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नवीकरणीय संसाधन अथवा नव्य संसाधन वे संसाधन हैं जिनके भण्डार में प्राकृतिक/पारिस्थितिक प्रक्रियाओं द्वारा पुनर्स्थापन (replenishment) होता रहता है। हालाँकि मानव द्वारा ऐसे संसाधनों का दोहन (उपयोग) अगर उनके पुनर्स्थापन की दर से अधिक तेजी से हो तो फिर ये नवीकरणीय संसाधन नहीं रह जाते और इनका क्षय होने लगता है। नवीकरणीय संसाधन अथवा नवीन संसाधन समय अनुरूप हमारे लिए ऐसे संसाधन उपलब्ध कराते हैं जिनकी हमें भविष्य में आर्थिक और सामाजिक रूप से आवश्यकता होती है| उपरोक्त परिभाषा के अनुसार ऐसे संसाधनों में ज्यादातर जैव संसाधन आते है जिनमें जैविक प्रक्रमों द्वारा पुनर्स्थापन होता रहता है। उदाहरण के लिये एक वन क्षेत्र से वनोपजों का मानव उपयोग वन को एक नवीकरणीय संसाधन बनाता है किन्तु यदि उन वनोपजों का इतनी तेजी से दोहन हो कि उनके पुनर्स्थापन की दर से अधिक हो जाए तो वन का क्षय होने लगेगा। सामान्यतया नवीकरणीय संसाधनों में नवीकरणीय उर्जा संसाधन भी शामिल किये जाते हैं जैसे सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, भू-तापीय ऊर्जा इत्यादि। किन्तु सही अर्थों में ये ऊर्जा संसाधन अक्षय ऊर्जा संसाधन हैं न कि नवीकरणीय। वन संसाधन[संपादित करें]लकड़ी के लिये उपयोगी शीतोष्ण कटिबंधीय वन वन क्षेत्र मानव उपयोग के योग्य बहुत सारी चीजें उत्पन्न करते हैं जिनका घरेलू कार्यों से लेकर औद्योगिक उतपादन तक मनुष्य उपयोग करता है। अतः वन एक महत्वपूर्ण संसाधन हैं और चूँकि वन में पेड़-पौधे प्राकृतिक रूप से वृद्धि करते हुए अपने को पुनःस्थापित कर सकते हैं, यह नवीकरणीय संसाधन भी हैं। वनोपजों में सबसे निचले स्तर पर जलाने के लिये लकड़ी, औषधियाँ, लाख, गोंद और विविध फल इत्यादि आते हैं जिनका एकत्रण स्थानीय लोग करते हैं। उच्च स्तर के उपयोगों में इमारती लकड़ी या कागज उद्द्योग के लिये लकड़ी की व्यावसायिक और यांत्रिक कटाई आती है। जैसा कि सभी नवीकरणीय संसाधनों के साथ है, वनों से उपज लेने की एक सीमा है। लकड़ी या पत्तों की एक निश्चित मात्रा निकाल लेने पर उसकी प्राकृतिक रूप से समय के साथ पुनः भरपाई हो जाती है। यह मात्रा सम्पोषणीय उपज कहलाती है। किन्तु यदि एक सीमा से ज्यादा दोहन हो और समय के सापेक्ष बहुत तेजी से हो तो वनों का क्षय होने लगता है और तब इनका दोहन सम्पोषणीय नहीं रह जाता और ये नवीकरणीय संसाधन भी नहीं रह जाते। विश्व में और भारत में भी जिस तेजी से वनों का दोहन हो रहा है और वनावरण घट रहा है, इन्हें सभी जगह नवीकरणीय की श्रेणी में रखना उचित नहीं प्रतीत होता। वन अंतरराष्ट्रीय दिवस के मौके पर वन संसाधन पर जारी आंकड़ों में खाद्य एवं कृषि संगठन (एफ॰ए॰ओ॰) के अनुसार वैश्विक स्तर पर वनों के क्षेत्रफल में निंरतर गिरावट जारी है और विश्व का वनों वाला क्षेत्र वर्ष 1990 से 2010 के बीच प्रतिवर्ष 53 लाख हेक्टेयर की दर से घटा है।[1] इसमें यह भी कहा गया है कि उष्णकटिबंधीय वनों में सर्वाधिक नुकसान दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका में हुआ है। मौजूदा आंकलनों के अनुसार भारत में वन और वृक्ष क्षेत्र 78.29 मिलियन हेक्टेयर है, जो देश के भैगोलिक क्षेत्र का 23.81 प्रतिशत है। 2009 के आंकलनों की तुलना में, व्याख्यात्मक बदलावों को ध्यान में रखने के पश्चात देश के वन क्षेत्र में 367 वर्ग कि॰मी॰ की कमी दर्ज की गई है।[2] वन संसाधनों का महत्व इसलिए भी है कि ये हमें बहुत से प्राकृतिक सुविधाएँ प्रदान करते हैं जिनके लिये हम कोई मूल्य नहीं प्रदान करते और इसीलिए इन्हें गणना में नहीं रखते। उदाहरण के लिये हवा को शुद्ध करना और सांस लेने योग्य बनाना एक ऐसी प्राकृतिक सेवा है जो वन हमें मुफ़्त उपलब्ध करते हैं और जिसका कोई कृत्रिम विकल्प इतनी बड़ी जनसंख्या के लिये नहीं है। वनों के क्षय से जनजातियों और आदिवासियों का जीवन प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होता है[2] और बाकी लोगों का अप्रत्यक्ष रूप से। वर्तमान समय में वनों से संबंधित कई शोध हुए है और वनावरण को बचाने हेतु कई उपाय और प्रबंधन माडल भी सुझाए गये हैं।[3] जल संसाधन[संपादित करें]पृथ्वी पर उपलब्ध जल, संसाधन के रूप में कुछ खास दशाओं में एक नवीकरणीय संसाधन है। जल का पारिस्थितिक तंत्र में पुनर्चक्रण होता रहता है जिसे जल चक्र कहते हैं। अतः जल एक प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत शोधित और मानव उपयोग योग्य बनता रहता है। नदियों का जल भी मानव द्वारा डाले गये कचरे की एक निश्चित मात्रा को स्वतः जैविक प्रक्रियाओं द्वारा शुद्ध करने में समर्थ है। लेकिन जब जल में प्रदूषण की मात्रा इतनी अधिक हो जाए कि वह स्वतः पारिस्थितिक तंत्र की सामान्य प्रक्रियाओं द्वारा शुद्ध न किया जा सके और मानव के उपयोग योग्य न रह जाय तो ऐसी स्थिति में यह नवीकरणीय नहीं रह जाता। एक उदाहरण के तौर पर देखा जाए तो उत्तरी भारत के जलोढ़ मैदान हमेशा से भूजल में संपन्न रहे हैं लेकिन अब उत्तरी पश्चिमी भागों में सिंचाई हेतु तेजी से दोहन के कारण इनमें अभूतपूर्व कमी दर्ज की गई है।[4] भारत में जलभरों और भूजल की स्थिति पर चिंता जाहिर की ज रही है। जिस तरह भारत में भूजल का दोहन हो रहा है भविष्य में स्थितियाँ काफी खतरनाक होसकती हैं। वर्तमान समय में २९% विकास खण्ड या तो भूजल के दयनीय स्तर पर हैं या चिंतनीय हैं और कुछ आंकड़ों के अनुसार २०२५ तक लगभग ६०% ब्लाक चिंतनीय स्थितिमें आ जायेंगे।[5] ध्यातव्य है कि भारत में ६०% सिंचाई एतु जल और लगभग ८५% पेय जल का स्रोत भूजल ही है,[4] ऐसे में भूजल का तेजी से गिरता स्तर एक बहुत बड़ी चुनौती के रूप में उभर रहा है। मत्स्यन[संपादित करें]यह अनुभाग खाली है, अर्थात पर्याप्त रूप से विस्तृत नहीं है या अधूरा है। आपकी सहायता का स्वागत है! धारणीय कृषि[संपादित करें]आंध्र प्रदेश में बहुफसली कृषि (पालीकल्चर) यह अनुभाग खाली है, अर्थात पर्याप्त रूप से विस्तृत नहीं है या अधूरा है। आपकी सहायता का स्वागत है! नवीकरणीय ऊर्जा[संपादित करें]पवन ऊर्जा एक नवीकरणीय ऊर्जा है नवीकरणीय उर्जा या अक्षय उर्जा (अंग्रेजी:Renewable Energy) में वे सारी उर्जा शामिल हैं जो प्रदूषणकारक नहीं हैं तथा जिनके स्रोत का क्षय नहीं होता, या जिनके स्रोत का पुनः-भरण होता रहता है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, जलविद्युत उर्जा, ज्वारीय उर्जा, बायोमास, जैव इंधन आदि नवीकरणीय उर्जा के कुछ उदाहरण हैं।[6] नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियाँ न केवल ऊर्जा प्रदान करती हैं, बल्कि एक स्वच्छ पर्यावरण और अपेक्षाकृत कम शोरगुलयुक्त ऊर्जा स्रोत भी प्रदान करती हैं। नवीकरणीय ऊर्जा (आरई) को "ऊर्जा सुरक्षा’’ और वर्ष 2020 तक "ऊर्जा स्वतंत्रता" के लक्ष्य की दृष्टि से एक वैकल्पिक ऊर्जा स्रोत के रूप में माना जा रहा है।[7] इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
नवीकरणीय और अनवीकरणीय में क्या अंतर है?नवीकरणीय संसाधन असीमित होते हैं। उदाहरण-सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा। <br> अनवीकरणीय संसाधन-वे वस्तुएँ जिनका भण्डार सीमित होता है तथा जिनके निर्माण होने की नहीं रहती या निर्माण होने में बहुत अधिक समय लगता हैं, अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। उदाहरण- कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस।
नवीकरणीय तथा अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत क्या है?हम देखते हैं कि ऊर्जा के कुछ स्रोतों की एक लघु समय अवधि के बाद पुन: पूर्ति की जा सकती है। इस प्रकार के ऊर्जा के स्रोतों को ''नवीकरणीय'' ऊर्जा स्रोत ऊर्जा कहते हैं, जबकि ऊर्जा के वे स्रोत लघु समय अवधि के अंदर जिनकी पुन: पूर्ति नहीं की जा सकती है ''अनवीकरणीय ऊर्जा स्रोत कहलाते हैं।
अनवीकरणीय संसाधन कौन कौन से हैं?ऐसे संसाधन, जिन्हें उपभोग के बाद पुन: प्राप्त नहीं किया जा सकता हैं अनवीकरणीय संसाधन कहलाते हैं। इनमें खनिज (ताँबा, लोहा आदि) जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल आदि) शामिल है। यहाँ तक कि संकटापन्न वन्यजीव (दुर्लभ पादप व जन्तु) भी इस श्रेणी में आते हैं।
नवीकरण की परिभाषा क्या है?इस Editorial में The Hindu, The Indian Express, Business Line आदि में प्रकाशित लेखों का विश्लेषण किया गया है। इस लेख में नवीकरणीय ऊर्जा और उसके महत्त्व पर चर्चा की गई है। साथ ही भारत में उसकी स्थिति और मौजूदा चुनौतियों का भी उल्लेख किया गया है। आवश्यकतानुसार, यथास्थान टीम दृष्टि के इनपुट भी शामिल किये गए हैं।
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