इंपैक्ट एंड पोलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट, दिल्ली ने कोविड की पृष्ठभूमि में गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा पर 24 जून की शाम एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया था, जिसमें प्रमुख वक्ता डॉक्टर आर के पालीवाल, आई आर एस, सेवानिवृत प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ ने कोविड की पृष्ठभूमि में गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा पर सारगर्भित विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कोविड की वैश्विक महामारी के वर्तमान कठिन समय में भारत जैसे
विशाल आबादी वाले देश के लिए गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गई है।
ग्राम स्वराज्य की अवधारणा क्या है?ग्राम स्वराज्य की अवधारणा समाज को शासनिक एवम प्रशासनिक व्यवस्था में सहभागी बनाने पर जोर देती है। शासन की ग्राम स्वराज्य परिकल्पना एक ऐसी व्यवस्था है जो राजनैतिक अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, अराजकता अथवा तानाशाही जैसी समस्याओं का पूर्ण रूप से समाधान करती है। इस परिकल्पना को आदर्श लोकतंत्र भी कहा जा सकता है।
गांधीजी के अनुसार स्वराज की अवधारणा क्या है?गाँधी के 'स्वराज' की अवधारणा अत्यन्त व्यापक है। स्वराज का अर्थ केवल राजनीतिक स्तर पर विदेशी शासन से स्वाधीनता प्राप्त करना नहीं है, बल्कि इसमें सांस्कृतिक व नैतिक स्वाधीनता का विचार भी निहित है। यह राष्ट्र निर्माण में परस्पर सहयोग व मेल-मिलाप पर बल देता है। शासन के स्तर पर यह 'सच्चे लोकतंत्र का पर्याय' है।
स्वराज का क्या अर्थ होता है?स्वराज का शाब्दिक अर्थ है - 'स्वशासन' या "अपना राज्य" ("self-governance" or "home-rule")। भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के समय प्रचलित यह शब्द आत्म-निर्णय तथा स्वाधीनता की माँग पर बल देता था।
गांधी जी द्वारा प्रतिपादित ग्राम स्वराज के बुनियादी सिद्धांत कौन कौन से हैं?4 महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के बुनियादी सिद्धांत निम्नलिखित हैं: 1 मानव का सर्वोच्च ध्येय है लोगों को सुखी बनाना और इसके साथ उनकी बौद्धिक और नैतिक उन्नति भी करना । नैतिक उन्नति से अर्थ यहां आध्यात्मिक उन्नति से है। यह ध्येय विकेंद्रीकरण से प्राप्त किया जा सकता है। केंद्रीकरण की पद्धति अहिंसक समाज रचना से भिन्न है।
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