संथाल विद्रोह के नेता कौन थे? - santhaal vidroh ke neta kaun the?

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आप सभी का एक नए आर्टिकल में, अगर जानना चाहते है कि Santhal Vidroh ka neta kaun tha? तो यह आर्टिकल आप सभी के लिए बहुत ही खास रहने वाला है, क्योंकि आज हम जानेंगे कि संथाल विद्रोह का नेता कौन था?

आज के इस आर्टिकल के जरिए हम आपको संथाल के विद्रोह का नेता कौन था, संथाल के विद्रोह का कारण, संथाल का विद्रोह कब हुआ आदि विस्तार से बताएंगे।

अगर आप यह आर्टिकल लास्ट तक ध्यान से पढ़ते हैं, तो आपको इस जानकारी के लिए कहीं और जाने की आवश्यकता नहीं होगी।

आइए दोस्तों बिना किसी देरी के आर्टिकल को शुरू करते है।

संथाल विद्रोह क्या है?

संथाल विद्रोह संथाल समुदाय के लोगों द्वारा लड़ा गया था| संथाल समुदाय वर्तमान के के सीमावर्ती क्षेत्रों के पहाड़ी इलाके में रहते थे। संथाल समुदाय अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार और अत्यधिक कर से परेशान होकर संथाल समुदाय ने 1855 में विद्रोह की शुरुआत की।

अंग्रेजी हुकूमत ने इस विद्रोह को बडे ही निर्दय तरीके से दबा दिया और हजारों की मात्रा में संथालो को अंग्रेजी हुकूमत के द्वारा मौत के घाट उतारा गया था।

संथाल विद्रोह का नेता कौन था?

संथाल विद्रोह के नेता सिद्धु, कान्हू, भैरव और चाॅंद थे। 1855 में इनके नेतृत्व में संथाल विद्रोह आरंभ हुआ था। 1855 में अंग्रेजों के द्वारा संथाल क्षेत्र को पृथक नाॅन रेगुलेशन जिला बना दिया गया। संथाल में रहने वाले लोग काफी भोले थे।

इन्होंने संथालो को इकट्ठा किया एवं सिद्धू ने ख़ुद को देवदूत वताया ताकि संथाल उसकी बातों पर विश्वास करे। 30 जून, 1855 को चारों भाइयों द्वारा सभा बुलाई गई, जिसमें करीबन 10 हजार संथाल जुड़े उन्हें बताया की भगवान ठाकुर चाहते हैं कि महाजनों, साहूकारों, सरकार का वीरता से सामना करो और अंग्रेजी हुकूमत के खत्म होने का समय आ गया है।

संथालो ने अत्याचारी एवं क्रूर दरोगा को मौत के घाट उतार दिया व बाजार, दुकाने एवं थाने इत्यादि नष्ट कर दिए। बहुत से सरकारी कार्यालयों, कर्मचारियों पर संथालो ने धावा बोल दिया।

इस विद्रोह में बहुत से बेकसूर लोग भी मारे गए, और इस कारण भागलपुर और राजमहल के बीच डाक, रेल आदि सेवा बंद कर दी गई। संथालो ने अब अंग्रेजी हुकूमत को उखाड़ फेंकने की कसम ले ली थी और यह विद्रोह आस-पास की जगहों में आग की तरह फैला।

संथाल विद्रोह का कारण

संथालो का जीवन पूर्ण रूप से कृषि और वन-संपदा पर निर्भर था। स्थायी बंदोबस्त के कारण संथालो के हाथ से उनकी जमीन चली गई, वे उस इलाके को छोड़ कर राजमहल के पहाड़ी इलाके में रहने लगे। उन्होंने उस जमीन को कृषि योग्य बनाया व जंगल काटकर वहाँ घर बनाया। इस क्षेत्र के लोगों को दमनीकोह कहा जाने लगा।

सरकार का ध्यान जब इन दमनीकोह पर पड़ा तो वे उनसे लगान लेने पहुँच गए, और उस क्षेत्र में जमींदारी स्थापित कर दी। जिस कारण उस क्षेत्र में जमीदारों, साहूकारों एवं सरकारी कर्मचारियों का दबदबा बढने लगा।

संथालो पर अत्यधिक लगान लगा दिया गया और वे उस लगान तले दब गए। महाजनों के द्वारा संथालो से दोगुना से अधिक सूद वसूला जाता था जिस कारण संथाल लगान चुकाने में असमर्थ हो गए जिस कारण महाजनों ने उनके खेत, मवेशी छीन लिए और संथालो को उनका गुलाम बनना पड़ा।

संथालो को न्याय देने वाला कोई नहीं था क्योंकि सरकार साहूकारों, महाजनों की सुनती थी। संथालो के हित के बारे में सोचना तो दूर की बात ब्लकि संथालो का धन, औरतों की इज्जत लूटी गयी। अत: इन सब कारणों संथालो ने सरकार, महाजनों, साहूकारों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा दिया।

संथाल विद्रोह का दमन

अंग्रेजी हुकूमत संथालो की आक्रामकता देखकर घबरा गई थी और हिंसक तरीके से इस विद्रोह को दबाने लगी। संथालो के पास शस्त्र-अस्त्र की कमी थी जिस कारण वे अंग्रेजी हुकूमत के आगे टिक नहीं पाए।

हजारों की संख्या में संथालो को बंदी बना लिया गया और करीब 15 हजार संथालो को मोत के घाट उतार दिया गया। संथालो द्वारा अपने नेता की गिरफ्तारी को देख मनोबल टूट गया और फरवरी 1856 में यह विद्रोह समाप्त हो गया।

संथाल विद्रोह का महत्व

संथाल विद्रोह चाहे विफल हो गया हो मगर इस विद्रोह ने पूरे भारतवर्ष में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए प्रेरित किया। इसी विद्रोह के बाद पूरे भारतवर्ष में विभिन्न प्रकार के विद्रोह देखने को मिले जिसमें 1857 का विद्रोह सबसे प्रमुख था।

इस विद्रोह से अंग्रेजी हुकूमत ने जाना की जनता एक हद के बाद अत्याचार और दमन बर्दाश्त नहीं करेगी। बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने संथालो की मांगों को पूरा करने का प्रयास किया मगर फिर भी आदिवासियों पर अत्याचार होता रहा।

आदिवासियों ने भी संथालो का तरीका अपनाया और अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई विद्रोह किए|

FAQs:-

स्थायी बंदोबस्त क्या था?

स्थायी बंदोबस्त के अनुसार जमीदार को भूमि का मालिक बना दिया गया जब तक जमीदार अंग्रेजी सरकार को निश्चित लगान देते थे, लगान नहीं देने पर उनकी जमीनें हड़प ली जाती थी और किसी और को दे दी जाती जब तक वह लगान दे पाए।

संथाल विद्रोह का नेता कौन था?

संथाल विद्रोह के नेता चार भाई सिद्धू, कान्हू, भैरव और चाॅंद थे। इन्होंने संथालो को इकट्ठा कर अंग्रेजी हुकूमत के अत्याचार के खिलाफ आंदोलन करने के लिए संथालो को प्रेरित किया था।

Conclusion:-

तो दोस्तों कैसा लगा आपको हमारा यह आर्टिकल, इस आर्टिकल के जरिए हमने जाना कि Santhal vidroh ka neta kaun tha? इस आर्टिकल में हमने आपको बड़े आसान शब्दों में बताया है कि संथाल विद्रोह के कारण, संथाल विद्रोह का नेता कौन था?

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धन्यवाद,

जय हिंद, जय भारत।

संथाल विद्रोह के प्रमुख नेता कौन था?

1855-56 में संथाल विद्रोह का नेतृत्व करने वाले दो भाइयों सिदो और कान्हू ने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे। अंग्रेजों ने इनके विद्रोह को ऐसे कुचला कि जालियांवाला कांड भी छोटा पड़ जाता है। इस विद्रोह में अंग्रेजों ने लगभग 30 हजार संथालियों को गोलियों से भून डाला था

संथाल विद्रोह कब शुरू हुआ इसके नेता कौन थे?

विद्रोह की प्रमुख घटनाएं इन्हीं अत्याचारों की पृष्ठभूमि में संथालों ने दरोगा महेश लाल दत्त एवं प्रताप नारायण की हत्या कर दी और इसी के साथ संथाल हूल की चिंगारी उठी | 30 जून, 1855 में भगनीडीह में 400 आदिवासी गाँवों के लगभग 6000 आदिवासी इकट्ठा हुए और सभा की।

संथाल विद्रोह का नायक कौन था?

भारत के स्वतंत्रता संग्राम की पहली जनक्रांति कहे जाने वाले संथाल विद्रोह के नायक सिद्धू-कानू और उनके परिजनों के लिए अन्याय ही नियति बन गई है.

संथाल विद्रोह में कौन कौन शामिल थे?

इन संपूर्ण तथ्यों और परिस्थितियों के कारण संथाल हूल या 1855 का विद्रोह हुआ। संथाल ने सिद्धू ,कान्हू, चांद और भैरब में साहिबगंज जिले के बरहेट के निकट भोग्नादिह गांव के सभी चार भाइयों को मिला।