These NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant & Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers Summary in Hindi Chapter 26 शांतिदूत श्रीकृष्ण are prepared by our highly skilled
subject experts. Bal Mahabharat Katha Class 7 Questions Answers in Hindi Chapter 26 पाठाधारित प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. Bal Mahabharat Katha Class 7 Summary in Hindi Chapter 26 श्रीकृष्ण सात्यकि के साथ शांति की बातचीत करने के उद्देश्य से हस्तिनापुर आए। यह समाचार सुनकर कि श्रीकृष्ण आए हैं धृतराष्ट्र ने उनके स्वागत की भव्य तैयारियाँ करवाईं। दुःशासन का भवन दुर्योधन के भवन से भी ऊँचा था। अतः श्रीकृष्ण को वहीं ठहरने की व्यवस्था की गई। श्रीकृष्ण धृतराष्ट्र से मिलकर विदुर के घर गए। वहाँ कुंती भी श्रीकृष्ण के इंतजार में बैठी थी। श्रीकृष्ण ने कुंती को सांत्वना दी और वे दुर्योधन के पास गए। दुर्योधन ने उनका शानदार स्वागत किया और उनको भोजन का निमंत्रण दिया। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन से कहा- राजन् जिस उद्देश्य से मैं यहाँ आया हूँ वह बिना पूरा हुए भोजन का न्यौता देना उचित नहीं है। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण विदुर के पास चले गए। वहीं पर उन्होंने भोजन और विश्राम किया। इसके बाद विदुर ने श्रीकृष्ण को अगाह करते हुए कहा कि कौरवों की सभा में आपका जाना उचित नहीं। श्रीकृष्ण ने कहा- आप मेरे प्राणों की चिंता मत कीजिए। श्रीकृष्ण विदुर के साथ धृतराष्ट्र के भवन में गए और बड़ों को प्रणाम करके आसन पर बैठ गए। इसके बाद श्रीकृष्ण ने पांडवों की माँग रखी। उन्होंने बताया कि राजन पांडव शांति प्रिय हैं लेकिन युद्ध के लिए भी तैयार हैं। पांडव आपको पिता स्वरूप मानते हैं। ऐसा उपाय करें जिससे आप भाग्यशाली बने। यह सुनकर धृतराष्ट्र सभासदों से बोले-मैं तो यही चाहता हूँ जो श्रीकृष्ण को प्रिय है। इस पर श्रीकृष्ण दुर्योधन से बोले-“मैं चाहता हूँ कि पांडवों का आधा राज्य लौटा दो और उनके साथ समझौता कर लो। अगर ऐसा होगा तो पांडव स्वयं तुम्हें युवराज और धृतराष्ट्र को महाराज के रूप में स्वीकार कर लेंगे। सारी सभा ने दुर्योधन को समझाना चाहा। युद्ध के भयावह परिणामों का वर्णन किया। दुर्योधन द्वारा पांडवों पर किए गए अत्याचारों का स्मरण दिलाया। यह देखकर दुःशासन ने कहा- भाई, ये लोग आपको बंदी बनाना चाहते हैं। अतः आप यहाँ से निकल चलें। दुर्योधन भाइयों के साथ सभा भवन से निकल गया। इसी बीच धृतराष्ट्र ने सभा में गांधारी को बुलाया। दुर्योधन को भी सभा में दुबारा बुलाया। गांधारी ने दुर्योधन को कई तरीके से समझाने की कोशिश किया, किंतु उसने माँ की एक भी बात नहीं सुनी और पुनः सभा से बाहर निकल गया। बाहर निकलकर दुर्योधन अपने मित्रों के साथ मिलकर राजदूत कृष्ण को पकड़ने का कुचक्र करने लगा, किंतु सफलता न मिली। सभा से निकलकर श्रीकृष्ण कुंती के पास पहुंचे और उनको सभा का सारा हाल सुनाया। युद्ध की आशंका से कुंती काफ़ी चिंतित हो गई और वह सीधे कर्ण के पास गई। कर्ण जब मध्याह्न के बाद पूजा से उठा ही था तो कुंती को देखकर आश्चर्य चकित हो गया। पूछा- आज्ञा दीजिए, मैं आपकी क्या सेवा करूँ। कुंती ने कर्ण को असलियत बताते हुए कहा- तुम अधिरथ के पुत्र नहीं बल्कि राजकुमारी पृथा की कोख से पैदा हुआ है। तुम्हारे पिता सूर्य हैं। तुम दुर्योधन के पक्ष में होकर अपने भाइयों से ही शत्रुता कर रहे हो। तुम अर्जुन के साथ मिलकर वीरता से लड़ो और राज्य करो। कर्ण माता कुंती की बात सुनकर बोला, माँ यदि इस समय मैं दुर्योधन का साथ छोड़कर पांडवों के साथ मिल गया तो लोग मुझे कायर कहेंगे। कर्ण ने दुर्योधन का साथ देने की अपनी लाचारी कुंती को समझा दिया, किंतु कुंती को एक भरोसा भी दिया। उसने कहा, मैं, तुम्हारी बात को एकदम व्यर्थ नहीं जाने दूंगा। मैं आपको वचन देता हूँ कि अर्जुन को छोड़कर और किसी पांडव के प्राण नहीं लूँगा। इस युद्ध में या तो मैं मारा जाऊँगा या अर्जुन मारा जाएगा। तुम्हारे पाँच पुत्र हर हालत में रहेंगे। अतः तुम चिंता न करो। शेष चारों पांडव मुझे चाहे जितना तंग करें मैं उनको नहीं मारूँगा। माँ तुम्हारे तो पाँच पुत्र हर हाल में रहेंगे। चाहे मैं मर जाऊँ, चाहे अर्जुन ! हम दोनों में से एक बचेगा और बाकी चार तो रहेंगे ही। तुम चिंता न करो। कुंती कर्ण की बातें सुनकर विचलित हो गई। इसके बाद उन्होंने गले से लगाते हुए बोली, तुम्हारा कल्याण हो। कर्ण को आशीर्वाद देकर कुंती महल में चली गई। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या-65- उद्देश्य – लक्ष्य, विश्राम – आराम, ठहरना – रुकना, प्रतीक्षा – इंतज़ार। शांति की बातचीत करने के उद्देश्य से श्रीकृष्ण के साथ कौन हस्तिनापुर गए थे?श्रीकृष्ण सात्यकि के साथ शांति की बातचीत करने के उद्देश्य से हस्तिनापुर आए। यह समाचार सुनकर कि श्रीकृष्ण आए हैं धृतराष्ट्र ने उनके स्वागत की भव्य तैयारियाँ करवाईं। दुःशासन का भवन दुर्योधन के भवन से भी ऊँचा था। अतः श्रीकृष्ण को वहीं ठहरने की व्यवस्था की गई।
पांडवों की ओर से शांतिदूत बनकर कौन हस्तिनापुर गए?पांडवों का संदेशा लेकर शांतिदूत बनकर भगवान श्री कृष्ण हस्तिनापुर पहुंचे हैं। इस दौरान उनका पूरे हस्तिनापुर ने भव्य स्वागत किया है। खुद पितामह उन्हें राजमहल तक लेकर आए हैं।
श्री कृष्ण हस्तिनापुर क्यों गए उनके साथ कौन थे?मित्र! श्रीकृष्ण पांडवों का शांति प्रस्ताव लेकर हस्तिनापुर गए थे। वह चाहते थे कि पांडवों और कौरवों के मध्य संधि हो जाए और युद्ध की स्थिति टल जाए। श्रीकृष्ण जानते थे कि यदि यह प्रयास नहीं किया गया, तो भयंकर विनाश होगा।
पांडवों की ओर से शांतिदूत के रूप में हस्तिनापुर कौन गया था क कृष्ण ख अर्जुन ग विराट घ संजय?शांतनु के देहावसान पर चित्रांगद हस्तिनापुर के सिंहासन पर बैठे और उनके युद्ध में मारे जाने पर विचित्रवीर्य । विचित्रवीर्य की दो रानियाँ थीं- अंबिका और अंबालिका । सत्यवती के पुत्र चित्रांगद बड़े ही वीर, परंतु स्वेच्छाचारी थे।
|