राजस्थान विधानसभा में प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति कौन करता है - raajasthaan vidhaanasabha mein protem speekar kee niyukti kaun karata hai

'प्रो-टेम स्पीकर' में 'प्रो-टेम' (Pro-tem) शब्द लैटिन भाषा के शब्द 'प्रो टैम्पो र' (Pro Tempore) का संक्षिप्त रूप है, जिसका अर्थ होता है- 'कुछ समय के लिए'। वास्तव में, राज्य विधानसभाओं या लोकसभा के स्पीकर के पद पर आसीन कार्यचालक/कार्यवाहक (ऑपरेटिव) व्यक्ति, जो अस्थायी रूप से यह पद धारण करता है, उसे ही 'प्रो-टेम स्पीकर' कहा जाता है। एक 'प्रो-टेम स्पीकर' को, आम चुनाव या राज्य विधानसभा चुनावों के बाद, नए स्पीकर और डिप्टी स्पीकर चुने जाने तक सीमित अवधि के लिए कार्य करना होता है।

यदि केंद्र में प्रधानमंत्री अपने पद की शपथ ले चुके होते हैं और सरकार मौजूद होती है, तो संसदीय मामलों के मंत्रालय के माध्यम से सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन, लोकसभा के सदस्यों में से ही किसी के नाम को, प्रो-टेम स्पीकर के पद पर नियुक्ति हेतु राष्ट्रपति के पास भेजता है। राज्य के मामले में, यदि राज्य में मुख्यमंत्री शपथ ले लेते हैं तो उनके द्वारा सदन सदस्यों में से कुछ नाम राज्यपाल के पास भेजे जाते हैं, जिनमे से एक नाम को राज्यपाल 'प्रो-टेम' स्पीकर के रूप में स्वीकार करते हुए ऐसे व्यक्ति को इस पद पर नियुक्त करते हैं (शपथ दिलाकर)। मौजूदा लेख में हम राज्य विधानसभा के प्रो-टेम स्पीकर के पद के विषय में चर्चा करेंगे।

प्रो-टेम स्पीकर की जिम्मेदारियां

गौरतलब है कि जहाँ नव निर्वाचित सदन ने अपने स्थायी स्पीकर का चुनाव नहीं किया है, वहां स्थायी स्पीकर चुने जाने तक, सदन की गतिविधियों को चलाने के लिए, सदन के सदस्यों के बीच में से किसी एक को प्रो-टेम स्पीकर के रूप में काम करने के लिए नियुक्त किया जाता है। हालांकि यह जरुरी नहीं है कि केवल चुनावों के बाद ही प्रो-टेम स्पीकर की नियुक्ति की जरूरत पैदा हो। यह नियुक्ति उस हर परिस्थिति में जरुरी हो जाती है, जब सदन में स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का पद एक साथ खाली हो। ऐसा उनकी मृत्यु की स्थिति के अलावा, दोनों के साथ इस्तीफा देने की परिस्थितियों में हो सकता है।

यदि आसान भाषा में कहें तो चुनाव के बाद यह जरूरी होता है कि सदन में एक स्थायी मौजूद स्पीकर हो, जो सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चला सके। अब सदन के स्थायी स्पीकर को चुनने और सदन की कार्यवाही आगे बढाने के लिए, सर्वप्रथम यह जरुरी होता है कि सदन में सदस्य होने चाहिए और सदन का सदस्य होने के लिए चुनाव जीतने के बाद शपथ लेना अनिवार्य होता है, बिना शपथ के कोई भी व्यक्ति औपचारिक रूप से किसी सदन का सदस्य नहीं कहा जा सकता है।

अब चूँकि सदन में सदस्यों को शपथ दिलाने के बाद ही किसी व्यक्ति को स्थायी स्पीकर के पद पर नियुक्त किया जा सकता है, इसलिए शपथ दिलाने के लिए ही एक प्रो-टेम स्पीकर को नियुक्त किया जाता है। हमे यह भी जानना चाहिए कि एक प्रो-टेम स्पीकर, अनुचित रूप से वोट करने पर किसी सांसद के वोट को डिसक्वालिफाई कर सकता है। यही नहीं, मतों के टाई हो जाने की स्थिति में, प्रो-टेम स्पीकर अपने मत का इस्तेमाल, निर्णायक फैसला लेने के लिए कर सकता है।

हम यह जान चुके हैं कि एक प्रो-टेम स्पीकर को अल्प समय के लिए सदन की गतिविधियों को संभालने के लिए चुना जाता है। प्रो-टेम स्पीकर की शक्तियों को संविधान में स्पष्ट नहीं किया गया है, लेकिन यह कहा जा सकता है वह एक नियमित स्पीकर के रूप में, उसी स्थिति, शक्ति, विशेषाधिकार और प्रतिरक्षा का आनंद लेता है।

प्रो-टेम स्पीकर की नियुक्ति

आमतौर पर, सदन के वरिष्ठतम सदस्य को इस पद के लिए चुना जाता है। वह सदन को नए एवं स्थायी स्पीकर का चुनाव करने में सक्षम बनाता है। नए स्पीकर के निर्वाचित होने के बाद, प्रो-टेम स्पीकर के कार्यालय का अस्तित्व समाप्त हो जाता है।

भारत के संविधान का अनुच्छेद 180 (1), प्रदेश के राज्यपाल को सदन का प्रो-टेम स्पीकर नियुक्त करने की शक्ति देता है। यह अनुच्छेद कहता है कि यदि सदन के स्पीकर का पद खाली हो, और उस पद को भरने के लिए कोई डिप्टी स्पीकर मौजूद न हो, तो स्पीकर के कार्यालय के कर्तव्यों को "विधानसभा के ऐसे सदस्य द्वारा निष्पादित किया जाएगा, जैसा कि राज्यपाल इस प्रयोजन के लिए नियुक्त कर सकता है"।

जैसा कि हमने जाना कि परंपरागत रूप से, सदन के वरिष्ठतम विधायक को सदन के प्रो-टेम स्पीकर के रूप में चुना जाता है। हालांकि राज्यपाल के लिए इस परंपरा का पालन करना अनिवार्य नहीं है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2018 में, कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला ने भाजपा नेता के. जी. बोपैया को सदन के 'प्रो-टेम स्पीकर' के रूप में नियुक्त किया था, हालांकि उस समय सदन के वरिष्ठतम सदस्य, कांग्रेस के आर. वी. देशपांडे थे। भाजपा नेता के. जी. बोपैया को सदन के प्रो-टेम स्पीकर के रूप में नियुक्त करने पर राज्यपाल ने कहा था कि उन्होंने राज्य विधान सभा के सचिव द्वारा सौंपे गए नामों की एक सूची से से बोपैया के नाम को चुना है।

यदि हाल ही में महाराष्ट्र में हुए घटनाक्रम को देखें तो यह भी समझा जा सकता है कि विधानसभा में बहुमत परीक्षण (Floor Test) के लिए प्रदेश के राज्यपाल को विधानसभा का एक संक्षिप्त सत्र बुलाना होता है और सुप्रीम कोर्ट के हालिया आदेश (महाराष्ट्र को लेकर) में भी इस बात का उल्लेख मिलता है। अब बहुमत परिक्षण करने के लिए राज्यपाल को प्रो-टेम स्पीकर की नियुक्ति करनी होती है, जोकि बहुमत साबित कराने की प्रक्रिया पूरी कराने में अहम् भूमिका निभाता है।

प्रो-टेम स्पीकर की शक्तियां

चूँकि संविधान में प्रो-टेम स्पीकर की शक्तियों को लेकर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है, इसलिए इस मुद्दे को लेकर काफी अलग अलग विचार मौजूद हैं। हालाँकि एक प्रो-टेम स्पीकर को एक स्थायी स्पीकर के समान सभी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यकता नहीं पड़ती है, परन्तु उसके पास तमाम शक्तियां, दायित्व के रूप में अवश्य होती हैं, जिन्हें हमने पहले ही समझा है।

प्रो-टेम स्पीकर की शक्तियों के सम्बन्ध में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने वर्ष 1994 में सुरेंद्र वसंत सिरसट के मामले में यह कहा था कि और जब तक कि स्थायी स्पीकर का चुनाव नहीं हो जाता है, तब तक एक प्रो-टेम स्पीकर, सदन के नियमित स्पीकर के समान "सभी शक्तियों, विशेषाधिकारों और प्रतिरक्षा के साथ सभी उद्देश्यों के लिए" कार्य करता है।

वहीँ, ओडिशा उच्च न्यायालय ने गोदावरिस मिश्र बनाम नंदकिशोर दास, स्पीकर उड़ीसा विधानसभा के मामले में भी इस बात को लेकर सहमति व्यक्त की, जब अदालत ने कहा कि "प्रो-टेम स्पीकर की शक्तियां, एक निर्वाचित अध्यक्ष की शक्तियों के बराबर हैं।"

विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर की नियुक्ति कौन करता है?

प्रोटेम स्‍पीकर की नियुक्ति गवर्नर करता है. आमतौर पर इसकी नियुक्ति तब तक के लिए होती है, जब तक स्‍थायी विधानसभा अध्‍यक्ष ना चुन लिया जाए. प्रोटेम स्पीकर ही नवनिर्वाचित विधायकों का शपथ दिलाता है.

स्पीकर की नियुक्ति कौन करता है?

लोकसभा अध्यक्ष का निर्वाचन लोकसभा के सदस्यों के द्वारा किया जाता है। निर्वाचन की तिथि राष्ट्रपति के द्वारा निश्चित की जाती है। राष्ट्रपति के द्वारा निश्चित की गयी तिथि की सूचना लोकसभा का महासचिव सदस्यों को देता है।

राजस्थान विधानसभा के प्रोटेम स्पीकर कौन है?

राजस्थान के प्रथम प्रोटम स्पीकर महारावल संग्राम सिंह ।

प्रोटेम स्पीकर का कार्य क्या है?

राष्ट्रपति/राज्यपाल प्रोटेम स्पीकर को नवनिर्वाचित सदन की बैठकों की अध्यक्षता करने के लिए नियुक्त करता है। आमतौर पर सदन के सबसे वरिष्ठ सदस्य को प्रोटेम स्पीकर बनाया जाता है। प्रोटेम स्पीकर के कर्तव्य: प्रोटेम स्पीकर लोकसभा की पहली बैठक की अध्यक्षता करते हैं, नव निर्वाचित सांसदों को पद की शपथ दिलाते हैं।