सत्य का दिखना और ओझल होने से कवि का क्या तात्पर्य है? - saty ka dikhana aur ojhal hone se kavi ka kya taatpary hai?

सत्य का दिखना और ओझल होना से कवि का क्या तात्पर्य है?

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सत्य स्वयं में एक प्रबल शक्ति है। उसे दिखने से कोई नहीं रोक सकते हैं परन्तु यदि परिस्थितियाँ इसके विरोध में आ जाएँ, तो वह शीघ्रता से ओझल हो जाता है। सत्य को हर समय अपने सम्मुख रखना संभव नहीं है क्योंकि यह कोई वस्तु नहीं है। यही कारण है कि यह स्थिर नहीं रह पाता और यही सबसे बड़े दुख की बात भी है। लोग अपने स्वार्थ के लिए सत्य को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करते हैं। उनके कारण सत्य कहीं ओझल हो जाता है और रह जाता है, तो असत्य। सत्य तभी प्रकट होता है, जब दृढ़तापूर्वक उसका आचरण किया जाता है या उस पर अडिग रहा जाए। युधिष्ठिर उसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उन्होंने किसी भी परिस्थिति में सत्य का साथ नहीं छोड़ा।

Question

सत्य का दिखना और ओझल होना से कवि का क्या तात्पर्य है?

Solution

सत्य स्वयं में एक प्रबल शक्ति है। उसे दिखने से कोई नहीं रोक सकते हैं परन्तु यदि परिस्थितियाँ इसके विरोध में आ जाएँ, तो वह शीघ्रता से ओझल हो जाता है। सत्य को हर समय अपने सम्मुख रखना संभव नहीं है क्योंकि यह कोई वस्तु नहीं है। यही कारण है कि यह स्थिर नहीं रह पाता और यही सबसे बड़े दुख की बात भी है। लोग अपने स्वार्थ के लिए सत्य को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करते हैं। उनके कारण सत्य कहीं ओझल हो जाता है और रह जाता है, तो असत्य। सत्य तभी प्रकट होता है, जब दृढ़तापूर्वक उसका आचरण किया जाता है या उस पर अडिग रहा जाए। युधिष्ठिर उसका सबसे बड़ा उदाहरण है। उन्होंने किसी भी परिस्थिति में सत्य का साथ नहीं छोड़ा।

सत्य कविता प्रश्न अभ्यास– Satya Poem Explanation

प्रश्न 1. सत्य क्या पुकारने से मिल सकता है? युधिष्ठिर विदुर को क्यों पुकार रहे हैं- महाभारत के प्रसंग से सत्य के अर्थ खोलें।

उत्तर- सत्य अगर आवाज लगाने से मिल जाता, तो शायद आज चारों तरफ झूठ नहीं फैला होता। कविता के अनुसार सत्य को बुलाने से नहीं बल्कि सत्य बोलने से सत्य का पता मिलता है।

सत्य को पाने के लिए संघर्ष करने पड़ते हैं, जैसे महाभारत में धर्मराज युधिष्ठिर ने किया था। जिस तरह युधिष्ठिर ने अपने संपूर्ण जीवन में केवल सत्य ही कहा था और सत्य को ही अपना धर्म समझा था और शायद इन्हीं कारणों की वजह से उन्हें धर्मराज भी कहा जाता था।

सत्य बिकते नहीं है, सत्य हर मनुष्य के अंदर व्याप्त होता है। बस उसे पहचानने की आवश्यकता होती है।

प्रश्न 2. सत्य का दिखना और ओझल होना से कवि का क्या तात्पर्य है?

उत्तर- सत्य सभी व्यक्ति के अंदर विराजमान होता है। फर्क सिर्फ इतना है कि हर व्यक्ति सत्य को महसूस नहीं कर पाता। सत्यता ओझल हो जाती है जब झूठ सत्य के सामने भारी हो जाता है।

सत्य अगर सही तरीके से बोला जाए तो सत्य सत्य है, अगर सत्य को लोग तोड़ मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं, तो सत्य ओझल हो जाता है। सत्य हमेशा उनको ही दिखता है, जो सत्य को अपना सबकुछ मान लेते हैं। अर्थात हमेशा सच्चाई के पथ पर चलते है।

प्रश्न 3. सत्य और संकल्प के अंतर्संबंध पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।

उत्तर-एक भक्त और भगवान के बीच कैसा संबंध होता है, ठीक वैसा ही संबंध सत्य और संकल्प के मध्य होता है। भक्ति के मार्ग से होकर ही मनुष्य भगवान को प्राप्त करता है। ठीक वैसे ही सत्य के मार्ग पर चलने के लिए संकल्प का होना अति आवश्यक है। बिना किसी संकल्प के हम किसी भी मार्ग पर चल नहीं सकते हैं।

सत्य और संकल्प का आपस में गहरा संबंध है। सत्य भी उनका ही साथ देता है, जो हमेशा सच्चाई के पथ पर अग्रसर रहते हैं। झूठ बोलने वालों के जीवन में सत्य का कोई मोल नहीं है। सत्य उनके जीवन में कभी प्रवेश भी नहीं करता है।

प्रश्न 4. ‘युधिष्ठिर जैसा संकल्प’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर-युधिष्ठिर संपूर्ण महाभारत में एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने हमेशा सत्य का साथ दिया। सत्य ही उनके जीवन का महत्वपूर्ण आधार था। युधिष्ठिर इतने सत्यवादी थे कि उनके समक्ष विदुर तक को भी झुकना पड़ा।

युधिष्ठिर के जीवन में अनेक कठिनाइयां आईं, मगर उन कठिनाई के परिस्थितियों में भी उन्होंने सत्य का साथ नहीं छोड़ा। उन्होंने अपने जीवन के अंतिम क्षण तक सत्य का ही साथ दिया। इसलिए कवी सत्य कविता के माध्यम से युधिष्ठिर जैसा संकल्प करने के लिए कहते हैं।

प्रश्न 5. कविता मैं बारबार प्रयुक्त ‘हम’ कौन हैं और उसकी चिंता क्या है?

उत्तर-कविता में बार बार प्रयुक्त होने वाले हम वह व्यक्ति है, जो हमेशा झूठ बोलते हैं और सत्य को ढूंढने के लिए इधर-उधर भटकते रहते हैं।

प्रश्न 6. सत्य की राह पर चल। अगर अपना भला चाहता है तो सच्चाई को पकड़।- इन पंक्तियों के प्रकाश में कविता का मर्म खोलिए।

उत्तर- आज जिस समाज में हम सभी रहते हैं, वह समाज और धर्म के पथ पर अग्रसर हो रहा है। आज सच्चाई पर झूठ ज्यादा हावी हो रहा है। आज झूठ बोलने वालों की जीत होती है और सच बोलने वालों की हार।

ऐसा इसलिए संभव हुआ है, क्योंकि मनुष्य छल-कपट, लोभ-लालचम में इतना अंधा हो चुका है कि उसे अपनी ग़लतियाँ दिखाई नहीं देती है।

जब मनुष्य को अपनी ग़लतियाँ दिखाई देती है, तब तक बहुत देर हो जाती हैं। इसलिए सत्य को हमेशा पहचानना चाहिए। सत्य हर मनुष्य के भीतर व्याप्त है, इसे समय-समय पर बाहर निकालना चाहिए। वरना 1 दिन असत्य सब को बर्बाद कर देता है।

अतिरिक्त प्रश्न. सत्य की पहचान हम कैसे करें? कविता के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- सत्य प्रत्येक मनुष्य के अंदर विराजमान होता है, उसे ढूंढने के लिए इधर-उधर घूमने की जरूरत नहीं है। मनुष्य अगर अपने अंतर्मन की आवाज सुनेगा, तो उसे सत्य अवश्य मिल जाएगा।

सत्य कभी स्थिर नहीं रहता, उसे समय-समय पर उपयोग करने की आवश्यकता होती है। जहां गलत हो वहां सत्य बोलना चाहिए। जहां अधर्म हो वहां धर्म का साथ देकर सत्य को जिताना चाहिए।

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2 सत्य का दिखना और ओझल होना से कवि का क्या तात्पर्य है?

सत्य स्वयं में एक प्रबल शक्ति है। उसे दिखने से कोई नहीं रोक सकते हैं परन्तु यदि परिस्थितियाँ इसके विरोध में आ जाएँ, तो वह शीघ्रता से ओझल हो जाता है। सत्य को हर समय अपने सम्मुख रखना संभव नहीं है क्योंकि यह कोई वस्तु नहीं है। यही कारण है कि यह स्थिर नहीं रह पाता और यही सबसे बड़े दुख की बात भी है।

कवि के अनुसार जीवन का सत्य क्या है?

कवि के अनुसार, कवि विप्लव के माध्यम से परिवर्तन की हिलोर लाना चाहता है। इस कविता का भाव है जीवन का रहस्य है। विकास और गतिशीलता में रुकावट पैदा करने वाली प्रवृत्ति से संघर्ष करके नया निर्माण करना। नव-निर्माण के लिए कवि विध्वंस और महानाश को आवश्यक मानता है।

सत्य क्या जानना चाहता है?

वे सत्य को पहचानना तथा जानना चाहते हैं। उनकी मुख्य चिंता यह है कि वे सत्य का स्थिर रूप-रंग और पहचान नहीं खोज पा रहे हैं। यदि वे इन्हें खोज लेते हैं, तो वे सत्य को स्थायित्व प्रदान कर सकेगें। परन्तु सत्य की पहचान और स्वरूप तो घटनाओं, स्थितियों तथा लोगों के अनुरूप बदलती रहती है।