भारत में भी श्रीलंका जैसे हालात?: भारी कर्ज में डूबे राज्य, क्या मुफ्त की योजनाओं पर प्रतिबंध लगाना होगा सही?सारश्रीलंका की तरह पंजाब, राजस्थान, पश्चिम बंगाल जैसे अनेक भारतीय राज्य भी कर्ज के भारी जाल में उलझे हुए हैं। यदि केंद्र का सहारा न होता तो ये राज्य भी श्रीलंका की तरह आर्थिक तौर पर कंगाल हो चुके होते। रहें हर खबर से अपडेट, डाउनलोड करें Android Hindi News apps, iOS Hindi News apps और Amarujala Hindi News apps
अपने मोबाइल पे| नई दिल्ली (टीम डिजिटल)। अर्थव्यवस्था के लिहाज से देश के 2 सबसे बड़े राज्य यू.पी. और महाराष्ट्र पर सबसे ज्यादा कर्ज है। भारतीय रिजर्व बैंक की स्टेट फाइनांस ‘ए स्टडी ऑफ बजट 2015-16’ रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2016 के बजट अनुमान में सबसे ज्यादा कर्जदार राज्यों की सूची में 3.79 लाख करोड़ रुपए के साथ महाराष्ट्र पहले नंबर पर है। रिपोर्ट के मुताबिक वित्त वर्ष 2012-13 के बाद राज्यों के बकाया देनदारी में 2 अंकों की बढ़ौतरी हुई है। शेयर बाजार : चाहते न चाहते हुए भी है जिंदगी का हिस्सा कौन-सा राज्य कितना कर्जदार कर्ज के मामले में यू.पी. महाराष्ट्र से ज्यादा पीछे नहीं है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में 3.27 लाख करोड़ रुपए के कर्ज के साथ यू.पी. दूसरे स्थान पर है। वहीं 3.08 लाख करोड़ रुपए के कर्ज के साथ पश्चिम बंगाल तीसरे, 2.62 लाख करोड़ रुपए कर्ज के साथ आंध्र प्रदेश चौथे, 2.35 लाख करोड़ रुपए के कर्ज के साथ तमिलनाडु 5वें और 2.92 लाख करोड़ रुपए के साथ गुजरात छठे स्थान पर रहा। ये राज्य कर्ज के मामले में गत वर्ष भी इसी रैंकिंग पर थे। इनके बाद कर्नाटक, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश और हरियाणा का नंबर आता है। जितना बड़ा बजट, उतना ज्यादा कर्ज कुछ राज्यों का बजट जितना बड़ा है, उन पर कर्ज भी उतना ही बड़ा है। यू.पी., महाराष्ट्र जैसे राज्यों का बजट देश में सबसे बड़ा रहता है और इन दोनों राज्यों पर कर्ज भी सबसे ज्यादा है। रिजर्व बैंक के सर्वे के मुताबिक बजट बड़ा होने के कारण ही महाराष्ट्र, यू.पी., गुजरात, राजस्थान जैसे राज्यों का कर्ज भी ज्यादा है। बाजार से सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाले राज्य एक तरफ जहां राज्यों के कर्ज में लगातार बढ़ौतरी हो रही है, वहीं दूसरी तरफ कर्ज के लिए राज्यों की केंद्र सरकार पर निर्भरता भी कम हुई है। महाराष्ट्र सरकार की बाजार से उधारी सबसे ज्यादा 290 हजार करोड़ रुपए है। इसके बाद यू.पी. 260 हजार करोड़ रुपए, 180 हजार करोड़ रुपए पश्चिम बंगाल और 162 हजार करोड़ रुपए के साथ गुजरात का नंबर आता है। कहां किया पैसा ज्यादा खर्च सर्वे के मुताबिक राज्यों ने कुल बजट का 45.6 प्रतिशत शिक्षा, खेल व कला एवं संस्कृति पर खर्च किया है। चिकित्सा या सार्वजनिक स्वास्थ्य पर 11.6 प्रतिशत, 2.2 प्रतिशत परिवार कल्याण, 6 प्रतिशत पानी, 3.2 प्रतिशत आवास और 6 प्रतिशत शहरी विकास पर खर्च किया गया है। राज्यों ने सबसे कम 1.1 प्रतिशत का खर्च श्रम और श्रम कल्याण पर किया है। जम्मू-कश्मीर की जी.एस.डी.पी. में हिस्सेदारी ज्यादा ग्रॉस स्टेट डोमैस्टिक प्रोडक्ट (जी.एस.डी.पी.: सकल राज्य घरेलू उत्पाद) में कर्ज की हिस्सेदारी के मामले में जम्मू-कश्मीर पहले स्थान पर है। जम्मू-कश्मीर की जी.एस.डी.पी. में कर्ज की हिस्सेदारी 52.3 प्रतिशत है। इसके बाद मिजोरम, हिमाचल प्रदेश, नागालैंड, पश्चिम बंगाल और पंजाब के जी.एस.डी.पी. में कर्ज की हिस्सेदारी ज्यादा है। विजया बैंक ने ब्याज 0.25 प्रतिशत घटाया बेंगलूर: सार्वजनिक क्षेत्र के विजया बैंक ने सावधि जमा पर ब्याज में 0.25 प्रतिशत की कटौती की घोषणा की। बैंक ने कहा कि यह पहल 1 अप्रैल 2016 से प्रभावी एम.सी.एल.आर. (कोषों की सीमांत लागत पर आधारित) ब्याज दर पेश करने के मद्देनजर की गई है। जमा दर में कटौती 91 दिन से लेकर 5 वर्ष की परिपक्वता के बीच की विभिन्न जमा दरों पर लागू होगी। नई जमा दर 12 अप्रैल से प्रभावी होगी। Hindi News से जुड़े अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करें…एंड्रॉएड ऐप के लिए यहांक्लिक करें. एक सिम्पल सा गणित है. अगर खर्च ज्यादा और आमदनी कम है, तो कर्ज लेना ही पड़ेगा. लेकिन खर्च और कर्ज का प्रबंधन सही तरह से नहीं किया, तो हालात ऐसे हो सकते हैं कि न तो कमाई का कोई जरिया बचेगा और न ही कर्ज लेने के लायक बचेंगे. ऐसा ही श्रीलंका के साथ हुआ. श्रीलंका कर्ज पर कर्ज लेता चला गया और आज कंगाल हो चुका है. उस पर 51 अरब डॉलर का कर्ज है. न खाने-पीने का सामान है, न गैस है और न ही पेट्रोल-डीजल. श्रीलंका के इस आर्थिक संकट ने दुनियाभर की सरकारों को चेता दिया है. मंगलवार को ऑल पार्टी मीटिंग में विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि श्रीलंका से सबक लेते हुए 'मुफ्त के कल्चर' से बचना चाहिए. जयशंकर ने कहा कि श्रीलंका जैसी स्थिति भारत में नहीं हो सकती, लेकिन वहां से आने वाला सबक बहुत मजबूत है. ये सबक है वित्तीय विवेक, जिम्मेदार शासन और मुफ्त की संस्कृति नहीं होनी चाहिए. जयशंकर के बयान से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी 'मुफ्त की रेवड़ी कल्चर' पर सवाल उठाए थे. 16 जुलाई को बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उद्घाटन करने के बाद जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा, 'हमारे देश में रेवड़ी कल्चर को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है. मुफ्त की रेवड़ी बांटकर वोट बटोरने का कल्चर लाने की कोशिश हो रही है. ये रेवड़ी कल्चर देश के विकास के लिए बहुत घातक है.' सम्बंधित ख़बरेंमुफ्त की रेवड़ी कल्चर पर पीएम मोदी के बयान पर सियासत भी हुई. हालांकि, एक महीने पहले ही आई रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कहा गया था कि राज्य सरकारें मुफ्त की योजनाओं पर जमकर खर्च कर रहीं हैं, जिससे वो कर्ज के जाल में फंसती जा रहीं हैं. इसे ऐसे समझ सकते हैं कि हाल ही में पंजाब सरकार ने हर परिवार को हर महीने 300 यूनिट फ्री बिजली और हर वयस्क महिला को हर महीने 1 हजार रुपये देने की योजना शुरू की है. इन दोनों योजनाओं पर 17 हजार करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. लिहाजा, 2022-23 में पंजाब का कर्ज 3 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा होने का अनुमान है. आरबीआई ने चेताया है कि अगर खर्च और कर्ज का प्रबंधन सही तरह से नहीं किया तो स्थिति भयावह हो सकती है. 'स्टेट फाइनेंसेस: अ रिस्क एनालिसिस' नाम से आई आरबीआई की इस रिपोर्ट में उन पांच राज्यों के नाम दिए गए हैं, जिनकी स्थिति बिगड़ रही है. इनमें पंजाब, राजस्थान, बिहार, केरल और पश्चिम बंगाल है. कैसे कर्ज के जाल में फंस रहे हैं राज्य? आरबीआई ने अपनी इस रिपोर्ट में CAG के डेटा के हवाले से बताया है कि राज्य सरकारों का सब्सिडी पर खर्च लगातार बढ़ रहा है. 2020-21 में सब्सिडी पर कुल खर्च का 11.2% खर्च किया था, जबकि 2021-22 में 12.9% खर्च किया था. रिपोर्ट के मुताबिक, सब्सिडी पर सबसे ज्यादा खर्च झारखंड, केरल, ओडिशा, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में बढ़ा है. गुजरात, पंजाब और छत्तीसगढ़ की सरकार ने अपने रेवेन्यू एक्सपेंडिचर का 10% से ज्यादा खर्च सब्सिडी पर किया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अब राज्य सरकारें सब्सिडी की बजाय मुफ्त ही दे रहीं हैं. सरकारें ऐसी जगह पैसा खर्च कर रहीं हैं, जहां से उन्हें कोई कमाई नहीं हो रही है. फ्री बिजली, फ्री पानी, फ्री यात्रा, बिल माफी और कर्ज माफी, ये सब 'freebies' हैं, जिन पर राज्य सरकारें खर्च कर रहीं हैं. आरबीआई का कहना है कि 2021-22 से 2026-27 के बीच कई राज्यों के कर्ज में कमी आने की उम्मीद है. राज्यों की ग्रॉस स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट (GSDP) में कर्ज की हिस्सेदारी घट सकती है. गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, कर्नाटक और ओडिशा की सरकारों का कर्ज घटने का अनुमान है. हालांकि, कुछ राज्य ऐसे भी जिनका कर्ज 2026-27 तक GSDP का 30% से ज्यादा हो सकता है. इनमें पंजाब की हालत सबसे खराब होगी. उस समय तक पंजाब सरकार पर GSDP का 45% से ज्यादा कर्ज हो सकता है. वहीं, राजस्थान, केरल और पश्चिम बंगाल का कर्ज GSDP के 35% तक होने की संभावना है. आमदनी से ज्यादा खर्च ने और बनाया कर्जदार चाहे राज्य सरकार हो या केंद्र सरकार, हर किसी को कर्ज की जरूरत पड़ती है. दुनियाभर की सरकारें भी कर्ज लेकर ही देश चलातीं हैं. लेकिन जब ये कर्ज बढ़ता जाता है तो उससे दिक्कतें बढ़नी शुरू हो जाती हैं. ऐसा ही श्रीलंका के साथ हुआ. श्रीलंका कर्ज लेता रहा और एक समय ऐसा आया कि वो उसे चुकाने की स्थिति में नहीं रहा और उसने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया. हमारे देश में भी सरकारों का राजकोषीय घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है. केंद्र सरकार का भी और राज्य सरकार का भी. देश में एक भी ऐसा राज्य नहीं है, जिसका खर्च उसकी आमदनी से कम हो. हर सरकार अपनी आमदनी से ज्यादा ही खर्च कर रही है. इस खर्च को पूरा करने के लिए कर्ज लेती है. आरबीआई के मुताबिक, देशभर की सभी राज्य सरकारों पर मार्च 2021 तक 69.47 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. सबसे ज्यादा कर्जे में तमिलनाडु सरकार है. उस पर 6.59 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज है. इसके बाद उत्तर प्रदेश पर 6.53 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. मार्च 2021 तक देश में 19 राज्य ऐसे थे, जिन पर 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज था. तो क्या करें फिर सरकारें? आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में श्रीलंका के आर्थिक संकट का उदाहरण देते हुए सुझाव दिया है कि राज्य सरकारों को अपने कर्ज में स्थिरता लाने की जरूरत है, क्योंकि कई राज्यों के हालात अच्छे संकेत नहीं दे रहे हैं. आरबीआई का सुझाव है कि सरकारों को गैर-जरूरी जगहों पर पैसा खर्च करने से बचना चाहिए और अपने कर्ज में स्थिरता लानी चाहिए. इसके अलावा बिजली कंपनियों को घाटे से उबारने की जरूरत है. इसमें सुझाव दिया गया है कि सरकारों को पूंजीगत निवेश करना चाहिए, ताकि आने वाले समय में इससे कमाई हो सके. सबसे ज्यादा कर्ज कौन से राज्य में है?सबसे ज्यादा कर्जे में तमिलनाडु सरकार है. उस पर 6.59 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज है. इसके बाद उत्तर प्रदेश पर 6.53 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज है. मार्च 2021 तक देश में 19 राज्य ऐसे थे, जिन पर 1 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर्ज था.
भारत के किस राज्य पर कितना कर्ज है list?इन राज्यों पर सबसे अधिक कर्ज: इस मामले में भारत के सबसे अग्रणी माने जाने वाले राज्य सबसे ऊपर हैं। भारत सरकार के व्यय विभाग के अनुसार तमिलनाडु पर कर्ज 6.6 लाख करोड़ रुपए, महाराष्ट्र पर 6 लाख करोड़ रुपए, पश्चिम बंगाल पर 5.6 लाख करोड़ रुपए, राजस्थान पर 4.7 लाख करोड़ रुपए और पंजाब पर 3 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है।
भारत का सबसे बड़ा कर्जदार कौन है?हाल ही में ग्लोबल कंसल्टेंसी क्रेडिट सुईस ने इंडिया के सबसे बड़े कर्जदार कॉर्पोरेट ग्रुप्स की लिस्ट जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक देश के 10 सबसे बड़े कॉर्पोरेट ग्रुप्स पर करीब 7.33 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है।
सबसे ज्यादा कर्ज लेने वाला प्रधानमंत्री कौन है?नरेन्द्र मोदी अब तक के सबसे ज्यादा विदेशी कर्ज लेने वाले प्रधानमंत्री हैं। ये कांग्रेसियों या वामपंथियों के IT सेल का रिपोर्ट नहीं, बल्कि विश्व बैंक का रिपोर्ट है जो World Bank की Official Website पर उपलब्ध है।
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