ताजमहल का पहला नाम क्या है? - taajamahal ka pahala naam kya hai?

ताजमहल को लेकर चल रहे विवाद के बीच आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आगरा पहुंचेंगे. बता दें कि बीते कुछ दिनों से ताजमहल को हिन्दुओं का शिव मंदिर 'तेजो महालय ' बताकर राजनीतिक हवा दी जा रही है. लेकिन क्या आपको मालूम है ताजमहल का विवादित नाम 'तेजो महालय' कहां से आया?

दरअसल, ताज महल का 'तेजो महालय' नाम सबसे पहले एक मराठी किताब से आया. इसके लेखक पीएम ओक ने 1960 से 70 के दशक में ताजमहल, फ़तेहपुर सीकरी और लाल किले को लेकर कई विवादास्पद किताबें लिखीं थी.

ओक ने इन किताबों में ताजमहल को शिव मंदिर, लाल किले को हिन्दू इमारत और फ़तेहपुर सीकरी को एक हिन्दू नगर बताया था. जब ओक ने यह किताबें लिखीं थी तब ना तो बीजेपी पार्टी बनी थी और ना ही उस वक्त इन किताबों को लेकर विवाद हुआ था.

ताजमहल के अलावा ओक ने काबा पर भी अपनी किताबों में उस वक्त सवाल उठाए थे. यही नहीं, ओक ने क्रिस्चैनिटी को कृष्ण नीति और वैटिकन सिटी को वाटिका तक बताया था.

कौन है पीएन ओक

पुरुषोत्तम नागेश ओक उर्फ पीएन ओक एक पत्रकार और इतिहास लेखक थे. वे हिन्दू विचारधारा इतिहास के पुनर्लेखन के लिए जाने जाते थे. उन्होंने 'ताजमहल एक शिव मंदिर', 'फतेहपुर सीकरी एक हिन्दू नगर' आदि किताबें लिखी थी. इंदौर में जन्मे ओक के पास एम. ए और एल. एल. की डिग्री थी. वे लम्बे समय तक पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज में प्रोफ़ेसर भी रहे. हालांकि, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने सेना जॉइन की थी.

क्या है ताजमहल को लेकर विवाद...

पिछले कुछ दिनों में बीजेपी नेताओं की तरफ से ताजमहल को लेकर लगातार बयानबाजी होती रही है. सबसे पहले सरधना से विधायक संगीत सोम ने ताजमहल के इतिहास पर सवाल उठाया तो उसके बाद बीजेपी नेता विनय कटियार ने उसे शिवालय करार दे दिया. अभी हाल ही में हिंदू युवा वाहिनी के कुछ कार्यकर्ताओं ने ताजमहल के बाहर बैठकर शिव चालीसा का जाप किया, जिससे विवाद हुआ.

देश में ताजमहल (Taj Mahal) के बंद दरवाजों को खोलने को लेकर जारी सियासत और उस पर कोर्ट के फैसले के बीच ताजमहल को लेकर इतिहास क्या कहता है। इस अजूबे को दुनिया प्रेम की निशानी मानती है, लेकिन इसके क्या तथ्य हैं? इसे किसने बनवाया है, इस पर नजर डालते हैं।

शुरुआत मुगल आक्रान्ता शाहजहाँ की बीवी मुमताज उर्फ अर्जुमन बानो बेगम से होती है। 19 साल की उम्र में अर्जुमन बानो बेगम (मुमताज महल) का निकाह 21 साल के शाहजहाँ से 1612 में हुआ था। ये शाहजहाँ का दूसरा निकाह था। मुमताज और शाहजहाँ का वैवाहिक जीवन 18 साल का रहा। इन 18 सालों में शाहजहाँ से मुमताज को 14 बच्चे हुए और 15वें बच्चे के प्रसव के दौरान 1630 में मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में मुमताज की मौत हो गई। उस दौरान वो 37 साल की थी।

उसकी मौत के दो साल पहले ही शाहजहाँ को मुगल साम्राज्य की गद्दी मिली थी। बीवी की मौत के बाद करीब सप्ताह भर के लिए तो उसने पूरी सल्तनत के काम को रुकवा दिया। इतिहासकार EVV हैवेल कहते हैं कि मुमताज महल की मौत के बाद शाहजहाँ ने जबरदस्ती दो सालों तक शोक मनाया। इस दौरान किसी भी तरह के संगीत, त्योहार औऱ यहाँ तक कि गहने पहनने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।

बुरहानपुर में ही दफ्न की गई मुमताज

मौत के बाद मुमताज को बुरहानपुर में ही दफ्न कर दिया गया था। माना जाता है कि करीब छह महीने बाद, उसकी कब्र को आगरा लाया गया था। इसको लेकर भी दो तथ्य हैं- पहला ये राजपूत राजा मान सिंह के बेटे राजा जय सिंह की पुस्तैनी जमीन पर उसे तुरंत दफ़न कर वहाँ एक बगीचा बना दिया गया था। दूसरा मुमताज को आगरा लाने के बाद उसे 9 सालों तक एक मस्जिद में दफ़न किया गया। उल्लेखनीय है कि इन दो सालों तक शाहजहाँ न तो किसी से मिला औऱ न ही दरबार में आय़ा। सवाल ये उठता है कि फिर किसने मुमताज के गल चुके शरीर के ढाँचे को कब्र खोदकर उसे आगरा लाने का फरमान सुनाया, ये तथ्य इतिहास में दफन हो गया है। जबकि सत्य तो ये है कि शाहजहाँ के बिना उसे कोई हाथ नहीं लगा सकता था।

अब अगर इस बात को माना जाय कि सच में मुमताज की कब्र को आगरा लाया गया था, तो पहले 9 सालों तक मस्जिद में दफ़न किया गया और 1641 के आसपास ताजमहल के बगीचे में दफनाया गया होगा। मतलब ये कि 10 सालों तक शाहजहाँ, मुमताज की हड्डियों अथवा कंकाल को लेकर ही यहाँ से वहाँ घूमता रहा होगा। मुमताज की कब्र है कहाँ इसको लेकर पुख्ता जानकारी खुद पुरातत्व विभाग के पास ही नहीं है। वो भी कही-सुनी बातों पर यकीन करता है।

किसकी है ताजमहल वाली जमीन

आगरा का ताजमहल जिस जमीन पर शान से खड़ा है, वो वास्तविकता में जयपुर के राजा मान सिंह की है। इस तथ्य को भारतीय इतिहासकार जादूनाथ सरकार समेत यूरोपियन इतिहासकार जॉन मार्शल और EVV हैवेल भी स्वीकार करते हैं। इस पर इस्लामिक इतिहासकार भी सहमत नजर आते हैं।

हाँ, इसे बनवाने में आए कुल खर्च पर इतिहासकारों में एकमत नहीं है। कुछ स्थानों पर इसका खर्चा 50 लाख तो कहीं 185 लाख रुपए तक बताया गया है। दीवान-ए-अफरीदी में खर्चा 9 करोड़ 17 लाख बताया है जबकि न्यूयॉर्क टाइम्स में 1853 में प्रकाशित एक लेख के अनुसार 1,750,000 पौंड था।

शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान फ्रांसीसी यात्री जीन बापिस्ट टावरनियर भारत के दौरे पर आया था। अपनी इस यात्रा पर एक किताब भी उसने लिखी थी। जिसका अनुवाद 1889 में प्रकाशित हुआ था। किताब के मुताबिक, वो 1640-41 में पहली बार आगरा आया था। दरअसल, उसका भारत आना-जाना लगा रहता था। जब पेरिस से चलकर अपनी पाँचवी भारत यात्रा पर आया तो वह 1667 में सूरत में था। यह उसकी आखिरी भारत यात्रा थी। उसने अपने संस्मरण के पृष्ठ 110 पर लिखा है, “I witnessed the commencement and accomplishment of this great work (Taj Mahal).” इस आधार पर टावरनियर के अनुसार ताज महल का निर्माण 1640-41 के दौरान शुरू हुआ होगा। जबकि मुमताज की मौत एक दशक पहले 1630 में ही हो चुकी थी।

1667 में जब टावरनियर सूरत में था, एक साल पहले 1666 में शाहजहाँ भी मर चुका था। अपनी मृत्यु से आठ साल पहले तक वह अपने बेटे औरंगजेब की कैद में भी रहा था। ऐसे में 1658 के आसपास से ही परिवार में गद्दी को लेकर आपसी लड़ाई छिड़ चुकी थी। टावरनियर यह भी लिखता है, “ताजमहल को बनाने में 22 साल लगे थे।” अब 1641 से 22 साल 1663 में जाकर पूरे होते है। इस दौरान शाहजहाँ तो आगरा के किले में नजरबन्द था।

ताजमहल का निर्माण कब हुआ इस पर एक और कहानी पढ़ने की मिलती है। एक स्पेनिश धार्मिक यात्री सेबस्टियन मैनरिक 1641 में आगरा में था। उसे किसी ने बताया कि ताजमहल के मुख्य वास्तुकला को इटली के गेरोनिमो वेरोनियो ने तैयार की है। हालाँकि, वह कभी वेरोनियो से नहीं मिला था क्योंकि शाहजहाँ ने उसे 1640 में एक पुर्तगाली के हाथों मरवा दिया था। लाहौर में उसकी कब्र आज भी है। साल 1899 में हेनरी जॉर्ज ने अपनी किताब ‘A Handbook for Visitors to Agra and Its Neighbourhood’ के पेज नंबर 23-24 पर लिखा है, “ताजमहल के पूरा बनने से पहले ही वेरोनियो मर गया था… इस प्रकार 17 सालों तक चले निर्माण के बाद यह इमारत 1648 में जाकर बनी।”

हालाँकि, इस तथ्य को अधिकतर इस्लामिक इतिहासकार मानने से इनकार करते हैं। उनका दावा है कि ताजमहल का ढाँचा शाहजहाँ के करीबी मुस्लिम उस्ताद अहमद लाहौरी ने बनाया था। बावजूद इसके दस्तावेजों के अध्ययन से ये संदेह पैदा होता है कि वास्तव में ताजमहल कब बना, किसने बनाया और कब इसका निर्माण पूरा हुआ?

कहा जाता है कि ताजमहल को 20,000 मजदूरों ने मिलकर बनाया था। पहली बार ये तथ्य ब्रिटिश काल में लाहौर से प्रकाशित एक पुस्तक ‘गाइड टू द ताज एट आगरा’ के पृष्ठ 14 में मिलता है। हेनरी जॉर्ज ने इन मजदूरों की दुर्दशा के बारे में अपनी किताब में लिखा है। किताब के पेज नंबर 27 पर लिखा है, “20,000 मजदूरों ने काम किया लेकिन उन्हें बहुत कम पैसे मिलते थे। उन्हें भत्ते के तौर पर मक्के के दाने दिए जाते थे, जिसकी लालची अधिकारियों द्वारा कटौती होती रहती थी। ये मजदूर बुरी तरह से तनाव में थे और इसी कारण इनकी मौत की संख्या भी काफी बढ़ गई थी। एक कवि ने लिखा है कि इस संकट की घड़ी में भगवान ही हमारा रखवाला है। अच्छा होता कि हम भी मुमताज के साथ ही मर गए होते।”

ताज महल का पुराना नाम क्या है?

पुरषोत्तम नागेश ओक ने ताजमहल पर शोधकार्य करके बताया कि ताजमहल को पहले 'तेजो महल' कहते थे। वर्तमन ताजमहल पर ऐसे 700 चिन्ह खोजे गए हैं जो इस बात को दर्शाते हैं कि इसका रिकंस्ट्रक्शन किया गया है। इसकी मीनारे बहुत बाद के काल में निर्मित की गई।

ताजमहल के राजा का नाम क्या है?

ताजमहल भारतीय शहर आगरा में यमुना नदी के दक्षिण तट पर एक हाथीदांत-सफेद संगमरमर का मकबरा है। इसे 1632 में मुगल सम्राट शाहजहां (1628 से 1658 तक शासन किया गया) द्वारा अपनी पसंदीदा पत्नी मुमताज महल की मकबरे के लिए शुरू किया गया था

ताजमहल की असली कहानी क्या है?

दरअसल फारसी, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला की अनोखी शैली से बने ताजमहल को मोहब्बत की निशानी कहा जाता है. दावा किया जाता है कि मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज की याद में यमुना के किनारे सफेद संगमरमर से इसे बनवाया था. ताजमहल जितना खूबसूरत है, उतने ही विवाद भी इसके साए में पड़े रहे हैं.

ताजमहल के 22 कमरों का रहस्य क्या है?

आज तक किसी को भी यह पता नहीं चल पाया है कि यह तैखाने क्या हैं। लोगों की मानें तो इन 22 कमरों तक पहुंचने का रास्ता ताज के वेंटीलेशन के लिए बनाए गए रास्तों से होकर जाता है। लेकिन कोई इन कमरों तक न पहुंच सके इसके लिए इन रास्तों को ईंट और चूना भरकर हमेशा के लिए बंद कर दिया गया है। जो कमरे दुनिया की नजरों से छिपाये गए हैं।