पंच पीर की दरगाह कहाँ है? - panch peer kee daragaah kahaan hai?

हरियाणा प्रदेश की धरा पर बनी पीर फकीरों की मजारें व दरगाहें प्रदेशवासियों की भक्ति भावना को तो दर्शाती ही हैं, साथ ही विभिन्न धर्मो व जाति-पाति के विवाद को खत्म करते हुए आपसी भाईचारे का संदेश भी देती हैं।

हरियाणा प्रदेश की धरा पर बनी पीर फकीरों की मजारें व दरगाहें प्रदेशवासियों की भक्ति भावना को तो दर्शाती ही हैं, साथ ही विभिन्न धर्मो व जाति-पाति के विवाद को खत्म करते हुए आपसी भाईचारे का संदेश भी देती हैं। इसी तरह सर्वधर्म सम्मान व अनेकता में एकता के लिए प्रेरित करती हिसार शहर से बालसमंद रोड पर महज 10 किलोमीटर की दूरी पर घोड़ा फार्म में स्थित पांच पीर की दरगाह में भक्तों का अटूट विश्वास व अगाध श्रद्धा है। यह दरगाह प्रदेशवासियों के साथ-साथ सैन्य सेवा में तैनात देश के रक्षकों की देश-भक्ति और देव-भक्ति की भावनाओं को भी दर्शाती है। यहां पर स्थित यह दशकों पुरानी दरगाह आपसी प्रेम की प्रतीक तो है ही, साथ ही सभी धर्मो के लोगों को शीश नवाकर गले मिलते हुए यहां देखा जा सकता है।

यहां पर आने वाले भक्तों का मानना है कि बाबा पंच पीर उनकी हर मुराद पूरी करके उनके दुखों से आंखों में आए नीर को सोखकर उनकी झोली खुशियों से भर देते हैं। इस धार्मिक स्थल के प्रति यहां के सैनिक क्षेत्र के निवासियों के साथ-साथ आस-पास के गांवों के लोगों की भी अगाध आस्था है। पीरांवाली, न्योली, चन्दन नगर व संजय नगर तथा शहरी क्षेत्र के निवासी भी हर वीरवार को यहां पर शीश नवाने आते हैं। अब तो इस दरगाह की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैल चुकी है। निकटवर्ती गांव पीरांवाली के सरपंच गुरदयाल सिंह का कहना है कि इस गांव का नाम भी यहां पर स्थित प्राचीन पांच पीरों की समाधि के कारण ही पीरांवाली रखा गया था। इस दरगाह की चारदीवारी के अंदर पांच पीरों की समाधियां बनाई गई हैं जो सफेद पत्थर से निर्मित हैं। वीरवार के दिन यहां भक्तजन विशेष रूप से शीश नवाने आते हैं और इस दिन यहां पर आने के लिए घोड़ा फार्म की तरफ से भक्तों को बाबा के दर्शनों की मंजूरी दे दी जाती है।

शुक्ल पक्ष के वीरवार को यहां पर भक्तजन चद्दर चढ़ाने आते हैं और दीप जलाकर बाबा से अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने की मन्नतें मांगते हैं। इस दिन यहां पर सर्वधर्म सम्मान की भावना लिए हुए हर धर्म के लोग शीश नवाकर आपस में प्रेम स्वरूप गले मिलते हैं। देश के अनेक प्रांतों से भी कई लोग यहां मन्नतें मांगने आते हैं। हिसार से आए हुए भक्त सतपाल व राजू ने बताया कि वे हर वर्ष बाबा के दर पर आते हैं और बाबा की मेहर से आज उनका जीवन सुखमय बना हुआ है। दरगाह पर आए हुए सेवानिवृत्त हो चुके गांव ढंढूर के दीनानाथ व जाखोद खेड़ा के गुलाब सिंह ने बताया कि बाबा की यह दरगाह बहुत प्राचीन है और इसका नवनिर्माण घोड़ा फार्म के निवासियों द्वारा ही करवाया गया था। वीरवार के दिन इस दरगाह पर देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों से आए सैन्य क्षेत्र के कर्मचारी भी शीश झुकाने आते हैं। पंच पीर की इस दरगाह पर आने वाले लोगों का मानना है कि जो व्यक्ति यहां सच्चे मन से शीश झुकाकर मन्नत मांगता है तो पंच पीर उसकी मनोकामना को अवश्य पूरी करते हैं।

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पांच पीरों ने अपनी पत्नियों को श्राप दे कर दिया था भस्म

अबोहर। अबोहर की आभा नगरी में स्थित हिंदू-मुस्लिम आस्था की प्रतीक पांच पीरों की इस मजार के अस्तित्व की कहानी जितनी प्राचीन है, उतनी दिलचस्प भी। माना जाता है कि गुस्से में आकर यहां डेरा जमाए बैठे पीरों को ढूंढती-ढूंढती इनकी पत्नियां यहां पहुंची तो पीरों ने उन्हें शाप देकर भस्म कर दिया था। अब सदी से भी ज्यादा समय से यहां हजारों लोग शीश झुकाने दूरदराज के क्षेत्रों से आते हैं। हर वीरवार को तो मेला लगता ही है, हर वर्ष सावन की 15 तारीख को मेला लगता है।

राजा आबू चंदानी को हो गया था कुष्ठ रोग

इतिहास के अनुसार इस धर्मनगरी में एक बहुत बड़ा टीला हुआ करता था, जो अब थेह के नाम से जाना जाता है। कभी यहां राजा आबू चंदानी का महल था जो आबू नगरी व आभा नगरी कहलाता था। बताते हैं कि सूर्यवंशी राजा आबा चंदनी के बाद राजा हरीचंद ने राजपाठ संभाला, राजा हरीचंद की केवल एक बेटी ही थी। आखिरी समय में राजा को कुष्ठ रोग हो गया। शाही हकीमों के इलाज भी बेअसर साबित हुए।

पीरों के घोड़ों का खून था इलाज, छल से लाए गए आबू नगरी

किसी ने राजा को सलाह दी कि मुल्तान (पाकिस्तान) के पांच पीरों के घोड़ों के खून से इस बीमारी का इलाज संभव है। शहजादी को जब इस बात का पता चला तो वह सूरतगढ़ के ठाकुर की मदद से पांच पीरों के पास गई। मांगने पर घोड़े न देने पर वह छल से उनके घोड़े यहां ले आई। इससे राजा की बीमारी तो ठीक हो गई, लेकिन कुछ अरसे बाद उसकी मौत हो गई। ठाकुर शहजादी से विवाह करके आबू नगरी में रहने लगा।

घोड़े न लौटाए जाने पर यहीं रुक गए पांचों पीर

पांच पीरों ने बार-बार घोड़े लौटाने का संदेश भिजवाया, लेकिन ठाकुर व शहजादी ने घोड़े नहीं लौटाए। इस पर पांच-पीर अपनी पत्नियों को उनके पीछे न आने की नसीहत देकर खुद घोड़े लेने आबू नगरी आ पहुंचे और टीले पर डेरा डाल दिया। काफी समय बाद भी जब पीर वापस मुल्तान नहीं पहुंचे तो उनकी पत्नियां उनकी नसीहत को नजरअंदाज कर उन्हें ढूंढती हुई आबू नगरी आ पहुंचीं। पांच पीरों ने जब अपनी पत्नियों को देखा तो वह गुस्से से बेकाबू हो गए। उन्होंने उन्हें शाप देकर भस्म कर दिया।

ऐसे हुई थी आबू नगरी राख

उधर, शहजादी की ओर से घोड़े न लौटाने की जिद से गुस्साए पीरों ने आबू नगरी को भी नष्ट होने का श्राप दे दिया, लेकिन उसका कोई असर न हुआ। जब पांच पीरों ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखा तो उन्हें पता चला उनका मामा अलीबख्श अपनी अदृश्य शक्ति से आबू नगरी को बचा रहा है। इस पर पीरों ने अपने मामा को धिक्कारा तो वह नगर छोड़कर चला गया। उसके जाते ही आबू नगरी राख हो गई। महल व घर खंडहर में तब्दील हो गए। इन्हीं पांच पीरों और उनकी पत्नियों की मजारें यहां लोगों की श्रद्धा का केंद्र हैं।

50 हजार से ज्यादा लोग झुका चुके शीश

हर साल की तरह इस बार मेले में वीरवार और शुक्रवार को करीब 50 हजार से ज्यादा लोग पीरों को शीश नवा चुके हैं। साथ ही इस मेले की खासियत यह भी है कि मेले में बारिश जरूर होती है। इस बार भी हुई, बावजूद इसके लोगों की आस्था का नजारा देखने को मिला। इतना ही नहीं बारिश की वजह से मौसम ठंडा हुआ और ऐसे में लोगों ने खाने-पीने की चीजों को खूब इंज्वाय किया।

ये हैं पांच पीरों के नाम, जिन्हें लोग करते हैं नमन

  1. दाता बख्श
  2. शेख बाबा फरीद शकरगंज
  3. बाहा उद्दीन जकारिया
  4. लाल शहबाज कलंदर
  5. सैय्यद जलालुद्दीन भूखड़ी

आगे की स्लाइड्स में देखें आभा नगरी के मेले की आभा को सहेजे ये PHOTOS...

पंच पीर की दरगाह कहाँ पाई जाती है?

अबोहर। अबोहर की आभा नगरी में स्थित हिंदू-मुस्लिम आस्था की प्रतीक पांच पीरों की इस मजार के अस्तित्व की कहानी जितनी प्राचीन है, उतनी दिलचस्प भी। माना जाता है कि गुस्से में आकर यहां डेरा जमाए बैठे पीरों को ढूंढती-ढूंढती इनकी पत्नियां यहां पहुंची तो पीरों ने उन्हें शाप देकर भस्म कर दिया था।

पंच पीर देवता कौन कौन से हैं?

पाबू, हड़बू, रामदे, मांगलिया, मेहा।

सबसे बड़ा पीर बाबा कौन सा है?

सैयद अली गौस शाह तिर्मिज़ी जिन्हें पीर बाबा के नाम से जाना जाता है, पाकिस्तान के बुनेर क्षेत्र से 16 वीं शताब्दी के सूफी संत थे।

हिन्दू पीर बाबा की पूजा क्यों करते हैं?

पीर-फकीरों, बाबाओं, तांत्रिकों, मायावियों, अघोरियों को तामसिक वृत्ति का मानते हुए उनसे दूर रहने की बात करता है। इनमें से किसी की पूजा करने या न करने के सम्बंध में धर्म कोई आदेश, अनुमति या बंदिश की बात नहीं करता, यह व्यक्ति के स्वयं के विवेक पर निर्भर करता है।