देश की एकता के प्रति कौन कौन से हैं? - desh kee ekata ke prati kaun kaun se hain?

राष्ट्रीय एकता का अर्थ | राष्ट्रीय एकता की प्राप्ति के लिए उपाय | राष्ट्रीय एकीकरण में शिक्षक की भूमिका

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Table of Contents

  • राष्ट्रीय एकता का अर्थ
  • राष्ट्रीय/भावात्मक एकता के साधन/उपाय
  • राष्ट्रीय एकता तथा शिक्षा
  • राष्ट्रीय एकता एवं शिक्षक

राष्ट्रीय एकता का अर्थ

राष्ट्रीय एकता का तात्पर्य किसी राष्ट्र के नागरिकों की एकता की भावना से होता है। यह भावना राष्ट्र का एक आवश्यक लक्षण है। इसके बिना राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं होता। किसी राष्ट्र के नागरिक वेश भूषा, खान पान, रहन सहन, मूल्य मान्यताएँ, जाति धर्म आदि के अन्तरी को भूलकर अपने को एक समझते हैं और राष्ट्र हित के आगे अपने हितो का त्याग का हैं तो हम इस भावना को राष्ट्रीय एकता या राष्ट्रीयता कहते हैं।

रॉस के अनुसार, “राष्ट्रीयता एक भाव अथवा प्रेरणा है, जिससे प्रभावित होकर व्यक्ति अपने राष्ट्र से प्रेम करता है, और उसके विकास में सहायक होता है।

राष्ट्रीय एकता सम्मेलन के अनुसार, “राष्ट्रीय एकता एक मनोवैज्ञानिक तथा शैक्षिक (शिक्षा सम्बन्धी) प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोगों के हितों में एकता, संगठन एवं सक्रिकटता की भावना, राष्ट्र के प्रति भक्ति की भावना का विकास किया जाता है।”

प्रो0 हमायूँ कबीर के अनुसार, “राष्ट्रीय एकता एक जाति, भाषा, धर्म, अथवा भूगोल. पर आधारित नहीं है और यह न किसी समूह पर ही आधारित है, अपितु यह तो राष्ट्र के प्रति अपनत्व की भावना पर आधारित होती है।”

प्रायः देश प्रेम और राष्ट्रीयता का एक ही अर्थ लगाया जाता है, किन्तु यह मत गलत है। देश प्रेम का अर्थ अपेक्षाकृत संकीर्ण है। इसका अर्थ केवल इतना ही है कि व्यक्ति उस स्थान या भूमि से प्रेम करे, जहाँ पर उसने जन्म लिया है। राष्ट्रीयता का अर्थ जन्मभूमि के साथ व्यक्ति राष्ट्र की मानव जाति, संस्कृति, भाषा, विचार, साहित्य, धर्म आदि से प्रेम करे। अन्त में ब्रुवेकर के अनुसार, “राष्ट्रीयता में देश प्रेम से कई गुनी अधिक देशभक्ति की मात्रा होती है।”

राष्ट्रीय/भावात्मक एकता के साधन/उपाय

(1) धर्म निरपेक्षता को ध्यान में रखकर विद्यालय एवं कालेजों में ऐसी पाठ्य वस्तु पढ़ाई जाये जिससे धार्मिक सौहार्द बढ़े।

(2) पाठ्य पुस्तकों में आवश्यक संशोधन किया जाये और उनकी सामग्री को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाए कि वे भावात्मक एकता के विकास में सहायक हों।

(3) मध्यकालीन इतिहास पढ़ाते समय शिक्षकों को चाहिए कि वे उस बात पर बल दें जो हिन्दुओं और मुसलमानों की संस्कृतियों को मिलाने में सहायक होती हों।

(4) बालको में शिक्षा द्वारा ऐसा दृष्टिकोण उत्पन्न किया जाये जिससे वे अपनी “सांस्कृतिक विरासत” के महत्व को समझें और उनकी सुरक्षा और संरक्षण कर सकें।

(5) विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न सामाजिक विज्ञान, भाषाएँ, साहित्य, संस्कृति और कला के अध्ययन की व्याख्या की जाये।

(6) छात्रों को ऐसी पाठ्य वस्तु पढ़ाई जाये जिससे उनमें हम की भावना का विकास हो।

(7) राष्ट्रीय एकता को स्थापित करने में जनसंचार के माध्यम जैसे-रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्रादि का विशेष योगदान हो सकता है। यदि उपरोक्त माध्यमों का सही और समुचित प्रयोग किया जाये तो राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में सहायता मिलेगी।

(8) ऐसी फिल्मों का निर्माण किया जाये जिससे राष्ट्र के विभिन्न समुदायों में एक-दूसरे के प्रति घृणा उत्पन्न न हो।

(9) ऐसे विद्यालयों को दण्डित किया जाये जो देश प्रेम के नाम पर साम्प्रदायिकता व जातिगत घृणा फैलाते हों।

(10) विद्यालयों में राष्ट्रीय पर्वों 26 जनवरी, 15 अगस्त, 2 अक्टूबर को बड़ी श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाये।

(11) राष्ट्रीय एकता के लिए यह आवश्यक है कि एक सही भाषा नीति बनाई जाय, सभी भाषाओं को प्रोत्साहित किया जाये।

(12) न्याय व्यवस्था में निष्पक्षता और ईमानदारी स्थापित की जाये।

(13) सबके लिए समान कानूनों की व्यवस्था की जाये। जाति व धर्म के नाम पर अलग-अलग कानूनों को समाप्त किया जाये।

(14) छात्रों को देश भ्रमण और अन्तर संस्कृति विकास के अवसर दिये जायें।

(15) शिक्षकों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर अन्य नगरों में ट्रांसफर किया जाये। उनका ध्यान अपनी अध्यापिका ओर छात्रों के हित की ओर केन्द्रित किया जा सके।

(16) विभिन्न विश्वविद्यालयों में आपस में शिक्षकों का आदान-प्रदान किया जाये ।

(17) जाति और धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों पर अंकुश लगाया जाये।

उपरोक्त उपायों का यदि ईमानदारी से पालन किया जाये तो सम्भवतः राष्ट्रीय एकता की स्थापना आसानी से की जा सकती है।

राष्ट्रीय एकता तथा शिक्षा

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात आज भारतवर्ष में राष्ट्रीय एकता आवश्यक है। इसी कारण से देश में राष्ट्रीय एकता तथा राष्ट्रीय भावना के विकास पर अधिक बल दिया जा रहा है। चूँकि शिक्षा इस भावना को विकसित करने में महत्वपूर्ण योग दे सकती है, इसीलिए इसी साधन द्वारा राष्ट्रीय चेतना के विकास के कार्य को पूर्ण करने का प्रयास किया जा रहा है, किन्तु इस दिशा में अभी बहुत कुछ करना शेष है।

राष्ट्रीयता की दृष्टि से आज शिक्षा का लक्ष्य है, व्यक्तियों में राष्ट्रीय भावना भरना एवं उनके हृदय में राष्ट्र के प्रति प्रेम उत्पन्न करना। राष्ट्रीयता के समर्थकों का कथन है कि राष्ट्र के लिए व्यक्ति है, व्यक्ति के लिए राष्ट्र नहीं । अतः शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिये कि शिक्षा प्राप्त व्यक्ति राष्ट्रीय प्रेम से युक्त हो। राष्ट्रीयता की दृष्टि से राष्ट्र को सुदृढ़ तथा सफल बनाना नागरिकों का सबसे पुनीत कार्य समझा जाता है। अतः राष्ट्र की आवश्यकताओं, आदर्शों तथा मान्यताओं के अनुसार ही शिक्षा की व्यवस्था की जाती है। नागरिकों में राष्ट्र के प्रति अपार भक्ति, शासक की आज्ञा का पालन, अनुशासन, आत्मत्याग, क्त्तव्य-पालन आदि की भावनाओं का उद्देग करना शिक्षा का आदर्श होता है। राष्ट्र, अपने आदरशों के प्रचार के लिए अपनी प्रगति एवं उत्थान के लिए तथा अपनी शक्ति के स्थायित्व के लिए निवासियों में राष्ट्रीयता की भावना भरता है और इसके लिए शिक्षा को अपना प्रमुख साधन बना लेता है। स्पार्टा, जर्मनी, इटली, जापान तथा रूस की शिक्षा इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है।

विगत वर्षों में नाजियों ने जर्मनी में, फासिस्ट्स ने इटली में शिक्ष द्वारा युवकों को राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत कर दिया था। आज रूस तथा चीन भी शिक्षा के माध्यम से वहाँ के युवकों में साम्बवाद की भावना का समावेश कर रहे हैं। प्रजातन्त्रीय देश प्रजातन्त्रीय व्यवस्था को सुदृढ़ बनाये रखने के लिए अपने नागरिकों में राष्ट्रीय एकता की भावना का विकास कर रहे हैं। स्पष्ट है कि विश्व के सभी राष्ट्र चाहे वे साम्यवादी हों या तानाशाही हों अथवा प्रजातन्त्रीय हों राष्ट्रीय हितों को अपने सम्मुख रखकर अपने-अपने देश में शिक्षा की व्यवस्था कर रहे हैं।

इस प्रकार की शिक्षा के कई लाभ हैं। यह शिक्षा राष्ट्र कि निर्माण में सहायक होती है। इससे देश तथा जाति भेद को आश्रय नहीं मिलता। देश के नागरिक एकता के लिए सूत्र में बाँधे जाते हैं। परस्पर द्वेष-भाव एवं स्वार्थ को छोड़कर राष्ट्र की सेवा के लिए तैयार रहते हैं। वे राष्ट्र के प्रति अपने उत्तरदायित्व को समझते हैं और उन्हें निभाने का भरसक प्रयत्न करते हैं। देश में सामाजिक कुरीतियों, रूढ़ियों, अन्धविश्वासों तथा अन्तर्राष्ट्रीय विचारों का अन्त हो जाता है। राष्ट्र समृद्धिशाली, सुखी एवं सर्वशक्तिमान हो जाता है।

स्पष्ट है कि राष्ट्रीय विकास के लिए शिक्षा एक महत्वपूर्ण साधन है। इसीलिए सभी राष्ट्र शिक्षा पर अपना नियन्त्रण रखते हैं और शिक्षा के द्वारा न्गलकों को जैसा बनाना चाहते हैं, बनाते हैं। बीसवीं शताब्दी ने एक और महान् लक्ष्य अपने सम्मुख खा है कि व्यक्ति में राष्ट्रीयता के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीयता की भावनाओं को भी विकसित करना चाहिए और शिक्षा ही के द्वारा इन दोनों विरोधी भावनाओं को विकसति करना चाहिये। शिक्षा किस प्रकार इस लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव करें? यह प्रश्न एक महत्वपूर्ण प्रश्न है और हमारे शिक्षाशास्त्री इस दिशा में क्रियाशील हैं तथा क्रियाशील रहेंगे।

राष्ट्रीय एकता एवं शिक्षक

राष्ट्रीय एकता स्थापित करने में शिक्षक निम्नलिखित भूमिका निभा सकता हैं-

(1) प्रत्येक व्यक्ति अविच्छिन्न रूप से अपने राष्ट्र से जुड़ा हुआ है, ऐसी भावना एक आदर्श शिक्षक में तभी उत्पन्न हो सकती है, जब उसके अन्दर अपने राष्ट्र, अपने देश को जानने की प्रबलतम भावना होगी। प्रत्येक राष्ट्र के कुछ तत्व ऐसे होते हैं जो सब लोगों के होते हैं। और जिन पर सभी को समान रूप से गर्व हो सकता है। एक शिक्षक को ऐसे समान तत्वों को छात्रों के सामने अपने अध्यापन में बार-बार उजागर करना होगा।

(2) शिक्षक को छात्रों के हृदय में यह बात बैठानी होगी कि “महजब नहीं सिखाता आपस में बैर करना।” अतएव यह आवश्यक है कि प्रत्येक शिक्षक को न केवल अपने धर्म की, बल्कि अन्य धर्मों की भी अच्छी जानकारी होनी चाहिए।

(3) छात्रों में राष्ट्रीय एकता की भावना उत्पन्न करने के लिए शिक्षक को अपने अध्यापन में इतिहास की उन बातों घटनाओं और परिस्थितियों का बारम्बार प्रसगानुसार उल्लेख करना चाहिए जो कि सामूहिक स्मृति है।

(4) एक आदर्श शिक्षक अपने अध्यापन कार्य में उन अवसरों का भरपूर उपयोग करेगा जिनमें सामूहिक रूप से कार्य की आवश्यकता होती है।

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देश की एकता के प्रति कौन कौन है?

Rashtriya Ekta Diwas 2021 स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद पहले गृहमंत्री के रूप में अपने फौलादी फैसलों से देश को एकता के सूत्र में पिरोने वाले सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन अपने आप में मिसाल है। जानें उनके जीवन व विचारों से जुड़ी सीखों के बारे में...

राष्ट्रीय एकता के तत्व कौन कौन से हैं?

राष्ट्रीय एकता व इसकी अक्षुण्णता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि राष्ट्रीय एकता के तत्वों; जैसे हमारी राष्ट्रभाषा, संविधान, राष्ट्रीय चिह्‌नों, राष्ट्रीय पर्व व सामाजिक समानता तथा उसकी उत्कृष्टता पर विशेष ध्यान दें ।

देश की एकता कब की जाती है?

भारत में प्रतिवर्ष 31 अक्तूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल के जन्मदिवस को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है।

राष्ट्रीय एकता में कौन कौन सी मुख्य बाधाएं हैं?

(1) विभिन्न जातियाँ- वर्ण व्यवस्था, व्यवसाय और धर्म के आधार पर हमारे देश में अनेक जातियाँ पाई जाती हैं जैसे-ब्राह्मण, क्षत्रिय, शूद्र, तेली, धोबी, लुहार, दर्जी आदि। इन जातियों के रहन-सहन और रीति-रिवाज में बड़ा अन्तर है जो राष्ट्रीय एकता में एक बड़ी रुकावट है।