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Karnataka 1st PUC Hindi Textbook Answers Sahitya Vaibhav Chapter 9 राष्ट्र का स्वरूपराष्ट्र का स्वरूप Questions and Answers, Notes, SummaryI. एक शब्द या वाक्यांश या वाक्य में उत्तर लिखिए : प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. अतिरिक्त प्रश्नः प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. II. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिएः प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. अतिरिक्त प्रश्नः प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. III. ससंदर्भ स्पष्टीकरण कीजिए: प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. अतिरिक्त प्रश्नः प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. IV. निम्नलिखित वाक्य सूचनानुसार बदलिए: प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. V. कोष्ठक में दिए गए कारक चिन्हों से रिक्त स्थान भरिएः (पर, का, के, में) प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. V. समानार्थक शब्द लिखिए: प्रश्न 1.
VI. विलोम शब्द लिखिएः प्रश्न 1.
राष्ट्र का स्वरूप लेखक परिचयः श्री वासुदेवशरण अग्रवाल का जन्म 1904 ई. में लखनऊ के एक प्रतिष्टित वैश्य परिवार में हुआ था। आपने 1929 में एम.ए., 1941 में पीएच.डी. और 1946 में डी.लिट्. की उपाधि प्राप्त कर ली। अग्रवाल जी ने पाली, संस्कृत, अंग्रेजी आदि भाषाओं का तथा प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं पुरातत्व आदि विषयों का गहन अध्ययन किया था। आप भारतीय साहित्य एवं संस्कृति के गंभीर अध्येता के रूप में विख्यात हैं। 1967 ई. में आपका निधन हो गया। प्रमुख कृतियाँ : ‘कल्पवृक्ष’, ‘पृथ्वीपुत्र’, ‘भारत की एकता’, ‘माता भूमि’ आदि। राष्ट्र का स्वरूप Summary in Hindiडॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल मशहूर इतिहासकार और प्राचीन भारत के विद्वान हैं। उन्होंने प्रस्तुत निबन्ध में राष्ट्र का स्वरूप, तत्व और लक्षणों के बारे में लिखा है। लेखक ने भारतीय संस्कृति की भी चर्चा की है। भूमि और उसके निवासी तथा उनकी संस्कृति का मिलन ही राष्ट्र है। भूमि को हमारे ऋषि-मुनियों ने माता कहा है और पृथ्वी-संतान को पुत्र कहा गया है। भूमि अपनी संतान को जीवित रखने के लिए आवश्यक सभी वस्तुओं को देती है। इसीलिए भूमि को वसुंधरा कहते हैं। भूमि पर नद-नदी, टीले-पहाड़, तालाब-पोखर, कुएँ-बावड़ियाँ, झरने- प्रपात, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी हैं। इनसे प्रकृति का संतुलन बना रहता है। मनुष्य को पानी, आहार मिलता है। भगवान ने प्राकृतिक संपदा देकर मानव जाति को जीने की कई सुविधाएँ उपलब्ध कराई है। राष्ट्र का दूसरा अंग है- जन या लोग, जो भूमि पर रहते हैं। वे भूमिपुत्र कहलाते हैं। भूमि पर रहनेवाले लोगों के लिए भूमि उनकी माता है। संतान की देखभाल करना माता का कर्तव्य है। माँ की सेवा करना और उसका हित चाहना पुत्र का कर्तव्य है। इस प्रकार भूमि और उसके जन का सम्बन्ध अटूट है। भारत में भूमि को मातृभूमि, जन्मभूमि के रूप में जाना जाता है। भूमि की चर-अचर, पशु-पक्षी तथा प्रकृति का संरक्षण करने पर ही यह भूमि हमारा ध्यान रखती है। अतः पर्यावरण की रक्षा करना हम सबका कर्तव्य है। राष्ट्र का तीसरा अंग है- संस्कृति। यह बहुत ही मुख्य अंग है। जीवन में जो भी अच्छाई है, वही संस्कृति कहलाती है। साहित्य, कलाएँ, आचार-विचार आदि मिलकर ‘संस्कृति’ का रूप लेते हैं। जीवन में जिस प्रकार अंतरंग और बहिरंग दो रूप होते हैं, वैसे संस्कृति के भी दो रूप होते हैं- खान-पान, घर-बार, मंदिर-मसजिद – ये संस्कृति के बहिरंग रूप हैं। साहित्य और संगीत का आनंद, ललित कलाओं की मधुर अनुभूति इत्यादि संस्कृति के अंतरंग रूप हैं। हमारे पूर्वजों ने साहित्य, कला, संगीत, शास्त्र आदि क्षेत्रों में प्रतिभा दिखाई थी। हमें उस परंपरा को निभाए रखना चाहिए। भविष्य के प्रति आशावादी होना चाहिए। भूतकाल से सबक सीखते हुए, वर्तमान को साथ लेकर, अपने उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर होना है। इस कार्य में संस्कृति सदा हमारे साथ है। राष्ट्र का स्वरूप Summary in Kannadaराष्ट्र का स्वरूप Summary in EnglishDr. Vasudevsharan Agarwal is a noted historian and a scholar on ancient India. In this essay, he has written about the identity of the nation, its qualities and characteristics. He has also commented on Indian culture. Land and its inhabitants and their culture make up a nation. The land has been termed as our mother by sages and saints while the offspring of the earth has been termed the son. Land gives all the necessities for its offspring to survive. Therefore, the land is also known as ‘Vasundhara’ (One who nourishes). On the land, we can find rivers and streams, hillocks and mountains, lakes, wells and ponds, rivulets, trees, forests, animals and birds. These maintain the balance of nature. Man is able to procure water and food from nature through these gifts of nature. By giving mankind a great and bountiful nature, God has given mankind many facilities in order for him to lead a good life. Another element of a nation is its people, the people who live on the land. They have been referred to as the sons of the soil. For these people, the land that they live on is their mother. Looking after her offspring is the duty of a mother. Serving the mother and taking care of her interests is the duty of a son. Thus the relationship between the land and its people is unbreakable. In India, the land is often referred to and known as mother-land. Only if we protect the animate and inanimate, the flora and fauna, and take care of nature, will naturally take care of us. Therefore, the protection and conservation of nature is everyone’s duty. Our ancestors had shown great promise in the fields of literature, arts, music and science. We must keep up that tradition. We must also be hopeful with respect to the future. Learning from our mistakes of the past, and living in the present, we must move towards our future with ambition and hope. In this endeavour, our culture will always be with us. पृथ्वी और जन दोनो मिलकर क्या करते हैं?( ख ) पृथिवी और जन दोनों मिलकर क्या बनाते हैं ? उत्तर- पृथिवी और जन दोनों मिलकर राष्ट्र का स्वरूप बनाते हैं ।
जन का मस्तिष्क क्या है?बिना संस्कृति के जन की कल्पना कबन्ध मात्र है; संस्कृति ही जन का मस्तिष्क है। संस्कृति के विकास और अभ्युदय के द्वारा ही राष्ट्र की वृद्धि सम्भव है। राष्ट्र के समग्र रूप में भूमि और जन के साथ-साथ जन की संस्कृति का महत्त्वपूर्ण स्थान है।
राष्ट्र की कल्पना कब असम्भव है?जन के बिना राष्ट्र की कल्पना करना भी असम्भव है। प्रत्येक माता अपने सभी पुत्रों को समान भाव से प्रेम करती है। इसी प्रकार पृथ्वी भी उस पर रहने वाले सभी मनुष्यों को समान भाव से चाहती है, उसके लिए सभी मनुष्य समान हैं। इसलिए धरती माता अपने सभी पुत्रों को समान रूप से समस्त सुविधाएँ प्रदान करती है।
भूमि के पार्थिव स्वरूप से क्या अभिप्राय है?लेखक कहते हैं, भूमि के भौतिक रूप, उसके सौन्दर्य और समृद्धि के प्रति सचेत होना हमारा कर्तव्य है। इस भूमि के पार्थिव स्वरूप अर्थात् पहाड़, नदियाँ, मनुष्य सबकुछ के प्रति हम जितने अधिक जागरूक होंगे उतनी ही हमारी राष्ट्रीयता की भावना बलवती होगी।
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