गयाजी में पिंडदान कैसे करते हैं - gayaajee mein pindadaan kaise karate hain

Pitru Paksha 2022 Start Tithi: पितृपक्ष में गयाजी पिंडदान करने से पितर को मोक्ष की प्राप्ति मिलती है. 16 दिन तक चलने वाला यह श्राद्ध पक्ष विशेष कर पितर के तर्पण के लिए पवन भूमि है. गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पृथ्वी के सभी तीर्थों में गया सर्वोत्तम है. तो वायु पुराण में वर्णित है कि गया में ऐसा कोई स्थान नहीं, जो तीर्थ न हो. मत्स्य पुराण में गया को ‘पितृतीर्थ’ कहा गया है. गया में जहां-जहां पितर की स्मृति में पिंड अर्पित किया जाता है, उसे पिंडवेदी कहा जाता है. एक बार सनंतकुमार नारद जी से पूछे कोई पवित्र भूमि बताओ जहा पर श्राद्ध और पिंडदान करने से मुक्ति प्राप्त हो.

गया में पिंडदान का विशेश महत्व

नारद जी बोले गयासुर नमक दैत्य था बड़ा बलि उत्पन हुआ. उसके ऊपर ब्रह्मा ने धर्मशीला रखकर यज्ञ किया. इस शिला के अचल होने के बाद भगवान विष्णु गदाधर नाम से गदा लेकर उपस्थित हुए और सभी देवता फल्गु का स्वरूप लेकर आये. ब्रह्मा ने यज्ञ करके ब्राह्मण को दान में घर, सोना, चांदी आदि दान दिए तभी से यह भूमि पवित्र हो गयी. यही पित्र सदेव वास करते है. वह हरदम यही उनकी आशा करते है हमारे कुल में कोई ऐसा उत्पन हो जो यहां आकर पिंडदान करें. हमलोग का मुक्ति हो. गया में श्राद्ध करने वाले को किसी काल का विचार नहीं करना चाहिए.

गया में पिंडदान से कैसे होती पूर्वज को मुक्ति

  • गया में पुत्र को जाने तथा फल्गु नदी में स्पर्श करने से पितरो का स्वर्गवास होता है.

  • गया क्षेत्र में तिल के साथ समी पत्र के प्रमाण पिंड देने से पितरो का अक्षयलोक को प्राप्त होता है.

  • यहां पर पिंडदान करने से ब्रह्हत्या सुरापान इत्यादि घोर पाप से मुक्त होता है.

  • गया में पिंडदान करने से कोटि तीर्थ तथा अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है.

  • यहां पर श्राद्ध करने वाले को कोई काल में पिंड दान कर सकते है साथ ही यहां ब्राह्मणों को भोजन करने से पितरो की तृप्ति होती है.

  • गया में पिंडदान करने के पहले मुंडन कराने से बैकुंठ को जाते है साथ ही काम, क्रोध, मोक्ष को प्राप्ति होती है .

गयाजी में पिंडदान कैसे करते हैं - gayaajee mein pindadaan kaise karate hain

गया में तर्पण का का रहस्य

यहां माता सीता ने तर्पण किया था. गया में पिंडदान करने से आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए इस स्थान को मोक्ष स्थली भी कहा जाता है. बताया जाता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृदेव के रूप में निवास करते हैं. गया में श्राद्ध कर्म और तर्पण विधि करने से कुछ शेष नहीं रह जाता और व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है.

संजीत कुमार मिश्रा

ज्योतिष एवं रत्न विशेषज्ञ

मो. 8080426594 /9545290847

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Published Date Sat, Sep 10, 2022, 9:25 AM IST

वैसे तो श्राद्ध कर्म या तर्पण करने के भारत में कई स्थान है, लेकिन पवित्र फल्गु नदी के तट पर बसे प्राचीन गया शहर की देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी पितृपक्ष और पिंडदान को लेकर अलग पहचान है। पुराणों के अनुसार पितरों के लिए खास आश्विन माह के कृष्ण पक्ष या पितृपक्ष में मोक्षधाम गयाजी आकर पिंडदान एवं तर्पण करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और माता-पिता समेत सात पीढ़ियों का उद्धार होता है।

पितृ की श्रेणी में मृत पूर्वजों, माता, पिता, दादा, दादी, नाना, नानीसहित सभी पूर्वज शामिल होते हैं। व्यापक दृष्टि से मृत गुरू और आचार्य भी पितृ की श्रेणी में आते हैं। कहा जाता है कि गया में पहले विभिन्न नामों के 360 वेदियां थीं जहां पिंडदान किया जाता था। इनमें से अब 48 ही बची है। यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है। इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख है। यही कारण है कि देश में श्राद्घ के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है जिसमें बिहार के गया का स्थान सर्वोपरि है। आओ जानते हैं इसके 5 कारण।

1.गयासुर नामक असुर ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पापमुक्त हो जाएं। इस वरदान के चलते लोग भयमुक्त होकर पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन करके फिर से पापमुक्त हो जाते थे।

इससे बचने के लिए यज्ञ करने के लिए देवताओं ने गयासुर से पवित्र स्थान की मांग की। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया। जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया। यही पांच कोस जगह आगे चलकर गया बना।

2.देह दान देने के बाद गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और फिर उसने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने वाला बना रहे। तब से ही यह स्थान मृतकों के लिए श्राद्ध कर्म कर मुक्ति का स्थान बन गया।

3.कहते हैं कि गया वह आता है जिसे अपने पितरों को मुक्त करना होता है। लोग यहां अपने पितरों या मृतकों की आत्मा को हमेशा के लिए छोड़कर चले जाता है। मतलब यह कि प्रथा के अनुसार सबसे पहले किसी भी मृतक तो तीसरे वर्ष श्राद्ध में लिया जाता है और फिर बाद में उसे हमेशा के लिए जब गया छोड़ दिया जाता है तो फिर उसके नाम का श्राद्ध नहीं किया जाता है।
कहते हैं कि गया में श्राद्ध करने के उपरांत अंतिम श्राद्ध बदरीका क्षेत्र के 'ब्रह्मकपाली' में किया जाता है।

4.गया क्षेत्र में भगवान विष्णु पितृदेवता के रूप में विराजमान रहते हैं। भगवान विष्णु मुक्ति देने के लिए 'गदाधर' के रूप में गया में स्थित हैं। गयासुर के विशुद्ध देह में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव तथा प्रपितामह स्थित हैं। अत: पिंडदान के लिए गया सबसे उत्तम स्थान है।

5.पुराणों अनुसार ब्रह्मज्ञान, गयाश्राद्ध, गोशाला में मृत्यु तथा कुरुक्षेत्र में निवास- ये चारों मुक्ति के साधन हैं- गया में श्राद्ध करने से ब्रह्महत्या, सुरापान, स्वर्ण की चोरी, गुरुपत्नीगमन और उक्त संसर्ग-जनित सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं।

गयाजी में पिंडदान कैसे किया जाता है?

गया में पिंडदान से कैसे होती पूर्वज को मुक्ति.
गया में पुत्र को जाने तथा फल्गु नदी में स्पर्श करने से पितरो का स्वर्गवास होता है..
गया क्षेत्र में तिल के साथ समी पत्र के प्रमाण पिंड देने से पितरो का अक्षयलोक को प्राप्त होता है..
यहां पर पिंडदान करने से ब्रह्हत्या सुरापान इत्यादि घोर पाप से मुक्त होता है..

गया में पिंड दान कब करना चाहिए?

गया में पिंडदान को लेकर गरुण पुराण में एक कथा कही गई है. पितरों का विसर्जन 25 सितंबर को किया जाएगा. हिंदू शास्त्रों के अनुसार भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष में 15 दिन का पितृ पक्ष मनाया जाता है. पितृ पक्ष में पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है. इन दिनों में पिंडदान करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है.

गया में पिंडदान में कितना पैसा लगता है?

गया शहर के 4-5 मुख्य वेदियों पर पिंडदान के लिए 2-5 हजार रुपए लिए जा रहे हैं। शहर से बाहर बोधगया या प्रेत शिला पर पिंडदान के लिए अधिक पैसे लग रहे हैं। अगर कोई यात्री सिर्फ फल्गु नदी या विष्णुप्रद मंदिर में पिंडदान करना चाहे तो उसे कम से कम 500 रुपए देने पड़ते हैं।

गया में पिंडदान कौन कर सकता है?

धर्म ग्रंथों में बताया गया है कि नरक से मुक्ति पुत्र द्वारा ही मिलती है। इसलिए पुत्र को ही श्राद्ध, पिंडदान का पहला अधिकारी माना गया है। पुत्र न होने पर परिवार के अन्य लोग या रिश्तेदार भी श्राद्ध कर सकते हैं।