ठोस अवस्था की मुख्य विशेषताएं क्या हैं? - thos avastha kee mukhy visheshataen kya hain?

ठोस अवस्था (solid state): पदार्थ के अवयवी (constituent) कण गतिशील रहते हैं। यह धारणा पदार्थ की गति धारणा कहलाती है। पदार्थ की अवयवी कणों की गतिशीलता के आधार पर इसे तीन भौतिक अवस्था में वर्गीकृत किया गया है। अवयवी कणों की सर्वाधिक गतिशीलता में पदार्थ की भौतिक अवस्था गैस (gas) होती है जबकि निम्नतम गतिशीलता अर्थात स्थिरता में पदार्थ की भौतिक अवस्था (physical state) ठोस होती है। इनके मध्य की अवस्था द्रव अवस्था (Fluid state) कहलाती है।

ठोस अवस्था की मुख्य विशेषताएं क्या हैं? - thos avastha kee mukhy visheshataen kya hain?

ठोस अवस्था

पदार्थ की गैस व द्रव अवस्था में अवयवी कणो के मध्य अंतकरण (interparticle) बल दुर्बल होता है। पदार्थ की ठोस अवस्था में यह बल सबसे अधिक पाया जाता है। परिणामस्वरूप इस अवस्था में ठोस के कण गतिशील नहीं होते परंतु अपने स्थान पर कंपन (vibration) करते रहते हैं। अवयवी कणों की स्थिरता पदार्थ की ठोस अवस्था को दृढ़ता (rigidity) एवं निश्चित आकृति (shape) प्रदान करती है। पदार्थ की ठोस अवस्था (solid state) में निम्नलिखित सामान्य लक्षण पाए जाते हैं-

Table of Contents

  • ठोस अवस्था
  • क्रिस्टलीय ठोस
  • क्रिस्टलीय ठोस अवस्था के लक्षण
  • अक्रिस्टलीय ठोस
  • अक्रिस्टलीय के लक्षण
  • क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय ठोस में अंतर

  1. अवयवी कणों के मध्य प्रबल अंतकरण बल।
  2. अवयवी कणों के मध्य निम्नतम दूरी।
  3. पदार्थ की निश्चित आकृति।
  4. अवयवी कणों (Ingredient particles) का स्थिर रहते हुए अपने स्थान पर कंपन (vibration)।
  5. दृढ़ता (rigidity) एवं असम्पीडनीयता (non-compressibility)।

क्रिस्टलीय ठोस

वे ठोस जिनमें उनकी रचक इकाई (constituent unit)- (आयन या परमाणु या अणु) एक नियमित (regular) व क्रमिक रूप में व्यवस्थित रहती है, अक्रिस्टलीय ठोस कहलाते हैं, जैसे- हीरा, सोडियम क्लोराइड (NaCl), सोडियम सल्फेट (Na₂SO₄), आयोडीन आदि क्रिस्टलीय ठोस अवस्था होती हैं।

क्रिस्टलीय ठोस अवस्था के लक्षण

  1. अवयवी घटक नियमित क्रम में व्यवस्थित होते हैं।
  2. ये तीक्ष्ण (sharp) एवं निश्चित गलनांक रखते हैं।
  3. क्रिस्टल निर्माण के समय बाहरी सतह (Outer surface) भी नियमित क्रम दर्शाती है।
  4. ये विषमदैशिक (anisotropic) होते हैं।

अक्रिस्टलीय ठोस

वे ठोस जिनमें उनकी रचक इकाई (Stirrer unit) नियमित व क्रमिक रूप (Serial form) से व्यवस्थित नहीं रहती है, अक्रिस्टलीय ठोस कहलाते है। जैसे- कांच, प्लास्टिक, रबर आदि अक्रिस्टलीय ठोस अवस्था होती हैं।

अक्रिस्टलीय के लक्षण

  1. अवयवी घटक (Ingredient component) नियमित क्रम में व्यवस्थित नहीं होते हैं।
  2. ये तीक्ष्ण (sharp) एवं निश्चित गलनांक नहीं रखते हैं।
  3. ठोस निर्माण के समय बाहरी सतह (Outer surface) भी नियमित क्रम नहीं दर्शाती है।
  4. ये समदैशिक (isotropic) होते हैं।

क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय ठोस में अंतर

क्रम संख्याक्रिस्टलीय ठोसअक्रिस्टलीय ठोस1.इन ठोसों में रचक इकाई (Stirrer unit) नियमित व क्रमिक व्यवस्था रखती है।रचक इकाई अनियमित व अक्रमिक व्यवस्था (Non-systematic arrangement) रखती है।2.ठोस निर्माण में बाहरी सतह (Outer surface) भी नियमितता दर्शाती है।ठोस निर्माण में बाहरी सतह भी अनियमितता (irregularity) दर्शाती है।3.ये निश्चित गलनांक (melting point) रखते हैं।ये निश्चित गलनांक नहीं रखते हैं।4.ये विषमदैशिक (anisotropal) होते हैं।ये समदैशिक (Isotropic) होते हैं।5.यह वास्तविक ठोस (Real solid) होते हैं।यह आभासी ठोस (Virtual solid) होते हैं। वास्तव में ये अतिशीतित (Chilled) द्रव होते हैं।6.पैनी धार वाले हथियार से कटने पर ये ठोस कटी सतह पर भी रचक घटकों (Stirrer component) का नियमित क्रम रखते हैं।
ये ठोस कटी सतह (Cut surface) पर भी रचक घटकों का अनियमित क्रम रखते हैं।

नोट– अक्रिस्टलीय पदार्थों में ऊष्मा चालकता (Heat conductivity), विद्युत चालकता, अपवर्तनांक (refractive index) आदि गुण सभी दिशाओं में समान पाए जाते हैं। पदार्थों का यह गुण समदैशिकता (Isotropism) व ये पदार्थ समदैशिक (Isotropic) कहलाते है। इसी प्रकार, उपयुक्त गुण क्रिस्टलीय पदार्थों (Crystalline materials) में दिशा परिवर्तन पर परिवर्तित हो जाते हैं। पदार्थों का यह गुण विषमदैशिकता व ये पदार्थ विषमदैशिक (anisotropal) कहलाते है।

(solid state chemistry class 12 notes in hindi) ठोस अवस्था की परिभाषा क्या है | कक्षा 12 रसायन विज्ञान | भौतिकी किसे कहते है ?

परिभाषा : ठोस वे रासायनिक पदार्थ होते है जिन्हें निश्चित आकार , आयतन , उच्च घनत्व आदि के आधार पर बांटा जाता है , ठोस पदार्थों में परमाणु ,अणु अथवा आयन निश्चित आकार और घनत्व में बहुत पास पास उपस्थित रहते है इसलिए इन्हें आसानी से दबाया नहीं जा सकता है अर्थात इनका घनत्व भी उच्च होता है।
किसी पदार्थ की तीन अवस्थाएं संभव हो सकती है –
1. ठोस
2. द्रव
3. गैस
पदार्थ की तीनो अवस्थाओं में से ठोस अवस्था सबसे अधिक स्थायी होती है , उसके बाद द्रव स्थायी होती है तथा गैस सबसे कम स्थायी होती है।
किसी पदार्थ के स्थायित्व निम्न दो बलों पर निर्भर करता है जों निम्न है –
1. अन्तराण्विक बल
2. ऊष्मीय ऊर्जा
1. अन्तराण्विक बल : पदार्थ के कणों के मध्य लगने वाले बल को अन्तराण्विक बल अन्तराण्विक बल कहते है अर्थात पदार्थ में उपस्थित अणुओं , परमाणुओं अथवा आयनों के मध्य लगने वाला बल अन्तराण्विक बल कहलाता है , यह बल इन कणों को बांधे रखता है और यह प्रयास करता है कि कणों के मध्य की दूरी न्यूनतम हो और अधिक द्वारा बंधे रहे ताकि इन कणों को आसानी से दूर या अलग न किया जा सके।
2. ऊष्मीय ऊर्जा : इसे पदार्थ की आंतरिक गतिज ऊर्जा भी कहा जा सकता है क्यूंकि किसी पदार्थ में इसके कण अंदर गति करते रहते है और इस गति के कारण इनमें ऊष्मा उत्पन्न होती है जिसे ऊष्मीय ऊर्जा कहते है।  ठोस पदार्थ में कण आपस में पास पास स्थित होते है अत: ये गति नहीं कर पाते लेकिन इस गतिज ऊर्जा या ऊष्मीय ऊर्जा के कारण कण कम्पन्न करते रहते है।
अत: ऊष्मीय ऊर्जा कणों को तीव्र गामी बनाकर रखने की कोशिश करती है।
जब कोई पदार्थ कम ताप पर स्थित हो तो इसमें ऊष्मीय ऊर्जा का मान भी कम होता है और इसलिए पदार्थ के कण अधिक तेजी से आंतरिक गति नहीं करते है और कण आपस में पास पास स्थित रहते है और इस प्रकार ठोस में कणों की स्थिति निश्चित रहती है। लेकिन इस ऊष्मीय ऊर्जा के कारण ठोस पदार्थ अपनी माध्य स्थिति के के सापेक्ष दोलन करते रहते है।

ठोस पदार्थ के सामान्य गुण या अभिलक्षण (properties of solids)

किसी ठोस पदार्थ में निम्न गुण या अभिलक्षण पाए जाते है –

  • ठोस पदार्थों का आयतन , आकार , द्रव्यमान , आकृति आदि निश्चित होती है।
  • इनमें संपीड्यता का गुण नगण्य होता है अर्थात इन पदार्थों को जब दबाया जाता है तो ये आसानी से दबते नहीं है या इनमे दवाब से इनके आयतन और आकार में परिवर्तन करना आसान नहीं होता है।
  • ठोस पदार्थों में अन्तराण्विक बल बहुत अधिक पाया जाता है अर्थात इनके कण पास पास और उच्च अन्तराण्विक बल द्वारा बंधे हुए रहते है।
  • ठोस के कणों के मध्य की दूरी बहुत कम होती है अर्थात इनमें कण (परमाणु , अणु या आयन) बहुत पास पास स्थित होते है।
  • ठोस पदार्थों के कण स्वतंत्र रूप से गति नहीं कर पाते है अर्थात एक निश्चित स्थिति में स्थित होते है लेकिन ये कण अपनी साम्य स्थिति के सापेक्ष दोलन करते रहते है।
  • ठोस कणों की गतिज ऊर्जा न्यूनतम होती है।
  • ठोस पदार्थों का घनत्व , द्रव और गैस की तुलना में बहुत अधिक होता है।

ठोस अवस्था : पदार्थ तीन अवस्थाओं ठोस , द्रव और गैस में पाया जाता है। इन तीनों अवस्थाओं में मुख्य अंतर इनके अवयवी कणों के मध्य दूरी का है। अवयवी कण परमाणु , अणु या आयन हो सकते है। गैसीय अवस्था में अवयवी कण एक दूसरे से अधिक दूरी पर , द्रव अवस्था में कुछ कम दूरी पर उपस्थित होते है। ठोस अवस्था में अवयवी कण निम्नतम दूरी पर होते है। अवयवी कणों के मध्य प्रबल बंध होते है तथा एक सघन संरचना होती है। प्रबल बन्धो के कारण कण गतिशील नहीं होते है। ठोस अवस्था में पदार्थ का सुनिश्चित आकृति तथा आयतन होता है।

ठोसों की विभिन्न संरचनाएँ उनके गुणों को निर्धारित करती है। संरचना के कारण ही कुछ वांछनीय गुणों वाले नए ठोस पदार्थो जैसे उच्च तापीय अतिचालक , चुम्बकीय पदार्थ , पैंकिंग के लिए जैव निम्नीकरण बहुलक (पोलीथिन के स्थान पर) , शल्य चिकित्सा में रोपण हेतु जैव समन्य (शरीर में सरलता से ग्राह्य) ठोस आदि की खोज हो सकी है। जो कि विज्ञान के भविष्य के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन कर सकते है।

ठोस अवस्था के सामान्य लक्षण (general characteristics of solid state class 12)

प्रश्न : किसी पदार्थ की ठोस अवस्था द्रव तथा गैस अवस्था से अधिक स्थायी क्यों होती है ?

उत्तर :

प्रत्येक पदार्थ के स्थायित्व में दो परस्पर विरोधी बल कार्य करते है।

1. अन्तराणुविक बल (intermolecular forces) अणुओं (परमाणु या आयन) को एक दुसरे के निकट से निकटतम दूरी तक लाने का प्रयास करते है।

2. उष्मीय ऊर्जा (thermal energy) उन्हें तीव्रगामी बनाकर रखने का प्रयास करती है।

निम्नतम पर ऊष्मीय ऊर्जा निम्न होती है। परिणामस्वरूप अन्तराणुविक बल अवयवी कणों को निकटतम दूरी तक लाकर उनकी स्थिति निश्चित कर देते है। इस प्रकार पदार्थ ठोस अवस्था में आ जाता है। ठोस अवस्था में भी अवयवी कण अपनी माध्य स्थिति के सापेक्ष दोलन कर सकता है।

ठोस अवस्था की विशेषताएं क्या है?

ठोस के अभिलक्षण ये निश्चित द्रव्यमान, आयतन एवं आकार के होते हैं। इनमें अंतराआण्विक दूरियाँ लघु होती हैं। इनमें उच्चअंतराआण्विक बल प्रबल होते हैं। इनके अवयवी कणों (परमाणुओं, अणुओं अथवा आयनों) की स्थितियाँ निश्चित होती हैं और यह कण केवल अपनी माध्य स्थितियों के चारों ओर दोलन कर सकते हैं।

ठोस अवस्था से आप क्या समझते हैं?

ठोस अवस्था :- पदार्थ की वह अवस्था जिसमें अवयवी कणों के मध्य प्रबल अंतरा आणविक आकर्षण बल लगता है। तथा ऊष्मीय ऊर्जा का मान न्यूनतम होता है। उसे ठोस अवस्था कहते हैं

ठोस अवस्था कितने प्रकार के होते हैं?

अनुक्रम.
1 क्रिस्टलीय ठोस के प्रकार 1.1 आण्विक ठोस 1.2 अध्रुवीय आण्विक ठोस 1.2.1 ध्रुवीय आण्विक ठोस 1.3 आयनिक ठोस.
2 सन्दर्भ =.

कौन से तत्व ठोस अवस्था में हैं?

तथापि, अधिकतर ठोस पदार्थ क्रिस्टलीय प्रकृति के होते हैं। उदाहरण के लिए सभी धात्विक तत्व; जैसे- लोहा, ताँबा और चाँदी ; अधात्विक तत्व; जैसे- सल्फर, फ़ॉसफ़ोरस और आयोडीन एवं यौगिक जैसे सोडियम क्लोराइड, जिंक सल्फाइड और नैपथैलीन क्रिस्टलीय ठोस हैं