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Avtar Singh Sandhu (Pash) : अवतार सिंह पाश की कविता सबसे खतरनाक

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Dr. Mulla Adam Ali

सबसे खतरनाक कविता : अवतार सिंह पाश Avtar Singh Sandhu Ki Kavita Sabse Khatarnak

Avtar Singh Sandhu "Pash" Poetry

सबसे खतरनाक कविता : अवतार सिंह पाश की कविता - प्रस्तुति भाग्य श्री (Bhagya Shree)

Avtar Singh Sandhu

अवतार सिंह पाश

अवतार सिंह संधू

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Pash Birthday Anniversary : अवतार सिंह संधू ‘पाश’ एक ऐसा नाम, जिसके लेते ही उस समय के शासकवर्ग के माथे पर पसीना आ जाता था। सिर्फ अपनी कलम के ज़रिये इस शख्स ने पूरे पंजाब में क्रांति की अलख जगा दी थी। 9 सितम्बर, 1950 को पंजाब के जालंधर ज़िले के गांव तलवंडी सलेम में जन्मे अवतार सिंह संधू बहुत कम उम्र में ही अपनी क्रांतिकारी पंजाबी रचनाओं के कवि पाश के नाम से मशहूर हो गए थे।

मात्र पंद्रह साल की उम्र में अपनी पहली कविता लिखी और कम्युनिस्ट आंदोलन से जुड़ गए। उन्नीस वर्ष की छोटी सी आयु में इन्हें जेल में डाल दिया गया और भीषण यातनाएं दी गईं। वैसे तो पाश पंजाबी कवि थे, लेकिन हिंदी जगत में भी पाश की प्रसिद्धि कम नहीं है। अपनी क्रांतिकारी कविताओं के बदले में पाश की ठीक उसी दिन हत्या कर दी गई थी, जिस दिन भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी, यानी शहीदी दिवस वाले दिन। शासकवर्ग की लाख कोशिशों के बावजूद पाश का नाम मिट न सका और आज भी साहित्य के आसमान पर सूरज की तरह चमक रहा है।

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सिटीस्पाइडी डॉट इन में हम लाए हैं कवि पाश की एक क्रांतिकारी कविता ‘सबसे खतरनाक’

सबसे ख़तरनाक/पाश

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता
कपट के शोर में सही होते हुए भी दब जाना बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढ़ना
मुट्ठियां भींचकर बस वक़्पत निकाल लेना बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नहीं होता

सबसे ख़तरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना
सब कुछ सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे ख़तरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नज़र में रुकी होती है

सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है
जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बैत से चूमना भूल जाती है
और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है
सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है
जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर
गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्याककांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में
मिर्चों की तरह नहीं पड़ता

सबसे ख़तरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा  का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्मु के पूरब में चुभ जाए

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती
ग़द्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती।
(साभार- कविताकोश)

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मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती अवतार सिंह पाश


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सबसे खतरनाक कविता की व्याख्या


मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती 

पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती 

गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती 


बैठे-बिठाए पकड़े जाना-बुरा तो है 

सहमी-सी चुप में जकड़े जाना-बुरा तो है 

पर सबसे खतरनाक नहीं होता 


कपट के शोर में 

सही होते हुए भी दब जाना-बुरा तो है 

किसी जुगनू की लौ में पढ़ना-बुरा तो है 

मुट्ठियाँ भींचकर बस वक़्त निकाल लेना-बुरा तो है 

सबसे खतरनाक नहीं होता 


भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अवतार सिंह पाश जी के द्वारा रचित कविता सबसे खतरनाक से उद्धृत हैं। मूलत: पंजाबी भाषा में रचित इस कविता को हिन्दी में रूपांतरित करने का श्रेय चमन लाल को जाता है। यह कविता दिन-प्रतिदिन क्रूर और असभ्य होती जा रही उस समाज और दुनिया की तरफ़ संकेत करती है, जहाँ  मानवीय मूल्यों का अत्यधिक ह्रास हुआ है। कवि उस स्थिति को सबसे खतरनाक मानते हैं, जो मूल स्थितियों को बदलने की प्यास के मर जाने और बेहतर भविष्य के सपनों के कहीं गुम हो जाने से अस्तित्व में आती हैं। इस कविता में, उक्त तमाम विपरीत परिस्थितियों व प्रतिकूलताओं के प्रति कवि पूरी तटस्थता से अपनी असहमति प्रकट करते नज़र आते हैं। 


इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि मनुष्य को दुख देने वाली अनेक परिस्थितियाँ हैं। परन्तु, वे सब खतरनाक नहीं होतीं। आगे कवि कहते हैं कि अपनी मेहनत से कमाई गई चीज़ों का लूट जाने की घटना भी खतरनाक नहीं होती, क्योंकि उसे दुबारा अर्जित किया जा सकता है और न ही पुलिस कि मार सबसे खतरनाक होती है, क्योंकि उन ज़ख़्मों के निशान व दर्द एक रोज ख़त्म हो सकते हैं। तत्पश्चात, कवि अपनी बातों पर बल देते हुए कहते हैं कि किसी के साथ गद्दारी या लोभ-लालच करना भी बहुत ज़्यादा खतरनाक नहीं है। आगे कवि कहते हैं कि अपराध के बिना पकड़े जाना बुरा तो लगता है तथा चुपचाप अन्याय सहन करना भी बुरा है, किन्तु यह भी सबसे खतरनाक स्थिति नहीं है। कवि पाश जी कहते हैं कि झूठ, दिखावा और कपट के संसार में हम सच होते हुए भी कहीं दब जाया करते हैं। कोई साधनों कि कमी की वजह से जुगनू की रौशनी में पढ़ने को विवश हैं, जिस विवशता रूपी अन्याय को सहन कर समय व्यतीत कर देना बुरा तो है, मगर यह भी सबसे खतरनाक नहीं होता। 


(2)- सबसे खतरनाक होता है 

मुर्दा शांति से भर जाना 

न होना तड़प का सब सहन कर जाना 

घर से निकलना काम पर 

और काम से लौटकर घर आना 

सबसे खतरनाक होता है 

हमारे सपनों का मर जाना 


सबसे खतरनाक वह घड़ी होती है 

आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो 

आपकी निगाह में रुकी होती है 


भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अवतार सिंह पाश जी के द्वारा रचित कविता सबसे खतरनाक से उद्धृत हैं। मूलत: पंजाबी भाषा में रचित इस कविता को हिन्दी में रूपांतरित करने का श्रेय चमन लाल को जाता है। यह कविता दिन-प्रतिदिन क्रूर और असभ्य होती जा रही उस समाज और दुनिया की तरफ़ संकेत करती है, जहाँ  मानवीय मूल्यों का अत्यधिक ह्रास हुआ है। कवि उस स्थिति को सबसे खतरनाक मानते हैं, जो मूल स्थितियों को बदलने की प्यास के मर जाने और बेहतर भविष्य के सपनों के कहीं गुम हो जाने से अस्तित्व में आती हैं। इस कविता में, उक्त तमाम विपरीत परिस्थितियों व प्रतिकूलताओं के प्रति कवि पूरी तटस्थता से अपनी असहमति प्रकट करते नज़र आते हैं। 


इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि वह स्थितियाँ सबसे खतरनाक होती हैं, जब हम अपने जीवन के साथ समझौता करके सीमित सोच के साथ सिमटकर रह जाते हैं। इसलिए कवि ‘पाश’ जी कहते हैं कि इंसान अपने जीवन के हर्षो-उल्लास को छोड़कर एक मुर्दा या मुक दर्शक की भांति सब कुछ खामोशी से सहन करता जाता है। मानो उसके अपने भाव शिथिल पड़ गए हों। अनजाने में उसके जीवन का यंत्रीकरण हो गया है और उसे मालूम भी नहीं। आगे कवि कहते हैं कि मनुष्य का काम सिर्फ घर से निकलकर काम पर जाना तथा काम से लौटकर घर आना रह गया है। कहीं न कहीं उसके सपनें मर गए हैं। यह वाकई, सबसे खतरनाक है। आगे कवि कहते हैं कि सबसे खतरनाक वह घड़ी होती है, जो आपकी कलाई पर चलती हुई भी आपकी निगाह में रुकी हुई है अर्थात आपकी दृष्टि में उस संबंधित घड़ी के समान ही जीवन स्थिर लगता है। जबकि मनुष्य दिन-प्रतिदिन हो रहे परिवर्तनों के अनुसार खुद को ढालना भूल जाता है। कवि कि दृष्टि में यह सबसे खतरनाक होता है। 


(3)- सबसे खतरनाक वह आँख होती है 

जो सब कुछ देखती हुई भी ज़मी बर्फ होती है 

जिसकी नज़र दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है 

जो चीज़ों से उठती अंधेपन कि भाप पर ढुलक जाती है 

जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई 

एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है 


भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अवतार सिंह पाश जी के द्वारा रचित कविता सबसे खतरनाक से उद्धृत हैं। मूलत: पंजाबी भाषा में रचित इस कविता को हिन्दी में रूपांतरित करने का श्रेय चमन लाल को जाता है। यह कविता दिन-प्रतिदिन क्रूर और असभ्य होती जा रही उस समाज और दुनिया की तरफ़ संकेत करती है, जहाँ  मानवीय मूल्यों का अत्यधिक ह्रास हुआ है। कवि उस स्थिति को सबसे खतरनाक मानते हैं, जो मूल स्थितियों को बदलने की प्यास के मर जाने और बेहतर भविष्य के सपनों के कहीं गुम हो जाने से अस्तित्व में आती हैं। इस कविता में, उक्त तमाम विपरीत परिस्थितियों व प्रतिकूलताओं के प्रति कवि पूरी तटस्थता से अपनी असहमति प्रकट करते नज़र आते हैं। 


इन पंक्तियों के माध्यम से सामाजिक बुराइयों को दृष्टिगत रखते हुए कवि कहना चाहते हैं कि ऐसे विद्रूपताओं का विरोध न करना सबसे खतरनाक है। आगे कवि पुरजोर तरीके से कहते हैं कि सबसे खतरनाक वे चेतनाशून्य आँखें होती हैं, जो अपने सामने हो रहे अन्याय को चुपचाप सहन कर लेती हैं। मानो जैसे वे आँखें ज़मी बर्फ के समान हो। कवि कहते हैं कि जिन आँखों में दुनिया को प्यार और सौन्दर्य की भावना से देखने का सामर्थ्य होना चाहिए, अफसोस कि उन आँखों में ईर्ष्या और घृणा कि भावना पसरी हुई है। ऐसी आँखें स्वार्थ में डूबकर अंधी हो जाती हैं तथा उसी लोभी दुनिया कि तरफ़ ढल जाती हैं। आगे कवि कहते हैं कि लोग रोज़मर्रा कि गतिविधियों में इस कदर खो गए हैं कि उन्हें अपने जीवन के बाकी कामों व खुशियों कि कोई फिकर ही नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि वे लक्ष्यहीन हो गए हैं, जो वाकई सबसे खतरनाक है। 


(4)- सबसे खतरनाक वह चाँद होता है 

जो हर हत्याकांड के बाद 

वीरान हुए आँगनों में चढ़ता है 

पर आपकी आँखों को मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है 


भावार्थ  - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अवतार सिंह पाश जी के द्वारा रचित कविता सबसे खतरनाक से उद्धृत हैं। मूलत: पंजाबी भाषा में रचित इस कविता को हिन्दी में रूपांतरित करने का श्रेय चमन लाल को जाता है। यह कविता दिन-प्रतिदिन क्रूर और असभ्य होती जा रही उस समाज और दुनिया की तरफ़ संकेत करती है, जहाँ  मानवीय मूल्यों का अत्यधिक ह्रास हुआ है। कवि उस स्थिति को सबसे खतरनाक मानते हैं, जो मूल स्थितियों को बदलने की प्यास के मर जाने और बेहतर भविष्य के सपनों के कहीं गुम हो जाने से अस्तित्व में आती हैं। इस कविता में, उक्त तमाम विपरीत परिस्थितियों व प्रतिकूलताओं के प्रति कवि पूरी तटस्थता से अपनी असहमति प्रकट करते नज़र आते हैं।  


इन पंक्तियों के माध्यम से कवि चाँद के बारे में कहते हैं कि वह सबसे खतरनाक है, जो हर हत्याकांड के बाद वीरान हुए आँगनों में चढ़ता है। अर्थात चाँद उस संबन्धित हत्याकांड का गवाह बनता है, मगर फिर भी सौन्दर्य और शांति का प्रतीक चाँद खामोशी से अपनी चाँदनी बिखेरने में व्यस्त रहता है। चाँद कि चाँदनी  मिर्च की तरह लोगों कि आँखों में नहीं गड़ता और न ही लोगों को उससे किसी प्रकार का कोई भय है। प्रस्तुत कविता के अनुसार, चाँद से आशय उन लोगों से है, जो अत्याचारों को चुपचाप सहन करते रहते हैं। अन्याय के खिलाफ़ कोई आवाज़ न उठाने को ही कवि ने सबसे खतरनाक चाँद की संज्ञा दी है।  


(5)- सबसे खतरनाक वह गीत होता है 

आपके कानों तक पहुँचने के लिए 

जो मरसिए पढ़ता है 

आतंकित लोगों के दरवाज़े पर 

जो गुंडे की तरह अकड़ता है 

सबसे खतरनाक वह रात होती है 

जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है 

जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते और हुआं- हुआं करते गीदड़ 

हमेशा के अँधेरे बंद दरवाज़े-चौगाठों पर चिपक जाते हैं 


भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अवतार सिंह पाश जी के द्वारा रचित कविता सबसे खतरनाक से उद्धृत हैं। मूलत: पंजाबी भाषा में रचित इस कविता को हिन्दी में रूपांतरित करने का श्रेय चमन लाल को जाता है। यह कविता दिन-प्रतिदिन क्रूर और असभ्य होती जा रही उस समाज और दुनिया की तरफ़ संकेत करती है, जहाँ  मानवीय मूल्यों का अत्यधिक ह्रास हुआ है। कवि उस स्थिति को सबसे खतरनाक मानते हैं, जो मूल स्थितियों को बदलने की प्यास के मर जाने और बेहतर भविष्य के सपनों के कहीं गुम हो जाने से अस्तित्व में आती हैं। इस कविता में, उक्त तमाम विपरीत परिस्थितियों व प्रतिकूलताओं के प्रति कवि पूरी तटस्थता से अपनी असहमति प्रकट करते नज़र आते हैं।   


इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि वह गीत सबसे खतरनाक होता है, जो किसी की मृत्यु या

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अवतार सिंह पाशशोक पर गाया जाता है तथा जिसे सुनकर लोग भयभीत होते हैं। वास्तव में वे शोक गीत लोगों के दरवाज़े पर दस्तक देकर किसी गुंडे के समान अकड़ते हैं या प्रतीत होते हैं। कवि कि नज़रों में ऐसे गीत सबसे खतरनाक हैं। क्योंकि इस तरह के गीत लोगों में बुराइयों से लड़ने कि क्षमता पैदा करने के बदले उनमें डर का भाव जगाते हैं। आगे कवि ‘पाश’ जी कहते हैं कि वह निराशा रूपी घनघोर रात, जो ज़िंदा रूह (आत्मा) के आसमानों पर ढलती है, जो निरुत्साह का प्रतीक होती है। ऐसी रात सबसे खतरनाक होती है। कवि कहते हैं कि लोगों को इतना भयभीत कर दिया जाता है कि उनके अंदर उल्लू और गीदड़ कि तरह भय चिपके रहते हैं, जो भय उन्हें कभी निराशा व उदासीपन से उबरने नहीं देते। यहाँ तक कि डरे हुए लोग अंधेरेयुक्त अपने-अपने दरवाजों-चौगाठों के बाहर जाने की कल्पना तक भी नहीं कर पाते हैं। कवि कि नज़रों में यह सबसे खतरनाक है।


(6)- सबसे खतरनाक वह दिशा होती है 

जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए 

और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा 

आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए 


मेहनत कि लूट सबसे खतरनाक नहीं होती 

पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती 

गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती । 


भावार्थ - प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि अवतार सिंह पाश जी के द्वारा रचित कविता सबसे खतरनाक से उद्धृत हैं। मूलत: पंजाबी भाषा में रचित इस कविता को हिन्दी में रूपांतरित करने का श्रेय चमन लाल को जाता है। यह कविता दिन-प्रतिदिन क्रूर और असभ्य होती जा रही उस समाज और दुनिया की तरफ़ संकेत करती है, जहाँ  मानवीय मूल्यों का अत्यधिक ह्रास हुआ है। कवि उस स्थिति को सबसे खतरनाक मानते हैं, जो मूल स्थितियों को बदलने की प्यास के मर जाने और बेहतर भविष्य के सपनों के कहीं गुम हो जाने से अस्तित्व में आती हैं। इस कविता में, उक्त तमाम विपरीत परिस्थितियों व प्रतिकूलताओं के प्रति कवि पूरी तटस्थता से अपनी असहमति प्रकट करते नज़र आते हैं।   


इन पंक्तियों के माध्यम से कवि कहना चाहते हैं कि वह दिशा रूपी गलत काम सबसे खतरनाक है, जिसे करने में आत्मा रूपी सूरज डूब जाए। लोगों को अच्छे-बुरे में फर्क का एहसास नहीं रह जाता । इस तरह हमारे गलत कार्यों का प्रभाव मुर्दा रूपी धूप के समान होता है, जो कवि कि नज़रों में सबसे खतरनाक है। कवि कहते हैं कि ऐसे लोगों से कि गई उम्मीदें प्रायः मुर्दा धूप के समान ही होती है, जो स्वंय को ज़ख्मी करती है। आगे कवि कहते हैं कि अपनी मेहनत से कमाई गई चीज़ों का लूट जाने की घटना भी खतरनाक नहीं होती, क्योंकि उसे दुबारा अर्जित किया जा सकता है और न ही पुलिस कि मार सबसे खतरनाक होती है, क्योंकि उन ज़ख़्मों के निशान व दर्द एक रोज ख़त्म हो सकते हैं। तत्पश्चात, कवि अपनी बातों पर बल देते हुए कहते हैं कि किसी के साथ गद्दारी या लोभ-लालच करना भी बहुत ज़्यादा खतरनाक नहीं है। कवि कि नज़रों में खतरनाक तो वह स्थिति है, जब लोगों के अंदर से प्रतिरोध और संघर्ष करने कि क्षमता ही खत्म हो जाए। 

सबसे खतरनाक कविता की समीक्षा मूल भाव सार 

प्रस्तुत पाठ या कविता सबसे खतरनाक , कवि अवतार सिंह पाश जी के द्वारा रचित है। यह कविता मूल रूप से पंजाबी में थी, जिसे हिन्दी में चमन लाल ने अनुवाद किया है। यह कविता दिन-प्रतिदिन क्रूर और असभ्य होती जा रही उस समाज और दुनिया की तरफ़ संकेत करती है, जहाँ  मानवीय मूल्यों का अत्यधिक ह्रास हुआ है। लोगों के प्रतिकूलताओं से जूझने के संकल्प क्षीण पड़ते जा रहे हैं। कवि अवतार सिंह जी उस प्रतिकूलता की तरफ़ विशेष इशारा करते हैं, जहाँ आत्मा के सवाल अनदेखा हो जाते हैं। कवि उस स्थिति को सबसे खतरनाक मानते हैं, जो मूल स्थितियों को बदलने की प्यास के मर जाने और बेहतर भविष्य के सपनों के गुम हो जाने से अस्तित्व में आती हैं। इस कविता में, उक्त तमाम विपरीत परिस्थितियों व प्रतिकूलताओं के प्रति कवि पूरी तटस्थता से अपनी असहमति प्रकट करते नज़र आते हैं...।।  




सबसे खतरनाक कविता  के प्रश्न उत्तर 


प्रश्न-1 कवि ने किस आशय से मेहनत की लूट, पुलिस की मार, गद्दारी-लोभ को सबसे खतरनाक नहीं माना। 


उत्तर- प्रस्तुत कविता के अनुसार, ‘मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती’ से कवि का आशय है कि मेहनत का उचित पारिश्रमिक का न मिलना, जो कवि की नजरों में बहुत खतरनाक नहीं है। कवि का मानना है कि मेहनत कि लूट से भी ज्यादा खतरनाक बुराइयाँ समाज में प्रचुर मात्रा में है, जिन बुराइयों का उल्लेख कवि ने कविता के मध्य भाग में किया है। इसलिए उन्होंने ‘मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती’ से कविता का आरंभ करके फिर इसी से अंत किया होगा।  

सबसे खतरनाक कविता का उद्देश्य क्या है?

'सबसे खतरनाक' कविता का प्रतिपाद्य बताइए। यह कविता पंजाबी भाषा से अनूदित है। यह दिनोदिन अधिकाधिक नृशंस और क्रूर होती जा रही दुनिया की विदूपताओं के चित्रण के साथ उस खौफनाक स्थिति की ओर इशारा करती है, जहाँ प्रतिकूलता से जूझने के संकल्प क्षीण पड़ते जा रहे हैं।

सबसे खतरनाक कविता के अनुसार सबसे खतरनाक क्या है?

सबसे ख़तरनाक कविता का सार या सारांश मेहनत की लूट , पुलिस की मार, गद्दारी लोभ का शिकार होना उतना खतरनाक नहीं होता, सहमी सी चुप्पी में सिमटे रहना भी उतना खतरनाक नहीं होता, कपट के शोर में दब जाना, संघर्ष के लिए कसमसा कर रह जाना भी उतना बुरा नहीं है, जितना कि मुर्दा होकर शांत जीवन यापन करते रहना।

कवि अवतार सिंह पाश के अनुसार सबसे खतरनाक क्या है?

कवि के अनुसार मेहनत की लूट, पुलिस की मार, गद्दारी-लोभ सबसे अधिक खतरनाक नहीं है। इनको करते समय मनुष्य में प्रतिरोध की क्षमता विद्यमान रहती है। यदि मनुष्य प्रयास करे, तो इन सभी बुरी बातों को सुधार सकता है। अतः जहाँ बदलाव संभव है, उसे सबसे खतरनाक नहीं समझा जा सकता है।

सबसे खतरनाक कौन सी दिशा होती है?

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