।।श्री गणेशाय नमः ।। Show –*–*– मनि मानिक मुकुता छबि जैसी। अहि गिरि गज सिर सोह न तैसी।। दो0-अति अपार जे सरित बर जौं नृप सेतु कराहिं। कहहिं भगति भगवंत कै संजुत ग्यान बिराग।।44।। सो कि देह धरि होइ नर जाहि न जानत वेद।। 50।। किंनर नाग सिद्ध गंधर्बा। बधुन्ह समेत चले सुर सर्बा।। प्रगटीं सुंदर सैल पर मनि आकर बहु भाँति।।65।। कह सिव जदपि उचित अस नाहीं। नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं।। उभय घरी अस कौतुक भयऊ। जौ लगि कामु संभु पहिं गयऊ।। सिवहि संभु गन करहिं सिंगारा। जटा मुकुट अहि मौरु सँवारा।। तुम्ह सन मिटहिं कि बिधि के अंका। मातु ब्यर्थ जनि लेहु कलंका।। कोउ सुनि संसय करै जनि सुर अनादि जियँ जानि।।100।। जसि बिबाह कै बिधि श्रुति गाई। महामुनिन्ह सो सब करवाई।। संभु चरित सुनि सरस सुहावा। भरद्वाज मुनि अति सुख पावा।। रामकथा सुंदर कर तारी। संसय बिहग उडावनिहारी।। दो0-रहे तहाँ दुइ रुद्र गन ते जानहिं सब भेउ। सुनु मुनि कथा पुनीत पुरानी। जो गिरिजा प्रति संभु बखानी।। राज धनी जो जेठ सुत आही। नाम प्रतापभानु अस ताही।। दो0-कपट बोरि बानी मृदुल बोलेउ जुगुति
समेत। छठें श्रवन यह परत कहानी। नास तुम्हार सत्य मम बानी।। करि बिनती पद गहि दससीसा। बोलेउ बचन सुनहु जगदीसा।। कामरूप जानहिं सब माया। सपनेहुँ जिन्ह कें धरम न दाया।। सुनहु सकल रजनीचर जूथा। हमरे बैरी बिबुध बरूथा।। मेघनाद कहुँ पुनि हँकरावा। दीन्ही सिख बलु बयरु बढ़ावा।। जे सुर समर धीर बलवाना। जिन्ह कें लरिबे कर अभिमाना।। इंद्रजीत सन जो कछु कहेऊ। सो सब जनु पहिलेहिं करि रहेऊ।। पालन सुर धरनी अद्भुत करनी मरम न जानइ कोई। कछुक दिवस बीते एहि भाँती। जात न जानिअ दिन अरु
राती।। निज कुल इष्टदेव भगवाना। पूजा हेतु कीन्ह अस्नाना।। मुनि तव चरन देखि कह राऊ। कहि न सकउँ निज पुन्य प्राभाऊ।। सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी
पुरारि पिआरी।। कोसिकरुप पयोनिधि पावन। प्रेम बारि अवगाहु सुहावन।। नयन नीरु हटि मंगल जानी। परिछनि करहिं मुदित मन रानी।। कुल रीति प्रीति समेत रबि कहि देत सबु सादर कियो। एहि भाँति देव पुजाइ सीतहि सुभग सिंघासनु दियो।। सिय राम अवलोकनि परसपर प्रेम काहु न लखि परै।। मन बुद्धि बर बानी अगोचर प्रगट कबि कैसें करै।।2।। This entry was posted on सोमवार, जुलाई 24th, 2006 at 7:06 पूर्वाह्न and is filed under 01. बाल काण्ड. You can follow any responses to this entry through the RSS 2.0 feed. You can leave a response, or trackback from your own site. पोस्ट नेविगेशन« Previous Post Next Post »रामचरितमानस का प्रथम कांड क्या है?श्रीरामचरितमानस हिंदी बाल कांड -प्रथम विश्राम BRIJNAARI SPECIAL Shri Ramcharitmanas Balkand Hindi - YouTube.
रामचरितमानस में कांड का सही क्रम क्या है?इन सात काण्डों के नाम हैं - बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड, अरण्यकाण्ड, किष्किन्धाकाण्ड, सुन्दरकाण्ड, लंकाकाण्ड (युद्धकाण्ड) और उत्तरकाण्ड।
रामचरितमानस का दूसरा नाम क्या है?रामायण (संस्कृत : रामायणम् = राम + आयणम् ; शाब्दिक अर्थ : 'राम की जीवन-यात्रा'), वाल्मीकि द्वारा रचित संस्कृत महाकाव्य है जिसमें श्रीराम की गाथा है। इसे आदिकाव्य तथा इसके रचयिता महर्षि वाल्मीकि को 'आदिकवि' भी कहा जाता है।
बाल कांड की पहली चौपाई कौन सी है?चौपाई : गुरु पद रज मृदु मंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥ तेहिं करि बिमल बिबेक बिलोचन।
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