ग्राम स्वराज की अवधारणा क्या थी? - graam svaraaj kee avadhaarana kya thee?

ग्राम स्वराज की अवधारणा क्या थी? - graam svaraaj kee avadhaarana kya thee?

इंपैक्ट एंड पोलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट, दिल्ली ने कोविड की पृष्ठभूमि में गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा पर 24 जून की शाम एक राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया था, जिसमें प्रमुख वक्ता डॉक्टर आर के पालीवाल, आई आर एस, सेवानिवृत प्रधान मुख्य आयकर आयुक्त मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ ने कोविड की पृष्ठभूमि में गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा पर सारगर्भित विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कोविड की वैश्विक महामारी के वर्तमान कठिन समय में भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश के लिए गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा और भी ज्यादा प्रासंगिक हो गई है।
     डॉक्टर पालीवाल ने आयकर विभाग के उच्च पदों पर देश के विभिन्न इलाकों में सेवारत रहते हुए कई प्रदेशों के पिछड़े गांवों के समग्र विकास के लिए गांधी के ग्राम स्वराज के सिद्धांत पर आधारित रचनात्मक कार्यों के माध्यम से आदर्श ग्राम बनाने के कई सफ़ल प्रयोग किए हैं। उन्होंने गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा को रेखांकित करते हुए बताया कि गांधी अक्सर यह कहते थे कि भारत की आत्मा उसके गांवों में बसती है और हमारी ग्रामीण संस्कृति ही सही अर्थ में भारतीय संस्कृति है।गांधी के अनुसार ग्राम स्वराज का अर्थ गांवों का भौतिक विकास नहीं है। गांधी के स्वराज का अर्थ समझने के लिए हमें उनकी प्रसिद्ध वैचारिक कृति हिंद स्वराज पढ़ने की जरूरत है जो उन्होने 1909 में लिखी थी और जिसमें उन्होंने पश्चिमी संस्कृति को बेहद सतही , खोखली एवम मनुष्य विरोधी बताते हुए सहज, सरल, सादगी , धैर्य एवम सहिष्णुता के सिद्धांतों पर आधारित भारतीय सभ्यता को पश्चिमी सभ्यता से कहीं बेहतर बताते हुए स्पष्ट किया था कि हिंदुस्तान में स्वराज का क्या स्वरूप होना चाहिए।
     गांधी के स्वराज और ग्राम स्वराज को समझने के लिए हमें गांधी के जीवन और विचार को उनके असंख्य लेखों और भाषणों से भी इनके जरूरी तत्व खोजने की कोशिश करनी चाहिए। भारत की आज़ादी के आंदोलन को सफल नेतृत्व प्रदान करते हुए गांधी बारंबार कहते हैं कि भारत की ग्रामीण जनता और विशेष रूप से सदियों से दबे कुचले गरीब और गैर सवर्ण वर्ग के लिए ऐसी आज़ादी का कोई मतलब नहीं है जो उन्हें अंग्रेज़ी शासन से मुक्त कर देशी रियासतों, सवर्णों और जमीदारों का गुलाम बनाए। इसीलिए गांधीजी स्वराज और ग्राम स्वराज के रुप में देशवासियों के लिए ऐसी आज़ादी चाहते थे जिसमें सही अर्थ में अंतिम पंक्ति के व्यक्ति को भी पूरी आज़ादी का शिद्दत से अहसास हो सके।
     आज़ाद भारत में गांधी क्या काम करेंगे ? इस प्रश्न के उत्तर में गांधी ने कहा था कि अभी हमें एक चौथाई आज़ादी यानि कि अंग्रेजी शासन की गुलामी से मुक्त होने की केवल राजनीतिक आज़ादी ही मिली है , लेकिन अभी भी देश में एक बड़े वर्ग को सही अर्थ में सामाजिक, आर्थिक और आध्यात्मिक आज़ादी की दरकार है। गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा में प्रत्येक ग्रामीण व्यक्ति के लिए उपरोक्त चारों आज़ादी की परिकल्पना है।
     गांधी ग्राम स्वराज की अवधारणा द्वारा जिस तरह के ग्रामीण समाज की रचना करना चाहते थे उसका सबसे प्रमुख तत्व है, सत्ता का विकेंद्रीकरण। गांधी का मानना था कि गांवों को फिर से पहले की तरह मजबूत और आत्मनिर्भर बनाने के लिए ग्राम पंचायत को सशक्त करना सबसे ज्यादा जरूरी है। ग्राम पंचायत को गांव और ग्रामवासियों के सर्वांगीण विकास के लिए छोटी छोटी चीजों के लिए कानून बनाने की वैधानिक शक्ति, विकास के विविध कार्य संपन्न करने की कार्यकारी शक्ति और न्याय पंचायत को सस्ता और सुलभ न्याय देने के लिए विवादों को आपसी समझबूझ से निबटाने की न्यायिक शक्तियां प्रदान करनी चाहिए ताकि गांव अधिकांश मामलों में आत्म निर्भर बन सके और वह छोटी छोटी चीजों के लिए जिले के अधिकारियों और सूबे के मंत्रियों की कृपा पर निर्भर नहीं रहे।
    दुर्भाग्य से हमारे देश में गांधी के सपनों का ग्राम स्वराज आ नहीं पाया। कहने के लिए हमारे यहां पंचायती राज व्यवस्था लागू है लेकिन वह गांधी के ग्राम पंचायत की अवधारणा से बहुत दूर है। वर्तमान में ग्राम पंचायत को हर कार्य की स्वीकृति के लिए कभी ब्लॉक और जिले के अधिकारियों की कृपा पर निर्भर करना पड़ता है और कभी फंड रिलीज करने के लिए विधायक और सांसद के सामने हाथ फैलाना पड़ता है। गांव में होने वाले विकास कार्यों पर सरकारी नियंत्रण बहुत अधिक है। गांधी की ग्राम स्वराज की परिकल्पना वर्तमान सरकार नियंत्रित केंद्रीकृत व्यवस्था की एकदम उलट ग्राम पंचायत के सर्वाधिकार में चलने वाली विकेंद्रीकृत व्यवस्था थी, जिसे जमीन पर उतारने के लिए हमे ग्राम सभा और ग्राम पंचायत को और ज्यादा अधिकार देने पड़ेंगे। ग्राम पंचायत को यह अधिकार स्वतंत्र रूप से स्थानीय जरूरत के आधार पर ग्राम विकास की योजनाएं बनाने और उन्हे कार्यान्वित करने के लिए जरुरी फंड उपलब्ध कराकर आसानी से दिए जा सकते हैं, बस इसके लिए हमारी सरकारों की इच्छा शक्ति की जरूरत है।
    गांधी के ग्राम स्वराज की परिकल्पना में ग्रामीण अर्थ व्यवस्था की आत्म निर्भरता भी केंद्रीय तत्व है। गांधी सुदृढ़ ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए जिन प्रमुख चीजों की वकालत करते हैं उनमें बच्चों को रोजगारोन्मुख शिक्षा और ग्राम संसाधनों पर आधारित कुटीर ग्रामोद्योग सबसे प्रमुख हैं। गांधी जी द्वारा प्रतिपादित नई तालीम और बुनियादी तालीम ऐसी शिक्षा व्यवस्था है जिसमें बच्चों और युवाओं को रोजगार की शिक्षा दी जानी थी जिससे शिक्षा प्राप्त करने के बाद कोई बेरोजगार नहीं रहे। वर्तमान अंकों और डिग्री वाली शिक्षा व्यवस्था में दूर दूर तक गांधी के ग्राम स्वराज की झलक नही दिखती। यही कारण है कि हमारे यहां बेरोजगारी की समस्या दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। कुटीर उद्योगों के लिए भी जैसा माहौल गांधी गांधी सुनिश्चित करना चाहते थे उनका वैसा स्वरूप नही बन पाया है।
    कोविड की महामारी ने एक बार फिर से गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा को चर्चा के केन्द्र में खड़ा किया है। लॉक डाउन के बाद बड़ी संख्या में महानगरों से मजदूरों का पलायन हुआ है। हमारे गांवों ने ही इन मजदूरों को शरण दी है। दूसरी तरफ शहरों की तुलना में गांवों में महामारी का ज्यादा प्रकोप नही हुआ। वहां की आबोहवा अभी उतनी प्रदूषित नहीं है जितनी शहरों में है। गांवों का खुला वातावरण एवम परिश्रम और सादगी भरा प्राकृतिक जीवन महामारी से निबटने के लिए काफ़ी हद तक सक्षम है। एक तरह से महामारी ने हमें प्रकृति और गांवों की तरफ लौटने का इशारा किया है। यदि ऐसे कठिन समय में हम गांधी के ग्राम स्वराज की अवधारणा को ज़मीनी हकीकत बनाएंगे तो निश्चित रूप से यह गांवों के विकास और कोविड महामारी से निबटने के लिए रामबाण औषधि की तरह हो सकता है, बशर्ते हम गांधी के ग्राम स्वराज को साकार करने की दृढ़ इच्छाशक्ति रखें और इसके लिए जरूरी प्रयास करें।
    वेबीनार में बुंदेलखंड इलाके में जल संरक्षण के विविध रचनात्मक कार्य कर रहे डॉक्टर संजय सिंह ने भी ग्रामीण विकास के अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मैंने गांवों में यह महसूस किया है कि गांव के लोग मेहनत करने के कारण भी इस बीमारी से काफ़ी हद तक बचे हैं क्योंकि परिश्रम से इम्युनिटी बढ़ती है। उन्होने यह भी बताया कि लॉक डाउन के दौरान कई गांवो में जन सहयोग से काफ़ी रचनात्मक कार्य संपन्न हुए हैं।
    वेबिनार में अपने विचार प्रकट करते हुए गांधी सुमिरन मंच विदिशा के संयोजक डॉक्टर सुरेश गर्ग ने कहा कि ग्राम स्वराज का गांधीजी का सपना हमारे देश मे कभी ठीक से लागू करने की कोशिश ही नहीं हुई है जबकि भारत जेसे देश के विकास के लिए यह बहुत जरुरी है और कोरोना महामारी के वर्तमान दौर में तो यह और जरुरी हो गया है।
     वेबिनार का संयोजन कर रहे डॉक्टर अर्जुन कुमार ने मुख्य वक्ता डॉक्टर आर के पालीवाल, डाक्टर संजय सिंह और डॉक्टर सुरेश गर्ग को धन्यवाद ज्ञापित किया और आशा व्यक्त की कि कोरोना काल में ग्राम स्वराज पर हुई इस महत्वपूर्ण चर्चा से निकली सारगर्भित बातें दूर तक जाएंगी और इस दिशा में काम और आगे बढ़ेगा।

  • Ritika Gupta is a senior research assistant at Impact and Policy Research Institute. Her research Interests include Gender Studies, Public Policy and Development, Climate Change and Sustainable Development.

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ग्राम स्वराज्य की अवधारणा क्या है?

ग्राम स्वराज्य की अवधारणा समाज को शासनिक एवम प्रशासनिक व्यवस्था में सहभागी बनाने पर जोर देती है। शासन की ग्राम स्वराज्य परिकल्पना एक ऐसी व्यवस्था है जो राजनैतिक अव्यवस्था, भ्रष्टाचार, अराजकता अथवा तानाशाही जैसी समस्याओं का पूर्ण रूप से समाधान करती है। इस परिकल्पना को आदर्श लोकतंत्र भी कहा जा सकता है।

गांधीजी के अनुसार स्वराज की अवधारणा क्या है?

गाँधी के 'स्वराज' की अवधारणा अत्यन्त व्यापक है। स्वराज का अर्थ केवल राजनीतिक स्तर पर विदेशी शासन से स्वाधीनता प्राप्त करना नहीं है, बल्कि इसमें सांस्कृतिक व नैतिक स्वाधीनता का विचार भी निहित है। यह राष्ट्र निर्माण में परस्पर सहयोग व मेल-मिलाप पर बल देता है। शासन के स्तर पर यह 'सच्चे लोकतंत्र का पर्याय' है।

स्वराज का क्या अर्थ होता है?

स्वराज का शाब्दिक अर्थ है - 'स्वशासन' या "अपना राज्य" ("self-governance" or "home-rule")। भारत के राष्ट्रीय आन्दोलन के समय प्रचलित यह शब्द आत्म-निर्णय तथा स्वाधीनता की माँग पर बल देता था।

गांधी जी द्वारा प्रतिपादित ग्राम स्वराज के बुनियादी सिद्धांत कौन कौन से हैं?

4 महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के बुनियादी सिद्धांत निम्नलिखित हैं: 1 मानव का सर्वोच्च ध्येय है लोगों को सुखी बनाना और इसके साथ उनकी बौद्धिक और नैतिक उन्नति भी करना । नैतिक उन्नति से अर्थ यहां आध्यात्मिक उन्नति से है। यह ध्येय विकेंद्रीकरण से प्राप्त किया जा सकता है। केंद्रीकरण की पद्धति अहिंसक समाज रचना से भिन्न है।