प्रेगनेंसी में नार्मल डिलीवरी के लिए क्या करे? - preganensee mein naarmal dileevaree ke lie kya kare?

नॉर्मल डिलीवरी (सामान्य प्रसव) के लिए 11 टिप्स - Pregnancy tips for normal delivery

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  • नॉर्मल डिलीवरी क्या है?
  • नॉर्मल डिलीवरी की संभावना को बढ़ाने वाले कारक
  • नॉर्मल डिलीवरी के संकेत और लक्षण
  • नॉर्मल डिलीवरी कैसे होती है?
    • नॉर्मल डिलीवरी का पहला चरण :
    • नॉर्मल डिलीवरी का दूसरा चरण – बच्चे का बाहर आना
    • नॉर्मल डिलीवरी का तीसरा चरण – गर्भनाल का बाहर आना
  • नॉर्मल डिलीवरी में कितना समय लगता है?
  • नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ाने के लिए 11 टिप्स
  • नॉर्मल डिलीवरी के लिए क्या करें और क्या न करें?
    • नॉर्मल डिलीवरी के लिए खानपान की चीजों से जुड़े टिप्स
    • नॉर्मल डिलीवरी के लिए व्यायाम से जुड़े टिप्स
    • नॉर्मल डिलीवरी के लिए योगासन से जुड़े टिप्स
  • पेरिनियल मालिश कब शुरू करें?
  • नॉर्मल डिलीवरी का विकल्प क्यों चुनना चाहिए?
  • अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

हर गर्भवती महिला को चिंता होते है कि उसकी नॉर्मल डिलीवरी होगी या सिजेरियन। आमतौर पर डॉक्टर नॉर्मल डिलीवरी कराने की ही सलाह देते हैं। वहीं, नॉर्मल डिलीवरी में होने वाले दर्द के मद्देनजर बीते कुछ वर्षों में गर्भवती महिलाएं सिजेरियन डिलीवरी का विकल्प चुन रही हैं। नेशनल हेल्थ फैमिली सर्वे (वर्ष 2015-16) के आंकड़ों के अनुसार, पिछले 5 सालों में शहरी इलाकों में 28.3 प्रतिशत महिलाओं ने सी-सेक्शन के जरिए डिलीवरी कराने का विकल्प चुना। वहीं गांव-देहात में 12.9 प्रतिशत महिलाओं ने सी-सेक्शन से डिलीवरी कराई, जबकि साल 2005-06 में कुल सिजेरियन डिलीवरी (शहर और गांव दोनों जगहों पर हुई सिजेरियन डिलीवरी) का आंकड़ा महज 8.5 प्रतिशत था (1)। इसके बावजूद, नॉर्मल डिलीवरी को सिजेरियन डिलीवरी से बेहतर माना गया है। मॉमजंक्शन के इस लेख में हम नॉर्मल डिलीवरी के संबंध में ही बात करेंगे।

आइए, लेख की शुरुआत करते हैं और नॉर्मल डिलीवरी की परिभाषा को समझते हैं।

नॉर्मल डिलीवरी क्या है?

यह प्रसव या डिलीवरी की ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें शिशु का जन्म महिला के योनि मार्ग से प्राकृतिक तरीके से होता है। अगर गर्भावस्था में किसी तरह की मेडिकल समस्या न हो, तो गर्भवती महिला की नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है (2)।

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नॉर्मल डिलीवरी की संभावना को बढ़ाने वाले कारक

नीचे हम कुछ ऐसे कारकों के बारे में बता रहे हैं, जो नॉर्मल डिलीवरी होने की संभावना को बढ़ा सकते हैं :

  • अगर गर्भवती महिला की पहले नॉर्मल डिलीवरी हुई हो।
  • अगर गर्भवती महिला को किसी तरह की शारीरिक बीमारी (जैसे- अस्थमा आदि) न हो।
  • अगर गर्भवती महिला और गर्भ में शिशु का वजन सामान्य हो।
  • अगर गर्भवती महिला गर्भावस्था के दौरान किसी गंभीर स्वास्थ्य संबंधी समस्या से ग्रस्त न हो।
  • अगर गर्भवती महिला गर्भावस्था के दौरान शारीरिक रूप से सक्रिय रहे।
  • अगर गर्भवती महिला का ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर और खून में हिमोग्लोबिन की मात्रा सामान्य हो (3)।

नोट: ऊपर बताए गए कारक नार्मल डिलीवरी होने की गारंटी नहीं देते हैं। ये केवल नॉर्मल डिलीवरी की संभावना को बढ़ाते हैं।

लेख में आगे हम उन लक्षणों के बारे में बात करेंगे, जो नॉर्मल डिलीवरी की ओर संकेत करते हैं।

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नॉर्मल डिलीवरी के संकेत और लक्षण | Normal Delivery Ke Lakshan

जी हां, कुछ खास संकेतों और लक्षणों के आधार पर नॉर्मल डिलीवरी होने का अंदाजा लगाया जा सकता है। आमतौर पर ये लक्षण गर्भवती महिला के शरीर में प्रसव के चार सप्ताह पहले से नजर आने लगते हैं। ये लक्षण व संकेत इस प्रकार हैं :

  • गर्भावस्था के 34वें सप्ताह से 36वें सप्ताह के बीच अगर भ्रूण का सिर नीचे की ओर आ जाए, तो यह नॉर्मल डिलीवरी की संभावना को बढ़ा देता है।
  • भ्रूण का सिर गर्भवती महिला की योनि पर दबाव डालता है, जिससे महिला को बार-बार पेशाब आता है। यह भ्रूण का नीचे आने का लक्षण हो सकता है।
  • अगर भ्रूण के नीचे की ओर आने से गर्भवती महिला को चलने-फिरने में परेशानी महसूस होने लगे, तो ये नॉर्मल डिलीवरी का लक्षण हो सकता है।
  • डिलीवरी का समय नजदीक आने पर गर्भवती महिला के गुदाद्वार की मांसपेशियां ढीली पड़ जाती हैं। इस कारण महिला को पतले मल की शिकायत हो सकती है। इसे नॉर्मल डिलीवरी का संकेत भी माना जा सकता है।

आइए, अब यह जानते हैं कि नॉर्मल डिलीवरी की प्रक्रिया क्या होती है।

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नॉर्मल डिलीवरी कैसे होती है? | Normal Delivery Kaise Hoti Hai

नॉर्मल डिलीवरी की प्रक्रिया को कुल तीन चरणों में बांटा गया है। इसके पहले चरण को भी तीन हिस्सों में बांटा गया है, जिनके बारे में नीचे विस्तार से बताया गया है।

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नॉर्मल डिलीवरी का पहला चरण :

1. लेटेंट प्रक्रिया : नॉर्मल डिलीवरी में लेटेंट की प्रक्रिया लंबे समय तक चलती है। इसमें गर्भाशय ग्रीवा 3 सेंटीमीटर तक खुल सकती है। यह प्रक्रिया डिलीवरी के एक सप्ताह पहले या डिलीवरी के कुछ घंटों पहले शुरू हो सकती है। इस दौरान गर्भवती महिला को बीच-बीच में संकुचन भी हो सकते हैं।

लेटेंट प्रक्रिया से गुजर रही गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :

  • आराम करें और अपना पूरा ध्यान रखें।
  • बीच-बीच में चलती-फिरती रहें और खूब पानी पिएं।
  • अकेली न रहें, अपने साथ किसी न किसी को जरूर रखें।
  • अस्पताल जाने के लिए तैयारी शुरू कर दें।
  • अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

2. एक्टिव प्रक्रिया : एक्टिव प्रक्रिया में गर्भाशय ग्रीवा 3-7 सेंटीमीटर तक खुल जाती है। इस दौरान संकुचन की वजह से तेज दर्द होता है। एक्टिव प्रक्रिया से गुजर रही गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :

  • अगर संकुचन तेज होने लगे, तो खुद को रिलैक्स रखें और सांसों के व्यायाम पर ध्यान दें।
  • किसी से अपने कंधों व कमरे की मालिश कराएं। इससे आपको आराम मिलेगा।
  • ऐसी अवस्था में आपको अस्पताल में होना चाहिए, ताकि आपकी व भ्रूण की धड़कन चेक की जा सके।

3. ट्रांजिशन प्रक्रिया : ट्रांजिशन प्रक्रिया में गर्भाशय ग्रीवा 8-10 सेंटीमीटर तक खुल जाती है। इस दौरान संकुचन लगातार होते रहते हैं और दर्द भी बढ़ जाता है। ट्रांजिशन प्रक्रिया से गुजर रही गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :

  • अगर योनि से द्रव आ रहा है, तो इसकी गंध व रंग के डिटेल को एक जगह नोट कर लें।
  • शांत रहें और सांसों के व्यायाम पर ध्यान दें।
  • ऐसे समय में डॉक्टर आपकी व होने वाले शिशु की धड़कन को चेक कर सकते हैं।

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नॉर्मल डिलीवरी का दूसरा चरण – बच्चे का बाहर आना

इस दौरान गर्भाशय ग्रीवा पूरी तरह से खुल जाती है और संकुचन की गति तेज हो जाती है। इस चरण में शिशु का सिर पूरी तरह से नीचे आ जाता है। इस समय डॉक्टर गर्भवती महिला से खुद से जोर लगाने के लिए कहते हैं। ऐसा करने पर पहले शिशु का सिर बाहर आता है। इसके बाद डॉक्टर शिशु के बाकी शरीर को बाहर निकाल लेते हैं।

दूसरे चरण से गुजर रहीं गर्भवती महिलाओं के लिए टिप्स :

  • संकुचन के दौरान आप बीच-बीच में अपनी पॉजिशन बदलती रहें।
  • नियमित रूप से सांस लेती रहें।
  • बच्चे को पुश करने की कोशिश बराबर करती रहें।

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नॉर्मल डिलीवरी का तीसरा चरण – गर्भनाल का बाहर आना

शिशु के बाहर आते ही डॉक्टर गर्भनाल को काट कर अलग कर देते हैं। तीसरे चरण में गर्भवती महिला के गर्भाशय में मौजूद ‘प्लेसेंटा (अपरा)’ बाहर निकलती है। शिशु के जन्म के बाद, प्लेसेंटा भी गर्भाशय की दीवार से अलग होने लगती है। प्लेसेंटा के अलग होने के दौरान भी गर्भवती महिला को हल्के संकुचन होते हैं। ये संकुचन शिशु के जन्म के पांच मिनट बाद शुरू हो सकते हैं। प्लेसेंटा के बाहर आने की प्रक्रिया लगभग आधे घंटे तक चल सकती है। इसके लिए भी डॉक्टर गर्भवती महिला को खुद से जोर लगाने के लिए कहते हैं (4)।

नॉर्मल डिलीवरी के संबंध में आगे और भी महत्वपूर्ण जानकारियां दी गई हैं।

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नॉर्मल डिलीवरी में कितना समय लगता है?

आमतौर पर नॉर्मल डिलीवरी में लगने वाला समय गर्भवती महिला की शारीरिक अवस्था पर निर्भर करता है। अगर गर्भवती महिला की पहली बार नॉर्मल डिलीवरी होने जा रही है, तो इस प्रक्रिया में 7-8 घंटे तक का समय लग सकता है। वहीं, अगर यह गर्भवती महिला की दूसरी डिलीवरी है, तो इस प्रक्रिया में थोड़ा कम समय लग सकता है (5)।

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नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ाने के लिए 11 टिप्स | Normal Delivery Ke Upay

नीचे दिए गए इन टिप्स को अपनाकर कोई भी गर्भवती महिला नॉर्मल डिलीवरी होने की संभावना को बढ़ा सकती है :

1. तनाव से दूर रहें : नॉर्मल डिलीवरी की इच्छा रखने वाली गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान तनाव से दूर रहने की कोशिश करनी चाहिए। इसके लिए वे चाहें तो ध्यान लगा सकती हैं, संगीत सुन सकती हैं या फिर किताबें पढ़ सकती हैं।

2. नकारात्मक बातें न सोचें : गर्भावस्था के दौरान नकारात्मक बातों से दूर रहें। डिलीवरी से जुड़ी सुनी-सुनाई नकारात्मक बातों और किस्सों पर बिल्कुल भी ध्यान न दें। याद रखें कि हर महिला का अनुभव अलग हो सकता है। इसलिए, दूसरों के बुरे अनुभवों की वजह से अपने भीतर डर पैदा न करें।

3. प्रसव के बारे में सही जानकारी लें : सही जानकारियां डर को दूर करती हैं। इसलिए, प्रसव के बारे में ज्यादा से ज्यादा सही जानकारी पाने की कोशिश करें। इससे गर्भवती महिला को प्रसव की प्रक्रिया को अच्छी तरह से समझने में मदद मिलती है।

4. अपनों के साथ रहें : अपनों का साथ गर्भवती महिला को भावनात्मक रूप में मजबूत बनाता है। इसलिए, गर्भावस्था के दौरान हमेशा अपनों के साथ रहने की कोशिश करें।

5. सही डॉक्टर चुनें : गर्भवती महिला को डिलीवरी के लिए डॉक्टर का चुनाव काफी सोच-समझकर करना चाहिए। नॉर्मल डिलीवरी के लिए ऐसा डॉक्टर चुनना जरूरी है, जो गर्भवती महिला के शरीर की स्थिति के बारे में सही जानकारी देता रहे और नॉर्मल डिलीवरी कराने की कोशिश करे।

6. मदद के लिए एक अनुभवी दाई रखें : नॉर्मल डिलीवरी की चाहत रखने वाली महिलाओं को अपने पास अनुभवी दाई को रखने की सलाह दी जाती है। ऐसी दाइयों के पास नॉर्मल डिलीवरी कराने का अच्छा अनुभव होता है, इसलिए वे डिलीवरी के दौरान गर्भवती महिलाओं के लिए काफी मददगार साबित हो सकती है। इसके अलावा, दाइयों को शिशु के जन्म के बाद की जाने वाली देखभाल की भी अच्छी जानकारी होती है।

7. शरीर के निचले हिस्से की नियमित रूप से मालिश करें : गर्भावस्था के सातवें महीने के बाद, गर्भवती महिलाएं अपने शरीर के निचले हिस्से की मालिश शुरू कर सकती हैं। इससे प्रसव में आसानी होती है और तनाव भी दूर होता है (6)।

8. खुद को हाइड्रेट रखें : गर्भवती महिलाओं को हमेशा खुद को हाइड्रेट रखना चाहिए। उन्हें खूब पानी या जूस पीना चाहिए। लेबर पेन में पानी की कमी हो सकती है, इसलिए थोड़ा-थोड़ा करके पानी पीते रहें।

9. उठने-बैठने की सही स्थिति का ध्यान रखें : गर्भवती महिला की उठने-बैठने से लेकर लेटने तक की स्थिति गर्भ में पल रहे शिशु पर असर डालती है। इसलिए, उन्हें हमेशा अपने शरीर को सही स्थिति में रखने की कोशिश करनी चाहिए। जैसे कि बैठते समय उन्हें अपनी पीठ को ठीक से सहारा देकर बैठना चाहिए।

10. वजन नियंत्रित रखें : गर्भावस्था में वजन बढ़ना सामान्य बात है, लेकिन गर्भवती महिला का वजन बहुत ज्यादा भी नहीं बढ़ना चाहिए। ज्यादा वजन होने से प्रसव के समय परेशानी हो सकती है। दरअसल, मां अगर ज्यादा मोटी हो, तो शिशु को बाहर आने में कठिनाई होती है।

11. व्यायाम करें : गर्भावस्था में नियमित रूप से व्यायाम करने से नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ जाती है। इसलिए, डॉक्टर की सलाह लेकर नियमित रूप से व्यायाम जरूर करें। साथ ही डॉक्टर की सलाह पर घर के रोजमर्रा के काम भी करते रहें (7)।

लेख में आगे हम कुछ और काम के टिप्स दे रहे हैं।

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नॉर्मल डिलीवरी के लिए क्या करें और क्या न करें? | Normal Delivery Ke Liye Kya Karna Chahiye

गर्भवती महिला की खानपान और रहन-सहन की आदतें उसकी सेहत के साथ-साथ होने वाले शिशु की सेहत पर भी काफी असर डालती हैं। नीचे हम कुछ ऐसी आदतों के बारे में बता रहे हैं, जिसे नॉर्मल डिलीवरी के लिए अहम माना जाता है।

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नॉर्मल डिलीवरी के लिए खानपान की चीजों से जुड़े टिप्स  | Normal Delivery Ke Liye Kya Khana Chahiye

क्या खाएं?

गर्भवती महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी के लिए अपने खानपान में डेयरी उत्पादों, हरी पत्तेदार सब्ज़ियों, सूखे मेवों, बिना वसा वाले मांस, मौसमी फलों, अंडों, बेरियों व फलियों आदि को शामिल करना चाहिए। इसके अलावा, उन्हें दिन भर ढेर सारा पानी पीकर खुद को हाइड्रेट रखना चाहिए (8)।

गर्भावस्था में क्या न खाएं?

गर्भावस्था में कच्चे अंडे, शराब, सिगरेट, ज्यादा मात्रा में कैफीन, उच्च स्तर के पारे वाली मछलियां, कच्चा पपीता, कच्ची अंकुरित चीजें, क्रीम दूध से बने पनीर, कच्चे मांस, घर में बनी आइसक्रीम व जंक फूड आदि से परहेज करना चाहिए (9)।

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नॉर्मल डिलीवरी के लिए व्यायाम से जुड़े टिप्स | Normal Delivery Ke Liye Exercise

अगर गर्भवती महिला को किसी तरह की चिकित्सीय समस्या नहीं है, तो उसे गर्भावस्था में नियमित रूप से व्यायाम करने की सलाह दी जाती है। गर्भावस्था में व्यायाम करने से न सिर्फ मां और बच्चा स्वस्थ रहते हैं, बल्कि इससे नॉर्मल डिलीवरी होने की संभावना बढ़ जाती है।

क्या करें?

गर्भवती महिलाओं को नीचे बताए गए व्यायाम करने की सलाह दी जाती है :

  • सुबह-शाम नियमित रूप से सैर करें।
  • थोड़ी देर तक स्विमिंग करें।
  • थोड़ी बहुत साइकलिंग करें।
  • हल्की-हल्की दौड़ लगाएं।
  • आप चाहें तो प्रेगनेंसी व्यायाम की क्लास में भी जा सकती हैं (10)।

नोट: याद रखें कि हर एक गर्भवती महिला की शारीरिक स्थिति अलग-अलग होती है। इसलिए, किसी भी व्यायाम को शुरू करने से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

क्या न करें?

  • वेटलिफ्टिंग जैसे व्यायाम, जिनसे पेट के निचले हिस्से पर दबाव पड़ता हो।
  • मार्शल आर्ट्स, सॉकर व बास्केटबॉल आदि जैसे खेलों में हिस्सा न लें।
  • अगर आपका किसी दिन व्यायाम करने का मन न करें, तो उस दिन व्यायाम न करें।
  • बुखार होने पर व्यायाम न करें।
  • जरूरत से ज्यादा खिंचाव वाले व्यायाम न करें।
  • ज्यादा देर तक व्यायाम न करें। इससे आपको थकावट हो सकती है (10)।

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नॉर्मल डिलीवरी के लिए योगासन से जुड़े टिप्स | Normal Delivery Ke Liye Yoga

अगर गर्भवती महिला नियमित रूप से कुछ खास तरह के योगासन करे, तो नॉर्मल डिलीवरी होने की संभावना बढ़ जाती है। नॉर्मल डिलीवरी के लिए नीचे दिए गए योगासन करने की सलाह दी जाती है :

  • मार्जरी आसन

Pregnancy tips for normal delivery1

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  • बद्धकोणासन

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  • वीरभद्रासन

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  • त्रिकोणासन

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  • शवासन

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नोट : याद रखें कि हर एक गर्भवती महिला की शारीरिक स्थिति अलग-अलग होती है। इसलिए, किसी भी योगासन का अभ्यास शुरू करने से पहले एक बार डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

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पेरिनियल मालिश कब शुरू करें?

नॉर्मल डिलीवरी के लिए पेरिनियल मालिश फायदेमंद साबित होती है। गर्भावस्था के 34वें सप्ताह से ये मालिश शुरू की जा सकती है। नॉर्मल डिलीवरी की चाहत रखने वाली गर्भवती महिलाओं को हर दिन कुछ मिनट के लिए पेरिनियल मालिश करने की सलाह दी जाती है। इस मालिश के लिए बादाम के तेल का इस्तेमाल किया जा सकता है (12)। पेरिनियल मालिश करने का तरीका :

  • किसी एकांत स्थान पर दीवार का सहारा लेकर बैठ जाएं। बैठते समय पैरों को आगे की ओर रखें। चाहें तो पीठ के पीछे आरामदायक तकिया भी रख सकते हैं।
  • हाथों को अच्छी तरह धोकर उंगलियों पर थोड़ा-सा तेल लगा लें।
  • अब योनि के अंदर लगभग 2.5 सेंटीमीटर तक दोनों हाथों के अंगूठें डालकर बाकी की उंगलियों को नितंबों पर रखें।
  • इसके बाद, धीरे-धीरे अंगूठों से योनि के अंदर के हिस्से की मालिश करें।
  • गर्भवती महिलाओं को पांच मिनट तक पेरिनियल मालिश करने की सलाह दी जाती है।

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नॉर्मल डिलीवरी का विकल्प क्यों चुनना चाहिए?

नॉर्मल डिलीवरी का विकल्प चुनने से मां और बच्चे दोनों की सेहत को कई फायदे होते हैं। नीचे इन फायदों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

नॉर्मल डिलीवरी से मां को होने वाले लाभ :

  • डिलीवरी के बाद ठीक होने में में ज्यादा समय नहीं लगता है।
  • नॉर्मल डिलीवरी होने पर मां अपने बच्चे को तुरंत दूध पिला पाती है।
  • सिजेरियन डिलीवरी के उलट नॉर्मल डिलीवरी में किसी तरह की चीर-फाड़ की जरूरत नहीं पड़ती है। इसलिए, मां बनने वाली औरत को डिलीवरी के बाद किसी तरह का दर्द नहीं सहना पड़ता है।

नॉर्मल डिलीवरी से शिशु को होने वाले लाभ :

  • नॉर्मल डिलीवरी होने पर, शिशु को अपनी मां का साथ सिजेरियन डिलीवरी के मुकाबले थोड़ा पहले मिल पाता है।
  • बच्चे को मां का दूध जल्दी मिलता है। इससे बच्चे को पीलिया होने खतरा कम हो जाता है।

लेख के अंतिम भाग में पाठकों के कुछ सवाल और उसके जवाब दिए गए हैं।

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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल

ये कैसे पता चलता है कि बच्चे को बाहर लाने के लिए कब और कितनी देर के लिए जोर लगाना है?

अगर गर्भवती महिला की गर्भाशय ग्रीवा (Cervix) 10 सेंटीमीटर तक खुल गई है, तो समझ जाएं कि शिशु को बाहर लाने के लिए जोर लगाने का समय आ गया है। इस दौरान गर्भवती महिला अपनी टांगों के बीच शिशु के सिर का दबाव महसूस करने लगती हैं। अगर गर्भवती महिला ने एपिड्यूरल (Epidural) इंजेक्शन लिया है, तो हो सकता है कि उसे ज्यादा जोर न लगाना पड़ें। इसके अलावा, डिलीवरी कराने वाले डॉक्टर भी गर्भवती महिला को जोर लगाने से जुड़े निर्देश देते रहते हैं।

क्या मुझे एपीसीओटोमी (Episiotomy) कराने की जरूरत पड़ेगी?

कुछ खास परिस्थितियों में ही एपीसीओटोमी कराने की जरूरत पड़ती है। आमतौर पर ऐपीसीओटोमी करने की जरूरत तब पड़ती है, जब शिशु के सिर का आकार मां के योनि भाग से बड़ा हो। ऐसा होने पर शिशु को बाहर निकलने में कठिनाई होती है। इसके अलावा, अगर शिशु बर्थ कैनाल में अटक जाए, तो उसे बाहर निकालने के लिए भी एपीसीओटोमी का सहारा लेना पड़ता है। एपीसीओटोमी करने के लिए डॉक्टर गर्भवती महिला के योनि भाग पर चीरा लगाते हैं। आमतौर पर डॉक्टर एपीसीओटोमी करने का फैसला डिलीवरी के दौरान ही लेते हैं (13)।

क्या डिलीवरी के बाद योनि पर टांके लगाने की जरूरत भी पड़ती है?

हां, डिलीवरी के दौरान जब बच्चा बाहर निकलने लगता है, तो गर्भवती महिला की योनि पर बहुत ज्यादा दबाव पड़ता है। इस वजह से योनि का कोई हिस्सा थोड़ा-सा फट भी सकता है। ऐसे में योनि पर टांके लगाने की जरूरत पड़ सकती है। साथ ही अगर एपीसीओटोमी है, तो उसके बाद टांके लगाने ही होते हैं।

अगर पहले सिजेरियन डिलीवरी हो चुकी हो, तो क्या दूसरी बार गर्भधारण करने पर नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है? | Vaginal Birth After Cesarean (VBAC)

जी हां, अगर पहले सिजेरियन डिलीवरी हो चुकी हो, तब भी नॉर्मल डिलीवरी का होना संभव है। यह बात काफी हद तक गर्भवती महिला की शारीरिक स्थिति पर निर्भर करती है। कई डॉक्टर भी मानते हैं कि जिन महिलाओं की पहले सिजेरियन डिलीवरी हो चुकी है, उनकी अगली डिलीवरी नॉर्मल हो सकती है (14)।

अगर गर्भवती महिला के पेट में जुड़वां बच्चे हों, तो क्या उसकी नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है?

जी हां, अगर गर्भवती महिला के गर्भ में मौजूद दोनों बच्चे स्वस्थ हैं, तो उनकी नॉर्मल डिलीवरी हो सकती है। अगर पहला बच्चा सीधा है, तो नॉर्मल डिलिवरी की संभावना बढ़ जाती है, लेकिन दूसरे बच्चे की स्थिति को भी ध्यान में रखकर भी नॉर्मल डिलिवरी की कोशिश करनी चाहिए। ऐसी कई महिलाएं हैं, जिन्होंने सामान्य तरीके से जुड़वां बच्चों को जन्म दिया है।

नॉर्मल डिलीवरी में क्या-क्या जटिलताएं होती हैं?

वैसे तो नॉर्मल डिलीवरी को बिल्कुल सुरक्षित माना जाता है, लेकिन इस दौरान कभी-कभी नीचे दी गई जटिलताओं से जूझना पड़ सकता है :

  • प्लेसेंटा का अचानक टूट जाना।
  • भ्रूण का सिर पहले बाहर आना।
  • शिशु के दिल की धड़कन घटना या बढ़ना।
  • ज्यादा रक्तस्राव होना।
  • पानी की थैली का जल्दी फट जाना।

ऐसी किसी भी तरह की जटिलता होने पर डॉक्टर तुरंत सिजेरियन डिलीवरी करने का फैसला ले सकते हैं।

नॉर्मल डिलीवरी में कितना दर्द होता है?

नॉर्मल डिलीवरी के दौरान हर महिला का अनुभव अलग-अलग हो सकता है। महिला को डिलीवरी के दौरान कितना दर्द होगा, यह उसकी शारीरिक और भावनात्मक क्षमता पर निर्भर करता है।

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हम उम्मीद करते हैं कि इस लेख को पढ़ने के बाद आपको नॉर्मल डिलीवरी का महत्व समझ आ गया होगा। चाहे कुछ भी हो, नॉर्मल डिलीवरी को सी-सेक्शन से बेहतर ही माना गया है और डॉक्टर भी इस बात की पुष्टि करते हैं। इसलिए, अगर आप भी गर्भवती हैं, तो उन सभी टिप्स को फॉलो करें, जिससे नॉर्मल डिलीवरी की संभावना बढ़ती है। प्रेगनेंसी से जुड़ी ऐसी और जानकारियों के लिए आप हमारे अन्य लेख पढ़ सकते हैं।

संदर्भ (References) :

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    नॉर्मल डिलीवरी के लिए महिलाओं को क्या करना चाहिए?

    महिलाओं को नॉर्मल डिलीवरी के लिए क्या करना चाहिए.
    नार्मल डिलीवरी क्या है ?.
    डिलीवरी से संबंधित सही जानकारी लें.
    परिवार वालों के साथ रहें.
    सही डॉक्टर का चुनाव करें.
    एक अनुभवी दाई रखें.
    तनाव से दूर रहें.
    निगेटिव बातों से दूर रहें.
    खुद को हाइड्रेट रखें.

    बिना दर्द के नार्मल डिलीवरी कैसे होती है?

    रवि आनंद ने बताया कि नार्मल डिलीवरी की असहनीय वेदना से निजात दिलाने के लिए कमर के निचले भाग में स्थित रीढ़ की हड्डियों के बीच निश्चेतना की सूई दी जाती है। इससे लेबर-पेन बिल्कुल नहीं होता परंतु प्रसव की प्रक्रिया अपनी सामान्य गति से चलती रहती है। इस प्रकार बिना किसी तरह के दर्द समय पूरा होने पर प्रसव हो जाता है।

    नॉर्मल डिलीवरी के लिए 9 महीने में क्या खाना चाहिए?

    नौवें महीने में इस चीज को खाने से सही समय पर खुल जाएगा बच्‍चेदानी....
    ​नॉर्मल डिलीवरी के लिए क्‍या करें ... .
    ​अजवाइन का लड्डू ... .
    ​तिल के लड्डू ... .
    ​गुनगुना पानी ... .
    खजूर ... .
    अंडा ... .
    ​नौवें महीने में शिशु का विकास.