बुद्धिमान बन जाता है।

· केवल मशीनरी ही पुरानी नहीं हो जातीं। दिमाग को भी पुराना पड़ने। से बचाने की जरूरत है।

· अगर आप आज भी इतने कोमल हैं कि आपको स्वयं पर लज्जा होती है तो आप ईश्वर का धन्यवाद अदा कीजिए और उससे कहिए कि वह आपको ऐसा ही रखे।

· अगर आप अपने दिमाग को इन तीन बातों: काम करने, बचत करने और सीखने के लिए तैयार कर लेते हैं, तो आप इस दुनिया में उन्नति कर सकते हैं।

  • प्रभाव एक बचत खाता है, जिसे आप जितना कम इस्तेमाल करते हैं, उतना ही ज्यादा आप उसे पाते हैं।

· अपनी सफलताओं से सीखें ताकि आप उन्हें दोहरा सकें, अपनी विफलताओं से सीखें ताकि आप उन्हें दोबारा न कर सकें।

· इस बात पर विचार करते रहिए कि सर्वश्रेष्ठ भी श्रेष्ठ बन सकता है और श्रेष्ठ बन सकता है सर्वश्रेष्ठ।

  • अपने मूल सिद्धांतों की समीक्षा करते रहिए।

· सही काम करने के लिए आपको सही देखना होगा और सही ही अनुभव करना होगा।

ऐसे प्रयास करें कि असफलता असंभव हो जाए

· आने वाले कल में ही जीवन का सबसे बड़ा रोमांच है।

· मशीनों को काम करना चाहिए। इंसानों का कार्य सोचना और निर्णय लेना है।

· कनेक्शन न होने पर अधिकतर तार बेजान हो जाते हैं।

· सफलता, विफलता के विपरीत नहीं है। एक धावक चाहे आखिर में ही लक्ष्य पर क्यों न पहुंचे, अगर वह अपना रिकार्ड भी तोड़ता है तो वह सफल है।

· ज्यादातर लोग दूसरों की अपेक्षा अपने लिए अधिक सम्मान की आशा करते हैं।

  • ईर्ष्या और कुछ नहीं अपना ही दिल जलाती है।

· अगर संकेत मिल जाएं तो एक बड़ा कदम उठाने से घबराएं नहीं, क्योंकि आप एक चौड़ी खाई को दो छोटी छलांगों में पार नहीं कर सकते।

· बेकार की चीजों को भूल जाने की कोशिश कीजिए। हर चीज को याद रखने का मतलब है अपने दिमाग को एक कूड़ेदान बनाना।

  • छोटी-छोटी बातों में समय मत गंवाइए।

· जब तक आप हर रोज अपने काम से नहीं जूझते तब तक आप अपने काम को संतोषजनक ढंग से नहीं कर सकते।

जब कभी आप हताश हों , तो माथे पर हाथ धरकर बैठे नहीं , कुछ प्रयास करें।

· क्रोध, प्रतिशोध की भावना की तरह, एक ऐसा पेय है जिसे ठंडा ही लिया जाए तो बेहतर है। धीमी आवाज में थोड़ी-सी नाराजगी भी चमत्कार कर सकती है। यह काम मुश्किल तो है, पर असंभव नहीं।

  • किसी के पीछे मत चलिए, लेकिन सीखिए सबसे।

· प्रबंधन रुकावटों की वह श्रृंखला है जो बाधाओं से घिरी है। बाधाओं को कम करना सीखिए।

  • जिसके पास अच्छे मित्र हैं, उसे दर्पण की जरूरत नहीं होती।

· यदि आप पहाड़ों को हिलाना चाहते हैं तो पहले पत्थरों को हिलाना सीखिए।

• शंकाओं और सुझाओं से आपको कभी हानि नहीं होती। उनको सहजता से ग्रहण करें।

• सलाह को एक सैंडविच की तरह लें, उसकी दो स्लाइस को दो शंकाएं समझें।

• जब दूसरों को बदलना असंभव हो, तो स्वयं में परिवर्तन लाएं।

· हम समय बचाने के लिए काम जल्दी निपटा लेते हैं और बचे हुए समय का हम क्या करते हैं?.... हम उसे व्यर्थ नष्ट कर देते हैं।

  • अपने बारे में सोचने से पहले तीन मिनट लें।

• हारने वाले जो काम नहीं करना चाहते, विजेता उन्हीं कामों को करने की प्रवृत्ति रखते हैं।

• एक आदमी इस बात से दुःखी नहीं होता कि क्या होगा, बल्कि इस बात से दु:खी होता है कि क्या हो गया।

· कभी भी यह मत कहिए कि आपके पास समय नहीं है. आपके पास भी हर दिन उतने ही घंटे हैं जितने कि संसार के सभी महापुरुषों और अत्यंत सफल व्यक्तियों के पास थे।

· अगर मेरे पास एक पेड़ काटने के लिए आठ घंटे है तो मैं छह घंटे अपनी कुल्हाड़ी तेज करने में लगाऊंगा। तो आपके मन में उठी जीतने की इच्छा भी किसी काम की नहीं। अगर आपमें तैयारी करने की इच्छा नहीं है। गगनचुंबी इमारतों को बनाने में तो सिर्फ एक साल लगता है, लेकिन योजना बनाने में कई साल लग जाते हैं।

• घिसी-पिटी बातें थके-हारे लोगों के लिए हैं। हमारे जीवन का रूप वही होता है, जो हमारे विचार उसे देते हैं।

• अक्लमंद काम करने से पहले सोचता है और मूर्ख काम करने के बाद।

• हमारा हर विचार हमारा भविष्य बना रहा है।

· अच्छे के लिए बदलाव हमेशा सोच में बदलाव से शुरू होता है। आपका दिमाग जहां जाता है। शक्ति भी वहीं बहती है।

· आप क्या चाहते हैं? अगर यह स्पष्ट हैं तो उसे पाने के लिए आपमें उतनी ही ज्यादा शक्ति आ जाती है।

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लक्ष्यों की प्राप्ति कैसे करें ?

' चलना आरंभ कीजिए , लक्ष्य मिल ही जायेगा। '

- विनोबा भावे

इतिहास उन्हें ही याद रखता है जो असंभव लक्ष्य निर्धारित करते हैं और उन्हें प्राप्त करते हैं। अतः हर व्यक्ति के मन में लक्ष्य निर्धारित करने व उसे प्राप्त करने की कामना होती है। लेकिन यह देखने में आता है कि प्रायः हम अपने निर्धारित लक्ष्यों से भटक जाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए हमें क्या करना चाहिए।

लक्ष्य पहचानें

अपने जीवन अथवा किसी कार्य विशेष से आप क्या प्राप्त करना चाहते हैं, अगर एक बार आपके सामने यह बात स्पष्ट हो जाए तो आपका लक्ष्य अपने आप स्पष्ट हो जाएगा।

लक्ष्य को हमेशा याद रखें

अगर एक बार लक्ष्य निर्धारित हो जाए तो हमेशा उसे याद करते . रहें, ताकि वह आपकी कार्यसूची में उपयुक्त स्थान पाता रहे।

रूपरेखा तैयार करें

लक्ष्य तक पहुंचने के लिए किन-किन बातों की आवश्यकता होगी, इसकी एक रूपरेखा तैयार कर लें। इसके साथ ही आप अधिकाधिक जानकारी एकत्र करें, ताकि रूपरेखा में कोई खामी न हो।

योजनाबद्ध तरीके से कार्य करें

लक्ष्य प्राप्ति के लिए उठाया गया हर कदम सुनियोजित और व्यवस्थित होना चाहिए, ताकि आप अपने लक्ष्य जल्द से जल्द प्राप्त कर पाएं। इसके लिए आप एक योजना बनाएं व उसके अनुरूप कार्य करना आरंभ करें। हर काम को छोटे-बड़े हिस्सों में बांट लें तथा हर हिस्से पर स्वतंत्र रूप से एक के बाद एक काम करें। ऐसा करने से कठिन से कठिन कार्य आसान प्रतीत होगा।

कार्यों का मूल्यांकन करें

अपने प्रत्येक कार्य पर विचार करें और इस बात का मूल्यांकन करने का प्रयास करें कि इसमें आप कितने सफल हुए हैं।

खुद की सराहना करें

अपनी हर उपलब्धि पर, चाहे वह छोटी से छोटी क्यों न हो, खुद की सराहना अवश्य करें। इसके आपके अंदर आत्मविश्वास का संचार होगा और आप अगला कार्य ज्यादा बेहतर ढंग से कर पायेंगे।

इन बातों के अलावा खुद को हमेशा यह समझाते रहें कि सफलता प्राप्त करना कठिन जरूर है लेकिन असंभव नहीं। जीवन में उतार-चढ़ावं आते-जाते रहते हैं, परंतु वे हर बार कुछ न कुछ सीख देते हैं। याद रखें- ' असफलता ही सफलता की दहलीज़ है।'

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सफलता को टिकाऊ कैसे बनाएं

' सदाचारी , श्रद्धावान , परिश्रमी और ईर्ष्यारहित व्यक्ति

की सफलता स्थायी होती है तथा सदा जीवित रखती है। '

- मनुस्मृति

लोग सफल तो होना चाहते हैं, लेकिन उसके स्थायित्व को लेकर कम ही लोग मेहनत करते हैं। क्या सफलता का स्थायित्व अच्छे गुणों और मेहनत की कमाई पर निर्भर करता है? क्या गलत तरीकों से पाई सफलता बाद में पश्चाताप कराती है और फिर इंसान ठहर जाता है। सफलता को टिकाऊ बनाने का मंत्र कम ही लोगों को पता होता है क्योंकि यह प्रेरणा की कम, स्व-अनुभव की बात ज्यादा है। इसके पीछे कई कारण और तर्क भी गिनाए जाते हैं। हर व्यक्ति अपनी योग्यता और परिस्थितियों के अनुसार इन्हें अनुभव भी करता है, लेकिन फिर भी चाहकर सफल नहीं हो पाता।

1. वैज्ञानिक विश्लेषण

वैज्ञानिक अपने अध्ययन से कहते हैं कि हर सफल व्यक्ति जब सफलता का स्वाद चख लेता है, तो उसकी पहली प्रतिक्रिया खुद को भूल जाने की होती है। इसका कारण यह है कि उसे ध्यान रहता है कि वह कभी एक साधारण असफल व्यक्ति था और आगे भी वैसा ही बना रह सकता है। इसके पीछे इसकी सोच और सोच के पीछे कुछ रसायनों का भी हाथ होता है, जो उसके शरीर से स्रावित होते हैं। अमरीका की जार्ज वाशिगंटन यूनिवर्सिटी के मस्तिष्क विज्ञानी डॉ. रिचर्ड रेस्तेक का विश्लेषण है कि हर सफल और असफल व्यक्ति के शरीर में उत्तेजना का अलग-अलग ढंग होता है। यह उत्तेजना हार्मोंस और तंत्रिका तंत्र के कारण होती है। डा. रिचर्ड कहते हैं कि मस्तिष्क में स्थित हाइपोथेलेमस और किडनी के ऊपरी भाग में उपस्थित एड्रीनलिन ग्रंथि शरीर की सभी गतिविधियों के साथ-साथ सोच और विचारों को नियंत्रित करते हैं। एक सफल व्यक्ति उसकी सोच से संचालित होता है, और ठीक ऐसा ही असफल व्यक्ति के साथ होता है। सफल बनने के बाद वह सफलता को जीता है, लेकिन धीरे-धीरे सफलता का स्तर कम होता जाता है। इस स्थिति से वही व्यक्ति उबर सकता है जो नए लक्ष्य बनाता है और उसके अनुसार प्रयास करता है। इसे समझने के लिए मैं यहाँ एक उदाहरण देता हूँ।

प्राचीन भारत में बिना सुविधाओं, बिना संदर्भो और धन अभाव के बावजूद ऐसी खोजें और अविष्कार हुए जिन पर दुनिया गर्व महसूस करती है। लेकिन, आधुनिक काल में ऐसी सफलता गिने-चुने लोगों को ही मिली। आर्यभट्ट, चरक सुश्रुत, पतंजलि जैसे विद्वानों के कार्य आज भी उपयोगी हैं। इसे सफलता के वैज्ञानिक विश्लेषण से जोड़कर देखा जाए तो एक निष्कर्ष यह निकाला जा सकता है कि उन आदि विद्वानों की सोच और शरीर इस ढंग से सधा हुआ था कि वे उससे टिकाऊ सफलता पाते थे। इसके पीछे सुविधाएं नहीं मस्तिष्क की उर्वरता थी जो उन्हें महान काम करने के लिए प्रेरित करती थी। यह सब प्राकृतिक ढंग से सद्प्रयासों द्वारा होता था, लेकिन वर्तमान में ऐसा नहीं है। इसलिए सफलता के स्थायित्व का प्रतिशत भी उसी अनुपात में कम है। ऐसे में जो समाधान निकलता है वह यही है कि - मस्तिष्क की क्षमता और सफलता का प्रतिशत बढ़ाने के लिए संयमित जीवनशैली सबसे उपयुक्त है। यह हमारे प्राचीन भारतीय मनीषियों द्वारा जांचा - परखा अनुभव भी है। यदि आपको सफल बनना है या बने रहना है तो अपनी जीवनशैली को संयमित कर शरीर को साधिए, आपको टिकाऊ सफलता मिलेगी।

2. मनोवैज्ञानिक विश्लेषण

मनोवैज्ञानिक विश्लेषण सफलता को स्थायी बनाने के लिए पूरी तरह से सोच को जिम्मेदार मानता है। मशहूर मनोवैज्ञानिक और मोटिवेशनल गुरु व मशहूर किताब'साइकोलॉजी ऑफ विनिंग' के लेखक डॉ. डेनिस वेटली का अनुभव है कि सोच और प्रयासों का सामंजस्य ही किसी सफल व्यक्ति को आगे भी सफल बने रहने की गारंटी देता है।

वेटली कहते हैं कि चैंपियन जन्म से ही चैंपियन होते हैं, लेकिन वे भी अपने पूर्वाग्रहों, प्रदर्शन और प्रतिक्रियाओं से अधूरे रह जाते हैं। हारने वाले लोग भी हारने के लिए जन्म नहीं लेते। वे अपने वातावरण और, निर्णयों पर अपनी प्रतिक्रियाओं के कारण उसी रूप में स्वचालित होते हैं। मनोवैज्ञानिक विश्लेषण है कि सफलता का नियंत्रित विश्वास एक ऐसी विशेषता है, जो हर विजेता की पहचान होती है। अगर आपकी सफलता बाहरी लोगों पर निर्भर करती है तो आप स्थायी चिंता का शिकार बनेंगे। सच्चाई यह है कि आप कभी भी लंबे समय तक जीत नहीं सकते, जब तक कि आपकी सफलता का विश्वास अच्छे प्रदर्शन पर निर्भर नहीं करता। यह सच है कि प्रतिभा, सुंदरता और अन्य विशेषताएं सभी को समान रूप से नहीं मिलती लेकिन प्रयास करने की छूट सबको होती है।

वेटली की बात को समर्थन स्थायी सफलता के मनोविज्ञान को दो पीढ़ियों की तुलना करके भी दिया जा सकता है। चक्रवर्ती सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य को लें या आज के दौर के मशहूर शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान को, सफलता का स्थायित्व दूसरी पीढ़ी तक आते-आते बिखरता देखा गया। सम्राट चंद्रगुप्त के उत्तराधिकारी भी पिता की सफलता को स्थायी नहीं रख पाए और बिस्मिल्लाह ख़ान का सगा उत्तराधिकारी भी कोई बड़ा संगीतज्ञ नहीं हुआ। मनोवैज्ञानिक रूप से ऐसा शायद इसलिए है कि सफलता का विराट रूप ही उसके स्थायित्व के लिए नकारात्मक बन जाता है।

इसका अर्थ है कि इसका समाधान पीढ़ी-दर-पीढ़ी स्थायित्व परिवेश और परवरिश पर निर्भर करता है। सफल व्यक्ति के बच्चे सफल तभी बन सकते हैं, जबकि परिवार में सफलता को योग्यता और समझदारी से प्राप्त हुआ समझा जाए। सफलता पाने का संघर्ष एक-दो पीढ़ी तक चलता है। तीसरी पीढ़ी चाहे तो उसे स्थायी परंपरा बना सकती है। परिवार विशेषज्ञ भी कहते हैं कि उन परिवारों के बच्चे ज्यादा सफल होते हैं, जहां एकजुटता और रिश्तों में समर्पण का भाव होता है।

अपने ही देश में इसके कई उदाहरण राजनीति, फिल्म उद्योग और कला के क्षेत्र में सफल माता-पिता की संतानों के भी बहुत सफल होने से समझे जा सकते हैं। चाहें तो आप डॉ० हरिवंशराय बच्चन के पुत्र अमिताभ बच्चन और पौत्र अभिषेक का दृष्टांत लें अथवा अंबानियों, गोदरेजों, बिरलाओं की परंपरा देखें। यह बात अलग है कि राजनीतिज्ञों के परिजनों के आगे आने पर लोगों को आपत्ति ज़रूर होती है।

3. स्व विश्लेषण

कहा जाता है कि कामयाबी नेक इंसान की नेक कोशिशों का परिणाम होती है। नेकनीयत और ईमानदारी को सफलता की पहली सीढ़ी भी कहा जाता है। नैतिक गुण व्यक्ति को सफलता का सही पात्र और उपभोगकर्ता बनाते हैं। अच्छे नैतिक गुण मिलकर जिस चरित्र की रचना करते हैं, वह सफलता के लिए ही बना होता है। सफलता यदि नैतिक गुणों की बुनियाद पर खड़ी होती है तो उसमें स्थायित्व अपने आप आ जाता है। नैतिकता को आधार बनाते हुए किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आया है कि सफलता को केवल वे 50 फीसदी लोग ही आगे बढ़ा पाते हैं, जिनका चरित्र बेदाग होता है। निष्कर्षों में यह भी पाया गया कि दागदार लोग भी सफल होते हैं, लेकिन एक दौर के बाद उनकी सफलता की चमक खो जाती है। वे खुद को अपराधी महसूस करने लगते हैं और पश्चात्ताप से पीडित रहते हैं। महान विद्वान आचार्य चाणक्य ने भी अपने ग्रंथ अर्थशास्त्र में सफलता के लिए चारित्रिक गुणों की जरूरत बताते हुए कहा है कि 'सफलता पाना सबके हाथ में है , लेकिन उसे बनाए रखमा चरित्रवान के हाथ में ही है। ठीक वैसे ही जैसे घोर को मिला खजाना उसे चोर ही बनाए रखता है जबकि ईमानदार आदमी को मिला खजाना उसे धनवान बना देता है।

इस तथ्य को इस उदाहरण से समझे - रामेश्वरम जैसे छोटे से कस्बे के एक अत्यंत निर्धन परिवार के बेटे का महान वैज्ञानिक और देश का राष्ट्रपति बनना चारित्रिक गुणों की बेहतरीन मिसाल है। डा. .पी. जे. अब्दुल कलाम के संदर्भ में कहा जा सकता है कि नैतिक गुण ही इंसान को श्रेष्ठ बना सकते हैं। नैतिक गुणों को ताक पर रखकर सफलता पाने वालों की तो कोई कमी नहीं है, लेकिन वे क्षणिक पुंज होते हैं, जबकि चरित्रवान होते हैं, चमकते सूरज।

इसका अर्थ है कि ज्यादातर लोग सफलता के लिए संघर्ष के रास्ते में चरित्र को अनुपयोगी मानते हैं, लेकिन यह अकाट्य सत्य है कि इंसानी चरित्र ही उसकी सफलता की पहचान है। यदि आपका चरित्र अच्छा है तो आपको मेहनत करने में कोई शर्म नहीं आएगी। इसका मतलब यह भी है कि आपको योग्य बनने से कोई नहीं रोक सकता, और जब आप योग्य बन गए, तो सफलता पाना और उसे बनाए रखना कोई मुश्किल काम नहीं।

4. आर्थिक विश्लेषण

बीसवीं सदी के मशहूर ब्रिटिश लेखक और चिंतक जार्ज बनाई शॉ ने अपनी किताब 'द ईटेशनल थॉट' में एक जगह लिखा है, ' निश्चित रूप से दुनिया में पैसा सबसे महत्वपूर्ण है और हर सफल व्यक्ति की आवाज से बोलता है , लेकिन इसमें संदेह है कि यह आवाज कभी बूढ़ी न हो। ' इसी तरह गोस्वामी तुलसीदास ने भी साधक को साधन और साध्य से ऊपर बताते हुए कहा है कि, सफलता साधक की साधना में होती है , सापन में नहीं। हालांकि इससे भी इनकार नहीं कि सफलता की सोच के रास्ते में पहला कांटा आर्थिक संकट का चुभता है, लेकिन यदि लक्ष्य निश्चित हो और कर्ता को अपने ऊपर भरोसा हो तो अर्थ संकट का समाधान हो जाता है। दुनिया में ऐसे सैकड़ों उदाहरणों से किताबें भरी पड़ी हैं जो बताती हैं कि सफलता के दरवाजे की कुंजी धनवान के नहीं, जुझारू इंसान के हाथ पहले लगती है। सफलता की सीढ़ियां धन के ढेर पर जाकर खत्म होती है, ऐसा प्रचारित जरूर किया जाता है, लेकिन यह सच्चाई सफल व्यक्ति ही जानता है कि उसके लिए धन महत्त्वपूर्ण है या सफलता का स्थायित्व। राजा से रंक बनने का समय कम होता जा रहा है, और हम ऐसे दौर में जी रहे हैं, जहाँ वाकई सफलता के मायने ज्ञान, योग्यता, क्षमता और आगे बढ़ने की इच्छाशक्ति है।

आर्थिक विश्लेषण का सटीक उदाहरण है 'यूरी शारापोवा'- यूरी शारापोवा को आज.रूस ही नहीं पूरी दुनिया जानती है। वजह है उनकी बेटी और नंबर वन महिला टेनिस खिलाड़ी मारिया शारापोवा। आज से एक दशक पहले यूरी एक खाली जेब, असफल इंसान और एक होनहार बेटी के पिता के अलावा कुछ नहीं था। बेटी को टेनिस जैसे महंगे खेल का प्रशिक्षण दिलाने के लिए उसे अपना फर्नीचर बेचना पड़ा और 400 डॉलर उधार भी लेने पड़े। लेकिन, आज कुछ ही. सालों में शारापोवा परिवार के पास वह सब-कुछ है, जिसे देखकर ईर्ष्या हो सकती है। यही नहीं, मारिया का खेल जम रहा है। उसका संघर्ष उसे स्थायी सफलता और ऐसा मुकाम दिला रहा है, जहां कई पैसे वाले नहीं पहुंच पाए।

कई भारतीय खिलाड़ियों के परिवारों ने भी अपनी संतानों को इसी प्रकार हर प्रकार का कष्ट सहकर आगे बढ़ने में सहायता दी। आज उन परिवारों को उनकी संतानों के कारण ख्याति मिली है।

इसका मतलब है कि पैसा सफलता के रास्ते की जरूरत है, लेकिन इसे सबसे बड़ी जरूरत मानना एक भ्रम है। लोग कहते हैं, पैसा हो तो सफलता मिलना क्या मुश्किल है, लेकिन सफलता को टिकाए रखने के लिए पैसे की नहीं, समझदारी की जरूरत होती है। दुनिया में अब तक सफल हुए अधिकांश महान लोग अमीर नहीं थे लेकिन लगभग सभी ने संघर्ष से सफलता पाई थी, और त्याग किया था। सच्चाई भी है कि दुनिया धन की माया से ज्यादा त्याग के तप को पूजती है। पैसा जरूरी है लेकिन इसका अभिमान आपकी सफलता के पहिए को जाम कर सकता है। सहज बनें और सफलता के संघर्ष को न भूलें तो आपकी सफलता स्थायी रह सकती है।

5. सामाजिक - व्यावहारिक विश्लेषण

दुनिया में सदियों से कई भ्रांतियां फैली हुई है कि फलां नस्ल के लोग ही तरक्की करना जानते हैं। कामयाबी फलां इलाके और फलां चमड़ी वाले लोगों की ही बांदी है। दुनिया के महानगरों और मंझोले शहरों को छोड़ दें, तो आम तौर पर कस्बाई मानसिकता का यही मूल तत्त्व है कि छोटी जगह का आदमी सफल हो ही नहीं सकता। और, यदि वह सफल हो भी गया तो ज्यादा दिन रह नहीं पाएगा। इस सोच के ठीक उलट विचार देते हुए मशहर समाजशास्त्री एच.जी. वेल्स कहते हैं कि, समाज को सफल नहीं, काबिल लोगों की जरूरत ज्यादा है, क्योंकि हर सफल व्यक्ति सबसे पहले अपने संघर्ष का हर्जाना वसूलता है। यदि वेल्स के नजरिए से देखें, तो सफलता का छोटा और काबिलियत का बड़ा मूल्य समझ आता है। विश्वविख्यात मोटिवेशनल गुरु डेल कारनेगी भी इससे सहमत हैं, और विश्लेषण करते हुए कहते हैं कि आपने किसी लक्ष्य को सफल बनकर पाया है, तो मैं गारंटी नहीं दे सकता कि आप उसके लायक हैं या नहीं, लेकिन यदि सुयोग्य बनकर पाया है, तो मुझे कहने में कोई संकोच नहीं कि आप विजेता है। सामाजिक तथा व्यावहारिक दोनों ही दृष्टि से सफलता का स्थायित्व व्यक्ति विशेष के गुणों पर निर्भर करता है कि वह सफलता पाने और उसे स्थायी बनाने के लिए कितना समय देते हैं।

जैसे कि तीस साल पहले दावी बलसारा नागुपर में बीमा निगम के कर्मचारी थे। उनकी तनख्वाह थी 600 रूपए महीना। वे बीमा अधिकारी के रूप में सफल नहीं हुए तो स्कॉलरशिप पर साइकोलॉजी पढ़ने अमेरिका चले गए। इसके बाद भी वे असफल हुए तो उन्होंने टीवी कार्यक्रमों में भाग्य आजमाया। यहां भी असफल हुए तो मिनरल वाटर बेचना शुरू किया। आज वे 63 देशों में करीब 7 अरब डॉलर का विशाल व्यापार साम्राज्य संचालित कर रहे हैं।

दादी बलसारा के उदाहरण से समझा जा सकता है कि साधारण से विशेष बनने का गुर सिखाने वाले और आजमाने वालों में यही फर्क होता है कि एक सिर्फ बोलता है, और दूसरा उसे व्यवहार बनाता है, फिर उसके बाद सफलता बोलती है। समाज और लोग हमेशा उन्हें डराते हैं, जिन्हें अपने ऊपर भरोसा नहीं होता, या जो कोई कोशिश करने से पहले अपनी कम, और दूसरों की ज्यादा सुनते हैं। यदि इस आदत को व्यावहारिक प्रयासों से बदल लिया जाए, तो सफलता का स्थायी विजेता बनने से आपको कोई नहीं रोक सकता।

9

भाग्य को कोसना छोड़ें

" किया हुआ कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाता , जैसे कर्म किये जायेंगे वैसा ही फल प्राप्त होगा। '

- महर्षि वेद व्यास

मेरा तो भाग्य ही खराब है- ये शब्द अमूमन आपने सुने होंगे या कभी न कभी कहे भी होंगे, क्योंकि अक्सर जब हम कोई कार्य करना चाहते हैं तो अचानक कोई घटना या संकट हमें यह कहने पर मजबूर कर देता हैं- मेरा तो भाग्य ही खराब है। तब हम परिस्थितियों को कोसने और दुःख मनाने में इतने तल्लीन हो जाते हैं कि उस पल मिली अच्छी यादों या खुशियों के बारे में सोचना भी भूल जाते हैं।

आइए, इस बात को एक उदाहरण से समझते हैं। रवि को सोमवार की सुबह टूर पर पूरे एक सप्ताह के लिए बाहर जाना था। उसने अपनी सारी तैयारी (टिकट वगैरह) पहले से ही कर रखी थी, ताकि आखिरी समय पर भागदौड़ से बचा जा सके। इसलिए उसने रविवार रात को ही अगले दिन सुबह एयरपोर्ट जाने के लिए अपने शहर में उपलब्ध टैक्सी सेवा से सोमवार सुबह बात बजे की टैक्सी बुक करवाई और अलसुबह उठकर टैक्सी की हेल्पलाइन पर फोन कर टैक्सी की उपलब्धता सुनिश्चित कर ली।

अब देखिए कहानी में किस प्रकार उलटफेर होता है। सुबह सात बजे टैक्सी के कॉल सेंटर से फोन आता है कि वे टैक्सी उपलब्ध नहीं करवा सकते। बस हो गई भागा-दौड़ी शुरु, क्योंकि एयरपोर्ट पर रिपोर्टिंग समय पर पहुंचना जरूरी था, नहीं तो फ्लाइट छूटने का डर था। खैर, घर से टू व्हीलर निकाल उस पर अटैची तथा लैपटॉप बैग लाद एवं पीछे धर्मपत्नी को बैठा, भागा ऑटो रिक्शा स्टैंड की ओर और ऑटो पकड़ गंतव्य की ओर रवाना हुआ। पर जनाब अभी यह उधेड़बुन खत्म कहां हुई। एयरपोर्ट से कुछ दूर पहले ट्रैफिक जाम था। ऑटो छोड़ रवि ने सामान उठाकर पैदल ही दौड़ लगाई और आखिरकार अपनी फ्लाइट पकड़ ही ली।

अभी कहानी यहां खत्म नहीं हुई। फ्लाइट अपने निश्चित समय पर रायपुर पहुंच गई और वहां से. रवि को तिल्दा तक रेल से जाना था। अतः रायपुर एयरपोर्ट से रेलवे स्टेशन के लिए टैक्सी कर ली, जो कि बेहद आराम से निश्चित समय पर रेलवे स्टेशन तक पहुंच ही जाती, परंतु बीच में शायद किसी मंत्री का काफिला आ गया और चारों ओर से ट्रैफिक रोक दिया गया। ट्रेन छूटने का भय और रास्ते में पड़ते ट्रैफिक सिग्नल्स ने रवि के दिल की धड़कन को बढ़ा दिया, क्योंकि ट्रेन छूटने का मतलब था पूरे सप्ताह के प्लान का बिगड़ना।

खैर, सारी मुसीबतों से लड़ते-भिड़ते ट्रेन मिल गई, क्योंकि वह 10 मिनट की देरी से चल रही थी। ट्रेन में सामान रखते हुए माथे का पसीना पोंछते हुए लंबी-सी सांस खींचकर रवि ने कहा- थैक्स गॉड, आई एम लकी! चौंक गए न , क्योंकि रवि को तो कहना चाहिए था कि मेरा तो भाग्य ही खराब है। परंतु रवि का उन घटनाओं को देखने का नजरिया सकारात्मक था, क्योंकि इतनी विषम परिस्थितियों के होते हुए भी यदि आप. सफलता प्राप्त कर लेते हैं, तो आपका भाग्य खराब नहीं है। आप तो बेहद भाग्यवान हैं। विपरीत परिस्थितियों से लड़ते हुए लगातार आगे बढ़ते रहने वाला खुद को भाग्यवान मानता है और थककर बैठ जाने वाला खुद को दुर्भाग्यशाली।

आपके जीवन में आई कोई भी छोटी-बड़ी चुनौती ईश्वर द्वारा की गई केवल परीक्षा मात्र है, जिसमें सफलता प्राप्त करने वाला कहलाता है- भाग्यवान! अपने भविष्य और भाग्य के निर्माता स्वयं आप हैं। अतः नकारात्मक सोच को स्वयं से दूर रखकर हर विपरीत परिस्थिति में भी कुछ न कुछ सकारात्मक खोजें और कहें- मैं भाग्यवान हूँ!

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बदलें अपनी सोच

' बुद्धिमान व्यक्ति को जितने अवसर मिलते हैं ,

उससे अधिक तो वह स्वयं उत्पन्न करता है। '

- बेकन

दृष्टिकोण आपके समूचे जीवन को निर्धारित करता है। आप आगे क्या बनेंगे, यह इस पर निर्भर करता है कि आज आप क्या सोचते हैं। मनोविज्ञान कहता है कि हमारा मस्तिष्क हमारे शरीर को नियंत्रित करता है। इसीलिए अपने मस्तिष्क को स्वस्थ रखना पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। अगर आप खुश नहीं हैं, आपको जिंदगी से ढेरों शिकायतें हैं साथ ही आपके सपने भी पूरे नहीं हो पाए तो सप्ताह के हर दिन एक नया लक्ष्य बनाएं और उसे शाम तक पूरा करने की कोशिश करें। आप अपने भीतर बदलाव महसूस करेंगे और अपनी जिंदगी को नई दिशा प्रदान कर सकेंगे।

1. कार्य करें पूरे उत्साह से

पहला दिनः रविवार की छुट्टी के बाद एक ताजा दिन की शुरुआत जल्दी उठकर करें। मार्निंग वॉक, स्ट्रेचिंग करें या लॉन में टहलकर सुबह की ऑक्सीजन को सांसों में भरें। सोचें- आज दफ्तर की ढेरों, जिम्मेदारियां पूरी करनी हैं, क्योंकि मैं महत्त्वपूर्ण व्यक्ति हूँ। मेरा कार्य ही सिद्ध करेगा कि मैं कैसा दिन बिता रहा हूं। दफ्तर पहुँचते ही समस्याएं आरंभ- कम्प्यूटर में तकनीकी खराबी के कारण कार्य में देरी,

तब सिस्टम ठीक होने तक कुछ ऐसे कार्य कर लें, जिन्हें काम के दबाव के चलते नहीं कर पाते। कार्यों की सूची तैयार करें, जरूरी फोन करें, कार्य संबंधी सामग्री पढ़ें। हो सकता है आप आधे या एक घंटे की देरी से काम शुरू कर पाएं, लेकिन दबाव अनुभव करने से बचें। धैर्य से कार्य शुरू करें, इस विचार के साथ कि आप समय प्रबंधन कर सकते हैं, देरी के बावजूद निश्चित कार्यों को निर्धारित समय पर पूरा कर लेंगे। खाली समय में कार्यों का मूल्यांकन करें, कार्य संबंधी नई जानकारियां हासिल करें। हर दिन कुछ नया सीखना-करना आगे बढ़ने का हौसला देता है।

शाम को घर लौटकर कुछ देर अच्छी-सी पुस्तक पढ़ें, संगीत सुनें, माता-पिता, बच्चों से बातें करें। डायरी में ऐसे कुछ कार्यों के बारे में अवश्य लिखें, जो आज आपने किए। सोने से पहले ईश्वर को धन्यवाद देना न भूलें कि आप दिन-भर के लिए तय किए गए कार्य कर सके।

2. खुद के बारे में रहें आशावादी

दूसरा दिन: बीते दिन की सफलताओं को याद रखें, विफलताओं को भूल जाएं। एक नई सोच के साथ दिन की शुरुआत करें, मैं आत्मविश्वासी हूं, समर्थ हूं। गलतियों से सबक लेना और खुद पर हंसना सीखें। जो खुद पर नहीं हंस सकते, वे न सिर्फ ज्यादा नकारात्मक होते हैं, बल्कि उन्हें स्ट्रोक, कैंसर, दिल संबंधी रोगों की आशंका भी बढ़ जाती है। सोचें कि जीवन प्रयोगशाला है, जिसमें कभी अच्छे तो कभी बुरे प्रयोग होते हैं। इसके लिए मैं एक उदाहरण देता हूँ-

मोहन ने बी.टेक. किया है, लेकिन उसे नौकरी नहीं मिल पा रही है। कारण है- आत्मविश्वास की कमी। इंटरव्यू से पहले ही वह साच लेता है कि नौकरी नहीं मिलेगी, लिहाजा टालू रवैये के साथ देरी से साक्षात्कार वाली जगह पहुंचता है। इतने दबाव में होता है कि कई बार सही जवाब मालूम होने के बावजूद नहीं दे पाता। ये तमाम चीजें सामने वाले पर नकारात्मक असर डालती हैं और उसका चयन नहीं होता। जबकि मोहन का दोस्त इंटरव्यू के लिए पहले दिन से ही तैयारी करता है। जल्दी सोता है, अलार्म लगाकर जल्दी उठता है। ब्रेकफास्ट करता है, खुद को सजा-संवारकर आत्मविश्वास के साथ इंटरव्यू देता है। उसे विश्वास है कि नौकरी मिलेगी। कोई अचंभा नहीं कि इसी सोच के कारण उसे नौकरी मिलती भी है, मंगलवार का एक दिन खुद पर भरोसा रखने का है, इसे जगाने की हर संभव कोशिश करें।

3. दूसरों के बारे में बदलें अपनी राय

तीसरा दिन : मन से मिटाएं बैरभाव। पूर्वाग्रह को मन-मस्तिष्क में न आने दें। मित्रों, संबंधियों, सहकर्मियों के गुणों के बारे में सोचें। हो सकता है, किसी की मुस्कुराहट आपको भाती हो तो किसी की कार्यशैली। सभी में कोई गुण अवश्य होता है, उन्हें सराहें। इस अभ्यास का फायदा तब होता है, जब किसी मुश्किल व्यक्ति से सामना होता है। ऐसे लोगों के सामने आपके धैर्य की परीक्षा होती है, आप विपरीत स्थितियों से निबटना सीखते हैं। दूसरों के बारे में अपनी राय और अपने बारे में दूसरों की राय बदलने का एक उदाहरण है।

सुप्रसिद्ध लेखिका कमला दास के पास एक किशोरी आई, जो जीवन से निराश थी, आत्महत्या करना चाहती थी, उसे लगता था कि उसकी छवि बुरी लड़की की है। कमला ने उससे कहा- "तुम जिन पांच बातों से सर्वाधिक घृणा करती हो, बताओ।" लड़की ने कहा- "मुझे अपनी आंटी से नफरत है, वह मुझे पसंद नहीं करतीं" कमला ने कहा- "तुम वे पांच बातें बताओ जिनसे तुम्हें खुशी मिलती है।" लड़की ने कहा- "मुझे सिंदूरी आम बेहद पसंद है।" कमला ने फिर कहा- "आत्महत्या करने से पहले सिर्फ मेरी एक बात मान लो। कल सुबह सिंदूरी आम लेकर आंटी के घर जाओ।" लड़की चिल्लाते हुए बोली- "मैं उनसे घृणा करती हूं, क्यों जाऊं वहां" कमला ने किसी तरह उसे इस बात पर राजी किया।

एक हफ्ते बाद लेखिका को वह लड़की साइकिल चलाती हुई नजर आई तो उन्होंने चौंकते हुए पूछा- 'तुम!' लड़की ने झेंपकर जवाब दिया- "वाकई!! कमाल की तरकीब बताई आपने, आंटी से मिलने के बाद ही पता चला कि वह कितनी अच्छी हैं। हमने दो तीन घंटे साथ बिताए और आम उन्होंने बहुत पसंद किए हैं। उन्हें भी आश्चर्य हुआ कि वह मुझे क्यों पसंद नहीं करती थीं।"

यह सिर्फ उदाहरण है लेकिन क्या इसे व्यवहार में उतारना मुश्किल है?

4. बुरी स्थितियों से उबरें

चौथा दिन : क्या आप बुरी स्थिति के बारे में सोचते रहते हैं? अगर खराब संबंधों, आर्थिक समस्याओं के कारण आपको तनाव घेरे तो यह अभ्यास करें, आंखें बंद करके नन्हें बच्चों का चेहरा याद करें।

पत्नी या गहरे, मित्र के साथ बिताए पल याद करें।

लंबी सांस लें, हल्के हाथ से चेहरे की मालिश करें, ताकि तनाव की लकीरें कम हो जाएं।

हर स्थिति से उबरा जा सकता है, इस बात को बार-बार दोहराएं।

पांच-दस मिनट के अभ्यास के बाद महसस करेंगे कि कई नकारात्मक विचार मस्तिष्क जेहन से निकल चुके हैं। एक और उदाहरण मैं इस बात को समझने के लिए देता हूँ कि दुर्घटना में पिता को खोने के बाद प्रभा अवसाद से घिर चुकी थी। सबसे छोटी होने के कारण वह पिता की लाडली थी। होस्टल में थी, किसी से दु:ख मंट नहीं पाती थी, उसे चारों ओर अंधेरा नजर आ रहा था। ऐसे में उसने पिता की चिट्ठियां पढ़ीं, बचपन की तस्वीरें देखीं और बुदबुदाई आपकी उम्मीदों को मैं पूरा करूंगी....। इस एक अभ्यास ने कुछ ही मिनटों में उसे एक हताश और दुःखी लड़की से एक जिम्मेदार व्यक्ति में बदल दिया।

5. कुछ शब्दों को निकालें मन से

पांचवां दिनः काश! ऐसा होता .... ऐसा न होता। यदि मेरी नौकरी बेहतर होती, यदि लोग मेरी सुनते ... ऐसे कई विचार सभी के मन में उठते हैं। लेकिन इसी के साथ यह भी जान लीजिए कि संतुरिया खशी सिर्फ भावना नहीं सफल जीवन का रास्ता भी है। आज का दिल खुशियों के नाम करें, आज में जिएं। खुशी मन-मस्तिक को स्थिति है। हम दिल्ली में हैं, मुंबई जाना चाहते हैं, तो इसके लिए ट्रेन या प्लेन की जानकारी हासिल करनी होगी। यही बात विचारों की ट्रेन के बारे में कही जा सकती है। सही ट्रेन नहीं चुन सकते, तो मुंबई यानी अपनी मंजिल तक पहुंचने का ख्वाब छोड़ देना चाहिए। सही ट्रेन का टिकट है कृतज्ञता। यह कृतज्ञता का भाव ही खुशी का रास्ता है। नकारात्मक शब्दों को जीवन के शब्दकोष से मिटा दें और कृतज्ञता, जैसे धन्यवाद आदि शब्दों को जगह दें। जीवन ईश्वर का अनमोल तोहफा है। उस अनाम ईश्वर के प्रति कृतज्ञ हों। माता-पिता, परिवार और समाज के प्रति आभार जताएं, जिनके कारण आज आपका वजूद है।

6. माहौल को बनाएं खुशगवार

छठा दिनः माहौल तभी अच्छा होता है, जब स्वास्थ्य अच्छा हो, परिवार-समाज में सब सही हो। शनिवार का दिन व्यायाम या योग से शुरू करें। यदि हफ्ते के पांच दिन आप कार्य करते हैं तो इस छुट्टी को स्वास्थ्य, रुचियों, खान-पान और फिटनेस के लिए रखें। आस-पास के लोगों में घुले-मिलें, मित्रों-संबंधियों या माता-पिता से मिलें, संगीत सुनें, पेंटिंग करें, अच्छी पुस्तकें पढ़ें, सामाजिक कार्य करें। अपने भाग्य के निर्माता आप खुद हैं। भाग्य अच्छा होता है, जब कार्य को ढंग से पूरा करें। कार्य तभी ढंग से होगा, जब उसमें आनंद लें।

चुनौतियों को स्वीकारते हुए आनंद के साथ अपने कार्य को करें। नेपोलियन बोनापार्ट का कहना था- 'असंभव कुछ नहीं होता। कई बार छोटे या व्यर्थ लगने वाले कार्य भी बड़े होते हैं। वैज्ञानिक अविष्कार नहीं कर पाते, यदि उन्हें कुछ असंभव या व्यर्थ लगता।'

शनिवार का दिन छोटी-मोटी खुशियों में बिताएं, माहौल भी अच्छा हो जाएगा।

7. घर - परिवार से पाएं उत्साह

सातवां दिनः सरदार भगत सिंह कहते थे कि जिंदगी का लक्ष्य और कुछ नहीं जीवन ही हुआ करता है। हम जो कुछ कर रहे हैं। वह इसलिए कि हम और हमारी भावी पीढ़ियां बेहतर जिंदगी बिता सकें। समस्त कार्यों का अंतिम उद्देश्य आत्मसंतुष्टि है। वह तभी मिलती है, जब हम परिवार और आस-पास के लोगों को सुखी देखते हैं। रविवार को सारे काम भूल कर परिवार के हो जाएं। यही वह जगह है- जहां आपकी सारी थकान, अवसाद और तनाव खत्म होता है। सुबह लंबी वॉक पर जाएं, साथ बैठकर ब्रेकफास्ट और लंच करें, फिल्म देखें, बच्चों के साथ खेलें, उन्हें कहानियां सुनाएं, पार्क ले जाएं। मोबाइल-लैपटॉप छोड़ें, और वह सब करें- जो सुकून दे। बच्चों जैसे काम करें। खूब हँसें, शॉपिंग करें, घूमें, खेलें।

बेहतर जिंदगी का एक सूत्रीय फार्मूला है- प्रसन्न रहें। इसी प्रकार अपने पूरे सप्ताह, महीने और पूरे वर्ष को सुख तथा तनावरहित ढंग से बिताने का सकल्प लें।

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करिए कुछ अलग भी

' छोटे - से - छोटे अवसर के सदुपयोग हेतु अपनी बुद्धि भिड़ा

देने से वही अवसर महान बन जाते हैं। '

- महर्षि दयानन्द सरस्वती

कुछ नया देखने, सीखने व करने की चाह छोटी उम्र में बहुत अधिक होती है। बच्चों की यह प्रवृत्ति उन्हें न सिर्फ बहुत कुछ सिखाती है, अपितु निरंतर उनके व्यक्तित्व में भी सुधार लाती है। लेकिन बड़े होते-होते हम अपनी गतिविधियों को सीमित करने लगते हैं। हम न सिर्फ परिवर्तन से डरते हैं, बल्कि जोखिम लेने से भी बचते हैं। नतीजा, हम धीरे-धीरे स्वयं को निश्चित जीवनशैली में कैद कर लेते हैं। लोग अपने निश्चित ढर्रे अथवा जीवनशैली में छोटा-सा परिवर्तन किए जाने के विचार उत्पन्न तनाव से ही परेशान होकर कुछ अलग करने का विचार छोड़ देते हैं। अपनी पसंद और रुचियों से कुछ अलग करने की चाह और प्रयास आपकी कार्यक्षमता को तो बढ़ाता ही है, आत्मविश्वास व कार्यकुशलता में भी वृद्धि करता है। आइए जानें कि आप नया क्या कर सकते हैं।

नियमित सैर व योगाभ्यास

सुबह आधा घंटा जल्दी उठकर सैर करने या व्यायाम व योगाभ्यास करने के लिए समय निकालें। सुबह की ताजा हवा में शारीरिक व्यायाम करने से शरीर स्वस्थ व ऊर्जावान रहता है, तथा इससे आपके सजग होते हए भी नियमित घूमने का नियम नहीं बना पाते। सुबह पार्क में अनेक लोग सैर व योगाभ्यास आदि के लिए आते हैं। आपके द्वारा भी ऐसी दिनचर्या बनाने से एक ओर आपका सामाजिक दायरा बढ़ता है, स्वभाव में परिवर्तन आता है तथा नई चीजों को अपनाने की रुचि भी बढ़ती है।

अपनी रुचि व सपनों को समय दें

नई चुनौतियों के लिए प्रयास करना, नई गतिविधियों में भाग लेना व्यक्तित्व के विकास में सहायक होता है। आपकी सफलता अपने दायरे से हटकर उठाए गए छोटे से कदम से भी संबंध रखती है। ऐसे अनेक क्षेत्र हैं, जिनमें आप अपनी रचनात्मकता को आजमा सकते हैं। कुछ भी अलग से सीखने की प्रवृत्ति रखने की भावना न सिर्फ आपके स्वयं के आत्मविश्वास में वृद्धि करता है, बल्कि परिवार के सदस्यों, यहां तक कि बच्चों के मन में भी आपके प्रति सम्मान की भावना बढ़ाता है। पर आपको यह मानना होगा कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती।

नए दोस्त बनाएं

हमारे जीवन में दोस्तों की भूमिका अहम होती है। वे हमें सहयोग के साथ ही सोच व दृष्टि देते हैं। ऐसे लोग बहुत स्वस्थ व खुशमिजाज होते हैं जो स्वयं को दोस्तों व परिवार से जोड़े रखते हैं तथा उनके बीच स्वतंत्रता से अपने विचारों को अभिव्यक्त कर पाते हैं। बेशक आपके पुराने दोस्त अमूल्य होते हैं, लेकिन समय के साथ नए दोस्त व संपर्क भी बनाएं। नए मित्र बनाने के लिए व दूसरों को जानने के लिए समय निकालें। पारस्परिक व सामूहिक गतिविधियों में भाग लें, दूसरों को अपनी रुचिकर गतिविधियों में भाग लेने के लिए आमंत्रित करें। परंतु इसके लिए आवश्यक है कि आप खुले मन से क्रियाओं में भाग लें। तभी आप अपनी पसंद व नापसंद से उनकी तुलना कर सकेंगे और कुछ नया सीख सकेंगे। इसके लिए अलग-अलग क्षेत्रों व कार्यों से जुड़े अन्य व्यक्तियों से पहचान बनाना, उनसे कुछ नया सीखने की कोशिश करना तथा इसी माहौल में से अपनी रुचि व पसंद के अनुरूप अपने नजदीकी लोगों को चुनना और उनसे आत्मीय संबंध बनाना जरूरी होता है। पर ऐसा करने के बाद भी मात्र मनोरंजन करना एकमात्र लक्ष्य नहीं होना चाहिए। महत्त्वपूर्ण होती है, विचारों की अभिव्यक्ति, सप्ताह का कोई एक दिन दोस्तों के लिए निश्चित करें।

स्वयं को प्रेरित करें

हम सभी जीवन में कुछ न कुछ हासिल करना चाहते हैं, लेकिन हमारे पास इसके लिए आवश्यक प्रेरणा नहीं होती। ऐसे में वे लोग जो खुशियां और सफलता प्राप्त कर चुके हैं, हमारे प्रेरणास्रोत बन सकते हैं। इसके लिए अपना मूल्यांकन करने के लिए समय निकालें। किन कार्यों में आप कुशल हैं, क्या आपको नहीं आता, इन बातों का ख्याल रखते हुए अपनी रुचि; अपने विचारों आदि की सूची बनाएं। आपको स्वयं लगेगा कि यह प्रक्रिया आपको प्रेरित कर रही है। आप नया सीखने के लिए इच्छुक हो रहे हैं। हर दिन छोटी सफलता आपके आत्मविश्वास को बढ़ाती है।

संपूर्ण व्यक्तित्व में सुधार का प्रयत्न

वर्तमान समय में सेल्फ ग्रूमिंग के अनेक कोर्स चलाए जाते हैं, जिनमें पर्सनैलिटी से संबंधित विभिन्न पहलुओं की जानकारी दी जाती है। आपके बोलने का ढंग, आपकी सोच, दूसरों के साथ आपका व्यवहार, विचारों की अभिव्यक्ति, अच्छे एवं प्रभावी ढंग से बातचीत करने के तरीके, विभिन्न अवसरों पर आपका व्यवहार, कपड़े पहनने का अंदाज़, आपकी शारीरिक मुद्रा आदि अनेक ऐसी जानकारियां वहां आपको जानने व सीखने को मिलती हैं। इन सभी जरूरी बातों से आप स्वयं को अवगत रख सकते हैं। इससे निर्णय लेने व छोटे-छोटे जोखिमों का सामना करने की क्षमता बढ़ती है। अच्छी किताबें व पत्र-पत्रिकाएं पढ़ने से भी व्यक्तित्व में निखार आता है, तथा विचारों को अभिव्यक्त करने की क्षमता बढ़ती है। साथ ही आप स्वयं को नवीनतम जानकारियों से पूरे तौर पर अवगत रख पाते हैं।

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सीखें आलोचना प्रबंधन

' मूर्ख कभी प्रिय नहीं बोलता और स्पष्ट वक्ता कभी धूर्त नहीं होता।

आलोचक के आक्षेप तुम्हारे प्रतिकूल ही नहीं होते। '

- चाणक्य

भगवान बुद्ध के पास एक बार एक व्यक्ति पहुंचा। वह उनके प्रति ईर्ष्या और द्वेष से भरा हुआ था। पहुंचते ही लगा उन पर अपशब्दों और झूठे आरोपों की बौछार करने। भगवान बुद्ध पर उसका कोई असर नहीं हुआ। वह वैसे ही शांत बने रहे, जैसे पहले थे। इस पर वह व्यक्ति आग-बबूला हो गया। उसने पूछा, तुम ऐसे शांत कैसे बने रह सकते हो, जबकि मैं तुम्हें अपशब्द कह रहा हूं? बुद्ध इस पर भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने शांत भाव से मुस्कुराते हुए जवाब दिया, अगर आप मुझे कोई वस्तु देना चाहें और मैं उसे स्वीकार न करूं तो क्या होगा? वह चीज तो. आपकी ही बनी रह जाएगी न! फिर मैं उसके लिए व्यथित क्यों होऊं?

आलोचना के संदर्भ में भगवान बुद्ध का यह सवाल आज भी उतना ही प्रासंगिक है। गायत्री तीर्थ के संस्थापक आचार्य श्री राम शर्मा ने कहा है, 'कोई आपको तब तक नीचा नहीं दिखा सकता, जब तक कि स्वयं आपकी उसके लिए सहमति न हो।' घर हो या बाहर, ऐसी कोई जगह नहीं है जहां आपको आलोचना का सामना न करना पड़े। हर क्षेत्र में और हर जगह यह एक आम बात है। यह कभी स्वस्थ तरीके से की जाती है, तो कभी बीमार मानसिकता से भी। कभी आपके व्यक्तित्व को निखारने के लिए की जाती है तो कभी उस पर धल डाल देने के लिए, यह साबित करने के लिए कि आप किसी ने कम हैं। ठीक इसी तरह इसे ग्रहण करने की बात भी है। कुछ लोग इसे स्वस्थ मन से स्वीकार करते हैं और कुछ इसी से अपने मन को जीत बना लेते हैं। कुछ लोग इसे अपने व्यक्तित्व के विकास का साधन लेते हैं और कुछ इसके शिकार बन जाते हैं। कुछ को ऐसा लगता है कि यह जो आलोचना की जा रही है, सही है तो वे खुद को सुधारने लगते हैं। कुछ कुढ़ने लगते हैं और कुछ हताश हो जाते हैं। कुछ लोग अपने कान बंद कर लेते हैं। कुछ एक कान से सुनते हैं और दूसरे से निकाल देते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो सुनते हैं, अगर उन्हें लगता है कि बात सही है तो सुनते हैं वरना ठहाका लगाते हैं, और आगे बढ़ जाते हैं।

किसी की आलोचना का आप पर कैसा असर होता है, यह एक सीमा तक आपके दृष्टिकोण पर निर्भर है। इस सच का एक दूसरा पक्ष भी है। वह यह कि इस दृष्टिकोण से ही यह निश्चित होता है कि आप अपनी जिंदगी में किस हद तक सफल होंगे। इसीलिए सजग लोग आलोचना को भी अपने व्यक्तित्व विकास की योजना का एक जरूरी हिस्सा बना लेते हैं। आप चाहें तो इसे आलोचना प्रबंधन का नाम दे सकते हैं। जी हां, जैसे समय का प्रबधंन होता है, संसाधनों और स्थितियों का प्रबंधन होता है, वैसे ही आलोचना का भी प्रबंधन किया जा सकता है। आलोचना का प्रबंधन करके आप उसका पूरा लाभ उठा सकते है और न केवल अपने व्यक्तित्व, बल्कि व्यावसायिक विकास के लिए भी महत्त्वपूर्ण पूंजी बना सकते हैं।

आलोचना प्रबंधन का मतलब

कुछ समय पहले मैंने बेस्ट सेलिंग लेखक अरिंदम चौधरी की एक पुस्तक 'खुद में तलाशें हीरा' पढी। इस पुस्तक की भूमिका फिल्म अभिनेता शाहरुख खान ने लिखी है। शाहरुख खान की सफलता आज किसी से छपी नहीं है। वह कहते है कि असफलताआ मुझे बहुत डर लगता है। असफल होने के डर से मैंने जहां कहीं। कुछ भी किया उसमें अपना सौ फीसदी से ज्यादा दिया और ज्यादातर मामलों में मुझे सफलता मिलती गई। अगर आप नाकाम नहीं होंगे तो कभी सीख नहीं पाएंगे। सबसे बड़ी बात अपनी भूमिका में शाहरुख ने जो लिखी है वह है,"सफलता हमेशा अंतिम नहीं होती, वैसे ही जैसे असफलता हमेशा घातक नहीं होती। '

इस पुस्तक में अरिंदम चौधरी ने भी आलोचनाओं को हल्के में न लेने की सलाह दी है। मैंने भी अपने अब तक के राजनीतिक जीवन में यही सीखा है। आप कुछ भी करें लोग आपकी आलोचना का अवसर निकाल ही लेंगे। अब यह आपके ऊपर है कि आप उस आलोचना से अपना मार्ग और उस पर चलने का तरीका किस तरह सुधारते हैं। यह भी आप पर है कि आप आलोचना से घबरा कर अपने मार्ग से ही हट जाएं और चलना बंद कर दें। उचित यह होगा कि आलोचनाओं का विश्लेषण करके आप उनसे अपने जीवन और लक्ष्य तक पहुंचने के प्रयासों में सुधार कर लें। इसी को आलोचना प्रबंधन कहते हैं।

आलोचना प्रबंधन का आशय यह है कि किसी बात पर तुरंत प्रतिक्रिया न करें। पहले यह समझें कि आलोचना करने वाले का मंतव्य क्या है। क्या जो बात वह कह रहा है उसमें सचमुच कुछ दम है या ऐसे ही वह केवल अपनी संतुष्टि के लिए या आपको अपमानित करने के लिए ही आलोचना किए जा रहा है? इसका आरंभ आप स्वयं अपने प्रति अपने नजरिए को स्पष्ट करके कर सकते हैं। जब भी कोई आपके विरुद्ध कोई बात करे तो सबसे पहले यह देखें कि क्या वास्तव में यह बात सच है। इसके लिए जरूरी है कि आप अपने संबंध में पूरी तरह विश्वस्त हों। अपने गुण-दोषों के आकलन के लिए आप दूसरों पर कतई निर्भर न रहें, चाहे वे आपके परिवार के सदस्य ही क्यों न हों। यह विश्वास रखें कि अपने गुण-दोष आप सबसे अच्छी तरह से जानते हैं।

लेकिन इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि समझ के दूसरे. दरवाजे बंद कर लें। क्योकि गलती करना मनुष्य का स्वभाव हैं और आप उससे अलग नहीं है। अतः जब भी कोई आपकी कार्यप्रणाली या व्यवस्था या व्यक्तित्व के किसी भी पक्ष को लेकर कुछ कहे तो उसे समें जरूर. फिर आत्मनिरीक्षण करें। यह देखें कि क्या अगला जो कह रहा है, वह सही है या बस ऐसे ही उसने बिना जाने-बूझे ही कुछ कह दिया है। अगर आपको कभी यह लगे कि वास्तव में उसकी बात सही है तो आप स्वयं को सुधारने की शुरुआत तुरंत कर दें, इसके विपरीत यदि यह ज़ाहिर हो कि इसमें आपकी गलती बिल्कुल नहीं है, दूसरे व्यक्ति ने केवल अपनी गलती छिपाने के लिए आप पर दोषारोपण किया है, तो उसे तुरंत अपने मन से निकाल दें। उसे लेकर कुछ भी सोचने या करने की कोई जरूरत नहीं है।

निरीक्षण कीजिए

किसी व्यक्ति द्वारा की गई आपकी आलोचना कितनी सार्थक या निरर्थक है, इसका आकलन आप इस बात से कर सकते हैं कि आलोचना करने का उसका तरीका और लहजा क्या है? खुद उस व्यक्ति के अपने तौर-तरीके कैसे हैं? आलोचना करने वाला स्वयं. कितना व्यवस्थित है? कई लोग सिर्फ इसलिए आलोचना करते रहते हैं कि उनके पास करने के लिए कुछ और नहीं होता है। जबकि कुछ लोग आपसे ईर्ष्यावश आपकी आलोचना करते हैं और कुछ आपके शुभचिंतक होने के कारण। जो सचमुच आपका शुभचिंतक होगा वह कभी भी कोई काम बिगड़ जाने के बाद यह कहता आपके पास नहीं आएगा कि आपने ऐसे क्यों किया? आपको ऐसा करना चाहिए था। बल्कि पहले वह आपको सांत्वना देगा और बाद में आपकी बात सुनकर बताएगा कि आपको ऐसा करके देखना चाहिए था या भविष्य में ऐसा करके देखें। आपके अच्छे काम की आलोचना तो वह करेगा ही नहीं, भले उसका नतीजा कुछ न हो या खराब ही क्यों न हो।

इसके विपरीत ईर्ष्यालु व्यक्ति अक्सर बिना किसी बात के ही आपकी आलोचना करता रहेगा। अगर कोई काम बिगड़ गया तब तो वह जले पर नमक छिड़कने तुरंत पहुंचेगा। मौका मिलते ही वह आपकी टांग खींचने से नहीं चूकेगा। इसके अलावा कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो हमेशा खीजे हुए से रहते हैं। उनका स्वभाव होता है शिकायत में जीना। वे अगर आपको कभी कुछ सलाह देंगे तो वह भी खीजे हुए होने की मुद्रा में और शिकायत तो खैर करेंगे ही खीज से भरपूर। वास्तव में यह उनके अपने स्वभाव की बात होती है और यह स्वभाव बनता है स्थायी किस्म के असंतोष से। ऐसे लोगों की बात पर कोई खास ध्यान न ही दें, तो ठीक।

मंतव्य को समझिए

इस संदर्भ में सबसे ज्यादा जरूरी होता है, आलोचना करने वाले के मंतव्य को समझना। स्वस्थ मन से आलोचना बहुत कम ही लोग करते हैं। अधिकतर आलोचकों के संबंध में पश्चिम के प्रख्यात दार्शनिक राल्फ वाल्डो इमर्सन की बात ही सही साबित होती है। वह कहते हैं, चिंदियां वही लोग निकालते हैं जो स्वयं किसी चीज का निर्माण नहीं कर सकते हैं। निंदक आम तौर पर नाखुश और असंतुलित लोग ही होते हैं। ऐसे लोग जो आपके मुकाबले खुद को कमतर समझते हैं और आपके प्रति बेवजह ईर्ष्या से भरते चले जाते हैं। चूंकि ईर्ष्या हीनभावना की ही उपज है, उत्तरहीन भावना आती है और आत्मविश्वास में कमी होती है। जब यह जाहिर हो जाए तो कभी भी ऐसे आलोचकों की किसी भी बात को तवज्जो न दें।

इसके विपरीत कई बार ऐसा भी होता है कि कुछ लोग आपके सचमुच हितैषी होते हैं। वह आपकी और आपके भविष्य की परवाह भी करते हैं। ऐसे लोग जब आलोचना करते हैं, तो वह आलोचना कम सलाह ज्यादा होती है। वे आपको सिर्फ आपकी कमियां नहीं बताते। ऐसे लोग यह भी सोचते हैं कि आप उन कमियों से कैसे उबर सकते हैं और उबरने का वह रास्ता भी बताते हैं। ऐसे सलाहों पर ध्यान दिया जाना चाहिए।

आत्म - विश्लेषण करें

अब सवाल उठता है कि उस आलोचना का क्या करें, जो निरर्थक है, इसके लिए स्वामी विवेकानंद की एक बात पर ध्यान देना उपयोगी होगा। वह कहते हैं कि जब भी आप किसी क्षेत्र में बेहतर कार्य करेंगे, आलोचना के शिकार होंगे। जब भी आप अपने समय से आगे की बात सोचेंगे या कोई नया प्रयोग करेंगे तो आप पर प्रहार किए जाएंगे। वह कहते हैं, जब आप कोई नया विचार देंगे तो उसे तीन दौर से गुजरना होगा, सबसे पहले अस्वीकार, फिर उपहास और अंत में स्वीकार।

अगर इसे समझ लें, तो अपनी आलोचना से निबटना आपके लिए आसान हो जाएगा। अगर आप निंदकों की बातों को अपने पर नकारात्मक असर करने देने की अनुमति देंगे तो ऐसा असर आप पर होगा। इसके विपरीत अगर आप उनकी बातों का स्वयं विश्लेषण करेंगे तो यह आलोचना ही आपके लिए आत्मप्रबंधन का एक महत्त्वपूर्ण मानक बन जाएगा। जब भी कोई कुछ कहे तो उसे सुनें, आत्म-निरीक्षण करें और अगर पाएं कि सही है, तो उन गलतियों को ठीक कर लें अन्यथा जाने दें।

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आलोचना का सामना कैसे करें

' आलोचना करने से अधिक महत्त्वपूर्ण है अपनी आलोचना सुनकर आत्म सुधार।

आलोचक आपके शत्रु ही नहीं , मित्र भी होते हैं। '

- महात्मा गांधी

जीवन में दो बातें निश्चित हैं, बेंजामिन फ्रैंकलिन कहते थे " मृत्यु और टैक्स! लेकिन एक तीसरी अप्रिय बात भी निश्चित होती है, आलोचना। इससे कोई भी पूरी तरह बच नहीं पाता। और अक्सर हमारा करियर, हमारी भावनात्मक स्थिरता, हमारा सुख इस बात पर निर्भर करता है कि आलोचना सुनकर हम कैसी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं।"

आलोचना दो प्रकार की होती है, पहली सौम्य, तर्कपूर्ण लेकिन रचनात्मक, जो लोगों को कम ही मिल पाती है। तीखी, चोट करने वाली, शत्रतापूर्ण आलोचना यही लोगों को ज्यादातर मिलती है। यहाँ इस दूसरे प्रकार की आलोचना पर चर्चा की जा रही है। अगर आप संवेदनशील इंसान हैं, आप ईमानदार हैं तो आप आलोचना से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। आपको आलोचना का सामना तीन स्तर पर करना होगा वे स्तर हैं भावनात्मक, तर्कसंगत एवं व्यावहारिक स्तर।

अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया को नियंत्रित करना सबसे कठिन होता है। आलोचना आपके आत्मविश्वास पर प्रत्यक्ष आक्रमण की तरह है। इसीलिए क्षोभ और गुस्से के साथ इसकी प्रतिक्रिया सामने आना स्वाभाविक है। लेकिन ऐसा करने से आपका ही नुकसान होता है अगर आप अपने आलोचक का मुंह बंद करने के लिए ऐसा करते हैं तो भी क्षति आपको ही पहुंचती है। चौदहवीं लोकसभा की सबसे युवा सांसद और पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए. संगमा की पुत्री अगाथा संगमा कहती हैं, ' आलोचना से निपटने के लिए पहला कदम यही है कि आप शांत बने रहें। यह आसान नहीं है , मगर ऐसा किया जा सकता है। '

अपने जमाने में काफी आलोचना झेलने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर से पूछा गया, 'आपने धैर्यपूर्वक आलोचनाओं का सामना किस तरह किया?'

हूवर ने कहा, ' इस सवाल के दो संभावित उत्तर हो सकते हैं, पहला उत्तर है कि एक इंजीनियर होने के नाते समस्याओं को सुलझाने के लिए मुझे प्रशिक्षित किया गया है। मैं जानता हूं कि राष्ट्रपति पद पर आसीन होने वाले प्रत्येक व्यक्ति को आलोचना का सामना करना ही पड़ता है , इसीलिए जब मैं व्हाइट हाउस में आया तो आलोचना का सामना करने के लिए मानसिक रूप से तैयार होकर आया। दूसरा उत्तर यह है कि मैं अपनी धुन में रहने वाला इंसान हूं। '

जो मनुष्य अपनी धुन में मग्न रहता है वह भीतर की शांति में विश्वास करता है। भीतर की शांति तभी हासिल की जा सकती है जब आप अपने हृदय से क्रोध और कड़वाहट को. बाहर निकाल देंगे। अगर व्यक्ति के भीतर ऐसी ईश्वर-प्रदत्त शांति बसती हो तो वह दूसरों की आलोचना से हरगिज विचलित नहीं हो सकता।

हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि अपने निंदक के लिए प्रार्थना करो, जो तुम्हें चोट पहुंचाए, उसके लिए मंगलकामना करो। इसी तरह संत कबीर दास ने कहा है -

'निदंक नियरे राखिए, आंगन कुटी छवाय

बिन पानी साबुन बिना निर्मल करे सुभाय'

आलोचना होने के बाद साधारण व्यक्ति के लिए ऐसा करना आसान नहीं हो सकता, मगर जो ऐसा करते हैं वे महसूस करते हैं कि अपने निंदक को क्षमा कर अपनी पीड़ा की अनुभूति को दूर किया जा सकता है।

अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने के लिए यह विश्वास रखें कि हमेशा सक्षम स्त्रियों और पुरुषों को ही आलोचना का सामना करना ही पड़ता है। अगर आपके जीवन का कोई ठोस लक्ष्य है, अगर आप अपने लक्ष्य को पाने के लिए प्रतिबद्ध हैं और आप नए मार्ग का निर्माण करना चाहते हैं तो निश्चित रूप से आपको विरोध व शत्रुता का सामना करना पड़ेगा। दुनिया के समस्त महान पुरुषों को आलोचना का सामना करना पड़ा है, अपने समकालीनों की शत्रुता का सामना करना पड़ा है।

आलोचना का सामना करने का दूसरा कदम है बुद्धिसंगत होना। आलोचना को सुनें और फिर उसके उद्देश्य पर विचार करें। आधुनिक भारत में औद्योगिकीकरण के स्तंभ जे.आर.डी. टाटा ने कहा था, ' लोग असहमति के स्वर में जो कुछ कहते हैं उनसे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं , चूंकि वे हमें सोचने के लिए मजबूर करते हैं। जबकि प्रशंसा हमें खुश ही कर सकती है। ' अपने आप से यह सवाल ईमानदारी के साथ पूछे कि क्या आलोचना में सच्चाई निहित है? बहानेबाजी या गलती को औचित्यपूर्ण ठहराने से बचें, चूंकि ऐसा करने से आपकी गलती और भी संगीन बन सकती है। अगर आप इस नतीजे पर पहुंचते हैं कि आपका निंदक सच कह रहा है तो बेहतर होगा कि आप अपनी गलती को स्वीकार कर लें। ऐसा करने से आपका निंदक अपने आप शांत हो जाएगा। चूंकि आप उसकी बात से सहमत हैं, उसके बाद वह और क्या कह सकता है? इसके अलावा लोग ऐसे व्यक्ति की साफगोई से प्रभावित होते हैं जो खुले दिल से अपनी गलती को स्वीकार कर सकता हो।

एक और बुद्धिसंगत तरीका यह है कि आप अपने निर्दक की योग्यता की पड़ताल करें। क्या वह प्रतिष्ठित और गंभीर किस्म का शख्स है? अगर वह ऐसा है तो बेहतर यह होगा कि तत्काल उसकी बातों को नकारने से बचें। वह ईर्ष्या के चलते आलोचना कर रहा है या वह आपका हितैषी है? इस बात पर विचार करने के बाद आप उसकी आलोचना का जवाब दे सकते हैं। मर्यादित चुप्पी आलोचना का सबसे उत्तम उत्तर कहलाती है। कभी-कभी, बेशक, अगर आलोचना झूठी और क्षतिकारक किस्म की हो तो निश्चित रूप से आपको जवाब देना चाहिए। लेकिन ऐसा करते वक्त सहजतापूर्वक तथ्यों का उललेख करें, बदला लेने का प्रयास न करें।

एक और बात याद रखें, कि जब आलोचना आपको कानों तक पहुंचती है, तब उसके मूल स्वरूप में काफी तब्दीली आ चुकी होती है। लोगों को नमक-मिर्च लगाकर बढ़ा-चढ़ाकर बातें बनाने की आदत होती है। ऐसे लोग आलोचना के शिकार व्यक्ति को उत्तेजित करने के लिए झूठ का सहारा भी ले सकते हैं।

आपको इस तरह से उकसाने वाले तमाशबीनों से सावधान रहना चाहिए। जिस तरह हाथ की उंगलियां एक समान नहीं होतीं, उसी तरह मनुष्य भी एक समान नहीं होते। लोग बेवजह एक दूसरे की आलोचना करते रहते हैं, इसे मानव व्यवहार का एक दोष समझा जा सकता है।

आलोचना का सामना करने के लिए क्या व्यावहारिक स्तर पर कुछ किया जा सकता है? जी हां, ऐसा करके, आप अपने निर्दक की सहायता करने की कोशिश कर सकते हैं। आलोचना दोधारी तलवार की तरह होती है और जो व्यक्ति ऐसी तलवार का संचालन करता है वह स्वयं तलवार के जहरीले हिस्से से घायल भी होता है। उदाहरण के तौर जो लोग अफवाहें फैलाते हैं वे ईर्ष्या और असुरक्षा की भावना से ऐसा करते हैं। छोटे लोग अपने व्यक्तित्व का विकास करने की जगह दूसरों की निंदा करने में अधिक रुचि लेते हैं। लेकिन बदले में उन्हें क्या हासिल होता है? कोई उनके ऊपर भरोसा नहीं करता। अंत में वे अविश्वसनीय जीव बनकर रह जाते हैं।

धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जो बुराई करता है, हमें उसके साथ भलाई करनी चाहिए। यह उपदेश यूं ही नहीं दिया गया है। संकीर्णता की तुलना में उदारता अधिक शक्तिशाली होती है। विलियम मैकीनली जब अमेरिकी राष्ट्रपति पद का चुनाव लड़ रहे थे तब एक अखबार उनके खिलाफ अनर्गल बातें छाप रहा था। उस अखबार के रिपोर्टर को मैकीनली के साथ रेलयात्रा पर यह हिदायत देकर भेजा गया था कि वह मैकीनली के खिलाफ केवल नकारात्मक खबरें ही लिखकर भेजेगा। शुरू-शुरू में रिपोर्टर ने वैसा ही किया और इस बात की सूचना मैकीनली को मिल गई। एक दिन सर्दी से ठिठुरता हुआ रिपोर्टर अपनी सीट पर सो गया। उसी समय मैकीनली उसके पास आए और अपना ओवरकोट उतारकर उसके शरीर को ढक दिया। जब रिपोर्टर नींद से जागा और उसे असलियत का पता चला तो उसने फौरन अखबार को अपना त्यागपत्र भेज दिया। अपने प्रति हमदर्दी दिखाने वाले व्यक्ति की निंदा करने के लिए वह अब तैयार नहीं था।

ध्यान रखिएगा कि लगातार आलोचना करने वाले लोग कमजोर और दु:खी किस्म के होते हैं, जो किसी तरह अपनी तरफ सबका ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं। वे अपनी कमजोरियों पर परदा डालने के लिए दूसरों के जीवन में खामियां ढूंढते रहते हैं।

डिजराइली का कथन है- 'सही बात कहने की तुलना में आलोचना करना आसान होता है।' धर्मग्रंथों में कहा गया है- अगर कोई तुम्हारे प्रति बैर भाव रखता है तो उसके गुस्से की वजह का पता लगाओ और उस वजह का निदान करो, इस तरह तुम्हारे शत्रु की मदद होगी और तुम्हारी भी मदद होगी।

दुनिया में हमेशा निदंक रहेंगे। उनमें कुछ रचनात्मक किस्म के होंगे तो कुछ क्रूर भी होंगे। आप अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया को नियंत्रित कर, बुद्धिसंगत रवैया अपनाकर और निदंक को गुस्से से छुटकारा दिलाने में मदद कर आलोचना का सामना कर सकते हैं।

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आत्मानुशासन का महत्त्व

' आत्मानुशासन से सभी प्रकार के कठिन कार्य सहज संभव हो जाते हैं।

आत्मानुशासन बिना परिश्रम उचित फल नहीं देता। '

- अज्ञात

आज के भौतिकवादी युग में हर व्यक्ति असुरक्षा और चिंता से ग्रस्त है। कभी कुछ पाने की ख्वाहिश, कभी कुछ खोने की चिंता... लगातार एक अंधी होड़ में दौड़ रहे हैं हम। इनके बीच हमारा स्वास्थ्य ही प्रभावित होता है। महापुरुष, मनोवैज्ञानिक कहते रहे हैं कि मन के बंधन यदि खुल जाएं तो हर विचार को सहज आत्मसात किया जा सकता है। जीवन को सही अर्थों में जीने के लिए स्वस्थ रहना आवश्यक है। आम धारणा है कि हमारा स्वास्थ्य डॉक्टर के हाथों में सुरक्षित है। लेकिन सच यह है कि अधिकतर बीमारियां गलत जीवनशैली के कारण जन्म लेती हैं। शारीरिक अस्वस्थता हमें मानसिक और सामाजिक रूप से प्रभावित करती है।

स्वस्थ बने रहने के लिए प्रस्तुत हैं कुछ उपयोगी सूत्रः

1. स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है, शारीरिक और पर्यावरण की स्वच्छता। घर में पर्याप्त हवा एवं धूप के साथ ही शारीरिक स्वच्छता, उचित खानपान और व्यायाम जरूरी शर्ते हैं।

2. संतुलित और सात्विक आहार स्वस्थ जीवन का अगला सूत्र है। आहार में हरी सब्जियां जरूरी हैं। मांसाहारी भोजन में शक्ति और प्रोटीन की अधिकता तो होती है, मगर कोलेस्ट्रॉल बढ़ाने की खूबियां भी होती हैं। मांस खाने से यूरिक एसिड बढ़ता है। शाकाहारी भोजन से भी शरीर के लिए जरूरी प्रोटीन मिल सकता है।

3. भोजन को सुकून से पकाना भी मायने रखता है। यदि हताश, अशांत अथवा क्रोधी व्यक्ति ने भोजन पकाया है तो वह खाने वालों को प्रभावित करेगा, जबकि शांत व्यक्ति द्वारा पकाया गया भोजन स्वादिष्ट होगा।

4. भरपूर, गहरी, संतुलित नींद स्वस्थ जीवन का अगला पहलू है। ज्यादा सोना जरूरी नहीं, भरपूर गहरी नींद आवश्यक है। दिन-भर मेहनत करने वालों को अच्छी नींद आती है, मगर निराश-हताश लोग उनींदे रहते हैं। नींद की मात्रा सबके लिए अलग-अलग होती है। अच्छी नींद के लिए जरूरी है कि मन में शांति, सुरक्षा एवं संतोषपूर्ण विचार हों।

5. शारीरिक व्यायाम लगातार करें। यह स्वस्थ जीवन का खास सूत्र है। इससे रक्त प्रवाह बढ़ता है और शरीर में स्फूर्ति का अनुभव होता है। खुली हवा में चलने या जॉगिंग से शरीर स्वस्थ रहता है। स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन का वास होता है और कई बीमारियों की जड़ मोटापा भी दूर खड़ा चिढ़ाता रहता है।

6. अत्याधिक भौतिक आकर्षण तनाव पैदा करता है व व्यसनों को दावत देता है। व्यक्ति निश्चय कर ले तो कोई स्थिति मजबूर नहीं कर सकती कि व्यसनों का सेवन किया ही जाए।

7. मानसिक तनाव खतरनाक है। मन की शांति, बाहरी आराम, भौतिकता और वैभव में नहीं है। इंद्रियों को काबू में रखना सीख लें तो आत्मिक शांति मिलती है। मन की स्थिति हमारे जीवन को अच्छे या बरे ढंग से प्रभावित करती है, इसलिए सकारात्मक विचार आवश्यक हैं।

8. ईर्ष्या, हताशा नकारात्मक विचार लाते हैं तो शाति, आशा, सच्चाई, स्नेह, सद्भाव सकारात्मक विचार लाकर स्वास्थ्य में बढ़ोत्तरी करते हैं। जरूरी है, सही सोच अपनाई जाए और अपना दृष्टिकोण सही रखा जाए।

9. मन की स्थिति और आपसी संबंध का कार्यक्षमता पर गहरा असर पड़ता है। अंतर्मुखी एवं बहिर्मुखी व्यक्तित्व को परिस्थितियों के मुताबिक ढलने का प्रयास करना चाहिए ताकि बीच का तनाव रहित रास्ता बना रहे।

10. अदृश्य परमात्मा में विश्वास करना भी जरूरी है। प्रार्थना में भी ताकत है। मगर अंधविश्वास और रुढ़ियों से किनारा करना भी जरूरी है। जीवन में सामंजस्य स्थापित हो जाए तो स्वस्थ रहना आसान हो सकता है।

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आत्ममुग्धता से बचें

' आत्ममुग्धता और आत्म प्रशंसा व्यक्तित्व को दीमक की तरह खोखला कर देती हैं। '

- अज्ञात

मैं एक सफल रहे उद्योगपति को जानता हूँ जो इन दिनों बहुत परेशान हैं। एक दशक पहले तक वह अच्छा कारोबार कर रहे थे और कारोबार लगातार बढ़त पर था। पिता के निधन के बाद उन्होंने पुश्तैनी व्यवसाय गत्ते के अलावा इलेक्ट्रॉनिक सामान बनाने की फैक्ट्री लगाई। नई फैक्ट्री से उन्हें काम तो मिला नहीं, उल्टे पुराने कारखाने का फायदा भी घट गया। पुराने कारोबार के इस संकेत को समझे बगैर वह उधर अपना ध्यान लगाने के बजाय पूरा समय नए काम को देने लगे। इससे नया काम तो सुधरा नहीं, पुराना काम भी मुश्किल में फंसता चला गया और अंत में हाथ लगा नुकसान। हर स्तर पर घाटे से उनका धैर्य जवाब देने लगा, जिससे वह नशे की दलदल में फंसते चले गए। उन्हें अब नुकसान की भरपाई संभव नहीं लगती है, फिर भी वह न तो वजह समझने की कोशिश कर रहे हैं, और न उससे उबरने का ईमानदार प्रयास ही।

यह स्थिति केवल उद्योगपति या व्यापारी की ही नहीं, किसी की भी हो सकती है। नौकरी पेशा व्यक्ति, प्रोफेशनल्स, शोधकर्ता और यहां तक कि बाहरी दुनिया से मुक्त घर बैठे लोगों की भी। जानकारों की मानें तो उपरोक्त उद्योगपति की यह दशा चापलूसों के कारण हुई। यह बात सही भी है पर पूरा नहीं, यह आधा सच है। पूरा सच यह है कि जो कछ भी हुआ उसकी वजह वे खुद हैं। उन्होंने पुरानी फैक्ट्री में सही सलाहकारों की जगह चापलूसों को तरजीह और बढ़ावा देने का काम उन्होंने खुद किया था। नई फैक्ट्री के मुलाजिमों को यह समझते देर नहीं लगी कि साहब को सिर्फ हाँ में हाँ मिलाने वाले लोग चाहिए। इसीलिए वहां जल्दी ही खुशामद करने वालों की भीड़ जुट गई। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि रजनीश अपनी किसी धारणा के विरूद्ध कुछ भी सुनने के लिए तैयार नहीं होते थे। यहां तक कि यह भी नहीं कि कोई काम नहीं हो सकता या उसे करने में खतरा है। दोयम दर्जे के चालाक लोगों ने इसका पूरा फायदा उठाया और समझदार प्रोफेशनल्स उनसे दूर होते गए। आखिरकार उनके हिस्से में आई घाटे, कर्ज और देनदारी की दलदल।

रोग है ' यस बॉस ! '

उन्हें वही लोग पसंद थे जो उनकी सोच को सर्वोत्तम कहें और हर बात पर यस बॉस! चाहे नतीजा कुछ भी हो। अपनी प्रशंसा सुनना उनकी सबसे बड़ी कमजोरी थी। वैसे एक सीमा में यह कोई कमजोरी नहीं है। एक सीमा के भीतर यह प्रेरक का काम करती है, पर इसके बाद जहर बन जाती है। चिकित्सा विज्ञानियों और खासकर मनोवैज्ञानिकों की मानें तो चापलूसी कोई शौक नहीं, यह एक रोग है। मनोविज्ञान में इसे नार्सीसिज्म कहते हैं। नार्सीसिज्म का अर्थ है आत्ममुग्धता। इसकी अति, व्यक्ति और परिवार से लेकर संस्थान और समाज तक की तबाही का कारण बन सकती है। तबाही की व्यापकता व्यक्ति विशेष की सामाजिक और आर्थिक हैसियत पर निर्भर है। दसरे विश्वयुद्ध के लिए आज तक हिटलर की आत्ममुग्धता को ही मख्य रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है। जबकि इसका शिकार एक मामली शख्स आत्महत्या के लिए विवश होता है। इसकी भयावहता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है।

ऐसे समझें नासीसिज्म को

' सेल्फ लव नासीसिज्म ' के लेखक सैम वैक्निन के अनुसार यह रोग आसानी से समझ में आने वाला नहीं होता। लंबे समय तक तो ऐसा लगता है कि यह एक सामान्य बात है, अगर छोटे बच्चे इसके शिकार हों तो वे बहुत जिद्दी दिखते हैं। थोड़े जिद्दी तो सभी बच्चे होते हैं, लेकिन अगर ज़िद हद से ज्यादा दिखाई दे तो सतर्क हो जाएं। आमतौर पर इसकी नींव बचपन में ही पड़ती है, लेकिन यह कोई अनिवार्य नहीं है। यह भी हो सकता है कि बचपन में कोई इसका शिकार न रहा हो, पर बाद में हो जाए। पढ़ाई या कारोबार के दौरान कभी भी ऐसी स्थितियां बन सकती हैं, जिनसे लोग नार्सीसिज्म के शिकार हो जाते हैं। वैसे इसके शिकार होने की आशंका आमतौर पर किशोरावस्था या युवावस्था में ज्यादा होती है। इसे आप इस तरह पहचान सकते हैं:-

1. आत्ममुग्ध लोग अपनी आलोचना बिल्कुल बर्दाश्त नहीं कर सकते। मामूली आलोचना से भी वे बुरी तरह नाराज हो सकते हैं और मारपीट तक पर उतर सकते हैं।

2. दूसरों से ये समानता के संबंध नहीं बनाते, सिर्फ उनका इस्तेमाल करते हैं।

3. अपना महत्त्व बढ़ा-चढ़ाकर बताने और दिखाने की कोशिश करते हैं।

4. अपनी बौद्धिक क्षमता, समझ, सुंदरता, अधिकारों और उपलब्धियों को भी लेकर निरर्थक और निराधार कल्पनाएं करते रहते हैं, तथा उन कल्पनाओं को ही सच मानते हैं।

5. हर जगह अतिविशिष्ट व्यक्ति जैसा सम्मान चाहते हैं। इसके लिए निरर्थक प्रदर्शन तो करते ही हैं, बिना सोचे-समझे झूठ भी बोलते हैं।

6. बहुत छोटी-छोटी बातों से ही वे ईर्ष्या के शिकार होने लगते हैं।

7. हर कार्य का श्रेय खुद लेने का प्रयास करते हैं, चाहे वह निचले स्तर का क्यों न हो।

8. निजी संबंधों के मामले में वे भावनात्मक शोषण करने वाले होते हैं।

9. समानता के ख्याल से भी डरते हैं। दूसरों की तुलना में अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए बेवजह शेखी बधारते हैं।

10. हर बात पर अड़ियल रवैया दिखाते हैं, और मामूली बात पर भी नाराज हो जाते हैं।

11. नार्सीसिस्ट अगर वास्तव में अधिकार संपन्न हुआ तो वह दूसरों की बात कभी नहीं मानेगा। उल्टे सभी से केवल अपनी धारणा का समर्थन चाहेगा।

होने की चाह में

इसके पहले कि इसके कारणों का जिक्र करें, यह देखना होगा कि यह होता कितने तरह का है। अपने बहुचर्चित निबंध ' ऑन नार्सीसिज्मः एन इंटोडक्शन' में विश्वासघात सिगमंड फ्रायड इसे दो रूपों में देखते हैं। पहला प्राइमरी यानी प्राथमिक स्तर का नार्सीसिज्म और दूसरा सेकेंडरी यानी द्वितीयक स्तर का नार्सीसिज्म। उनका मानना है कि यह आत्मरक्षा की प्रवृत्ति की अभिव्यक्ति ही है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि यह अपना अस्तित्व बनाए रखने की हमारी चाह और ऊर्जा को व्यक्त करता है। फ्रायड के अनुसार हम एक व्यक्ति के रूप, में अपने होने के बोध या अहंकार के साथ नहीं जन्मे हैं। बल्कि अहंकार समय के साथ-साथ हममें भरता जाता है। यह बाहरी दुनिया से हमारे संपर्क के प्रभाव से आता है। माता-पिता के नियंत्रण और उनकी अपेक्षाओं, सामाजिक वातावरण और अपने स्तर के बारे में उनकी सीख का इस पर पूरा प्रभाव होता है। वह इसे 'ईगो लिबिडो' यानी आत्मरति कहते हैं। वह यह भी कहते हैं कि आत्मरति को वस्तुरति यानी 'आब्जेक्ट लिंबिडो' में साफ तौर पर अलग करके नहीं देखा जा सकता है जिनसे वह अपनी तुलना करने लगता है। तुलना की यह प्रक्रिया जब बहुत बढ़ जाती है और व्यक्ति कई स्थितियों में स्वयं को हीन महसूस करने लगता है तो वह एक अति की ओर बढ़ने लगता है। यह अति ही सेकेंडरी नार्सीसिज्म है। यह इसकी रोगदशा है। जब कोई स्वयं को किसी की तुलना में हीन समझता है तो वह या तो समाज से बचने लगता है या आडंबर ओढ़ने लगता है। जब उसे लगता है कि उसकी असलियत जाहिर हो सकती है, वह रक्षात्मक हो जाता है। यदि शक्तिसंपन्न हुआ तो रक्षा का यह तरीका डांट-फटकार के रूप में और कमजोर हुआ तो उलाहनों, रोने व नकारात्मक सोच के रूप में सामने आता है। एक और उपाय भी लोग अपनाते हैं, रक्षा कवच बनाने का। खुशामदी लोग रक्षा कवच का ही काम करते है। यह कभी सहयोगियों के रूप में होते हैं तो कभी मित्रों व परिवार के सदस्यों के रूप में भी।

मशहूर हस्तियों के बीच

वैसे दोनों की स्थितियों में इसे व्यक्तित्व दोष डिसार्डर माना जाता है। फ्रायड के अलावा कुछ अन्य मनोवैज्ञानिकों ने भी इस पर काम किया है। इनमें कारेन हॉर्नी, हायंज, कोइट , अट्टो कर्नबर्ग के नाम प्रमुख हैं। कॉर्नल यूनिवर्सिटी से संबद्ध वायल मेडिकल कालेज में मनोविज्ञान के प्रोफेसर राबर्ट बी मिलमैन इसके एक अन्य रूप का जिक्र करते हैं, यह है अनुप्रेरित परिस्थितिजन्य नार्सीसिज़्म। नार्सीसिज़्म का यह वह रूप है, जो अपेक्षाकृत बड़े लोगों यानी वयस्क और संपन्न लोगों को शिकार बनाता है। इसकी आशंका ऐसे लोगों में ज्यादा होती है, जिनकी व्यस्तता ऐसे समाज में अधिक होती है जहां मशहूर हस्तियों का खास प्रभाव होता है। हस्तियों के बारे में जानते व सोचते रहने से वे जाने-अनजाने उनके जैसा बनने की कोशिश करने लगते हैं। उनकी चमक-दमक के पीछे भरे अंधेरे से अनजान लोग सिलेब्रिटीज़ की नकल करते हुए स्याह अंधेरे की ओर बढ़ने लगते हैं, उन्हें यह शोहरत हासिल हो न हो, पर वे हर शख्स से अपने प्रति वैसा ही विशिष्ट व्यवहार चाहने लगते हैं। वैसा ही सम्मान, वैसी ही प्रशंसकों की भीड़... चाहे यह सब फर्जी ही क्यों न हो। आम आदमी से भिन्न दिखने की यह चाह ही जानलेवा हो जाती है।

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आत्म - मूल्यांकन से सफलता

' स्वयं पर नियंत्रण ही सच्चा सुख देता है। '

- भगवान महावीर

जीवन में आगे बढ़ने के लिए आत्म-मूल्यांकन बहुत जरूरी है। साथ ही यह भी जानना जरूरी है कि अपनी कमियों को दूर कर सफलता के मार्ग तक कैसे पहुंचा जा सकता है। सफलता चुटकियों में नहीं मिल जाती और न ही सिर्फ परंपरागत रूप से एक ही तरह से काम करने पर। योजना बनाकर उस पर अमल करना भी मायने रखता है।

अपने करियर को सही दिशा में ले जाने के लिए खुद से पूछे ये सवाल :

1. मुझे किस चीज में दिलचस्पी है? ऐसे कौन-से काम हैं जिन्हें करने से मुझमें जोश आ जाता है?

2. मेरी अब तक की उपलब्धियां क्या हैं?

3. मेरे व्यक्तित्व में ऐसे कौन-से गुण हैं, जिन्होंने मेरे जीवन को सहज बनाने में मदद की है?

4. ऐसे कौन-से काम हैं जो स्वाभाविक रूप से मेरे लिए बेहद आसान हैं?

5. मुझमें कौन-सी योग्यताएं हैं जो मेरे जीवन में सफलता की संभावना को बढ़ा सकती हैं।

6. किसी काम को करने में मुझमें जो जोश और ऊर्जा एक दिन रहती है, वह हफ्ते या महीने-भर तक काम करने में कितनी रह जाती है?

7. मेरे सपने क्या हैं व कार्यक्षेत्र की वास्तविक दुनिया से मैं उन्हें किस तरह से जोड़ सकता हूं?

8. ऐसे कौन-से छोटे-छोटे काम हैं जिनमें मेरी दिलचस्पी हमेशा से रही है? इन कामों को एक साथ कैसे जोड़ा जा सकता है?

9. वर्तमान कार्यक्षेत्र से जुड़ी जरूरतों के हिसाब से मेरे करियर के विकल्प कितने सही हैं?

10. मैं अपने करियर से संबंधित विकल्पों के बारे में कितनी जानकारी रखता हूँ?

11. मेरी कौन-सी कमजोरियां हैं? उन कमजोरियों का मुझ पर और मेरे करियर पर क्या असर होगा?

12. मैं ऐसे कौन-से उपाय अपनाऊं, जिससे अपनी कमजोरियों से उबर सकू?

13. मैं जो करियर चुनने जा रहा हूं, उसके लिए कैसे व्यक्तित्व की जरूरत होती है, और मेरा व्यक्तित्व उसके लिए सही है या नहीं?

14. क्या मैं उस क्षेत्र में जाने से पहले खुद को परख सकता हूँ?

15. अपने चयनित कार्यक्षेत्र में लंबे समय तक सफल बने रहने के लिए मुझे किससे सहयोग मिल सकता है?

इन सवालों के बारे में सोचने के बाद आप बेहद मूल्यवान जानकारी हासिल करेंगे। तो चलिए, परीक्षण करते हैं कि इन सवालों से आपके मूल्यांकन की जानकारी आपके लिए कितनी लाभदायक है।

रुचियों को जानें

उम्र के साथ-साथ हमारी रुचियों का दायरा बढ़ता जाता है। हम अपने जीवन के अधिक से अधिक अनुभवों से वाकिफ हो पाते हैं और उनमें से हम उन अनुभवों को चुन लेते हैं, जो हमें जोश से भर देते हैं। दरअसल, जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते जाते हैं, हमें अपनी क्षमताओं और रुचियों के ऊहापोह की स्थिति रहती है। अक्सर बड़े लोग सत्रह साल की उम्र में ही युवाओं से पूछने लगते हैं कि उन्हें किस क्षेत्र में जारी है, किस क्षेत्र में अधिक रुचि है, जबकि इस उम्र के विद्यार्थी अपनी रुचियों को स्पष्ट बता पाने में समर्थ नहीं होते हैं। लेकिन अगर इस उम में अभिभावक अपने बच्चे की काउंसलिंग कराएं तो उसके कैरियर से संबंधित बहुत सारी बातें, शंकाएं और संभावनाएं उभरकर सामने आ जाती हैं। इस तरह बच्चे के व्यक्तित्व और क्षमताओं का अंदाजा भी हो जाता है और क्षेत्र विशेष में जाने के लिए संकेत भी मिल जाता है। फिर उस संकेत को दूसरे संकेतों के साथ जोड़कर सही मार्गदर्शन किया जाता है। कई बार रुचियों को थोड़ा घुमाकर नई दिशा मिल जाती है, जो सफलता के मार्ग की ओर ले जाने में मदद करती है। देखना आपको है कि आपकी जो रुचियां अभी हैं, वह आपके करियर के लिए कितनी मददगार हैं।

किस क्षेत्र में मिली उपलब्धियां

हम अपनी सफलताओं और विफलताओं से ही सीखते हैं। अपनी उपलब्धियों के पैटर्न को देखकर आप यह पता कर सकते हैं कि आपको आगे किस क्षेत्र में जाना है। आपकी उपलब्धियां ही करियर के लिए मददगार होती हैं। जैसे कि आपने विज्ञान में काफी उपलब्धियां हासिल की हैं, तो आपके लिए विज्ञान क्षेत्र में बेहतर भविष्य हो सकता है। शुरुआती दौर में उपलब्धियां कम और साधारण भी हो सकती हैं, लेकिन छोटी-छोटी उपलब्धियों से ही आपके भीतर छिपे गुणों के बारे में पता चल सकता है, जो आपके विकास में सहायक होगा।

व्यक्तित्व की विशेषताएं

हम जिस चीज से संतुष्ट होते हैं और जो काम करने में सहजता महसूस करते हैं, वही बेहतर रूप से कर सकते हैं। जिस काम को हम रुचि के साथ आनंद लेकर करते हैं, उस काम में सफलता मिलना मुमकिन होता है। लेकिन जो काम हमें असहज या कठिन लगते हैं, जिन्हें करने से आत्मसंतुष्टि नहीं मिलती, उनमें सफलता मिलना आसान नहीं होता। अगर आप अपने व्यक्तित्व के अनुकूल काम चुनते हैं तो उसे करने में आपको आनंद भी आता है और संतुष्टि भी मिलती है। इसलिए ऐसा काम न चुनें जो आपके व्यक्तित्व के अनुरूप न हो।

कार्य की सरलता

हममें से ज्यादातर लोग जीवन में चुनौतियां स्वीकार करना चाहते हैं। हर कोई यह चाहता है कि उनके रोज के काम में कोई चुनौती मिल जाए जिससे कि उन्हें काम में ऊब न हो और यह महसूस हो कि वह दिन-प्रतिदिन अपने काम में आगे बढ़ते जा रहे हैं। पर अगर रोजाना के कामों में से 95 प्रतिशत काम चुनौती से भरे लगने लगें या आप उन्हें आसानी से कर पाने में खुद को अक्षम महसूस करें तो आप थकान और परेशानी से भर जाएंगे। इसलिए अधिकांश कार्य ऐसे होने चाहिए जिन्हें करने में हमें किसी प्रकार की परेशानी न हो। तभी हम उन कार्यों को सही और संतुलित ढंग से पूरा भी कर सकेंगे। अगर हम उनमें से 52 प्रतिशत कार्य भी पूरे कर लेते हैं तो संतुष्टि और ताजगी महसूस करेंगे।

योग्यता स्तर को जांचें

एक अच्छे करियर के लिए सहजता बहुत जरूरी है। जो काम आप कर रहे हैं वह कितनी आसानी के साथ कर पा रहे हैं, उसे करने में आपको कितनी सहजता महसूस हो रही है, यह भी अहम है। यदि जो काम हम कर रहे हैं, उसके लिए बहुत उच्च स्तर की योग्यता या निम्न स्तर की योग्यता की जरूरत है तो वह काम लंबे समय तक नहीं किया जा सकता। अपने पिछले प्रदर्शन के आधार पर आप अपनी योग्यता की जांच कर सकते हैं।

कैसे करें साकार सपने

अपने सपनों के प्रति अतिवादी नहीं होना चाहिए। यानी एकदम जैसा सोचा है पूरी तौर पर वही हो, यह जरूरी नहीं है। अगर हम अपना साहस व प्रयत्न जारी रखें तो अपने सपनों को साकार अवश्य कर सकते हैं। हमारा कार्यक्षेत्र कहीं न कहीं हमारे सपने से जडा होता है। बस हमें यह देखना है कि उसमें सफल होने के लिए हमें क्या-क्या करना चाहिए।

व्यक्तिगत कमजोरियां

हर व्यक्ति की कमजोरियां और चुनौतियां दूसरे से भिन्न होती हैं। इसलिए दूसरे से तुलना न करके अपनी व्यक्तिगत कमजोरियों को सुधारने के लिए कदम उठाने चाहिए। हम सभी एक दूसरे से भिन्न हैं। इसलिए अपनी तुलना दूसरे से करने पर हम सही कमजोरियों का पता नहीं लगा सकते। हमारी योजनाएं और स्थितियां व्यक्तिगत रूप से मेल खानी चाहिए। क्योंकि हर किसी के साथ एक जैसी स्थिति नहीं होती है। बेहतर होगा कि आप अपनी कमजोरियों को सुधारने और चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को अपने तरीके से तैयार करें। कई बार हमारी कमजोरियां भी हमारे लिए चुनौती बन जाती हैं, जो हमें आगे जाकर करियर को संवारने में मदद करती हैं। इस बात पर ध्यान देना जरूरी है कि मेरी जो कमजोरियां हैं, वे कहीं मेरे करियर विकल्पों पर बुरा प्रभाव तो नहीं डाल रही हैं। अगर हो तो उनका आकलन करके उन्हें दूर करने में ही समझदारी होगी।

खुद की परख

कई बार हमारे सामने एक या कई करियर विकल्प होते हैं। ऐसे में यह परखना भी जरूरी है कि हमारा व्यक्तित्व किस क्षेत्र के अनुकूल है। करियर विशेष के पक्ष-विपक्ष की सूची बनाकर यह तय करें कि वह आपके लिए अनुकूल है या नहीं। बेमेल करियर पर कभी भी विचार न करें। अगर आपका व्यक्तित्व करियर विशेष के लिए तकरीबन 75 प्रतिशत अनुकूल है तो ही विचार करें, अन्यथा नहीं, हम चाहते हैं कि सफलता की संभावना को अधिकतम और असफलता की आशंका को कम से कम करें।

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चिंता प्रबधन की कला

' यदि कोई मनुष्य सुख - दुःख की चिंता से ऊपर उठा जाये ,

तो आकाश की ऊँचाई भी उसके पैरों तले आ जाये। '

- शेख सादी

चिंता चिता समान है- यह कहावत सदियों से चली आ रही है। इसके बावजूद ऐसा एक भी सफल व्यक्ति ढूंढ़ना असंभव है, जिसे कभी कोई चिंता न हुई हो। यहां मैं दूसरों के दृष्टांत देने के बजाय स्वयं अपना अनुभव आपके साथ बांटना चाहूंगा कि अपनी चिंताओं और चिंताजनक परिस्थितियों को मैंने किस प्रकार सुलझाया। इससे पहले हमें चिंता और उसके कारणों को समझना होगा।

चिंता का कारण कभी भावनात्मक हो सकता है, कभी आर्थिक, कभी सामाजिक तो कभी निजी, पर चिंता घेरती सबको है। वैसे चिंता एक हद तक जरूरी भी है, क्योंकि यह हमें हमारे कर्त्तव्य और दायित्व के प्रति सजग करती है। अपने इस रूप में यह हमारी अच्छी मित्र होती है, लेकिन जैसे ही उससे आगे बढ़ती है खतरनाक शत्रु के रूप में बदल जाती है, क्योंकि यह हमारी समझ, निर्णय क्षमता और धैर्य के साथ-साथ शांति को भी नष्ट कर देती है।

अतः बेहतर यह है कि जितनी जल्दी हो सके, इससे मुक्त होने का उपाय करें। यह सवाल उठना लाज़िमी है कि चिंता के इतने सारे कारण हैं, इनके रहते इससे मुक्त कैसे हुआ जाए? इसमें भी दो राय नहीं है कि चिंता से मुक्ति के हजारों उपाय बताए जा चुके हैं, पर उन पर अमल नहीं हो सका। क्यों? शायद इसलिए कि चिंता से मुक्त क्यों रहें, इसकी वजह लोग नहीं जानते, प्रस्तुत है चिंता प्रबंधन के दस सूत्रः

1. जुड़ता कुछ भी नहीं

चिंता से हमारे जीवन में कोई सार्थक तत्त्व नहीं जुड़ता। चिंता करके न तो हम कुछ कर सकते हैं और न अपनी किसी उलझन का सार्थक जवाब ही हासिल कर सकते हैं। अलबत्ता यह हमें तमाम रोगों का शिकार बनाकर हमारे जीवन को घटाती है। यह न तो आपको आज के साथ न्याय करने देती है और न आने वाले कल के साथ। चिंता से ग्रस्त लोग अक्सर अतीत की मुश्किलों को बढ़ा-चढ़ाकर देखते हैं और उपलब्ध अवसरों के साथ भी न्याय नहीं कर पाते हैं। इस तरह यह कुल मिलाकर केवल समय की बरबादी ही है।

2. व्यर्थ है चिंता

चिंता कल की गयीं त्रुटियों को मिटा नहीं सकती। इससे वर्तमान या भविष्य के प्रश्नों का उत्तर नहीं मिल सकता और न कुछ किया ही जा सकता है। इसलिए कहा जा सकता है कि किसी भी तरह चिंता समस्या का हल नहीं होती है।

3. समझ पर प्रभाव

सफल वही लोग होते हैं, जो पूरी तरह आज और अभी में जीते हैं। जो लोग चिंता में डूबे होते हैं, वे कभी भी वर्तमान समय में नहीं रह पाते। वे या तो बीते कल की कुंठाओं में जीते हैं या फिर भविष्य की आशंकाओं में। इससे बुद्धि उनका पूरा साथ नहीं दे पाती और उनकी बौद्धिक क्षमता क्षीण होती चली जाती है।

4. कोई तार्किक कारण नहीं

चिंता अतार्किक है। क्योंकि यह व्यर्थ, अनुत्पादक और अकारण होती है। यह नकारात्मकता में आस्था, दुखद स्थितियों के प्रति भरोसा और हार में विश्वास का प्रतीक है। हम नहीं जानते कि कल हमारे लिए क्या लाने वाला है, तो इसकी फिक्र भी क्यों करें? उन बातों की चिंता आखिर क्यों की जाए, जिनके बारे में हम कुछ भी नहीं जानते हैं। इसलिए चिंता करने का कोई उचित कारण नहीं है।

5. समस्याओं की जननी

भविष्य की आशंकाओं व भय पर अपना ध्यान जितना ज्यादा केंद्रित करेंगे, वह आपके लिए उतने ही बड़े होते जाएंगे। अगर किसी बात का डर न भी हो और उस बारे में लगातार सोचते रहें तो न होते हुए भी वह हो जाता है।

6. कम होती है सतर्कता

यह हमारे कर्त्तव्य से हमें विमुख करती है, अत्यंत महत्त्वपूर्ण चीजों से हमारा ध्यान हटा देती है। जीवन की सक्रियता और उसके लुत्फ में यह बेवजह दखल देती है। बिन बुलाए मेहमान की तरह हमारे जीवन में केवल तनाव का कारण बनती है। यह हमें थकान और हताशा से भर देती है।

7. बढ़ती हैं कठिनाईयां

भविष्य की कठिनाईयों की जब हम चिंता करते हैं तो उनका आकार घटने के बजाय बढ़ता जाता है। वैसे भी हम सिर्फ आज की समस्याओं को ही हल कर सकते हैं। जब हम परिणामों की चिंता में घुलते हैं तो हमारे सामने ऐसी समस्याओं का पहाड़ खड़ा हो जाता है, जिनका समाधान हो ही नहीं सकता है। क्योंकि समाधान उन समस्याओं का होता है जो वास्तव में अस्तित्व में होती हैं। जिस समस्या का अस्तित्व ही नहीं है, उसका समाधान भी कोई कैसे करेगा?

8. बढ़ता है भटकाव

जीवन छोटी-छोटी आकांक्षाओं, उपलब्धियों से बहुत बड़ी चीज है। जबकि हमारी चिंताएं साधारण वस्तुओं के प्रति होती हैं। भोजन, कपड़ा, मकान, गाड़ी या कुछ उपलब्धियों या विफलताओं को लेकर ही हम चिंता करते हैं। अगर हम इन चीजों में जीवन की पूर्णता ढूंढ रहे हैं और उनके लिए अपना सुख-चैन नष्ट कर रहे हैं तो बड़ी गलती कर रहे हैं। जीवन की सार्थकता इसके उद्देश्य की पूर्णता में है। जब हम किसी बात के प्रति चिंतित होते हैं, तो अपने उद्देश्य की दिशा में कार्य नहीं कर पाते हैं। चिंता हमें जीवन की मुख्यधारा से ही भटका देती है।

9. स्वास्थ्य के लिए विष समान

जब हम चिंता में होते हैं, तो शरीर का पूरा तंत्र इससे प्रभावित होता है। खून के थक्के जमने की प्रक्रिया बढ़ जाती है, और रक्तचाप भी बढ़ जाता है, ये चीजें हृदयाघात (हार्ड अटैक) की आशंका बढ़ा देती हैं। इससे कब्ज, डायरिया व गैस की संभावना भी बढ़ जाती है। चिकित्सा विज्ञान का मानना है कि चिंता करने वालों का जीवन निश्चिंत लोगों की तुलना में कम होता है। योग गुरु बाबा रामदेव कहते हैं कि ईश्वर ने हमारा निर्माण ही ऐसा नहीं किया है कि हम चिंता और भय में जिएं । चिंता करना असल में हमारी अपनी प्रकृति के विरुद्ध है। यही 'कारण है जो चिंता को अत्यंत घातक बनाता है।

10. अपनों को कष्ट

चिंता हमारे शरीर, मन व आत्मा को कई टुकड़ों में बांट देती है। जब हम अपना ध्यान अपनी चिंताओं पर केंद्रित कर देते हैं तो हम उन चीजों को भूल ही जाते हैं, जो वास्तव में महत्त्वपूर्ण होती हैं। यहां तक कि जिनका ख्याल रखना हमारे लिए जरूरी है, उन्हें भी हम भूल जाते हैं। चूंकि हम दुःखी होते हैं, इसलिए हमारे चाहने वालों का दु:खी होना भी स्वाभाविक है। विश्व की सबसे प्राचीन चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की मान्यता है कि उपचार रोग के लक्षण का नहीं, उसके कारणों का होना चाहिए। इससे रोग समूल नष्ट हो जाता है, और उसके फिर उभरने की आशंका नहीं बचती है।

इसके कारण आप जान चुके हैं। अब यह आपके हाथ में है कि अपनी चिंताओं के साथ आप कैसा व्यवहार करें। याद रखें कि चिंता जीवन का एक हिस्सा है। लेकिन इसे एक निश्चित हद से ज्यादा बढ़ाना नहीं है। हमें अपनी चिंताओं पर नियंत्रण रखना है। चिंता को इस बात की अनुमति नहीं देनी है कि वह हमारे जीवन की नियंता बन जाए, क्योंकि यह कीमत के रूप में हमसे पूरा जीवन वसूलती है। चिंता प्रबंधन

मैंने आरंभ में भी कहा है कि चिंताओं के संबंध में मैं दूसरों की नहीं खुद अपने अनुभवों के आधार पर आप से कुछ कहना चाहूंगा। जब भी किसी कारण से मुझे चिंता हुई है अथवा किसी परिस्थिति को मैंने चिंताजनक माना है तब मैंने कभी भी अपने से बड़ों को उस परिस्थिति में लाने की चेष्टा तब तक नहीं की जब तक कि मुझे ऐसा न लगे कि मेरी चिंता से अवगत होने से मेरे वरिष्ठों को भी कोई लाभ हो सकता है अथवा चिंता से निकलने का मार्ग निकालने में केवल उनकी सहायता ही वांछित है। सरल शब्दों में कहूं तो यह एक आजमाया हुआ सत्य है कि चिंता बांटने से कम होती है परंतु इसे किसके साथ बांटें? सबसे उचित है कि अपने परम विश्वसनीय लोगों के साथ आप अपनी चिंता पर चर्चा करें, और जो समाधान सभी लोग आपको सुझाएं उस पर गंभीरता से, परंतु बिना घबराए अमल करें।

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प्रसन्न रहना सीखें

' चित्त के प्रसन्न रहने से सब दुःख नष्ट हो जाते हैं। जिसे प्रसन्नता प्राप्त हो जाती है ,

उसकी बुद्धि तत्काल स्थिर हो जाती है। '

- श्रीमद्भगवद्गीता

कभी न कभी सबके जीवन में निराशा भरे पल आते हैं। लगता है सब नीरस और उबाऊ होता जा रहा है, कुछ नया नहीं है। आज की जबरदस्त प्रतिस्पर्धी स्थितियों में ऐसा होना आवश्यक है। अधिकतर लोग अपने काम से संतुष्ट नहीं दिखते। कभी काम मनोनुकूल नहीं होता, कभी काम समय पर पूरा नहीं होता, कभी सहकर्मी परेशानी का कारण होते हैं तो कभी बॉस की झिड़कियां हताश करने को काफी होती हैं। दरअसल ये स्थितियां हमारे द्वारा रचित हैं। हम यह सोचकर स्वयं को सही ठहराते हैं कि स्थितियां विपरीत हैं, इसलिए हम अप्रसन्न हैं। लेकिन कभी बैठकर इस बात पर भी विचार करें कि कहीं ऐसा हमारे नकारात्मक स्वभाव के चलते तो नहीं हो रहा। संतुष्टि असंभव चीज नहीं है। स्थितियां सदैव हमारे पक्ष में हों, यह नहीं हो सकता, लेकिन संतुष्ट होना बहुत हद तक अपने हाथ में लिया जा सकता है। इसके लिए अपनाएं ये 10 तरीके:

1. सकारात्मक सोच रखें

सकारात्मक सोच बुरी से बुरी स्थितियों में भी हमारा हौसला बनाए रखती है। अगर काम की बात हो तो कम से कम इससे हम अपने काम में खुशी तलाश सकते हैं। जो भी होगा, हमारे हक में होगा और हम मेहनत करेंगे तो उसका परिणाम अच्छा ही होगा, यह सोच हमारे भीतर लगातार लड़ने और स्थितियों का मुकाबला करने की ताकत को जिंदा रखती है।

2. अपना दृष्टिकोण बदलें

ज्यादातर लोग जो अपने वर्तमान काम से अप्रसन्न दिखते हैं, दरअसल वे खुद भी सुबह 9 से शाम 5 वाली मानसिकता से घिरे होते हैं। वे ठीक 9 बजे दफ्तर पहुंचते हैं, कार्य करते हैं और 5 बजे उठकर चले जाते हैं। यह दिनचर्या किसी भी काम को नीरस बनाने के लिए काफी हैं। काम भले ही रुचिपूर्ण ना हो, लेकिन जब आप अपने भीतर जिम्मेदारी का अनुभव करते हैं तो जो भी काम कर रहे हैं, उसमें खुशी तलाश ही लेते हैं। रचनात्मक कार्य को भी अगर बेमन से किया जाए तो वह व्यर्थ है, जबकि नीरस कार्यों को भी थोड़ा रचनात्मक बनाकर किया जाए तो उसमें आनंद मिलता है। स्वयं को महत्त्वपूर्ण समझना तथा सर्वोत्तम ढंग से कार्य करने की मानसिकता ऊब से बचाती है। जरा सोचें, कंपनी में आप, सिर्फ कर्मचारी हैं, लेकिन क्या इसके बावजूद आप महत्त्वपूर्ण नहीं है? यदि नहीं, तो कंपनी आपकी सेवाएं क्यों ले रही है? एक बार अगर अपने मन-मस्तिष्क में इस विचार को जगह दें तो काम में संतुष्टि भी आपको मिल ही जाएगी।

3. कार्य के प्रति कृतज्ञ रहें

माना कि आप वर्तमान काम-धंधे से संतुष्ट नहीं है, लेकिन अपने आस-पास दृष्टि दौड़ाइए। क्या हजारों प्रतिभावान लोग एक नौकरी की तलाश में भटकते नहीं दिखते? क्या लगातार बढ़ती जनसंख्या के हिसाब से रोजगारों में बढ़ोतरी नहीं हो रही? ऐसे हालात में इस बात के लिए कृतज्ञ होना चाहिए कि कम से कम आपके पास कुछ तो है जिससे आप जीवन की न्यूनतम जरूरतें पूरी कर पा रहे हैं। बच्चों का पालन-पोषण, पढ़ाई, करियर से लेकर माता-पिता को सहारा देने जैसी जिम्मेदारियां निभाते वक्त दुर्भाग्य से रोजगार भी समाप्त हो जाए तो क्या होगा?

क्या जॉब मार्केट में स्थितियां वाकई इतनी बेहतर है? क्या तुरंत दूसरी नौकरी मिलना आसान है? शायद हां या शायद नहीं भी, क्योंकि यहां सब कुछ अनिश्चित है। एक नौकरी अपने साथ सम्मान, सामाजिक प्रतिष्ठा, पैसा और सुख-सुविधा लाती है, इसलिए जब कभी निराश हों, उन स्थितियों के बारे में सोचें, जब आपके पास काम नहीं था। सोचें कि लाखों लोग किन परिस्थितियों में जी रहे हैं? आप उनसे अधिक अच्छी दशा में तो है। ऐसे विचार आपको सकारात्मक सोच प्रदान करेंगे।

4. आत्म - आलोचना से बचें

ज्यादातर लोग बेहद संवेदनशील होते हैं, खास तौर से तब, जब वे कुछ गलत कर जाएं। अगर आप जिम्मेदारी से अपना कार्य संभाल रहे हैं, तो भी आपके कार्य में कभी कोई गलती रह सकती है। स्पष्ट है काम करेंगे तभी गलतियां भी होंगी। लेकिन एक गलती का अर्थ खुद को अयोग्य ठहरा देना नहीं है। अनावश्यक रूप से अपनी आलोचना करने के बजाय सोचें कि इस गलती ने भविष्य में आपको और बेहतर बनने के लिए प्रेरित किया है। सफलता मिलने पर अपनी सराहना भी करें। रोजमर्रा के कार्यों में जो भी अच्छा करें, जरूरी नहीं कि वह महत्त्वपूर्ण लोगों की नजर से गुजरे ही इससे महत्वपूर्ण यह समझना है कि आप खुद अपने कार्य के सबसे बड़े पारखी हैं।

5. सहकर्मियों को क्षमा करें

क्षमा करना कठिन है, विशेषकर तब, जब मामला ऐसे लोगों का हो, जिन्हें आप रोज देखते हों। कई बार सहकर्मियों के बीच छोटी-छोटी लड़ाइयां, ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा, राई का पहाड़ बन जाती हैं। ऐसी स्थितियों को न पैदा होने दें, अगर कभी ऐसी स्थिति आए भी तो याद रखें कि जीवन हर चीज से बड़ा है। और खुश तभी रहा जा सकता है जब आपके आस-पास का वातावरण सहज हो। इस सहजता को तभी बनाए रखा जा सकता है, जबकि अपने सहकर्मियों की छोटी भूलों के लिए उन्हें माफ कर सकें। तभी आप अपनी त्रुटियों के लिए खुद को भी माफ करना सीख सकेंगे।

6. अपने मूल्यों के पक्ष में खड़े रहें

कुछ विपरीत परिस्थतियों और लोगों के कारण अगर आप परेशान हैं, काम नहीं कर पा रहे हैं तो प्रसन्नता या संतुलित जैसे शब्द आपके लिए निरर्थक हो जाते हैं। ऐसे वातावरण में जरूरी है कि संतुलित ढंग से अपनी बात रखी जाए। अन्याय के खिलाफ और अपने अधिकारों के लिए बोलना भी जरूरी होता है। लोग आमतौर पर इसलिए चुप रह जाते हैं कि उनके बोलने से कहीं स्थिति और न बिगड़ जाए। यदि ऐसी स्थितियों से आपकी कार्यक्षमता पर प्रभाव पड़ रहा हो तो अवश्य बोलें। बात को सीधे-स्पष्ट और सहज ढंग से कहना सीखें, बिना हिचके कि कहीं इससे आपकी नौकरी पर तो आंच नहीं आएगी। इससे न सिर्फ आपके प्रति अन्याय रुकेगा, बल्कि आप दूसरों को भी प्रेरित कर सकेंगे।

7. अनर्गल बातें न करें

व्यर्थ वाद-विवाद, गैर-जरूरी बातें आत्मविश्वास के साथ ही मित्रता और टीम भावना को भी नुकसान पहुंचाती हैं। हर ऑफिस की एक कार्य संस्कृति होती है और उसके अनुसार ही व्यवहार किया जाना चाहिए। व्यर्थ बातचीत न सिर्फ उत्पादन क्षमता को कम करती है, बल्कि निराशा, आलोचना और खराब कार्यस्थितियों को भी जन्म देती है। सहकर्मियों के बीच आप सम्मान तभी हासिल कर सकते हैं और अपनी आलोचना से तभी बच सकते हैं जब उनकी ऐसी किसी बातचीत का हिस्सा न बनें। दूसरों की आलोचना न सुनें, किसी भी ऐसी स्थिति का विरोध करें, जिनके बारे में आपको लगता है कि वे अनुचित एवं अन्यायपूर्ण है।

8. मित्रवत व्यवहार करें

एक सीधी और सरल बात यह है कि आप अपने हर कार्य को पसंद कर सकते हैं, बशर्ते आप अपने सहकर्मियों को पसंद करते हों। इसका अर्थ यह नहीं है कि साथ में काम करने वाला हर कर्मचारी आपका प्रिय ही हो, लेकिन कम से कम एक जरूरी मित्रवत व्यवहार तो किया ही जा सकता है। सभी लोगों से आप समान रूप से अच्छा व्यवहार नहीं कर सकते क्योंकि सभी मित्र नहीं होते, लेकिन यदि आप साथ कार्य कर रहे हैं तो कार्य के लिए बेहतर माहौल बनाने के लिए आपको सचेत प्रयास करना होगा। अपने सहकर्मियों को सहयोग प्रदान करने से ऐसी कार्यस्थितियां पैदा की जा सकती हैं। प्रोफेशनल ढंग से इस मित्रवत व्यवहार का अनुसरण किया जाना चाहिए।

9. बदलाव के लिए तैयार रहें

आजकल लगभग हर विभाग में कर्मचारियों के सामने नई-नई चुनौतियां हैं। भूमंडलीकरण के इस दौर में जहां रोज-रोज नई औद्योगिकी आ रही है, वहां अगर यह सोचकर बैठ जाएं कि अब कुछ नहीं सीखना है तो आगे बढ़ना ही मुश्किल हो जाएगा। नई तकनीकें सीखने, खुद को रोज अपडेट करने, अपने मौजूदा कार्य से बिल्कुल अलग किसी कार्य को करने जैसी चुनौतियां तो स्वीकार करनी ही पड़ती हैं। नई जिम्मेदारियों और कार्यों के प्रति जिज्ञासु बनें, न कि उनसे भागने की कोशिश करें। हर रोज नया सीखने के लिए बिल्कुल बच्चे जैसा मन बनाए रखेंगे तो अपने काम में सचमुच खुशी पाएंगे। सोचें कि आप हर नई चीज़ को थोड़े ही प्रयास में सीख जाएंगे, उसे व्यवस्थित कर लेंगे। जरूरी नहीं कि हर बदलाव अनुकूल हो। यह विपरीत भी हो सकता है, लेकिन हर चुनौती को स्वीकार करने का हौसला रखना भी जरूरी है।

10. उठाइए जोखिम

अगर आप ऊपर दिए गए तमाम नौ तरीके आजमा सकते हों और अपने ढंग से काम का मजा ले सकते हों तो ठीक है, अन्यथा थोड़ा जोखिम उठाइए और अपने काम को बदलने का प्रयास कीजिए। अगर वास्तव में ऐसा लगे कि अब स्थितियां काबू से बाहर हो रही हैं या असहनीय हैं, आपके सारे प्रयास निष्फल हैं तो छुट्टी कीजिए, काम दिए। यह जरूरी भी है। हर किसी को कभी न कभी अपने कार्य को बदलना होता है, इसलिए इससे पीछे मत हटिए। याद रखिए, कार्यस्थल में खुश रहने का अर्थ है हर कार्य को सफलतापूर्वक और बेहतर ढंग से करना। सिर्फ कुर्सी पर बैठने, कुछ घंटे ऑफिस में बिताने या लगातार काम करते रहने से कोई खुश नहीं रह सकता, जबकि वास्तव में सार्थक परिणाम न मिलें।

थोड़े सचेत प्रयास, थोड़ी सकारात्मकता और थोड़ी रणनीति, इन सबसे ही हासिल कर सकते हैं अपने कार्य में स्वाभाविक आनंद।

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हमेशा प्रसन्न रहने के

सात तरीके

' प्रत्येक अनुकरणीय बात से सीखें , अपने समय का सदुपयोग करें।

यदि दूसरों से ईष्या न करें , तो और अधिक प्रसन्नता पायेंगे। '

- अज्ञात

सभी लोग अपने-जीवन में न जाने क्या-क्या ढूंढ़ते रहते हैं, जीवन से न जाने क्या-क्या पाने की आशा रखते हैं। यह सोचते हैं कि अगर हमें यह हासिल हो गया तो हम जीवन-भर सुखी रहेंगे। लेकिन इस चक्कर में अक्सर छोटी-छोटी खुशियां मुट्ठी से रेत की तरह फिसल जाती है। अगर आप अपनी सोच को बदल लें और यहां बताए जा रहे सुझावों को अपनाएं तो हमेशा प्रसन्न रह सकते हैं।

सदा ध्यान रखें कि सदा प्रसन्न रहना आपके व्यक्तित्व को अधिक प्रभावशाली बना सकता है। सोचिए, आपके जान पहचानवालों में आपको किनसे मिलना अधिक अच्छा लगता है? उनसे जो हमेशा मुंह बनाये रखते हैं अथवा उनसे जो प्रसन्न दिखते हैं।

गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं, 'त्याज्यं न धैर्य विधुरेपि काले' अर्थात् किसी भी समय हो उसमें व्यग्र अथवा चिन्हत न होकर प्रसन्नता और धीरज से व्यवहार करना चाहिए।

1. आपको अधिकार है प्रसन्न रहने का

अगर आप यह सोचते हैं कि खुशी कहां है इस जीवन में मेरे लिए तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि आप वाकई प्रसन्न नहीं रह सकते। आप स्वयं को जिस तरह का संदेश देते हैं, आपका जीवन उसी तरह चलता है। अगर आप स्वयं को प्रसन्न रहने का हकदार नहीं समझते हैं तो भला आप कैसे प्रसन्न रहने की आशा कर सकते हैं? इसलिए उचित होगा कि अपनी सोच बदलें और खुद से कहें कि आप प्रसन्न रह सकते हैं और आप आज भी प्रसन्न हैं।

2. स्वीकारें जैसे भी हैं आप

बिना सोचे, कि आप कैसे हैं- अच्छे, बुरे या आकर्षक!! नहीं, आप जैसे हैं, उसे प्रसन्नता से स्वीकारें। यह भी माने कि जो कुछ भी आप कर सकते हैं, वह अच्छे से अच्छा और सर्वश्रेष्ठ भी हो सकता है।

सहस्त्राब्दि के महानायक के रूप में विख्यात फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन को आरंभ में आकाशवाणी ने इसलिए अस्वीकार कर दिया था क्योंकि उनकी आवाज़ बहुत भारी थी। बाद में इसी आवाज़ ने मनोरंजन की दुनिया में झंडे गाड़ दिये। फिल्मों में पौरुष का प्रतीक माने गये उनके समकालीन धर्मेंद्र को कई फिल्म निर्माताओं ने इसलिए ठुकरा दिया था कि वह खिलाड़ी जैसे दिखते थे। दोनों कलाकारों ने अपने साक्षात्कारों में कहा है कि उन्हें कभी भी अपनी क्षमता या व्यक्तित्व पर संदेह नहीं हुआ; वे अपने काम में सदा अपना सौ फीसदी देते हैं।

3. जहां भी रहें प्रसन्न रहें

आज प्रसन्न रहने का तात्पर्य है यह मानना कि आप आज जहां भी हैं, वहां आराम से हैं। आप नहीं जानते कि आपके जीवन के कल का आरंभ कैसे होने वाला है, इसलिए आज जिस भी स्थिति में, जहां भी हैं, वहां खुश रहें। भविष्य में क्या होने वाला है। यह कोई नहीं जानता, लेकिन भविष्य की चिंता में आज मिलने वाली छोटी-छोटी खुशियों से हाथ न धो बैठे।

4. पहचानें अपने जीवन मूल्य

आपके भी मन में जिन्दगी से कुछ अलग पाने की, कुछ अलग करने की चाह जागी होगी। अगर आपका जवाब है बहुत बार, मगर कर नहीं पाए, तो इसमें दु:खी होने की कोई बात नहीं है। ऐसा उत्तर देने वाले आप अकेले नहीं हैं। दुनिया भर में आप जैसे अनगिनत लोग हैं। दौड़-भाग वाली जिंदगी जीने वाले लोग, जिनके पास अपने लक्ष्य और छोटी-छोटी इच्छाओं को पूरा करने का समय भी नहीं है, पर वे जीवन-भर इस पर खेद नहीं करते कि वे अपनी सारी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाए। आप भी इसी तरह सकारात्मक सोच अपनाएं। अपने जीवन के मूलभूत मूल्यों में से आप किसे कितना बड़ा मानते हैं, उन्हें किस तरह आंकते हैं, उन मूल्यों में आपकी क्या प्राथमिकता है, यह आप पर निर्भर करता है, अब तय आपको करना है कि आप अपने जीवन मूल्यों को किस तरह निभाते हैं। जिस दिन आप जीवन को अर्थपूर्ण ढंग से जीना सीख जाएंगे, प्रसन्नताएं उसी पल से आपकी झोली में सिमट जाएंगी।

अपनी उत्सुकता को ऊंचे स्तर पर रखने वाला व्यक्ति शांत बैठकर सोच-विचार करने और पढ़ने-सीखने के कामों में जीवन का अर्थ पा सकता है, जबकि लोगों के बीच स्वीकारे जाने को अधिक आंकने वाले और उत्सुकता को कुछ खास न मानने वाले को किताबों से भरी जिंदगी के बजाय लोगों से घिरी जिन्दगी अधिक अर्थपूर्ण लगती है। अर्थपूर्ण जीवन वास्तव में वह है, जिसमें से आप दिखावे को निकाल देते हैं। सिर्फ उन बातों पर दृष्टि डालते हैं जो जरूरी होती हैं और फिर उनके अनुसार अपना जीवन जीते हैं, न कि दूसरों को आवश्यक लगने वाली चीजों के अनुसार।

5. अपने जीवन को सराहें

आनंदित रहने के लिए अपने जीवन की उपलब्धियों को सराहना भी सीखें। फिर चाहे वह आपका अच्छा स्वास्थ्य हो, नौकरी हो, अच्छा रहन-सहन हो, घर हो, प्रतिदिन के भोजन के प्रबंध की चिंता न होना हो व परिवार का पूरा सहयोग और प्यार मिलना हो, अगर ये सब बातें आपके जीवन में हैं तो आपको आभारी होना चाहिए अपने जीवन के प्रति। इन्हीं सब मापदंडों से आप प्रसन्न भी रह सकते हैं। यह नहीं कि हो नहीं है उसका शोक मनाते हुए दुखड़ा रोते रहें, बल्कि जो जीवन से आपको मिला है, उसके आभारी हों। साथ ही आप वर्तमान में जिएं। अगर किसी को यह पता है कि उसके जीवन के सिर्फ 90 दिन बचे हैं तो वह उन दिनों को बेहतर बनाने और जीने में समय लगा देता है। लेकिन ऐसे व्यक्ति जिसे यह नहीं पता कि वह दूसरे ही दिन इस दुनिया से चला जाएगा, वह भविष्य की सोच में अपने वर्तमान को उत्तम नहीं बना पाता। इसलिए कल किसने देखा है, यह सोचें और अपने वर्तमान में जीते हुए अपने आज को बढ़िया और सुदृढ़ बनाएं। आपको जैसा जीवन मिला है, उसमें खुश रहें और उसे स्वीकारते हुए अपने जीवन को आनंदमय बनाएं।

6. सहायता भी मांगें

अपनी समस्याओं का निवारण हमेशा स्वयं ही करने की प्रयास न करें। आपकी जो समस्या है, उसे दूसरों के साथ बांटें और मदद मांगें। कुढ़-कुढ़कर न जिएं। इस तरह आप अपनी समस्या का निवारण कभी भी नहीं कर पाएंगे। दूसरा संभवतः आपको बेहतर और अच्छा रास्ता सुझाए, इसलिए सहायता मांगने में पीछे न हटें। मदद सिर्फ आर्थिक ही नहीं, बहुत तरह से की जा सकती है। कई बार व्यक्ति ऐसी परेशानी में होता है, जब उसे सिर्फ नैतिक सहयोग की जरूरत होती है, जो वह स्वयं को नहीं दे सकता है, ऐसे में आप दूसरों का सहयोग लें। आवश्यकता होने पर दूसरों को अपने जीवन में जोड़ने की कोशिश करें।

हममें से अधिकतर लोग दूसरों से मदद मांगने में झिझक महसूस करते हैं, क्योंकि हम दूसरों पर अनावश्यक बोझ नहीं डालना चाहते। लेकिन ऐसा नहीं करना चाहिए। अगर आपसे कोई सहायता मांगे तो क्या आप नहीं करेंगे? यदि आप सहायता मांगने पर किसी मदद कर सकते हैं तो आप भी आवश्यकता पर किसी से मदद मांग सकते हैं।

7. दूसरों के लिए अच्छा करें

जब आप किसी दूसरे के लिए कुछ अच्छा काम करेंगे तो आपको जो प्रसन्नता मिलेगी, वह वास्तव में जीवन की सबसे बड़ी प्रसन्नता होगी। फिर चाहे आप किसी वृद्ध को सड़क ही क्यों न पार कराएं, या अपने बाद आने वाले के लिए दरवाजा ही पकड़ कर रखें या फिर किसी को बैठने के लिए सीट ही दे दें। ऐसी छोटी-छोटी चीजें आपको पल-पल की खुशी दे जाती हैं लेकिन ये सारी खुशियां आपके वर्तमान में रहती हैं न कि भविष्य में।

कहने का तात्पर्य यह है कि पहले आप अपने वर्तमान को आनंदमय बनाएं, कल किसी ने नहीं देखा। अगर आप अपनी समस्या के बारे में हर पल नहीं सोचेंगे तो वे अपने आप ही छोटी और महत्वहीन हो जाएगी। तो फिर देर किस बात की। अपने आज को संवारिए और जैसा जीवन मिला है, उसे स्वीकारते हुए हर पल हर क्षण को आनंदित होकर जीना सीखिए।

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प्रसन्नता के सत्र

' मन की प्रसन्नता से समस्त मानसिक और शारीरिक

कष्ट दूर हो जाते हैं। ' - समर्थ गुरु रामदास

· अपने आपसे प्रेम करें और स्वयं को महत्त्वपूर्ण समझें। आईने में अपने को देखकर मुस्कुराएं और खुद को पसंद करें।

· दूसरों से अपेक्षा न करें कि कोई आपके कार्य की तारीफ करे। ज़्यादा अपेक्षाएं रखने से आपको दु:ख के सिवाय कुछ हासिल नहीं होगा।

· खुद को सराहें। अपने कार्य को मन ही मन सराहना सीखें। इससे आत्मविश्वास बढ़ेगा।

· विनम्र बनें। सदैव सौम्य व शांत हो वार्ता करें। उच्च स्वर या कटु शब्दों का प्रयोग न करें।

· जरूरी है निजी खुशी। जब भी समय मिले दिन-भर में एक बार अवश्य वह कार्य करें जिसे करना आपको सबसे अच्छा लगता हो।

· अपने साथियों व बॉस की कमियां न निकालें, बल्कि अपनी कमियों की तलाश कर उन्हें दूर करने की कोशिश करें।

· क्रोध को नियंत्रित करना सीखें। जब ज्यादा गुस्सा आए तो तुरंत उस माहौल से दूर होकर किसी अन्य काम में लग जाएं।

· सकारात्मक सोच के महत्त्व को समझें। जो कुछ सोचें उसे सकारात्मक रूप में लें। कोई काम अगर पूरा नहीं होता या बात नहीं बनती तो उदास न हो। नकारात्मक विचार मन में न लाएं।

· अपनी पसंद को महत्त्वपूर्ण मानें, अपने पहनावे, कपड़ों के रंग, ये सब दूसरों की इच्छा से नहीं। बल्कि अपनी इच्छा से पसंद करें। दूसरों को बताने का मौका न दें कि आप पर क्या अच्छा लगता है।

· खुद का सम्मान करें और खुद को महत्त्वपूर्ण मानें।

· दूसरों के साथ वही व्यवहार करें जो आप अपने लिए चाहते हैं। फिर देखिए, उसका परिणाम कितना अच्छा होता है। बिना किसी सत्संग के, आध्यात्मिक किताबें पढ़े बगैर ही आप अपने मन में शांति अनुभव करेंगे। यह मानसिक शांति आपको रोज आत्मविश्वास और ऊर्जा से भर देगी और आप अपने घर, बाहर, ऑफिस सभी जगह एक मोहक व्यक्तित्व की महक बिखेर सकेंगे। मन अशांत रहेगा तो घर पर आकर भी आप अपने परिवार के करीब नहीं हो पाएंगे। जब घर पहुंचे तो ऑफिस के तनावों को लेकर नहीं और जब ऑफिस पहुंचे तो घर की चिंताओं को लकर नहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि जहां रहें वहीं पर ध्यान केंद्रित करें। भूतकाल की समस्याओं को भविष्य की आशंका न समझें। वर्तमान को संवारें, निखारें, सजाएं।

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तनाव मुक्त रहिए

' तनाव समस्याएं उत्पन्न करता है , समाधान नहीं देता।

तनाव को अपने मस्तिष्क में रखना ही व्यर्थ है। '

- मदर टरेसा

तनाव. एक वैयक्तिक प्रतिक्रिया है। कोई घटना किसी व्यक्ति में सकारात्मक भाव पैदा करती है, तो किसी के मन में नकारात्मक और घातक भाव पैदा करती है। इसके सकारात्मक पक्ष को लें तो कोई छात्र परीक्षा की घड़ी निकट होने पर बहुत बढ़िया ढंग से तैयारी कर लेता है, लेकिन बहुत अधिक मानसिक दबाव हानिकारक भी होता है।

तेजी से भागती हुई जिन्दगी में हम रोज ही किसी न किसी तनाव में अपना समय गुजारते हैं, हम तनाव को रोक तो नहीं सकते लेकिन उस पर नियंत्रण किया जा सकता है। यदि आप दबाव से निपटना नहीं सीखेंगे तो अनावश्यक रूप से विफलता, अस्वस्थता और अकाल-मृत्यु तक को न्यौता देंगे।

हमारे पास नियंत्रण क्षमता का होना आवश्यक है। इसके सहारे हम तनाव से घिरे रहने पर भी अपना जीवन संतोषजनक ढंग से बिता सकते हैं। आपके नियंत्रण से जो चीज बाहर हो, उसकी ओर ध्यान न देना सीखें। जिन चीजों को नियंत्रण में रख सकते हैं उन्हें नियंत्रण में रखना जानें। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि आपके जीवन की अधिकांश घटनाएं आपके नियंत्रण में होती हैं।

तनाव के प्रतिकार के लिए नीचे दिए गए उपायों पर अमल करें, जो आपकी तनाव नियंत्रण व्यवस्था को आधार उपलब्ध कराने में समर्थ हैं। आप इन्हें इस तरह से अपना लें कि ये आपके स्वभाव के अंग बन जाएं। आपने यह कर लिया तो आप दबाव के अधीन भी फल-फूल सकेंगे और तनाव का भी आनंद उठा सकेंगे।

हास्यबोध

शोध से यह सिद्ध हो गया है कि हंसने से दर्द निवारक एंडोरफिन नामक रासायनिक यौगिकों की मस्तिष्क में निस्सरण की मात्रा बढ़ जाती है। इससे 'पीड़ा में कमी' आती है और शरीर में रोग प्रतिरोध की क्षमता बढ़ जाती है। हंसने से आपको अपनी समस्याओं पर विचार करने की नई दृष्टि प्राप्त होती है- मुख्य रूप से तब जबकि आप अपने आप पर भी हंस सकने का सामर्थ्य रखते हों।

उचित आहार

तनाव के विरुद्ध अच्छा भोजन वह होता है जो प्राकृतिक हो, बें आपको कैलोरी की सही मात्रा प्रदान कर आपके शरीर का वजन भी आदर्श बनाए रखता है।

अन्य गतिविधियां

तनावे से छुटकारा पाने का एक अच्छा तरीका यह है कि कोई अन्य काम कर लिया जाए जिसमें कम से कम तनाव की संभावना हो और जिसमें मस्तिष्क तथा शक्तियों का कम प्रयोग हो।

यथार्थपरक लक्ष्य

यह अत्यंत आवश्यक है कि आप अपने लिए स्पष्ट तथा यथार्थपरफ लक्ष्य निर्धारित करें। उचित लक्ष्य निर्धारण के लिए अपने आपको जानें। आपको लोगों से संपर्क बढ़ाना अच्छा लगता है तो आपको अकेले बैठकर किए जाने वाले कार्य सुख नहीं दे सकते।

कार्य कौशल

आपको अपना सही काम मिल जाए तो आपको उसके लिए आवश्यक कौशल सहित अच्छी कार्यकुशलता का परिचय देना चाहिए। अपने काम के लिए पूरी तरह तैयार रहने से आपको अपने काम से कहीं अधिक संतोष प्राप्त होगा। इससे भी तनाव के स्तर में कमी आएगी।

सामाजिक संघर्ष

आप अपना यथेष्ट समय और शक्ति व्यय करके उचित संख्या में मित्र बनाए रखें और परिवार से भी सहयोग प्राप्त करें तो इससे भी दिन-भर में उपजे आपके तनाव में व्यापक कमी आएगी।

विश्राम

क्या आप दबाव की स्थिति में चैन और विश्रांति का अनुभव कर सकते हैं? यदि नहीं तो कुछ दिनों के लिए अवकाश पर जाएं। प्रकृति के प्रत्येक रूप को निहारें, चाहे वह आसमान में छिटकी चांदनी हो या बहता हुआ झरना। ये सब बातें आपके तनाव में कमी लाएंगी।

इस तरह तनाव के विरुद्ध आप अपने आपको सुदृढ़ बना सकते हैं। तनाव से मुक्ति की क्षमता के मामले में सजग रहकर आप लंबा जीवन जी सकते हैं। भविष्य को उदासीनता से न लें। आशावादी बनें और अपने जीवन के सुप्रबंध में सक्रिय भूमिका निभाएं। ऐसा करेंगे तो निश्चित रूप से तनाव से मुक्त हो सकेंगे।

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कार्य स्थल के

तनाव से कैसे निकलें ?

' बुद्धिमान व्यक्ति अपने विचारों को नियंत्रण में रखकर

सदा शांति से रहते हैं। ' - ऋग्वेद

वर्तमान समय में कार्यस्थल के माहौल के कारण कर्मचारियों को चिंता, तनाव या दबाव की स्थिति का सामना करना पड़ता है। इस वजह से जहां उत्पाद और मुनाफा बुरी तरह प्रभावित होते हैं वहीं कर्मचारियों को पेशागत हताशा या बेरोजगारी के खतरे का सामना करना पड़ता है। अध्ययनों में बताया गया है कि 80 प्रतिशत तनाव कार्यस्थल के माहौल के कारण पैदा होता है। तनाव से निबटने के लिए और करियर की दिशा में आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि आप तनाव प्रबंधन के सूत्रों को आजमाएं।

सबसे पहले आप इस बात का पता लगाएं कि क्या आप तनाव की स्थिति में हैं, फिर तनाव के कारण का पता लगाएं। कार्यस्थल में तनाव के स्रोत अलग-अलग हो सकते हैं, कुछ तनाव के पीछे कर्मचारियों की भूमिका होती है तो कुछ निश्चित पेशे के साथ तनाव अनिवार्य रूप से जुड़ा रहता है, और दूसरे तरह के तनाव कार्यस्थल के माहौल की वजह से पैदा होते हैं।

कर्मचारियों के लिए अनुत्पादक सुविधाएं या अतिरिक्त श्रम के बदले कम वेतन जैसी परिस्थितियों के चलते तनाव पैदा होता है।

कार्यस्थल का खराब माहौल, निर्धारित समय पर कार्य परा को दबाव आदि के चलते भी कर्मचारियों का तनाव बढ़ सकता कर्मचारियों को जिन वजहों से तनाव का सामना करना पड़ सकता उनकी एक सूची नीचे दी जा रही है:

1. पदोन्नति न होना

2. अत्यधिक जवाबदेही

3. प्रोन्नति होना

4. निर्णय लेने की प्रक्रिया से बाहर होना

5. अपनी स्थिति को लेकर कर्मचारियों की अनिश्चितता

6. सहकर्मी, वरिष्ठों या मातहतों के साथ विवाद

7. अपने कार्य को मान्यता, न मिलने से उपजी हताशा

8. अनवरत बदलाव

9. दायित्वों के बारे में अस्पष्ट जानकारी

10. कठोर नियमों के साथ कार्यस्थल का प्रतिकूल माहौल

अच्छी तरह विश्लेषण करने के बाद अगर आपको ऐसा लगता है कि कार्यस्थल की वजह से आप तनाव में रहते है तो खुद को तनाव मुक्त रखने के लिए आप कुछ सूत्र अपना सकते हैं। यहां ऐसे ही कुछ उपयोगी सूत्रों की चर्चा की जा रही है।

· अपने माहौल में किस बात से आपको तनाव महसूस होता है, उसका पता लगाएं और अपनी भावनात्मक एवं शारीरिक प्रतिक्रिया पर गौर करें। यह समझकर समस्या को नजरअंदाज न करें कि यह अपने आप ठीक हो जाएगा। ऐसा करने पर स्थिति और भी बिगड़ सकती है।

· अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया की सघनता को कम करें। अपन इर्द-गिर्द के तमाम लोगों को संतुष्ट करने की कोशिश न करा अपनी प्राथमिकताएं निर्धारित करें। यह समझ लें कि जितने काय आप करते हैं, वे सबके सब महत्त्वपूर्ण नहीं होते। चीजों के सकारात्मक पहलू की तरफ ध्यान केंद्रित करें और नकारात्मक पहलू की उपेक्षा करें।

· शिराओं को तनावमुक्त बनाने के लिए ध्यान की पद्धति का प्रयोग करें। गहरी सांस लेकर भी स्वयं को तनाव युक्त रखा जा सकता है। प्रतिदिन केवल 10 मिनट ध्यान का अभ्यास करते रहने से भी तनाव को दूर रखा जा सकता है।

· धूम्रपान और एलकोहल से दूर रहें। सिगरेट या शराब का सेवन करने से तनाव घटने की बजाय बढ़ता ही है। निर्धारित समय पर सोना जरूरी है और यह भी सुनिश्चित करें कि आपकी नींद में खलल न पड़े।

· ऐसे लोगों से मेल-जोल बढ़ाएं, जो मानसिक रूप से आपको प्रेरित करते हों।

· समय का सही तरीके से उपयोग कर तनाव को दूर किया जा सकता है। एक कहावत है- ' समय ही धन है।' निम्नलिखित तरीके अपनाकर समय का सदुपयोग किया जा सकता है:

1. आप जो समय की रूपरेखा बनाएं उसका उपयोग निर्णय लेने के उपकरण के रूप में करें।

2. अपने समय की रूपरेखा बनाते समय लचीला रुख अपनाएं।

3. निश्चित समय के भीतर संसाधनों का अधिक से अधिक प्रयोग करें।

4. समय की रूपरेखा बनाते समय लक्ष्य को स्पष्ट रखें।

5. समय की रूपरेखा में प्राथमिकताओं को परिभाषित करें।

6. समय की रूपरेखा बनाते समय क्षमता से अधिक कार्यों को निपटाने का निश्चय न करें।

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कार्य संतुष्टि और सफलता

' प्रत्येक कार्य को साहस , धैर्य तथा शांति के साथ समय

से पूर्ण करना ही सफलता का सुनिश्चित मार्ग है। '

- स्वामी रामतीर्थ

संसार की सबसे बड़ी स्टील कंपनियों आर्सेलर स्टील और मित्तल स्टील के मालिक सादलपुर राजस्थान में जन्में प्रख्यात उद्योगपति लक्ष्मी मित्तल को पारंपरिक इस्पात कारोबार में आनंद नहीं आया। उन्होंने कामकाज के ढर्रे में बदलाव लाकर बीमार उद्योगों का अधिग्रहण करके उनका कायाकल्प करने में जी-जान से मेहनत की। वह कहते हैं, ' घाटे में चलनेवाले उद्योगों को फिर से लाभ में लाने की चुनौती में मुझे संतुष्टि तथा सुख मिलता था जिसके साथ ही मिलती गयी सफलता। '

यह कहने से अधिक उपयुक्त कुछ नहीं है कि यदि आप अपने काम से प्रेम करते हैं तो आप स्थायी अवकाश पर हैं। काम से संतोष मिलना और उसे करने में पूरा आनंद अनुभव करना सफलता की कुंजी है। धनी लोग बहुत मेहनत करते हैं। इतनी मेहनत वे इसलिए नहीं करते कि उन्हें धन की आवश्यकता है- वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि वे उसे करने के लिए स्वतः प्रेरित होते हैं। काम से प्रेम करने के कारण वे काम करते हैं। ऐसा कलाकारों, संगीतज्ञों, खिलाड़ियों, गणितज्ञों, रॉकेट वैज्ञानिकों, अभिनेताओं और यहां तक तक राजनेताओं के साथ होता है।

लोग अपना पेशा पसंद न आने पर काम बदल लेते हैं। वास्तुकार, अभिनेता बन जाते हैं, वकील, राजनेता बन जाते हैं, अभिनेता, मॉडल बन जाते हैं। एक बेहद महत्त्वपूर्ण पहलू अपनी क्षमता को पहचानना है। यह जानना है कि आप किसी काम में कितने अच्छे हैं। एक बार यह तय कर लेने के बाद आप काम के लिए तैयार होते हैं। किसी क्षेत्र में सुदृढ़ औपचारिक शिक्षा से आत्मविश्वास आता है और यह शिक्षा आपके ज्ञान को बढ़ाती है। आप इसे टाल नहीं सकते। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है, कि यह आपको एक सुरक्षा-कवच देती है और प्रयत्न सफल न होने की स्थिति में पीछे हटने का एक विकल्प।

ऐसा कई बार होता है कि हम उन सीढ़ियों से ऊपर चढ़ते हैं जो किसी और ने हमारे सामने रख दी हैं। वे लोग जो अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं, वे कुछ अलग होते हैं। वे उनमें से होते हैं जो जब चाहें अपना रास्ता बदलने को तैयार रहते हैं। यह आपकी जिन्दगी में कभी भी हो सकता है। यहां तक कि सरकारी नौकरी से रिटायर होने के बाद भी लोगों ने अपनी दृढ़ धारणा के आधार पर नया काम शुरू किया और इसे बेहतरीन तरीके से किया। नए काम से उन्होंने नाम, धन और प्रसिद्धि पाई। अतः हर काम अच्छा है। आप जिस काम में अच्छे हैं, उस पर अडिग रहिए। शेष सभी बातें खुद-ब-खुद ठीक हो जाएंगी।

दरअसल लोग जीवनयापन करने के लिए काम करते हैं, धन के लिए काम करना गुनाह भी नहीं। या तो आप वह काम कीजिए जो आपको पसंद है या फिर जो काम कर रहे हैं उसे पसंद करना शुरू कर दीजिए।

संगीतकार .आर . रहमान को लोग उनको मिले ऑस्कर पुरस्कार के कारण तो जानते ही हैं, साथ ही उनके द्वारा बनाई गयी कर्णप्रिय धुनों के कारण भी।

रहमान कहते हैं, 'मुझे अपने काम में आंनद आता है। आराम में मन ही नहीं लगता।' उनके अनुसार, 'यदि आपका मन काम में लगता है तो निश्चित जानिए कि आपकी सफलता भी शुरू हो गयी।'

महात्मा गांधी कहा करते थे कि आप अपने जीवन में कहाँ तक जाना चाहते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप किस सीमा तक सीख सकते हैं। और अपने कार्य में कितना आनंद ले सकते हैं।

रोजमर्रा के काम को ज्यादा दिलचस्प बनाने के लिए व्यति काम का तरीका बदल देना चाहिए। पिकनिक इसका सबसे अ उदाहरण है। किसी रविवार की सुबह अपने दोपहर का भोजन और कीजिए। इसे एक टोकरी में रखिए। एक गद्दा और अपने मनपंसद की सामान लीजिए। फिर पहाड़ी के ऊपर किसी पेड़ को खोजते हए शहर के बाहर चालीस किलोमीटर तक निकल जाइए। पेड़ के नीचे बैटिए और खाने की टोकरी खोलकर वहीं खाना खाइए। ऐसा करने के बाद आपकी पिकनिक स्फूर्तिदायक रही तो इसलिए, क्योंकि आपने कछ परिवर्तन किया, यह परिवर्तन है संदर्भ का परिवर्तन।

इसी तरह आप नवीन सोच और प्रयोगों के जरिए अपने काम में ताजापन ला सकते हैं। याद रखिए, यदि आप अपने काम से प्रेम करते हैं तो धन हमेशा सह-उत्पाद के तौर पर आएगा। स्कल के दिनों में आप पढ़ाई में कैसे थे यह मायने नहीं रखता। मायने रखता है जीवन में आप किस मकाम पर पहुँचते हैं।

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तनाव प्रबंधन और सफलता

' अपने लक्ष्य के लिए निरंतर प्रयासरत रहें , आपकी एकाग्रता

ही आपको स्फूर्तिवान रखेगी और सफल बनायेगी। '

-स्वामी विवेकानंद

तनावग्रस्त होना आज की जिंदगी में जितनी सामान्य बात है, उससे मुक्त होना उतना ही कठिन समझा जाता है। हालांकि अधिकतर लोग यह जानते हैं कि तनावग्रस्त रहने से कुछ मिलने वाला नहीं है, और अगर ईमानदारी से प्रयास किया जाए तो इससे उबरना भी बहुत मुश्किल नहीं है। इसके बावजूद लोग इसे कभी न उतारे जा सकने वाले बोझ की तरह सिर पर लादे फिरते हैं। वैसे इससे उबरना इतना मुश्किल है नहीं, इसके लिए जरूरत सिर्फ दृढ़ इच्छा शक्ति और ईमानदार प्रयास की है। केवल यह ठान लेने की कि चाहे कुछ भी हो हम तनाव से ग्रस्त नहीं होंगे। इसका सर्वोत्तम उपाय तो यह है कि आप प्रबंधन के तरीके सीखकर इससे उबर सकते हैं।

1. ध्यान जो करे आपको निर्विचार

तनाव प्रबंधन का सबसे प्रभावी तरीका तो यही है कि तनाव आपके पास आने ही न पाए और इसका कारगर उपाय है ध्यान। अगर आप नियमित रूप से ध्यान करते रहें तो तनाव आपके आस-पास भी नहीं आएगा। जैसा कि आमतौर पर लोग समझते हैं, ध्यान कोई रहस्यमय या अलौकिक जगत का मामला नहीं है। अनुभूति भले अलौकिक हो, लेकिन प्रक्रिया बिल्कल सांसारिक और आसान है। प्रतिदिन आप थोड़ा वक्त निकालें और चुपचाप बैठ जाएं। मन में जो भी विचार उठ रहे हों, आएं या जाएं, उन्हें चपन देखते रहें। थोड़ी देर मन भटकेगा, पर अगर नियमित रूप से रहें तो दस-बीस दिन बाद वह वक्त भी आएगा जब आप नितिन होंगे। इस प्रक्रिया को जितना गहरा करते जाएंगे, तनाव की आर आपसे उतनी ही दूर होती जाएगी। ऐसा भी नहीं है कि इसका प्रयोग आप केवल तनावग्रस्त होने से पहले ही कर सकते हैं। अगर तनाव से ग्रस्त हो चुके हैं तो भी कोई बात नहीं है। बाद में भी यह प्रयोग शुरू करके आप तनाव से मुक्त हो सकते हैं।

2. सुरुचियों को पनपने दें

इसका दूसरा प्रभावी उपाय अपनी रुचि और रचनात्मकता का विकास है। यह रुचि मिट्टी के खिलौने बनाने से लेकर कविताएं लिखने, नये व्यंजन बनाने का प्रयास, नेट सर्फिंग करने, पुरातत्व या विज्ञान संबंधी खोज, शेयर बाजार में हाथ आजमाने या देश-विदेश के बारे में जानकारियां प्राप्त करने तक कुछ भी हो सकता है। आपको जो भी रुचि हो उसे पूरा करें। अगर आपको अपनी बुक रैक या वार्डरोब सजाने का शौक है तो यही करें। इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि आपको खाली बैठना नहीं पड़ेगा, और तब आपको निरर्थक चिंताएं भी नहीं घेरेंगी। यह आपके मन को भटकने से बचाएगा, जिससे आपको नकारात्मक विचार नहीं घेर सकेंगे। जब आपकी सोच नकारात्मक नहीं होगी तो आप तनाव से भी ग्रस्त नहीं होंगे।

3. स्वास्थ्य और सोच

तीसरा तरीका यह है कि अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें। सहत अच्छी बनाए रखने के लिए वह सब करें जो जरूरी है। जैसे खेलकूद में हिस्सा लें, जॉगिंग करें, योग करें और समय से खाएं-पिएं भी। इससे एक तरफ तो आपका मन नकारात्मक विचारों से बचेगा और दूसरी तरफ शरीर भी स्वस्थ बना रहेगा। जब भी आपको लगे कि अब तनाव आपको घेर सकता है, तुरंत सोच की दिशा बदल दें। कुछ न हो तो नाखूनों की सफाई पर ही ध्यान दें। इसके अलावा जब कभी मन स्थिर हो तो मन की सफाई पर भी ध्यान दें। ध्यान, आध्यात्म, ईश्वर की पूजा और प्राणायाम इसमें आपकी सहायता कर सकते हैं। उन सभी विचारों को चुन-चुनकर अपने मानसिक से बाहर निकाल दें जो आपके भीतर प्रदूषण के कारण बन रहे हों। वास्तव में तनाव के कारण ऐसे विचार ही बनते हैं।

4. शांति है जरूरी

तनाव से बचने का चौथा उपाय है प्रदूषणमुक्त वातावरण। पूरा दिन भीड़ और शोर भरे वातावरण में बिताना आज सबकी मजबूरी है। लेकिन कोशिश यह करें कि रातें शांतिपूर्ण हों। नींद में व्यवधान न पड़े। जब आप अपने परिवार के बीच हों तो अपनों के बीच होने का पूरा आनंद ले सकें। अनचाही आवाजें, अनचाहे लोग, धूल, धुआं आपको परेशान न कर सके। इसके लिए जरूरी है कि आवास हमेशा ऐसी जगह लें जो शांतिपूर्ण हो। संसाधनों के लिए थोड़ी असुविधा भले हो, पर बाजार और औद्योगिक स्थलों से दूर हो। यह भी देखें कि वहां आसपास कुछ हरियाली और पार्क आदि भी हों, यहां आप सुबह-शाम थोड़ा वक्त भी बिता सकें। तभी आप पूरी नींद भी ले सकेंगे और जीवन का आनंद भी। यदि ऐसा कुछ भी संभव नहीं हो, तो अपने घर में ही किसी शांत स्थान को चुनकर शांत बैठें।

5. पालतू पशुओं को दें समय

पालतू पशु मनोरंजन तो करते ही हैं, कई बार ये आपके लिए सुरक्षा कवच भी बन जाते हैं। इसलिए पालतू पशओं को पर्याप्त महत्त्व दें। यह तनाव से मुक्ति का पांचवां उपाय है। कुत्ते, बिल्ली या कुछ और संभव न हो तो छोटे से एक्वेरियम में रंग-बिरंगी मछलियां ही पालें। उनका ध्यान रखें और अपना कुछ कीमती वक्त भी उनके साथ बिताएं। उनसे अपना स्नेह जताएं। जब भी आप कामकाजी तनाव झेलकर वापस घर आएंगे, वहां पालतू जानवर के रूप में एक परिचित चेहरा आपका इंतजार करता मिलेगा। दुनियादारी की समस्याओं को भुला देने के लि इतना ही पर्याप्त होता है। इससे आप अपना मन तो बहला ही सकते है खुद को अकेला भी महसूस नहीं करेंगे।

6. नींद पूरी करें

तनाव से उबरने का छठवां उपाय है गहरी नींद। कड़ी प्रतिस्पर्धा है भरे इस दौर में अधिकतम लोग पर्याप्त नींद ले पाते। ध्यान रखें बिस्तर पर पड़े रहना एक बात है। लेकिन पर्याप्त नींद नहीं लेना बिल्कुल अलग मामला है। कम से कम छह घंटे की नींद हर व्यक्ति के लिए जरूरी है, लेकिन आजकल तीन घंटे की नींद भी कम लोग ही ले पाते हैं। इसके चलते तनाव होना बिल्कुल आम है। इसलिए जब भी मौका मिले नींद लें और कोशिश यह करें कि गहरी नींद आए। अगर आपको आसानी से नींद नहीं आती है या बीच-बीच में नींद टूटती है तो सोने से पहले थोड़ी देर ध्यान करें। फिर जब सोने जाएं तो बिस्तर पर लेटने के बाद अपना ध्यान सांसों की आवाज ही पर टिकाएं। यह प्रयास कुछ दिन तो आपको मुश्किल लग सकता है, लेकिन बाद में इससे गहरी नींद आएगी।

7. कहीं दूर चलें

रोज एक जैसी दिनचर्या, एक-सी हाय-तौबा और एक ही जगह-ये स्थितियां हर आदमी के भीतर ऊब पैदा करती हैं। ऊब भी तनाव का एक बड़ा कारण हो सकता है। इसलिए जब आपको तनाव की अनुभूति हो और आप खुद को अन्य तरीकों से इससे उबरता हुआ ना पाएं तो इस सातवें उपाय का इस्तेमाल करें। लंबी छुट्टी लें और कुछ दिनों के लिए कहीं दूर चले जाएं। जगह ऐसी चुनें जो बहुत लोकप्रिय पर्यटन स्थल भी न हो। अपेक्षाकृत अनजानी जगह हो। सबसे बढ़िया होगा किसी सुदूर पर्वतीय स्थल पर चले जाना। कोई ऐसा हिल स्टेशन जहा पर्यटन की व्यावसायिक आपाधापी न हो। ऐसी जगह पहाड़ों में न ढूंढ़ते बने तो आप विलेज टूरिज्म का विकल्प भी चुन सकते हैं। घूमें-फिर, मौज-मस्ती करें, नये मित्र बनायें और मौका मिले तो स्पा (Spa) भी हो आएं। इसके बाद आप खुद को बिल्कुल नया अनुभव करेंगे। तनाव को आप दूर भगा सकेंगे।

इस तरह देखें तो तनाव को दूर भगाना कोई कठिन बात नहीं है। आवश्यकता केवल इस बात की है कि चाहे कुछ भी हो जाए, आपको तनावग्रस्त नहीं रहना है। वैसे भी समस्याएं तनाव से नहीं, सही तरीके से और सही दिशा में किए गए प्रयास से हल होती हैं। फिर अकारण तनाव को पाला ही क्यों जाए!

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अनिद्रा से बचाव

' अनिद्रा का रोग मजदूरों को नहीं होता।

- वेंडेल फिलिप्स

क्या आपको ठीक से नींद नहीं आती? वयस्कों के लिए जीवन काल के विभिन्न चरणों में अनिद्रा की स्थिति से गुजरना कोई असामान्य बात नहीं है। अनिद्रा की शिकायत होने पर एकाग्रता भंग होती है, थकान और अन्य प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अगर अनिद्रा की समस्या गंभीर हो जाए तो कई तरह की जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं। वाहन चलाते समय दुर्घटना हो सकती है या कार्य करते समय गलती हो सकती है। लेकिन, ऐसे कई उपाय हैं, जिन्हें अपना कर अनिद्रा की शिकायत दूर की जा सकती है। कुछ तरीके ऐसे हैं, जिन्हें अपना कर दवा के सेवन से बचा जा सकता है।

नीचे छह सूत्र दिए जा रहे हैं, जिन्हें अपनाकर अनिद्रा की समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है:

1. नियमित दिनचर्या का पालन करें

सही समय पर सोने और जागने की आदत डाली जाए तो आपके शरीर की लय संतुलित रहती है, और सोने के घंटे भी निर्धारित बने रहते हैं। प्रतिदिन निश्चित समय पर सोने के लिए बिस्तर पर जाकर और निश्चित समय पर जागकर आप शरीर को प्रशिक्षित करते हैं कि उसे किस समय सोना चाहिए।

2. शयनकक्ष का माहौल अनुकूल बनाएं

जानकारों का मानना है कि शयनकक्ष का इस्तेमाल सिर्फ सोने के लिए और जीवनसाथी के साथ प्यार करने के लिए होना चाहिए। विस्तर पर लेटकर किताब पढ़ने या टीवी देखने से आपका शरीर नींद के लिए प्रेरित नहीं होता और आपको अनिद्रा की स्थिति का सामना करना पड़ता है। जरूरी है कि गहरी नींद में सोने के लिए शयनकक्ष का माहौल अनुकूल बनाया जाए।

3. आहार का ध्यान रखें

सोने से पहले गरिष्ठ भोजन करने से अनिद्रा की शिकायत हो सकती है। सोने के समय से तीन घंटे पहले भोजन करने से आपको अच्छी नींद आ सकती है। इसके साथ ही आपकी चर्बी भी कम हो सकती है, चूंकि आपके शरीर को सोने से पहले कैलोरी को खर्च करना पड़ेगा। इसके अलावा रात में मसालेदार आहार का सेवन करने से बचें, चूकि ऐसे आहार की वजह से पेट में जलन की शिकायत हो सकती है और नींद आने में दिक्कत हो सकती है, सोने से पहले चाय या कॉफी पीने से बचें। इन पेय पदार्थों की वजह से भी अनिद्रा की स्थिति पैदा हो सकती है। कुछ लोगों को शराब पीने के बाद अनिद्रा की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।

4. कमरे को आरामदेह बनाएं

शयनकक्ष में और उसके आस-पास ढेर सारी बत्तियां होने से भी नींद आने में अड़चन आ सकती है। अपने कमरे को आरामदेह बनाने का प्रयास करें। कमरे में दीवारों पर ऐसे रंगों का प्रयोग हो जिन्हें देखकर सुकून मिलता हो। बिस्तर और तकिया नर्म होने पर आसानी से नोंद आती हैं। अगर आप एयरकंडीशन का प्रयोग करते हैं तो हमेशा उसका संतुलित इस्तेमाल करें। अधिक ठंडा या अधिक गर्म होने से भी नींद आने में रुकावट आ सकती है।

5. लेटे रहना ठीक नहीं

अगर बिस्तर पर जाने के बाद भी आपको नींद नहीं आ रही है तो यूही लेटे रहना ठीक नहीं। लेटे रहने की जगह आपको कुछ न कुछ करना चाहिए। शयनकक्ष की जगह किसी दूसरे कमरे में जाकर तब तक किताबें पढ़ें या टीवी देखें जब तक आप नींद की आहट न महसूस करने लगे। बिस्तर पर लेटकर एक टक घड़ी की तरफ देखते रहने से नींद आंखों से दूर जा सकती है। लेकिन जब आप किताब पढ़ते हैं या टीवी देखते हैं तो जल्दी ही नींद आ जाती है।

6. पानी की मात्रा घटाएं

कई लोगों की नींद बीच-बीच में टूट जाती है और पेशाब करने के लिए उन्हें बाथरूम की दौड़ लगानी पड़ती है। ऐसे लोगों को अक्सर नींद टूट जाने के बाद दोबारा नींद नहीं आती और उन्हें परेशान होना पड़ता है। इस समस्या से बचने के लिए बेहतर होगा कि रात का खाना खाने के बाद कम मात्रा में पानी पिएं। ऐसा करने पर आपको बीच-बीच में बिस्तर से उठकर बाथरूम की दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी।

इन सभी उपायों को आजमाने के बाद भी अगर आपकी अनिद्रा की शिकायत दूर नहीं होती तो फिर आपको डॉक्टर के पास जाना चाहिए। वैसे अधिकतर लोगों के लिए अनिद्रा की शिकायत अस्थायी होती है केवल कुछ उपायों पर अमल करने की जरूरत होती है। अगर किसी को नींद की गोली खाने की आदत है तो इस आदत को छोड़कर भी थोड़े प्रयास से स्वाभाविक नींद का आनंद उठाया जा सकता है।

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थकान से कैसे निबटें

' उठो , जागो और तब तक मत रुको , जब तक तुम्हे लक्ष्य की प्राप्ति न हो। '

- स्वामी विवेकानद

तमाम परेशानियां, व्यस्त दिनचर्या, तनाव, परिश्रम और काम के बोझ के कारण थकान का अनुभव होना लगभग रोज की बात है। जिन घरों में पति और पत्नी दोनों ही नौकरी करते हैं या कोई व्यवसाय संभालते हैं वहां पत्नी या अन्य कामकाजी महिलाओं की थकान लगभग दोगुनी हो जाती है। यह प्रायः संभव नहीं होता कि जब थकान हो तभी आराम . कर लिया जाए या कुछ देर सो लिया जाए या फिर एक झपकी ही ले ली जाए।

थकान हो जाने पर किसी काम में मन नहीं लगता। हाथ में लिया कोई काम ऐसी स्थिति में कभी ठीक तरह नहीं हो पाता। किसी व्यक्ति को बैठकर काम करना पड़ता है तो किसी को दिन-भर या अधिकांश समय खड़े रहकर काम करना पड़ता है। किसी को शारीरिक श्रम करना पड़ता है तो किसी को मानसिक श्रम। किसी को निगरानी या सुरक्षा जैसा एकरसता वाला काम करना पड़ता है तो किसी का काम कछ आनंदायक भी होता है। परंतु कम या अधिक, थकान सभी को होती है।

यदि अच्छी गहरी नींद और आराम न मिल पाए तो अगला दिन बहुत भारी गुजरता है, ऐसी स्थिति में अनेक लोग दर्द निवारक दवाओं का सहारा लेते हैं। कुछ लोग शराब या अन्य किसी नशे का सहारा लेते हैं, ऐसी चीजों का उपयोग अक्सर नियमित होने लगता है जो शारीरिक और मानसिक दृष्टि से घातक ही सिद्ध होता है। नशा करना एक आदत बन जाता है। स्थिति यह हो जाती है कि बाद में उससे छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है।

थकान से बचने का एक आसान और श्रेष्ठ उपाय है, विनोदप्रिय होना और विचारों को सकारात्मक रूप देना। आशावादी बनना, प्रसन्नतादायक बीती बातों को याद कर मुस्कुराना, सदा प्रसन्न रहना, खुलकर हंसना हंसने और हंसाने का गुण अपनाना आदि ऐसी बातें हैं, जिनसे थकान मिटती है या कम होती हैं। इसके अलावा जीवन-भर के दुःख-विपत्तियों परेशानियों को भी इससे सरलता से झेला जा सकता है। हर समय कुढते रहने वाले, ईर्ष्या करने वाले, औरों के लिए जाल बुनने या परेशानियां पैदा करने के तरीकों की खोज में रहने वाले, केवल बुराई खोजने वाले, औरों की कमियों की चर्चा करने वाले, खुद को असहाय और तुच्छ समझने वाले, अक्सर दूसरों पर दोषारोपण करने वाले आदि प्रकार के लोग अपना अमूल्य समय बरबाद करते हैं और मानसिक थकान को न्यौता देते हैं। यही नहीं, वे औरों के लिए भी तरह-तरह की छोटी-बड़ी परेशानियां पैदा करते रहते हैं। प्रायः इससे औरों के साथ-साथ स्वयं उनको भी कई प्रकार से नुकसान उठाना पड़ता है और अपमानित भी होना पड़ता है। अच्छा यही है कि प्रसन्नचित्त रहा जाए और दूसरों को भी प्रसन्नता बांटी जाए।

ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति होगा जिसके जीवन में समस्याएं न आई हों या न आएं। जीवन है तो छोटी या बड़ी समस्याएं तो आएंगी ही। समस्या के समाधान के लिए शांतिपूर्वक विचार करें, आवश्यक हो तो पारिवारिक या किसी अन्य उपयुक्त व्यक्ति से परामर्श लें। व्यर्थ की चिन्ता पालने की बजाय वास्तविकता के धरातल पर खड़े होकर सोचें। निराको लिए प्रयास करें। व्यर्थ की चिंता और आशंकाएं पालकर स्वयं की परेशानियां और तनाव न बढ़ाएं। याद रखिए, अधिक चिंता करने और तनाव में रहने से तन और मन जल्द ही थकान अनुभव करने लगते हैं।

अपनी परेशानी और कष्ट को बड़ा करके न आंके। हर समय औरों के सामने अपना रोना न रोएं। ऐसे लोग बहुत कम होते हैं जो आपकी परेशानी या कष्ट में आपके काम आएं। आपकी घिसी-पिटी बातें सनकर ज्यादातर लोग आपसे पीछा छुड़ाने लगेंगे। अपनी परेशानी भी उपयुक्त व्यक्ति को ही बताएं। मन के असंतोष से मानसिक थकान होती है. इसे किसी विश्वसनीय और आपसे सहानुभूति रखने वाले व्यक्ति के सामने ही व्यक्त करें। चिंता के इस आवेग को व्यक्त करने से आपके मन का बोझ हल्का हो जाएगा और मानसिक थकान मिट जाएगी।

आप कोई भी काम करते हों, काम के बीच में कुछ समय के अंतराल से कई बार ठंडे या साधारण पानी से हाथ-मुंह धोएं, मुंह में पानी भरकर फुलाएं और आंखों में कई बार छींटे मारें, बाल संवारें और दर्पण में मुस्कुराते हुए अपना चेहरा देखें। यदि सुवधाजनक हो तो दिन में एकाधिक बार अतिरिक्त रूप से स्नान भी किया जा सकता है। कपड़े और चप्पल या जूते भी बदले जा सकते हैं। इससे काफी आराम अनुभव होगा। तनाव घटेगा। परेशानी का आकार भी छोटा लगने लगेगा। काम के बीच आराम करने का अवसर न मिल पाता हो तो अपनी आंखें बंद करके उन्हें चिंतामुक्त होकर अपनी हथेलियों से कुछ समय के लिए ढंक लें। इससे भी बहुत आराम मिलेगा और थकान भी मिटेगी। ध्यान रहे, जब आप आराम करें तो उस समय आप निश्चिंत होकर केवल आराम ही करें। इससे जल्दी ही आप स्वयं को तरोताजा और चुस्त अनुभव करेंगे। लगातार काम करने के बीच में 2-3 बार कोई पेय (विज्ञापनों के वशीभूत होकर भूलकर भी कोला जैसे नकली पेय न अपनाएं) जैसे चाय, कॉफी, शर्बत, लस्सी, मट्ठा, सुगंधित या सादा दूध, नींबू पानी आदि सुविधानुसार लेते रहें।

आप घंटों कंम्यूटर पर काम करते हों या आपके कार्यस्थल पर धूल, धूप, धुआं, ताप आदि रहता हो तो इससे निश्चय ही आपकी आंखों में तनाव और थकावट हो जाती होगी। इससे बचाव के लिए कुछ अंतराल के बाद दिन में कई बार मुहं में पानी भरकर फुलाएं तथा आंखों में 05 या सादा पानी के छींटे मारें। इससे तुरंत आराम मिलेगा, आपको फिर भी कोई परेशानी अनुभव होती है, तो चिकित्सक से शीघ्र संपर्क करना चाहिए।

बैठे-बैठे या काम करते हुए कमर या पीठ में दर्द होने लगी सविधाजनक होने पर जमीन पर दरी या चटाई बिछाएं और उस सीधे लेट जाएं। तनाव और चिंतामुक्त होकर आंखें बंद कर शरीर को ढीला छोड़ दें। इस शवासन की मुद्रा में थोड़ी देर रहने पर ही आपको अंतर मालूम पड़ जाएगा।

इसी प्रकार अधिक चलने या खड़े रहने से पैर या एड़ियों में दर्द होने लगता है। इसके लिए थोड़े गर्म पानी में कुछ नमक डालकर अपने पैर को इसमें डुबोकर रखें। थोड़ी देर में ही आपको दर्द और थकान से आराम मिल जाएगा। पिंडलियों में दर्द हो तो उन पर ठंडा पानी डालें। पानी थकान दूर करने में सदा अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। गर्म पानी की बोतल से दर्द, सूजन आदि में पर्याप्त आराम मिलता है और थकान भी दूर होती है।

इसके साथ ही स्वास्थ्य संबंधी साधारण नियमों का ध्यान रखना भी लाभप्रद रहता है। कोई मजबूरी नहीं है तो रात में आप जल्दी सोएं। सुबह उठकर 1-2 गिलास सादा पानी पिएं। शौच आदि के बाद टहलने जाएं, जॉगिंग करें। उपयुक्त योग-व्यायाम-प्राणायाम करें, हल्का, पौष्टिक व सुपाच्य आहार लें। गरिष्ठ भोजन से बचें और कब्ज न होने दें। अपने कार्य के अनुसार सही दिनचर्या अपनाएं। किसी योग्य व्यक्ति या संस्थान से योग, ध्यान, प्राणायाम आदि का ज्ञान या प्रशिक्षण लेकर लाभ उठाएं। इनसे बेहतर, निरापद और बिना मोल की कोई अन्य चीज नहीं।

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हिम्मत से बांधे जीवन की डोर

' उस व्यक्ति के लिए कुछ भी असंभव नहीं है , जो

संकल्पना कर सकता है और उस पर आचरण भी। '

- मोराबी

हमारे जीवन का जो भी मकसद या लक्ष्य होता है यदि हम उसका एक चौथाई भाग भी हासिल कर पाते हैं तो हमें बेहद खुशी होती है और हमारा हौसला बुलंद होता है। जीवन को खुशी-खुशी जीने का इससे बेहतर तरीका और कछ हो भी नहीं सकता है। इसलिए पढ़ाई, करियर, रिश्ते जिस ओर भी आपने जो भी लक्ष्य बना रखा है, उसे पूरी निष्ठा और ईमानदारी से हासिल करने की चेष्टा करनी चाहिए। थोड़ी बहुत बाधा से घबराकर अपने भविष्य एवं खुशी को दांव पर नहीं लगा देना चाहिए क्योंकि उसके बाद जीवन-भर पछताने के सिवाय और कुछ नहीं रह जाता है।

ऐसी ही छोटी-सी बाधा से घबराकर रंजन अपने प्यार को दांव पर लगाने को मजबूर है। रंजन और उसकी दोस्त एक दूसरे को चार सालों से बेहर प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं। दोनों के परिवार भी तैयार हैं, सिवाय लड़की के पिता के। रंजन के परिवार में इस बात को लेकर ठन गई है कि जब तक लड़की के पिता रिश्ता लेकर खुद नहीं आते शादी नहीं हो सकती। इस अहं की लड़ाई में रंजन को लगता है कि कहीं उसकी दोस्त की शादी किसी कर दी गई तो वह जी नहीं पाएंगे। रंजन जैसे लोगों को चाहिए, सही और उचित काम के लिए पूरी दुनिया की रजा सहमति लेकर नहीं चला जाता है। झूठे अहं को पालने से आप जीवन और प्यार के साथ न्याय नहीं करेंगे। किस बात के डर से दोनों शादी नहीं कर रहे हैं? एक तो आपको उस घर में नहीं रहना जहां पर नाराज पिता हैं। आप दोनों की उम्र सही है, और चार वर्षों से बेहद प्यार और समझदारी से आपने अपना रिश्ता निभाया है। यह बात आप दोनों के परिपक्व व्यक्तित्व की गवाही देती है। इतनी मोहब्बत और गहराई से सींचे गए रिश्ते को किसी के अहं की बलि पर चढा देना कहां की अक्लमंदी होगी?

एक-एक व्यक्ति को खोजकर यदि आप खुश करने चले तो फिर आप खुशहाल जीवन भूल जाएं। इनकार और नाराजगी की कोई विशेष वजह भी नहीं है। आपके भाई ने उन्हें कुछ सुना दिया था, यही ना यकीन मानें यह नाराजगी वक्त के साथ समाप्त हो जाएगी। आप लोगों की खुशी के लिए यदि वे अपना गुस्सा नहीं थूक सकते तो आप क्यों अपनी जिंदगी तबाह करते हैं? वे बड़े हैं। आप लोगों की भलाई-बुराई उन्हें सोचनी चाहिए। यह जानते हुए भी कि आप दोनों की खुशी एक दूसरे से जुड़ी हुई है? फिर भी उन्होंने अड़ियल रुख अपनाया हुआ है। जब वे बड़प्पन नहीं दिखा रहे हैं तो आप किस आधार पर उनका लिहाज़ कर रहे हैं? आप लोगों का जीवनसाथी बनने का फैसला कोई आवेश में किया गया निर्णय नहीं है। चार वर्षों तक प्यार के रिश्ते को इस प्रकार निभाना कि उसका ग्राफ ऊपर जाए और एक दूजे में परिपूर्णता का अहसास हो, आज के समय में सुखद बात है। ऐसे रिश्ते को दूसरों की वजह से ठुकराना अक्लमंदी नहीं है।

प्यार, खुशी और एक दूसरे को निभाने की ख्वाहिश का मल बहुत ही मुश्किल से होता है। हर हाल में एक दूसरे का साथ देने की सच्ची नीयत भी बड़ी मुश्किल से उपजती है। इस भावना को सिर-आंखों पर संभालकर रखना चाहिए। किसी भी रिश्ते को इतनी सुंदरता देने के लिए बेइंतहा मेहनत करनी पड़ती है। एक दूसरे की भावनाओं का हर पल ख्याल रखने के बाद रिश्ता इतना मजबूत होता है कि हम जीवन भर साथ निभाने के फैसले पर पहुंचते हैं। इस मुकाम पर पहुंचने के बाद यूं हताश होकर हार मान जाना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है।

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समय के साथ बदलें

' समय का सम्मान कीजिए , समय की मांग के अनुरूप स्वयं को निखारते चलिए। '

- स्वामी रामतीर्थ

' आजकल के लोगों में तो नैतिकता और संस्कार जैसी चीजें है ही नहीं। ' यह वक्तव्य आप कभी भी और कहीं भी सुन सकते हैं। जाने-अनजाने कई बार खुद भी बोल जाते होंगे। बोलते कुछ इस भाव से हैं जैसे आप खुद न तो आजकल वाली परिधि में हैं, और न ही इस पृथ्वी पर। याद करें तो पाएंगे, कि जब आप छोटे थे, यानी जब से आपने दुनिया को समझना शुरू किया, तब से ही अपने बड़े-बुजुर्गों से यह सुनते आ रहे हैं। अब आप खुद यही कहने लगे हैं। आगे अगर आपकी अगली पीढ़ी भी ऐसा कहे, तो कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए। क्या कभी आपने सोचा है कि आजकल यानी अपने समय के लोगों और मान्यताओं को जब आप कोसते हैं तो किसे कोस रहे होते हैं? दरअसल इस तरह आप अपने समय को कोस रहे होते हैं। यह जानते हुए भी कि बीता हुआ कल अब आपके हाथ में नहीं है, और आने वाला कल आपके वश में नहीं है। आपके हिस्से में जो है वह सिर्फ आज है। फिर वर्तमान को कोसने की यह प्रवृत्ति क्यों?

समय की गति को समझें

इसमें कोई दो राय नहीं कि मौजूदा दौर में जहां एक तरफ बहुत कुछ अच्छा हो रहा है, वहीं बहुत कुछ ऐसा भी हो रहा है, जो नहीं होना

चाहिए। लेकिन ऐसा कब नहीं होता रहा है? अच्छाई और बुराई दोनों का अस्तित्व हमेशा रहा है, और दोनों के बीच जंग भी हमेशा से चली आ रही है। फिर ऐसा क्यों कहा जाता है? जाहिर है, इसके मूल में हताशा होती है। हताशा अपने समय, अपनी स्थितियों और इससे भी ज्यादा अपनी उपलब्धियों व क्षमताओं के प्रति। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि हताशा के इस घटाटोप के मूल में क्या है?

मनोचिकित्सकों का कहना है, ज्यादातर लोगों की विफलता की सबसे बड़ी वजह अपने समय को न समझ पाना होता है। अगर हम अपने समय को ढंग से समझेंगे ही नहीं, तो उसके अनुरूप कोई फैसला भी कैसे लेंगे? ऐसे ज्यादातर फैसले अप्रासंगिक साबित होते हैं। फिर लोग अपनी विफलता के लिए समय को ही जिम्मेदार ठहराने लगते हैं। जबकि अगर वह अपने समय के साथ चलना सीख लें तो उन्हें कतई नकारात्मक सोच का शिकार नहीं होना पड़ेगा। बेहतर यही है, अतीत के झूठे मोह में फंसे रहने के बजाय अपने समय की गति को समझें और स्वयं को उसके अनुरूप ढालें।

नए चलन से परहेज क्यों ?

अतीत मोह का संकट सबसे ज्यादा परंपरागत मूल्यों के संबंध में है। यह मूल्य चाहे नैतिक हों या सामाजिक या फिर हमारे अपने-अपने घरों के सांस्कृतिक तौर-तरीके ही क्यों न हों। जहां कुछ बुजुर्ग अपने समय की मुश्किलों से तुलना करते हुए आज की जीवनशैली में आई आसानी की तारीफ करते हैं, वहीं कुछ प्रौढ़ और यहां तक कि जवान भी मौजूदा दौर के सिर्फ नकारात्मक तत्वों पर ही ध्यान देते हैं। उन्हें नई चाल के कपड़ों से लेकर नए दौर की व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सोच का खुलापन सब-कुछ बुरा लगता है। नई चाल के कपड़ों की आलोचना करने वालों से यह पूछा जाना चाहिए कि प्राचीनकाल में तो पेड़ों की छाल और पत्ते पहने जाते थे, क्या अब भी वही पहना जाए? आज के समाज में स्त्री स्वतंत्रता की आलोचना करने वालों से सवाल किया जाना चाहिए कि क्या वे डेढ़ शताब्दी पहले छोड़ी जा चुकी सती प्रथा को जारी रखना चाहते हैं? मनोवैज्ञानिक के अनुसार, जैसे आपसे दो-चार पीढ़ी पहले की रूढ़ियां टूटी हैं, वैसे ही आपके समय के कुछ विचार या परंपराएं या तौर-तरीके अगर टूटते हैं, तो उन्हें बिगड़ने के बजाय नारा निर्माण के अर्थ में देखें। उससे परहेज करना ठीक नहीं हो सकता।

खुले मन से करें विचार

समय के साथ-साथ जैसे-जैसे आवागमन और संचार के साधन बढे हैं, वैसे ही दुनिया की तमाम संस्कृतियों के बीच निकटता बढ़ी है। इससे दुनिया की लगभग सभी संस्कृतियां एक-दूसरे से प्रभावित हुई हैं। संक्रमण के इस क्रम में कुछ अच्छी चीजें आई हैं, तो कुछ बुरी भी। खराब मूल्यों और बुरी मान्यताओं को छोड़कर सिर्फ अच्छे को ग्रहण करें। यह जिम्मेदारी आपकी है। इसके लिए कोई आपको विवश नहीं कर सकता है। यही नहीं, जरूरी नहीं कि जिस बात को आप गलत समझ रहे हैं, वह वास्तव में गलत ही हो।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, कई बार ऐसा होता है कि किसी स्थिति या फैसले को गलत घोषित करने के वर्षों बाद हम खुद ही इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं, कि दरअसल हम ही गलत थे। इसलिए किसी बात को पूरी तरह नकारने से पहले खुद तो उस पर खुले मन से पुनर्विचार तो करें ही, हो सके तो अपने हितैषियों से भी सलाह कर लें। इसके बाद भी अगर कोई बात आपको गलत लगे तो बेशक उस पर अमल न करें। दूसरे लोग भी अगर उसके प्रति आकर्षित हो रहे हों तो उन्हें समझाने की कोशिश कर ही सकते हैं। पर अगर खुले मन से विचार के बाद लगे कि वह सही है, तो अपने झूठे अहंकार की अलविदा कहने में देर न लगाएं, क्योंकि सही को अपना लेने में ही भलाई है।

अपनाएं वैश्विक सोच

हम यह लगातार देख रहे हैं कि आर्थिक और सांस्कृतिक उदारीकरण के इस दौर में पूरी दुनिया विश्व संस्कृति की ओर बढ़ रही है। संस्कृतियों के घुलने-मिलने के इस दौर में कुछ ऐसे लोग भी हैं, जो अपनी क्षेत्रीय संस्कृति को खतरे में महसूस कर रहे हैं। इस भय से ग्रस्त लोग इसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार पश्चिम को मानते हैं। इस संदर्भ में जरूरत यह समझने की है कि संस्कृतियों और सभ्यताओं के इसं संक्रमण को कभा रोका नहीं जा सकता है। यह मनुष्यता के विकास की प्रक्रिया का हिस्सा है। सच तो यह है कि पश्चिम केवल हमें इसी तरह ही प्रभावित नहीं कर रहा है, बल्कि पश्चिम से जो मशीनी जीवन शैली यहां आई है, उसने हमें बड़े लाभ भी पहुंचाए है। उपग्रहों से संचार के इस दौर में कोई कहे कि हम तो हर हाल में डाक के भरोसे ही रहेंगे, तो उसे क्या कहा जाए!

ठीक इसी तरह, पश्चिम हमारे शांति-अहिंसा के संदेश और संयुक्त परिवार के भारतीय ढांचे को अपनाने की ओर तेजी से बढ़ा है। वहां योग और ध्यान की महत्ता सबने समझी है और सभी इसे अपना रहे हैं। सच तो यह है कि अपनी ही संस्कृति के इस महत्त्वपूर्ण तत्त्वों की ओर हमारी पीढ़ी का ध्यान तब गया है, जब पश्चिम ने उन्हें बड़े पैमाने पर अपना लिया। तो क्या अपनी संस्कृति पर पश्चिम के इस सकारात्मक प्रभाव को हम पूरी तरह नकार सकते हैं? कहने का मतलब यही है कि अगर आपको आगे बढ़ना है और इसके लिए अपनी सोच सकारात्मक बनाए रखनी है तो पूरब-पश्चिम का विवाद छोड़कर विश्व मानवता की सोच अपनाएं।

यथार्थ से पलायन गलत

हमारे समाज में ज्यादातर लोग नकारात्मक सोच के शिकार इसलिए हैं, क्योंकि उनके संस्कारों की बुनियाद सही नहीं है, हमारे यहां आमतौर पर बच्चों को यह तो बताया जाता है कि यह न करो, लेकिन यह नहीं बताया जाता कि क्या करो। दिन-रात नहीं सुनते-सुनते उनकी सोच नकारात्मक हो जाती है।

अगर कोई व्यक्ति अतीत में ही जीता रहे, तो वह परंपरागत मूल्यों मान्यताओं का पोषक तो बन सकता है, लेकिन वह अपने समय के साथ न्याय नहीं कर सकता है। क्योंकि दुनिया की सभी परंपराएं समय की गति के साथ अपना रूप बदलती हैं। जो नहीं बदलती वही रूढ़ि बन जाती हैं और रूढ़ियां तोड़ दी जाती हैं। यथार्थ से पलायन करना गलत है। सच्चे अर्थों में आशावादी और सकारात्मक सोच से संपन्न बने रहने की पहली शर्त यह है कि आप सारे दुराग्रह छोड़कर अपने समय से तालमेल बिठाएं।

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समय प्रबंधन

' समय हरेक के पास है , उसका सदुपयोग करने की

कला भी आत्मानुशासन से ही सीखी जा सकती है। '

- जार्ज बनार्ड शॉ

आपने कभी ध्यान दिया है कि संयम और समय दोनों ही बहुत मिलते-जुलते शब्द हैं। संयम में वे शब्द प्रयुक्त होते हैं, जिनका प्रयोग समय में होता है। शब्दों को थोड़ा-सा इधर-उधर करें तो संयम ही समय बन जाता है। अंतर सिर्फ एक तिलक का है जो संयम के माथे पर है। समय प्रबंधन वस्तुतः एक प्रकार से आत्मसंयम का ही एक रूप है। अपने कार्यक्रमों को इस प्रकार से संयमित करना कि कम समय में सभी कार्य हो जाएं, ही समय प्रबंधन है। उपनिषदों में कहा गया हैजो समय को नष्ट करते हैं, काल उनका नाश कर देता है। वेद भी यही कहते हैं कि समय ही प्रकृति है,समय ही सृष्टि है और समय ही ईश्वर को सर्वाधिक प्रिय है।

प्रभावशाली ढंग से समय का प्रबंधन कर हम अपने जीवन को तनावमुक्त बना सकते हैं। तकनीकी विकास के वर्तमान युग में ऐसे उपकरण बनाए गए हैं जिनकी मदद से मनुष्य अपने दैनंदिन जीवन के कार्य आसानी से निपटा सकता है और इस लिहाज से उसके पास फुरसत का समय ज्यादा होना चाहिए। मगर तकनीकी विकास के बावजूद मनुष्य की व्यस्तता घटने की बजाय बढ़ती ही जा रही है। व्यक्ति को समय प्रबंधन करने की जरूरत हैं तभी वह निजी आनंद और फुरसत के लिए कुछ समय निकाल सकता है। समय ही जीवन है। अगर हम प्रभावशाली तरीके से समय का प्रबंधन करेंगे तो जीवन को आनन्दपूर्वक गुजारने में सफल होंगे।

अधिकतर लोग समय प्रबंधन की कला नहीं जानते। ऐसे लोगों को महसूस होता है कि उन्हें अपने घर-परिवार और दफ्तर के लिए कोल्हू के बैल की तरह मेहनत ही करना है, कार्य के घंटों में कई अनावश्यक बातों में उलझे रहने से कार्य का दबाव बढ़ता ही जाता है और व्यक्ति अपने कार्य और परिवार के बीच संतुलन बनाए रखने में खुद को असमर्थ पाता है। ऐसी हालत में तनाव बढ़ता ही जाता है।

तनाव से निबटने के लिए जरूरी है कि आप पहले समय का प्रभावशाली ढंग से प्रबंधन करें। नीचे समय प्रबंधन के कुछ अचूक सूत्र दिए जा रहे हैं:

1. किए जाने वाले कार्यों की सूची बनाएं

प्रतिदिन किए जाने वाले कार्यों की सूची बनाएं। भविष्य में किए जाने वाले कार्यों की भी सूची बनाई जा सकती है। कार्य को किस तरह पूरा किया जाएगा, उसके बारे में भी स्पष्ट रूप से लिख लें। रोजमर्रा की गतिविधियों को सुनियोजित करने से समय पर आपका नियंत्रण बढ़ता जाता है। जो कार्य आपके लिए महत्त्वपूर्ण हों, उनका सूची में पहले उल्लेख करें।

2. समझदारी के साथ योजना बनाएं

जो सबसे कठिन कार्य हो उसे सप्ताह के आरंभ में निपटाने की योजना बनाएं, ताकि सप्ताह के अंत तक आप कार्य के बोझ से खुद को मुक्त महसूस कर सकें, सोमवार या मंगलवार को सबसे कठिन कार्य करें, वहीं कम महत्त्वपूर्ण कार्य सप्ताह के मध्य में निपटाएं। बृहस्पतिवार और शुक्रवार को कार्य का बोझ कम रखने से आप तनावमुक्त रह सकते हैं।

3. अपने लिए अतिरिक्त समय बचाकर रखें

अगर आप सवेरे आधा घंटा पहले नींद से जाग जाएं तो भी अतिरिक्त समय का उपयोग आप अपने लिए कर सकते हैं। इसी तर आधा घंटा देर से सोने के लिए जाकर आप आधा घंटा अपने लिए बचा सकते हैं। आधे घंटे की नींद कम होने से कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन आपकी दैनिक गतिविधि में आधे घंटे की अहमियत काफी अधिक है।

4. प्राथमिकता निर्धारित करें

वारेटो के सिद्धांत के अनुसार हमारी 80 प्रतिशत उपलब्धियां हमारे 20 प्रतिशत प्रयत्नों पर आधारित होती हैं। इसीलिए प्राथमिकता निर्धारित करना जरूरी है, जो कार्य सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण हो, उसे सबसे पहले करना चाहिए। महत्त्वपूर्ण कार्यों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।

5. कार्य को बांटना सीखें

अपने कार्यों को परिवार के सदस्यों, कार्यालय के सहकर्मियों या मातहतों के साथ बांटना सीखें। आप अकेले सारे कार्य पूरे नहीं कर

बाव कम होने से आप तनाव से बच सकते हैं। कार्य बांटने से आप समय की बचत भी कर सकते हैं।

6. न कहना सीखें

न कहना सीखें और ऐसे किसी कार्य को करने की जवाबदेही न लें जिसे करना आपके लिए संभव न हो। आप अपने इर्द-गिर्द के सभी लोगों को खुश नहीं रख सकते। ऐसे कार्यों पर ध्यान केन्द्रित करें जो आपके लक्ष्य को पाने में मददगार साबित हों।

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समय प्रबंधन से सफलता

' समय नष्ट करने वालों को , समय क्रूरता से नष्ट कर देता है। '

- शेक्सपियर

बहुत सारे लोग बगैर किसी संतुष्टि के जीवन गुजारते हैं और उन्हें जीवित रहने का अर्थ ठीक से पता ही नहीं चल पाता। जबकि हमें यह जीवन सिर्फ एक बार ही जीने के लिए मिलता है. इसीलिए हमें इसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना चाहिए। कई लोग इस हकीकत को समझते हुए जीवन का सदुपयोग करते भी हैं। लेकिन ज्यादातर लोग वक्त को इस तरह बर्बाद करते हैं मानो उनके पास वक्त की कोई कमी न हो। जैसा किजार्ज बर्नाड शॉ का कहना था:हम काफी दिनों तक जीना नहीं चाहते, इसीलिए हम जीवन को गंभीरता से नहीं लेते।

सौभाग्य की बात यही है कि हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जब बहत-से लोगों ने हमारी मदद करने के लिए कई तरीकों की खोज की है, अगर हम उनका इस्तेमाल करें तो अपने समय का उपयोग हम विवेकपूर्ण तरीके से कर सकते हैं, ऐसे ही समय प्रबंधन के मार्गदर्शक एलेन लाकीन थे जिन्होंने 1970 के दशक में तकरीबन 11 हजार लोगों को समय प्रबंधन की कला सिखाई थी, उनका उद्देश्य थाः स्त्रियों-पुरुषों के मन में प्रेरक शक्ति का विकास करना, लोगों को जरूरत के मुताबिक उनके जीवन की दिशा का पुनर्निर्धारण करना और उन लोगों के विकास के मार्ग की अड़चनों को दूर करना।

" ज्यादातर लोग समय के बारे में मिनट के नजरिए से नहीं सोचते हैं ," लाकीन का कहना था, " वे ज्यावातर समय नष्ट कर देते हैं। इसी तरह लोग अपनी पूरी जिन्दगी के नजरिए से नहीं सोचते हैं। वे घंटों या दिनों के मध्य के हिस्से में झूलते रहते हैं। इसीलिए हर हफ्ते वे नए सिरे से शुरुआत करते हैं और समय का बेहतरीन हिस्सा ऐसे कार्यों के लिए खर्च कर देते हैं जिन कार्यों का सीधा संबंध उनके जीवन के लक्ष्य से नहीं होता। वे लापरवाही के साथ जीवन का वक्त बर्बाद करते हैं और यही वजह है कि वे किसी मुकाम तक पहुंच नहीं पाते। "

असली सवाल है, असल में हम करना क्या चाहते हैं? अगर हम इस सवाल का जवाब नहीं जानते तो देर-सवेर हमें महसूस हो जाएगा कि जो भी महत्त्वपूर्ण काम करना था, उसके लिए हमारे पास समय बचा नहीं रह गया है। हमारा पूरा जीवन बिल्कुल हमारे मुताबिक नहीं होता, जबकि यह सिर्फ हमें सिर्फ हमें ईश्वर के द्वारा मिलता है, फिर यह कैसी बेतुकी बात है कि हम इस जीवन को किसी दूसरे की मर्जी से अनवरत प्रतिक्रिया व्यक्त करने या निरर्थक कार्य करने में खर्च कर दें। दूसरे की मर्जी का अर्थ है भगवान की मर्जी, मालिक की मर्जी, जीवनसाथी की मर्जी। जीवन अपनी मर्जी से जिएं या दूसरों की मर्जी से, इसके बारे में स्पष्ट निर्णायक रेखा होनी चाहिए। अगर यह मालिक का समय है तो हमें मालिक का काम करना चाहिए। अगर हम उसका काम ठीक से करेंगे तो हमारे पास अपना काम करने के लिए पर्याप्त समय बच जाएगा।

अपने लिए समय निकालने के लिए सुनियोजन और एकाग्रता की आवश्यकता होती है, लेकिन सबसे महत्त्वपूर्ण है इस बात का आत्मज्ञान होना कि हम इस समय का उपयोग किस तरह करना चाहते हैं, लक्ष्य और प्रेरणा न हो तो समय भाप बनकर उड़ जाता है।

" समय का सदुपयोग करने का एक बेहतर तरीका है योजनाएं बनाना ," लाकीन का कहना था। "कुछ लोग किसी तरह की सूची बनाना जरूरी नहीं समझते , उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं होता कि आज अगले सप्ताह से जुड़ा है और पांच साल बाद के समय से भी जुड़ा है। लेकिन आप अगले दस वर्षों की ठोस योजनाएं बनाएं बगैर प्रभावशाली ढंग से अपने जीवन के अगले कुछ दिनों की योजना नहीं बना सकते ," यह लाकीन का कथन था।

इसीलिए वह लोगों से व्यक्तिगत प्राथमिकताएं निर्धारित करने के लिए कहते थे।

आपके जीवन का लक्ष्य क्या है ?

आपके मन में जो भी ख्याल आता हो उन्हें लिख डालिए, धन, करियर, सेहत, परिवार, समाज, समुदाय, अध्यात्म और व्यक्तिगत लक्ष्यों के बारे में लिखिए। इनके द्वारा एक पूरे पृष्ठ को भर दीजिए। अब जो तीन लक्ष्य आपके लिए सर्वाधिक अहमियत रखते हों उनके सामने 'ए' लिख दीजिए। दूसरे कागज के पृष्ठ पर उपलक्ष्यों, तर्कसंगत अगला कदम, तात्कालिक योजनाएं लिख डालिए। फिर, प्रत्येक ए लक्ष्य से एक 'अगला कदम' अगले सप्ताह के लिए निर्धारित कीजिए। अब आपके पास एक ठोस कार्य योजना है। इस सूची की समीक्षा हर महीने कीजिए, इस तरह अपने जीवन के लक्ष्य की दिशा में होने वाली प्रगति का आप अंदाजा लगा पाएंगे।

" जीवन के लक्ष्यों की स्पष्ट चिह्नित सूची से महान शक्तियां प्राप्त होती है " , लाकीन का ऐसा मानना था। लाकीन की इस बात से लोग समझ जाते थे कि उनके जीवन के एक-एक मिनट का संबंध उनके लक्ष्य से होता है।

एक व्यस्त महिला वकील ने लाकीन को अपनी समस्या बताई कि उसके पास पर्याप्त समय नहीं रहता था। जब उस महिला वकील ने अपने जीवन के लक्ष्यों की सूची बनाई तो उसमें लिखा कि 'एकाकी रहना चाहती हूं।' लाकीन ने उसे बताया कि "उसके व्यस्त जीवन और निर्धारित लक्ष्यों के बीच विराधाभास नजर आता है। ऐसा लगता है कि वह महिला किसी को न नहीं कह पाती है और उसका काफी समय यूं ही नष्ट हो जाता है।" लाकीन ने उसे समय की बचत के कई तरीके बताए। इस तरह महिला का आत्मविश्वास बढ़ता गया और यह न कहना भी सीख गई।

अगले पांच वर्ष आप किस तरह गुजारना चाहेंगे ?

आप अगले पांच साल किस तरह गुजारेंगे या आपको किस तरह गुजारना चाहिए, या आप किस तरह गुजारना चाहेंगे? अगर आपने अपने जीवन का लक्ष्य 'अमीर बनना' लिखा है, और अब आप जवाब दे रहे हैं: "मैं मुंबई के सागर तट पर आलीशान मकान बनाऊंगा," तो इसका अर्थ है आप ईमानदारी के साथ पहले सवाल का जवाब नहीं दे रहे हैं।

सीधा-सा मतलब यह है कि आपने जिन लक्ष्यों के बारे में सुन रखा है उनकी तरफ गौर किए बिना अपने लक्ष्यों की खोज करें। हम कई तरह के कार्य यह सोचकर करते रहते हैं कि हमें यह सब करना चाहिए। लेकिन क्या सारे कार्य जरूरी होते हैं? भले ही कार्य तर्कसंगत प्रतीत होते हों, लेकिन जीवन के लक्ष्य के साथ उनका कोई रिश्ता बनता है?

रिलायंस उद्योग समूह के संस्थापक धीरूभाई अंबानी समय प्रबंधन के सरताज माने जा सकते हैं। उन्होंने भारतीय उद्योग जगत को समय से पहले, वक्त से आगे सोचना और उस पर सबसे पहले अमल करना सिखया।

धीरूभाई (धीरज लाल हीराचंद अंबानी) कहते थे कि धन के निवेश से अधिक महत्त्वपूर्ण है समय का सही निवेश।

समय प्रबंधन के एक और परामर्शक 'हरबर्ट ए. शेयार्ड' अपने पास सलाह लेने आए लोगों से कल्पनाएं करने के लिए कहते थे। जिसके लिए वे उनसे पूछते थे कि "जिन कार्यों को समय के अभाव के कारण उन्होंने हमेशा के लिए स्थगित कर रखा है, उन कार्यों के बारे में कल्पनाएं करें।"

न्यूयार्क स्कूल ऑफ विजुअल आर्ट के विद्यार्थियों से मिल्टन ग्लेसर कहते थे कि "वे पांच साल के बाद के एक दिन की रूपरेखा तैयार करें।" ऐसे कई और तरीके हैं- जैसे अपने बारे में स्मृतिशेष लिखना- जिसे अंगर गंभीरता से लिया जाए तो लोग कई निरर्थक फंदों से उबरकर जीवन के वास्तविक लक्ष्यों के प्रति अपने आपको केन्द्रित कर सकते हैं।

"अगर आपको पता हो कि आज से ठीक छह महीने बाद आपकी मृत्यु हो जाएगी तो आप किस तरह जीना पसंद करेंगे?" लाकीन यह सवाल पूछकर लोगों को जीवन से जुड़े बुनियादी पहलुओं के बारे में सोचने के लिए मजबूर कर देते थे।

इसी तरह शेपार्ड लोगों से पूछते थे- "जब आप संतुष्ट होंगे तब क्या आप जीवित रहेंगे?" या 'आपको किस काम को पूरा नहीं करने का अफसोस है?' अधिकतर लोगों ने ऐसे सवालों का जवाब कभी सोचा नहीं था। जैसे ही उन्हें अपनी अनुभूतियों का पता चला उन्होंने ठोस संकल्प लेना शुरू कर दिया, ताकि जीवन में खुशियां बढ़ें और ग्लानि की भावना कम हो।

महत्वपूर्ण कार्य करने के लिए व्यक्ति के पास हमेशा पर्याप्त समय होता है , यह लाकीन का कहना था। ज्यादातर लोग दिन के सर्वाधि क उत्पादक घंटे 8 बजे से 11 बजे तक अखबार पढ़ने, चाय पीने, बातें करने में खर्च कर देते हैं। जैसे ही हमें अहसास होता है कि महत्त्वपूर्ण कार्य करने के लिए समय कम है तो अगला सवाल पैदा होता है कि उसे कब किया जाए? उसका जवाब है- अभी, क्योंकि 'समय ही जीवन है,'

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साहस का विकास करें

' मानव के सभी गुणों में साहस पहला गुण है , क्योंकि वह सभी गुणों के लिये जिम्मेदार होता है। '

- विंस्टन चर्चिल

कुछ समय पहले मैं संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद में जीवन मूल्यों से संबंधित श्लोकों को ढूंढ रहा था। मुझे 50 से अधिक श्लोक ऐसे मिले जिनमें साहस का विकास ही सफलता के लिए आवश्यक बताया गया है। मुझे विशेष तौर पर यह पंक्तियां बहुत प्रेरक लगीं-

' अप्रतीतो जयति सं धनानि। एको धना भरते अप्रतीतः। '

अर्थात् पीछे न हटने वाला सभी संपदाओं पर विजय प्राप्त करता है और ऐसा ही व्यक्ति अकेले ही समस्त प्रकार की उपलब्धियों को प्राप्त करके अपनी प्रत्येक इच्छा पूरी करने में समर्थ बन जाता है। इसका केवल एक ही अर्थ है कि साहस करके जो भी व्यक्ति अपने प्रयासों में अडिग रहता है, आगे बढ़ता रहता है और असफलताओं से जिसका मनोवल प्रभावित नहीं होता वह ही अंततः सफल और विजयी होता है।

इस साहस को विकसित करने के दो आधुनिक तरीके हैं। पहला तरीका है प्रोग्रेसिव वेट ट्रेनिंग। वेट लिफ्टिंग शुरू करें। जितना आए कर सकते हैं, उतना करें लेकिन आपके लिए यह चुनौतीपूर्ण होना चाहिए। जैसे-जैसे आप इसके अभ्यस्त होते जाएं इसकी संख्या बढ़ाते जाएं।

इसलिए सबसे पहले छोटे डर पर काबू पाएं फिर धीरे-धीरे बड़े डर पर नियंत्रण के लिए स्वयं को प्रशिक्षित करें। उदाहरण के लिए स्वयं को अधिक वजन उठाने के लिए प्रशिक्षित करें। अब अगर आप पहले 80 किलो उठा चुके हैं तो यकीन मानिए आपके लिए धीरे-धीरे 120 किलो उठाना भी कठिन नहीं होगा। इसी प्रकार यदि आप 900 लोगों के बीच बोल चुके हैं तो एक हजार लोगों के बीच भी आप अपना भाषण दे सकते हैं। इसलिए एक कागज लीजिए और अपने इन डरों को उस पर उतार लीजिए, जिन पर आप काबू पाना चाहते हैं। अब 1 से 10 तक अंक लिखिए और उस डर की 10 भिन्नताएं लिखिए जिसमें पहले नंबर पर सबसे कम चिंता वाली भिन्नता और नंबर 10 पर सबसे अधिक चिंता वाली भिन्नता लिखिए। यह आपका भय अनुक्रम है। इसे उदाहरण से समझते हैं।

मान लीजिए, आप किसी से अपने प्रेम का इजहार करना चाहते हैं, लेकिन इससे आप भयभीत भी हैं। आपकी सूची में नंबर 1 पर सबसे सुरक्षित तरीका हो सकता है कि आप किसी सार्वजनिक जगह पर जाएं जहां बहुत से लोग मौजूद हों। उनमें से जो आपको पसंद आए उसकी तरफ मुस्कुराएं (सबसे कम डर)। नंबर 2 पर यह विकल्प हो सकता है कि दिन में 10 आकर्षक अजनबियों की तरफ मुस्कुराएं। नंबर 10 पर सबसे ज्यादा डर वाला यह विकल्प आपकी सूची में हो सकता है कि जिसे आप पसंद करते हैं, उससे अपने सारे दोस्तों के सामने अपने प्रेम का इजहार करें। जबकि आप इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि आप शायद इसमें असफल हो जाएंगे और सबके मजाक का पात्र बनेंगे। अब अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए नंबर 1 से शुरुआत करें। एक बार सफलता मिलने पर नंबर 2 की ओर बढ़ें और तब तक करते रहें जब तक कि आप 10 वें नंबर पर विजय हासिल न कर लें या जब तक कि आप स्वयं को डर की सीमाओं से मुक्त न पाएं।

अगर आपको लगता है कि आपका अगला कदम वाकई में बेहद कठिन है तो इसे टुकड़ों में विभाजित कर लें। जैसे अगर आप भी 100 किलो वजन उठा सकते हैं, लेकिन 300 पाउंड उठाना आपको कठिन लगता है, तो 105 या 110 किलो उठाने की कोशिश कीजिए। इस प्रक्रिया को उतना वक्त दीजिए जितना इसे चाहिए। एक बार जब आपमें आत्मविश्वास आ जाएगा तो आप इसे पूरा करके ही छोड़ेंगे।

इस प्रशिक्षण प्रक्रिया से आपको दो फायदे होंगे। पहला कि आप अतीत के मजबूत हुए डर या हर बात की उपेक्षा करने वाले नजरिए से छुटकारा पाएंगे। दूसरा यह कि भविष्य की परिस्थितियों में आप साहसपूर्वक तरीके से काम कर पाएंगे। इसलिए आपके साहस के विकसित होने के वक्त पर आपकी डर की संवेदनाएं नष्ट हो जाएंगी। न्यूरोलॉजी की दृष्टि से बात करें तो आपके कामों पर आपका लिंबिक नियंत्रण कम हो जाएगा व नियोकॉर्टिकल नियंत्रण मजबूत होगा और आप अपने अवचेतन चूहे जैसे व्यवहार से सचेत इंसानी व्यवहार की ओर आगे बढ़ेंगे।

साहस विकसित करने का दूसरा तरीका है, अपने डर के प्रभाव क्षेत्र के अंदर अतिरिक्त ज्ञान और कौशल को बढ़ाना। अगर आपका भय आपकी अज्ञानता और दक्षताओं के अभाव के कारण है, तो इस डर को आप जानकारी और प्रशिक्षण से दूर कर सकते हैं। उदाहरण के लिए आपको नौकरी छोड़ने का डर लगता है और आप स्वयं का व्यवसाय शुरु करना चाहते हैं तो इस बारे में गंभीरता से विचार कीजिए। इस क्षेत्र की पूरी जानकारी जुटाइए, लोगों से बात कीजिए, जितना हो सके इस क्षेत्र का ज्ञान प्राप्त करें। अपनी निपुणताओं को उस स्तर तक विकसित करें, जहां आप स्वयं को आत्मविश्वास से भरपूर पाएं। इसका परिणाम होगा कि जब आप अपने लक्ष्य के लिए तैयार होंगे तब यह ज्ञान आपको साहस के साथ कदम उठाने के लिए मजबूत बनाएगा। यह तरीका खास तौर पर तब फायदेमंद होता है, जब आपका डर अपने अज्ञान के कारण होता है।

अब प्रश्न उठता है कि नए विकसित साहस को किस तरह काम में लिया जाए। इसका उत्तर है कि यह साहस आपको एक परिपूर्ण और अर्थपूर्ण जीवन जीने के लिए प्रेरित करेगा। आप एक डरपोक चूहे की बजाय एक साहसी व्यक्ति का जीवन जी पाएंगे। आपकी छिपी हुई प्रतिभाएं और गुण भी आपके सामने आ जाएंगे।

साहस दरअसल एक एहसास है, जिसे आप अकेले महसूस कर सकते हैं। यह एक निजी जीत है। इसमें कोई और शामिल नहीं हो सकता। अगर आप साहस के मार्ग का अनुसरण करने की ठान लें तो आप सबसे बड़े डर का मुकाबला करने में सक्षम हो जाएंगे। जरा सोचिए, आप में और उन ऐतिहासिक हस्तियों जिन्होंने साहसपूर्ण कारनामों को अंजाम दिया है,में क्या फर्क है? आप दोनों में अनेक डर होंगे। दोनों में ही कुछ क्षेत्रों में प्रतिभा तो कुछ में कमजोरियां होंगी। जो सबसे मुख्य बात है, जो चीज आपको रोक देती है, वह है आपका डर और जो चीज उन्हें जीत दिला गई वह था उनका साहस।

जिंदगी में कुछ अलग हटकर कीजिए। कुछ साहस भरे कामों को अंजाम दे डालिए। आप सफल भी हो सकते हैं और आपको असफलता का मुंह भी देखना पड़ सकता है और हो सकता है, कई बार आपको नकारा जाए। लेकिन ये सभी रुकावटें साहसपूर्ण जीवन जीने में मील के पत्थर हैं, जो आपको लगातार आगे बढ़ाती हैं। ये आपकी अपनी व्यक्तिगत जीत है, जो आपको खुशी, आनंद और उत्साह से भरपूर बना देती है। इसलिए आगे बढ़ें, डर को महसूस करें और अपने सपनों को पूरा करने के लिए साहस को बुलावा दें।

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नई शुरुआत से घबराएं नहीं

' आरंभ करके जो अपने पग पीछे नहीं हटाता , अंततः वही सफल होता है। '

- ऋग्वेद

पढ़ाई हो या नौकरी, कोई प्रतियोगिता हो या किसी नई योजना की शुरुआत, कुछ नया सीखना हो या फिर किसी नई जगह की यात्रा पर ही क्यों न निकलना हो, क्या यह काम मुझसे हो सकेगा? कहीं ऐसा न हो कि मैं इसमें विफल हो जाऊं? और विफल होने तक तो फिर भी ठीक है, इसके बाद दोस्तों-रिश्तेदारों के बीच जो मजाक बनेगा उसे झेलना तो बहुत त्रासद होगा।

कम ही लोग होंगे, जिनके मन में कभी ऐसा ख्याल न आया हो। अधिकतर लोगों के मन में यह बात आती ही रहती है। बहुत लोग इस विचार को झटककर आगे बढ़ जाते हैं, पर कुछ लोगों के मन पर यह विचार इस तरह सवार हो जाता है कि उनके लिए उससे मुक्त होना और आगे बढ़ना लगभग असंभव-सा हो जाता है। हालांकि इसके लिए वे अकेले उत्तरदायी नहीं होते हैं। इस विचार का खतरनाक हद तक आप पर हावी हो जाना असल में व्यक्तित्व के विकास की प्रक्रिया में आए तमाम अवरोधों की एक पूरी श्रृंखला का नतीजा होता है। इसमें व्यक्ति की भागीदारी तो कम ही होती है, उसके परिवेश की सहभागिता और उत्तरदायित्व ज्यादा होता है। हां, नुकसान अकेले उस व्यक्ति को ही भुगतना होता है, जिसके भीतर अपनी क्षमताओं के प्रति संशय की यह भावना घर कर चुकी होती है।

जोखिम लेने में हिचक

संशय दुष्परिणाम इस भावना के शिकार व्यक्ति को ही भुगतने होते हैं, इसलिए इससे उबरने के लिए भी दूसरे लोगों से पहल की अपेक्षा करना लगभग व्यर्थ ही है। बेहतर यही होगा कि इससे उबरने की कोशिश स्वयं शुरू की जाए। इससे पहले कि इससे उबरने के उपायों का जिक्र किया जाए, जरूरी है कि उन कारणों को समझा जाए, जो इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। आमतौर पर इसके कारण दो तरह के होते हैं। पहला तो व्यक्तिगत और दूसरा सामाजिक। हालांकि व्यक्तिगत कारणों से इसके शिकार अपेक्षाकृत कम ही लोग होते हैं, पर ज्यादा खतरनाक यही है। खुद अपने पूर्वागहों से मुक्त हो पाना ही सबसे कठिन होता है।

व्यक्तिगत कारणों से इसके शिकार ऐसे लोग ज्यादा होते हैं, जो अति-सुरक्षा के माहौल में जीने के आदी हो जाते हैं। ऐसे लोग जिनमें जोखिम लेने की क्षमता कम होती है, कोई भी नई शुरुआत करने से पहले वे डरते हैं। कोई भी काम शुरू करने से पहले बार-बार सोचते हैं। नतीजा यह होता है कि पहले तो वह बहुत देर तक कोई निर्णय ही नहीं ले पाते हैं और अगर लेते भी हैं, तो इतनी देर से कि फिर निर्णय लेने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। उन्हें बार-बार ऐसा लगता है कि कहीं विफल न हो जाएं। विफल होने की भावना वे करीब-करीब अपने मन में बैठा चुके होते हैं। यही स्थिति उनके आगे बढ़ने में सबसे बड़ी बाधा होती है। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मूल रूप से तो ऐसी किसी भावना के शिकार नहीं होते हैं। फिर भी उनका इसका शिकार होने का कारण व्यक्तिगत ही होता है। मसलन यदि कोई व्यक्ति अपने प्रयासों में बार-बार विफल होता है तो उसे अपनी ही क्षमताओं पर संदेह होने लगता है। उसे ऐसा लगने लगता है कि जैसे अब मैं कुछ कर नहीं सकूंगा।

सफलता भी देती है भय

यही नहीं, ऐसे लोग भी खूब हैं जो लगातार सफल होने के बावजूद कोई नया काम शुरू करते हुए डरते हैं। ऐसी स्थितियों के मूल में भय का कारण सफलता ही होती है। किसी एक दिशा में लगातार सफल रहने वाले लोग अक्सर विफलता से इस तरह डरने लगते हैं कि वे किसी भी स्थिति में दूसरी दिशा में कदम बढ़ाते हुए डरते हैं। ऐसे लोगों के लिए उन स्थितियों में मुश्किल बढ़ जाती है, जबकि उनकी विशेषज्ञता के क्षेत्र में कोई संकट आ खड़ा होता है। तब वे अपने भय के कारण चाहकर भी किसी नई दिशा में कदम नहीं बढ़ा पाते हैं। ऐसे लोगों को विफलता के कारण अपने भौतिक-आर्थिक नुकसान से कहीं ज्यादा भय सामाजिक उपहास से लगता है। वे यह भी नहीं सोच पाते कि कहीं पूर्व निश्चित दिशा में ही अगर विफलता का श्रम लगातार जारी रहा तो वे किस तरह उपहास के पात्र बनेंगे और इसके दूरगामी नतीजे क्या होंगे?

परिवेश की देन

उपहास का भय ही इस भावना के कारणों का दूसरा पक्ष है। इसे सामाजिक कारण का नाम दे सकते हैं। ऐसे लोग जो बचपन में किसी न किसी कारण दूसरे लोगों की आलोचना झेल रहे होते हैं, इसके शिकार ज्यादा होते हैं। इसका कारण कभी उनकी कोई छोटी-सी अक्षमता होती है तो कभी अपने परिवेश की तुलना में अधिक महत्वाकांक्षा। कुछ लोग बच्चों की ऐसी अक्षमता या महत्वाकांक्षा के प्रति सकारात्मक रवैया अपनाते हैं। जबकि कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो इसके लिए उनका मजाक उड़ाने लगते हैं। मजाक उड़ाने वालों में पड़ोसियों, शिक्षकों और रिश्तेदारों से लेकर खुद अपने भाई-बहन और यहां तक कि माता-पिता भी हो सकते हैं। मुश्किल हालात में जी रहे माता-पिता को भी अपने किशोर बेटे-बेटी की महत्वाकांक्षा उनकी कल्पनाजीविता लगने लगती है। बच्चों का आत्मविश्वास उन्हें निराधार डींग लगने लगता है। जहां समझदार माता-पिता और शिक्षक इसे सकारात्मक अर्थों में लेते हैं, तथा अपने बच्चों के लिए अनुकूल माहौल बनाने की कोशिश करते हैं। वहीं कछ लोग बच्चों की कोमल भावनाओं को समझने के बजाय उन पर व्यंग्य कसने लगते हैं। ऐसा भी देखा गया है कि लोग यथार्थ अनुभवों का हवाला देकर उनकी महत्वाकांक्षा के लिए डांटने-फटकारने लगते हैं। कम ही बच्चे होते हैं, जो इन बातों से विचलित होने के बजाय अपनी जिद पर अड़े रह पाएं और अपने व्यक्तित्व का निरंतर विकास करने में लगे रहें।

अधिकतर बच्चे इन बातों से विचलित हो जाते हैं और फिर हताशा व कुंठा उनके भीतर घर करने लगती है। इसके अलावा कई बार बाहरी लोग अनावश्यक रूप से आलोचना करते रहते हैं। ऐसी आलोचना का कारण अधिकतर ईर्ष्या-द्वेष जैसी दुर्भावनाएं ही होती हैं; परंतु बच्चों का कोमल मन इतनी दूर तक सोच नहीं पाता है। वे इससे तुरंत प्रभावित होने लगते हैं। यही बाद में उनके कदमों की बेड़ी बन जाता है।

जो लड़े जीवन से

यह सच है कि बचपन में अगर कोई भय किसी के भीतर बैठ जाए तो उससे उबरना मुश्किल होता है, लेकिन उतना ही सच यह भी है कि ऐसी कोई समस्या नहीं है जिससे उबरना संभव ही न हो। इससे मुक्ति की शरुआत उन बड़े लोगों की जिन्दगी से सीख लेकर की जा सकती है जिन्होंने बहुत मुश्किल स्थितियों से संघर्ष कर समाज में अपनी सम्मानजनक हैसियत बनाई है। साहित्य, संस्कृति, उद्योग-व्यापार और विज्ञान से लेकर सिनेमा और राजनीति की दुनिया तक ऐसे सैकड़ों नाम गिनाए जा सकते है, जिन्होंने मामूली स्तर से शुरुआत कर विश्व स्तर पर हैसियत बनाई। ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जिन्होंने फर्श से अर्श तक यात्रा तो .की, पर तकदीर के मामूली झटके ने उन्हें फिर से फर्श पर पहुंचा दिया। परंतु इससे उन्होंने हार नहीं मानी। दोबारा दुने उत्साह से जुट गए और फिर से अर्श पर पहुंचकर ही दम लिया।

आपने मैकडोनाल्ड रेस्टोरेंट जरूर देखा होगा। पूरे भारत में इस अमरीकी फास्ट फूड रेस्टोरेंट के बोर्ड कई बड़े शहरों में लगे दिखते हैं, परंतु आपको मालूम नहीं होगा कि इस काम के पीछे एक ऐसा व्यक्ति रे क्रॉक था। रे क्रॉक की आयु 52 साल थी और वह मिल्क शेक बनाने वाले मल्टी मिक्सर बेचता था। उसकी पित्त की थैली और थाइरायड ग्रंथि ऑपरेशन द्वारा निकाल दी गई थी और वह डाइबिटीज तथा आर्थराइटिस की बीमारी से भी परेशान था। इसके बावजूद उसने एक नई शुरुआत की और दुनिया में व्यावसायिक कामयाबी का उदाहरण बन गया।

इसी तरह सभी सफल लोगों ने कभी न कभी कोई नई शुरुआत तमाम जोखिम के बावजूद की और सबसे अधिक सफलता पाई। प्रसिद्ध उद्योगपति अर्देशिर गोदरेज, जिन्हें गोदरेज साम्राज्य का पितामह कहा जाता है, ने भारत में मजबूत और न टूटने वाले तालों का कारोबार पहली बार शुरु किया था। जुगलकिशोर शुक्ल ने कलकत्ता के एक मामूली से छापेखाने में अपना साप्ताहिक समाचार पत्र 'उदत्त मार्तड ' प्रकाशित करना आरंभ किया था जो भारत का पहला हिंदी समाचार पत्र कहलाया और जे.आर.डी. टाटा ने अपने निजी विमान में भारत और पाकिस्तान के बीच डाक सेवा आरंभ की थी, जो बाद में चलकर करोड़ों रुपये के एयर मेल व्यवसाय की जननी बनी। सदा याद रखिये आरंभ कैसा भी हो, उसे शुरु होना ही चाहिए, तभी समाधानों का रास्ता निकलेगा।

तारे जमीं के

बॉलीवुड के महानायक अमिताभ बच्चन से बेहतर उदाहरण इसका और क्या होगा? कौन नहीं जानता कि उन्होंने किन-किन स्थितियों से संघर्ष कर बॉलीवुड में सुपरस्टार की अपनी हैसियत बनाई। यह भी सभी जानते हैं, कि एबीसीएल बनाने के बाद उन्हें घाटे का कितना बड़ा सदमा झेलना पड़ा था। इससे अगर उन्होंने हार मान ली होती तो क्या होता, इसकी कल्पना मुश्किल है। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। अमिताभ नए उत्साह से काम में जुट गए। उन्होंने अपनी प्रतिभा का पूरा सदुपयोग किया और फिर से उससे ज्यादा हासिल कर लिया जो उन्होंने खोया था।

बार-बार बॉक्स ऑफिस पर विफल होने के बावजूद लगातार फिल्में बनाते जा रहे सदाबहार अभिनेता देव आनंद तो अब एक 'किंवदंती बन चुके हैं। उनकी जिंदगी किसी के लिए भी प्रेरणा का स्रोत हो सकता है। संघर्ष और दिलेरी दोनों ही मामलों में। हास्य अभिनेता जगदीप का परिवार भारत-पाक विभाजन की त्रासदी का शिकार हुआ। वे लोग ऐसे मुसलमान, थे जिन्होंने विभाजन के बाद पाकिस्तान में रहने के बजाय भारत आना बेहतर समझा। वह चाहते तो वहां के होकर आराम से रह सकते थे, पर देश से लगाव के जज्बे के चलते उन्होंने अपना सब-कुछ छोड़कर संघर्ष का रास्ता अपनाना बेहतर समझा। अपने बैरिस्टर पिता के निधन के बाद जगदीप ने मुंबई की गलियों में साबुन और कंधे तक बेचे। इसके बावजूद वह डटे रहे। अब बॉलीवुड के चुनिंदा सितारों में शामिल जैकी श्राफ कभी मुंबई की चालों में जग्गू दादा के नाम से जाने जाते थे। इन सितारों ने अपनी जो पहचान बनाई, उसका सबसे ज्यादा श्रेय उनके आत्मविश्वास और लगन को ही जाता है। अगर ठान लें, तो यह दमखम आप खुद भी हासिल कर सकते हैं।

प्रेरणा के स्त्रोत

यह चमत्कार केवल सिनेमा की दुनिया में होता है, ऐसा भी नहीं है। राजनीति की दुनिया में भी ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो बिल्कुल साधारण परिवारों में जन्में, पर अपनी लगन, मेहनत व ईमानदारी के बूते दुनिया भर में नाम कमाया। स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद और दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री इसके जीवंत उदाहरण हैं। शास्त्रीजी को आरंभिक जीवन तो इतना संघर्षमय रहा जिसकी कल्पना भी मौजूदा दौर के लोगों के लिए मुश्किल है। उन्हें स्कूल जाने के लिए नदी तैर कर पार करनी पड़ती थी। जिन हालात में उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की, उनके जैसा दूसरा तो कोई यह सोच भी नहीं सकता कि वह कोई मंत्री भी बनेगा। पर उनकी संकल्पशक्ति और आत्मविश्वास का यह नतीजा है, कि ये प्रधानमंत्री पद तक पहुंचे। पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम का आरंभिक जीवन भी बहुत तरह के संघर्षों से भरा रहा है। दक्षिण भारत के साधारण परिवार में जन्मे कलाम साहब राष्ट्रपति क्या, शायद वैज्ञानिक बनने की भी नहीं सोच सकते थे। यह उनकी लगन और आत्मविश्वास का ही फल है, जो उन्हें सिर्फ भारतीय विज्ञान के ही नहीं, पूरे देश के नेतृत्व का गौरव हासिल हुआ। उद्योग जगत मेंधीरूभाई अंबानी, बिरला, गोवरेज तथा सहारा परिवार भी इसके जीवंत उदाहरण हैं।

ये उन लोगों की कोई पूरी सूची नहीं है, जिन्होंने मुश्किल स्थितियों से संघर्ष कर ऊंचाई तक पहुंचने का अपना रास्ता तैयार किया। ऐसे लोगों की तादाद बहुत बड़ी है, ये सिर्फ कछ ऐसे नाम हैं. जिन्हें दुनिया जानती है। इसके विपरीत ऐसे लोगों की भी कोई कमी नहीं है, जो सारी सुविधाएं मिलने के बावजूद कुछ खास नहीं कर सके। उनके कुछ खास न कर पाने के मूल में कारण कुछ और नहीं, केवल आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति की कमी ही है। जिन्हें अपने जीवन में कोई बड़ा लक्ष्य हासिल करना होता है, वे ऐसे लोगों के उदाहरण को अपने मन में जगह नहीं देते, जो सिर्फ विफल होते रहे हैं। अगर आप खुद अपनी क्षमताओं के प्रति संशय की भावना से ग्रस्त हैं, तो विफलता के उदाहरण देखना छोड़ दें। उन लोगों की जिन्दगी देखें जिन्होंने बहुत कठिन स्थितियों से संघर्ष कर ऊंची मंजिल हासिल की। खुद को उन स्थितियों के प्रति तैयार करें और शुरू हो जाएं। इसके लिए सबसे पहले जरूरी यह है कि आप भावनाओं के हाथ के खिलौने न बनें, बल्कि स्वयं अपनी भावनाओं को सही दिशा देना सीखें। भावनाओं को सही दिशा देने की विधियां कई हैं। आप चाहें तो अपनी हिचक को ठीक तरह से समझकर उसके निराकरण की कोशिश स्वयं ही शुरू कर सकते हैं। योग, ध्यान तथा आत्मविकास की विभिन्न तकनीकों में ऐसी कई विधियां हैं, जिन पर प्रयोग करके आप इससे मुक्त होने की शुरुआत कर सकते हैं। हालांकि अगर अपनी क्षमताओं के प्रति संदेह की भावना आपके भीतर कुछ ज्यादा ही गहरी है तो बेहतर होगा कि किसी अच्छे काऊंसलर की सलाह लें या कोई ऐसा कोर्स ज्वाइन कर लें।

ऐसे उबरें नकारात्मक भावना से

अपने प्रति नकारात्मकता की भावना से उबरना बहुत मुश्किल बात नहीं है। इसके लिए कई विधियां प्रयोग में लाई जाती है। इनमें ही एक है- आकर्षण प्रयोग। यह प्रयोग कोई जादू नहीं है। बल्कि सृष्टि के साथ अपने अस्तित्व का तालमेल बनाने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। ये हैं इसके विभिन्न चरण:-

1. अच्छी- सबसे पहला काम यह करें कि यह सोचना ही छोड़ दें कि कुछ बुरा होने वाला है। यह मानकर चलें, कि जो हुआ अच्छा हुआ। जो हो रहा है वह तो अच्छा हो ही रहा है, और जो होगा वह भी अच्छा ही होगा

2. निरंतर प्रयास- इसके बाद यह तय करें कि आप चाहते क्या हैं? फिर आप जो भी चाहते हैं, पहले तो उसे चाहने और फिर हासिल करने में जी-जाना से जुट जाएं। किसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए दो चीजें सबसे जरूरी हैं- एक तो चाहत और दूसरा आपके भीतर यह विश्वास कि इसके लिए योग्य पात्र हैं तथा इसे हासिल कर सकते हैं। अत: इस संबंध में आत्मविश्वास को पुख्ता करें।

3. समर्पित भाव से जुटें- आप जो कुछ भी हासिल करना चाहते हैं, अपने लक्ष्य के प्रति आपका पूरा समर्पण होना चाहिए। आपका समर्पण और आत्मविश्वास ही वह चीज है, जिसके कारण सृष्टि आपको कुछ भी देने के लिए विवश है। यह मानकर चलें कि आप जो चाहते हैं उसे हासिल करने के हकदार हैं, फिर वह चीज आपको मिलेगी ही।

4. आलोचकों को अनसुना भी करें- उन लोगों की बात ही न सुनें जो यह कहते हैं, कि आप यह कार्य नहीं कर सकते या यह काम आपको ऐसे करना चाहिए था। यदि आपके इर्द-गिर्द आलोचक ही ज्यादा हों तो सिर्फ अपनी बात सुनें। अपने मन की भी ऐसी बात न सुनें जो आपको आगे बढ़ने से रोकती हो। सिर्फ वही बातें सुनें और उन्हें गुनें, जो अपने लक्ष्य के प्रति आपकी प्यास और विश्वास बढ़ाती हों।

5. घबराएं नहीं- ऐसा कोई रास्ता हो ही नहीं सकता जिसमें कोई बाधा न हो, और ऐसी कोई बाधा भी नहीं है, जिसे पार करना संभव न हो। इसलिए जब भी आपके मार्ग में कोई बाधा आए तो घबराएं नहीं। यह मानकर चलें कि इसे आप पार कर लेंगे और पार करने की कोशिश करें। हो सकता है कि थोड़ी ही देर बाद आप आश्चर्य करें कि - अरे! हमने तो इसे पार कर लिया।

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रिश्तों को संवारें

' कोई ऐसा अक्षर नहीं जो मंत्र न हो। ऐसा कोई पौधा

नहीं जो औषधि न हो। ऐसा कोई भी नहीं जो काम का

न हो। सभी में कुछ न कुछ उपयोगी गुण होते हैं।

- शुक्राचार्य

पूरे संसार के यदि सभी मोटिवेशनल विचारकों और शिक्षकों की राय को एक वाक्य में लिखा जाये, तो 'संबंध सफलता की आधारशिला है।' यही निष्कर्ष निकलेगा। संबंधों का प्रबंधन आपकी सफलता की गारंटी है।

ऐसा अक्सर होता है कि जीवनसाथी मन में गढ़ी हुई तस्वीर जैसा नहीं निकलता। शादी से पहले उसे जैसा सुना, समझा या जाना था, शादी के बाद उससे कहीं अलग वह लगने लगता है। मैनेजमेंट गुरु प्रमोब बत्रा का कहना है- वस्तुतः शादी के बंधन में बंधने के बाद ही पति-पत्नी एक-दूसरे के वास्तविक रूप को जान पाते हैं। ऐसा कुछ हो जाने पर, जो आमतौर पर प्रायः हर एक के साथ होता है, सकारात्मक सोच की अहमियत को समझना जरूरी हो जाता है। ऐसा करने पर ही संबंध सुखद रह सकते हैं। सीधे व आसान शब्दों में कहें तो यह मसला आपकी सोच से जुड़ा होता है। किसी भी चीज के प्रति जब आप सकारात्मक सोच रखते हैं तो आपको वो चीज वैसी ही दिखती है और नकारात्यक दृष्टिकोण रखने से इसमें बुराइयां ही बुराइयां नजर आने लगती हैं।

सर्वगुण संपन्न कोई नहीं

यह याद रखें कि दोष रहित कोई नहीं होता, न ही सर्वगुणसंपन्न कोई होता है। कोई ऐसा पति नहीं होगा जिसे सर्वगुणसंपन्न पत्नी मिली हो न ही कोई ऐसी पत्नी होगी जिसे सर्वगुणसंपन्न पति मिला हो। ऐसे में खुश रहना बहुत कुछ आप पर ही निर्भर करता है। सीधे शब्दों में कहें तो दूसरे को स्वीकार करने के लिए उसे पूरे तौर पर स्वीकार करना पड़ता है। उसकी अच्छाइयों के साथ-साथ उसकी कमियों के साथ भी एडजस्ट कीजिए, तभी आप उसके साथ सुखी रह सकते हैं। यह भी एक तरह से अच्छा है कि ईश्वर ने हमारे दिमाग को ऐसा बनाया है कि हम अपनी मानसिक सीडी की फालतू फाइलों को इच्छानुसार डिलीट कर सकते हैं। उसमें उतना भर ही रहने देना चाहिए, जितने की जरूरत हो। यदि आप वैवाहिक जीवन को खुशियों से भरना चाहते हैं तो आप ऐसा ही कीजिए, फिर देखिए इसका परिणाम। न यकीन हो तो करके देखिए।

जीवनसाथी पर विश्वास कीजिए

रिश्तों का आधार होता है, एक दूसरे पर भरोसा करना। यदि आप एक-दूसरे पर विश्वास नहीं करेंगे तो कोई और भी आप पर यकीन नहीं रखेगा। विश्वास वह मजबूत दीवार है, जिसे भेद कर बाहरी व्यक्ति आपके रिश्तों में सेंध नहीं लगा सकता। जहां अविश्वास है, वहीं रिश्ते बिखरते भी हैं। इतना ही नहीं, यह विश्वास ही वह आधार है, जो आपको हर स्थिति में लड़ने में मदद करता है। आपसी रिश्तों की बेहतरी के लिए यह विश्वास बनाए रखिए। मार्टिन लूथर किंग का यह कथन याद रखिए कि आपको जीवन में कुछ तो भरोसा रखना ही होगा। कम से कम उस पर, जो आपके आखिरी दिनों तक आपके साथ रहने वाला है।

नजरिया बदलिए

आप अपने जीवनसाथी को यदि अच्छा मानते हैं, तो इससे न केवल आपको, बल्कि उन्हें भी अच्छा महसूस होगा व उनमें आत्मविश्वास भी बढ़ेगा। हर समय एक-दूसरे की कमियों को गिनाने से कुछ नहीं होगा। जो अच्छा है, उसे याद रखिए। अपनी दिमागी धार से खराब हिस्से को खरच कर अलग कर दीजिए। अब आपको जो मिलेगा वह निश्चित रूप से उपयोगी होगा। आपके एक प्रेम भरे वाक्य में वह करने की ताकत रहती है जो हजारों रुपए के तोहफे में भी नहीं होती। इसके लिए हीरे की अंगूठी या महंगी घड़ी देना जरूरी नहीं। यह काम आपकी मंद मुस्कान या एक सकारात्मक टिप्पणी से भी हो सकता है। यह भी सच है कि हर कोई हर समय खुश रहे। यह जरूरी नहीं, लेकिन वह दुःखी ही बना रहे यह भी जरूरी नहीं। अंतर केवल नजरिए का है; आपकी सोच का है।

एक - दूसरे का सम्मान करें

सबसे पहली व जरूरी चीज है कि आप अपने साथी को बेहतरीन मानें। यह सकारात्मक सोच आपको बहुत अच्छा महसूस करने में मददगार होगी। इसके साथ ही यह भी याद रखिए कि उम्र कुछ भी हो, हर व्यक्ति के भीतर उसका बचपन कहीं जिंदा रहता ही है जिसके लिए वह जीवन साथी से सहयोग चाहता ही है। आप किसी व्यस्क को पूरा बदल नहीं सकते, उसे उसी तरह स्वीकार करिए। फिर भी कोई आदत यदि आपको बहुत बुरी लग रही है तो प्यार से धीरे-धीरे बदलने की कोशिश कीजिए। कुछ न कुछ ऐसा करते रहिए, जो वह चाहें। याद रखिए कि आपके साथी के बराबर अन्य कोई नहीं हो सकता। उसे एहसास कराइए कि आप उसकी कितनी परवाह करते हैं। यह न भूलें कि प्यार का फल तभी खिलता है जब पुरुष और स्त्री एक-दूसरे के मतभेदों को स्वीकार करना और एक-दूसरे का सम्मान करना जानते हैं। विवाह संस्था की अपनी खुबी यह है कि वह आपको निष्ठा, साहस,धैर्य, आत्मनियंत्रण तथा ऐसी और भी कई महत्त्वपूर्ण विशेषताओं के बारे में सिखाती है।

याद रखिए यही बाते हमारे सभी संबंधों के प्रबंधन में सहायक हो सकती है।

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औरों के लिए जीना

' परमात्मा ने संसार को रचा है , अपने बंदों ( मनुष्यों )

की सहायता करने वालों से ईश्वर सदा प्रसन्न रहता है। '

- गुरु नानक देव

यह बात सच है कि प्रसन्नता एक ऐसी अनुभूति है जो सभी के चेहरों पर मुस्कुराहट, आंखों में चमक, चाल में मस्ती में हल्कापन और मन में जोश भर देता है। खुशी छोटी हो या बड़ी, हमेशा सुखद होती है। इसी खुशी की प्राप्ति के लिए हम सदियों से भटक रहे हैं। खुशी की परिभाषा सबके लिए अलग-अलग होती है। सबकी अपनी-अपनी इच्छाएं होती हैं, जिनकी पूर्ति होने से प्रसन्नता मिलती है। उसके बाद फिर नई इच्छा शुरू हो जाती है और जब तक वह पूरी नहीं हो पाती, तब तक हम उदास रहते हैं।

सोचें दूसरों के लिए

कभी अपने अलावा दूसरों के बारे में सोचकर देखें। किसी के उदास चेहरे पर हंसी लाकर, उसकी उदासी दूर करके देखें। कुछ पलों के लिए सही, दूसरे के चेहरे पर मुस्कान लाने का प्रयास तो करें। यह काम मुश्किल है, पर नामुमकिन नहीं। अपनी इच्छाओं, तकलीफों, द:ख-दर्द और परेशानियों को कहीं ताले में बंद कर दें। आप सोच रहे होंगे कि भला ऐसा कैसे हो सकता है? दूसरों के लिए कैसे जिया जा सकता है? लेकिन अपनी सोच में थोड़ा सा बदलाव लाकर देखिए। निराश व्यक्ति के लिए जीवन बेनर हो जाता है। जीवन उसे निरर्थक और व्यर्थ लगने लगता है। उत्साह, जोश, उमंग जैसे शब्द उसके व्यवहार से गायब ही हो जाते हैं। दुःख व परेशानियों के बोझ को ढोने की शक्ति उसमें होती तो है, पर लगातार हताशा में घिरे रहने से उसे लगता है कि वह शक्ति उसमें नहीं रह गई है। ऐसे निराश व्यक्ति की समस्या का हल निकालने का प्रयास करें। उसमें परेशानियों से लड़ने की क्षमता जगाएं। अगर उसे हंसा सके तो यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है और इससे प्राप्त खुशी कोई छोटी खशी नहीं है। जरूरत है, इसे उपलब्धि मानना और इस तरह की खुशियों को बटोर कर अपने और दूसरों के जीवन को संवारना।

संसार के सभी बड़े और सफल व्यक्तियों के जीवन में एक बात सामान्य है वह है दूसरों के लिए सद्भावना और उनके लिए भी समय तथा धन का निवेश। विप्रो उद्योग समूह के कर्ता-धर्ता अजीम प्रेम जी गरीबों और बच्चों के लिए कई संस्थानों का संचालन करते हैं। कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी की दुनिया में एकछत्र राज करने वाले अमरीका के खरबपति बिल गेट्स और उनकी पत्नी मेलिंडा गेट्स भी इसी तरह के कई संस्थानों के माध्यम से लोगों की दुनिया भर में मदद करते हैं। टाटा उद्योग समूह की मुनियादी नीतियों में भी सामुदायिक कल्याण के कार्यक्रमों पर धन व्यय का प्रावधान है, और बहुत मामूली नौकरी से पूरी दुनिया में अपनी कामयाबी की धाक जमाने तक की वाहन यात्रा तय करने वाले रिलायंस समूह के संस्थापक धीरुभाई अंबानी अपने सहकर्मियों, निवेशकों और अपने उद्योगों के आस-पास रहनेवाले लोगों के लिए धन और समय व्यय करके उसकी समस्याओं का समाधान करते थे।

एक बात निश्चित है कि केवल अपने लिए जानेवाले लोगों को आसानी से सफलता नहीं मिलती और जब आप दूसरों के लिए भी अपनी सफलता और संसाधनों का उपयोग करना आरंभ कर देते हैं, तब वह सफलता औरों के लिए एक मिसाल बन जाती है।

बातचीत से निकाले हल

जो वास्तव परेशानियां में बहुत छोटी होती है, वह भी चिंतित, व्यक्ति के मन के लिए बहुत बड़ा रूप धारण कर लेती हैं। कई बार तो केवल उनके बारे में बातचीत करने से ही हल निकल आता है या ऐसा लगता है, जैसे राई का पहाड़ बन गया था। अक्सर छोटी-सी बात पर मतभेद या संवाद विच्छेद हो जाता है, ऐसे में अगर आप पहल करके आपसी समन्वय कराएं, तो वास्तव में आपको आत्मिक खुशी मिलेगी। ऐसा नहीं है कि दु:खी और परेशान लोगों को ढूंढ़ने सड़क पर जाना पड़ेगा या घरों में घंटी बजा-बजाकर पूछना पड़ेगा। अपने घर, मित्रों, पड़ोस में या जहां काम करते हैं, वहीं अनेक लोग मिल जाएंगे। दूसरों को खुशी देने के लिए किसी डिग्री या फीस की आवश्यकता नहीं होती।

खुश रहें और खुश रहने दें

एक-दूसरे का दुःख-दर्द समझने और छोटी बातों से खुश रह सकने की क्षमता हम सबमें प्राकृतिक रूप से होती है। इस सुंदर संवेदना को हम कृत्रिमता की दौड़ में कहीं खो आए हैं, और छलावे का जीवन जीने लगे हैं। यदि यह विचार अपने मन में किसी तरह जमा सकें कि हम दूसरों की परेशानी नहीं बढ़ाएंगे और उनकी चिंता को फिजूल कहकर हँसी में नहीं उड़ा देंगे, तो यह बात भी कुछ कम नहीं है।

आपने अपने बड़ों के मुंह से यह कहते अवश्य सुना होगा कि दिन-भर में एक काम अच्छा जरूर करो। उस एक अच्छे काम की प्रतीक्षा क्यों? शायद आज जरूरत है, थोड़ी-सी अलग समझ की। अपने लिए तो सभी जीते हैं, क्यों न थोड़ा-सा हम दूसरों के लिए भी जी लें।

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जीवन में भरें रंग

' प्रतिदिन कुछ नया सीखने , अधिक सफल व्यक्तियोंकी जीवन शैली की अनुकरण

करने का प्रयास करें , आपका व्यक्तित्व भी अनुकरणीय हो जायेगा। '

- बर्टेड रसल

सकारात्मक सोच की चर्चा चारों तरफ होती है। लेकिन कितने लोग हैं जो सचमुच इस पर अमल कर पाते हैं। हम सिर्फ रोजमर्रा की जिंदगी में झांके तो एक दिन में न जाने कितनी बार छोटी-छोटी बातों के लिए खुद को दुःखी, निराश, तनावग्रस्त करते हैं।

रोजमर्रा की उलझनें

सुबह दूधवाला देर से आए, बाई छुट्टी कर जाए या फिर बिजली-पानी गुल हो जाए तो एक घर में कितनी हाय-तौबा मचती है। कई लोग तो भोजन में थोड़ा सा नमक-मिर्च का संतुलन बिगड़ने से भी खुद को क्रोध के सागर में डुबो देते हैं, इतने दुःखी हो जाते हैं कि जैसे सारा संसार ही नष्ट होने जा रहा हो। जरा सोच कर देखें, तो पाएंगे कि ऐसी परिस्थितियों में ही इंसान की सोच और काबिलियत की पहचान होती है। कई बार तो नए विचार जन्म लेते हैं, नए विकल्प मिल जाते हैं, साथ ही हम हर बात, हर वस्तु और जिन्दगी का भी महत्व समझने लगते हैं।

क्षण में भी जीना सीखें

जिंदगी क्या बंधी-बंधाई दिनचर्या से बंधे रहकर जीने का नाम है? ऐसी जिंदगी तो कैलेंडर की तरह हो जाएगी, जिसका एक पन्ना रोज फटता है। अपने आशानुरूप कुछ न होने पर अवसादग्रस्त या दु:खी हो जाना तो जीने का सही ढंग नहीं है। पर अधिकतर लोग यूं ही जीवन गुजार रहे हैं, सोच-समझकर भविष्य की बेतुकी चिंता में वर्तमान की कुछ बेहतरीन चीजें, कुछ बेहतरीन लम्हों को खोकर, जो आपको इस जीवन में तो दोबारा नसीब नहीं होंगे। फिर आप चाहे कितना भी धन खर्च क्यों न करें। जो व्यक्ति वर्तमान को उपहार की तरह सहेजकर नहीं जीता, वह भविष्य को भी सहजता या प्राकृतिक खुशी के साथ नहीं जी सकता। इसको सकारात्मक चिंतन नहीं कहा जा सकता।

खुद से बाहर निकलें

इंसान की सोच अगर संकीर्ण हो, सिर्फ स्वयं पर या अपने लोगों पर ही केन्द्रित हो तो सोच धीरे-धीरे नकारात्मक होती चली जाएगी, और प्रगतिशील सोच नहीं बन सकेगी। ऐसे में जीवन की राह में घिसटते हुए बस यूं चलते जाना कि सांस जब तक चले तब तक जीना तो पड़ेगा बेहद बोझिल बन जाता है। दो अटल सत्यों जन्म और मृत्यु के बीच की अवधि ही तो असली जंग का मैदान है। इसे बुद्धिमत्ता, जीवंतता और समाजोपयोगी ढंग से नहीं लिया आए तो क्या इसे सही जीना कह सकते हैं? एक सपाट बदरंग या बेरंग और बेनर जिंदगी न तो आपमें और न ही आपके संपर्क में आने वाले किसी व्यक्ति में उत्साह या उल्लास का संचार कर सकेगी।

कई बार प्रौढ़ावस्था तक आते-आते लोगों का चिंतन यह हो जाता है कि अब क्या करना है, अब तो बच्चों का समय है. हमने तो अपनी जिंदगी गुजार ली। सोचिए, विदेशों में तो पैंतीस-चालीस के बाद ही असल जिंदगी शुरू होती है। अगर वहाँ भी लोग ऐसा सोचने लगे तो जी ही नहीं सकेंगे। हर उम्र का अपना आनंद, हर स्थिति का एक सुख है. इसे समझ लें तो जीवन आसान हो जाता है।

रात के बाद आती है सुबह

जीवन की डगर में सुख-दुःख, आशा-निराशा साथ ही लगे रहते हैं। कई लोग ये कहते हुए भी नहीं थकते कि सुख-दुःख तो एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। यानी कभी चित्त तो कभी पट तो होती रहेगी। पर जब हार होती है तो यूँ पस्त हो जाते हैं मानो जीवन में कुछ करने को रह ही नहीं गया हो। वे भूल जाते हैं कि हार के बाद जो जीत मिलती है, उसका नशा और मजा ही कुछ और होता है। संघर्ष से मिली जीत अधिक मीठी होती है।

असली मुद्दा तो यह है कि आप लगन और ईमानदारी से कर्म करते रहें। इससे जो आत्मसंतोष प्राप्त होगा वह किसी जीत से कम नहीं होगा। यही तो सकारात्मक सोच है। कैनवास पर जब तक रंगों से भरा ब्रश नहीं चलता, पेंटिंग नहीं बनती और कैनवास उदास और तटस्थ-सा लगता है। जीवन का भी यही दस्तूर है। आप चाहें तो इसे उल्लास और उम्मीदों के फूलों से भरकर चहकता गुलशन बना दें या सपाट जीवन के चलते वीराना बना दें। हर घटना-दुर्घटना में कुछ करने, पाने या जीवन को समझने का मौका मिलता है। तो क्यों न आज से, अभी से नकारात्मक ढंग से सोचना बंद कर दें। जीवन के हर पल में जीना सीखें, हर पल को यादगार बनाने की कोशिश करें और ऐसे जिएं कि जीना सार्थक हो जाए। हर पल को अपनी सकारात्मक सोच से भरकर सतरंगी बना दें।

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कृतज्ञता व्यक्त करें

' कृतज्ञता का अनुभव आपको विनम्र बनाता है और

आपका भला करने वाले को एक बेहतर इंसाना '

- अज्ञात

जरूरत पड़ने पर किसी के काम आने पर उसके प्रति आभार व्यक्त करना जरूरी होता है। कई बार छोटी-मोटी जरूरतों में हमारे आस-पास मौजूद लोग अपना अमूल्य समय देकर हमारी मदद करते हैं। ऐसे में उनके प्रति कृतज्ञता दर्शाना और उनको तहेदिल से शुक्रिया कहना आपका नैतिक फर्ज बनता है। चाहे हम घर में हों, दफ्तर में या फिर परिवार के बीच, हर जगह किसी संकट, बीमारी या अचानक आई जरूरत में लोग ही हमारे काम आते हैं।

धन्यवाद का प्रभाव

कई बार ऐसा समय आता है जब आपको अपने कार्यक्षेत्र, जैसे कि दफ्तर से छुट्टी लेनी पड़ती है। ऐसे में जिस भी सहकर्मी को आप दायित्व देकर जा रहे हैं, उसे बाद में शुक्रिया अवश्य कहें। सच कहा जाए तो यहां आपके शब्दों का जादू काम आएगा। इसके साथ जरूरी यह भी है कि आभार दिल से ही माना जाए। दिल के भीतर उसे महसूस करने के साथ ही अगर अपने व्यवहार या शब्दों से भी इसे जाहिर कर दें, तो इसका प्रभाव दोगुना हो जाता है। मसलन एक छोटा-सा बैंक यू कार्ड अपने सहकर्मी को आप थमा दें, या अगर इन छुट्टियों का पयोग आपने किसी दर्शनीय स्थल को देखने में किया हो तो वहां भी कोई यादगार वस्तु उसे भेंट स्वरूप दे दें तो इससे आपकी भावना ज्यादा प्रभावशाली ढंग से संप्रेषित होगी।

इन्हें भी चाहिए सराहना

घरेलू सहयोगी भी हमेशा काम आते हैं। खास तौर पर आजकल महानगरों की एकल पारिवारिक व्यवस्था में कामकाजी स्त्रियों की जिंदगी बगैर इनके चल ही नहीं सकती। बीमारी हो, त्योहार हो, बर्थ डे जैसे आयोजन हों या फिर घर में मेहमानों का जमघट लगा हो, घरेलू हेल्पर या बाई ही मदद के लिए आती है। इसलिए उन्हें एहसास कराया जाए कि उस वक्त उनका साथ होना आपको किस हद तक मुसीबत से बचा गया। बाई को आपका इतना कहना भर कि "स्मा, तुम न होतीं तो न जाने मेरी पत्नी और कितने दिन बिस्तर पर पड़ी रहती".... उसे अंदर तक भिगो जाएगा। इसी के साथ यदि आप अपनी इस घरेलू हेल्पर को कोई छोट-सा तोहफा भी दे दें, तो सचमुच वह आपकी तारीफ करते नहीं अघाएगी।

संबंधियों के प्रति हों कृतज्ञ

शिशु जन्म हो या फिर बच्चों की शादी-ब्याह का समय, संगे-संबंधी ऐसे में बहुत काम आते हैं। निशा और टीना देवरानी जेठानी है। टीना पहली बार गर्भवती हुई तो निशा ने पूरे समय उसका खुब ध्यान रखा। टीना की सास नहीं थी, लेकिन निशा ने उसकी कमी पूरी कर दी। आज टीना सबको कहते नहीं थकती कि निशा भाभी पर यदि मैं सब-कुछ कुर्बान कर दूं तो वो भी कम है। जाहिर है, यह सुनकर निशा भी बहुत खुश हो जाती है।

टीम का करें धन्यवाद

पढ़ाई के दौरान या सफलतापूर्वक किसी प्रोजेक्ट पर विजय हासिल करने में जिन-जिन लोगों ने आपकी मदद की है, उन्हें दिल को गहराइयों से धन्यवाद दें। उन्हें शुक्रिया करने के लिए आप गेट-टुगेदर का आयोजन कर सकते हैं, आपके विजय अभियान में शामिल सभी लोगों को समान तवज्जो दें और अलग-अलग सभी को उनकी अहमियत दर्शाएं। आपकी विनम्रता आपका आगे का मार्ग प्रशस्त करेगी।

इसके अलावा सर्वप्रथम उस परमात्मा को धन्यवाद दें, जो सृष्टि के रचयिता है। उन माता-पिता को शुक्रिया कहें.... जिनके कारण हमारा इस दुनिया में अस्तित्व है। दिन में थोड़ा-सा समय परमात्मा के स्मरण में बिताएं। माता-पिता को भरपूर सम्मान दें, समय-असमय उनकी सलाह लें, उनका ख्याल रखें एवं उनकी छत्रछाया में खुद को सौभाग्यशाली समझें, क्योंकि उनके ही कारण हम हैं।

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सीख लें , असफलताओं से

' दसरों की सफलता से अधिक श्रेष्ठ है , अपनी असफलता

के कारण जानना और स्वयं में सुमार का प्रयासा '

- डॉ. श्यामा प्रसाद मुखजी

क्रिकेट की दुनिया के सुपर स्टार बन चुके महेन्द्र सिंह धोनी के पिता पान सिंह एक कंपनी के छोटे कर्मचारी थे। आरंभ में धोनी को बैडमिंटन और फुटबाल का शौक था। इन खेलों में उनकी रुचि होते हुए भी उन्हें कोई बड़ी सफलता नहीं मिली, फिर भी वह निराश नहीं हुए और क्रिकेट पर ध्यान देना शुरू किया। अपनी कमियों को दूर करते हुए वह निरंतर सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गये।

मरने का भय, असफलता की दुश्चिता, विशिष्ट होने व दिखने का दबाव, सफल होने की सामाजिक जरूरत और प्रतिस्पर्धा में हमेशा अव्वल होने की लगातार और लक्ष्यहीन दौड़ के बीच क्या छुट रहा है, हम कभी रुककर नहीं सोचते, इसीलिए हम समझ नहीं पाते कि इसमें हम क्या खो रहे है?

सफलता को एक मूल्य की तरह स्थापित किए जाने वाले दौर में सहजता सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसलिए जीवन में सहजता और सरलता से प्राप्त होने वाली खुशियों को बर पड़े संदूकों से निकालें। कभी-कभी तेज ठंड में नदी में तैरने का आनंद लें। भीगते हुए भुय

खाने या पतंग लूटकर लाने जैसा बचपना भी करके देखें। अब खोल से बाहर जाकर देखें कि 'सामान्य' होकर जीने का क्या मजा है।

क्या कभी आपने महसूस किया है कि आपके भीतर होगा अज्ञात घटने की आशंका रहती है। जैसे जब किसी विशेष बीमारी संक्रमण फैला हो, (जैसे आजकल स्वाइन फ्लू का डर लोगों के दिल्ली है) अगर हम कहीं रेलगाड़ी से सफर कर रहे हो तो हमें डर रहता है कि कहीं गाड़ी में बम विस्फोट न हो जाए या कोई बड़ी दुर्घटना न हो जाए।

हम सभी हर समय डरे रहते हैं, आज से ही नहीं हमेशा से। इस मोटे होने से घबराते हैं। चेहरे पर झुर्रियां पड़ने की कल्पना से परेशान हो उठते हैं, नौकरी में असफल होने का डर हमें सताता हैं। रिश्ते बिगड़ने का डर सताता है। घर से निकलते हैं तो लगता है आज लौट पाएंगे या नहीं। कुल मिलाकर हम कई तरह के डर से घबराते हैं। लेकिन इससे हमें डरकर तो रहना नहीं चाहिए।

पर हम ऐसा क्यों नहीं सोचते कि अगर हमारे घर में फलां शेड का इस्तेमाल हुआ है तो क्या हुआ? अगर हमने फैशन से हटकर पुराने फैशन के कपड़े पहने है तो क्या हुआ? यदि हमारा वजन 5 किलो ज्यादा बढ़ गया तो क्या हुआ? अगर हमारे बच्चे दूसरों की तुलना में ज्यादा अच्छे नहीं हैं तो क्या हुआ? अगर हमारे पड़ोसी गोवा घूमने गए और हम जयपुर मुश्किल से जा पाए तो क्या हुआ?

हमें अपने कमतर होने पर अपमानित नहीं होना चाहिए। यह हमारे लिए महत्त्वपूर्ण है कि जीवन में हमें जो कुछ मिला है, उसे लेकर हम खुश रहे। और जो हमारे पास नहीं है, उसका गम न पालें। वर्तमान में जिए, भावष्य की चिंता करके अपने को बड़ी परेशानी में न डालें। यह ज्यादा महत्वपूण है कि हम अपने भीतर की शांति के लिए प्रयास करें। कोई भी व्यक्ति जीवन में पूर्ण नहीं होता। हाँ, इतना जरूर है कि व्यक्ति 'जियो और जीने दोक मूल मंत्र को समझ ले तो वह निश्चित रूप से खुश रहेगा।

हर समय अपने आपको विशिष्ट बनाने. विशिष्ट समझने का - सामान्य बनने की कोशिश करें। अपनी असफलताओं से साख स्वीकारें, अपनी उन्नति की भाति असफलताओं का भी जश्न मनाएं। क्योंकि ये दोनों एक-दूसरे से जुड़ी है। असफल रहने का डर हमें किसी भी नई चुनौती को स्वीकारने से डराता है। इसलिए असफलता के इस भूत को उतार कर फेंक दें।

हर समय अपनी सेहत को लेकर परेशान न रहें। अपने रोज लेने वाली कैलोरीज पर निगाह जरूर रखें। फिट रहने के लिए कुछ हद तक कसरत करें, लेकिन अपनी सेहत के प्रति अत्यधिक सजग रुख को अपने जीवन पर हावी न होने दें।

छोटी-छोटी चीजें जीवन को कितना सुख देती हैं, उतना सुख हमें जीवन की बड़ी चीजें भी नहीं दे पातीं। घूमते हुए कभी अपने आस-पड़ोस की रेहड़ी पर खड़े होकर गोल-गप्पे और पापड़ी-चाट खाएं। देखें, कितने स्वादिष्ट लगते हैं। इस तरह की बातें हो सकता है आपने लंबे समय से न की हों और आपको करने में हिचक हो रही हो, लेकिन ऐसा करके तो देखें इससे आप अपने इर्द-गिर्द छाए भय के आतंक से आप संक्रमण मुक्त हो सकेंगे।

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भूलने की आदत

" भूलना कोई रोग नहीं , अपितु आपमें एकाग्रता की कमी का प्रतीक है। '

- इमर्सन

किसी चीज को रखकर भूल जाना, किसी का नाम भूल जाना व कोई बात भूल जाना जैसी समस्याओं से हम सभी को जूझना पड़ता ही है। भूलना एक आदत भी हो सकती है, और एक मनोवैज्ञानिक समस्या भी, जिससे छुटकारा पाने के सटीक उपाय लोग दूंढ़ते रहे हैं, पर वे उन्हें मिल नहीं पाते। 'द मैमोरी बुक' के लेखक हैरी लारेन और जेरी लुफाम का कहना है कि मानसिक रूप से किसी वस्तु या बात को दूसरी बात से जोड़े रखने से भूलने की आदत पर काबू पाया जा सकता है। इसके साथ ही कुछ छोटे-छोटे टिप्स अपनाकर भी आप ऐसा कर सकते हैं:-

1. दिमागी कसरत जरूर करें

विशेषज्ञों का कहना है कि हर रोज कम से कम 15 मिनट किसी भी तरह की दिमागी कसरत करके हम भूलने की आदत से काफी हद तक छुटकारा पा सकते हैं। इसके लिए शतरंज, कैरम ताश, सुडोकू, और क्रॉसवर्ड पहेलियों में से किसी एक को आप चुन सकते हैं। इनके अलावा आप अपनी रूचि का ऐसा कोई दूसरा काम भी अपना सकते हैं, जिसे करने से दिमागी कसरत तो हो ही, आनंद भी आए। बड़े-बड़े कामयाब फिल्म कलाकारों की जीवन-शैली और उनके काम-काज के तरीकों का अध्ययन करने से पता चलता है कि जब वे शूटिंग नहीं कर रहे होते हैं, तो सेट पर अपने सहकर्मियों से हंसी-मजाक और बातचीत करके अपना दिल बहलाते हैं। सहस्त्राब्दि के महानायक के रूप में प्रसिद्ध अमिताभ बच्चन के बारे में यह सभी जानते हैं कि उनकी जो भी फिल्म फ्लोर पर होती है, वह उसी के गेटअप (वेश-भूषा) में अपने सहकर्मियों से मनोविनोद करते हैं। अपने पिता की तरह आरंभिक फिल्मों में असफल रहे उनके पुत्र अभिषेक भी इसी प्रकार से दिमागी व्यायाम के लिए तरह-तरह की शरारतें और हंसी-मजाक में लगे रहते हैं। बादशाह खान नाम से प्रसिद्ध फिल्म स्टार शाहरुख खान भी अपने रुतबे को छोडकर ऐसी गतिविधियों में जुट जाते हैं। खेल और खिलाडियों की दुनिया में मुकाबलेबाजी से जब भी समय बचता है, खेलों के सितारे भी या तो कुछ हल्का-फुल्का व्यायाम मैदान में ही कर लेते हैं अन्यथा अपने साथियों के साथ मस्ती करते हैं। संसद हो या देश की कोई भी विधानसभा राजनेताओं का कोई भी दल हो अथवा विचारधारा पर मतभेद हो, परंतु खाली समय मिलने पर वे भी एक-दूसरे के पास आकर इसी प्रकार से मनोविनोद और प्रचलित विषय से हटकर बातचीत करते हैं। यदि आप ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहते तो भी कुछ समय के लिए अपने काम से हटकर ध्यान की मुद्रा में बैठ जाइये अथवा शवासन में लेटकर अपने विचारों की दुनिया से अलग होने का प्रयास करिए। यह भी एक श्रेष्ठ गतिविधि है। इसके अलावा आप अपनी पसंद की कोई किताब जरूर पढ़ें। उससे आपको मानसिक सक्रियता का दूसरा आयाम मिलेगा।

2. नाश्ते के प्रति सजगता

यह एक वास्तविक तथ्य है कि नाश्ता नहीं करने से दिमाग को पूरी खुराक नहीं मिल पाती। जो हमारी स्मरण शक्ति को कम करता है। इसलिए नाश्ते के प्रति सजग रहना जरूरी है। दिमाग को चलाने के लिए ग्लूकोज की जरूरत होती है, जो हमें नाश्ते में लिए गए फल, सब्जी व अनाज से मिलता है।

3. पानी का भरपूर मात्रा में सेवन करें

पानी न केवल हमें जीवित रखने में सहायक होता है, हमारी स्मरणशक्ति को तेज करने में भी मददगार होता है। पानी कम पीने से डोहाइड्रेशन की समस्या हो जाती है, जिससे मानसिक भ्रम पैदा होता है और भूलने की समस्या को बढ़ावा मिलता है।

4. नियमित सैर या तैराकी भी लाभप्रद

नियमित रूप से सैर करना या तैराकी करना भी मस्तिष्क को सक्रिय रखने के लिए लाभप्रद होता है। ऐसा करने से दिमागी आक्सीजन क्षमता बढ़ती है और ग्लूकोज का मैटाबोलिज्म संतुलित रहता है, जो हमारी स्मृति को दुरुस्त रखता है।

5. भरपूर नींद

अच्छी नींद लेना भी जरूरी है। अच्छी नींद लेकर उठने के बाद दिमाग तरोताजा हो जाता हैं और बेहतर स्थिति में काम करता है। निद्रा चिकित्सा (स्लीप थिरैपी) विशेषज्ञों की राय में अच्छी नींद से स्मृति कोश ऊर्जावान रहते हैं।

6. अल्कोहल के सेवन से बचें

अल्कोहल का सेवन दिमाग के तंतुओं को क्षतिग्रस्त करता है और हम बहुत-सी बातें भूलने लगते हैं, इसीलिए जहां तक हो सके अल्कोहल के सेवन से बचें।

7. तनावग्रस्त न रहें

तनावग्रस्त व चिंताग्रस्त होने से भी हम चीजों को प्रायः भूलने लगते हैं, क्योंकि तनाव की स्थिति में होने पर हमारे दिमाग में कार्टिजोल नामक हार्मोन का रिसाव बढ़ जाता है। ये कार्टिजोल हार्मोन हमारे मस्तिष्क के तंतुओं को नुकसान पहुंचाते हैं, और हम भूलने की समस्या में ग्रस्त होने लगते हैं।

8. सीखने की क्षमता

अपनी भूलने की आदत से छूटकारा पाने के लिए सदैव ही नहीं चीजें सीखने को तत्पर रहें। इसके लिए कभी-कभी बाहर घूमने जाएं। नई जगहें देखें, लोगों से मिले-जुलें और सदैव कुछ नया सीखते रहें। इससे दिमाग नई ऊर्जा से भर जाता है और हम चीजों को बेहतर तरीके से याद कर पाते हैं।

9. दिमागी एकाग्रता बढ़ाएं

जब हमारा दिमाग तनावमुक्त और ऊर्जा से भरपूर होता है, तो हमारी एकाग्रता बढ़ जाती है, और हम भूलते नहीं हैं। एकाग्रता बढ़ाने के लिए रोज सुबह 10-15 मिनट प्राणायाम करें या कुछेक मिनट ध्यान के लिए बैठे। फिर स्वयं में फर्क देखें। पर ऐसा प्रतिदिन नियत समय पर नियम से करें।

10. सकारात्मक संबंध

अपना मेल-जोल ऐसे लोगों से अधिक रखें, जो कि निरर्थक बातचीत न करके उद्देश्यपूर्ण बातचीत करते हैं या सकारात्मक सोच रखते हैं, ऐसे लोगों से बातचीत करने से मस्तिष्क को नई सोच मिलती है, दिमाग में खुशी व उल्लास का संचार होता है, जो कि आपको चीजें भूलने नहीं देता।

11. मन में दोहराएं

कोई भी बात या क्रिया जो जरूरी है, अपने मन में कई बर दोहराने से मानस पटल में उसका चित्र अकित हो जाता है और जरूरत पड़ने पर तुरंत हम उसे याद कर पाते हैं। इसलिए ऐसा भी जरूर करें।

12. निकट वस्तुओं से संबंध जोड़ें

आसपास की चीजों से संबंध जोड़ना भी इस संदर्भ में महत्वपूर्ण होता है। जैसे यदि रेलवे स्टेशन पर वाहन पार्क करते समय मन में ये चिंता हो कि उसे दंढने में आपको परेशानी हो सकती है, उसे छोड़ने से पहले उसके आसपास का कोई संकेत चिन या अचल वस्तु याद रखें, जैसे बिजली का खंभा या कोई बोर्ड आदि। इससे आपको वहां तक पहुंचने में काफी सुविधा होगी।

13. चॉकलेट खाना भी लाभप्रद

विभिन्न खोजों से यह सिद्ध हो चुका है कि मिल्क चॉकलेट या डार्क चॉकलेट का सेवन हमारी दिमागी स्थिति को बेहतर बनाता है, हम चीजों को भूलने से बचे रहते हैं। दूध में चॉकलेट पाउडर मिलाकर पीने से भी लाभ होता है।

14. वस्तएं यथास्थान रखें

अंत में महत्त्वपूर्ण यह है कि यदि हम वस्तुओं को उनके नियत स्थान पर रखने की आदत बना लें तो काफी हद तक इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है, जैसे घर में चाबी रखने की जगह बनाना, जरूरी कागजों एक फाइल में लगाकर रखना और कमरे में किसी भी सामान को हर बार उसके नियत स्थान पर ही रखना।

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विश्वास के महत्त्व को समझें

" किसी अकेले व्यक्ति पर जिम्मेदारियां डाल देने के बजाय

कुछ चीजें उसके लिए ज्यादा मददगार हो सकती हैं। उसे

यह जानने दें कि आप उस पर विश्वास करते हैं। "

- बुकर टी वाशिंगटन

यह बात सभी जानते हैं कि जब लोगों के बीच विश्वास की डोर टूट जाती है, तो उनका एक साथ काम करना मुश्किल हो जाता है। इस स्थिति में टीम के सदस्य एक-दूसरे से बचने लगते हैं, वे सूचनाओं को सरलतापूर्वक नहीं बांटते, और एक-दूसरे की बातों पर तीखी नजर रखने लगते हैं, इसी के साथ वे सामान्य रूप से ईमानदार और खुली चर्चा से बचते हैं। किसी टीम के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं है।

टीम के सदस्य किसी विवाद का प्रभावी प्रबंधन कर सकें, इसके लिए उन्हें आपसी विश्वास की जरूरत होगी। इसके बिना टीम की जिंदगी अनुत्पादक और ठहरी हुई हो जाएगी।

टीम के सदस्य आपसी विश्वास बनाने के लिए कुछ गतिविधियां और काम कर सकते हैं, जिससे लोग प्रेरित होंगे। कुछ चीजें एक बार टूट चुके विश्वास को फिर से बहाल करने में भी सहयोगी हो सकती हैं।

कोई टीम अपने सदस्यों के बीच विश्वास कैसे पैदा कर सकती है? आइए मैं बताता हूँ उसके कुछ तरीके -

वायदे पर कायम रहें

अपने वायदे पर बेहिचक डटे रहें। अपने हिस्से का काम पूरा न कर टीम का स्तर न गिराएं। वायदे को पूरा करने में नाकाम रहना विश्वास को तोड़ने का तयशदा तरीका हो सकता है।

अपनी बात सुनिश्चित करें

आपकी सूचनाएं सटीक और ताजा हो। यदि लोगों की सूचनाओं की गुणवत्ता संदिग्ध रहती है, तो लोग उन पर अविश्वास करना शुरू कर देते हैं। अगर यही टीम का ढर्रा बन जाए तो सदस्य इस बात पर ध्यान देना छोड़ देंगे कि कोई दूसरा क्या कह रहा है।

अपना काम निपुणता से करें

लोग उसी व्यक्ति पर भरोसा करते हैं जो सक्षम और आत्म-अनुशासित होता है। उसके द्वारा किए गए कार्य और परियोजनाएं गुणवत्तापूर्ण और सटीक हों। प्रस्तुतिकरण पूर्ण और स्पष्ट हो, बैठकें प्रभावी रूप से चलाई गई हों। आप अपने कार्य में सतर्कता और कुशलता प्रदर्शित करें, तो लोग ध्यान अवश्य देंगे।

दूसरों में रुचि प्रदर्शित करें

क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति पर विश्वास करेंगे, जो स्वार्थी हो, टीम के अन्य सदस्यों के साथ रिश्ते बनाने की परवाह न करता हो, जो किसी से भी रिश्ता जोड़ता नजर न आता हो, अपने दायरे से बाहर न निकलता हो या दोस्त न बनाता हो?

निर्णय लेने में लोगों के साथ काम करें

लचीलेपन और रचनात्मकता का प्रदर्शन करें। लोग बुद्धिमत्तापूर्ण और संतुलित निर्णय लेने का बेहतरीन प्रयास करने वाले सदस्यों पर विश्वास करते हैं। यदि आपका चरम दृष्टिकोण परिस्थितियों के अनुरूप उत्पादक न लगे, तो उसे छोड़ दें। याद रखें, विश्वास किसी टीम को बनाने या तोड़ने वाला तत्त्व होता है।

विश्वास पर काम करें

अगर टीम में विश्वास संबंधी समस्या की झलक मिलती है, तो इसे वहीं रोकने की कोशिश करें और उस स्रोत को ढूंढे जिससे टीम के सदस्यों के बीच विश्वास घट रहा हो। उसे ढूँढकर उसका प्रबंधन करें। यदि सभी पक्ष इस पर काम करें तो विश्वास फिर से बहाल किया जा सकता है।

विवाद सुलझाएं

अनसुलझे विवाद अविश्वास को जन्म देते हैं। टीम में जल्दी विश्वास पैदा करने का एक तरीका यह है कि अनसुलझे विवादों को निपटाते चलें। टीम पर इनसे निपटने की जिम्मेदारी होती है।

विश्वास को देखें या महसूस करें तो सराहें जरूर

जब भी महसूस करें कि टीम का हर सदस्य आपसी विश्वास के एक स्तर तक पहुँच गया है, तो उन्हें बताए। यह एक टीम को तारीफ और खुशी का अहसास करा सकता है। आपसी विश्वास का जश्न मनाएं।

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सज्जनता से सफलता

' सज्जनता सबके प्रति दिखाओ , घनिष्ठता चुने हुए के

साथ ही , परंतु कुछ लोगों को निरंतर परखकर ही

विश्वासपात्र बनाना। ' - जार्ज वाशिंगटन

हमारे आस-पास मौजूद लोगों में से कुछ ऐसे होते हैं, जो सफल होना तो चाहते हैं, लेकिन उनके व्यक्तित्व का भोलापन और व्यवहार की सहजता उन्हें ऐसा करने से रोकती है। ऐसे लोग भोले और सीधे कहलाते हैं। इनके बारे में कहा जाता है कि ये कभी किसी का बुरा नहीं चाहते, लेकिन ये अपने समकक्षों से अक्सर पीछे रह जाते हैं। ये बड़े भावुक और संवेदनशील होते हैं और दिमाग से ज्यादा दिल की सुनते हैं।

ऐसे दस कारण जो सीधे और भोले-भाले लोगों की असफलता के साथ सीधे-सीधे जुड़े हैं, उनके बारे में मैं आपको नीचे बताने जा रहा हूँ। यदि आप भी ऐसे हैं तो इन सुझावों पर अमल करें, आप सीधे रहकर भी सफल बन सकते हैं।

पहला कदम

स्वयं पर भरोसाः अपने ऊपर विश्वास एक ऐसी मनोभावना है, जो आपके हर काम में आपका सबसे पहला साथी होती है। किसी काम की सफलता के लिए जी-तोड़ मेहनत से पहले आपको खुद पर भरोसा होना चाहिए कि आप काम को अंजाम तक पहुंचा सकेंगे। यदि ऐसा नहीं होगा तो आप भोले बनकर उसी भीड़ का हिस्सा बने रहेंगे जो खुद की योग्यता पर कम और दूसरों की सलाहों पर ज्यादा भरोसा करती है।

दूसरा कदम

योग्यता : आपकी योग्यता आपका सबसे बड़ा हथियार है। एक सफल और असफल व्यक्ति में योग्यता का अंतर ही सबसे प्रमुख अंतर होता है। आप मेहनत तो बहुत करते हैं, लेकिन योग्यता के सवाल को हमेशा टाल जाते हैं तो आपकी सफलता हमेशा अधूरा रास्ता तय करेगी। आपको सीधे रहकर सफल बनना है तो अपनी योग्यता को अपने समकक्षों से बेहतर बनाने के प्रयास करने होंगे।

तीसरा कदम

योजना : आपको खुद पर भरोसा है और आप योग्य भी हैं लेकिन आपके द्वारा काम करने का तरीका व्यवस्थित नहीं हैं तो न तो जिंदगी व्यवस्थित होगी और न ही दिनचर्या। अधिकांश सीधे लोगों की यही परेशानी रहती है कि वे योजना बनाने का गुर नहीं जानते और इसके अभाव में दूसरों पर निर्भर रहते हैं। जब उनके आस-पास के लोग योजना बनाकर अपना हित सिद्ध कर लेते हैं तो सीधे-सादे कहते सुने जाते हैं कि भलों का तो जमाना ही नहीं रहा। लेकिन ऐसा नहीं है, यदि आप खुद को सफल बनाने के लिए आवश्यक योजना और बैकअप तैयार रखें तो सफल जरूर बन सकते हैं।

चौथा कदम

बदलाव : 'जमा पानी सड़ जाता है और बहता पानी निर्मल बना रहता है, सफल लोगों की जिंदगी का भी यही दर्शन होता है। इसलिए वे बदलाव को सहजता से लेते हैं। आपका सरल और सहज होना विशिष्ट गुण बन जाएगा यदि उसके साथ कोई सकारात्मक बदलाव जुड़ जाए। आप अच्छे बने रहें लेकिन एक जगह न बने रहें। बदलाव समय की ही नहा, व्यक्तित्व की भी मांग है। यदि आप नहीं बदलेंगे तो समय तथा आस-पास के लोग बदल जाएंगे और आप फिर पीछे रह जाएंगे, एक पश्चात्ताप के साथ कि हम क्यों नहीं बदले?

पांचवां कदम

स्व - संघर्षः अधिकतर लोग केवल इसी उधेडबन में पीछे रह जाते हैं कि वे खुद से ही लड़ते रहते हैं। लड़ने की वजह एक अंतर्द्वंद होता है, जिसमें एक मन कहता है कि दूसरों जैसे बन जाओ और एक कहता है जैसे हो वैसे बने रहो। कुछ लोग तो जिंदगी-भर यही लड़ाई लड़ते रहते हैं, और खुद को ही भुला बैठते हैं। यह भावुक मन की अति संवेदनशील मनोवैज्ञानिक स्थिति होती है, जो किसी को भी असहाय बना सकती है। यदि आप ऐसा नहीं चाहते तो खुद को अंदर से मजबूत और स्वयं को स्व-प्रेरणा से सहयोगी बनाइए।

छठा कदम

चुनौती : आपका किया हर एक काम और आपको मिला हर मौका एक चुनौती की तरह होता है। जो लोग इस बात को समझकर व्यवहार करते हैं नकी सफलता की संभावना दूसरों के मुकाबले कई गुना अधिक बढ़ जाती है। चुनौती मन और शरीर को लक्ष्य की दिशा में साथ कर हमें लक्ष्य केंद्रित बनाती है। जो लोग चुनौती लेने से घबराते हैं, सफलता भी उनसे उतना ही घबराती है। स्वभाव की सहजता कई बार चुनौती लेने से रोकती है, लेकिन यदि सहजता को व्यक्तित्व व चुनौती को सफलता का मंत्र माना जाए तो आपकी बात बन सकती है।

सातवां कदम

सामूहिक भावनाः माना कि आप बड़े सहज, समझदार और योग्य व्यक्ति हैं, लेकिन यदि टीम के महत्व को भूलकर कोई काम करने में विश्वास रखते हैं तो आपकी सफलता एकाकी हो जाएगी। एकाकी से तातपर्य यह कि न तो आप मान सकेंगे कि आप सफल हैं और न ही दूसरों को जता सकेंगे। इसके विपरीत यदि आप टीम वर्क और साझेदारी से कोई काम करते हैं तो न सिर्फ आप सफल होते हैं, बल्कि आपको प्रतियोगिता के कारण अपने गुणों को निखारने का अच्छा अवसर भी मिलता है। टीम में अपनी सहज वत्ति के कारण आपको सम्मान भी मिलता है और सफलता भी।

आठवां कदम

भावुकता से बचावः काम कैसा भी हो उसमें आपकी भावुकता आपको ऐसा सब करने पर मजबूर कर देती है जिसे समझौता नाम दिया जा सकता है। कई काम ऐसे होते हैं, जो आपको साफ-सुथरी सफलता दिला सकते हैं, लेकिन आप सिर्फ इसलिए नहीं करते कि आपका मन आपके बस में नहीं होता। दिमाग जोर डालता है कि आपको ऐसा करना माहिए लेकिन दिल कहता है कि नहीं। ऐसा नहीं करना चाहिए। बेशक, आप ऐसा कुछ न करें जिससे दूसरों को नुकसान हो लेकिन दिमाग की सुनकर वो जरूर करें जिससे खुद को फायदा हो।

नौवां कदम

सहयोगी सोच - व्यवहारः सीधे लोग अपने व्यवहार की भावुक कमजोरी के कारण ही अक्सर धोखा खाते हैं। ऐसे लोग करना तो भला चाहते हैं, लेकिन उसका उल्टा हो जाता है। इस स्थिति को सोच और व्यवहार में सामंजस्य बनाकर आप अपना नैसर्गिक व्यवहार बनाए रख सकते हैं और सफल भी हो सकते हैं। आपका व्यवहार ही सफलता की गारंटी देता है, लेकिन व्यवहार ऐसा होना चाहिए कि वह आपका सहयोगी बने और दूसरों को भी बनाए। यदि आपका व्यवहार कमजोर और दब्बू प्रवृत्ति का रहा, तो बजाय सफलता पाने के आप शोषण का शिकार हो सकते हैं।

दसवां कदम

भय निवारणः अधिकांश सीधे लोग किसी काम को शुरू किए बिना ही भयग्रस्त हो जाते हैं। ये भय असफलता का कम और सोच का ज्यादा होता है। इसे अनुभव और आत्मविश्वास की कमी भी कहा जा सकता है। अधिकांश लोग डर की कल्पना से ही इतने प्रभावित हो जाते है कि किसी काम को हाथ में लेने से पहले ही हार मान लेते हैं। उन्हें लगता है कि वे कोई काम कर ही नहीं सकते और यदि करेंगे तो सफल नहीं होंगे। वे इसी सोच से डरे रहते हैं और उनके सामने समकक्ष लोग बिना डरे सफल बन जाते हैं। सफल लोग किसी खास किस्म के नहीं होते और न ही इन्हें ईश्वर द्वारा कोई शक्ति मिलती है। वे तो बस प्रयास करने में विश्वास रखते हैं, डरने में नहीं।

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व्यक्तित्व और सफलता

' खुद को दूसरों पर थोपने से व्यक्तित्व प्रभावशाली नहीं बनता। '

- कन्फ्यूशियस

अपने विषय की अच्छी जानकारी, कार्य के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण और भरपूर उत्साह से संपन्न होते हुए भी ऐसा देखा जाता है कि कुछ लोग अपने जीवन में वह सफलता अर्जित नहीं कर पाते हैं जो कई मायनों में उनसे कमतर लोग हासिल कर लेते हैं। ऐसी स्थिति में व्यावसायिक योग्यता और दक्षता के बावजूद विफल लोगों के पास कुठित होकर कुढ़ते रहने के अलावा कोई और चारा नहीं बचता। कुछ लोग ऐसी स्थिति में अपनी विफलता के कारणों की तलाश करते हैं, तो कुछ भाग्य या व्यवस्था की त्रासदी मानकर हताश हो जाते हैं, हालांकि अगर थोड़ी समझदारी से काम लें और कारणों की तलाश करें तथा अपने विकास के लिए तत्पर हों, तो वे भी थोड़ी देर से सही परन्तु सफल हो सकते हैं।

दक्षता पर प्रस्तुतिकरण

इस संदर्भ में प्रख्यात प्रबधन गुरु शिव खेड़ा की बात ध्यान दिए जाने लायक है। वह कहते हैं, 'सफल लोग कोई अलग काम नहीं करते हैं, वह बस वह हर काम अलग तरह से करते हैं।' गौर से देखें तो योग्य लोगों के विफल होने के पीछे वजह उनकी दक्षता नहीं बल्कि सिर्फ अपनी दक्षता के प्रस्तुतिकरण में कमी होती है। खासतौर से भारतीय परिवेश में इसके मूल में सदियों से चली आ रही यह मान्यता है किसीरत देखिए, सूरत से क्या होता है। यह दार्शनिक बयान देते हुए लोग यह भूल जाते हैं कि सामाजिक शिष्टाचार, किसी के समक्ष अपनी बात रखने की कला, संपर्क बनाना और निभाना- ये सब ऐसी बातें हैं जो सूरत नहीं आपकी सीरत का ही हिस्सा हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इस दौर में तमाम भारतीय युवा जिन कारणों से मात खा रहे हैं, वह कुछ और नहीं यही सब है।

इन सामान्य बातों को ना सीख पाने से, कहीं न कहीं आपका व्यक्तित्व कमजोर बनता है। आम तौर पर देखा यह जाता है कि व्यक्तित्व की कमजोरियों की वजह से बार-बार समाज में अस्वीकार किए जाने के बाद लोग हताश हो जाते हैं। फिर वही लोग कहने लगते है कि क्या करें? अब हम तो ऐसे ही हैं। लेकिन नहीं, साहब! आपका ऐसे ही होना कोई नियति नहीं है और अगर आप समझदारी से काम लें, तो अपने होने के तौर-तरीकों को थोड़ा बदल लेने में कोई नुकसान भी नहीं है।

अस्तित्व में बदलाव नहीं

व्यक्तित्व में बदलाव का अर्थ कोई अस्तित्व में बदलाव नहीं है, बल्कि यह आपके विकास की प्रक्रिया का एक हिस्सा है। इसे बदलाव के बजाय विकास के अर्थ में लें, तो आसान हो जाता है। व्यक्तित्व को लेकर दर्शन की विभिन्न धाराओं ने तीन अलग-अलग विचार दिए हैं। दर्शन की एक धारा यह मानती है, कि आपके व्यवहारों पर जीन का नियंत्रण है। आप उससे भिन्न व्यवहार के लिए स्वतंत्र नहीं है।

दूसरा समूह यह मानता है कि आपका व्यक्तित्व आनुवांशिक व्यवस्था की देन नहीं है। जन्म के समय आपका दिमाग कोरा स्लेट था। न तो आपकी कोई मान्यता थी और न विश्वास और न आप खुद कुछ सोचते या समझते ही थे। जैसे-जैसे समाज से आपका संपर्क बढ़ा-परिवेश, शिक्षा और संस्कृति के प्रभाव से आप व्यवहार करना सीखते गए और इस तरह व्यक्तित्व बनता गया। आपकी सोच-समझ, आस्था और विश्वास भी समाज के प्रभाव से बने हैं। आवश्यकताएं और अनुभूतियां जरूर जन्मजात हैं, लेकिन उन पर प्रतिक्रिया का तरीका समाज की देन है। वह आपने अपने परिवेश व परिस्थितियों से सीखा है।

तीसरा समूह इन दोनों ही बातों से इनकार करता है। वह कहता है कि व्यक्तित्व न तो प्रकृति की देन है और न समाज की ही। यह ईश्वर की देन है, और इसे बदलने में आपकी इच्छा की कोई भूमिका नहीं हो सकती। ईश्वर ने आपको जैसा बनाया है, अपने आपको वैसा ही स्वीकार करना पड़ेगा। आपका होना आपके नहीं, ग्रहों-नक्षत्रों और ईश्वर के चाहने पर निर्भर है। इसलिए आपका व्यक्तित्व भी उनके ही हाथ में है।

विकासवाद से प्रेरणा

असल में डार्विन के विकासवाद के सिद्धांत ने विलियम हैमिल्टन, जार्ज विलियम समेत कई मनोवैज्ञानिकों को इस बात के लिए प्रेरित किया कि वे व्यक्तित्व के विकास की प्रक्रिया पर काम करें। उन्होंने यह मत दिया कि जिस तरह आपके शरीर के अंग विकसित होते हैं। उसी तरह व्यक्तित्व भी निरंतर विकासशील है। वह अपनी पात्रता और आवश्यकता के अनुसार प्रकृति से उपयोगी तत्त्वों के चुनाव के लिए स्वतंत्र है। सर्वाइवल ऑफ द फिटेस्ट के सिद्धांत के अनुरूप सभी स्वयं को निरंतर अधिकाधिक सक्षम बनाने में लगे रहते हैं। जीन की तानाशाही के साथ-साथ आप भी चयन की अपनी आजादी छोड़ते नहीं हैं। वे कहते हैं कि मृत्यु, दुर्घटना, जहरीले जीवों का भय, शर्मीलापन, अपराधवृत्ति या यौन रुचियां- ये सभी आनुवंशिकता की देन है। स्टीवेन पिंकट इस सूची में धार्मिकता, उदारता और कट्टरता को भी जोड देते हैं। विलियम पली सक्षमता, प्रवृत्ति और ईमानदारी या बेईमानी को भी इसमें जोड़ लेते हैं। हालांकि इस मुद्दे पर पैली की जर्बस्त आलोचना भी की गई।

आनुवांशिकता की बात निराधार

पैली के विरोधियों का कहना है कि दुनिया में ऐसी एक भी वृत्ति नहीं है, जिसे सबके ऊपर समान रूप से लागू होता माना जा सके। यहां तक कि मृत्यु का भय भी सभी पर समान रूप से लागू नहीं होता। आत्महत्या करने वाले और आत्मघाती दस्ते में शामिल लोग इसके उदाहरण हैं। मनुष्य का निर्माण करीब 20 से 30 हजार जीन के जरिए हुआ है। यह संख्या छोटी-सी मक्खी में पाई जाने वाली जीन की तुलना में बमुश्किल दोगुनी है। आपमें जो आनुवांशिक लक्षण हैं चिम्पेंजी में 95 प्रतिशत वही हैं। लेकिन उनके और आपके व्यवहार में 10 प्रतिशत की भी समानता नहीं है। इसी तरह एक ही रंग की त्वचा वाले सभी लोगों का व्यवहार एक जैसा नहीं होता है। बहिर्मुखी, अन्तर्मुखी, आशावादी, निराशावादी, अपराधी और उदारवादी सभी तरह के लोग सभी जगह पाए जाते हैं। यहां तक कि दो जुड़वां भाइयों या बहनों का व्यवहार भी एक जैसा नहीं होता है।

प्रकृति की देन नहीं

वैज्ञानिक आधारों पर यह बात कतई साबित नहीं होती कि व्यक्तित्व प्रकृति की देन है और इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता। एक ही परिवार और आनुवांशिक प्रभावों वाले दो व्यक्तियों के व्यक्तित्व की अलग-अलग विशिष्टताएं ये साबित करती हैं कि व्यक्तित्व कोई दैवी या केवल प्रकृति प्रदत्त तत्व नहीं है। यह निरंतर विकासमान प्रक्रिया का हिस्सा है, जिसमें आप अपने ढंग से जोड़-घटाव भी कर सकते हैं। जैसे समय के साथ आपकी समझ और शरीर का विकास होता है वैसे ही आप अपने व्यक्तित्व का विकास भी समय के साथ-साथ कर सकते हैं। इसके लिए जरूरत कुछ और नहीं, बस थोड़े धैर्य की है। अगर आप थोड़ा धैर्य रखें और धीरे-धीरे समझ के साथ अपने व्यक्तित्व के विकास की कोशिश करें तो थोड़े ही दिनों में आप पाएंगे कि आपका व्यक्तित्व पहले से भिन्न है।

बदलें आहिस्ता - आहिस्ता

अगर आप एकाएक अपने पूरे व्यक्तित्व को बदलने की कोशिश करेंगे तो सफल होना बहुत मुश्किल होगा। खुद आप भी अपने बदलाव को स्वीकार नहीं कर सकेंगे। बेहतर यह होगा कि आप अपने व्यक्तित्व के उन तत्वों को चिह्नित करें जो आपके व्यक्तित्व के विकास में बाधक हैं। फिर एक-एक करके उन्हें बदलने की कोशिश करें।

इस दिशा में सबसे पहली बाधा संकोच है। अधिकतर लोग यह सोचते हैं कि वे अब तक जैसा व्यवहार करते आए हैं आज अचानक अगर उसके उलट व्यवहार करेंगे तो लोग क्या सोचेंगे। खास तौर से उनके परिचितों की इस पर क्या प्रतिक्रिया होगी। लेकिन यह कोई बड़ी समस्या नहीं है। इसका तरीका यह है कि आप अपने व्यवहार या प्रवात्त में बदलाव के प्रयोग की शरुआत अपरिचितों के बीच करें। जब आप वहां अपने सुधरे हुए व्यवहार का अच्छा प्रभाव देखेंगे तो स्वयं ही आपका आत्मविश्वास जाग्रत होगा और आप अपने परिचितों के बीच भी बेहिचक अपने नए व्यक्तित्व के साथ आ सकेंगे।

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कैसे करें सर्वोत्तम प्रदर्शन .

' हम ऐसी स्थिति में नहीं हैं , जहां हमारे पास करने के

लिए कोई संसाधन न हो। हमारे पास पहले से ही

क्षमताएं , योग्यताएं , दिशा , लक्ष्य और अवसर हैं। '

- अब्राहम मास्लो

एक मनोवैज्ञानिक के अनुसार जीवन का रहस्य यह है कि आप एक 'वाद्ययंत्र' के रूप में अपने आपको पहचानें और फिर उसे बजाना सीखें। न तो बांसुरी बीन से बेहतर होती है और न ही सितार से संतूर की तुलना की जाती है। हर संगीत-वाद्य में कोई न कोई अच्छी बात होती है और अच्छे संगीत के लिए सभी के अद्वितीय योगदान की जरूरत होती है।

एक व्यक्ति के रूप में, हम सभी में अपनी कुछ योग्यताएं और क्षमताएं होती हैं, इसीलिए हम किसी काम को दूसरों से ज्यादा आसानी से और ज्यादा बेहतर तरीके से कर लेते हैं। हम किसी काम को पसंद करते हैं और किसी काम का विरोध करते हैं। लीडर्स के किसी समूह में यह पता लगाना मुश्किल नहीं है कि हर लीडर अन्य से अलग होता है। असाधारण नेतृत्व की कुंजी यह है कि लीडर अपनी क्षमता या विशेषज्ञता, रुचि के विषय और संगठन के मूल्यों के मिलन बिंदु को पहचाने।

यहां एक महत्वपूर्ण उदाहरण मुझे याद आता है। प्रसिद्ध उद्योगजे.आर. डी. टाटा से उनके कुछ सहयोगियों ने दरबारी सेठ नामक एक कैमिकल इंजीनियर और उनके 'बॉस' की अनबन का उल्लेख किया। टाटा ने कहा कि दरबारी सेठ उनके सुयोग्य व्यक्ति हैं और उन्हें स्वंतत्र कार्य करने का अवसर मिलना चाहिए। तमाम विरोधों के बावजूद टाटा ने उन्हें बेहतर अवसर दिया और बाद में दरबारी सेठ भारत के प्रमुख उद्योगपति बनकर उभरे। इससे संपूर्ण उद्योग जगत में टाटाओं को भी बहुत प्रसिद्धि मिली। उनके साथ काम करने वालों का भी मनोबल बढ़ा। टाटा उद्योग की इकाईयों में टीम भावना मजबूत हुई। टाटा को शेयर बाज़ार में भी अच्छी साख मिली।

करियर का सर्वश्रेष्ठ समय वह होता है जब कोई व्यक्ति यह महसूस करता है कि वह संगठन के लक्ष्यों को पाने के लिए उल्लेखनीय योगदान कर रहा है और बहुत सफल हो रहा है। हजारों व्यक्तियों से यह प्रश्न पूछने के बाद कि उनके करियर का सर्वोत्तम समय कौन-सा रहा है, उत्तर मिला कि करियर के सर्वश्रेष्ठ समय की तीन खूबियां होती हैं:

1. करियर का सर्वश्रेष्ठ समय किसी व्यक्ति की प्रतिभा और क्षमताओं पर आधारित होता है। जब कोई व्यक्ति अपने करियर का सर्वोत्तम प्रदर्शन कर रहा होता है, तब वह उन गुणों, ज्ञान और विशेषज्ञता का उपयोग कर रहा होता है जो उसे दूसरों से अलग बनाते हैं।

2. करियर का सर्वश्रेष्ठ समय इस तथ्य पर निर्मित होता है कि व्यक्ति किन कामों को जुनून की हद तक करना पसंद करता है। जुनून की हद तक पसंद के काम वे चीजें हैं, जिन्हें करना हम पसंद करते हैं, बगैर यह ध्यान दिए कि हम उन्हें कितनी अच्छी तरह से करते हैं, उदाहरण के लिए कई व्यक्ति बाथरूम में गाना पसंद करते हैं और यह जानते हुए भी गाते हैं कि वे अच्छा नहीं गाते।

3. करियर का सर्वश्रेष्ठ समय संगठन के महत्व को बढ़ाता है। जब सर्वोत्तम अनुभव बताता है, तो वह यह नहीं कहता कि, मैं उस काम को करने में पूरी तरह सक्षम था और मुझे वह काम बेहद पसंद भी था, लेकिन संगठन के किसी व्यक्ति ने इस बात पर ध्यान नहीं दिया।

जब आप अपनी क्षमताओं, अपनी रुचि और संगठन की जरूरतों के मिलन बिंदु क्षेत्र को खोज लेंगे, तब पाएंगे कि आप ज्यादा उत्साहित हैं और अपने काम से ज्यादा लगाव महसूस कर रहे हैं, आपका काम पहले से ज्यादा मजेदार हो गया है। इसके अलावा आप यह भी महसूस करेंगे कि आप संगठन के लक्ष्यों के लिए अपने साथियों की तुलना में ज्यादा योगदान दे रहे हैं। आपके प्रदर्शन के स्तर से भी यही बात जाहिर होगी। नेतृत्व की क्षमता की चाबी को खोजने के लिए:

  • अपनी क्षमता और रुचि को पहचानें :- अपने आपसे चंद सवाल करें कि मैं कौन-सा काम सबसे अच्छे तरीके से कर सकता हूं? जब लोग मेरी काबिलियत के बारे में बात करेंगे, तो पहले स्थान पर मेरा कौन-सा गुण होगा? कौन-से काम मुझे ऊर्जा से भर देते हैं और उनसे मुझे अत्यधिक संतुष्टि मिलती है?'
  • संगठन के मूल्यों को पहचानें :- जिस तरह हर व्यक्ति का व्यक्तित्व अद्वितीय होता है, उसी तरह संगठन भी अलग होते हैं। यह पता लगाएं कि आपके संगठन की जरूरत क्या है? यदि संगठन की जरूरतों का मेल उस काम से नहीं होता है, जिसे आप अच्छी तरह से कर सकते हैं और जिसे करने में आपको आनंद आता है, तो किसी दूसरे संगठन की खोज करें, जिसे आपके काम की जरूरत हो।
  • मिलन बिंदु की खोज करें :- असाधारण लीडर अपनी क्षमताओं, अपनी रुचि और संगठन की जरूरतों के मिलन बिंदु की खोज करते हैं। इससे उन्हें सर्वोत्तम प्रदर्शन करने का अवसर मिलता है।

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श्रेष्ठता के सिद्धांत

' श्रेष्ठता को अपनाइए। कार्यक्षमता बढाइए। सफलता आपके पैर चूमेगी। '

- श्री गुरुजी माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर

विभिन्न सफल व्यक्तियों की कामयाबी की कहानियों को अध्ययन करने पर पता चलता है कि उनमें कुछ गुण सामान्य थे।

1. स्व निर्णय : अपने निर्णय स्वयं लेने की क्षमता और उन पर अडिग रहकर स्वयं को सही सिद्ध करने की क्षमता। जैसे महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा को राजनीतिक शस्त्र तथा समाज को बदलने का माध्यम बनाया, तो बहुत-से लोगों ने उनकी आलोचना भी की। बापू ने बहुत-से कष्ट भी सहे। उपहास का पात्र बने। अंततः पूरे विश्व ने उनकी महत्ता और अपनाये गये मार्ग को सही माना।

2. आस्था : सभी सफल व्यक्तियों ने अनेक असफलताओं की आँधियों में भी स्वयं पर संदेह नहीं किया। महाभारत के युद्ध से ठीक पहले अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के इस निर्णय को अनेक प्रकार के उचित तर्क देकर बदलवाया और वही अर्जुन महाभारतकालीन सर्वश्रेष्ठ योद्धा बन कर विजयी हुआ। भारतीय उद्योग जगत के सिरमौरों में एक रतन टाटा को अनेक मामलों में कठिनाईयों ने पीछे ढकेलने की कोशिश की, परंतु उन्होंने नये प्रयोगों में, नई तकनीकों, नये प्रबंधन कौशल, निरंतर प्रयास तथा अपने निर्णयों पर आस्था नहीं छोडी और सफल हुए।

3. नवचिंतन : सभी सफल व्यक्यिों की सोच अपने समय के सभी समकालीनों से हटकर थी। तभी वे भीड़ से अलग दिखे और सबसे आगे निकलने के प्रयास में अग्रणी लोगों में गिने गये। विप्रो उद्योग समूह के मालिक अजीम प्रेमजी पेशे से इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे। उनकी सोच नैतिक मूल्यों पर आधारित एक संगठन सड़ा करने की थी। इसी आधार पर विप्रो एक ऐसा संगठन बना जो गरीबों और बेबस लोगों की सहायता में भी अग्रणी है। भारतीय मल की उद्यमी-प्रशासक 'पेप्सीको' की मुख्य कार्यकारी अधिकारी इंदिरा कृष्णमूर्ति नई को संसार की चौथी सबसे प्रभावी महिला माना गया है। यह स्थान उन्होंने निरंतर परिश्रम, अपने साथियों की सहायता के नये तरीके खोजने व अपनाने, जोखिम लेकर भी संस्थानों के कामकाज के वातावरण में सुधार, कम खर्च के तरीके लाग कराने और ग्राहकों की संतुष्टि पर अधिक ध्यान देकर प्राप्त किया। नूई कहती हैं, 'सफलता के लिए परिवार मित्रों और आत्मविश्वास पर भरोसा करना चाहिए।'

4. स्वप्नदृष्टा : सभी सफल व्यक्तियों में कल्पनाशीलता भी कमाल की पायी जाती है। वे अपना रास्ता अपनी विशिष्ट शैलो के बूते बनाते हैं। यह कोई विचित्र बात नहीं, यही हकीकत भी है। आप अपने लिये कार्य करनेवालों के हित का प्रयास कीजिए, उनके सपने पूरे करने में सहायता कीजिए। आप भी सफल होते जाएंगे। लोग आपको असफल होने ही नहीं देंगे।

5. विरोध से निर्भय : सफल व्यक्तियों का मार्ग कांटों भरा होता है। लोग उनका विरोध भी करते हैं। युवाओं को मैं बताना चाहूँगा कि दक्षिण भारत में भाजपा के युवा चेहरेबी. वाई. राघवेंद्र ने जब चार बार सांसद रहे एस. बंगारप्पा को पराजित किया, तो सहजता से लोगों को विश्वास ही नहीं हुआ। राघवेंद्र कहते हैं, 'मेरा विरोध वे कर रहे थे, जिन्हें राजनीति की मझसे कहीं अधिक समझ थी। स्वयं मैं नहीं जानता था कि इस विरोध का मेरे भविष्य पर क्या प्रभाव होगा। मैंने अपना कार्य पूरी मेहनत से किया।' कर्नाटक के मुख्यमंत्री वी.एस. येदुरप्पा के पत्र विकेंद्रीकरण, विकास की गति तेज करने और समाज के सभी वर्गों के विकास के हित में बोलते हैं। सबको साथ लेकर चलते हैं। ऐसे में सफलता तो मिलनी ही है।

6. नये प्रयोग : लीक पर चलनेवाले लकीर के फकीर बनकर रह जाते हैं। आम ढर्रे को हटकर जो भी व्यक्ति उपयोगी प्रयोग करता है, उसे सफलताएं मिलती चली जाती हैं। पूरे विश्व में योग गुरु के रूप में विश्वविख्यात बाबा रामदेव से पहले भी योग, प्राणायाम और आयुर्वेद का नाम था, परंतु उतनी स्वीकार्यता नहीं थी जितनी केवल एक दशक के स्वास्थ्य, समस्याओं और रोगों से जोड़ने के कारण मिली। आज बाबा रामदेव एक अत्यंत सफल और विश्वस्तर की ख्याति प्राप्त योग गुरु हैं, उनके बनाये हुए अनेक संस्थान लोगों के काम आ रहे हैं।

7. निष्काम कर्म : ईशोपनिषद के अनुसार सफलता तथा कल्याण के लिए ज्ञान और कर्म दोनों की आवश्यकता होती है। प्रसिद्ध उद्योगपति अनिल अंबानी कहते हैं, 'मेरे लिए सफलता के पीछे भागने का कोई महत्व नहीं है। मैं एक कार्य पूरा होते ही दूसरा कार्य हाथ में ले लेता हूँ। हर लक्ष्य को आप प्राप्त कर सकें यह भी आवश्यक नहीं, परंतु प्रयासों में तनिक भी कमी नहीं होनी चाहिए।' यह बात संसार के सभी सफल व्यक्तियों में पाई जाती हैं।

8. धर्मानुकूल आचरण : ईशोपनिषद् में कहा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति का धर्म केवल अपने कर्तव्य का निर्वहन है, अर्थात कर्तव्य पालन धर्म संगत है। ईशोपनिषद के प्रथम तीन मंत्रों में केवल पांच प्रकार के कर्म अथवा कर्तव्यों का उल्लेख है। उपनिषद कहता है जो भी व्यक्ति ईश्वर को सभी जगह व्याप्त मानकर अच्छे कार्य ही करता है, जो भी व्यक्ति किसी भी सुख-सुविधा अथवा दु:ख से अविचलित होकर अपना कर्तव्य निर्वहन करता है, जो भी व्यक्ति दूसरों की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप किये बिना और बिना लालच कार्य करता है, जो फल परिणाम की आकांक्षा रहित कार्य करता है तथा उसे भी व्यक्ति अपनी अंतरात्मा के विरुद्ध समझ कार्य नहीं करता उसी को ईश्वर की समस्त कृपाएं प्राप्त होती है। आप समझ सकते हैं कि ईश्वर की सभी कृपाएं जिस पर होंगी उसे धन, यश, समृद्धि, सुख, स्वास्थ्य, संतान, परिवार, प्रगति और संपदा की क्या कोई कमी रह सकती है? ईशोपनिषद के अतिम अठारहवें मंत्र में प्रभु से सफलता की प्रार्थना करते हुए कहा गया है कि एकाग्रता से अच्छे कार्य कीजिए सफलता मिलना निश्चित है।

9. श्रेष्ठता के लिए इच्छा रखें : एक उपनिषद कठोपनिषद आकार में छोटा है, परंतु इसमें जीवन जीने तथा सफलता के बीज सिद्धांत मिलते हैं। इसमें संवादों के माध्यम से ब्रह्म और तत्त्वों का ज्ञान दिया गया है। कठोपनिषद में कहा गया है कि सफलता प्राप्त करने के दो मार्ग हैं, एक सरल तथा सुविधापूर्ण है एवं दूसरा श्रेष्ठ परंतु कठिन। जो कठिन है, वही मार्ग संसार में स्थायी यश, कीर्ति एवं वैभव दिलाने का साधन है। कर्तव्य पालन में जो भी व्यक्ति कष्ट सह कर भी जुटा रहता है उसे ही स्थायी आनंदपूर्ण तथा श्रेष्ठ उपलब्धियां मिलती हैं।

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ढूँढ लीजिए खुद में

छुपी खूबियां

' दूसरों के गुणों को जानने से अधिक लाभकारी है , स्वयं

अपने गुणों और अवगुणों को जानकर आचरण करना। '

- महर्षि अरविंद

कई लोग अपने व्यक्तित्व व करियर को लेकर हमेशा हीन भावना से ग्रस्त रहते हैं। अक्सर ऐसे लोगों को शिकायत होती है कि सबसे ज्यादा परेशानियां, समस्याएं, चिंताएं जिन्दगी ने उन्हें ही दी हैं। ज्यादातर लोग सिर्फ अपनी कमजोरियों को ही याद रखते हैं।

'मेरी आंखें आकर्षक नहीं.... मेरे होंठ मोटे हैं, मेरी त्वचा में चमक नहीं, मेरा कोई काम ठीक से नहीं हो पाता.मैं अपनी बात सही तरीके से रख नहीं पाता' वगैरह-वगैरह बहुत सारी शिकायतें हमारे आसपास घूम-घूमकर अंदर तक घर कर जाती हैं। यह हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि अपने व्यक्तित्व का नकारात्मक पक्ष हमें बहुत जल्दी नजर आता है।

मनोवैज्ञानिकों के अनसार अपनी आलोचना से हमारा मनोबल तो गिरता ही है, अंदर ही अंदर आत्महीनता की ग्रंथियां हमारी निराशावादी सोच को कब बढावा देती चली जाती हैं पता ही नहीं चलता। अक्सर हमारे सोचने का तरीका हमारे माहौल से प्रभावित होता है।

हमारे विकास की प्रक्रिया हमारी सोच को सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, पर इस नकारात्मक प्रभाव से व्यक्तित्व को मुक्त कर पाना इतना मुश्किल भी नहीं है। किसी भी क्षेत्र में सफलता अर्जित करने के लिए सबसे जरूरी है कि हम अपनी क्षमताओं तथा विश्वास को जाने और समझें।

स्वयं की खूबियों का आकलन करने के लिए आत्मनिरीक्षण करना ही सबसे अच्छा यही तरीका है। जरूरी है कि बखुबी इसे ईमानदारी से किया जाए। आत्मनिरीक्षण के बाद अगर आपको खुद में कोई कमी नजर आती है तो हीनभावना लाने के बजाय यह देखें कि आप कौन-सा कार्य सबसे अच्छे ढंग से कर सकते हैं। इसके लिए अपनी रुचि संपन्नता को धीरे-धीरे संवारें।

जीवन में आगे बढ़ने के लिए महत्वाकांक्षी होना जरूरी है, पर इसका मतलब यह नहीं कि आपकी शत-प्रतिशत इच्छाएं पूरी हों। अति महत्वाकांक्षी होना आत्मघाती है। कल्पनालोक में रहने की आदत यदि आपमें है, तो धीरे-धीरे इस छोड़ दीजिए, अपनी उपलब्धियां, छोटी-छोटी सफलताओं, उन्नत पायदानों पर चलने की ललक महसूस करना, एक ऐसी कला है, जो मन को असीम संतुष्टि से भर देती है।

सफलता का अर्थ यह बिल्कुल नहीं होता कि आप ढेर सारा धन कमाएं और बड़े से बड़े बंगले में रहें। इसका अर्थ है कि प्रतिदिन आपने उस लक्ष्य को पाने की चेष्टा की है जिसे आपने अपने लिए चुना है, जिसे आप अपने व्यक्तित्व के योग्य समझते हैं। लक्ष्य कैसा भी हो, वह हमारे अस्तित्व को अर्थ देता है।

करियर में सफल होने के लिए अच्छी पढ़ाई, अच्छी परवरिश का काफी महत्त्व है। परंतु ऐसा भी हो सकता है कि किसी कारण से बचपन में आपको अच्छी परवरिश नहीं मिली हो। कई अन्य सुविधाओं से आप वंचित रहे हों। इसका अर्थ यह तो नहीं कि अब कुछ नहीं किया जा सकता।

अगर आप महान व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ेंगे तो पाएंगे कि सारी विषम परिस्थितियों के बावजूद जीवन को बेहतर बनाया जा सकता है। जरूरत है स्वयं को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखने की।

यदि कोई आपके व्यक्तित्व पर नकारात्मक टिप्पणी करता है तो उसे भूल जाएं। बेहतर यह होगा कि आप सिर्फ वैसे ही लोगों से दोस्ती करें या करीबी संबंध बनाएं जो आपकी खामियों के जिक्र के साथ खुबियों की भी सराहना करें। आशावादी व्यक्ति का साथ हर नजरिए से अच्छा है। निराश व्यक्ति का साथ निराशा ही बनाएगा।

अगर कोई आपके लिए कुछ करता है तो खुले दिल से उसे धन्यवाद दें। दूसरों के अच्छे गुणों की प्रशंसा कीजिए। ये नन्हें-नन्हें हीरों की तरह चमकती बातें ही जीवन को चमकीला बनाती हैं। जैसे व्यवहार की आप दूसरों में अपेक्षा करते हैं, दूसरों के साथ भी वैसे ही पेश आइए।

कभी कोई बात मन को छू जाए, कोई प्रशंसा मधुर एहसास दे जाए, जब बड़ों का आशीर्वाद आपको सहज मिल जाए तो कहीं ना कहीं उसे नोट कर लें। अपनी उपलब्धियों.... अच्छी स्मृतियों.... रिश्तों की गहरी जड़ों..... पारिवारिक दु:ख-सुख की बातें..... माता-पिता के कारूण्य भाव या उनके द्वारा डांटने के चंद पलों के अलावा महत्त्वपूर्ण गुणों को डायरी में लिखें।

अगली बार जब भी नकारात्मक या निराशावादी विचार आप पर हावी होने लगे तो अपनी डायरी पदिए। आप पाएंगे कि आपका तनाव कम हो रहा है। जब आपको अहसास होता है कि आपके जीवन में अच्छी चीजें हैं और आपका ख्याल रखने वाले लोग भी हैं तो जीवन और भी आसान और सुंदर हो जाता है। इसे व्यावहारिक जीवन में उतारकर देखिए, आपको सब-कुछ आसान लगेगा। जीवन में सफलता पाने के लिए यह जरूरी है कि आप अपनी खूबियों और खामियों को। पहचानते हुए अपना लक्ष्य निर्धारित करें।

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जरूरी है भविष्यदृष्टि

' दूरदृष्टि , दृढनिश्चय और निरंतर प्रयास से आपको निश्चित सफलता मिलती है। '

- सुकरात

जे . आर . डी टाटा हमेशा कहते थे,"टाटाओं का बुनियादी उत्पाद और मूलभूत शक्ति उनके कारोबार और कारखाने नहीं, बल्कि उसके कर्मचारी हैं।"सर्वश्रेष्ठ नेतृत्वकर्ता चुनना, उन्हें प्रशिक्षित करना और इसके बाद उन्हें कारोबार की बागडोर सौंपना टाटाओं की कामयाबी का आधार रहा है।

जी.ई. उद्योग समूह के मुखिया वेल्व महसूस करते थे कि सर्वश्रेष्ठ लीडर्स मार्गदर्शन देने के लिए कर्मचारियों को कदम-दर-कदम निर्देश पुस्तिका प्रदान नहीं करते हैं। मजे की बात यह है कि 1950 के दशक की शुरुआत में जी.ई. ने मैनेजमेंट विशेषज्ञों की एक टीम को यह काम सौंपा था कि वे एक विस्तृत मैनेजमेंट नीति लिखें, जिसमें बहुत-सी बिजनेस समस्याओं का जवाब हो। किन्तु वेल्व की नजर में ऐसे किसी भी साधन या दस्तावेज का बहुत ही कम मूल्य था, जो मौलिक चिंतन को हतोत्साहित करता हो। वे महसूस करते थे कि सर्वश्रेष्ठ लीडर्स वही होते हैं, जिनके पास कोई नया विचार होता है और वे लोगों के सामने एक ऐसी भविष्यदृष्टि प्रस्तुत करते थे, जो दूसरों को काम करने के लिए प्रेरित करती थी।

सी.ई.ओ. के रूप में अपने शुरुआती भाषणों में से एक में वेल्व ने यह स्पष्ट किया था कि उनका इरादा कंपनी के लिए 'संपूर्ण' वृहद रणनीति या कदम-दर-कदम एजेंडा बनाने का नहीं हैं। इसके बजाय वे भविष्यदृष्टि को स्पष्ट करना चाहते थे और कंपनी के सामने कुछ स्पष्ट लक्ष्य रखना चाहते थे। वे हमेशा महसूस करते थे कि सर्वश्रेष्ठ लीडर भविष्यदृष्टा होते हैं। वे छोटे विवरणों में नहीं फंसते और न ही छोटी-छोटी बातों को अनावश्यक महत्त्व देते हैं, बल्कि उस भविष्यदष्टि के अनुरूप काम करने के लिए दूसरों को प्रेरित करते हैं।

एक सटीक ब्लूप्रिंट बनाने के बजाय भविष्यदृष्टि का सामान्य खाका खींचना क्यों बेहतर होता है, इसके कई कारण हैं। सबसे पहला कारण तो वेल्व यह सोचते थे कि भविष्यदृष्टि को स्पष्ट करना लीडर की जिम्मेदारी है और भविष्यदृष्टि के विस्तृत वर्णन के बाद उसे वास्तविकता में बदलना टीम की। जो लीडर विवरणों या छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देने में बहुत समय व्यतीत करता है, वह संभवतः अति-प्रबंधन का शिकार है। अधिक बेहतर तरीका यह है कि एक आम दिशा का संकेत कर दिया जाए और टीम को सही मार्ग तलाशने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया जाए।

आत्मविश्वासी टीमें हमेशा विश्वासहीन टीमों से अधिक सफल होंगी। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आपके पास एक

आत्मविश्वासी टीम है, उन्हें निर्णय लेने और खुद सोचने की छूट दें। बड़े लक्ष्य निर्धारित करें और यदि वे उन्हें प्राप्त न कर पाएं तो उन्हें इसकी कोशिश करने के लिए दंडित न करें। कुंजी यह है कि असंभव लक्ष्य तक पहुंचने की कोशिश करने में कर्मचारियों की मदद करें और जब वे लक्ष्य के करीब पहुंच जाएं, तो जश्न मनाएं। इससे पूरे संगठन में आत्मविश्वास का संचार होगा और आपकी टीम बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार होगी।

आप यह कैसे सनिश्चित कर सकते हैं कि आप भविष्यदृष्टा लीडर हैं, जो सूक्ष्म प्रबंधन नहीं करते हैं? नीचे लिखे सूत्रों को ध्यान में रखें:

  • भविष्यदृष्टि को लिख लें : भविष्यदृष्टि को स्पष्ट करने के लिए यह आवश्यक है कि आपके पास भविष्यदृष्टि हो और आप उसे पूरी तरह जानते हों। अपनी भविष्यदृष्टि को लिखने और उसकी व्याख्या करने की आदत डालें। उन तरीकों को भी लिख लें, जिनके द्वारा आप अपनी टीम तक इस भविष्यदृष्टि को पहुंचाने वाले हों।
  • छोटे - छोटे विवरणों को नजर अंदाज करें : भविष्यदृष्टि स्पष्ट करने का मतलब यह नहीं है कि आप हर बेटे-छोटे विवरण को विस्तार से स्पष्ट करें। लीडर के रूप में आपका काम केवल इतना है कि आप भविष्यदृष्टि स्पष्ट करें और यह सुनिश्चित करें कि उसे साकार करने के लिए आपके पास सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी हों।
  • उन लोगों को नौकरी और तरक्की , जो भविष्यदृष्टि को वास्तविकता में बदलने में सक्षम हों :- इंटरव्यू के दौरान उम्मीदवारों से यह पूछे कि किसी विशेष पेचीदा मामले का सामना वे किस तरह करेंगे। जो लोग अपनी ओर से सर्वश्रेष्ठ विचार सोच लेते हैं वे आपकी टीम के लिए अधिक उपयुक्त होंगे। उन लोगों को तरक्की दें, जिनकी सफलता का बेहतरीन रिकार्ड हो।

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कुछ व्यक्तित्व : जिन्होंने

सफलता की गाथा लिखी

हेनरी फोर्ड ( 1836-1947)

क्या थे - किसान परिवार में जन्मे फोर्ड को बचपन से ही मशीनों में रुचि थी। सोलह साल की उम्र में उन्होंने स्टीम इंजन और घड़ियां सुधारने का काम शुरू किया। बाद में उन्होंने कई व्यवसाय शुरू किए, लेकिन किसी में भी सफलता नहीं मिली।

आइडिया - फोर्ड को एक विचार आया कि क्यों न एक ऐसी कार का निर्माण किया जाए, जिसका उत्पादन और उपयोग बड़े पैमाने पर किया जा सके और वह आम आदमी की पहुंच में भी हो। एक बार उन्हें एक ऐसा इंजन बनाने का विचार आया, जिसके आठों सिलेंडर एक ही ब्लॉक में हों। उनके इंजीनियरों को पहले यह काम असंभव लगा लेकिन फोर्ड की जिद से वे इस काम में जुटे रहे और आखिर में उन्हें सफलता मिल गई।

क्या हुए - आज उनकी बनाई कारों पर दनिया चलती है। कार को दुनिया भर में लोकप्रिय बनाने का श्रेय फोर्ड को जाता है।

सर आइजैक न्यूटन ( 1642-1727)

क्या थे - न्यूटन के पिता उनके जन्म से पहले ही गुजर गए थे। उनकी मां ने दूसरी शादी कर ली तब उनकी नानी ने उन्हें पाला-पोसा। वे सिर्फ दो साल स्कूल गए। उनकी मां उन्हें किसान बनाना चाहती थी, लेकिन उनकी रुचि प्रकृति के रहस्यों को तर्कपूर्ण ढंग से सुलझाने में थी।

आइडिया - एक दिन जब वे बाग में टहल रहे थे, तो उन्होंने एक सेब को जमीन पर गिरते देखा। इस घटना से न्यूटन के भीतर जिज्ञासा जागृत हुई कि सेब नीचे क्यों गिरा, ऊपर क्यों नहीं गया। उन्होंने इस घटना का अवलोकन किया, और गुरुत्वाकर्षण शक्ति का नियम खोज लिया। .

क्या हुए - उन्होंने दुनिया को गुरुत्वाकर्षण और गति के नियम दिए। प्रकाश संबंधी सिद्धांत खोजे और पहली परावर्तित दूरबीन बनाई। कैलकुलस की उनकी खोज विज्ञान के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण साबित हुई।

डॉ . सैम्युअल जॉनसन ( 1709-1784)

क्या थे - डॉ. सैम्युअल के पिता किताब बेचते थे। बचपन में बीमारी की वजह से उनका चेहरा विकृत हो गया, और एक आंख खराब हो गई।

आइडिया - बचपन से ही सैम को पढ़ने की धुन थी। 19-20 वर्ष की उम्र में वे ऑक्सफोर्ड पढ़ने गए, लेकिन पैसों की तंगी के चलते बिना डिग्री लिए ही लौट आए। 1736 में एक स्कूल खोला, लेकिन वो भी नहीं चला। सफलता की तलाश में वे लंदन आ गए। उन्होंने पेट भरने के लिए पत्रकारिता की, दूसरों के नाम से किताबें लिखीं। बाद में प्रतिष्ठा मिली, लेकिन पैसा नहीं। फिर उन्होंने आठ साल तक मेहनत कर अंग्रेजी भाषा की डिक्शनरी तैयारी की। इस डिक्शनरी ने उन्हें प्रसिद्धि के साथ-साथ पैसा भी दिलाया।

क्या हुए - डा. जॉनसन 18वीं शताब्दी के प्रख्यात आलोचक, लेखकर, पत्रकार और कवि माने जाते हैं। अंग्रेजी भाषा उनके शब्दकोष के लिए उनकी ऋणी है।

ब्रूस ली ( 1940-1973)

क्या थे - दो कमरों के छोटे से फ्लैट में अपना बचपन गुजारने वाले ब्रूस ली 10 वर्ष की उम्र तक केवल गिनती ही सीख पाए थे।

आइडिया - मात्र 115 डॉलर के साथ वे अमेरिका पहुंचे। छोटी-छोटी भूमिकाएं निभाई। एक दिन अचानक वेट लिफ्टिंग करते समय उनकी कमर में इतनी गहरी चोट आ गई कि डॉक्टरों ने कुंग फू के लिए माफ इंकार कर दिया। ब्रूस ली दृढ़ संकल्प से दुबारा ठीक होकर लौटे।

क्या हुए - सिर्फ 33 वर्ष जिए। मगर इतने ही सालों में कुंग फ किंग और प्रख्यात अभिनेता के रूप में उभरे।

कोलंबस ( 1451-1506)

क्या थे - क्रिस्टोफर कोलंबस का बचपन से ही भारत की खोज करने का सपना था, जिसके लिए वे कई बार हंसी का पात्र बने। उनका मानना था, यदि पृथ्वी गोल है तो वह भारत की जमीन को जरूर खोज लेंगे। इसके लिए उन्होंने सत्रह साल की उम्र से ही जी तोड़ मेहनत की, लेकिन किसी ने भी उनका साथ नहीं दिया। स्पेन की महारानी ने जब उन्हें जहाज दिए, तो कोई भी उनके साथ जाने को तैयार न था। अंत में उन्होंने 88 कैदियों को ले जाने का विचार बनाया। कोलंबस भारत को तो नहीं खोज सके, लेकिन उन्होंने अमेरिका खोजा।

आइडिया - उन्हें भारत की खोज करने का विचार आया। इसके लिए उन्होंने हर मुश्किल को पार कर किया।

क्या हुए - क्रिस्टोफर कोलंबस को अमेरिका के खोजकर्ता के रूप में जाना जाता है।

कार्ल मार्क्स ( 1818-1883)

क्या थे - कार्ल मार्क्स का पूरा जीवन संघर्ष में बीता। जब वे 6 वर्ष के थे, तब उनके पिता ने अपने व्यावसायिक लाभ के लिए यहूदी धर्म छोड़कर ईसाई धर्म अपना लिया।

आइडिया - धर्म परिवर्तन की घटना ने उन पर इतना गहरा प्रभाव डाला कि उन्हें धर्म से नफरत हो गई। उग्र विचार और क्रांतिकारी गतिविधियों के कारण उन्हें जर्मनी, बेल्जियम और फ्रांस से निवासित कर दिया गया। उनके जीवन में हमेशा पैसे का अभाव रहा। उनके एक साल के पुत्र की जब मत्य हो गई तब उनके पास उसके कफन के लिए मा पैसे नहीं थे। उन्होंने तमाम परेशानियों के बावजद अर्थशास्त्र का अमरग्रथदास कैपिटल लिखा जिसने समाज की तस्वीर बदल दी।

क्या हुए - कार्ल मार्क्स ने दुनिया को साम्यवाद का पाठ पढ़ाया।

जार्ज वाशिगंटन ( 1732-1799)

क्या थे - 1732 में अमेरिका में जन्मे चार्ज वाशिंगटन की शुरुआत एक सैनिक के रूप में हुई।

आइडिया - सैनिक से सैन्य प्रमुख तक पहुंचे जार्ज की प्रेरणा और नेतत्व की वजह से साधनहीन सेना आठ साल तक शक्तिशाली अंग्रेज सेना से संघर्ष कर सकी और जीती। इस जीत के बाद जार्ज अमेरिका के सबसे लोकप्रिय व्यक्ति बन गए।

क्या हुए - जब राष्ट्रपति पद के लिए उन्हें चुना जाना तय हो गया, तब उसके बाद न्यूयार्क सिटी आने के लिए उन्हें अपने अमीर पड़ोसी से 600 डॉलर का कर्ज लेना पड़ा। उन्होंने अपनी सारी दौलत स्वाधीनता संग्राम में लगा दी थी। अनिच्छा के बावजूद अमेरिकी कालोनियों के बीच मतभेद और उत्तर तथा दक्षिणी प्रांतों में युद्ध की स्थिति देखकर उन्होंने राष्ट्रपति होना स्वीकार किया।

चार्ल्स डिकेंस ( 1812-1870)

क्या थे - डिकेंस ने जीवन में बहुत दु:ख झेले। पारिवारिक गरीबी के चलते वे चार साल तक ही पढ़ पाए। 12 साल की उम्र में वे बूट पॉलिश की फैक्ट्री में काम करने लगे। 15 साल की उम्र में एक वकील के क्लर्क बन गए।

आइडिया - लिखने के शौकीन डिकेंस मॉर्निंग क्रॉनिकल में रिपोर्टर बन गए। उन्हें अपनी लेखन योग्यता पर इतना कम विश्वास था कि वे अपनी पांडुलिपि डाक के डिब्बे में रात को डालते थे, ताकि किसी को पता न चले। शुरुआत में उनकी कहानियां अस्वीकृत होती रहीं। पहली कहानी के प्रकाशन के बाद मिली प्रशंसा और सम्मान ने उनकी जिंदगी बदल दी।

क्या हुए - धारावाहिक रूप से अखबारों में उपन्यास प्रकाशित करने। की परंपरा शुरू करने वाले चार्ल्स डिकेस 19वीं शताब्दी के महान उपन्यासकार हुए।

विन्स्टन चर्चिल ( 1874-1965)

क्या थे - बचपन में चर्चिल के हकलाने के कारण उनके सहपाठी उन्हें चिढ़ाया करते थे।

आइडिया - हकलाहट के बावजूद चर्चिल ने बचपन में ही तय किया कि वे एक अच्छे वक्ता बनेंगे। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जब ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ने इस्तीफा दे दिया तब ब्रिटेन को साहसी, अनुभवी और सैन्य पृष्ठभूमि वाले प्रधानमंत्री की जरूरत थी। चर्चिल इस पर खरे उतरते थे। राजनीति के अलावा उनका साहित्य जगत में भी विशेष योगदान रहा। इतिहास, राजनीति और सैन्य अभियानों पर लिखी उनकी किताबों की वजह से उन्हें 1953 में साहित्य का नोबल पुरस्कार मिला।

क्या हुए - चर्चिल ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने। वे 20वीं सदी के महानतम राजनेताओं में से एक रहे हैं।

स्टीफन किंग ( 1947)

क्या थे - खौफनाक उपन्यासों के बादशाह स्टीफन किंग के पास कभी मकान के किराए के पैसे नहीं थे। वे ट्रेलर में रहते थे।

आइडिया - एक दिन किंग को सिंड्रेला की तर्ज पर अलौकिक शक्तियों वाली एक लड़की की कहानी लिखने का विचार आया। कुछ पेज लिखने के बाद उन्हें लगा कि इस तरह का उपन्यास लोकप्रिय नहीं होगा। उन्होंने उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया। लेकिन फिर पत्नी के प्रोत्साहन से उन्होंने उपन्यास पूरा किया। 1973 में कैरी नामक यह उपन्यास प्रकाशित हुआ और किंग को 400 डॉलर मिले। इसके पेपरबैक संस्करण ने रिकार्ड तोड़ बिक्री से उन्हें नई सफलता दिलाई।

क्या हुए - वे पहले लेखक हैं जिनकी तीन पुस्तकें एक साथ न्यूयार्क टाइम्स की बेस्टसेलर सूची में थीं। उनकी ढाई करोड़ से अधिक पुस्तकें बिक चुकी हैं।

अलेक्जेंडर ग्राहक बेल ( 1847-1922)

क्या थे - अलेक्जेंडर ग्राहम बेल का विद्यार्थी जीवन सामान्य था। वे बोस्टन यूनिवर्सिटी में बधिरों की भाषा सिखाते थे।

आइडिया - बधिर भाषा सिखाते समय उन्हें एक बधिर लड़की से प्रेम हो गया। वे एक ऐसी मशीन बनाना चाहते थे, जिससे उनकी प्रेमिका सुन सके। इस मशीन को बनाते समय उन्हें टेलीफोन बनाने का ख्याल आया और वे उसमें जुट गए। उन्होंने सोचा कि जिस तरह कान के पर्दे पर छोटी-सी झिल्ली कान की हड्डियों को हिलाती है, उसी तरह अगर लोहे की झिल्ली लोहे से बने ढांचे को हिला सके, तो टेलीफोन के माध्यम से शब्दों का आदान-प्रदान संभव है। बेल और उनके सहयोगी इसके अविष्कार में लगे रहे और अंततः सफल हुए।

क्या हुए - ग्राहम बेल ने टेलीफोन का अविष्कार किया।

जार्ज बर्नार्ड शॉ ( 1856-1950)

क्या थे - 1856 में जन्में जार्ज आर्थिक तंगी की वजह से 16 साल को उम्न में क्लर्क का काम करना पड़ा। दस वर्षों तक शो गरीबी और कुंठा झेलते रहे। न तो उन्हें कोई स्थायी नौकरी मिली नही लेखन में सफलता।

आइडिया - 1879 से 1883 के बीच लिखे पांच उपन्यासों के बावजूद असफलता से निराश होकर शॉ नाटक लिखने लगे। शुरुआत में असफलता के बाद उन्होंने सुनियोजित तरीके से लेखन शुरू किया और अंततः उन्हें सफलता मिली।

क्या हुए - नोबल पुरस्कार से सम्मानित शॉ को शेक्सपीयर के बाद इंग्लैंड का महानतम नाटककार माना जाता है।

माइकल फैराडे ( 1791-1867)

क्या थे - गरीबी के कारण फैराडे को 13 साल की उम्र में स्कूल की पढ़ाई छोड़कर एक बुक बाइंडर के यहां नौकरी करनी पड़ी।

आइडिया - विज्ञान में रुचि के कारण वे विज्ञान की पुस्तकें पढ़ते और स्वयं ही प्रयोग करते थे। एक दिन प्रख्यात रसायन शास्त्री सर हम्फ्री डेवी का भाषण सुनने के बाद फैराडे ने उन्हें एक पत्र में उस भाषण का सार लिखकर नौकरी मांगी। डेवी ने उनके पत्र से प्रभावित होकर उन्हें नौकरी पर रख लिया। फैराडे ने डेवी के साथ क्लोरीन गैस का दबाव के द्वारा द्रव में बदलना सीख लिया। बाद में उन्होंने विद्युत-चुंबकीय पर प्रयोग किए और डायनमो का निर्माण भी किया।

क्या हुए - बिटिश भौतिकविद और रसायनशास्त्री फैराडे ने बैंजोन की खोज की और गैसों को द्रव अवस्था में लाने की विधि खोजी।

अब्राहम लिंकन ( 1809-1865)

क्या थे - 1809 में एक गरीब घर में पैदा हुए। उनके अपने पिता ने उनकी शिक्षा के मार्ग में बाधाएं उत्पन्न की, मगर सौतेली मां के सहयोग से उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की। उन्होंने लकड़हारे, सर्वेयर और गांव के पास्टमास्टर का भी काम किया। व्यापार भी शुरू किया. मगर असफल रहे।

आइडिया - बिजनेस में असफलता हाथ लगने के बाद भी उन्होंने कई चुनाव लड़े, मगर सभी में असफलता हाथ लगी। इतनी सारी असफलताओं के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अंततः 51 माल की उम्र में वे अमेरिका के राष्ट्रपति बनें।

क्या हुए - अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति लिंकन विश्व के सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में गिने जाते हैं। उन्होंने अमेरिका को दासप्रथा से मुक्त किया और देश को विघटन से बचाया।

घनश्याम दास बिड़ला ( 1894-1983)

क्या थे - घनश्याम दास बिड़ला की स्कूली शिक्षा सिर्फ पांचवीं कक्षा तक हुई। वे अपने भाई के साथ एक कमरे के मकान में रहते थे। उन्होंने जूट ब्रोकर के रूप में व्यवसाय शुरू किया।

आइडिया - उनके मन में सफल उद्योग पति बनने का जज्बा था। उन दिनों जूट का व्यापार सिर्फ अंग्रेज़ करते थे। अंग्रेजों ने बिड़ला को ऋण देने से इंकार कर दिया। उन्हें मशीनें भी दुगुने दामों में खरीदनी पड़ी, फिर भी बिड़ला ने कभी हार नहीं मानी। वे लगातार हर मुश्किल से जूझते रहे और अपनी मंजिल की तरफ बढ़ते रहे।

क्या हुए - उद्योगपति घनश्याम दास बिड़ला 1993 में अपनी मृत्यु के समय बिड़ला समूह की 200 कंपनियों और 2500 करोड़ की संपत्ति के मालिक थे।

लाल बहादुर शास्त्री ( 1904-1966)

क्या थे - वे एक मामूली विद्यालय शिक्षक के पुत्र थे और होने बेहद गरीबी में अपना बचपन व्यतीत किया। विद्यार्थी के सात मेक्षतो छात्र रहे।

आइडिया - बचपन में एक बगीचे में अपने मित्रों के साथ चोरी से आम तोड़ते पकड़े जाने पर उन्होंने माली से कहा, 'मुझे छोड़ दो, मैं अनाथ हूँ।' इस पर माली ने कहा, 'अनाथ हो तो तुम्हें औरों से अधिक अच्छा बनकर दिखाना चाहिए।' जब वे प्रधानमंत्री बने तो देश में खाद्यान्न की कमी को देखते हुए उन्होंने भारतवासियों से सप्ताह में एक दिन व्रत रखने का आह्वान किया। पाकिस्तान से युद्ध के दौरान शास्त्री जी ने 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया। उनके समय में ही भारत ने पाकिस्तान से युद्ध जीता और खाद्यान्न उत्पादन में आत्मनिर्भर हुआ।

क्या हुए - केवल 17 वर्ष की अवस्था में महात्मा गांधी के संपर्क में आये। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण जेल गये और विभिन्न पदों पर रहते हुए 1964 में भारत के दूसरे प्रधान मंत्री बने। उन्हें उनकी दृढ़ता, सत्चरित्रता तथा ईमानदारी के लिए भी याद किया जाता है।

गोरा देवी ( 1925-1991)

क्या थीं - उत्तराखण्ड के चमोली जिले के लाटा गाँव की एक अशिक्षित विधवा थीं।

आईडिया - पहाड़ों में हो रहे अंधाधुंध पेड़ों के कटान के कारण पहाड़ों के अस्तित्व को उत्पन्न खतरे के कारण पर्यावरण तथा पहाड़ों के अस्तित्व को उत्पन्न खतरे के विरुद्ध होने 'चिपको आंदोलन' में सहयोग देने के लिए ग्रामीणों को प्रेरित किया।

क्या हुईं - बिना किसी पद, वेतन और सुविधाओं कार्य करने सन गोरा देवी को परे विश्व में केवल महिलाओं द्वारा संचालित संसार के प्रथम पर्यावरण आंदोलन का प्रतीक माना जाता है। उन्होंने दिखा दिया कि सच्ची भावना से समाज सेवा करने वाले बिना किसी पद के भी अमरत्व प्राप्त कर सकते हैं।

डॉ० ए . पी . जे . अब्दुल कलाम ( 1931-)

क्या थे - एक अत्यंत निर्धन तथा साधारण परिवार में पैदा हुए डॉ कलाम ने अभावों में बचपन व्यतीत किया, और रक्षा वैज्ञानिक के रूप में विभिन्न पदों को सुशोभित किया।

आइडिया - उन्होंने अनेक रक्षा प्रणालियों का विकास किया। भारतीय मिसाइलों के निर्माण में उनकी सक्रिय भूमिका के कारण उन्हें ' मिसाइल मैन' भी कहा जाता है। डॉ० कलाम ने अपनी पुस्तक 'भारत 2020' में भारत को विश्व की महाशक्ति बनाने के लिए एक विस्तृत कार्य योजना प्रस्तुत की, जिसे पूरे विश्व में सम्मान से देखा जाता है।

क्या हुए - मौलिक विचारों, आविष्कारों, कार्य, और अपने युग से आगे की सोच के कारण डॉ० कलाम को पूरे संसार के अनेक विश्वविद्यालयों ने 30 बार डाक्टरेट की उपाधि प्रदान की है। उन्हें 1981 में पद्म भूषण, 1990 में पद्म विभूषण और 1997 में देश का सबसे बड़ा सम्मान 'भारत रत्न' प्रदान किया गया। वह 2002 से 2007 के बीच भारत के 11वें राष्ट्रपति भी रहे। डॉ. कलाम का जीवन इस तथ्य की मिसाल है, कि यदि कोई व्यक्ति अपने भीतर श्रेष्ठतम गुणों को लगातार निखारता चले, तो उसे सम्मान तथा अच्छे अवसरों की कमी कमी नहीं रहती।

अंत में

सफलता के लिए साहस का होना बहुत जरूरी है। किसी ने खूब कहा है- "हिम्मते मरदां, मददे खुदा,' हिम्मती आदमी की ईश्वर भी मदद करता है। यह हमारी हिम्मत ही है, जिसके बूते आज हम अंतरिक्ष में जा पहुँचे हैं, सम्पूर्ण 'मानव विकास' ही हिम्मत का प्रतिफल है। आदमी हिम्मत नहीं जुटाता तो आज भी कंदराओं में पड़ा रहता। साहसी होना सफलता के अचूक मंत्रों में एक है। हाँ दुस्साहसी होना ठीक नहीं।

स्वामी विवेकानंद ने तो मनुष्य को साहस का प्रतीक ही बताया है, वह कहा करते थे - "तुम तो ईश्वर की संतान हो। अपार आनंद के भागी हो। पवित्र और पूर्ण आत्मा हो। अतएव तुम कैसे अपने को जबरदस्ती 'दुर्बल' कहते हो? उठो, साहसी बनो, वीर्यवान होओ। सब उत्तरदायित्व अपने कंधे पर लो। यह याद रखो कि तुम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता हो। तुम जो कुछ बल या सहायता चाहते हो, सब तुम्हारे ही भीतर विद्यमान है।'

इसलिए साहसी बनो। उठो, जागो और स्वयं जगकर औरों को भी जगाओ। तभी मानव जीवन सार्थक और सफल है। मैं पुनः स्वामी जी का आह्वान दोहराता हूँ -

' उत्तिष्ठत , जागृत प्राप्यत वरान्निबोधत ! '

('उठो, जागो और तब तक रुको नहीं,

जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाय।')


आत्मविश्वास सफलता का मुख्य रहस्य है यह कथन किसका है - aatmavishvaas saphalata ka mukhy rahasy hai yah kathan kisaka hai
  
आत्मविश्वास सफलता का मुख्य रहस्य है यह कथन किसका है - aatmavishvaas saphalata ka mukhy rahasy hai yah kathan kisaka hai
  
आत्मविश्वास सफलता का मुख्य रहस्य है यह कथन किसका है - aatmavishvaas saphalata ka mukhy rahasy hai yah kathan kisaka hai

आत्मविश्वास सफलता का प्रमुख रहस्य है कथन किसका है?

सुकरात ने कहा “यही तुम्हारे प्रश्न का उतर है। जब तुम सफलता को उतनी ही तीव्र इच्छा से चाहोगे जितनी तीव्र इच्छा से तुम सांस लेना चाहते है, तो तुम्हे सफलता निश्चित रूप से मिल जाएगी।”

आत्मविश्वास को संजीवनी कहा गया है क्योंकि?

मनुष्य सफलता को अपने ही उपयोग में प्रयुक्त नहीं करता, अपितु औरों में भी बाँटता है। (ख)आत्मविश्वास को संजीवनी इसलिए कहा गया है क्यूंकि उससे व्यक्तित्व के तीनो पहलुओं पर प्रभाव परता है। तीनो पहलु है चितन, चरित्र और व्यवहार। (ग)आत्मविश्वास से हमारे विचारों को लक्ष्य के प्रति उन्मुख कर देता है।

सफलता के लिए आत्मविश्वास का होना क्यों आवश्यक है?

जीवन में सफलता के लिए आत्मविश्वास उतना ही आवश्यक है, जितना मनुष्य के लिए ऑक्सीजन और पानी। बिना आत्मविश्वास के व्यक्ति सफलता की ऊंचाइयों पर कदम बढ़ा ही नहीं सकता। आत्मविश्वास वह ऊर्जा है, जो सफलता की राह में आने वाली हर अड़चनों, कठिनाइयों और परेशानियों से मुकाबला करने के लिए व्यक्ति को बल देती है।

आत्मविश्वास क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?

आत्मविश्वास से ही विचारों की स्वाधीनता प्राप्त होती है और इसके कारण ही महान कार्यों के सम्पादन में सरलता और सफलता मिलती है। इसी के द्वारा आत्मरक्षा होती है। जो व्यक्ति आत्मविश्वास से ओत-प्रोत है, उसे अपने भविष्य के प्रति किसी प्रकार की चिन्ता नहीं रहती। उसे कोई चिन्ता नहीं सताती।